एक आठ साल के बच्चे को अगर सबकुछ भी उपलब्ध करवा दिया जाए तो उत्सुकता के कारण ही सही पर वह कुछ न कुछ शरारत ज़रूर करेगा। इसके विपरीत अगर एक ऐसा बच्चा जो बहुत सारी चीजों से वंचित रहा हो उसके शरारत करने की सूरतें पहले वाले बच्चे से कहीं अधिक होंगी। ऐसा ही कुछ हुआ 1993 में। एक परिवार में माँ ने पूजास्थान पर चढ़ावे के रूप में एक रुपया अर्पित किया था। बच्चे ने किसनु की दुकान पर पोपिंस चॉकलेट देख रखी थी। उसका बाल मन पोपिंस चॉकलेट चखने के लिए मचल गया। हालाँकि उसने अपने पास कई दिनों से अठन्नी बचा रखी थी लेकिन पोपिंस की कीमत एक रुपए थी। अब उसके पास एक ही सूरत बची थी कि वह पूजास्थल पर रखे एक रुपए के सिक्के को अठन्नी से बदल दे। उसने किया भी ऐसा ही और ऐसा करके उसने पोपिंस का स्वाद चख भी लिया। पर कहानी यहीं अंत नहीं हुई। माता को संदेह हुआ तो उन्होंने पिता से सुनिश्चित करने के लिए पूछा, “अजी आपने उस दिन चढ़ावे के लिए एक रुपया ही दिया था न?” पिताजी के ‘हाँ’ में उत्तर देते हुए ही बच्चे की शामत आ गई। शाम का वक्त था बच्चा अपने मित्रों के साथ खेल रहा था कि तभी उसकी बड़ी बहन ने उसे यह कहकर बुलाया कि तुम्हें पिताजी बुला रहे हैं। बच्चा अपनी परिणति समझ गया। घर पहुँचते ही उसकी बड़ी कुटाई हुई। इस प्रताड़ना ने बच्चे को उसके माँ-पिता दोनों से थोड़ा और दूर कर दिया।