एक परिवार के सबसे छोटे बच्चे को किसी आत्मीयजन ने उपहारस्वरूप एक पटाखे वाली बंदूक दी थी। उस बंदूक में तीन खासियत थी पहली तो यह कि वह मजबूत थी, दूसरी यह कि उस जैसी बंदूक मोहल्ले में किसी के पास न थी जिस कारण से बच्चा उससे अपनी श्रेष्ठता जाहिर करता था और तीसरा यह कि वह उपहार की वस्तु थी जो उसे इस बात का अहसास दिलाती थी कि वह भी किसी की नज़र में अहमियत रखता है। दीपावली के समय में तो उसने रील पटाखे के प्रयोग से उस बंदूक का भरपूर आनंद उठाया पर दीपावली के बाद भी वह केवल बंदूक को यूँ ही चलाकर खुश हो लेता था। इसी बीच उसकी स्कूल की परीक्षाएँ शुरू हुईं तो पढ़ाई के कारण उसकी बंदूक से कुछ दूरी बन गई। उस दिन जब उसकी परीक्षा समाप्त हुई और प्रसन्नवदन वह अपने घर को लौट रहा था तो उसके मोहल्ले में रहने वाली लड़की मामुनी ने उससे यह कहा कि, “मोनू तूमार माँ बंदुक बिक दिया।” बच्चे ने उसकी बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया क्योंकि हिंदीभाषी बच्चे को बांग्लामिश्रित हिंदी कुछ खास समझ में आई नहीं। दाल-भात खाने के बाद शाम को जब उसने अपनी बंदूक खोजी तो वह अपने नियत स्थान पर नहीं थी। जिज्ञासा से उसने अपनी माँ से बंदूक के बारे में पूछा तो माँ ने कहा वह तो खराब हो गई थी इसीलिए मैंने उसे कबाड़ी वाले को बेच दिया। कटा पेड़ जिस तरह एकाएक गिर पड़ता है उसी तरह बालक के आँखों से आँसू झरने लगे। वह बहुत रोया। रोते-रोते उसने अपनी माँ से कहा कि क्या तुमने वह खिलौना लाकर मुझे दिया था जो बेच दिया। माँ से बेअदबगी के कारण पिताजी से उसे मार भी मिली। बाद में माँ ने बच्चे को मार से बचाते हुए पिताजी से कहा कि एक किलो लोहे की कबाड़ी में थोड़ा कम पड़ रहा था इसलिए मैंने वह बंदूक एक किलो पूरा करने के लिए डाल दिया था।
रिश्तों में दरारों की शुरुआत उसी समय से होती है जब भावनाओं से ज़्यादा वरीयता पैसे को दी जाने लगती हैं।