Meri Rachnayen

जीवन – सरल व्याख्या

Jeevan Ka Sach The Best poem

निशिदिन गति करे सब अंत को

इसका सबको भान नहीं है

मति में कुमति के ही कारण

धन लिप्सा में लिप्त रहे हैं

अधम कर्म से सिक्त रहे हैं

नरोचित गुण से रिक्त रहे हैं

अनुभवों से वे तिक्त रहे हैं

श्रेष्ठ कर्मों से च्युत रहे हैं

उनकी दशा का यही है कारण

उन्हें, कर्म-मर्म का ज्ञान नहीं है।

धन का ध्येय हो केवल इतना

उदर पोषण और आरोग्य रहना

अतुलित धन जो कभी भी आए

संग अपने अलक्ष्मी भी लाए

जो इस तथ्य को जान न पाए

अंत काल केवल पछिताए

सुन लो वचन ध्यान से सारे

जीवों का जो कष्ट निवारे

हेतु बने स्मित का अधरों पर

स्वसुख से वही तरे और तारे

वही लगे भवसागर के किनारे।  

अविनाश रंजन गुप्ता

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