निशिदिन गति करे सब अंत को
इसका सबको भान नहीं है
मति में कुमति के ही कारण
धन लिप्सा में लिप्त रहे हैं
अधम कर्म से सिक्त रहे हैं
नरोचित गुण से रिक्त रहे हैं
अनुभवों से वे तिक्त रहे हैं
श्रेष्ठ कर्मों से च्युत रहे हैं
उनकी दशा का यही है कारण
उन्हें, कर्म-मर्म का ज्ञान नहीं है।
धन का ध्येय हो केवल इतना
उदर पोषण और आरोग्य रहना
अतुलित धन जो कभी भी आए
संग अपने अलक्ष्मी भी लाए
जो इस तथ्य को जान न पाए
अंत काल केवल पछिताए
सुन लो वचन ध्यान से सारे
जीवों का जो कष्ट निवारे
हेतु बने स्मित का अधरों पर
स्वसुख से वही तरे और तारे
वही लगे भवसागर के किनारे।
अविनाश रंजन गुप्ता