Meri Rachnayen

शर्बत का गिलास

Free Juice Centre

घटना लगभग 1993 की …

रामनवमी का जुलूस निकला हुआ था। सभी जुलूस में लठैतों और करतब दिखाने वाले को देखकर सम्मोहित हो रहे थे। वहीं पर कमेटी की तरफ़ से नि:शुल्क शर्बत वितरण का भी प्रबंध था। वहाँ भी लोगों की काफी भीड़ लगी हुई थी। उसी भीड़ में सात साल का एक बच्चा अपनी किस्मत आजमाने पहुँचा। सभी भीड़ से शर्बत लेकर ऐसे निकल रहे थे मानो बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली हो। ऐसे दृश्य को देखकर बालक का बालमन उदास हो गया। मानो उसे अपनी हार का अंदाजा पहले ही लग गया हो। बहुत देर खड़े रहने पर भी उसे शर्बत पीने को नहीं मिला। जुलूस समाप्त हुआ, सड़कें फिर से पहली वाली स्थिति में आ गईं। बच्चा बिना शर्बत पिए अपने घर भी पहुँच गया। घर पहुँचकर किसी प्रसंग के कारण जब रामनवमी के जुलूस की चर्चा हुई और शर्बत वितरण की बात उठी तो बच्चे ने शेख़ी बघारते हुए कहा, “मैंने तो चार गिलास शर्बत पी।” इस पर अपमानित करने के स्वर में पिताजी ने तपाक से कह दिया, “तुझे शर्म नहीं आई, लोग देखें होंगे तो क्या सोच रहे होंगे कि धन्ना सेठ की दुकान में काम करने वाले मुंशी जी का लड़का शर्बत पीने के लिए छिछिया रहा है।” यह सुनते ही बच्चे के चेहरे का भाव हीनबोध से भर गया, नज़रें नीची हो गईं और अपने पिता से उसकी दूरी और बढ़ गई।

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