तुम्हारे पास तुम्हारा है।
मेरे पास मेरा है।
तुम्हें तुम्हारा प्रिय है।
मुझे मेरा पसंद है।
तुम अपने के गुण गाओगे,
मैं अपने को श्रेष्ठ मानूँगा।
ये मुमकिन है कि
मुझे तुम्हारा और
तुम्हें मेरा अच्छा लगे,
शायद यही सच्चा भी लगे,
फिर भी तुम्हारा
तुम्हारा ही होगा और
मेरा मेरा ही होगा,
गर मेरा ज़्यादा अच्छा हुआ
तो
या तो तुम जलोगे,
या करोगे,
अपने वाले को बेहतर बनाने का प्रयास
मैं भी शायद यही करूँगा
तुम्हारी स्थिति में,
गर
तुमने मेरे बेहतर को
कमतर करने की ख़्वाहिशें की,
और ऐसा न हुआ
जो होना भी नहीं चाहिए,
तो तुम तनाव में आओगे
अपना सुख-चैन गवाओगे,
या ऐसा कहूँ कि
जीते-जी मर जाओगे
तो भलाई इसी में है
हे बंधु !
हे प्रिय !
तुम्हें जो मिला है उसे अपना मान लो,
उसे ही बेहतर से बेहतरीन करने की ठान लो,
क्योंकि कोशिशें कभी नाकाम नहीं होतीं,
और अच्छाइयाँ कभी बदनाम नहीं होतीं।
अविनाश रंजन गुप्ता