हम चाहे न चाहे
क्या फरक पड़ता है
दिल पर यादों का
उसकी असर रहता है
आगे बढ़ने की कोशिश
हम जब भी करे
आगे बढ़ने की कोशिश
हम जब भी करे
उसको खो देने का
दिल को डर लगता है
दिल तो मासूम है
ये समझता नहीं
जो चले जाते हैं
वो चले जाते हैं
आएँगे वो कभी
ऐसी झूठी उम्मीदों
का दिल तो बस
घर बनता है।
हम चाहे न चाहे
क्या फरक पड़ता है
दिल पर यादों का
उसकी असर रहता है
हमने माना है होंगी
उसकी मजबूरियाँ
कहती है मुझसे
उसकी ये खामोशियाँ
गमे दिल की वजह
बस इत्ती सी है
उसने न देखा मुझे
न सुनी इक सिसकियाँ
दिल तो नादान है
हिकारत करता नहीं
चाहे भी तो
तिजारत करता नहीं
मैं भी इसकी
इजाजत देता नहीं
हम चाहे न चाहे
क्या फरक पड़ता है
दिल पर यादों का
उसकी असर रहता है
अविनाश रंजन गुप्ता