कुछ भी अप्राप्य नहीं जगत में
इसे तुम आत्मसात कर जाओ
अपने सपने को पूरा करने
बस जज़्बातों से भर जाओ।
क्यों है ज़रूरी ये जीवन में
खुद से पूछो खुद से बात करो
उत्तर मिलेगा तुम्हें तुमसे ही
फिर विजयपथ पर बढ़ते जाओ।
रुको न क्षण भर सुस्ताने को
अपनी मुश्किलें बतलाने को
मिलेंगे लोग कुछ भटकाने को
कान-ध्यान न देना उनपर क्षणभर
बस अपने मन की सुनते जाओ।
दिया विधाता ने यह जीवन
तुम उसका सम्मान करो
अपने जीवन को उन्नत कर
विधाता का ऋण चुका जाओ।
जो खुश रख सको विधाता को
तो पूजा-पाठ दरकार नहीं
कर्मों को पूजा मान चुके हो
तो इससे बड़ा कोई सार नहीं।
भान न तुमको होगा इसका
तुम भी प्रेरणास्रोत बन जाओगे
इस मर्त्यलोक में तुम भी
एक अमर्त्य वीर कहलाओगे।
अविनाश रंजन गुप्ता