पं. भगवती प्रसाद वाजपेयी – लेखक परिचय
पं. भगवती प्रसाद वाजपेयी की कहानियाँ कथ्य की दृष्टि से बेजोड़ हैं। भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से ये कहानियाँ आधुनिक कहानी का प्रतिनिधित्व करती हैं।
पं. भगवती प्रसाद वाजपेयी जी की कहानियों की समीक्षाएँ तो की गई हैं परंतु कथ्यात्मक सौंदर्य का जैसा विवेचन श्रीराम वर्मा ने किया है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। लेखक ने प्रत्येक कहानी के कथ्य को हर दृष्टिकोण से थाहा है और स्थापनाएँ दी हैं। श्रीराम वर्मा के इस शोध कार्य से कहानी विधा के अध्येताओं को मदद मिलेगी।
मिठाईवाला
बहुत ही मीठे स्वरों के साथ वह गलियों में घूमता हुआ कहता – “बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला।”
इस अधूरे वाक्य को वह ऐसे विचित्र किन्तु मादक – मधुर ढंग से गाकर कहता कि सुननेवाले एक बार अस्थिर हो उठते। उनके स्नेहाभिषिक्त कंठ से फूटा हुआ उपयुक्त गान सुनकर निकट के मकानों में हलचल मच जाती। छोटे-छोटे बच्चों को अपनी गोद में लिए युवतियाँ चिकों को उठाकर छज्जों पर नीचे झाँकने लगतीं। गलियों और उनके अन्तर्व्यापी छोटे-छोटे उद्यानों में खेलते और इठलाते हुए बच्चों का झुंड उसे घेर लेता और तब वह खिलौनेवाला वहीं बैठकर खिलौने की पेटी खोल देता।
बच्चे खिलौने देखकर पुलकित हो उठते। वे पैसे लाकर खिलौने का मोल-भाव करने लगते। पूछते – “इछका दाम क्या है, औल इछका? औल इछका?” खिलौनेवाला बच्चों को देखता, और उनकी नन्हीं-नन्हीं उँगलियों से पैसे ले लेता, और बच्चों की इच्छानुसार उन्हें खिलौने दे देता। खिलौने लेकर फिर बच्चे उछलने-कूदने लगते और तब फिर खिलौनेवाला उसी प्रकार गाकर कहता- “बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला।” सागर की हिलोर की भाँति उसका यह मादक गान गली भर के मकानों में इस ओर से उस ओर तक, लहराता हुआ पहुँचता, और खिलौनेवाला आगे बढ़ जाता।
राय विजयबहादुर के बच्चे भी एक दिन खिलौने लेकर घर आए ! वे दो बच्चे थे – चुन्नू और मुन्नू ! चुन्नू जब खिलौने ले आया, तो बोला- “मेला घोला कैछा छुन्दल ऐ?”
मुन्नू बोला- “औल देखो, मेला कैछा छुन्दल ऐ?”
दोनों अपने हाथी-घोड़े लेकर घर भर में उछलने लगे। इन बच्चों की माँ रोहिणी कुछ देर तक खड़े-खड़े उनका खेल निरखती रही। अन्त में दोनों बच्चों को बुलाकर उसने पूछा – “अरे ओ चुन्नू – मुन्नू, ये खिलौने तुमने कितने में लिए है?”
मुन्नू बोला – “दो पैछे में! खिलौनेवाला दे गया ऐ।”
रोहिणी सोचने लगी – इतने सस्ते कैसे दे गया है? कैसे दे गया है, यह तो वही जाने। लेकिन दे तो गया ही है, इतना तो निश्चय है!
एक जरा-सी बात ठहरी। रोहिणी अपने काम में लग गई। फिर कभी उसे इस पर विचार की आवश्यकता
भी भला क्यों पड़ती।
2
छह महीने बाद।
नगर भर में दो-चार दिनों से एक मुरलीवाले के आने का समाचार फैल गया। लोग कहने लगे – “भाई वाह ! मुरली बजाने में वह एक ही उस्ताद है। मुरली बजाकर, गाना सुनाकर वह मुरली बेचता भी है सो भी दो-दो पैसे भला, इसमें उसे क्या मिलता होगा। मेहनत भी तो न आती होगी!”
एक व्यक्ति ने पूछ लिया – “कैसा है वह मुरलीवाला, मैंने तो उसे नहीं देखा!”
उत्तर मिला – “उम्र तो उसकी अभी अधिक न होगी, यही तीस-बत्तीस का होगा। दुबला-पतला गोरा युवक है, बीकानेरी रंगीन साफा बाँधता है।”
“वही तो नहीं, जो पहले खिलौने बेचा करता था?”
“क्या वह पहले खिलौने भी बेचा करता था?’
“हाँ, जो आकार-प्रकार तुमने बतलाया, उसी प्रकार का वह भी था।”
“तो वही होगा। पर भई, है वह एक उस्ताद।”
प्रतिदिन इसी प्रकार उस मुरलीवाले की चर्चा होती। प्रतिदिन नगर की प्रत्येक गली में उसका मादक, मृदुल स्वर सुनाई पड़ता – “बच्चों को बहलानेवाला, मुरलियावाला।”
रोहिणी ने भी मुरलीवाले का यह स्वर सुना। तुरन्त ही उसे खिलौनेवाले का स्मरण हो आया। उसने मन ही मन कहा – “खिलौनेवाला भी इसी तरह गा-गाकर खिलौने बेचा करता था।”
रोहिणी उठकर अपने पति विजय बाबू के पास गई- “जरा उस मुरलीवाले को बुलाओ तो, चुन्नू-मुन्नू के लिए ले लूँ। क्या पता यह फिर इधर आए, न आए। वे भी, जान पड़ता है, पार्क में खेलने निकल गए है।”
विजय बाबू एक समाचार पत्र पढ़ रहे थे। उसी तरह उसे लिए हुए वे दरवाजे पर आकर मुरलीवाले से बोले “क्यों भई, किस तरह देते हो मुरली?”
किसी की टोपी गली में गिर पड़ी। किसी का जूता पार्क में ही छूट गया, और किसी की सोथनी (पाजामा) ही ढीली होकर लटक आई है। इस तरह दौड़ते- हाँफते हुए बच्चों का झुण्ड आ पहुँचा। एक स्वर से सब बोल उठे – ” अम बी लेंदे मुल्ली, और अम बी लेंदे मुल्ली।”
मुरलीवाला हर्ष से गदगद हो उठा। बोला – “देंगे भैया! लेकिन जरा रुको, ठहरो, एक-एक को देने दो। अभी इतनी जल्दी हम कहीं लौट थोड़े ही जाएँगे। बेचने तो आए ही हैं, और हैं भी इस समय मेरे पास एक-दो नहीं, पूरी सत्तावन।… हाँ, बाबूजी, क्या पूछा था आपने कितने में दीं…. दी तो वैसे तीन-तीन पैसे के हिसाब से है, पर आपको दो-दो पैसे में ही दे दूँगा।”
विजय बाबू भीतर-बाहर दोनों रूपों में मुस्करा दिए। मन ही मन कहने लगे- कैसा है। देता तो सबको इसी भाव से है, पर मुझ पर उलटा एहसान लाद रहा है। फिर बोले – “तुम लोगों की झूठ बोलने की आदत होती है। देते होगे सभी को दो-दो पैसे में, पर एहसान का बोझा मेरे ही ऊपर लाद रहे हो।”
मुरलीवाला एकदम अप्रतिभ हो उठा। बोला- “आपको क्या पता बाबू जी कि इनकी असली लागत क्या है। यह तो ग्राहकों का दस्तूर होता है कि दुकानदार चाहे हानि उठाकर चीज क्यों न बेचे, पर ग्राहक यही समझते हैं – दुकानदार मुझे लूट रहा है। आप भला काहे को विश्वास करेंगे? लेकिन सच पूछिए तो बाबूजी, असली दाम दो ही पैसा है। आप कहीं से दो पैसे में ये मुरलियाँ नहीं पा सकते। मैंने तो पूरी एक हजार बनवाई थीं, तब मुझे इस भाव पड़ी हैं।”
विजय बाबू बोले – “अच्छा, मुझे ज्यादा वक्त नहीं, जल्दी से दो ठो निकाल दो।”
दो मुरलियाँ लेकर विजय बाबू फिर मकान के भीतर पहुँच गए। मुरलीवाला देर तक उन बच्चों के झुण्ड में मुरलियाँ बेचता रहा। उसके पास कई रंग की मुरलियाँ थीं। बच्चे जो रंग पसन्द करते, मुरलीवाला उसी रंग की मुरली निकाल देता।
“यह बड़ी अच्छी मुरली है। तुम यही ले लो बाबू, राजा बाबू तुम्हारे लायक तो बस यह है। हाँ भैए, तुमको वही देंगे। ये लो।… तुमको वैसी न चाहिए, यह नारंगी रंग की, अच्छा वही लो।…. ले आए पैसे? अच्छा, ये लो तुम्हारे लिए मैंने पहले ही निकाल रखी थी…! तुमको पैसे नहीं मिले। तुमने अम्मा से ठीक तरह माँगे न होंगे। धोती पकड़कर पैरों में लिपटकर, अम्मा से पैसे माँगे जाते हैं बाबू! हाँ, फिर जाओ। अबकी बार मिल जाएँगे…। दुअन्नी है? तो क्या हुआ, ये लो पैसे वापस लो। ठीक हो गया न हिसाब?…. मिल गए पैसे? देखो, मैंने तरकीब बताई ! अच्छा अब तो किसी को नहीं लेना है? सब ले चुके? तुम्हारी माँ के पैसे नहीं हैं? अच्छा, तुम भी यह लो। अच्छा, तो अब मैं चलता हूँ।’
इस तरह मुरलीवाला फिर आगे बढ़ गया।
3
आज अपने मकान में बैठी हुई रोहिणी मुरलीवाले की सारी बातें सुनती रही। आज भी उसने अनुभव किया, बच्चों के साथ इतने प्यार से बातें करनेवाला फेरीवाला पहले कभी नहीं आया। फिर यह सौदा भी कैसा सस्ता बेचता है! भला आदमी जान पड़ता है। समय की बात है, जो बेचारा इस तरह मारा-मारा फिरता है। पेट जो न कराए, सो थोड़ा!
इसी समय मुरलीवाले का क्षीण स्वर दूसरी निकट की गली से सुनाई पड़ा – “बच्चों को बहलानेवाला, मुरलियावाला!”
रोहिणी इसे सुनकर मन ही मन कहने लगी और स्वर कैसा मीठा है इसका !
बहुत दिनों तक रोहिणी को मुरलीवाले का वह मीठा स्वर और उसकी बच्चों के प्रति वे स्नेहासिक्त बातें याद आती रहीं। महीने के महीने आए और चले गए। फिर मुरलीवाला न आया। धीरे-धीरे उसकी स्मृति भी क्षीण हो गई।
4
आठ मास बाद
सर्दी के दिन थे। रोहिणी स्नान करके मकान की छत पर चढ़कर आजानुलंबित केश राशि सुखा रही थी। इसी समय नीचे की गली में सुनाई पड़ा – “बच्चों को बहलानेवाला, मिठाईवाला।”
मिठाईवाले का स्वर उसके लिए परिचित था, झट से रोहिणी नीचे उतर आई। उस समय उसके पति मकान में नहीं थे। हाँ, उनकी वृद्धा दादी थीं। रोहिणी उनके निकट आकर बोली- “दादी, चुन्नू -मुन्नू के लिए मिठाई लेनी है। जरा कमरे में चलकर ठहराओ। मैं उधर कैसे जाऊँ, कोई आता न हो। जरा हटकर मैं भी चिक की ओट में बैठी रहूँगी।”
दादी उठकर कमरे में आकर बोलीं- “ए मिठाईवाले, इधर आना।”
मिठाईवाला निकट आ गया। बोला- “कितनी मिठाई दूँ, माँ? ये नए तरह की मिठाइयाँ हैं – रंग-बिरंगी, कुछ-कुछ खट्टी, कुछ-कुछ मीठी, जायकेदार, बड़ी देर तक मुँह में टिकती हैं। जल्दी नहीं घुलतीं। बच्चे बड़े चाव से चूसते हैं। इन गुणों के सिवा ये खाँसी भी दूर करती हैं! कितनी दूँ? चपटी, गोल, पहलदार गोलियाँ हैं। पैसे की सोलह देता हूँ।”
दादी बोलीं- “सोलह तो बहुत कम होती हैं, भला पच्चीस तो देते।”
मिठाईवाला – “नहीं दादी, अधिक नहीं दे सकता। इतना भी देता हूँ, यह अब मैं तुम्हें क्या… खैर, मैं अधिक न दे सकूँगा।”
रोहिणी दादी के पास ही थी। बोली- “दादी, फिर भी काफी सस्ता दे रहा है। चार पैसे की ले लो। यह पैसे रहे।
मिठाईवाला मिठाइयाँ गिनने लगा।
“तो चार की दे दो। अच्छा, पच्चीस नहीं सही, बीस ही दो। अरे हाँ, मैं बूढ़ी हुई मोल-भाव अब मुझे ज्यादा करना आता भी नहीं।”
कहते हुए दादी के पोपले मुँह से जरा-सी मुस्कराहट फूट निकली।
रोहिणी ने दादी से कहा – “दादी, इससे पूछो, तुम इस शहर में और भी कभी आए थे या पहली बार आए हो? यहाँ के निवासी तो तुम हो नहीं।”
दादी ने इस कथन को दोहराने की चेष्टा की ही थी कि मिठाईवाले ने उत्तर दिया- “पहली बार नहीं, और भी कई बार आ चुका है।”
रोहिणी चिक की आड़ ही से बोली – “पहले यही मिठाई बेचते हुए आए थे, या और कोई चीज लेकर?”
मिठाईवाला हर्ष, संशय और विस्मयादि भावों में डूबकर बोला- “इससे पहले मुरली लेकर आया था, और उससे भी पहले खिलौने लेकर।”
रोहिणी का अनुमान ठीक निकला। अब तो वह उससे और भी कुछ बातें पूछने के लिए अस्थिर हो उठी। वह बोली – “इन व्यवसायों में भला तुम्हें क्या मिलता होगा?”
वह बोला – “मिलता भला क्या है! यही खाने भर को मिल जाता है। कभी नहीं भी मिलता है। पर हाँ; सन्तोष, धीरज और कभी-कभी असीम सुख जरूर मिलता है और यही मैं चाहता भी हूँ।”
“सो कैसे? वह भी बताओ।”
‘अब व्यर्थ उन बातों की क्यों चर्चा करूँ? उन्हें आप जाने ही दें। उन बातों को सुनकर आप को दुःख ही होगा।”
“जब इतना बताया है, तब और भी बता दो। मैं बहुत उत्सुक हूँ। तुम्हारा हर्जा न होगा। मिठाई मैं और भी कुछ ले लूँगी।”
अतिशय गम्भीरता के साथ मिठाईवाले ने कहा- “मैं भी अपने नगर का एक प्रतिष्ठित आदमी था। मकान- व्यवसाय, गाड़ी-घोड़े, नौकर-चाकर सभी कुछ था। स्त्री थी, छोटे-छोटे दो बच्चे भी थे। मेरा वह सोने का संसार था। बाहर संपत्ति का वैभव था, भीतर सांसारिक सुख था। स्त्री सुंदरी थी, मेरी प्राण थी। बच्चे ऐसे सुंदर थे, जैसे सोने के सजीव खिलौने। उनकी अठखेलियों के मारे घर में कोलाहल मचा रहता था। समय की गति ! विधाता की लीला। अब कोई नहीं है। दादी, प्राण निकाले नहीं निकले। इसलिए अपने उन बच्चों की खोज में निकला हूँ। वे सब अन्त में होंगे, तो यहीं कहीं। आखिर, कहीं न जन्मे ही होंगे। उस तरह रहता, घुल- घुल कर मरता। इस तरह सुख-संतोष के साथ मरूँगा। इस तरह के जीवन में कभी-कभी अपने उन बच्चों की एक झलक-सी मिल जाता है। ऐसा जान पड़ता है, जैसे वे इन्हीं में उछल-उछलकर हँस- खेल रहे हैं। पैसों की कमी थोड़े ही है, आपकी दया से पैसे तो काफी हैं। जो नहीं है, इस तरह उसी को पा जाता हूँ।”
रोहिणी ने अब मिठाईवाले की ओर देखा – उसकी आँखें आँसुओं से तर हैं।
इसी समय चुन्नू -मुन्नू आ गए। रोहिणी से लिपटकर, उसका आँचल पकड़कर बोले – “अम्माँ, मिठाई!”
“मुझसे लो।” यह कहकर, तत्काल कागज की दो पुड़िया, मिठाइयों से भरी, मिठाईवाले ने चुन्नू – मुन्नू को दे दीं!
रोहिणी ने भीतर से पैसे फेंक दिए।
मिठाईवाले ने पेटी उठाई, और कहा- “ अब इस बार ये पैसे न लूँगा।”
दादी बोली – ” अरे-अरे, न न, अपने पैसे लिए जा भाई!”
तब तक आगे फिर सुनाई पड़ा उसी प्रकार मादक – मृदुल स्वर में – “बच्चों को बहलानेवाला मिठाईवाला।”
सारांश
एक रहस्यमयी फेरीवाला पहले खिलौने, फिर मुरलियाँ और अंत में मिठाइयाँ बेचता हुआ गलियों में घूमता है। वह बच्चों को बहुत सस्ते दामों पर सामान देकर बहलाता है और मीठे स्वर में “बच्चों को बहलानेवाला…” गाता है। रोहिणी के बच्चे चुन्नू-मुन्नू उसके सामान से खुश होते हैं। अंत में पता चलता है कि वह अपना खोया हुआ परिवार (पत्नी और दो बच्चे) ढूँढ रहा है, जो मृत्यु के बाद बच्चों की झलक इन बच्चों में पाता है। वह सुख-संतोष के लिए यह जीवन जीता है।
कठिन शब्दार्थ
शब्द (Hindi) | अर्थ (Hindi) | பொருள் (Tamil) | Meaning (English) |
मादक | नशा पैदा करनेवाला, लुभावना | போதையூட்டும், கவர்ச்சியான | Intoxicating, alluring |
पुलकित | रोमांचित, प्रसन्न | மகிழ்ச்சியில் நடுங்கும் | Thrilled, delighted |
स्नेहाभिषिक्त | स्नेह से अभिषिक्त, प्रेमपूर्ण | அன்பால் நனைக்கப்பட்ட | Anointed with affection |
हलचल | खलबली, हड़कंप | குழப்பம், பரபரப்பு | Commotion, stir |
इठलाते | ऐंठते, नखरे करते | ஆடம்பரமாக நடமாடும் | Frolicking, prancing |
क्षीण | कमजोर, धीमा | பலவீனமான | Faint, weak |
अप्रतिभ | हकलाया हुआ, घबराया | திகைத்த, தடுமாற்றமடைந்த | Flustered, embarrassed |
स्नेहासिक्त | स्नेह से सींचा हुआ | அன்பால் தோய்ந்த | Drenched in affection |
आजानुलंबित | घुटनों तक लटकता | முழங்கால் வரை தொங்கும் | Hanging down to knees |
पोपले | काँपते, कमजोर (मुँह) | தளர்ந்த, நடுங்கும் | Trembling, quivering |
अतिशय | अत्यधिक | மிகுந்த | Excessive, extreme |
कोलाहल | शोर, हंगामा | கூச்சல், ஆரவாரம் | Uproar, clamor |
विधाता | भाग्यविधाता, ईश्वर | விதியை நிர்ணயிப்பவர் | Fate, God |
सन्तोष | तृप्ति, संतुष्टि | திருப்தி | Contentment, satisfaction |
वैभव | ऐश्वर्य, समृद्धि | செல்வம், சிறப்பு | Splendor, opulence |
अभ्यास के लिए प्रश्न
ध्यातव्य – छात्र इन प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त उत्तर लिख सकते हैं।
- मिठाईवाला के व्यापार करने का तरीका क्या था?
उत्तर – मिठाईवाला बहुत ही मीठे और मादक-मधुर स्वरों के साथ गलियों में घूमता हुआ कहता था – “बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला।”। उसका यह मधुर गान सुनकर लोग, विशेषकर छोटे बच्चों के झुंड, उसे घेर लेते थे। वह वहीं बैठकर अपनी पेटी खोलता था। वह बच्चों से प्यार से बातें करता, उनके मोल-भाव को सुनता और बच्चों की इच्छानुसार उन्हें सस्ते दाम पर चीजें जैसे खिलौने, मुरली, मिठाई देता था। वह चीजों का दाम कम रखता था भले ही उसे मेहनत भी न आती हो। वह एक जगह ज़्यादा देर नहीं रुकता था और बच्चों को चीजें देने के बाद सागर की हिलोर की भाँति गाता हुआ आगे बढ़ जाता था।
- मिठाईवाला बच्चों को किस प्रकार बहलाता था?
उत्तर – मिठाईवाला बच्चों को निम्नलिखित प्रकार से बहलाता था –
मादक-मधुर स्वर में गाकर – वह “बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला” जैसे अधूरे वाक्य को ऐसे विचित्र किन्तु मादक-मधुर ढंग से गाकर कहता था कि सुननेवाले एक बार अस्थिर हो उठते थे। यह स्वर बच्चों को उसकी ओर खींच लाता था।
प्यार भरी बातें करके – वह बच्चों के झुंड में बैठकर हर्ष से गदगद होकर उनसे बातें करता था। जैसे मुरली बेचते समय उसने बच्चों से कहा, “देंगे भैया! लेकिन जरा रुको, ठहरो, एक-एक को देने दो।”
बच्चों की इच्छाओं को पूरा करके – वह बच्चों को उनके पसंदीदा रंग की चीजें देता था और यहाँ तक कि जिन बच्चों के पास पैसे नहीं होते थे, उन्हें भी तरकीब बताकर या बिना पैसे लिए भी चीजें दे देता था।
सस्ते दाम पर सामान देकर – वह बच्चों को बहुत सस्ते दाम पर चीजें बेचता था, जिससे वे खुश होकर उछलने-कूदने लगते थे।
- मिठाईवाले के गुणों के बारे में लिखिए।
उत्तर – मिठाईवाले के प्रमुख गुण निम्नलिखित थे –
मधुर वक्ता और गायक – उसका स्वर बहुत ही मीठा, मादक-मधुर और मृदुल था।
स्नेह और प्रेम – वह बच्चों के प्रति स्नेहासिक्त बातें करता था और उनसे अत्यंत प्यार से व्यवहार करता था।
ईमानदारी – उसने विजय बाबू को मुरली का असली दाम दो पैसे बताया, जबकि वह उन्हें तीन-तीन पैसे के हिसाब से बता रहा था। उसने एक हज़ार मुरलियाँ बनवाने की बात कहकर अपनी बात की सच्चाई भी साबित की।
संतुष्टि और धैर्य – अपने पिछले संपन्न जीवन को खोने के बाद भी, वह इन छोटे व्यवसायों में संतोष, धीरज और असीम सुख पाता था।
उदारता – वह बच्चों को सस्ता सौदा बेचता था और अंत में, चुन्नू-मुन्नू को मिठाई देने के बाद उसने पैसे भी नहीं लिए।
व्यवहारकुशलता – वह जानता था कि ग्राहक (जैसे विजय बाबू) किस तरह मोल-भाव करते हैं और उसने बच्चों से पैसे मांगने की तरकीब भी बताई।
- मुरलीवाले की खुशी का कारण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर – मुरलीवाले की खुशी का कारण बच्चों का झुंड था जो उसे मुरली बेचने के दौरान घेर लेता था।
जब बच्चों का झुंड दौड़ते-हाँफते हुए, एक स्वर में “अम बी लेंदे मुल्ली, और अम बी लेंदे मुल्ली” कहते हुए उसके पास पहुँचा, तो मुरलीवाला हर्ष से गदगद हो उठा।
उसकी खुशी का मुख्य कारण व्यापार से लाभ कमाना नहीं था, बल्कि उन बच्चों के झुंड में उसे अपने मृत बच्चों की झलक मिलती थी। बच्चों के कोलाहल और उनकी अठखेलियों में वह अपने खोए हुए सोने के संसार की अनुभूति करता था। यही सन्तोष, धीरज और असीम सुख उसकी खुशी का मूल कारण था।
- मुरलीवाले की किस बात पर विजयबहादुर खुश हुए और क्या किए?
उत्तर – मुरलीवाला ने विजय बाबू से कहा कि उसने मुरलियाँ वैसे तो तीन-तीन पैसे के हिसाब से दी हैं, पर उन्हें वह दो-दो पैसे में ही दे देगा।
मुरलीवाले की इस बात पर विजय बाबू भीतर-बाहर दोनों रूपों में मुस्करा दिए।
भीतर मन में खुश होने का कारण – वह मन ही मन कहने लगे कि “देता तो सबको इसी भाव से है, पर मुझ पर उलटा एहसान लाद रहा है।” विजय बाबू को लगा कि मुरलीवाला उन्हें सस्ते दाम पर मुरली दे रहा है और उन पर उपकार कर रहा है।
बाहर मुस्कराकर किए गए कार्य – उन्होंने मुरलीवाले पर झूठ बोलने का आरोप लगाया और कहा, “तुम लोगों की झूठ बोलने की आदत होती है। देते होगे सभी को दो-दो पैसे में, पर एहसान का बोझा मेरे ही ऊपर लाद रहे हो।” फिर उन्होंने मुरलीवाले से जल्दी से दो मुरलियाँ निकाल देने को कहा और पैसे देकर मकान के भीतर चले गए।
- मिठाईवाला क्या कहकर अपना व्यापार करता है?
उत्तर – मिठाईवाला मादक-मधुर स्वर में गाकर अपना व्यापार करता है। वह कहता है –
“बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला।” (जब खिलौने बेचता है)
“बच्चों को बहलानेवाला, मुरलियावाला।” (जब मुरली बेचता है)
“बच्चों को बहलानेवाला, मिठाईवाला।” (जब मिठाई बेचता है)
- रोहिणी के मन में फेरी वाले के प्रति दया क्यों आयी?
उत्तर – रोहिणी के मन में फेरी वाले के प्रति दया आने के निम्नलिखित कारण थे –
बच्चों के प्रति उसका प्यार – रोहिणी ने अनुभव किया कि बच्चों के साथ इतने प्यार से बातें करनेवाला फेरीवाला पहले कभी नहीं आया। उसके बच्चों के प्रति स्नेहासिक्त व्यवहार ने रोहिणी को प्रभावित किया।
सस्ता सौदा बेचना – वह अपनी चीजें काफी सस्ता बेचता था (जैसे मुरली दो पैसे में, मिठाई पैसे की सोलह), जिससे रोहिणी को लगा कि उसे मेहनत भी न आती होगी।
उसकी करुण कहानी – जब उसने मिठाईवाले का पीछे का जीवन सुना कि वह अपने नगर का एक प्रतिष्ठित आदमी था, जिसके पास मकान, व्यवसाय, गाड़ी-घोड़े, नौकर-चाकर थे, और उसकी पत्नी तथा सोने जैसे दो प्यारे बच्चे थे, जो अब नहीं रहे, तो रोहिणी का मन करुणा से भर गया।
रोहिणी ने मन ही मन कहा – “भला आदमी जान पड़ता है। समय की बात है, जो बेचारा इस तरह मारा-मारा फिरता है।”
- मिठाईवाला का परिचय दीजिए।
उत्तर – मिठाईवाला कहानी का केंद्रीय पात्र है, जो हर छह-आठ महीने के अंतराल पर नगर में आता है और बारी-बारी से खिलौने, मुरली और मिठाई बेचता है। उसका वास्तविक परिचय अत्यंत करुण है –
वर्तमान परिचय | वास्तविक (पूर्व) परिचय |
नाम/व्यवसाय – खिलौनेवाला, मुरलीवाला, मिठाईवाला। | नाम/स्थिति – अपने नगर का प्रतिष्ठित और संपन्न आदमी। |
उम्र और स्वरूप – लगभग तीस-बत्तीस वर्ष का, दुबला-पतला गोरा युवक, बीकानेरी रंगीन साफा बाँधता है। | परिवार – सुंदर पत्नी और सोने के सजीव खिलौनों जैसे दो छोटे बच्चे थे। |
व्यवहार – मधुर स्वर में गाकर चीजें बेचता है, बच्चों से बहुत प्यार करता है, चीजें बहुत सस्ती बेचता है। | वैभव – मकान, व्यवसाय, गाड़ी-घोड़े, नौकर-चाकर सभी कुछ था। सोने का संसार था। |
उद्देश्य – व्यापार से खाने भर को ही मिलता है, कभी-कभी नहीं भी मिलता। उसका मुख्य उद्देश्य सन्तोष, धीरज और असीम सुख प्राप्त करना है। | विपदा – समय की गति और विधाता की लीला के कारण उसका परिवार नष्ट हो गया। |
वर्तमान लक्ष्य – अपने मृत बच्चों की खोज में निकलना। फेरी लगाकर वह उन बच्चों की एक झलक पाना चाहता है और ऐसा महसूस करता है जैसे वे इन्हीं बच्चों में उछल-कूद रहे हैं। |
- भगवतीशरण बाजपेयी ने मिठाईवाले की करुण कहानी द्वारा क्या संदेश दिया है?
उत्तर – भगवतीशरण बाजपेयी ने मिठाईवाले की करुण कहानी द्वारा प्रेम, वात्सल्य, संतोष और जीवन की नश्वरता का गहरा संदेश दिया है –
वात्सल्य (पितृ-प्रेम) की शाश्वतता – कहानी का मुख्य संदेश यह है कि माता-पिता का प्रेम कभी नष्ट नहीं होता। अपने बच्चों को खोने के बाद भी, मिठाईवाला (पिता) अपने प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए फेरीवाला बन जाता है। बच्चों को सस्ते में चीजें बेचना और उनसे प्यार से बात करना उसके टूटे हुए हृदय को संतोष देता है। वह महसूस करता है कि उसके बच्चे कहीं न कहीं जन्म ले चुके होंगे, और वह दूसरे बच्चों में ही अपने बच्चों की झलक पाकर असीम सुख प्राप्त करता है।
धन से बड़ा संतोष – मिठाईवाला एक धनी व्यक्ति था, लेकिन बच्चों को चीजें बेचकर मिलने वाला सन्तोष और धीरज उसके लिए भौतिक संपत्ति से कहीं अधिक मूल्यवान है। यह संदेश देता है कि जीवन का वास्तविक सुख भौतिक लाभ में नहीं, बल्कि आत्मीय संतुष्टि और परोपकार में है।
जीवन की नश्वरता और कर्म – कहानी बताती है कि समय की गति और विधाता की लीला के आगे किसी का जोर नहीं चलता। संपत्ति, वैभव और यहां तक कि परिवार भी नश्वर है। ऐसे में, दुःख में घुल-घुलकर मरने के बजाय मिठाईवाला ने सक्रिय और सकारात्मक रास्ता अपनाया। उसने अपने दुखों पर विजय पाने के लिए कर्म का मार्ग चुना।
चुन्नू और मुन्नू ने खिलौने कितने में खरीदे?
मुरलीवाला अपनी मुरलियाँ सामान्यतः कितने में बेचता था?
रोहिणी को मुरलीवाले का स्वर सुनकर किसका स्मरण हुआ?
फेरीवाला कितनी मुरलियाँ अपने पास बताता है?
मिठाईवाला एक पैसे में कितनी मिठाइयाँ देता है?
फेरीवाले के पास पहले कितने बच्चे थे?
फेरीवाला अपना खोया हुआ क्या ढूंढ रहा है?
विजय बाबू क्या पढ़ रहे थे जब मुरलीवाला आया?
मिठाईवाला अंत में पैसे क्यों नहीं लेता?
रोहिणी छत पर क्या कर रही थी जब मिठाईवाला आया?
फेरीवाला कितनी मुरलियाँ बनवाने का दावा करता है?
बच्चे मुरलीवाले से क्या कहकर मुरली माँगते हैं?
फेरीवाले को क्या मिलता है इस जीवन से?
दादी मिठाईवाले से कितनी मिठाइयाँ माँगती हैं?
फेरीवाला कहाँ का प्रतिष्ठित आदमी था?
चुन्नू ने खिलौना लेकर क्या कहा?
उत्तर – a) मेला घोला कैछा छुन्दल ऐ?
मिठाईवाला मिठाई को क्या गुण बताता है?
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – मिठाईवाला गलियों में घूमते हुए क्या गाता था?
उत्तर – मिठाईवाला गलियों में घूमते हुए मीठे स्वर में गाता था — “बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला।” - प्रश्न – खिलौनेवाले का स्वर सुनकर लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
उत्तर – खिलौनेवाले का स्वर सुनकर लोग अस्थिर हो उठते थे और घरों में हलचल मच जाती थी। - प्रश्न – खिलौनेवाले के बुलाने पर सबसे पहले कौन झाँकती थीं?
उत्तर – छोटे बच्चों को गोद में लिए युवतियाँ चिक उठाकर छज्जों से नीचे झाँकती थीं। - प्रश्न – बच्चे खिलौनेवाले को देखकर क्या करते थे?
उत्तर – बच्चे खिलौनेवाले को घेर लेते थे और उसके खिलौने देखकर पुलकित हो उठते थे। - प्रश्न – बच्चे खिलौनों का दाम कैसे पूछते थे?
उत्तर – बच्चे खिलौनों का दाम बाल-सुलभ ढंग से पूछते थे — “इछका दाम क्या है, औल इछका?” - प्रश्न – खिलौनेवाला बच्चों से पैसे कैसे लेता था?
उत्तर – खिलौनेवाला बच्चों की नन्हीं-नन्हीं उँगलियों से पैसे लेकर उन्हें खिलौने दे देता था। - प्रश्न – चुन्नू और मुन्नू कौन थे?
उत्तर – चुन्नू और मुन्नू राय विजयबहादुर के दो छोटे बच्चे थे। - प्रश्न – चुन्नू और मुन्नू ने खिलौने कितने पैसों में खरीदे थे?
उत्तर – चुन्नू और मुन्नू ने खिलौने दो पैसों में खरीदे थे। - प्रश्न – रोहिणी को क्या आश्चर्य हुआ?
उत्तर – रोहिणी को आश्चर्य हुआ कि खिलौने इतने सस्ते कैसे मिल गए। - प्रश्न – कुछ महीनों बाद नगर में किसके आने की चर्चा होने लगी?
उत्तर – कुछ महीनों बाद नगर में एक मुरलीवाले के आने की चर्चा होने लगी। - प्रश्न – लोग मुरलीवाले के बारे में क्या कहते थे?
उत्तर – लोग कहते थे कि मुरलीवाला बड़ा उस्ताद है और बहुत मीठी मुरली बजाता है। - प्रश्न – मुरलीवाले का रूप-रंग कैसा था?
उत्तर – मुरलीवाला दुबला-पतला, गोरा युवक था और बीकानेरी रंगीन साफा बाँधता था। - प्रश्न – कुछ लोगों ने मुरलीवाले को किससे मिलाया?
उत्तर – कुछ लोगों ने मुरलीवाले को पहले वाले खिलौनेवाले से मिलाया। - प्रश्न – मुरलीवाला अपनी मुरलियाँ कितने पैसों में बेचता था?
उत्तर – मुरलीवाला मुरलियाँ तीन पैसे की बताता था, पर दो पैसे में बेच देता था। - प्रश्न – विजय बाबू मुरलीवाले की बातों पर क्यों मुस्कराए?
उत्तर – विजय बाबू को लगा कि मुरलीवाला सभी को दो पैसे में देता है, पर एहसान जताता है कि उन्हें सस्ते में दे रहा है। - प्रश्न – मुरलीवाले के बोलने का ढंग कैसा था?
उत्तर – मुरलीवाले का बोलने का ढंग बड़ा प्यारा और बच्चों से स्नेह भरा था। - प्रश्न – बच्चों को पैसे न मिलने पर मुरलीवाला क्या सलाह देता था?
उत्तर – मुरलीवाला बच्चों को कहता था कि माँ से पैसे माँगने के लिए उनके पैरों में लिपट जाओ। - प्रश्न – मुरलीवाले के जाने के बाद रोहिणी के मन में क्या विचार आया?
उत्तर – रोहिणी ने सोचा कि मुरलीवाला बड़ा भला और स्नेही व्यक्ति है, जो बच्चों से बहुत प्रेम करता है। - प्रश्न – कई महीनों बाद रोहिणी ने किसका स्वर सुना?
उत्तर – कई महीनों बाद रोहिणी ने “बच्चों को बहलानेवाला, मिठाईवाला” का स्वर सुना। - प्रश्न – मिठाईवाले ने अपनी मिठाइयों के क्या गुण बताए?
उत्तर – मिठाईवाले ने कहा कि उसकी मिठाइयाँ रंग-बिरंगी, जायकेदार हैं और खाँसी भी दूर करती हैं। - प्रश्न – दादी ने मिठाईवाले से क्या मोलभाव किया?
उत्तर – दादी ने कहा कि सोलह कम हैं, कम से कम पच्चीस तो दो। - प्रश्न – रोहिणी ने मिठाईवाले से क्या पूछने को कहा?
उत्तर – रोहिणी ने दादी से कहा कि मिठाईवाले से पूछो, क्या वह पहले भी इस नगर में आया है। - प्रश्न – मिठाईवाले ने पहले क्या-क्या बेचा था?
उत्तर – मिठाईवाले ने पहले मुरलियाँ बेची थीं और उससे पहले खिलौने। - प्रश्न – मिठाईवाले ने अपने जीवन के बारे में क्या बताया?
उत्तर – मिठाईवाले ने बताया कि वह पहले एक प्रतिष्ठित व्यक्ति था जिसके पास मकान, गाड़ी, घोड़े और परिवार था। - प्रश्न – मिठाईवाले की पत्नी और बच्चे कैसे थे?
उत्तर – मिठाईवाले की पत्नी बहुत सुंदर थी और उसके बच्चे सोने के खिलौनों जैसे प्यारे थे। - प्रश्न – मिठाईवाले का परिवार अब क्यों नहीं था?
उत्तर – मिठाईवाले का परिवार किसी अज्ञात विपत्ति में नष्ट हो गया था, अब वह अकेला था। - प्रश्न – मिठाईवाला अब क्या खोज रहा था?
उत्तर – मिठाईवाला अब अपने उन बच्चों की झलक खोज रहा था, जिन्हें वह खो चुका था। - प्रश्न – मिठाईवाले को किससे सच्चा सुख मिलता था?
उत्तर – मिठाईवाले को बच्चों के बीच रहकर स्नेह और सुख का अनुभव होता था। - प्रश्न – चुन्नू और मुन्नू के आने पर मिठाईवाले ने क्या किया?
उत्तर – मिठाईवाले ने तुरंत उन्हें दो पुड़िया मिठाई की दे दीं और पैसे लेने से इनकार कर दिया। - प्रश्न – कहानी के अंत में मिठाईवाला क्या गाता हुआ आगे बढ़ गया?
उत्तर – कहानी के अंत में मिठाईवाला मादक स्वर में गाता हुआ आगे बढ़ गया — “बच्चों को बहलानेवाला, मिठाईवाला।”
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- लेखक ने पुरानी पीढ़ी के प्रति क्या शिकायत व्यक्त की है?
लेखक ने शिकायत की है कि पुरानी पीढ़ी युवकों को असमर्थ, अविश्वसनीय, और अनुत्तरदायी मानती है। इससे युवकों को जिम्मेदारी नहीं मिलती, जिसके कारण समाज में आदर्श स्थापना में बाधा आती है और युवकों का असंतोष बढ़ता है।
- परंपरागत समाजों में वृद्धों की क्या भूमिका होती है?
परंपरागत समाजों में वृद्धों का नेतृत्व होता है और उनका अनुभव समाज का मुख्य आधार होता है। उनकी प्रतिष्ठा सबसे अधिक होती है, और शिक्षा प्रणाली में लोक परंपराओं का महत्त्व होता है।
- लेखक के अनुसार युवकों में कौन-सी विशेषताएँ होती हैं?
लेखक के अनुसार, युवकों में साहस, शौर्य, तेज, और त्याग की भावना प्रबल होती है। वे संसार के कीचड़ में नहीं फंसे होते, इसलिए आदर्शों के लिए आत्म-बलिदान करने को तैयार रहते हैं।
- युवक आंदोलन कब और क्यों प्रारंभ होता है?
युवक आंदोलन तब प्रारंभ होता है जब समाज को नवीन दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है और पुरानी पद्धति बदलने की जरूरत पड़ती है। यह समाज की क्रांतिकारी परिवर्तन की मांग पर निर्भर करता है।
- स्वतंत्र राष्ट्र में युवकों की मनोवृत्ति क्यों हानिकारक हो सकती है?
स्वतंत्र राष्ट्र में युवकों की पुरानी उच्छृंखल मनोवृत्ति हानिकारक हो सकती है क्योंकि यह रचनात्मक कार्यों में बाधा डालती है। लेखक सुझाते हैं कि उनकी शक्ति को रचनात्मक दिशा में लगाना चाहिए।
- लेखक ने युवकों की शक्ति का उपयोग कब आवश्यक बताया है?
लेखक ने युवकों की शक्ति का उपयोग युद्ध या आकस्मिक संकट के समय और समाज को नवीन दृष्टिकोण की आवश्यकता होने पर आवश्यक बताया है। उनकी शक्ति राष्ट्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण है।
- लेखक ने फासिस्ट राष्ट्रों के संदर्भ में क्या कहा है?
लेखक ने कहा कि फासिस्ट राष्ट्रों ने युवकों की शक्ति के महत्त्व को समझा और इसका दुरुपयोग अपने उद्देश्यों के लिए किया। इससे युवकों की ऊर्जा का गलत उपयोग हुआ।
- लेखक ने युवकों के अधिकार स्वीकार करने के क्या लाभ बताए हैं?
युवकों के अधिकार स्वीकार करने से समाज में रचनात्मक कार्यों को बढ़ावा मिलता है, असंतोष कम होता है, और राष्ट्र निर्माण में उनकी शक्ति का उपयोग होता है। यह समाज को प्रगति की ओर ले जाता है।
- लेखक ने लोकतंत्र की स्थापना के लिए क्या आवश्यक बताया है?
लेखक ने लोकतंत्र की स्थापना के लिए सार्वजनिक शिक्षा, स्पष्टता का निवारण, और जाति-पाँति के बंधनों को तोड़ने की आवश्यकता बताई है। यह अभ्यास और सहयोग से संभव है।
- लेखक ने युवकों की उच्छृंखलता को दूर करने का क्या उपाय सुझाया है?
लेखक ने युवकों की उच्छृंखलता को दूर करने के लिए उनके अधिकार स्वीकार करने और उन्हें रचनात्मक कार्यों में लगाने का उपाय सुझाया है। इससे उनकी शक्ति का सही उपयोग होगा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- फेरीवाले का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर – फेरीवाला दुबला-पतला, गोरा युवक है जो बीकानेरी साफा बाँधता है। वह मीठे, मादक स्वर में गाकर बच्चों को बहलाता है। सस्ते दामों पर खिलौने, मुरली, मिठाई बेचता है। बच्चों से प्रेमपूर्ण बातें करता है। पहले प्रतिष्ठित था, परिवार खोने के बाद बच्चों की खोज में घूमता है। इन बच्चों में अपने बच्चों की झलक पाकर सन्तोष प्राप्त करता है। उसकी आँखें आँसुओं से तर होती हैं।
- रोहिणी की फेरीवाले के प्रति भावनाएँ कैसे बदलती हैं?
उत्तर – पहले खिलौनों की सस्ती कीमत पर संदेह होता है लेकिन भूल जाती है। मुरली सुनकर खिलौनेवाला याद आता है, प्रभावित होती है उसके प्यार और सस्ते सौदे से। मिठाई लेते समय उत्सुकता से पूछती है, पुराना जीवन सुनकर दया आती है। अंत में उसके दुःख और स्नेह से भावुक होकर मिठाई लेती है और उसकी स्मृति लंबे समय तक रहती है।
- फेरीवाले के जीवन की त्रासदी क्या है और वह कैसे जीता है?
उत्तर – वह अपने नगर का प्रतिष्ठित व्यक्ति था—मकान, गाड़ी, नौकर, सुंदरी पत्नी और दो सुंदर बच्चे। सब कुछ सोने का संसार था लेकिन विधाता की लीला से सब खो दिया। अब अपने बच्चों की खोज में फेरीवाला बन घूमता है। सस्ते सामान बेचकर इन बच्चों में उनकी झलक पाता है, सन्तोष और सुख प्राप्त करता है। पैसे काफी हैं, घुलकर मरने के बजाय इस तरह जीता है।
- कहानी में बच्चों की भूमिका क्या है?
उत्तर – बच्चे फेरीवाले के आकर्षण का केंद्र हैं। वे उसके गाने पर झुंड बनाकर घेरते हैं, उछल-कूदकर खिलौने, मुरली, मिठाई लेते हैं। चुन्नू-मुन्नू घर में उछलते हैं, बोली में बात करते हैं। फेरीवाला उनसे प्यार से बोलता है, तरकीब बताता है। वे उसके खोए बच्चों की याद दिलाते हैं, जिससे उसे सुख मिलता है। बच्चे कहानी को जीवंत और भावनात्मक बनाते हैं।
- कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर – कहानी बताती है कि सांसारिक वैभव क्षणिक है, विधाता की लीला से सब छिन सकता है। फेरीवाला परिवार खोकर भी सन्तोष ढूँढता है—बच्चों की सेवा और उनकी झलक में। स्नेह, धीरज और छोटे सुख जीवन को अर्थ देते हैं। सस्ते सौदे और मीठे स्वर से वह दूसरों को खुशी बाँटता है, खुद सुख पाता है। दुःख में भी जीने का तरीका सिखाती है।

