कवि परिचय – माखनलाल चतुर्वेदी
माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म होशंगाबाद जिले (मध्यप्रदेश) के बावई नामक गाँव में हुआ था। चतुर्वेदी कवि ही नहीं सफल पत्रकार, गद्यकार, और नाटककार भी थे। आपके काव्य-संग्रहों में माता, युग-चरण, समर्पण, मरण- ज्वर आदि बहुप्रशंसित हैं। कवि की सभी रचनाएँ खड़ी बोली हिन्दी में हैं। आपका काव्य-साहित्य, देश-भक्ति, मानव-प्रेम और आध्यात्मिकता का त्रिवेणी संगम है।
कविता परिचय – मोम – दीप मेरा
सूर्य और चंद्र अपने आलोक से पृथ्वी को आलौकिक करते हैं, पर इन दोनों के प्रभाव में तमाच्छादित भूलोक में, नक्षत्र-मंडल की प्रभा यहाँ तक नहीं पहुँच पाती, उस समय केवल मोम – दीप प्रत्येक बिंदु के रूप में अपने रक्त की धारा से अपने चारों ओर के परिमित स्थान को प्रकाशित करता है, वह सूर्य-चंद्र की तरह उदय अस्त होने वाला नहीं, सुख-दुःख में सदैव साथ रहता है। इच्छा होने पर जाग उठता है और इच्छा होने पर सो जाता है। वह साधु है, गरीब है, अल्प वस्तु है, फिर भी महान् कहे जने वाले अन्य सबसे अधिक उदार है।
मोम – दीप मेरा
सूझ का साथी
मोम-दीप मेरा !
कितना बेबस है यह
जीवन का रस है यह
छन-छन, पल-पल, बल-बल
छू रहा सबेरा,
अपना अस्तित्व भूल
सूरज का टेरा……..
मोम – दीप मेरा!
कितना बेबस दीखा
इसने मिटना सीखा
रक्त-रक्त, बिंदु-बिंदु
झर रहा प्रकाश-सिन्धु
कोटि-कोटि बना व्याप्त
छोटा-सा घेरा।
मोम-दीप मेरा!
जी से लग, जब बैठ
तम बल पर जमा बैठ
जब चाहूँ जाग उठे
जब चाहूँ सो जावे
पीड़ा में साथ रहे
लीला में खो जावे।
मोम – दीप मेरा!
नभ की तम गोद भरे-
नखत कोटि; पर न झरे
पढ़ न सका, उनके बल
जीवन के अक्षर ये,
आ न सके उतर उतर
भूल न मेरे घर ये!
इनपर गर्वित न हुआ
प्रणय गर्व मेरा,
मेरे बस साथ मधुर
मोम-दीप मेरा!
जब चाहूँ मिल जावे
जब चाहूँ मिट जावे
तम से जब तुमुलयुद्ध
ठने, दौड़ जुट जावे
सूझों के रथ-पथ का
ज्वलित लघु चितेरा।
मोम – दीप मेरा!
यह गरीब, यह लघु-लघु
प्राणों पर यह उदार
आग-आग
यज्ञ ज्वार
बिंदु-बिंदु
प्राण-प्राण
पीढ़ियाँ प्रकाश-पथिक
जग-रथ- गति – चेरा।
मोम – दीप मेरा!
कठिन शब्दार्थ –
बेबस – विवश
टेरना – बुलाना
नखत- नक्षत्र
तुमुल- भीषण
Hindi Word | Hindi Meaning | Tamil Meaning | English Meaning |
सूझ | बुद्धि, समझ | அறிவு (Arivu) | Insight, understanding |
बेबस | असहाय, लाचार | உதவியற்ற (Uthaviyarra) | Helpless, powerless |
रस | सार, आनंद | சாறு (Saaru) / மகிழ்ச்சி (Magizhchi) | Essence, joy |
छन-छन | क्षण-क्षण, हर पल | நொடி-நொடி (Nodi-Nodi) | Moment by moment |
बल-बल | जलते हुए, प्रज्वलित | எரியும் (Eriyum) | Burning, ablaze |
सबेरा | सुबह, प्रभात | காலை (Kaalai) | Morning, dawn |
अस्तित्व | होने का भाव, वजूद | இருப்பு (Iruppu) | Existence, being |
टेरा | पुकार, बुलावा | அழைப்பு (Azhaippu) | Call, summons |
रक्त-रक्त | बूँद-बूँद, रक्त के समान | இரத்தம்-இரத்தம் (Iraththam-Iraththam) | Drop by drop, like blood |
प्रकाश-सिन्धु | प्रकाश का सागर | ஒளிக்கடல் (Olikkadal) | Ocean of light |
कोटि-कोटि | करोड़ों, अनेक | கோடி-கோடி (Kodi-Kodi) | Millions, countless |
व्याप्त | फैला हुआ, सर्वत्र | பரவிய (Paraviya) | Pervasive, spread everywhere |
घेरा | दायरा, सीमा | வட்டம் (Vattam) | Circle, boundary |
तम | अँधेरा | இருள் (Irul) | Darkness |
तुमुलयुद्ध | भयंकर युद्ध | கடுமையான போர் (Kadumaiyana Por) | Fierce battle |
नखत | तारे, नक्षत्र | நட்சத்திரங்கள் (Natchaththirangal) | Stars |
प्रणय | प्रेम, प्यार | காதல் (Kaathal) | Love, affection |
ज्वलित | जलता हुआ, प्रदीप्त | எரியும் (Eriyum) | Burning, illuminated |
लघु | छोटा, सूक्ष्म | சிறிய (Siriya) | Small, minute |
उदार | दयालु, महान | உயர்ந்த (Uyarntha) | Generous, noble |
यज्ञ | बलिदान, धार्मिक अनुष्ठान | யாகம் (Yaagam) | Sacrifice, ritual |
ज्वार | उत्साह, लहर | ஆர்வம் (Aarvam) / அலை (Alai) | Surge, wave |
प्रकाश-पथिक | प्रकाश का यात्री | ஒளியின் பயணி (Oliyin Payani) | Traveler of light |
चेरा | चालक, संचालक | இயக்குபவர் (Iyakkupavar) | Driver, conductor |
मोम – दीप मेरा – व्याख्या सहित
01
सूझ का साथी
मोम-दीप मेरा !
कितना बेबस है यह
जीवन का रस है यह
छन-छन, पल-पल, बल-बल
छू रहा सबेरा,
अपना अस्तित्व भूल
सूरज का टेरा……..
मोम – दीप मेरा!
प्रसंग – इन पंक्तियों में, कवि अपने मोम-दीप (मोमबत्ती) को अपने सबसे करीबी साथी के रूप में प्रस्तुत करते हैं और उसके आत्म-बलिदान के स्वभाव का परिचय देते हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि यह मोम-दीप उनका और केवल उनका है। यह उनकी ‘सूझ’ (अंतर्दृष्टि, विचार, रचनात्मकता) का साथी है। जब भी कवि कुछ सोचना या लिखना चाहते हैं, यह दीप उनका साथ देता है।
कवि कहते हैं कि यह दीप देखने में कितना असहाय (बेबस) लगता है, लेकिन वास्तव में यह ‘जीवन का रस’ है। यह हर क्षण, हर पल, अपनी पूरी शक्ति (बल-बल) से जलता रहता है और अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाता है। ऐसा करके, यह मानो सुबह (सबेरा) को छू रहा है या उसका आह्वान कर रहा है। अपने इस कार्य (प्रकाश देने) में वह अपने स्वयं के अस्तित्व (मोम का पिघलना) को पूरी तरह भूल गया है और सूर्य का आह्वान (टेरा) कर रहा है, जो प्रकाश का सबसे बड़ा स्रोत है। यह दीप कवि का प्रिय साथी है।
02
कितना बेबस दीखा
इसने मिटना सीखा
रक्त-रक्त, बिंदु-बिंदु
झर रहा प्रकाश-सिन्धु
कोटि-कोटि बना व्याप्त
छोटा-सा घेरा।
मोम-दीप मेरा!
प्रसंग – इस अंश में कवि मोम-दीप के त्याग और बलिदान की महानता का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या – कवि पुनः कहते हैं कि यह दीप कितना बेबस (लाचार) दिखाई देता है, क्योंकि इसका नियंत्रण दूसरों के हाथ में है और इसका जीवन पिघलने पर निर्भर है। लेकिन इसकी महानता यह है कि इसने स्वेच्छा से ‘मिटना’ (आत्म-बलिदान करना) सीख लिया है।
यह अपने शरीर (मोम) को ‘रक्त’ के समान बिंदु-बिंदु करके गलाता है। इसके इस बलिदान से प्रकाश का एक विशाल सागर (प्रकाश-सिन्धु) झर रहा है। भले ही इस दीप का प्रकाश एक ‘छोटे-से घेरे’ तक सीमित है, लेकिन उस घेरे में यह करोड़ों प्रकाश-कणों के रूप में व्याप्त (फैला हुआ) है, जो अंधकार को पूरी तरह नष्ट कर देता है। यह दीप कवि का अपना है।
03
जी से लग, जब बैठ
तम बल पर जमा बैठ
जब चाहूँ जाग उठे
जब चाहूँ सो जावे
पीड़ा में साथ रहे
लीला में खो जावे।
मोम – दीप मेरा!
प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि मोम-दीप के साथ अपने आत्मीय और निजी संबंध को व्यक्त कर रहे हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि यह दीप उनके ‘जी’ (हृदय/मन) से लगकर बैठता है। यह तब भी निडर होकर जलता रहता है, जब अंधकार (तम) अपनी पूरी शक्ति (बल) के साथ संसार पर जम कर बैठ जाता है। यह दीप कवि के पूर्ण नियंत्रण में है; जब कवि चाहते हैं, यह जाग उठता है (जल जाता है) और जब वे चाहते हैं, यह सो जाता है (बुझ जाता है)।
यह दीप कवि का सच्चा साथी है, जो उनकी ‘पीड़ा’ (दुःख, संघर्ष) में उनका साथ देता है और उनके सुख के क्षणों (‘लीला’) में उनके साथ आनंद में खो जाता है। यह मोम-दीप कवि का अनन्य साथी है।
04
नभ की तम गोद भरे-
नखत कोटि; पर न झरे
पढ़ न सका, उनके बल
जीवन के अक्षर ये,
आ न सके उतर उतर
भूल न मेरे घर ये!
इनपर गर्वित न हुआ
प्रणय गर्व मेरा,
मेरे बस साथ मधुर
मोम-दीप मेरा!
प्रसंग – इस अंश में कवि अपने मोम-दीप की तुलना आकाश के विशाल और असंख्य तारों से करते हैं और अपने दीप को उन तारों से श्रेष्ठ बताते हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि आकाश की अंधकारपूर्ण गोद करोड़ों तारों (नखत कोटि) से भरी हुई है; लेकिन वे तारे अपनी रोशनी धरती पर बरसाते (झरे) नहीं हैं। कवि उन तारों के प्रकाश (बल) के सहारे अपने जीवन के अक्षरों (अर्थात् ज्ञान या सत्य) को पढ़ नहीं सके। वे तारे कभी आकाश से उतर-उतर कर कवि के घर का अँधेरा दूर करने के लिए नहीं आए, वे कभी भूलकर भी कवि के घर नहीं पधारे।
इसलिए कवि का प्रेम और गर्व (प्रणय गर्व) उन दूर स्थित, अभिमानी तारों पर कभी नहीं हुआ। उनका मधुर साथी तो केवल यह मोम-दीप है, जो उनके ‘बस’ में है (उनके नियंत्रण में है) और सदैव उनके साथ रहता है।
05
जब चाहूँ मिल जावे
जब चाहूँ मिट जावे
तम से जब तुमुलयुद्ध
ठने, दौड़ जुट जावे
सूझों के रथ-पथ का
ज्वलित लघु चितेरा।
मोम – दीप मेरा!
प्रसंग – यहाँ कवि मोम-दीप की उपयोगिता और अंधकार के विरुद्ध उसके सक्रिय संघर्ष को उजागर कर रहे हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि यह दीप उनका ऐसा साथी है, जो उनके चाहने पर तुरंत मिल जाता (उपलब्ध हो) जाता है और जब वे चाहते हैं, यह मिट (बुझ) जाता है। जब भी अंधकार (तम) से उनका भीषण युद्ध (तुमुलयुद्ध) ठनता है, तो यह दीप उनकी सहायता के लिए तुरंत दौड़कर आ जुटता है।
यह दीप कवि के विचारों (सूझों) के रथ के मार्ग (रथ-पथ) को प्रकाशित करने वाला एक जलता हुआ (ज्वलित) छोटा-सा (लघु) चित्रकार (चितेरा) है। अर्थात्, यह कवि के विचारों को स्पष्टता और दिशा प्रदान करता है। यह मोम-दीप कवि का प्रिय है।
06
यह गरीब, यह लघु-लघु
प्राणों पर यह उदार
आग-आग
यज्ञ ज्वार
बिंदु-बिंदु
प्राण-प्राण
पीढ़ियाँ प्रकाश-पथिक
जग-रथ- गति – चेरा।
मोम – दीप मेरा!
प्रसंग – अंतिम पंक्तियों में कवि मोम-दीप के लघु रूप में उसकी महानता, उसकी पवित्रता और संसार के लिए उसकी उपयोगिता का वर्णन करते हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि यह दीप भले ही ‘गरीब’ (साधारण) है और बहुत ‘लघु-लघु’ (छोटा) है, लेकिन यह अपने ‘प्राणों’ (अपने अस्तित्व/मोम) को देने में बहुत ‘उदार’ (दानी) है।
इसकी जो ‘आग’ है, वह किसी विनाशक आग की तरह नहीं, बल्कि एक ‘यज्ञ’ की पवित्र ज्वाला (ज्वार) के समान है। यह अपने अस्तित्व का एक-एक ‘बिंदु’ और एक-एक ‘प्राण’ न्योछावर कर देता है। इसका यह बलिदान केवल कवि के लिए नहीं, बल्कि यह आने वाली ‘पीढ़ियों’ के लिए भी एक ‘प्रकाश-पथिक’ (मार्ग दिखाने वाला राही) है। यह संसार रूपी रथ (जग-रथ) की गति को बनाए रखने वाला एक सेवक (चेरा) है। यह मोम-दीप कवि का अपना है और अत्यंत महान है।
अभ्यास के लिए प्रश्न
- माखनलाल चतुर्वेदी का परिचय दीजिए।
उत्तर – माखनलाल चतुर्वेदी (1889-1968) हिंदी साहित्य के एक सुप्रसिद्ध कवि, लेखक और पत्रकार थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश के बाबई गाँव में हुआ था। वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल रहे और अपनी ओजस्वी राष्ट्रवादी कविताओं के लिए जाने जाते हैं। उन्हें “एक भारतीय आत्मा” के उपनाम से भी जाना जाता है। उनकी रचनाओं में देशभक्ति, त्याग और दार्शनिकता का अद्भुत संगम मिलता है। ‘हिम तरंगिणी’ के लिए उन्हें 1955 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाओं का नाम लिखिए।
उत्तर – माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाएँ हैं –
काव्य संग्रह – हिम किरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा।
गद्य – साहित्य देवता, अमीर इरादे-गरीब इरादे।
प्रसिद्ध कविता – पुष्प की अभिलाषा, कैदी और कोकिला।
- माखनलाल चतुर्वेदी अपने आप को क्या मानते है?
उत्तर – माखनलाल चतुर्वेदी अपने आप को “एक भारतीय आत्मा” मानते हैं। यह उनका उपनाम था, जो उनकी प्रखर देशभक्ति और राष्ट्रीय चेतना को दर्शाता है।
- मोमदीप की विशेषता बताइए।
उत्तर – मोमदीप की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
वह कवि की ‘सूझ का साथी’ (विचारों का मित्र) है।
वह बेबस होते हुए भी ‘जीवन का रस’ है।
वह आत्म-बलिदानी है; अपना अस्तित्व (मोम) मिटाकर (पिघलकर) दूसरों को प्रकाश देता है।
वह छोटा होते हुए भी अंधकार को चीरकर विशाल प्रकाश फैलाता है।
वह कवि के अधीन है (जब चाहें जलता है, जब चाहें बुझता है)।
वह कवि की पीड़ा में साथ देता है और अँधेरे से युद्ध में सहायता करता है।
वह गरीब और छोटा होकर भी प्राण देने में उदार है और उसका जलना यज्ञ के समान पवित्र है।
- मोम दीप के बारे में कवि की धारणा क्या है?
उत्तर – कवि की धारणा है कि मोम-दीप केवल प्रकाश देने वाला एक निर्जीव पदार्थ नहीं है, बल्कि वह उनका एक सजीव, आत्मीय और सच्चा साथी है। कवि उसे आकाश के करोड़ों निरर्थक तारों से भी श्रेष्ठ मानते हैं, क्योंकि तारे दूर और पहुँच से बाहर हैं, जबकि यह छोटा-सा दीप उनके पास रहकर, उनकी पीड़ा में उनका साथ देता है और उनके विचारों को मार्ग दिखाता है। कवि के लिए यह दीप उदारता, सक्रिय प्रेरणा, निरंतर संघर्ष और निःस्वार्थ आत्म-बलिदान का प्रतीक है।
- कवि मोमदीप को सूझ का साथी क्यों मानते हैं?
उत्तर – कवि मोमदीप को ‘सूझ का साथी’ इसलिए मानते हैं क्योंकि वह कवि के विचारों और अंतर्दृष्टि को प्रेरित करता है। जब कवि गहन चिंतन में होते हैं या अँधेरे, निराशा, अज्ञान या संकट से घिर जाते हैं, तब यही मोम-दीप जलकर उन्हें रास्ता दिखाता है। कविता में उसे “सूझों के रथ-पथ का ज्वलित लघु चितेरा” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि यह कवि के विचारों के मार्ग को प्रकाशित करने वाला (ज्वलित) एक छोटा-सा चित्रकार है।
- I) सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
- कितना बेबस है यह
जीवन का रस है यह
छन-छन, पल-पल, बल-बल
छू रहा सबेरा,
अपना अस्तित्व भूल
सूरज का टेरा……..
उत्तर – प्रसंग – इन पंक्तियों में, कवि अपने मोम-दीप (मोमबत्ती) को अपने सबसे करीबी साथी के रूप में प्रस्तुत करते हैं और उसके आत्म-बलिदान के स्वभाव का परिचय देते हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि यह मोम-दीप उनका और केवल उनका है। यह उनकी ‘सूझ’ अर्थात् अंतर्दृष्टि, विचार, रचनात्मकता का साथी है। जब भी कवि कुछ सोचना या लिखना चाहते हैं, यह दीप उनका साथ देता है।
कवि कहते हैं कि यह दीप देखने में कितना असहाय लगता है, लेकिन वास्तव में यह ‘जीवन का रस’ है। यह हर क्षण, हर पल, अपनी पूरी शक्ति से जलता रहता है और अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाता है। ऐसा करके, यह मानो सुबह को छू रहा है या उसका आह्वान कर रहा है। अपने इस कार्य में वह अपने स्वयं के अस्तित्व को पूरी तरह भूल गया है और सूर्य का आह्वान या टेरा कर रहा है, जो प्रकाश का सबसे बड़ा स्रोत है। यह दीप कवि का प्रिय साथी है।
- नभ की तम गोद भरे-
नखत कोटि; पर न झरे
पढ़ न सका, उनके बल
जीवन के अक्षर ये,
आ न सके उतर उतर
भूल न मेरे घर ये!
इनपर गर्वित न हुआ
प्रणय गर्व मेरा,
मेरे बस साथ मधुर
प्रसंग – इस अंश में कवि अपने मोम-दीप की तुलना आकाश के विशाल और असंख्य तारों से करते हैं और अपने दीप को उन तारों से श्रेष्ठ बताते हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि आकाश की अंधकारपूर्ण गोद करोड़ों तारों से भरी हुई है; लेकिन वे तारे अपनी रोशनी धरती पर बरसाते नहीं हैं। कवि उन तारों के प्रकाश के सहारे अपने जीवन के अक्षरों अर्थात् ज्ञान या सत्य को पढ़ नहीं सके। वे तारे कभी आकाश से उतर-उतर कर कवि के घर का अँधेरा दूर करने के लिए नहीं आए, वे कभी भूलकर भी कवि के घर नहीं पधारे।
इसलिए कवि का प्रेम और गर्व उन दूर स्थित, अभिमानी तारों पर कभी नहीं हुआ। उनका मधुर साथी तो केवल यह मोम-दीप है, जो उनके ‘बस’ में है और सदैव उनके साथ रहता है।
- II) ‘मोम दीप मेरा’ कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर – माखनलाल चतुर्वेदी की कविता “मोम – दीप मेरा” एक छोटे से मोम-दीप के महान आत्म-बलिदान का गुणगान करती है। कवि इस दीप को अपना ‘सूझ का साथी’ अर्थात् प्रेरणा-स्रोत मानते हैं। यह दीप, जो बाहरी रूप से ‘बेबस’ दिखता है, अपना अस्तित्व बिंदु-बिंदु गलाकर अंधकार से लड़ता है और प्रकाश का सागर बहाता है। कवि इस विनम्र, त्यागी और आज्ञाकारी दीप को आकाश के उन घमंडी और निरर्थक करोड़ों तारों से श्रेष्ठ मानते हैं, जो किसी के काम नहीं आते। यह दीप कवि की पीड़ा का साथी है और उनके विचारों को मार्ग दिखाता है। इसका जलना एक पवित्र ‘यज्ञ’ के समान है, जो आने वाली पीढ़ियों का पथ-प्रदर्शक और संसार की प्रगति का सेवक है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
- कविता में कवि ने “सूझ का साथी” किसे कहा है?
क) सूर्य
ख) मोम-दीप
ग) तारे
घ) प्रभात
उत्तर – ख) मोम-दीप
व्याख्या – कवि मोम-दीप को “सूझ का साथी” कहते हैं, जो उनकी अंतर्दृष्टि और रचनात्मकता का प्रतीक है। - कविता में “बेबस” शब्द का अर्थ क्या है?
क) शक्तिशाली
ख) असहाय
ग) उज्ज्वल
घ) अनंत
उत्तर – ख) असहाय
व्याख्या – “बेबस” शब्द मोम-दीप की असहाय स्थिति को दर्शाता है, क्योंकि यह अपनी इच्छा से नहीं जलता। - कवि के अनुसार, मोम-दीप जलते समय क्या भूल जाता है?
क) अपना उद्देश्य
ख) अपना अस्तित्व
ग) अंधकार
घ) सुबह
उत्तर – ख) अपना अस्तित्व
व्याख्या – कवि कहते हैं कि मोम-दीप प्रकाश देते समय अपने अस्तित्व को भूल जाता है (“अपना अस्तित्व भूल”)। - “प्रकाश-सिन्धु” से कवि का क्या तात्पर्य है?
क) सूर्य का प्रकाश
ख) मोम-दीप का प्रकाश
ग) तारों का प्रकाश
घ) चंद्रमा का प्रकाश
उत्तर – ख) मोम-दीप का प्रकाश
व्याख्या – “प्रकाश-सिन्धु” मोम-दीप के बलिदान से उत्पन्न होने वाले प्रकाश के विशाल सागर को दर्शाता है। - कविता में “तम बल पर जमा बैठ” का अर्थ क्या है?
क) अँधेरा कमजोर होना
ख) अँधेरा शक्तिशाली होना
ग) प्रकाश का प्रभुत्व
घ) दीप का बुझना
उत्तर – ख) अँधेरा शक्तिशाली होना
व्याख्या – “तम बल पर जमा बैठ” का अर्थ है कि अंधकार अपनी पूरी शक्ति के साथ हावी हो रहा है। - कवि ने मोम-दीप को किसके नियंत्रण में बताया है?
क) सूर्य के
ख) कवि के
ग) तारों के
घ) अंधकार के
उत्तर – ख) कवि के
व्याख्या – कवि कहते हैं कि मोम-दीप उनके पूर्ण नियंत्रण में है। - “नखत कोटि” से कवि का तात्पर्य क्या है?
क) सूर्य की किरणें
ख) करोड़ों तारे
ग) मोम-दीप का प्रकाश
घ) रात का अँधेरा
उत्तर – ख) करोड़ों तारे
व्याख्या – “नखत कोटि” का अर्थ है आकाश में मौजूद करोड़ों तारे। - कवि का “प्रणय गर्व” किस पर नहीं है?
क) मोम-दीप पर
ख) सूर्य पर
ग) तारों पर
घ) सुबह पर
उत्तर – ग) तारों पर
व्याख्या – कवि कहते हैं कि उनका प्रेम और गर्व (“प्रणय गर्व”) तारों पर नहीं है, क्योंकि तारे उनके घर का अँधेरा दूर नहीं करते। - “तुमुलयुद्ध” का अर्थ कविता में क्या है?
क) शांतिपूर्ण संघर्ष
ख) भीषण युद्ध
ग) प्रेम का युद्ध
घ) विचारों का संघर्ष
उत्तर – ख) भीषण युद्ध
व्याख्या – “तुमुलयुद्ध” का अर्थ है अंधकार से होने वाला भीषण युद्ध। - “यज्ञ ज्वार” से कवि का क्या अभिप्राय है?
क) विनाशकारी आग
ख) पवित्र ज्वाला
ग) सूर्य की किरणें
घ) मोम का पिघलना
उत्तर – ख) पवित्र ज्वाला
व्याख्या – “यज्ञ ज्वार” मोम-दीप की आग को पवित्र यज्ञ की ज्वाला के रूप में दर्शाता है। - कविता में मोम-दीप को “जीवन का रस” क्यों कहा गया है?
क) क्योंकि यह सूर्य का प्रतीक है
ख) क्योंकि यह आत्म-बलिदान का प्रतीक है
ग) क्योंकि यह अँधेरे को बढ़ाता है
घ) क्योंकि यह अनंत काल तक जलता है
उत्तर – ख) क्योंकि यह आत्म-बलिदान का प्रतीक है
व्याख्या – कवि मोम-दीप को “जीवन का रस” कहते हैं, क्योंकि यह अपने पिघलने के द्वारा प्रकाश देता है, जो आत्म-बलिदान का प्रतीक है। - कविता में मोम-दीप और तारों की तुलना कैसे की गई है?
क) तारे और दीप दोनों समान रूप से उपयोगी हैं
ख) तारे दीप से अधिक प्रकाश देते हैं
ग) दीप तारों से अधिक उपयोगी और आत्मीय है
घ) तारे और दीप दोनों बेकार हैं
उत्तर – ग) दीप तारों से अधिक उपयोगी और आत्मीय है
व्याख्या – कवि तारों को दूरस्थ और अभिमानी बताते हैं, जो अपनी रोशनी धरती पर नहीं बरसाते। - मोम-दीप को “सूझों के रथ-पथ का ज्वलित लघु चितेरा” क्यों कहा गया?
क) क्योंकि यह कवि के विचारों को रोशन करता है
ख) क्योंकि यह सूर्य का प्रतीक है
ग) क्योंकि यह अँधेरे को बढ़ाता है
घ) क्योंकि यह रथ को चलाता है
उत्तर – क) क्योंकि यह कवि के विचारों को रोशन करता है
व्याख्या – “सूझों के रथ-पथ का ज्वलित लघु चितेरा” से तात्पर्य है कि मोम-दीप कवि के विचारों (सूझ) के मार्ग को प्रकाशित करता है। यह छोटा-सा दीप जलकर कवि की रचनात्मकता को दिशा और स्पष्टता प्रदान करता है, जैसे एक चित्रकार चित्र बनाता है। यह कवि का रचनात्मक साथी है। (61 शब्द) - कविता में मोम-दीप की आग को “यज्ञ ज्वार” क्यों कहा गया है?
क) क्योंकि यह विनाशकारी है
ख) क्योंकि यह पवित्र और बलिदानी है
ग) क्योंकि यह सूर्य की आग जैसी है
घ) क्योंकि यह अँधेरे को बढ़ाती है
उत्तर – ख) क्योंकि यह पवित्र और बलिदानी है
व्याख्या – कवि मोम-दीप की आग को “यज्ञ ज्वार” कहते हैं, क्योंकि यह विनाशकारी नहीं, बल्कि पवित्र और बलिदानी है। - कविता में मोम-दीप को “प्रकाश-पथिक” और “जग-रथ-गति-चेरा” क्यों कहा गया है?
क) क्योंकि यह सूर्य का अनुसरण करता है
ख) क्योंकि यह संसार के लिए मार्गदर्शक है
ग) क्योंकि यह अँधेरे को बढ़ाता है
घ) क्योंकि यह केवल कवि के लिए जलता है
उत्तर – ख) क्योंकि यह संसार के लिए मार्गदर्शक है
व्याख्या – “प्रकाश-पथिक” और “जग-रथ-गति-चेरा” से तात्पर्य है कि मोम-दीप पीढ़ियों के लिए प्रकाश का मार्गदर्शक है। - माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएँ किस बोली में हैं?
क) अवधी
ख) खड़ी बोली
ग) ब्रज
घ) भोजपुरी
उत्तर – ख) खड़ी बोली
व्याख्या – माखनलाल चतुर्वेदी की सभी रचनाएँ खड़ी बोली हिन्दी में हैं, जो उनकी कविता और गद्य दोनों में स्पष्ट है। कविता में “छन-छन, पल-पल” का अर्थ क्या है?
क) हर दिन
ख) हर क्षण
ग) हर वर्ष
घ) हर युग
उत्तर – ख) हर क्षण
व्याख्या – “छन-छन, पल-पल” का अर्थ हर क्षण है, जो मोम-दीप के निरंतर जलने और प्रकाश देने को दर्शाता है। - कवि ने मोम-दीप को किसका आह्वान करने वाला कहा है?
क) चंद्रमा का
ख) सूर्य का
ग) तारों का
घ) अँधेरे का
उत्तर – ख) सूर्य का
व्याख्या – कवि कहते हैं कि मोम-दीप सूर्य का आह्वान (“टेरा”) करता है, जो प्रकाश का सबसे बड़ा स्रोत है। - मोम-दीप को कवि का सच्चा साथी क्यों कहा गया है?
क) क्योंकि यह सूर्य की तरह जलता है
ख) क्योंकि यह पीड़ा और सुख में साथ देता है
ग) क्योंकि यह कभी नहीं बुझता
घ) क्योंकि यह तारों से बेहतर है
उत्तर – ख) क्योंकि यह पीड़ा और सुख में साथ देता है
व्याख्या – मोम-दीप कवि के दुख (“पीड़ा”) और सुख (“लीला”) में साथ देता है, इसलिए इसे सच्चा साथी कहा गया है। - कविता में मोम-दीप की तुलना किससे नहीं की गई है?
क) यज्ञ की ज्वाला
ख) सूर्य की किरण
ग) प्रकाश-पथिक
घ) चितेरा
उत्तर – ख) सूर्य की किरण
व्याख्या – कविता में मोम-दीप की तुलना यज्ञ की ज्वाला, प्रकाश-पथिक, और चितेरा से की गई है, लेकिन सूर्य की किरण से नहीं।
एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर – माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावई नामक गाँव में हुआ था।
- प्रश्न – माखनलाल चतुर्वेदी जी केवल कवि ही थे या अन्य विधाओं में भी सक्रिय थे?
उत्तर – माखनलाल चतुर्वेदी जी केवल कवि ही नहीं, बल्कि वे सफल पत्रकार, गद्यकार और नाटककार भी थे।
- प्रश्न – कवि के प्रमुख काव्य-संग्रहों के नाम क्या हैं?
उत्तर – कवि के प्रमुख काव्य-संग्रह हैं – माता, युग-चरण, समर्पण और मरण-ज्वर।
- प्रश्न – कवि ने अपनी सभी रचनाएँ किस भाषा में लिखीं?
उत्तर – कवि ने अपनी सभी रचनाएँ खड़ी बोली हिन्दी में लिखीं।
- प्रश्न – कविता “मोम-दीप मेरा” में दीप किसका प्रतीक है?
उत्तर – कविता में दीप त्याग, आत्म-बलिदान, ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है।
- प्रश्न – कवि ने मोम-दीप को अपना साथी क्यों कहा है?
उत्तर – कवि ने मोम-दीप को अपना साथी इसलिए कहा है क्योंकि वह उनके विचारों और रचनाओं में सदा साथ देता है।
- प्रश्न – कवि दीप को “जीवन का रस” क्यों कहते हैं?
उत्तर – कवि दीप को “जीवन का रस” इसलिए कहते हैं क्योंकि वह जलकर अंधकार मिटाता है और जीवन में प्रकाश भरता है।
- प्रश्न – मोम-दीप की असली महानता क्या है?
उत्तर – मोम-दीप की असली महानता उसके आत्म-बलिदान में है, जो दूसरों के लिए प्रकाश देता है।
- प्रश्न – कवि के अनुसार दीप किस प्रकार अंधकार से संघर्ष करता है?
उत्तर – कवि के अनुसार दीप अंधकार से “तुमुल युद्ध” करता है और अपने प्रकाश से उसे परास्त करता है।
- प्रश्न – “छोटा-सा घेरा” से कवि का क्या आशय है?
उत्तर – “छोटा-सा घेरा” से कवि का आशय दीप की सीमित प्रकाश सीमा से है, जो फिर भी अंधकार को दूर करती है।
- प्रश्न – कवि ने दीप की तुलना किनसे की है?
उत्तर – कवि ने दीप की तुलना आकाश के तारों से की है।
- प्रश्न – कवि तारों पर गर्व क्यों नहीं करते?
उत्तर – कवि तारों पर गर्व इसलिए नहीं करते क्योंकि वे धरती का अंधकार दूर नहीं करते, जबकि दीप सदा उनके साथ रहता है।
- प्रश्न – दीप कवि के नियंत्रण में किस प्रकार है?
उत्तर – दीप कवि के नियंत्रण में है क्योंकि कवि जब चाहें उसे जला सकते हैं और जब चाहें बुझा सकते हैं।
- प्रश्न – मोम-दीप कवि के दुःख और सुख में क्या भूमिका निभाता है?
उत्तर – मोम-दीप कवि के दुःख में साथ देता है और सुख की ‘लीला’ में उसके साथ आनंद में खो जाता है।
- प्रश्न – कवि ने दीप की आग को किससे तुलना की है?
उत्तर – कवि ने दीप की आग को “यज्ञ-ज्वार” से तुलना की है।
- प्रश्न – कवि दीप को “प्रकाश-पथिक” क्यों कहते हैं?
उत्तर – कवि दीप को “प्रकाश-पथिक” इसलिए कहते हैं क्योंकि वह आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनता है।
- प्रश्न – “जग-रथ गति-चेरा” का क्या अर्थ है?
उत्तर – “जग-रथ गति-चेरा” का अर्थ है – संसार रूपी रथ की गति को बनाए रखने वाला सेवक।
- प्रश्न – दीप का बलिदान किसके लिए उपयोगी है?
उत्तर – दीप का बलिदान न केवल कवि के लिए, बल्कि सम्पूर्ण मानवता और आने वाली पीढ़ियों के लिए उपयोगी है।
- प्रश्न – कवि मोम-दीप में कौन-सी तीन विशेषताएँ देखते हैं?
उत्तर – कवि मोम-दीप में त्याग, सेवा और उदारता की तीन प्रमुख विशेषताएँ देखते हैं।
- प्रश्न – इस कविता का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर – इस कविता का मुख्य संदेश है कि सच्ची महानता आत्म-बलिदान और दूसरों के लिए प्रकाश फैलाने में निहित है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी ने “मोम-दीप मेरा” कविता में दीप को अपने साथी के रूप में क्यों प्रस्तुत किया है?
उत्तर – कवि ने दीप को अपना साथी इसलिए कहा है क्योंकि वह उनके चिंतन और रचना के समय साथ रहता है। दीप उनके विचारों को प्रकाशित करता है, अंधकार को मिटाता है और अपने अस्तित्व को गलाकर भी दूसरों के जीवन में प्रकाश भरता है।
प्रश्न 2 – कवि दीप को “बेबस” और “जीवन का रस” दोनों क्यों कहते हैं?
उत्तर – दीप देखने में बेबस लगता है क्योंकि वह स्वयं को जलाकर नष्ट कर देता है, परंतु वही जीवन का रस है क्योंकि वह अंधकार मिटाकर प्रकाश फैलाता है। उसका पिघलना ही जीवन में ऊर्जा, त्याग और प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
प्रश्न 3 – मोम-दीप की असली महानता कवि के अनुसार किसमें निहित है?
उत्तर – मोम-दीप की असली महानता उसके आत्म-बलिदान में है। वह स्वयं पिघलकर दूसरों के लिए प्रकाश देता है। यह त्याग का सर्वोत्तम उदाहरण है, जहाँ दीप अपने अस्तित्व को नष्ट करके भी दुनिया को दिशा और उजाला प्रदान करता है।
प्रश्न 4 – कवि ने दीप के माध्यम से कौन-सा जीवन संदेश दिया है?
उत्तर – कवि दीप के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि मनुष्य को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के लिए उपयोगी बनना चाहिए। जैसे दीप स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है, वैसे ही मनुष्य को भी समाज के लिए त्याग और सेवा का भाव रखना चाहिए।
प्रश्न 5 – कवि ने दीप की तुलना तारों से कैसे की है और वह तारों से श्रेष्ठ क्यों बताया गया है?
उत्तर – कवि कहते हैं कि आकाश में करोड़ों तारे हैं, पर वे धरती का अंधकार नहीं मिटाते। इसके विपरीत छोटा-सा दीप धरती को प्रकाश देता है। इसलिए कवि ने दीप को तारों से श्रेष्ठ बताया है क्योंकि वह कर्मशील और उपयोगी है।
प्रश्न 6 – कवि दीप की “आग” को “यज्ञ-ज्वार” क्यों कहते हैं?
उत्तर – कवि दीप की आग को “यज्ञ-ज्वार” इसलिए कहते हैं क्योंकि उसकी ज्वाला विनाशक नहीं, बल्कि पवित्र और शुभ है। वह अपने अस्तित्व का एक-एक अंश अर्पित करके संसार में उजाला फैलाती है। यह आग त्याग और सेवा की भावना का प्रतीक है।
प्रश्न 7 – कवि दीप को “प्रकाश-पथिक” और “जग-रथ गति-चेरा” कहकर क्या बताना चाहते हैं?
उत्तर – कवि दीप को “प्रकाश-पथिक” कहकर उसे मार्गदर्शक और प्रेरणादायक बताते हैं। “जग-रथ गति-चेरा” कहकर वे यह दर्शाते हैं कि दीप संसार की गति को बनाए रखने वाला सेवक है, जो निस्वार्थ भाव से सबके जीवन में उजाला फैलाता है।
प्रश्न 8 – “मोम-दीप मेरा” कविता में कवि का अंधकार से कैसा संबंध दिखाई देता है?
उत्तर – कविता में अंधकार अज्ञान, दुःख और निराशा का प्रतीक है। कवि जब भी अंधकार से संघर्ष करते हैं, दीप उनकी सहायता के लिए तैयार रहता है। यह संबंध आशा और साहस का है, जहाँ दीप अंधकार से युद्ध कर प्रकाश फैलाता है।
प्रश्न 9 – कवि के अनुसार दीप उनके “सूझों के रथ-पथ का ज्वलित लघु चितेरा” कैसे है?
उत्तर – कवि कहते हैं कि दीप उनके विचारों के रथ का मार्ग प्रकाशित करता है। वह उनके रचनात्मक चिंतन को दिशा देता है और उन्हें नई सूझ-बूझ प्रदान करता है। इस प्रकार दीप कवि के मानसिक मार्ग का चित्रकार और प्रेरक बन जाता है।
प्रश्न 10 – कवि माखनलाल चतुर्वेदी के अनुसार मोम-दीप का त्याग मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर – कवि के अनुसार मोम-दीप का त्याग इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह आत्म-बलिदान और सेवा का प्रतीक है। यह मनुष्य को सिखाता है कि जीवन का सच्चा मूल्य दूसरों के लिए उपयोगी बनने में है। दीप का प्रकाश मानवता की प्रेरणा है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – कविता में मोम-दीप को “सूझ का साथी” क्यों कहा गया है?
उत्तर – कवि माखनलाल चतुर्वेदी मोम-दीप को “सूझ का साथी” कहते हैं, क्योंकि यह उनकी अंतर्दृष्टि और रचनात्मकता का प्रतीक है। जब कवि विचार करते या लेखन करते हैं, यह दीप प्रकाश देकर उनके विचारों को स्पष्टता प्रदान करता है। यह उनकी रचनात्मक प्रक्रिया में सहायता करता है और अँधेरे में साथी बनकर उनकी प्रेरणा को जीवंत रखता है। - प्रश्न – “बेबस” शब्द का कविता में क्या अर्थ है और यह मोम-दीप की विशेषता कैसे दर्शाता है?
उत्तर – “बेबस” का अर्थ है असहाय। कविता में यह मोम-दीप की बाहरी कमजोरी को दर्शाता है, क्योंकि यह अपनी इच्छा से नहीं जलता और दूसरों के नियंत्रण में है। फिर भी, इसकी महानता इसके आत्म-बलिदान में है, जो पिघलकर प्रकाश देता है। यह विरोधाभास इसकी निस्वार्थता और अँधेरे से लड़ने की शक्ति को उजागर करता है। - प्रश्न – कवि ने मोम-दीप को “जीवन का रस” क्यों कहा है?
उत्तर – कवि मोम-दीप को “जीवन का रस” कहते हैं, क्योंकि यह अपने पिघलने के द्वारा प्रकाश देता है, जो आत्म-बलिदान का प्रतीक है। यह हर क्षण जलकर अँधेरे को मिटाता है, जो जीवन की सार्थकता और प्रेरणा को दर्शाता है। इसका बलिदान सृजन और प्रकाश का स्रोत है, जो कवि के लिए जीवन का सार है। - प्रश्न – “प्रकाश-सिन्धु” से कवि का क्या तात्पर्य है और यह मोम-दीप की महानता कैसे दर्शाता है?
उत्तर – “प्रकाश-सिन्धु” से कवि का तात्पर्य मोम-दीप के बलिदान से उत्पन्न विशाल प्रकाश से है। यह छोटा दीप अपने सीमित घेरे में भी प्रचुर प्रकाश फैलाता है, जो अंधकार को नष्ट करता है। यह इसकी महानता को दर्शाता है कि यह अपनी साधारणता के बावजूद अनंत प्रकाश का सागर बन जाता है, जो जीवन और प्रेरणा का प्रतीक है। - प्रश्न – कविता में मोम-दीप और तारों की तुलना कैसे की गई है?
उत्तर – कवि तारों को दूरस्थ और अभिमानी बताते हैं, जो अपनी रोशनी धरती पर नहीं बरसाते। इसके विपरीत, मोम-दीप कवि के घर का अँधेरा दूर करता है और उनके नियंत्रण में रहता है। यह आत्मीय और उपयोगी है, जबकि तारे केवल सुदूर चमकते हैं। मोम-दीप की सादगी और बलिदान इसे तारों से श्रेष्ठ बनाते हैं। - प्रश्न – “तुमुलयुद्ध” का कविता में क्या अर्थ है और यह मोम-दीप की भूमिका कैसे दर्शाता है?
उत्तर – “तुमुलयुद्ध” का अर्थ है अंधकार से होने वाला भीषण युद्ध। कविता में यह मोम-दीप की अँधेरे से लड़ने की भूमिका को दर्शाता है। जब अँधेरा हावी होता है, मोम-दीप तुरंत जलकर कवि की सहायता करता है और प्रकाश फैलाकर अँधेरे को हराता है। यह इसकी निष्ठा और बलिदान की भावना को उजागर करता है। - प्रश्न – मोम-दीप को कवि का सच्चा साथी क्यों कहा गया है?
उत्तर – मोम-दीप को कवि का सच्चा साथी कहा गया है, क्योंकि यह उनके दुख (“पीड़ा”) और सुख (“लीला”) में साथ देता है। यह कवि की इच्छा पर जलता और बुझता है, अँधेरे से लड़ता है और विचारों को प्रकाशित करता है। इसकी निस्वार्थता और आत्मीयता इसे कवि का अनन्य साथी बनाती है। (60 शब्द) - प्रश्न – “यज्ञ ज्वार” से कवि का क्या अभिप्राय है और यह मोम-दीप की विशेषता कैसे दर्शाता है?
उत्तर – “यज्ञ ज्वार” से कवि का तात्पर्य मोम-दीप की पवित्र और बलिदानी आग से है। यह आग विनाशकारी नहीं, बल्कि यज्ञ की ज्वाला की तरह उदार है, जो अपने प्राण न्योछावर कर प्रकाश देती है। यह मोम-दीप की साधारणता में निहित महानता और पवित्रता को दर्शाता है, जो पीढ़ियों के लिए प्रेरक है। - प्रश्न – कविता में मोम-दीप को “प्रकाश-पथिक” और “जग-रथ-गति-चेरा” क्यों कहा गया है?
उत्तर – “प्रकाश-पथिक” और “जग-रथ-गति-चेरा” से तात्पर्य है कि मोम-दीप पीढ़ियों के लिए प्रकाश का मार्गदर्शक है। यह अपने बलिदान से संसार रूपी रथ की गति को बनाए रखता है और अँधेरे में राह दिखाता है। यह केवल कवि के लिए नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है। (62 शब्द) - प्रश्न – माखनलाल चतुर्वेदी की कविता “मोम-दीप मेरा” में देश-भक्ति का तत्त्व कैसे प्रकट होता है?
उत्तर – “मोम-दीप मेरा” में देश-भक्ति का तत्त्व मोम-दीप के आत्म-बलिदान के प्रतीक के माध्यम से प्रकट होता है। यह दीप अँधेरे से लड़कर प्रकाश फैलाता है, जो देश के लिए निस्वार्थ सेवा और बलिदान का प्रतीक है। कवि की देश-भक्ति इसकी सादगी और समर्पण में झलकती है, जो समाज को प्रेरित करती है।

