कंस की दो पत्नियाँ थीं। एक का नाम अस्ति और दूसरी का नाम प्राप्ति था। दोनों मगध के नृपति जरासंध की पुत्रियाँ थीं। श्रीकृष्ण द्वारा कंस का वध होने के पश्चात उसकी दोनों पत्नियाँ मथुरा छोड़कर मगध चली गईं, क्योंकि मथुरा में उन्हें आश्रय देने वाला अब कोई नहीं था।
कंस की दोनों पत्नियों ने मगध जाकर अपने पिता जरासंध को बताया कि किस प्रकार वसुदेव के पुत्रों ने मथुरा के सुप्रसिद्ध पहलवानों को तो मार ही डाला, कंस का भी वध कर दिया। दोनों ने जरासंध के समक्ष अपने पति के वियोग में आँसू गिराए, विलाप किया। जरासंध बड़ा शूरवीर था। बड़ा प्रतापी था। तत्कालीन नरेशों में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान था । उसके पास बहुत बड़ी सेना भी थी। जरासंध अपनी पुत्रियों की वैधव्यावस्था देखकर क्षुब्ध हो उठा। वह यदुवंशियों को धूल में मिलाने के लिए बहुत बड़ी सेना लेकर मथुरा की ओर चल पड़ा, मथुरा पहुँचकर उसने चारों ओर से नगर को घेर लिया।
जरासंध ने उग्रसेन के पास समाचार भेजा – मथुरा मुझे सौंप दो । यदि नहीं सौंपोगे, तो मैं संपूर्ण मथुरा का नामोनिशान मिटा दूँगा। यद्यपि उग्रसेन के पास बहुत थोड़ी सेना थी, फिर भी श्रीकृष्ण और बलराम ने जरासंध से युद्ध करने का निश्चय किया। उन्होंने उत्तर के रूप में जरासंध के पास संदेश भेजा—जो वीर होते हैं, वे प्रलाप नहीं करते, कुछ करके दिखाते हैं । यदि तुममें साहस हो, तो तुम हमसे मथुरा छीन लो।”
श्रीकृष्ण का उत्तर पाकर जरासंध ने प्रबल वेग से मथुरा पर आक्रमण कर दिया। उसकी सेना का सामना करने के लिए श्रीकृष्ण और बलराम भी रथ पर सवार होकर निकल पड़े। उनके पास बहुत थोड़ी-सी सेना थी। अस्त्र-शस्त्र भी बहुत कम थे । फिर भी उन्होंने जरासंध की सेना को तो धूल में मिला ही दिया, उसे बंदी भी बना लिया और उग्रसेन के सामने उपस्थित किया। उग्रसेन ने उसके साथ सज्जनता का व्यवहार किया और उसे मुक्त कर दिया । यद्यपि उग्रसेन ने जरासंध को मुक्त कर दिया, किंतु उसके हृदय में यदुवंशियों के प्रति वैर-भाव सदा बना रहा। उसने मुक्त होने के पश्चात क्रम से 17 बार मथुरा पर आक्रमण किया, किंतु प्रत्येक बार उसे पराजित होना पड़ा। वह अपनी पराजय से बड़ा दुखी हुआ। उसने राजसिंहासन छोड़कर तप करने का विचार किया। किंतु उसके मित्रों और हितैषियों ने उसे तप करने से रोक दिया। उन्होंने यह कहकर उसे धैर्य बंधाया कि आज की हार कल की विजय के रूप में बदल जाएगी । जरासंध मथुरा पर आक्रमण करने के लिए पुनः तैयारियाँ करने लगा। नई-नई शक्तियों का संग्रह करने लगा । वह मथुरा को नष्ट कर देना चाहता था, श्रीकृष्ण और बलराम को भी बंदी बनाना चाहता था, किंतु उसका स्वप्न कभी नहीं पूरा हुआ।