जीवन परिचय – डॉ. श्रीराम परिहार
डॉ. श्रीराम परिहार का जन्म मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के फेफरिया गाँव में सन् 1952 में हुआ। शिक्षा के क्षेत्र में आपने पी.एच.डी. एवं डी. लिट की उपाधि प्राप्त की है। सम्प्रति- प्राचार्य, माखनलाल चतुर्वेदी शासकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय, खंडवा में कार्यरत हैं। राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सहस्राब्दी सम्मान, सारस्वत सम्मान, हिमालय कला एवं साहित्य इत्यादि अनेक सम्मान से आपको सम्मानित किया गया है।
मुख्य कृतियाँ- ‘आँच अलाव की’, ‘अँधेरे में उम्मीद’, ‘धूप का अवसाद’, ‘बजे तो वंशी, गूँजे तो शंख’, ‘ठिठले पल पँखुरी’, रसवंती बोलो तो, ‘झरते फूल हरसिंगार के’, हंसा कहो पुरातन बात’, ‘बोली का इतिहास’, ‘भय के बीच भरोसा’, ‘चौकस रहना है’; ‘कहे जग सिंगा; ‘रचनात्मकता और उत्तरपरंपरा; ‘संस्कृति सलिला नर्मदा’; ‘निमाड़ी साहित्य का इतिहास, परम्परा का पुराख्यान’।
नर्मदा का उद्गम : अमरकंटक
मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमी के आमंत्रण पर इस बार अमरकंटक की सारस्वत यात्रा का सुयोग्य बना। अमरकंटक तो पहले भी जाना हुआ था, पर इस बार “आषाढस्य प्रथम दिवसे” के पूर्व दो दिन का आयोजन यहाँ था। आकाश में मेघ घिर-घिर कर झर रहे थे। प्रकृति नहा रही थी। वनस्पति की आँखों में सपने जाग रहे थे। आम्रवनों की कोकिल का स्वर उस वर्षा में गीला हो रहा था। वह स्वर जड़-चेतन में नेह – छोह की बूँद-बूँद भर रहा था। इन बूँदों के उत्सव में रस-रस अमरकंटक को देखना निसर्ग निहित चैतन्य से साक्षात्कार करना है। प्रकृति के उत्सव में स्वयं को उल्लास की फुहार बना देना है। पृथ्वी के महामंच पर अपने व्यक्तित्व की लघुत्तम इकाई के अर्थ खोजना है।
हम लोग सुबह-सुबह पेण्ड्रारोड पहुँचे। मेरे मित्र उदयपुर विश्वविद्यालय के प्राकृत विभाग के विद्वान प्राध्यापक भी इत्तफाक से यहाँ मिल गए जो इसी आयोजन में शामिल होने जा रहे थे। पानी बरस रहा था। हम पेण्ड्रारोड़ से अमरकंटक के लिए रवाना होते हैं। पेण्ड्रारोड से अमरकंटक का रास्ता सघन वन प्रान्त से होकर जाता है। आरण्यक संसार में बरसते पानी में गुजरना अच्छा लग रहा था। बादल, सरई के ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की फुनगियों पर रुकते, बात करते, बतरस से अरण्यावली को आर्द्र करते और आगे बढ़ जाते हैं। अमरकंटक पहाड़ का शिखर बहुत दूर से दिखाई देने लगता है। विंध्य और सतपुड़ा का यह समवेत विग्रह बड़ा सुदर्शन और मनोहारी है। इसे मेकल कहते है। मेकल पर्वत की ही दाईं भुजा विंध्याचल और बाईं सतपुड़ा है। इन दोनों पर्वतों के बीच नर्मदा निनादित और प्रवाहित है। विंध्य और सतपुड़ा से बनी अँजुरी में नर्मदा का जल लहर-लहर है। इस पर्वत का मस्तक पूर्व तक फैला है। यह अपनी विराटता से सम्पूर्ण भारत को पूर्व से पश्चिम तक हरापन और प्राकृतिकता दिए हुए है।
दूर से दृष्टि पड़ती है कि कोई रजत-धार आकाश से झर रही है। चारों तरफ हरा-भरा वानस्पतिक संसार है। एक पर्वत अपनी अचलता और विश्वास में समृद्ध है। ऊपर आसमान में बादलों की छियाछितौली और धमाचौकड़ी मची है। बादल असमान ही बरस रहा है और एक मोटी जलधार ऊपर से नीचे गिरते दिखाई दे तो लगता है धरती की प्रार्थनाएँ फलवती होने लगी हैं। यह धारा सोन की है। यह अमरकंटक का पूर्वी भाग है जो पेण्ड्रारोड से आते समय दिखाई देता है। शहडोल या जबलपुर – डिण्डोरी मार्ग से अमरकंटक पहुँचने पर हमें इसके पश्चिम भाग के प्राकृतिक संसार को देखने का सुख मिलता है। सोन नद है। सोनमुड़ा से निकलकर यह पूर्व में चला जाता है। गंगा की सभी सहायक नदियों से आगे जाकर यह गंगा में मिलता है। सोन के जल के द्वारा अमरकंटक अपनी जलांजलि सूर्य को और पूर्व के समुद्र को देता है। नर्मदा के जल-प्रवाह के माध्यम से यह अपनी आदरांजलि पश्चिम के समुद्र को देता है। दोनों ही दशा में और दिशा में इसके आसपास की जमीन नम होती है। यह जमीन का गीलापन कई-कई जीवन की धड़कनों को पानी के रंग दे रहा है।
कितनी ही आड़ी-तिरछी सड़क से चलते हुए अमरकंटक पहुँचे। सोन की यह झार इस मार्ग के हर कोण से दिखाई देती है। आँख सरई के पेड़ों की गाढ़ी हरियाली पर अटकती है। वन की सघनता पर आश्वस्त होती है। फिर सोन के सम्मोहन में फँस जाती है। लम्बा घाट चढ़ने पर हम अचानक स्वयं को अमरकंटक के एकदम सान्निध्य में पाते हैं। सोन आँखों से ओझल हो जाता है। बारिश रूक गई है। अमरकंटक की समतल और रक्ताभ छवि से रूबरू होते आगे बढ़ते हैं। छोटी सी, बिल्कुल छोटी नदी को पतली धार के रूप में छोटे-से पुल द्वारा पार करते हैं। निगाह किनारे लगे बोर्ड पर अटक जाती है- लिखा है “नर्मदा”। इतनी छोटी इतनी पतली! यहाँ बहते हुए इसलिए दिख रही है कि बरसात का मौसम है। अमरकंटक का दूसरा ही रूप सामने आता है। कुछ मकान हैं। मंदिर हैं। संतों के आश्रम हैं। कार्यालय हैं। निमार्णाधीन जैन मंदिर है। जन-जीवन है। वनवासियों का निर्द्वन्द्व जीवन है। टोकरियों में जामुन लेकर वनवासी महिलाएँ बैठी हैं। पके आम के ढेर के ढेर हैं। एक अजब शांति है। कुछ मिठाई की, चाय की दुकानें हैं। नारियल, प्रसाद, माला, कंठी की कई दुकानें हैं। लोग गरीब हैं। नर्मदा उन्हें संभाले हुए है। अमर के कंठ से निकलती जलधार के किनारे भयानक समय में बेखबर होकर जी रहे हैं।
बस स्टैण्ड से पूर्व में दुकानों की गली से चलते हुए आगे जाने पर एक जल कुंड है। यह नर्मदा का उद्गम स्थल है। कुंड ग्यारह कोणीय है। स्वच्छ और शीतल जल लहरा रहा है। कुंड के चारों ओर आसपास 20 मंदिर बने हुए हैं। कुंड पक्का बना है। कुंड विशाल है। कुंड के चारों ओर पक्की समतल जगह बना दी गई है। मुख्य द्वार भी विशाल है। कुंड के आसपास बने मंदिर मंझौले आकार के हैं। कुंड के पूर्व की तरफ एक छोटा-सा मंदिर है जिसमें शिव प्रतिष्ठित हैं। अमरेश्वर के कंठ से ही नर्मदा निकली है। यह कुंड ही नर्मदा का आदिम स्रोत है। जल शिव के कंठ से निकलकर कुंड में एकत्रित होता रहता है। कुंड के बाद नर्मदा भूमिगत होकर 5-6 किलोमीटर दूर पश्चिम में कपिलधारा के पास प्रकट होती है। नर्मदा कुंड में डुबकी लगाकर तन-मन का ताप शमन करने का पुण्य लिया जा सकता है। मंदिरों में पूजन-अर्चन, आरती-वंदन वैसा ही है, जैसा प्रायः नर्मदा तट के अन्य मंदिरों में होता है। नर्मदा कुंड का जल और उसका सुखदायी स्वरूप इस स्थान को एक महानदी की नैसर्गिक और दिव्य जन्म स्थली होने का गौरव देता है। यहाँ से रेवा आसमुद्र पश्चिम की ओर बहती चली जाती है।
रेवा मन में शोण के विरह का ताप लिए हुए पश्चिम की ओर बह निकलती है। उसकी गति में ताप है और स्वभाव में शीतलता है। एक लोक कथा है- शोण और नर्मदा की प्रणय कथा। जुहिला नामक नर्मदा की सखी ने सब गड़बड़ कर दिया। नर्मदा जुहिला को दूति बनाकर अपना प्रणय संदेश शोणभद्र के पास भेजती है। जुहिला शोण के व्यक्तित्व पर मुग्ध हो जाती है। वह नर्मदा का रूप लेकर सोन का वरण कर लेती है। यह बात नर्मदा को पता चलती है तो वह मारे क्रोध के उल्टे पाँव लौटकर पश्चिम की ओर वेगवती होकर चल पड़ती है। चट्टानों को तोड़ती, पहाड़ों को किनारे करती, उछलती, उत्ताल तरंगों से रव करती वह बहती ही चली जाती है। पीछे मुड़कर फिर नहीं देखती। उधर सोन (शोण) को इस रहस्य का पता चलता है तो वह भी विरह संतप्त होकर अमरकंटक के उच्च शिखर से छलाँग लगा लेता है। पूर्व की ओर विरह-विधुर मन लिए बह निकलता है। बहता ही चला जाता है। कुछ दूर जाकर जुहिला उसे मना लेती है। उसमें मिल जाती है। उसमें समा जाती है। लेकिन नर्मदा और सोन दो प्रेमी दो विपरीत दिशाओं में बह निकलते हैं। धरती की करूणा विगलित होकर नर्मदा और सोन के स्वरूप में अजस्र बह रही है।
माई की बगिया सोन और नर्मदा की बाल-सुलभ क्रीड़ाओं की भूमि रही है। वह ऋषि मार्कण्डेय की तपोभूमि भी रही है। आम्र तथा सरई के पेड़ों के आँगन में यह बगीचा हैं। गुलबकावली के फूलों में यहाँ नर्मदा और सोन का प्रेम अभी भी खिला हुआ है। माई की बगिया में छोटा-सा जलकुंड है। गुलबकावली का क्षेत्र भी बहुत थोड़ा रह गया है। एक साधु यहाँ कुटिया में रहते हैं। तीर्थ यात्रियों की आँखों में गुलबकावली का अर्क डालकर आँखों की उमस दूर करते हैं। दृष्टि का धुंधलका छाँटते हैं। लगता है नर्मदा और सोन का प्रणय गुलबकावली के फूलों के माध्यम से जगत की दृष्टि की तपन अभी तक हर रहा है। जीवन का ताप तो दोनों अपने-अपने जल से शमित कर ही रहे हैं। धरती के सूखे किनारों को हँसी बाँट रहे हैं। उत्सव लुटा रहे हैं। जुहिला के मन की खोट और सोन से उसका विवाह होने की खबर लगते ही नर्मदा माई की बगिया में भूमिगत होकर पश्चिम दिशा में जाकर दो-तीन किलोमीटर बाद सतह पर आती है। कपिल धारा के पास जल का सोता दिखाई देता है।
यह प्रसंग मानवीय संदर्भ लिए हुए है। लोक ने नदियों को कहीं मानवीय और कहीं दैवी गुणों से मंडित किया है। यह लोक की मानवीय दृष्टि और व्यवहार के प्रकृति तक फैलाव का सुफल है। परन्तु तटस्थ रूप से देखने पर भी अनुमान लगाया जा सकता है कि माई की बगिया से पुरातन समय में जलस्रोत बहता रहा होगा। वह जल धारा ही वर्तमान नर्मदा कुंड तक आती होगी। और फिर पश्चिम दिशा में आगे बढ़कर बहती चली गई होगी। समय के परिवर्तन और अमरकंटक की वानस्पतिक सम्पदा विरल होने से इस स्रोत में भी अन्तर आया। माई की बगिया से लेकर नर्मदा कुंड तक की धारा सूख गई। नर्मदा कुंड से आगे दो तीन किलोमीटर तक भी यही स्थिति रही होगी। नर्मदा कुंड से अमरकंटक का एक शिखर और आसपास की भूमि ऊँची है। उसी का जल निरंतर नर्मदा कुंड में आता है। अमरकंटक ने अपनी आत्मा से नर्मदा को जन्म दिया है और उसके प्राणों के रस से नर्मदा में अनादि काल से, प्रलयकाल से जल-जीवन निःसृत हो रहा है। अमरकंटक ने नर्मदा को जन्म देकर भारत को वरदान दिया है। यह अमरेश्वर शिव की अमरकंटक के माध्यम से धरती को मिली कृपा है। शिव – कन्या नर्मदा जल के रूप में अमृत धार हैं।
सोनमुड़ा सोन का उद्गम है। यहाँ भी एक छोटा-सा पक्का कुंड बना दिया है। पहले नहीं था। कुंड से पतली जल-धारा निकलकर बह रही है और पर्वत के ऊपर से बहकर आती हुई मोटी जल-धार में मिलकर सोन को नद का स्वरूप देती है। थोड़ी दूर जाकर सैकड़ों फीट नीचे गिरकर वृक्षों में अदृश्य सी हो जाती है। यह सोन पर पहला प्रपात है। यही प्रपात दूर-दूर से दिखाई देता है। सोनमुड़ा के कुंड में श्रद्धालुजनों द्वारा डाले गए सिक्के पड़े हैं। सोन अमरकंटक का गर्व है।
इसी तरह नर्मदा के उद्गम स्थल पर बना जल- कुंड भी बहुत पहले पक्का नहीं था। अपने गाँव में बड़े-बूढ़ों से और परिक्रमावासियों से सुना है कि अमरकंटक में माई रेवा बाँस के भिड़े में से निकली हैं। बड़ा हुआ, यहाँ आया तो ऐसा कुछ नहीं। बाँस के भिड़े से निकलने वाली बात अभी भी जिज्ञासा बनी है। लगता है यहाँ तब आमदरफ्त नहीं रही होगी। प्रकृति अपने निसर्ग पर बार-बार निहाल होकर गर्व करती रही होगी। सीमेण्ट और कंकरीट से नदियों के उद्गमों की घेरा बन्दी शुरू नहीं हुई होगी, तब बहुत पहले बाँस के भिड़े यहाँ रहे होंगे। उनमें से नर्मदा का जलस्रोत निकलता रहा होगा। बाँस के भिड़ों का साफ करके कुंड का निर्माण हुआ हो या प्राकृतिक स्थितियों के बदलने और बाँस वनों के कटने से बाँस का भिड़ा समाप्त हो गया हो। जो भी हो अमरकंटक के घर जन्म लेकर नर्मदा ने सृष्टि को सोहर गाने का अवसर जरूर दिया है। नर्मदा जीवन उत्स का चरम और अमर फल है।
नर्मदा कुंड से लगभग 6 किलोमीटर दूर कपिल ऋषि की तपस्या भूमि है। नर्मदा यहाँ लगभग 150 फीट ऊपर से गिरती है। यह नर्मदा पर पहला प्रपात है। कितनी अद्भुत बात है कि अमरकंटक के पूर्व और पश्चिम में सोन तथा नर्मदा दोनों ही हैं। कपिल धारा से आगे नर्मदा पत्थरों पर बिछलती हुई आगे बढ़ती है। थोड़ी दूर पर ही दूध धारा है। यहाँ पर नर्मदा अनेक धाराओं में बँटकर पत्थरों पर से बहती है। ऊपर से नीचे की ओर तेज बहती है। उसके कारण पानी दुधिया हो जाता है। यहाँ से ही नर्मदा का जल खम्भात की खाड़ी तक दूध ही माना जाता है। जनमानस नर्मदा को माँ मानता है और उसके पानी को दूध की तरह पीकर ही पोषित और जीवित है। दूध धारा के बाद निर्जन और सघन वनप्रान्त से नर्मदा की यात्रा आरम्भ होती है।
कपिल धारा के पास ऊपर बैठी जामुन बेचती वनवासी स्त्री से मैं पूछता हूँ कि अभी तो वर्षा का मौसम है, इसलिए यहाँ नर्मदा में पानी है। प्रपात में पानी गिर रहा है। क्या गर्मी में यहाँ नर्मदा सूख जाती हैं? उस स्त्री का सहज उत्तर था – ‘नर्मदा कैसे सूख सकती है बाबू। नर्मदा सूख जाएगी तो हम लोग कैसे बच सकेंगे? नर्मदा सूख जाएगी, तो संस्कृति सूख जाएगी। धरती का रस सूख जाएगा। प्रकृति का स्वाभिमान खतम हो जाएगा। नर्मदा अनवरत और अविराम प्रवाहमान है, इसलिए संस्कृति जीवित है। मनुष्य गतिमय है। लेकिन कपिल धारा के पास के आकाश मार्ग से तार पर लटक-लटक कर ट्रालियों में अमरकंटक से खनिज (एल्यूमीनियम) बाल्को को जा रहा है। अमरकंटक को खोखला किया जा रहा है। नर्मदा और सोन के उद्गम पर यह अविवेकपूर्ण और अंधा प्रहार है।
अमरकण्ठी नर्मदा का यह क्षेत्र देवों और मनुजों, मिथकों और लोककथाओं, ऋषियों और वर्तमान के रचनाकारों को अपने संदर्भों में समाए हुए है। कालिदास ने इसे आम्रकूट कहा है। किसी समय में यह समूचा पर्वत आम्र तरूओं से आच्छादित रहा होगा। इस समय तो आम के पेड़ यहाँ विरले ही हैं। सोनमुड़ा और माई की बगिया के पास कुछ घने आम के वृक्ष अवश्य बचे हैं। पर यह अवश्य है कि यहाँ के जंगलों में आम आज भी जंगल-जंगल पाए जाते हैं। यह क्रम पूर्वोत्तर में सरगुजा जिले के वनों तक और पश्चिम में सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी तक चला आया है। बादलों का जो रूप अमरकंटक में देखा, वह अद्भुत था। वर्षा सुबह से ही थम गई थी। चार बजे के आसपास देखते-देखते अँधेरा सा छा गया। एकदम घना – घना धुँआ-धुँआ सा तैरने लगा है। नरम और आर्द्र रूपहले बादलों की चादर ने समूचे वन, पर्वत और सबको ढँक लिया। बादल हमारे पास आ गए हैं। बिस्तर पर, कमरे में, सब जगह फैल गए हैं। एक स्पर्शित अनुभव संपन्न किन्तु पकड़ में न आने वाली अनुभूति का तैरता संसार हमारे आसपास था। हम कमरों में, दालानों में होते हुए भी बादलों के समन्दर में तैरते हुए धरती पर चल रहे थे। जीवन में ऐसा पारदर्शी और रोमिल बादल- अनुभव पहली बार हुआ। घनश्याम हमारे पास थे। लेकिन पकड़ से बाहर थे। घनश्याम कहाँ, कब, किसकी पकड़ में सहज आ पाए हैं? सुबह होते ही मौसम साफ था। अमरकंटक स्नान कर निसर्ग की अभ्यर्थना में निरत-सा खड़ा था। उसकी अँजुरी का जल नर्मदा बनकर बह रहा है।
शब्दार्थ
Word | Meaning in Hindi | Meaning in English | Meaning in Chhattisgarhi |
उद्गम | स्रोत, उत्पत्ति का स्थान | Origin, source | उद्गम, सुरूआत (similar to Hindi, often used as is) |
सारस्वत | सरस्वती से संबंधित, साहित्यिक | Related to Saraswati, literary | सारस्वत (literary term, same as Hindi) |
सुयोग्य | योग्य, उपयुक्त | Worthy, suitable | सुयोग्य (same as Hindi) |
आषाढस्य | आषाढ़ का (संस्कृत) | Of Ashadh (Sanskrit month) | आषाढ़ के (local: आषाढ़ month in calendar) |
मेघ | बादल | Cloud | बादर |
झर | झरना, गिरना | Falling, waterfall | झरना |
कोकिल | कोयल | Cuckoo | कोइली |
नेह-छोह | स्नेह, प्रेम | Affection, love | नेह, प्रेम (similar) |
निसर्ग | प्रकृति | Nature | प्रकृति (same) |
निहित | अंतर्निहित | Inherent | निहित (same) |
चैतन्य | चेतना, जागरूकता | Consciousness | चेतना |
उल्लास | खुशी, आनंद | Joy, delight | उल्लास, खुसी |
फुहार | छींटे, बौछार | Spray, shower | फुहार |
लघुत्तम | सबसे छोटा | Smallest | सबसे छोटा |
सघन | घना | Dense | घना |
आरण्यक | वन संबंधी | Forest-related | जंगल संबंधी |
बतरस | बातचीत | Conversation | बतरस, गपसप |
आर्द्र | गीला, नम | Moist, wet | गीला |
समवेत | संयुक्त, एकत्रित | Combined, assembled | एकजुट |
विग्रह | रूप, शरीर | Form, body | विग्रह (same) |
सुदर्शन | सुंदर | Beautiful | सुंदर |
मनोहारी | मन को हरने वाला | Captivating | मनमोहक |
रजत-धार | चांदी की धारा | Silver stream | चांदी जइसे धारा |
छियाछितौली | बादलों का खेल | Play of shadows/clouds | बादर के खेल |
धमाचौकड़ी | उछलकूद | Frolic, commotion | धमाचौकड़ी (same) |
जलांजलि | जल अर्पण | Offering of water | जल अर्पण |
आदरांजलि | सम्मानपूर्ण अर्पण | Respectful offering | आदर अर्पण |
सम्मोहन | आकर्षण, मोह | Enchantment | सम्मोहन |
सान्निध्य | निकटता | Proximity | पास रहना |
रक्ताभ | लालिमायुक्त | Reddish | लाल जइसे |
निर्द्वन्द्व | निश्चिंत | Carefree | बेफिकर |
कुंड | कुंड, तालाब | Pond | कुंड |
वेगवती | तेज गति वाली | Swift | तेज बहत |
उत्ताल | ऊँची | High, turbulent | उत्ताल (same) |
विरह | वियोग | Separation | विरह, जुदाई |
प्रणय | प्रेम | Love | प्रेम |
दूति | दूत | Messenger | दूत |
विधुर | दुखी, विधवा | Sorrowful, widowed | विधुर |
गुलबकावली | एक फूल | A flower (night blooming jasmine) | गुलबकावली |
अर्क | अर्क, सार | Extract | अर्क |
उमस | उमस, घुटन | Humidity | उमस |
धुंधलका | धुंधलापन | Dimness | धुंधला |
प्रसंग | संदर्भ | Context | प्रसंग |
मंडित | सज्जित | Adorned | सजा हुआ |
सुफल | अच्छा फल | Good result | अच्छा फल |
तटस्थ | तटस्थ, neutral | Neutral | तटस्थ |
विरल | दुर्लभ | Sparse, rare | विरल |
निःसृत | निकला हुआ | Flowing out | निकलत |
अनादि | अनंत, बिना शुरुआत | Eternal | अनादि |
प्रपात | झरना | Waterfall | झरना |
जिज्ञासा | उत्सुकता | Curiosity | जिज्ञासा |
निहाल | प्रसन्न | Delighted | निहाल |
सृष्टि | सृष्टि | Creation | सृष्टि |
दुधिया | दूध जैसा | Milky | दुधिया |
निर्जन | सुनसान | Deserted | निर्जन |
अविराम | निरंतर | Uninterrupted | अविराम |
अविवेकपूर्ण | विचारहीन | Unwise | अविवेकपूर्ण |
मिथकों | मिथकों | Myths | मिथक |
आच्छादित | ढका हुआ | Covered | ढंका |
घनश्याम | गहरे बादल | Dark clouds | घनश्याम |
रोमिल | रोमांचकारी | Thrilling | रोमांचकारी |
पारदर्शी | पारदर्शी | Transparent | पारदर्शी |
अभ्यर्थना | स्वागत | Welcome | अभ्यर्थना |
निरत | लगा हुआ | Engaged | निरत |
आमदरफ्त | आना-जाना | Come and go | आना-जाना |
पाठ से
- विंध्य और सतपुड़ा को लेखक ने किस रूप में चित्रित किया है?
उत्तर – लेखक ने विंध्य और सतपुड़ा को मेकल पर्वत की दाईं और बाईं भुजाओं के रूप में चित्रित किया है। इन दोनों पर्वतों के बीच नर्मदा निनादित और प्रवाहित है, तथा इनसे बनी अँजुरी में नर्मदा का जल लहर-लहर है।
- वनवासियों का जीवन कैसा होता है?
उत्तर – वनवासियों का जीवन निर्द्वन्द्व होता है। वे टोकरियों में जामुन लेकर बैठती हैं, गरीब हैं, लेकिन नर्मदा उन्हें संभाले हुए है और उनकी जीवन रेखा बनी हुई है।
- अमरेश्वर के कंठ से ही नर्मदा निकली है- यह पंक्ति किस संदर्भ में कही गई है?
उत्तर – यह पंक्ति नर्मदा के उद्गम स्थल के संदर्भ में कही गई है, जहाँ कुंड के पूर्व की तरफ एक छोटा सा मंदिर है जिसमें शिव (अमरेश्वर) प्रतिष्ठित हैं। अमरेश्वर के कंठ से ही नर्मदा निकली है और जल शिव के कंठ से निकलकर कुंड में एकत्रित होता रहता है।
- “अमरकंटक ने अपनी आत्मा से नर्मदा को जन्म दिया है” पाठ के अनुसार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – पाठ के अनुसार, अमरकंटक ने अपनी आत्मा से नर्मदा को जन्म दिया है, क्योंकि अमरकंटक की भूमि ऊँची है और उसी का जल निरंतर नर्मदा कुंड में आता है। अमरकंटक के प्राणों के रस से नर्मदा में अनादि काल से जल-जीवन निःसृत हो रहा है। इससे अमरकंटक ने नर्मदा को जन्म देकर भारत को वरदान दिया है। शिव – कन्या नर्मदा जल के रूप में अमृत की धारा है।
- निम्नांकित का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) दूर से दृष्टि पड़ती है कि कोई रजत धार आकाश से झर रही है। चारों तरफ हरा-भरा वानस्पतिक संसार है, एक तरफ अपनी अचलता और विश्वास में समृद्ध है, ऊपर आसमान में बादलों की छिया छितौली और धमा चौकड़ी मची है।
उत्तर – इस वाक्यांश का आशय सोन नदी की धारा से है, जो दूर से रजत-धार की तरह आकाश से झरती दिखाई देती है। चारों तरफ हरा-भरा वनस्पति संसार है, पर्वत अपनी अचलता और विश्वास में समृद्ध है, तथा आसमान में बादलों की छियाछितौली और धमाचौकड़ी मची है, जो प्रकृति के उत्सवपूर्ण दृश्य को दर्शाता है।
(ख) अमरकंठी नर्मदा का यह क्षेत्र देवों और मनुजों, मिथकों और लोक कथाओं, ऋषियों और वर्तमान के रचनाकारों को अपने संदर्भों में समाए हुए है। कालिदास ने इसे आम्रकूट कहा है।
उत्तर – इस वाक्यांश का आशय यह है कि अमरकंटक क्षेत्र देवताओं, मनुष्यों, मिथकों, लोककथाओं, ऋषियों और वर्तमान रचनाकारों को अपने में समाहित किए हुए है। कालिदास ने इसे आम्रकूट कहा है, क्योंकि किसी समय यह पर्वत आम्र तरुओं से आच्छादित रहा होगा। महाकवि कालिदास ने इसे आम्रकूट कहकार संबोधित किया है।
- नर्मदा सूख जाएगी तो हम लोग कैसे बच सकेंगे? वनवासी स्त्री द्वारा ये बात क्यों कही गई?
उत्तर – वनवासी स्त्री ने यह बात कही क्योंकि नर्मदा सूख जाएगी तो संस्कृति सूख जाएगी, धरती का रस सूख जाएगा, प्रकृति का स्वाभिमान खत्म हो जाएगा। नर्मदा अनवरत और अविराम प्रवाहमान है, इसलिए संस्कृति जीवित है और मनुष्य गतिमय है। नर्मदा उनके जीवन का आधार है, उनकी जीवन रेखा है।
- टिप्पणी लिखिए-
(क) सोनमुड़ा
उत्तर – सोनमुड़ा सोन नदी का उद्गम स्थल है। यहाँ एक छोटा-सा पक्का कुंड बना है, जहाँ से पतली जल-धारा निकलकर बह रही है। थोड़ी दूर जाकर सैकड़ों फीट नीचे गिरकर वृक्षों में अदृश्य हो जाती है। यह सोन पर पहला प्रपात है, जो दूर-दूर से दिखाई देता है। सोन अमरकंटक का गर्व है।
(ख) आम्रकूट
उत्तर – आम्रकूट अमरकंटक का प्राचीन नाम है, जिसे कालिदास ने दिया है। इसका अर्थ है आम्र तरुओं से आच्छादित पर्वत। किसी समय यह समूचा पर्वत आम्र तरुओं से ढका रहा होगा, हालाँकि अब आम के पेड़ विरले हैं, लेकिन जंगलों में आम आज भी पाए जाते हैं।
(ग) मेकल
उत्तर – मेकल अमरकंटक पर्वत का नाम है, जो विंध्य और सतपुड़ा का समवेत विग्रह है। इसकी दाईं भुजा विंध्याचल और बाईं सतपुड़ा है। इन दोनों के बीच नर्मदा प्रवाहित है। यह पर्वत अपनी विराटता से भारत को पूर्व से पश्चिम तक हरापन और प्राकृतिकता देता है।
(घ) माई की बगिया
उत्तर – माई की बगिया सोन और नर्मदा की बाल-सुलभ क्रीड़ाओं की भूमि है, जो ऋषि मार्कण्डेय की तपोभूमि भी रही है। यहाँ आम्र तथा सरई के पेड़ों के आँगन में छोटा-सा जलकुंड है। गुलबकावली के फूलों में नर्मदा और सोन का प्रेम खिला हुआ है। जुहिला के कारण नर्मदा यहाँ भूमिगत होकर पश्चिम में कपिलधारा के पास सतह पर आती है।
पाठ से आगे
- नर्मदा नदी लोगों के जीवन को कैसे खुशहाल बनाती है?
उत्तर – नर्मदा नदी लोगों के जीवन को खुशहाल बनाती है क्योंकि यह जल प्रदान करती है, जो जीवन की धड़कनों को पानी का रंग देता है। यह संस्कृति को जीवित रखती है, धरती के सूखे किनारों को हँसी बाँटती है, उत्सव लुटाती है। लोग इसे माँ मानते हैं और इसके पानी को दूध की तरह पीकर पोषित होते हैं। वनवासियों को संभालती है और गरीबों को जीवन देती है।
- “नर्मदा का उद्गम अमरकंटक” पाठ में वर्णित नैसर्गिक सौंदर्य को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर – पाठ में अमरकंटक का नैसर्गिक सौंदर्य वर्षा में नहाती प्रकृति, घिरते मेघ, वनस्पति की आँखों में जागते सपने, कोकिल का गीला स्वर, सघन वन, सरई के ऊँचे पेड़, रजत-धार जैसी सोन नदी, हरा-भरा वानस्पतिक संसार, बादलों की धमाचौकड़ी, नर्मदा कुंड का शीतल जल, कपिलधारा का प्रपात, माई की बगिया के गुलबकावली फूल और बादलों का रोमिल अनुभव के रूप में वर्णित है। यह सौंदर्य जीवन को उल्लास और चैतन्य से भर देता है।
- “अमरकंटक ने नर्मदा को जन्म देकर भारत को वरदान दिया है।” ऐसा क्यों कहा गया है? विचार लिखिए|
उत्तर – ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि अमरकंटक ने अपनी आत्मा से नर्मदा को जन्म दिया है, जो भारत को पूर्व से पश्चिम तक हरापन और प्राकृतिकता देती है। नर्मदा शिव-कन्या के रूप में अमृत धार है, जो संस्कृति, जीवन और प्रकृति को जीवित रखती है। यह भारत की महानदी है, जो लोककथाओं, मिथकों और रचनाकारों को समाहित करती है, तथा लोगों को जल, पोषण और उत्सव प्रदान करती है।
- अविवेकपूर्ण व अंधाधुंध खनन से अमरकंटक क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण को किस प्रकार का नुकसान हो रहा है? जानकारी जुटाकर लिखिए?
उत्तर – अविवेकपूर्ण और अंधाधुंध खनन, विशेष रूप से बॉक्साइट (एल्यूमिनियम) खनन से अमरकंटक क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो रहा है। इससे वन क्षेत्र का विनाश हो रहा है, जो जैव विविधता को प्रभावित करता है और दुर्लभ पौधों तथा जीवों को खतरे में डालता है। मिट्टी का कटाव बढ़ता है, जिससे नर्मदा और सोन नदियों में प्रदूषण फैलता है और जल स्रोत सूख रहे हैं। वायु प्रदूषण से बादलों और वर्षा का चक्र प्रभावित होता है, तथा भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं। स्थानीय वनवासियों का जीवन प्रभावित हो रहा है, क्योंकि खनन से जल स्तर गिरता है और कृषि भूमि बंजर हो रही है। बाल्को जैसी कंपनियों के खनन से क्षेत्र को खोखला किया जा रहा है, जो नर्मदा के उद्गम को खतरे में डालता है।
भाषा के बारे में
- पाठ में कई जगह गुणवाचक विशेषणों का प्रयोग किया गया है-
जैसे – बादल सरई के ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की फुनगियों पर रहते अमरकंटक की समतल और रक्ताभ छवि से रूबरू होते आगे बढ़ते हैं।
पंक्ति में ‘ऊँचे-ऊँचे’ शब्द पेड़ों का गुण बता रहा है तथा ‘रक्ताभ’ शब्द छवि की विशेषता बता रहा है। इस प्रकार पाठ में आए विशेषणों को ढूँढकर लिखिए (जो शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण, दोष आदि का बोध कराए, गुणवाचक विशेषण कहलाता है)।
उत्तर – ऊँचे-ऊँचे (पेड़ों की ऊँचाई का गुण)
रक्ताभ (छवि की लालिमा का गुण)
सघन (वन प्रान्त की घनत्व का गुण)
सुदर्शन और मनोहारी (विग्रह की सुंदरता का गुण)
हरा-भरा (वानस्पतिक संसार की हरियाली का गुण)
अचलता और विश्वास (पर्वत की स्थिरता का गुण)
छोटी सी, बिल्कुल छोटी (नदी की लघुता का गुण)
पतली (धार की पतलापन का गुण)
स्वच्छ और शीतल (जल की स्वच्छता और शीतलता का गुण)
विशाल (कुंड और द्वार की विशालता का गुण)
मंझौले (मंदिरों के आकार का गुण)
गाढ़ी (हरियाली की गहनता का गुण)
नरम और आर्द्र (बादलों की कोमलता का गुण)
पारदर्शी और रोमिल (बादल अनुभव की विशेषता का गुण)।
- किसी प्राकृतिक स्थल की विशेषताओं को बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।
उत्तर – दिनांक: 26 सितंबर 2025,
पता: वसंत विहार, राऊरकेला, ओड़िशा
प्रिय मित्र राहुल,
सप्रेम नमस्ते!
आशा करता हूँ तुम सकुशल होगे। मैं हाल ही में हिमाचल प्रदेश के मनाली गया था और वहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य देखकर मन प्रसन्न हो गया। मनाली चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे बर्फीले पहाड़ों से घिरा है, जहाँ रोहतांग दर्रा से बर्फ की चादर फैली हुई दिखती है। व्यास नदी की शीतल धारा बहती है, जो पानी की कलकल ध्वनि से वातावरण को संगीतमय बनाती है। सेब के बागानों की हरियाली और देवदार के घने जंगलों में घूमना ऐसा लगता है मानो प्रकृति की गोद में हों। सुबह की धूप में चमकते पहाड़ और शाम के समय बादलों की छियाछितौली देखकर जी भर आया। तुम्हें भी एक बार जरूर आना चाहिए, यह जगह तन-मन को तरोताजा कर देती है।
शेष अगले पत्र में।
तुम्हारा मित्र,
अमित
- इन वाक्यों को ध्यान से पढ़िए-
(क) अमरकंटक तो पहले भी जाना हुआ था।
(ख) वह भी विरह संतप्त होकर अमरकंटक के उच्च शिखर से छलांग लगा लेता है।
(ग) अमरेश्वर के कंठ से ही नर्मदा निकली है।
उपर्युक्त तीनों वाक्यों में प्रयुक्त होनेवाले अव्यय ‘तो’, ‘भी’ एवं ‘ही’ शब्द वाक्य में जिन शब्दों के बाद लगते हैं उनके अर्थ में विशेष प्रकार का बल ला देते हैं। इन शब्दों को “निपात” कहा जाता है।
‘तो’, ‘भी’ एवं ‘ही’ शब्दों का प्रयोग करते हुए दो-दो वाक्य बनाइए और प्रत्येक के बारे में यह भी स्पष्ट कीजिए कि किन विशेष अर्थों में उनका प्रयोग होता है।
उत्तर – ‘तो’ शब्द का प्रयोग:
अगर बारिश हो तो हम बाहर नहीं जाएँगे। (शर्त या परिणाम के अर्थ में)
वह पढ़ाई करता है तो सफल होगा। (शर्त के साथ परिणाम के अर्थ में)
‘भी’ शब्द का प्रयोग:
मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा। (समावेश या अतिरिक्त के अर्थ में)
वह बीमार है भी और थका हुआ भी। (दोनों स्थितियों के संयोजन के अर्थ में)
‘ही’ शब्द का प्रयोग:
केवल तुम ही यह काम कर सकते हो। (विशेष जोर या एकमात्रता के अर्थ में)
वह कल ही आएगा। (समय पर जोर के अर्थ में)
परियोजना कार्य
पाठ में शोण एवं नर्मदा की लोक कथा का उल्लेख है। ऐसी ही अन्य नदियों से संबंधित लोक कथाओं को पता कीजिए एवं अपने शिक्षक से चर्चा कीजिए!
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
लेखक अमरकंटक की यात्रा किस आमंत्रण पर कर रहे थे?
a) उदयपुर विश्वविद्यालय के
b) मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमी के
c) जबलपुर विश्वविद्यालय के
d) शहडोल जिला प्रशासन के
उत्तर – b) मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमी के
अमरकंटक में वर्षा के समय प्रकृति का वर्णन करते हुए लेखक ने क्या कहा है?
a) प्रकृति सूख रही थी
b) प्रकृति नहा रही थी
c) प्रकृति सो रही थी
d) प्रकृति रो रही थी
उत्तर – b) प्रकृति नहा रही थी
पेण्ड्रारोड से अमरकंटक का रास्ता किससे होकर जाता है?
a) रेगिस्तानी क्षेत्र से
b) सघन वन प्रान्त से
c) शहरी इलाके से
d) नदी किनारे से
उत्तर – b) सघन वन प्रान्त से
विंध्य और सतपुड़ा को लेखक ने मेकल पर्वत की क्या बताया है?
a) मस्तक और पैर
b) दाईं और बाईं भुजाएँ
c) हृदय और आत्मा
d) आँखें और कान
उत्तर – b) दाईं और बाईं भुजाएँ
सोन नदी का उद्गम स्थल क्या है?
a) नर्मदा कुंड
b) सोनमुड़ा
c) माई की बगिया
d) कपिल धारा
उत्तर – b) सोनमुड़ा
अमरकंटक पहुँचकर लेखक ने नर्मदा को किस रूप में देखा?
a) विशाल और गहरी
b) छोटी और पतली धार
c) सूखी और शुष्क
d) उफनती और तेज
उत्तर – b) छोटी और पतली धार
नर्मदा कुंड के चारों ओर कितने मंदिर बने हुए हैं?
a) 10
b) 15
c) 20
d) 25
उत्तर – c) 20
नर्मदा कुंड का आकार क्या है?
a) गोलाकार
b) आयताकार
c) ग्यारह कोणीय
d) त्रिकोणीय
उत्तर – c) ग्यारह कोणीय
लोककथा के अनुसार, नर्मदा क्रोध में किस दिशा में बहने लगी?
a) पूर्व
b) पश्चिम
c) उत्तर
d) दक्षिण
उत्तर – b) पश्चिम
माई की बगिया किस ऋषि की तपोभूमि रही है?
a) कपिल ऋषि
b) मार्कण्डेय ऋषि
c) विश्वामित्र ऋषि
d) वशिष्ठ ऋषि
उत्तर – b) मार्कण्डेय ऋषि
नर्मदा कुंड से कितनी दूरी पर कपिल धारा स्थित है?
a) 2-3 किलोमीटर
b) 5-6 किलोमीटर
c) 8-9 किलोमीटर
d) 10-11 किलोमीटर
उत्तर – b) 5-6 किलोमीटर
कपिल धारा पर नर्मदा कितनी ऊँचाई से गिरती है?
a) 100 फीट
b) 150 फीट
c) 200 फीट
d) 250 फीट
उत्तर – b) 150 फीट
दूध धारा पर नर्मदा का जल क्यों दुधिया हो जाता है?
a) तेज बहाव से
b) मिट्टी मिश्रण से
c) वर्षा से
d) प्रदूषण से
उत्तर – a) तेज बहाव से
वनवासी स्त्री ने नर्मदा के सूखने पर क्या कहा?
a) संस्कृति जीवित रहेगी
b) संस्कृति सूख जाएगी
c) वर्षा बढ़ जाएगी
d) वन बढ़ जाएँगे
उत्तर – b) संस्कृति सूख जाएगी
अमरकंटक क्षेत्र में खनन किस खनिज का हो रहा है?
a) सोना
b) एल्यूमीनियम
c) कोयला
d) लोहा
उत्तर – b) एल्यूमीनियम
कालिदास ने अमरकंटक को किस नाम से पुकारा है?
a) मेकल
b) आम्रकूट
c) सोनमुड़ा
d) कपिल धारा
उत्तर – b) आम्रकूट
अमरकंटक में बादलों का अनुभव लेखक ने कैसा बताया?
a) पारदर्शी और रोमिल
b) काले और भयानक
c) सूखे और धूल भरे
d) तेज और चमकीले
उत्तर – a) पारदर्शी और रोमिल
नर्मदा कुंड में डुबकी लगाने से क्या लाभ होता है?
a) धन प्राप्ति
b) तन-मन का ताप शमन
c) रोग मुक्ति
d) यात्रा सुख उत्तर –
उत्तर – b) तन-मन का ताप शमन
सोन नदी अंततः किस नदी में मिलती है?
a) नर्मदा
b) गंगा
c) यमुना
d) ब्रह्मपुत्र
उत्तर – b) गंगा
अमरकंटक के वनवासियों का जीवन कैसा वर्णित है?
a) संघर्षपूर्ण
b) निर्द्वन्द्व
c) अमीर
d) शहरी
उत्तर – b) निर्द्वन्द्व
एक वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर
- लेखक किस अकादमी के निमंत्रण पर अमरकंटक की यात्रा पर गए थे?
उत्तर – लेखक मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमी के निमंत्रण पर अमरकंटक की यात्रा पर गए थे।
- पेण्ड्रारोड से अमरकंटक का मार्ग किस प्रकार के क्षेत्र से होकर गुजरता है?
उत्तर – पेण्ड्रारोड से अमरकंटक का मार्ग घने वन प्रदेश से होकर गुजरता है।
- विंध्य और सतपुड़ा पर्वतों के सम्मिलित रूप को क्या कहा जाता है?
उत्तर – विंध्य और सतपुड़ा के सम्मिलित रूप को मेकल पर्वत कहा जाता है।
- अमरकंटक से निकलने वाली सोन नदी किस दिशा में जाकर गंगा में मिलती है?
उत्तर – अमरकंटक से निकलने वाली सोन नदी पूर्व दिशा की ओर बहती हुई आगे जाकर गंगा में मिल जाती है।
- नर्मदा नदी का उद्गम स्थल कैसा है?
उत्तर – नर्मदा का उद्गम स्थल एक ग्यारह कोणीय पक्का बना हुआ जल कुंड है, जिसके चारों ओर मंदिर हैं।
- लोककथा के अनुसार नर्मदा ने अपना प्रणय संदेश शोणभद्र के पास किसे दूत बनाकर भेजा था?
उत्तर – लोककथा के अनुसार नर्मदा ने अपनी सखी जुहिला को दूत बनाकर अपना प्रणय संदेश शोणभद्र के पास भेजा था।
- नर्मदा क्रोधित होकर पश्चिम दिशा की ओर क्यों बहने लगीं?
उत्तर – जब नर्मदा को पता चला कि जुहिला ने उनका रूप धरकर सोन से विवाह कर लिया है तो वह क्रोधित होकर पश्चिम दिशा की ओर बहने लगीं।
- “माई की बगिया” नामक स्थान का क्या महत्त्व है?
उत्तर – “माई की बगिया” को सोन और नर्मदा की बाल-क्रीड़ाओं तथा ऋषि मार्कण्डेय की तपोभूमि माना जाता है।
- सोन नदी का उद्गम स्थल क्या कहलाता है?
उत्तर – सोन नदी का उद्गम स्थल सोनमुड़ा कहलाता है।
- नर्मदा पर बने पहले जलप्रपात का नाम क्या है और वह कहाँ स्थित है?
उत्तर – नर्मदा पर बना पहला जलप्रपात कपिलधारा है, जो उद्गम कुंड से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित है।
- “दूध धारा” नामक स्थान पर नर्मदा का जल दुधिया क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर – “दूध धारा” पर नर्मदा अनेक धाराओं में बँटकर पत्थरों पर से तेज गति से बहती है, जिससे उसका पानी दुधिया प्रतीत होता है।
- वनवासी स्त्री के अनुसार यदि नर्मदा सूख गई तो क्या होगा?
उत्तर – वनवासी स्त्री के अनुसार यदि नर्मदा सूख गई तो संस्कृति और धरती का रस भी सूख जाएगा और वे लोग जीवित नहीं बच सकेंगे।
- अमरकंटक से कौन-सा खनिज निकाला जा रहा है, जिससे उसे खोखला किया जा रहा है?
उत्तर – अमरकंटक से एल्यूमीनियम खनिज निकालकर बाल्को भेजा जा रहा है, जिससे यह पर्वत खोखला हो रहा है।
- महान कवि कालिदास ने अपने साहित्य में अमरकंटक को किस नाम से संबोधित किया है?
उत्तर – महान कवि कालिदास ने अमरकंटक को “आम्रकूट” नाम से संबोधित किया है।
- लेखक को अमरकंटक में बादलों का कैसा अनूठा अनुभव हुआ?
उत्तर – लेखक ने अमरकंटक में पारदर्शी और रोमिल बादलों को अपने चारों ओर कमरे और बिस्तर तक फैले हुए महसूस किया, जैसे वे बादलों के समुद्र में तैर रहे हों।
- गद्यांश के अनुसार, अमरेश्वर के कंठ से कौन सी नदी निकली है?
उत्तर – गद्यांश के अनुसार, अमरेश्वर शिव के कंठ से ही नर्मदा नदी निकली है।
- नर्मदा कुंड से निकलने के बाद नर्मदा नदी कहाँ पुनः प्रकट होती है?
उत्तर – नर्मदा कुंड के बाद भूमिगत होकर लगभग 5-6 किलोमीटर दूर पश्चिम में कपिलधारा के पास पुनः प्रकट होती है।
- पुराने लोगों की क्या मान्यता थी कि नर्मदा कहाँ से निकलती हैं?
उत्तर – पुराने लोगों की यह मान्यता थी कि अमरकंटक में माँ रेवा (नर्मदा) बाँस के भिड़े (समूह) में से निकली हैं।
- लेखक को उदयपुर विश्वविद्यालय के कौन से मित्र पेण्ड्रारोड पर मिले?
उत्तर – लेखक को पेण्ड्रारोड पर उदयपुर विश्वविद्यालय के प्राकृत विभाग के विद्वान प्राध्यापक मित्र मिले।
- सोनमुड़ा के कुंड से निकलकर सोन नदी अपना विशाल रूप कैसे धारण करती है?
उत्तर – सोनमुड़ा के कुंड से निकली पतली जलधारा जब पर्वत के ऊपर से आती मोटी जलधारा में मिलती है, तब सोन को नद का स्वरूप प्राप्त होता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 40-50 शब्दों में दीजिए –
- प्रश्न – नर्मदा नदी का उद्गम स्थल कहाँ है और इसका वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर – नर्मदा का उद्गम अमरकंटक में है, जहाँ एक ग्यारह कोणीय कुंड है जिसमें स्वच्छ और शीतल जल लहरा रहा है। कुंड के चारों ओर २० मंदिर बने हैं, और यह शिव के कंठ से निकलती है। कुंड से नर्मदा भूमिगत होकर ५-६ किमी दूर कपिलधारा के पास प्रकट होती है।
- प्रश्न – अमरकंटक की यात्रा के दौरान लेखक को क्या अनुभव हुआ?
उत्तर – लेखक को अमरकंटक की यात्रा में वर्षा में नहाती प्रकृति, वनस्पति की हरियाली, कोकिल का स्वर और नर्मदा की छोटी धारा का दर्शन हुआ। वे पेण्ड्रारोड से सघन वन से गुजरते हुए पहुँचे, जहाँ बादल पेड़ों पर रुकते और अरण्य को आर्द्र करते थे।
- प्रश्न – सोन नदी का उद्गम और इसका महत्त्व क्या है?
उत्तर – सोन नदी का उद्गम सोनमुड़ा से है, जहाँ एक छोटा पक्का कुंड है। यह पूर्व की ओर बहती है और गंगा में मिलती है। अमरकंटक इससे पूर्व के समुद्र को जलांजलि देता है। दूर से रजत-धार जैसी दिखती है, जो पर्वत से गिरती है।
- प्रश्न – नर्मदा और सोन की प्रणय कथा क्या है?
उत्तर – लोककथा के अनुसार, नर्मदा ने जुहिला को दूति बनाकर सोन को प्रणय संदेश भेजा, लेकिन जुहिला सोन से विवाह कर लेती है। क्रोधित नर्मदा पश्चिम की ओर बह निकलती है, जबकि सोन पूर्व की ओर विरह में बहता है। दोनों विपरीत दिशाओं में बहते हैं।
- प्रश्न – माई की बगिया का वर्णन और महत्त्व क्या है?
उत्तर – माई की बगिया नर्मदा और सोन की बाल क्रीड़ाओं की भूमि है, जहाँ आम्र और सरई के पेड़ हैं। गुलबकावली के फूलों में उनका प्रेम खिला है। छोटा जलकुंड है, और साधु तीर्थयात्रियों की आँखों में अर्क डालते हैं। यह मार्कण्डेय ऋषि की तपोभूमि भी है।
- प्रश्न – कपिल धारा क्या है और नर्मदा वहाँ कैसे बहती है?
उत्तर – कपिल धारा नर्मदा पर पहला प्रपात है, जहाँ नर्मदा १५० फीट ऊपर से गिरती है। यह कपिल ऋषि की तपस्या भूमि है। आगे दूध धारा है, जहाँ पानी दुधिया हो जाता है। नर्मदा यहाँ से सघन वन से खम्भात की खाड़ी तक बहती है।
- प्रश्न – अमरकंटक को मेकल क्यों कहा जाता है और इसका भौगोलिक महत्त्व क्या है?
उत्तर – अमरकंटक को मेकल पर्वत कहा जाता है, जो विंध्य और सतपुड़ा का समवेत रूप है। विंध्य दाईं भुजा और सतपुड़ा बाईं है। इनके बीच नर्मदा बहती है। यह पूर्व से पश्चिम तक भारत को हरापन और प्राकृतिकता प्रदान करता है।
- प्रश्न – नर्मदा के उद्गम पर बाँस के भिड़े की बात क्यों की जाती है?
उत्तर – पुराने समय में नर्मदा बाँस के भिड़े से निकलती थी, जैसा बड़े-बूढ़ों से सुना गया। अब कुंड पक्का है। संभवतः बाँस वनों के कटने या प्राकृतिक परिवर्तन से यह बदल गया। अमरकंटक ने नर्मदा को जन्म देकर भारत को वरदान दिया है।
- प्रश्न – अमरकंटक में बादलों का अनुभव कैसा था?
उत्तर – अमरकंटक में बादल घने और धुँआ-से तैरते थे, जो वन और पर्वत को ढँक लेते थे। वे कमरों और दालानों में फैल जाते थे, जैसे बादलों के समुद्र में तैरना। यह पारदर्शी और रोमिल अनुभव था, जहाँ घनश्याम पास थे लेकिन पकड़ से बाहर।
- प्रश्न – अमरकंटक के पर्यावरण पर क्या खतरा है और वनवासी स्त्री का क्या कहना था?
उत्तर – अमरकंटक को खनिज निकासी से खोखला किया जा रहा है, जो नर्मदा और सोन के उद्गम पर प्रहार है। वनवासी स्त्री ने कहा कि नर्मदा कभी नहीं सूख सकती, वरना संस्कृति, धरती का रस और प्रकृति का स्वाभिमान समाप्त हो जाएगा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: गद्यांश के अनुसार, लेखक को अमरकंटक की यात्रा के दौरान प्रकृति का क्या रूप देखने को मिला?
उत्तर – लेखक को अमरकंटक में वर्षा-ऋतु की भीगी हुई प्रकृति का अनुभव हुआ। आकाश में घिरते मेघ, भीगी हुई वनस्पति, और कोयल का मधुर स्वर ने एक अद्भुत सौंदर्य प्रस्तुत किया। उन्होंने मेकल पर्वत (विंध्य और सतपुड़ा का संगम), सरई के घने वन, और सोन नदी की रजत-धार को देखा, जो प्रकृति की भव्यता को दर्शाते हैं।
प्रश्न 2: गद्यांश में नर्मदा और सोन की उत्पत्ति और बहाव के संबंध में क्या जानकारी दी गई है?
उत्तर – गद्यांश के अनुसार, नर्मदा का उद्गम अमरकंटक के ग्यारह-कोणीय कुंड से होता है, जो भूमिगत होकर कपिलधारा के पास प्रकट होती है और पश्चिम की ओर बहती है। वहीं, सोन का उद्गम सोनमुड़ा से होता है और यह पूर्व की ओर बहकर गंगा में मिलती है। इस प्रकार, अमरकंटक से दो महानदियाँ विपरीत दिशाओं में बहती हैं।
प्रश्न 3: गद्यांश में वर्णित नर्मदा और सोन की लोककथा का सार क्या है?
उत्तर – लोककथा के अनुसार, नर्मदा और सोन प्रेमी थे, लेकिन नर्मदा की सखी जुहिला ने छल से सोन का वरण कर लिया। इससे क्रोधित होकर नर्मदा उल्टे पाँव पश्चिम की ओर बहने लगी और सोन विरह में पूर्व की ओर बह निकला। यह कथा बताती है कि कैसे दो प्रेमी विपरीत दिशाओं में बहते हुए धरती की करुणा बन गए।
प्रश्न 4: लेखक के अनुसार, नर्मदा के जल को “दूध” क्यों कहा गया है और इसके पीछे क्या तर्क है?
उत्तर – गद्यांश में बताया गया है कि नर्मदा का जल दूध धारा में अनेक धाराओं में बँटकर पत्थरों पर तेजी से बहता है, जिससे पानी का रंग दुधिया हो जाता है। जनमानस नर्मदा को माँ मानता है और उसके जल को दूध की तरह पवित्र और पोषक मानता है, इसलिए यह जल खम्भात की खाड़ी तक दूध ही माना जाता है।
प्रश्न 5: गद्यांश में लेखक ने अमरकंटक की प्राकृतिक विरासत पर क्या चिंता व्यक्त की है?
उत्तर – लेखक ने चिंता जताई है कि अमरकंटक की वानस्पतिक संपदा, जैसे ‘बाँस के भिड़े’, समय के साथ कम हो गई है। सबसे बड़ी चिंता खनिज खनन को लेकर है, जिसके कारण एल्यूमीनियम को ट्रालियों में भरकर बाहर ले जाया जा रहा है। लेखक इसे नर्मदा और सोन के उद्गम स्थल पर एक अविवेकपूर्ण और अंधा प्रहार मानते हैं, जो इस क्षेत्र को खोखला कर रहा है।

