जीवन परिचय – डॉ. भगवत शरण उपाध्याय
डॉ. भगवत शरण उपाध्याय का जन्म सन् 1910 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में उजियारपुर नामक स्थान पर हुआ। इन्होंने संस्कृत, हिंदी साहित्य, इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व का गहन अध्ययन किया। हिंदी-साहित्य के ललित निबंधकारों में उनका स्थान महत्त्वपूर्ण और विशिष्ट है। आपने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका का संपादन किया तथा हिंदी विश्वकोश संपादक मंडल के सदस्य भी रहे। ये मारीशस में भारत के राजदूत भी रहे। भारतीय संस्कृति पर देश-विदेश में दिए गए इनके व्याख्यान चिर-संग्रहणीय हैं। इनकी भाषा शैली तत्सम् शब्दों से युक्त साहित्यिक खड़ी बोली है। आपने विवेचनात्मक भावुकतापूर्ण, चित्रात्मक भाषा का प्रयोग तथा कहीं-कहीं रेखाचित्र शैली का प्रयोग किया है। विश्व साहित्य की रूपरेखा, साहित्य और कला, कालीदास का भारत, कादम्बरी, ठूंठा आम, बुद्ध वैभव, सागर की लहरों पर इतिहास साक्षी है आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
पाठ परिचय
मैं मजूदर हूँ एक विचारात्मक लेख है जिसमें लेखक ने मजदूर वर्ग की कहानी को आत्मकथात्मक शैली में लिखा है और यह बताने का प्रयास किया है कि इस दुनिया के वर्तमान स्वरूप तक विकसित होने की यात्रा में मजदूर वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है लेकिन मजदूरों की अपनी जिंदगी पहले की तरह आज भी अभावग्रस्त है।
मैं मजदूर हूँ
मैं मजदूर हूँ, जीवनबद्ध श्रम शक्ति की इकाई।
मैं मेहनतकश मजदूर हूँ। आदमी के बनैलेपन से लेकर आज की शिष्ट सभ्यता तक की सीढ़ियों पर मेरे हथौड़े की चोट है। जमाने ने करवट ली है पर मैंने कभी जमीन से पीठ नहीं लगाई, सुस्ताने के लिए कभी फावड़े नहीं टिकाए। मेरे बाजू पर ज़माना टिका है, घुटनों पर अलकस दम तोड़ती है। मेरे कंधों पर भूमंडल का भार है, उसे उठाने वाले एटलस के साथ पर मैं वो हूँ कि कभी गरदन नहीं मोड़ता, कंधे नहीं डालता, उन्हें कभी बदलता तक नहीं।
कंधे डाल दूँ तो गजब हो जाए, दुनिया लड़खड़ाकर गिर पड़े, जमाने का दौर बंद हो जाए। पर मैं कंधे नहीं डालता, न डालूँगा। मैंने निरंतर निर्माण किया है, विध्वंस न करूँगा। यदि करना हुआ तो पुनर्निर्माण करूँगा जिसके लिए मुझे थकान नहीं महसूस होती, कभी अलकस नहीं लगती, रोआँ-रोआँ फड़कता रहता है।
मेरे निर्माण की परिधि की व्यापकता अनंत है, उदयाचल से अस्ताचल तक क्षितिज के छोरों तक हजारों वर्ष पहले कलयुग भी जब अभी अंतराल के गर्भ में था, मैंने नदियों के बहाव रोक दिए, बहाव जो अभी ताजा थे, प्रखर प्रकृति वेग से प्रेरित। बहाव रोक कर सविस्तृत हृद बनाए, जिन पर पर्जन्य विरहित भूमि की उर्वरा शक्ति अवलंबित हुई। बढ़ते हुए समुंदर का मैंने जल सुखाया, दलदलों को ठोस जमीन का जामा पहनाया और उन पर फसलों की हरी धानी क्यारियाँ दौड़ाई।
कश्मीर का नाम लेते ही हृदय में जो आनंद की लहरें उठने लगती हैं उसकी नम दलदल भरी भूमि किसने सौंदर्य से रँगी? किसने झेलम के तटवर्ती आकाश को सुरभि बोझिल वायु से मदहोश किया? किसने उसके केसर की फैली क्यारियों में जादू की मिट्टी डाली? कल्हण की कलम से पूछो, किसने किसने?
दिन सोता था, रात सोती थी, पर मैं जागता था, जब नीलनद की धारा छाती पर चट्टान ढोती थी, दखिनी पहाड़ी में मेरी चट्टान। इन चट्टानों को मैंने नील की सबल छाती से उठाकर अपनी छाती पर रखा, अपने बाजूओं पर, कंधों पर, गरदन पर और चढ़ा दिया पाँच सौ फुट ऊपर आसमान की छाती छेद, गीजा और सक्कारा के मैदानों में, अपनी जिन्दा छातियों से, इसलिए कि मुर्दा छातियाँ उस धूप से भूनी बालू में पिरामिडों की छाया में चिर निद्रा में सोएँ।
मैंने पहाड़ काटा, चट्टानें खोदकर ताँबा निकाला, सोना, चाँदी, लोहा, कोयला, हीरा। पाताल में घुसकर जब तपता दिन, नरक की रातों की अँधियारी लिए उन खानों में उतरता, मैं पत्थर काटता होता, अपने मालिकों के लिए था। कोलार की खानों से अमरीका की नई दुनिया तक। जमीन की छाती फाड़-फाड़कर मैंने चमकता, लोहे सा कठोर हीरा निकाला और दक्षिणी अफ्रीका में आज भी निकाले जा रहा हूँ पर उसकी चमक के नीचे मेरी काली अँधियारी जिंदगी है।
मेरी खोदी जमीन को घेरे शेर से खूँखार कुत्ते खड़े रहते हैं, मुझे घूरते मेरी एक-एक हरकत पर छलाँग मारते। अगर मैं अपनी जगह बुत बनकर खड़ा न रहा होता तो पीठ फेरते ही पिंडलियाँ उनके मुँह में होती और उनके घेरे से बाहर निकलते ही वह अमानुष अपमान जिससे अंतर खुलकर चमक जाए। मैं हीरा निकालता हूँ।
रोम का वह कोलोसियम, मैंने अपने हाथों खड़ा किया, जैसे कभी एथेन्स में अरीना का निर्माण किया था जहाँ मेरे से गरीबों को श्रीमानों की दृष्टि सुख के लिए शेरों से लड़ना होता था। वैसे ही स्पेन के वे खूनी अखाड़े भी जहाँ लड़कों को साँड़ों से मौत की बाजी लगानी होती थी।
बाबा आदम के वनों को काट मैंने पत्थर की सी जमीन खोदकर नरम कर डाली। उसे जोत बोकर हरा कर दिया। विजयों से लौटे हुए रोमन जनरलों की प्रांतीय भूमि, मीलों फैले खेत मैंने बोए-काटे, सामंतों की दुनिया मैंने बसाई जिनकी गहराइयों में आदमी को भूखे शेर की भाँति कठघरों के पीछे रखा जाता था।
अफ्रीका के जंगलों से बनैली हालत में डाके, चोरी, साजिश द्वारा मैं खींच ले जाया गया एक दूर की अनजानी दुनिया में, समुंदर पार। पर मेरे लिए स्वदेश – विदेश की परिपाटी न थी। मैंने वहाँ भी गोरी दुनिया का पेट भरा, अपना पेट काटकर, संसार को अघा देने वाली उपज के बीच भी भूखा रहकर। फिर वहीं, उनके लिए आसमान चूमने वाली इमारतें खड़ी कीं, जहाँ एक-एक गाँव-नगर की संख्या बसी, मेरी झोपड़ियों से घृणा करने वाली दुनिया।
मैं ज़मीन को खोदकर उसे जोत-बोकर सोना उगलने पर मजबूर करता था, वह सोना खुद मेरे लिए न था। मेरे लिए सोना आग था जिसे छूकर मुझे शूल की नोक पर चलना होता। मुझे उस फसल को काटकर, दा- उसाकर राशि कर देना था पर उसका एक दाना भी छूना मेरे लिए मौत का परवाना था, तिल-तिल करने का, उन पीड़ाओं का जिनके लिए मनुष्य की मेधा ने एक से एक जतन प्रस्तुत किए थे। हाँ, मुझे उस कटे खेत की ज़मीन पर अब चिड़ियों की भाँति फिरने का अधिकार था जहाँ कभी कोड़ों की चोट सीने पर झेलते हुए मैंने अन्न की राशि खड़ी की थी कि मैं अपना आहार, मिट्टी में पड़े कणों को चुन लूँ। तब कणाद का तप मैंने पूरा किया।
हाँ, मैं उस जमीन के साथ बँधा जरूर था। उस ज़मीन की तरह मैं भी निरीह था, ज़मीन बेची जाती थी, मैं भी उसी के साथ, मय जानवरों के बिक जाता था। न ज़मीन को अपनी उपज खाने का हक था, न मुझे। प्राचीन काल से ही मेरी संज्ञा घर के मवेशियों की थी। प्राचीन ऋषि तक ने जानवरों की ही भाँति मुझ पर दया करने की ताकीद की थी। गृहिणी को ऋषि ने मेरे प्रति करुण होने की हिदायत देते हुए चौपायों के साथ रखा, उसे गृह के सभी जनों के साथ दोपायों-चौपायों की साम्राज्ञी होने का आशीर्वाद दिया – साम्राज्ञी द्विपदश्चतुष्पदः।
जंगल काटकर मैंने गाँव खड़े किए, कस्बे और नगर मैं भूमि के साथ बिकता रहा। फिर धीरे-धीरे मैंने विशाल जनसंकुल नगर बनाए जिनमें कारखानों मिलों का दैत्य कोलाहल के साथ धुआँ उगलने लगा। उनकी चिमनियों की छाया में रात-दिन मैं पसीना बहाता रहा। जब मशीन की चपेट में आकर मैं अपाहिज हो जाता, मेरा नाम रजिस्टर से खारिज कर दिया जाता। जब मैं उसकी चोट से गिरकर फिर न उठ पाता तब सड़क के कूड़ों में डाल दिया जाता। मेरी मृत्यु की जवाबदेही किसी की न थी, न मेरे बाल बच्चों के प्रति, न मालिकों की अपनी सरकार के प्रति मॉन्टेस्क्यू और मिल लिखते ही रह गए।
मेरे बाल-बच्चे। उनके न घर थे, न द्वार। मिल की दीवारों की आड़, धुएँ के बादलों की घनी छाया और टाट – फूस – टिन से घिरी मेरी दुनिया जिसमें मैं ही सपरिवार न था, मेरे-से अनेक अभागे थे। और वहाँ का पापमय घिनौना जीवन, शर्मनाक नरक के कीड़ा का। उधर ऊँची दुनिया में, संसदों में, पाप के विरूद्ध कानून बनते रहे और कानून बनाने वालों की इधर की दुनिया में उनके कानूनों को चरितार्थ करते हम कृतकृत्य होते रहे। चारों ओर अँधेरा था, घरौंदों के पीछे, उन मकान कहलाने वाले घरौंदों के जहाँ दिन-रात की मजदूरी से थका-माँदा जीवन बिना लहराए टकराता और टकरा- टकराकर टूट जाता था और ये घरौंदे उसी तेजी से गला पचा जीवन उगलते थे जिस तेजी से दीवारों के पीछे कारखाने में तैयार माल।
बैलगाड़ी से रथ बने, रथ से महारथ। उधर हमारी मिलों ने क्रांति की और हमने भाप से चलने वाले इंजन गढ़ दिए, इंजन जो जमीन पर दौड़ते थे, पानी पर तैरते थे। बैलगाड़ी रेल बनी और नाव- जहाज आसमान चूमती लहरों पर तूफानों में नाचने लगे। पर मैं वहीं का वहीं रह गया।
मैंने जैसे मोटर रेल से जमीन नापी थी वैसे ही अब अपने ही बनाए हवाई जहाजों से बाजों के छक्के छुड़ाने लगा पर जैसे मैं उनका कोई नहीं। भला उनके भीतर बैठने वालों से मेरा क्या वास्ता? नाव चलाने वाला मल्लाह नाव पर, उसे अपना कह दिनभर बैठ लेता है, हलवाई अपनी बनाई मिठाई को जब-तब चख लेता है पर मैं अपनी ही जोड़ी बनाई मोटर को, जहाज को, क्या अपना या उनका कह एक मिनिट को भी भोग सकता हूँ?
इनके लिए मैं पहाड़ों से लोहा, कोयला, टिन खोदता हूँ, तेल और पेट्रोल जिनके विस्फोट से अनेक बार मुझ जैसों की दुनिया पलट जाती है। जिनके लिए धर्म का झंडा फहराने वाले, जालफरेब करते हैं, कानून बनाते हैं, कानूनी शर्तनामों के नाम पर खूनी लड़ाइयाँ लड़ते हैं।
खूनी लड़ाइयाँ। इनके लिए भी मैं अपना खून-पसीना एक करता हूँ। लड़ाइयाँ धर्म की हैं, अधर्म की हैं, गुस्से और बर्दाश्त की हैं, हक और नाहक की हैं, लड़ाई और अमन की हैं, दोनों को मिटा देने की भी हैं, और कई किस्म की हैं जैसा उनकी किस्म-किस्म की परिभाषा बनाने वाले कहते है। मैं नहीं जानता उनकी परिभाषाएँ। पिस्सू और खटमल तक की जानें निकलते देख एक बार घबरा उठनेवाला मैं दानव की भाँति दिन-रात चलती मशीनों से संहार के साधन सिरजाता जा रहा हूँ क्योंकि मेरा कारखाना हथियारों का है, तोप- बंदूकों का, गोले- बारूद का बम का।
पिस्सू खटमल की चोट पर आँसू बहाने वाला मैं आखिर चींटी को चीनी चटाने वालों, कृपालु पिता के नाम पर सेमिनार चलाने वालों का नौकर ही तो हूँ। मुझे इससे क्या कि जिन मशीनों, बन्दुकों, तोपों, जहाजों के टुकड़े हिस्से बनाता हूँ, वे एक दिन मुझसे ही हाड़-माँस के असंख्य जनों को उड़ा देंगे। सच, इससे मुझे क्या? मैं तो तेली का बैल हूँ, मुझे कहीं भी नाथ दो, मैं चलता ही जाऊँगा, उन्हीं मशीनों की तरह जिन्हें चलाने वालों के इशारों पर चलना होता है।
सुंदर आसमान पर पुल बाँधने वाला मैं अपनी कुव्वत आप नहीं जानता। एक बार भी मैं नहीं सोचता कि मेरे जिन हाथों में भरे मैदानों को बगैर खून बहाए सुला देने का जादू है उनमें मसीहा का भी असर है। काश, मैं इसे समझ लेता। काश, मैं इसके राज को अपने सामने बिखरे मृत्यु के इन साधनों को सिरजते इन्हीं की भाँति साफ देख लेता।
संसार आसमान के छोरों तक फैला हुआ है। धरती का विस्तार क्षितिज के पार तक वैसा ही व्यापक है, जैसा आसमान। रत्नाकर का सौंदर्य उतना ही अमित है जितना वसुंधरा का और उनके मंथन से शहरों में समृद्धि भरी है, परंतु वह मेरे लिए क्यों नहीं हैं? मैं पूछता हूँ। मुझमें कभी दानव की शक्ति थी मेरे इस मानव की मज्जा में, मेरी इन शिराओं में फौलाद के तारों की जकड़ थी, पर आज इतना निःसत्व मैं क्यों हूँ, इतना नगण्य और नंगा क्यों?
दुनिया में क्या नहीं? कौन-सी चीज मैंने अपने हाथों पैदा नहीं की? मेरे सहारे कारखाने अमित मात्रा में माल उगलते जा रहे है। मैं तृण से ताड़ बनाता हूँ, तिल से पहाड़, नगर को ढो सकने वाले जहाजों से लेकर सुई तक कोई महान और अदनी चीज नहीं जो मेरे स्पर्श के जादू से जीवन धारण न कर लेती हो। पर यह सब कुछ मेरे लिए क्यों नहीं? मैं इनमें से तिनका तक भी नहीं ले पाता। मैं भूखा और नंगा हूँ पर क्या ये मिलें जिनमें मैं खाने-पहनने का अपार सामान तैयार कर रहा हूँ, मेरा पेट नहीं भर सकतीं, तन नहीं ढँक सकतीं? इसका उत्तर भला कौन देगा, इन्हें जो बनाता है वह या जिनके लिए बनाता हूँ वे?
विशेष
‘मॉन्टेस्क्यू : मॉन्टेस्क्यू फ्रांस के एक राजनैतिक विचारक, न्यायविद तथा उपन्यासकार थे। उन्होंने शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त दिया। वे फ्रांस में ज्ञानोदय (एनलाइटेनमेन्ट) के प्रख्यात प्रतिनिधि माने जाते हैं।
मिल : जे. एस. मिल एक सामाजिक दार्शनिक थे। ये व्यक्तिगत अधिकारों व स्वतंत्रता के पक्षधर थे। ऑन लिबर्टी इनकी प्रमुख पुस्तक थी।
शब्दार्थ
जीवनबद्ध – जीवन से बँधा हुआ
कंधे डालना – पराजय स्वीकार करना
अवलम्बित – निर्भर
कुव्वत – शक्ति या ताकत
बनैलापन – जंगलीपन
अलकस – आलस्य
कोलोसियम – रोम का नाट्यगृह
पर्जन्य – बादल
मज्जा – हड्डी के भीतर भरा हुआ द्रव पदार्थ
क्षितिज – जहाँ धरती और आकाश मिले हुए दिखाई दे
कणाद – एक ऋषि जो भूमि पर गिरे अन्न के कणों को एकत्र कर स्वयं के भोजन की व्यवस्था करते थे।
कृत होना – आभारी होना
बुत – मूर्ति
क्रमांक | शब्द | हिंदी अर्थ (व्याख्या) | अंग्रेजी अर्थ (English) | छत्तीसगढ़ी अर्थ (Chhattisgarhi) |
1 | जीवनबद्ध | जीवन से बंधा हुआ, बंधन में | Life-bound | जीवन से बंधे, बंधन में |
2 | मेहनतकश | कड़ी मेहनत करने वाला | Hardworking | मेहनती, कड़ी कमइया |
3 | बनैलेपन | आदिम या जंगली अवस्था | Primitiveness | जंगलीपन, पुरातन हालत |
4 | अलकस | आलस्य या सुस्ती | Laziness | आलस, सुस्ती |
5 | भूमंडल | पूरी पृथ्वी या संसार | Globe/Earth | धरती, संसार |
6 | विध्वंस | विनाश या नष्ट करना | Destruction | नाश, बरबादी |
7 | पुनर्निर्माण | फिर से निर्माण करना | Reconstruction | फेर से बनावट, नवनिर्माण |
8 | परिधि | घेरा या सीमा | Circumference/Boundary | घेरा, सीमा |
9 | व्यापकता | विस्तार या फैलाव | Vastness | फैलाव, विस्तार |
10 | उदयाचल | पूर्व दिशा का पर्वत (सूर्योदय स्थान) | Eastern mountain | उगय पहाड़, पूरब पहाड़ |
11 | अस्ताचल | पश्चिम दिशा का पर्वत (सूर्यास्त स्थान) | Western mountain | डूबय पहाड़, पछिम पहाड़ |
12 | क्षितिज | आकाश और धरती की मिलन रेखा | Horizon | क्षितिज, आकाश-धरती मिलन |
13 | प्रखर | तेज या तीव्र | Intense/Sharp | तेज, कड़क |
14 | उर्वरा | उपजाऊ या फलदायी | Fertile | उपजाऊ, फलदार |
15 | अवलंबित | निर्भर या आधारित | Dependent | निर्भर, आधार लेहे |
16 | दलदल | कीचड़ भरी जगह | Marsh/Swamp | दलदल, कीचड़ |
17 | सुरभि | सुगंध या महक | Fragrance | महक, सुगंध |
18 | मदहोश | नशे में डूबा | Intoxicated | नशा में, मदमस्त |
19 | पाताल | रसातल या गहराई | Underworld | पाताल, गहराई |
20 | संहार | विनाश या मारना | Annihilation | संहार, नाश |
पाठ से
- मजदूरों के प्रति सहानुभूति क्यों रखनी चाहिए?
उत्तर – मजदूरों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए क्योंकि वे निरंतर मेहनत करके सभ्यता का निर्माण करते हैं, लेकिन स्वयं शोषित और अभावग्रस्त जीवन जीते हैं। पाठ में मजदूर खुद को दुनिया का आधार बताता है, जो निर्माण करता है लेकिन खुद भूखा-नंगा रहता है, कारखानों में घायल होता है और परिवार के साथ नरक जैसा जीवन बिताता है। वे दुनिया को चलाते हैं, लेकिन उनके योगदान की कद्र नहीं होती।
- मजदूर के पारिवारिक जीवन का हाल कैसा होता है? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – पाठ के अनुसार, मजदूर का पारिवारिक जीवन अत्यंत दयनीय और नारकीय होता है। उनके बच्चों के पास रहने के लिए कोई उचित घर-द्वार नहीं होता। वे मिल की दीवारों की आड़ में, धुएँ के बादलों की घनी छाया के नीचे टाट, फूस और टिन से बनी झोपड़ियों में रहते हैं। यह दुनिया घिनौनी, पापमय और शर्मनाक होती है, जहाँ जीवन किसी नरक के कीड़े के समान होता है। इन झोपड़ियों में दिन-रात की मजदूरी से थका-हारा जीवन बिना किसी सुख के टकराकर टूट जाता है।
- ‘दुनिया में क्या नहीं? कौन-सी चीज मैंने अपने हाथों पैदा नहीं की? इस कथन को ध्यान में रखकर मजदूरों के द्वारा किए गए निर्माण कार्यों को अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर – इस कथन से स्पष्ट है कि दुनिया की लगभग हर भौतिक वस्तु मजदूरों के श्रम का परिणाम है। उनके द्वारा किए गए निर्माण कार्य अनंत हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
प्राकृतिक निर्माण – उन्होंने नदियों के प्रवाह को मोड़कर बड़े-बड़े जलाशय बनाए और दलदलों को सुखाकर खेती के लिए उपजाऊ जमीन तैयार की।
ऐतिहासिक स्मारक – मिस्र में गीज़ा और सक्कारा के विशाल पिरामिड, रोम का कोलोसियम और एथेंस के अरीना का निर्माण मजदूरों ने ही अपने हाथों से किया।
खनन – उन्होंने पाताल तक गहरी खदानें खोदकर लोहा, कोयला, सोना, चाँदी और हीरे जैसे बहुमूल्य खनिज निकाले।
आधुनिक विकास – मजदूरों ने ही जंगल काटकर गाँव, कस्बे और शहर बसाए। उन्होंने कारखानों और मिलों का निर्माण किया। उन्होंने ही भाप के इंजन, रेलगाड़ी, विशाल समुद्री जहाज और हवाई जहाज बनाए।
अस्त्र-शस्त्र – विडंबना यह है कि उन्होंने तोप, बंदूकें, गोले-बारूद और बम जैसे संहार के साधन भी अपने मालिकों के आदेश पर बनाए हैं।
संक्षेप में, सुई से लेकर जहाज तक, सब कुछ मजदूरों के ही हाथों का जादू है।
- “दिन सोता था रात सोती थी, पर मैं जागता था।” का आशय क्या है?
उत्तर – इस पंक्ति का आशय है कि मजदूर निरंतर मेहनत करता रहता है, जबकि दुनिया (दिन और रात) आराम करती है। पाठ में यह पिरामिड निर्माण के संदर्भ में है, जहाँ मजदूर रात-दिन जागकर चट्टानें ढोता था, नील नदी की धारा पर काम करता था, जबकि बाकी दुनिया सो रही थी। यह मजदूर की अथक परिश्रम और त्याग को दर्शाता है।
- पाठ में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें मजदूरों की विवशता दिखाई देती है?
उत्तर – “मैं जमीन की छाती फाड़-फाड़कर मैंने चमकता, लोहे सा कठोर हीरा निकाला… पर उसकी चमक के नीचे मेरी काली अँधियारी जिंदगी है।”
“मेरी खोदी जमीन को घेरे शेर से खूँखार कुत्ते खड़े रहते हैं… अगर मैं अपनी जगह बुत बनकर खड़ा न रहा होता तो…”
“मुझे उस फसल को काटकर… एक दाना भी छूना मेरे लिए मौत का परवाना था…”
“जब मशीन की चपेट में आकर मैं अपाहिज हो जाता, मेरा नाम रजिस्टर से खारिज कर दिया जाता।”
“मैं भूखा और नंगा हूँ पर क्या ये मिलें… मेरा पेट नहीं भर सकतीं…”
“पिस्सू और खटमल तक की जानें निकलते देख एक बार घबरा उठनेवाला मैं दानव की भाँति… संहार के साधन सिरजाता जा रहा हूँ…”
- निर्माण के प्रति मजदूरों की निरंतर प्रतिबद्धता किन-किन बातों में जाहिर होती है?
उत्तर – निर्माण के प्रति मजदूरों की निरंतर प्रतिबद्धता निम्नलिखित बातों से जाहिर होती है:
कभी हार न मानना – वे कहते हैं, “जमाने ने करवट ली है पर मैंने कभी जमीन से पीठ नहीं लगाई, सुस्ताने के लिए कभी फावड़े नहीं टिकाए।”
जिम्मेदारी का एहसास – वे जानते हैं कि अगर उन्होंने काम छोड़ दिया (“कंधे डाल दूँ”) तो दुनिया लड़खड़ाकर गिर पड़ेगी। इसलिए वे कभी ऐसा नहीं करेंगे।
रचनात्मक दृष्टिकोण – उनका संकल्प है, “मैंने निरंतर निर्माण किया है, विध्वंस न करूँगा। यदि करना हुआ तो पुनर्निर्माण करूँगा।”
अथक ऊर्जा – निर्माण कार्य के लिए उन्हें कभी थकान या आलस्य महसूस नहीं होता, बल्कि उनका रोम-रोम फड़कता रहता है।
पाठ से आगे
- मजदूर नहीं होते तो हमारी दुनिया के विकास कार्यों का क्या होता? कल्पना कर अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – यदि मजदूर नहीं होते, तो हमारी दुनिया का विकास संभव ही नहीं होता। हम आज भी शायद आदिमानव जैसा जीवन जी रहे होते। हमारे पास न तो रहने के लिए पक्के घर होते, न पहनने के लिए कारखानों में बने कपड़े। सड़कें, पुल, रेलगाड़ियाँ और हवाई जहाज केवल कल्पना बनकर रह जाते। खेतों में अनाज नहीं उगता और हम भोजन के लिए भटकते रहते। स्कूल, अस्पताल, और बड़ी-बड़ी इमारतें कभी बन ही नहीं पातीं। संक्षेप में, सभ्यता का पहिया थम जाता और मानव प्रगति रुक जाती।
- आज भी देश-विदेशों में कई जगहों पर जानवरों की लड़ाइयों का आयोजन किया जाता है। इन लड़ाइयों में कई बार जानवरों व इंसानों की मृत्यु तक हो जाती है। क्या इस प्रकार के आयोजन उचित है? अपने विचार तर्क सहित दीजिए।
उत्तर – इस प्रकार के आयोजन बिलकुल उचित नहीं हैं। तर्क: पहला, यह क्रूरता है – जानवरों को जबरन लड़ाया जाता है, जिससे उन्हें पीड़ा होती है और मृत्यु हो सकती है, जो पशु अधिकारों का उल्लंघन है। दूसरा, इंसानों की सुरक्षा खतरे में पड़ती है, जैसा स्पेन के साँड़ लड़ाई में होता है। तीसरा, यह मनोरंजन की बजाय हिंसा को बढ़ावा देता है, जो समाज को असंवेदनशील बनाता है। चौथा, नैतिक रूप से गलत है क्योंकि यह प्राचीन क्रूर परंपराओं को जारी रखता है, जबकि आधुनिक समाज में करुणा और कानून महत्वपूर्ण हैं। इसके बजाय खेल या सांस्कृतिक आयोजन अपनाए जा सकते हैं।
- फैक्ट्री में काम करते हुए घायल / दुर्घटनाग्रस्त (दिव्यांग) मजदूरों के प्रति मालिकों की क्या – क्या जिम्मेदारियाँ होनी चाहिए?
उत्तर – चिकित्सा सहायता प्रदान करना और इलाज का पूरा खर्च वहन करना।
मुआवजा देना, जैसे वेतन हानि की भरपाई और स्थायी विकलांगता के लिए पेंशन।
पुनर्वास सुनिश्चित करना, जैसे वैकल्पिक रोजगार या प्रशिक्षण।
परिवार को सहायता, जैसे शिक्षा या आर्थिक मदद।
दुर्घटना रोकने के लिए सुरक्षा उपायों को मजबूत करना।
कानूनी जवाबदेही निभाना, जैसे जांच और रिपोर्टिंग।
- कश्मीर का नाम सुनते ही आपके मन में उसकी क्या-क्या छवियाँ उभरती हैं? चर्चा करके लिखिए।
उत्तर – कश्मीर का नाम सुनते ही मन में स्वर्ग जैसी प्राकृतिक सुंदरता की छवियाँ उभरती हैं।
चर्चा: पहला, बर्फीली पहाड़ियाँ, हरी घाटियाँ और दल झील की छवि, जहाँ नावें तैरती हैं। दूसरा, केसर की क्यारियाँ, सेब के बाग और फूलों की महक। तीसरा, झेलम नदी के किनारे की हरियाली और शांत वातावरण। चौथा, सांस्कृतिक छवि जैसे शिकारा सवारी, कश्मीरी पंडितों की परंपराएँ और लोक संगीत। पाठ में भी कश्मीर की नम दलदल को सुंदर बनाने का जिक्र है, जो आनंद की लहरें उठाता है। हालाँकि, राजनीतिक अशांति की छवि भी आती है, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य प्रमुख है।
- प्राचीन काल में गृहिणियों को ऋषियों द्वारा दी जाने वाली हिदायत ‘साम्राज्ञी द्विपदश्चतुष्पदः‘ में मजदूरों ( इंसानों) की साम्यता पशुओं से करना क्या सही था? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – नहीं, यह बिल्कुल सही नहीं था। इंसानों (द्विपदों) की तुलना पशुओं (चतुष्पदों) से करना और दोनों पर एक समान अधिकार देना, मजदूरों का घोर अपमान और अमानवीयकरण है।
तर्क: प्रत्येक मनुष्य का अपना सम्मान और गरिमा होती है। किसी भी इंसान को किसी की संपत्ति नहीं समझा जा सकता, जैसे जानवर समझे जाते हैं। यह कथन उस समय की सामाजिक व्यवस्था को दर्शाता है जहाँ दासों और मजदूरों को संपत्ति माना जाता था और उनके कोई मानवीय अधिकार नहीं थे। यह एक अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण है जो आधुनिक मानवीय मूल्यों के पूरी तरह खिलाफ है।
- ‘पिस्सू और खटमल तक की जानें निकलते देखकर एक बार घबरा उठनेवाला मैं दानव की भाँति दिन-रात चलती मशीनों से संहार के साधन सिरजाता जा रहा हूँ क्योंकि मेरा कारखाना हथियारों का है, तोप – बँदूकों का, गोले – बारूद का बम का।”
(क) लेखक ने इन पंक्तियों में किस वैश्विक समस्या की ओर संकेत किया है? यदि यह समस्या ऐसे ही बढ़ती रही तो उससे मानव के अस्तित्व को क्या-क्या खतरे हो सकते हैं?
उत्तर – लेखक ने हथियारों के निर्माण और युद्ध की वैश्विक समस्या की ओर संकेत किया है, जहाँ मजदूर संहार के साधन बनाते हैं, जबकि खुद करुणावान हैं। यदि यह बढ़ती रही तो खतरे: बड़े पैमाने पर मौतें, पर्यावरण विनाश, परमाणु युद्ध से मानवता का अंत, आर्थिक तबाही, शरणार्थी संकट, और मानसिक आघात।
(ख) इन खतरों को दूर करने के लिए विश्व स्तर पर क्या-क्या निर्णय लेने होंगे?
उत्तर – इन खतरों को दूर करने के लिए विश्व स्तर पर निम्नलिखित निर्णय लेने होंगे:
- निरस्त्रीकरण संधियाँ: सभी देशों को मिलकर विनाशकारी हथियारों को नष्ट करने और नए हथियार बनाने पर रोक लगाने के लिए प्रभावी संधियाँ करनी चाहिए।
- शांति और कूटनीति को बढ़ावा: देशों को अपने विवाद युद्ध के बजाय बातचीत और कूटनीति से सुलझाने चाहिए।
- हथियारों के व्यापार पर रोक: हथियारों की अवैध और वैध खरीद-फरोख्त पर सख्त अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण लगाना होगा।
- शिक्षा और जागरूकता: लोगों को युद्ध के दुष्परिणामों और शांति के महत्व के बारे में शिक्षित करना होगा।
भाषा के बारे में
- निम्नलिखित दोनों वाक्यों को ध्यान से पढ़िए और समझिए –
(क) मैं मेहनतकश मजदूर हूँ।
(ख) मैंने वहाँ भी गोरी दुनिया का पेट भरा।
वाक्य ‘क’ को पढ़ने से आप पायेंगे कि उसका अर्थ आसानी से समझ आता है। इस प्रकार जिस वाक्य का साधारण शाब्दिक अर्थ और भावार्थ समान हो उसे ‘अभिधा’ शब्द शक्ति कहते हैं। इससे उत्पन्न भाव को ‘वाच्यार्थ’ भी कहते हैं।
वाक्य ‘ख’ में गोरी दुनिया अर्थात् गोरी रंग की दुनिया की बात न होकर गोरे लोगों की दुनिया अर्थात् यूरोप को लक्ष्य कर बात कही गई है। इसमें शब्द के वाच्यार्थ या मुख्यार्थ से भिन्न उसका अन्य अर्थ प्रकट होता है। इसमें उत्पन्न भाव को ‘लक्ष्यार्थ’ कहा जाता है और इस शब्द शक्ति को ‘लक्षणा’ कहते हैं।
निम्नलिखित वाक्यों में किस शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है, पहचानकर लिखिए-
(क) रमेश के कान नहीं है।
उत्तर – लक्षणा (लक्ष्यार्थ: रमेश सुनता नहीं या ध्यान नहीं देता)।
(ख) सीता गीत गाती है।
उत्तर – अभिधा (वाच्यार्थ: सीता गीत गाती है)।
(ग) मोहन बैल है।
उत्तर – लक्षणा (लक्ष्यार्थ: मोहन मेहनती या मूर्ख है)।
(घ) हमारी मिलों ने क्रांति की।
उत्तर – लक्षणा (लक्ष्यार्थ: मिलों में क्रांति हुई या मिलों ने क्रांति लाई)।
(ङ) चौकन्ना रहना अच्छी बात है।
उत्तर – लक्षणा (लक्ष्यार्थ: सतर्क रहना अच्छा है, चौकन्ना कुत्ते जैसी सतर्कता से)।
योग्यता विस्तार
- मिस्र स्थित गीज़ा का पिरामिड संसार के सात आश्चर्यों में से एक है जिसके निर्माण के समय ज्यादा सुविधा युक्त उपकरण एवं संसाधन न होते हुए भी मजदूरों के अथाह परिश्रम का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ये सात आश्चर्य कौन-कौन से हैं? इनके बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – प्राचीन दुनिया के सात आश्चर्य हैं:
- गीज़ा का महान पिरामिड (मिस्र) – फरो खुफु का मकबरा, 2580-2560 ईसा पूर्व निर्मित, मजदूरों द्वारा चट्टानें ढोकर बनाया गया; एकमात्र बचा हुआ आश्चर्य।
- बेबीलोन के लटकते उद्यान (इराक) – राजा नबूकदनेस्सर द्वारा बनाए, सिंचाई प्रणाली से हरे उद्यान; अब नष्ट।
- ओलंपिया में ज़्यूस की मूर्ति (ग्रीस) – सोने-हाथी दाँत की 40 फुट ऊँची मूर्ति, 435 ईसा पूर्व; आग से नष्ट।
- इफेसस में आर्टेमिस का मंदिर (तुर्की) – संगमरमर का विशाल मंदिर, 550 ईसा पूर्व; कई बार नष्ट।
- हैलिकारनासस का मकबरा (तुर्की) – रानी आर्टेमिसिया द्वारा बनाया, 351 ईसा पूर्व; भूकंप से नष्ट।
- रोड्स का कोलोसस (ग्रीस) – सूर्य देव हेलियोस की 100 फुट मूर्ति, 280 ईसा पूर्व; भूकंप से गिरा।
- अलेक्जेंड्रिया का प्रकाश स्तंभ (मिस्र) – जहाजों के लिए 400 फुट ऊँचा, 280 ईसा पूर्व; भूकंप से नष्ट। ये मानव इंजीनियरिंग के चमत्कार हैं, जो प्राचीन निर्माण कौशल दिखाते हैं।
- अपने आसपास रहने वाले किसी मजदूर से बातचीत करके उसकी पूरे दिन की दिनचर्या के बारे में पता कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें
- मजदूरों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए सरकार द्वारा क्या-क्या योजनाएँ बनाई गई है? चर्चा करके सूची तैयार कीजिए।
उत्तर – भारत सरकार ने मजदूरों के जीवन स्तर सुधारने के लिए कई योजनाएँ बनाई हैं:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA): ग्रामीण मजदूरों को 100 दिन का रोजगार।
- प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना: असंगठित मजदूरों के लिए पेंशन।
- ई-श्रम पोर्टल: असंगठित मजदूरों का पंजीकरण और लाभ।
- अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना: दुर्घटना बीमा।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आयुष्मान भारत): स्वास्थ्य कवर।
- श्रम कानून: न्यूनतम मजदूरी, काम के घंटे, सुरक्षा। ये योजनाएँ रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा प्रदान करती हैं, लेकिन क्रियान्वयन में सुधार की जरूरत है।
पाठ में आए विविध स्थानों के बारे में थोड़ा और पढ़िए-
गीजा
विश्व के सात आश्चर्यों में से एक, मिस्र के पिरामिड के लिए प्रसिद्ध स्थल, गीजा के पिरामिड सर्वाधिक प्राचीन भव्य और अत्यधिक उन्नत तकनीक से बने इन पिरामिडों को लगभग ढाई हजार वर्ष ईसा पूर्व बनाया गया था। 450 फीट की ऊँचाई तक अत्यंत विशाल पत्थरों को कैसे पहुँचाया गया होगा, यह आज भी नहीं जाना जा सका है। मानवीय श्रम का अद्भुत उदाहरण जो ऐसे युग में बना जब मशीनें नहीं हुआ करती थीं।
सक्कारा
मिस्र स्थित इस स्थल पर भी प्राचीन पिरामिडों के अवशेष हैं। सक्कारा के पिरामिड सीढ़ीदार हैं जबकि गीजा के समतल पार्श्व वाले त्रिभुजाकार हैं।
कोलोसियम
रोम के इटली शहर स्थित इस ‘रंगशाला’ को ईस्वी सन् 70 में रोम के शासकों ने बनाया था जो स्थापत्य कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण था। यहाँ योद्धा अपनी युद्ध कला और मल्ल विद्या का प्रदर्शन करते थे। हिंसक पशुओं से भी उनके मुकाबले आयोजित किए जाते थे। अब यह खंडहर रूप में पर्यटकों के लिए एक दर्शनीय स्थल है।
कोलार
भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह स्थान बैंगलोर से 60 मील की दूरी पर है। यहाँ सोने की खाने हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न
पाठ में मजदूर खुद को किसकी इकाई कहता है?
- जीवनबद्ध श्रम शक्ति की
- सभ्यता की
- निर्माण की
- विध्वंस की
उत्तर – A
मजदूर के अनुसार, सभ्यता की सीढ़ियों पर किसकी चोट है?
- फावड़े की
- हथौड़े की
- बाजू की
- कंधे की
उत्तर – B
मजदूर कभी क्या नहीं करता?
- निर्माण
- सुस्ताना
- पुनर्निर्माण
- मेहनत
उत्तर – B
मजदूर के कंधों पर क्या है?
- एटलस का भार
- भूमंडल का भार
- नदी का बहाव
- पहाड़ का भार
उत्तर – B
मजदूर ने नदियों के बहाव रोककर क्या बनाए?
- पुल
- ह्रद (झीलें)
- क्यारियाँ
- दलदल
उत्तर – B
कश्मीर की भूमि को सुंदर बनाने का श्रेय किसे दिया गया है?
- कल्हण को
- मजदूर को
- झेलम को
- केसर को
उत्तर – B
मजदूर ने पिरामिड बनाने के लिए चट्टानें कहाँ से उठाईं?
- नील नदी से
- झेलम से
- समुंदर से
- पहाड़ से
उत्तर – A
हीरा निकालने वाली खानों में मजदूर की जिंदगी कैसी है?
- चमकदार
- काली अँधियारी
- सुंदर
- अमीर
उत्तर – B
रोम का कोलोसियम किसने बनाया?
- राजाओं ने
- मजदूर ने
- शेरों ने
- साँड़ों ने
उत्तर – B
अफ्रीका से मजदूर को कहाँ ले जाया गया?
- कश्मीर
- अमेरिका
- रोम
- स्पेन
उत्तर – B
मजदूर फसल काटकर क्या नहीं कर सकता?
- राशि बनाना
- एक दाना छूना
- बोना
- जोतना
उत्तर – B
प्राचीन ऋषियों ने मजदूर को किसके साथ रखा?
- राजाओं के
- चौपायों के
- देवताओं के
- परिवार के
उत्तर – B
कारखानों में मजदूर अपाहिज होने पर क्या होता है?
- नाम रजिस्टर से खारिज
- पदोन्नति
- छुट्टी
- पुरस्कार
उत्तर – A
मजदूर का पारिवारिक जीवन कैसा है?
- सुखी
- पापमय घिनौना
- अमीर
- आरामदायक
उत्तर – B
बैलगाड़ी से क्या बनी?
- रेल
- जहाज
- हवाई जहाज
- मोटर
उत्तर – A
मजदूर हथियार बनाते हुए खुद को क्या कहता है?
- दानव
- मसीहा
- तेली का बैल
- एटलस
उत्तर – C
मजदूर के हाथों में क्या जादू है?
- संहार का
- निर्माण का
- विध्वंस का
- आलस्य का
उत्तर – B
दुनिया में क्या नहीं जो मजदूर ने नहीं बनाई?
- सुई से जहाज तक
- फसल से सोना तक
- नगर से मिल तक
- सभी
उत्तर – D
मजदूर क्यों नंगा और भूखा है?
- मेहनत न करने से
- बनाई चीजें उसके लिए नहीं
- आलस्य से
- अमीर होने से
उत्तर – B
पाठ का मुख्य संदेश क्या है?
- मजदूर का शोषण
- मजदूर का निर्माण योगदान
- दोनों
- कोई नहीं
उत्तर – C
एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: सभ्यता के विकास का आधार मजदूर किसे मानता है?
उत्तर – मजदूर सभ्यता के विकास का आधार अपने हथौड़े की चोट को मानता है, जो पाषाण युग से लेकर आज तक निरंतर चलती रही है।
प्रश्न 2: मजदूर दुनिया के प्रति अपनी कौन-सी जिम्मेदारी समझता है?
उत्तर – मजदूर समझता है कि यदि वह कंधे डाल देगा (काम करना छोड़ देगा) तो यह दुनिया लड़खड़ाकर गिर पड़ेगी, इसलिए निरंतर निर्माण करना ही उसकी जिम्मेदारी है।
प्रश्न 3: मजदूर ने धरती को उपजाऊ बनाने के लिए प्रकृति के साथ क्या किया?
उत्तर – मजदूर ने धरती को उपजाऊ बनाने के लिए नदियों के तेज बहाव को रोका और समुद्र के जल को सुखाकर दलदली भूमि को ठोस जमीन बनाया।
प्रश्न 4: गीज़ा के पिरामिडों का निर्माण करते समय मजदूर की क्या स्थिति थी?
उत्तर – गीज़ा के पिरामिडों का निर्माण करते समय जब दिन और रात सो रहे थे, तब भी मजदूर जागकर नील नदी से चट्टानें अपनी छाती पर ढो रहा था।
प्रश्न 5: दक्षिण अफ्रीका में हीरा निकालते समय मजदूर को किन खौफनाक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है?
उत्तर – दक्षिण अफ्रीका में हीरा निकालते समय मजदूर को शेर जैसे खूँखार कुत्तों के पहरे में काम करना पड़ता था, जो उसकी हर हरकत पर छलाँग मारने को तैयार रहते थे।
प्रश्न 6: रोम के कोलोसियम का निर्माण किस क्रूर उद्देश्य के लिए किया गया था?
उत्तर – रोम के कोलोसियम का निर्माण अमीर लोगों के मनोरंजन के लिए किया गया था, जहाँ मजदूरों जैसे गरीबों को शेरों से लड़ना होता था।
प्रश्न 7: मजदूर को अफ्रीका से अमेरिका कैसे ले जाया गया था?
उत्तर – मजदूर को अफ्रीका के जंगलों से डाके, चोरी और साजिश के द्वारा पकड़कर जबरदस्ती एक अनजानी दुनिया में समुद्र पार ले जाया गया था।
प्रश्न 8: खेतों में अन्न पैदा करने के बावजूद मजदूर की क्या विडंबना थी?
उत्तर – खेतों में अन्न का अंबार लगा देने के बावजूद मजदूर की यह विडंबना थी कि उसके लिए फसल का एक दाना छूना भी मौत का परवाना था और उसे भूखा रहना पड़ता था।
प्रश्न 9: प्राचीन काल में मजदूरों को किसके समान समझा जाता था?
उत्तर – प्राचीन काल में मजदूरों को घर के मवेशियों (जानवरों) के समान समझा जाता था और जमीन के साथ ही उन्हें भी बेच दिया जाता था।
प्रश्न 10: ‘साम्राज्ञी द्विपदश्चतुष्पदः’ कहकर ऋषियों ने मजदूर को किसके बराबर स्थान दिया?
उत्तर – ‘साम्राज्ञी द्विपदश्चतुष्पदः’ कहकर ऋषियों ने मजदूर (दोपायों) को चौपायों (जानवरों) के बराबर का स्थान दिया था।
प्रश्न 11: कारखाने में अपाहिज हो जाने पर मजदूर के साथ क्या सलूक किया जाता था?
उत्तर – कारखाने में मशीन की चपेट में आकर अपाहिज हो जाने पर मजदूर का नाम रजिस्टर से खारिज कर दिया जाता था और उसे सड़क के कूड़े में फेंक दिया जाता था।
प्रश्न 12: पाठ के अनुसार, मजदूर के बाल-बच्चों का जीवन कैसा था?
उत्तर – पाठ के अनुसार, मजदूर के बाल-बच्चे मिल की दीवारों की आड़ में टाट-फूस-टिन से बनी दुनिया में एक घिनौना और नारकीय जीवन जीते थे।
प्रश्न 13: रेल, जहाज और मोटर बनाने के बाद भी मजदूर उनका उपयोग क्यों नहीं कर पाता?
उत्तर – रेल, जहाज और मोटर बनाने के बाद भी मजदूर उनका उपयोग इसलिए नहीं कर पाता क्योंकि उन पर उसका कोई अधिकार नहीं होता और वह एक मिनट के लिए भी उन्हें अपना कहकर भोग नहीं सकता।
प्रश्न 14: स्वभाव से दयालु होते हुए भी मजदूर को संहार के साधन क्यों बनाने पड़ते हैं?
उत्तर – एक पिस्सू के मरने पर भी घबरा जाने वाला मजदूर, अपनी रोजी-रोटी के लिए मालिकों के आदेश पर तोप, बंदूक और बम जैसे संहार के साधन बनाने के लिए विवश है।
प्रश्न 15: मजदूर ने अपनी तुलना ‘तेली के बैल’ से क्यों की है?
उत्तर – मजदूर ने अपनी तुलना ‘तेली के बैल’ से इसलिए की है क्योंकि जैसे बैल बिना सोचे-समझे अपने मालिक के इशारे पर चलता रहता है, वैसे ही वह भी अपने मालिकों के आदेश पर बिना सवाल किए काम करता जाता है।
प्रश्न 16: मजदूर अपनी किस शक्ति को पहचान नहीं पा रहा है?
उत्तर – मजदूर अपने उन हाथों की शक्ति को नहीं पहचान पा रहा है जिनमें बिना खून बहाए मैदानों को सुला देने का जादू और मसीहा का असर है।
प्रश्न 17: ‘यह सब कुछ मेरे लिए क्यों नहीं?’ – इस प्रश्न के माध्यम से मजदूर क्या कहना चाहता है?
उत्तर – इस प्रश्न के माध्यम से मजदूर यह कहना चाहता है कि जब दुनिया की हर चीज उसी ने बनाई है तो फिर वह स्वयं उन सभी सुख-सुविधाओं से वंचित, भूखा और नंगा क्यों है?
प्रश्न 18: कारखानों द्वारा उगले जा रहे अमित माल में मजदूर का कितना हिस्सा है?
उत्तर – कारखानों द्वारा उगले जा रहे अमित माल में मजदूर का एक तिनके के बराबर भी हिस्सा नहीं है।
प्रश्न 19: मजदूर अपनी वर्तमान दयनीय स्थिति का क्या कारण सोचता है?
उत्तर – मजदूर सोचता है कि कभी उसमें दानव जैसी शक्ति और फौलाद जैसी नसें थीं, पर आज वह इतना निःसत्व, नगण्य और नंगा क्यों हो गया है।
प्रश्न 20: पाठ के अंत में मजदूर अपने मालिकों से क्या उत्तर माँगता है?
उत्तर – पाठ के अंत में मजदूर यह उत्तर माँगता है कि क्या जिन मिलों में वह खाने-पहनने का अपार सामान बनाता है, वे उसका पेट नहीं भर सकतीं और तन नहीं ढँक सकतीं?
प्रश्न और उत्तर (40-50 शब्दों में)
- प्रश्न – मजदूर खुद को दुनिया का आधार क्यों मानता है?
उत्तर – मजदूर खुद को दुनिया का आधार मानता है क्योंकि उसके बाजू पर जमाना टिका है, कंधों पर भूमंडल का भार है। यदि वह कंधे डाल दे तो दुनिया लड़खड़ा जाएगी। वह निरंतर निर्माण करता है, विध्वंस नहीं, और पुनर्निर्माण में थकान नहीं महसूस करता।
- प्रश्न – मजदूर ने प्राचीन काल में क्या-क्या निर्माण किए?
उत्तर – मजदूर ने नदियों के बहाव रोककर हृद बनाए, दलदलों को उपजाऊ भूमि में बदला, कश्मीर की दलदल भरी भूमि को सुंदर बनाया, पिरामिड खड़े किए, खानों से धातुएँ निकालीं और कोलोसियम जैसे निर्माण किए।
- प्रश्न – खानों में मजदूर की स्थिति कैसी है?
उत्तर – खानों में मजदूर पाताल में उतरकर पत्थर काटता है, लेकिन उसकी जिंदगी काली अँधियारी है। कुत्ते उसे घेरते हैं, कोई हरकत पर छलाँग मारते हैं। हीरे की चमक उसके लिए नहीं, बल्कि अपमान और विवशता है।
- प्रश्न – गुलामी में मजदूर की भूमिका क्या थी?
उत्तर – अफ्रीका से खींचकर अमेरिका ले जाया गया मजदूर गोरी दुनिया का पेट भरता था, अपना पेट काटकर। वह इमारतें खड़ी करता था, लेकिन खुद झोपड़ियों में रहता। फसल उगाता लेकिन एक दाना छूना मौत का परवाना था।
- प्रश्न – प्राचीन समाज में मजदूर की संज्ञा क्या थी?
उत्तर – प्राचीन काल में मजदूर को घर के मवेशियों जैसा माना जाता था। ऋषि गृहिणी को दया करने की ताकीद देते थे, उसे दोपायों-चौपायों की साम्राज्ञी कहते। मजदूर भूमि के साथ बिकता था, उपज खाने का हक नहीं था।
- प्रश्न – कारखानों में मजदूर का जीवन कैसा है?
उत्तर – कारखानों में मजदूर रात-दिन पसीना बहाता है, लेकिन मशीन की चपेट में अपाहिज होने पर रजिस्टर से नाम खारिज हो जाता है। मृत्यु पर कोई जवाबदेही नहीं। परिवार टाट-फूस की झोपड़ियों में घिनौना जीवन जीता है।
- प्रश्न – मजदूर ने आधुनिक निर्माण में क्या योगदान दिया?
उत्तर – मजदूर ने बैलगाड़ी से रेल, नाव से जहाज, भाप से इंजन बनाए। वह हवाई जहाज बनाता है लेकिन खुद भोग नहीं सकता। लोहा, कोयला, तेल खोदता है, लेकिन उसके लिए खूनी लड़ाइयाँ होती हैं।
- प्रश्न – हथियार निर्माण में मजदूर की विवशता क्या है?
उत्तर – मजदूर पिस्सू-खटमल की मौत पर घबराने वाला है, लेकिन दानव की भाँति हथियार बनाता है। वह जानता है कि ये हथियार असंख्य लोगों को उड़ाएँगे, लेकिन तेली के बैल जैसा चलता जाता है।
- प्रश्न – मजदूर अपनी शक्ति क्यों नहीं पहचानता?
उत्तर – मजदूर आसमान पर पुल बाँधने वाला है, उसके हाथों में मैदानों को सुलाने का जादू है। लेकिन वह अपनी कुव्वत नहीं जानता, मृत्यु के साधनों को बनाते हुए भी मसीहा का असर नहीं देखता।
- प्रश्न – पाठ में मजदूर की अंतिम पूछ क्या है?
उत्तर – मजदूर पूछता है कि दुनिया में क्या नहीं जो उसने नहीं बनाई, लेकिन सब उसके लिए क्यों नहीं? वह भूखा-नंगा क्यों है, जबकि मिलें अपार सामान बनाती हैं? उत्तर कौन देगा – वह या जिनके लिए बनाता है?
विस्तृत प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: मजदूर स्वयं को सभ्यता का निर्माता कैसे सिद्ध करता है? पाठ से उदाहरण देते हुए विस्तार से समझाइए।
उत्तर – मजदूर स्वयं को सभ्यता का निर्माता सिद्ध करते हुए कहता है कि मनुष्य के जंगलीपन से लेकर आज की शिष्ट दुनिया तक हर सीढ़ी पर उसके हथौड़े की चोट है। उसने नदियों के बहाव को मोड़कर जलाशय बनाए, दलदलों को सुखाकर उपजाऊ खेत तैयार किए, और मिस्र के पिरामिडों से लेकर रोम के कोलोसियम तक का निर्माण किया। यह सब उसके अथक और निरंतर श्रम का ही परिणाम है।
प्रश्न 2: “मैं तो तेली का बैल हूँ, मुझे कहीं भी नाथ दो, मैं चलता ही जाऊँगा।” इस पंक्ति में मजदूर की किस गहरी विवशता और मानसिक स्थिति का वर्णन है?
उत्तर – इस पंक्ति में मजदूर की गहरी विवशता झलकती है, जहाँ वह अपनी तुलना एक ऐसे बैल से करता है जिसे अपनी इच्छा या दिशा का कोई ज्ञान नहीं होता। वह मालिकों के आदेश पर बिना कोई प्रश्न किए, यंत्रवत काम करता जाता है, चाहे वह निर्माण का कार्य हो या विनाश के लिए हथियार बनाने का। यह उसकी चेतना के दमन और केवल आज्ञापालन तक सीमित हो जाने की पीड़ा को दर्शाता है।
प्रश्न 3: निर्माण और विध्वंस के प्रति मजदूर का क्या दृष्टिकोण है और वह विनाशकारी कार्यों में क्यों शामिल होता है?
उत्तर – मजदूर का मूल स्वभाव निर्माण करना है और वह कहता है, “मैंने निरंतर निर्माण किया है, विध्वंस न करूँगा।” लेकिन अपनी रोजी-रोटी की मजबूरी के कारण उसे अपने मालिकों के लिए तोप, बंदूक और बम जैसे संहार के साधन भी बनाने पड़ते हैं। वह स्वभाव से एक पिस्सू की मौत पर भी घबरा जाता है, लेकिन अपनी विवशता के कारण विनाश के इस उद्योग का हिस्सा बनने को मजबूर है।
प्रश्न 4: पाठ में मजदूर की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का वर्णन किस प्रकार किया गया है? प्राचीन काल से आधुनिक काल तक उसमें क्या समानताएँ हैं?
उत्तर – पाठ के अनुसार, मजदूर की आर्थिक और सामाजिक स्थिति हर काल में दयनीय रही है। प्राचीन काल में उसे जमीन के साथ पशुओं की तरह बेचा जाता था (‘द्विपदश्चतुष्पदः’)। आधुनिक युग में भी कारखाने में अपाहिज होने पर उसे कूड़े की तरह फेंक दिया जाता है। दोनों ही कालों में समानता यह है कि वह धन पैदा करने के बावजूद भूखा, नंगा और अधिकारों से वंचित रहता है।
प्रश्न 5: “पर यह सब कुछ मेरे लिए क्यों नहीं?” मजदूर के इस अंतिम प्रश्न में कौन-सी पीड़ा, आश्चर्य और विद्रोह की भावना छिपी है?
उत्तर – इस प्रश्न में मजदूर की सदियों की पीड़ा, गहरा आश्चर्य और एक सुप्त विद्रोह का भाव छिपा है। वह चकित है कि दुनिया की हर सुख-सुविधा का सृजन करने के बाद भी वह स्वयं एक तिनके का भी अधिकारी नहीं है। यह प्रश्न केवल एक सवाल नहीं, बल्कि उस पूरी व्यवस्था पर एक नैतिक आरोप है जो उसके श्रम का शोषण करती है और उसे उसके मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखती है।

