जीवन परिचय – रामधारी सिंह ‘दिनकर‘
आधुनिक युग के वीर रस के श्रेष्ठ कवि के रूप में स्थापित रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 23 सितम्बर 1908 को बिहार के मुँगेर जिले के सिमरिया घाट में हुआ था। वे बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष रहे। उन्होंने भारत सरकार के हिंदी सलाहकार (1965 से 1971 तक) के रूप में भी कार्य किया। वे छायावादोत्तर कवियों में पहली पीढ़ी के माने जाते हैं। उनकी कविताओं में ओज, आक्रोश व क्रान्ति की पुकार है। उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा जाता है। उनकी प्रमुख कृतियाँ कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, संस्कृति के चार अध्याय, परशुराम की प्रतीक्षा, आत्मजयी व उर्वशी आदि रही हैं। उन्हें अपनी रचनाओं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार व भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया, उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया।
कविता परिचय
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता जनतंत्र का जन्म 1950 में संविधान लागू होने के समय लिखी गई थी। यह कविता आमजन में निहित शक्ति से हमारा परिचय करवाती है और आमजनता के हाथ में शासन सूत्र सौंप देने का आह्वान करती है।
जनतंत्र का जन्म
सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता? हाँ मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े पाले की कसक, सदा सहने वाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हों चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द सहने वाली।
जनता? हाँ, लम्बी-बड़ी जीभ की वही कसम,
“जनता सचमुच ही बड़ी वेदना सहती है।”
सो ठीक, मगर आखिर इस पर जनमत क्या है?
है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?
मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में
अथवा कोई दुधमुहीं जिसे बहलाने के
जंतर-मंतर सीमित हो चार खिलौनों में।
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटी चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
साँसों के बल से ताज़ हवा में उड़ता है
जनता की रोके राह समय में ताब कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार बीता,
गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं,
यह और नहीं कोई जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।
सबसे विराट् जनतंत्र जगत् का आ पहुँचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो
अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिए तू किसे ढूँढता है मूरख,
मंदिरों, राज प्रासादों में तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगे, खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं,
धूसरता सोने से शृंगार सजाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
कविता का भावार्थ –
सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
भावार्थ: कवि कहते हैं कि सदियों से जो जनता (राख) दबी-कुचली और शांत थी, अब उसमें चेतना जाग उठी है। साधारण मिट्टी (आम जनता) अब सोने का ताज पहनकर गर्व से इतरा रही है, क्योंकि अब शासन की बागडोर उसी के हाथ में आने वाली है। समय बदल रहा है, यह समय के रथ के पहियों की गड़गड़ाहट से सुनो और सिंहासन पर बैठे शासकों को चेतावनी देते हुए कवि कहते हैं कि अपना सिंहासन खाली कर दो, क्योंकि अब जनता का शासन आ रहा है।
अगली चार पंक्तियाँ:
जनता? हाँ मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े पाले की कसक, सदा सहने वाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हों चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द सहने वाली।
भावार्थ: कवि प्रश्न करते हैं कि यह जनता कौन है? और फिर स्वयं उत्तर देते हैं कि हाँ, यह वही भोली-भाली जनता है जो मिट्टी की मूरतों की तरह चुपचाप सब कुछ सहती रही है। यह वही जनता है जो हमेशा सर्दी और पाले की पीड़ा चुपचाप सहन करती आई है। और जब शोषक वर्ग (साँप के रूप में) उसके शरीर के हर अंग को चूस रहा था, तब भी उसने कभी अपना मुँह खोलकर अपने दर्द को बयाँ नहीं किया।
अगली चार पंक्तियाँ:
जनता? हाँ, लम्बी-बड़ी जीभ की वही कसम,
“जनता सचमुच ही बड़ी वेदना सहती है।”
सो ठीक, मगर आखिर इस पर जनमत क्या है?
है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?
भावार्थ: कवि फिर से जनता को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि हाँ, यह वही जनता है जिसके नाम पर नेता और शासक बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और कसमें खाते हैं। वे कहते हैं कि यह माना जाता है कि जनता बहुत पीड़ा सहती है। कवि कहते हैं कि यह बात तो ठीक है, लेकिन इस पीड़ा और शोषण पर स्वयं जनता का क्या विचार है? यह एक गहरा प्रश्न है कि आखिर जनता खुद इस बारे में क्या सोचती है और क्या कहती है।
अगली चार पंक्तियाँ:
मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में
अथवा कोई दुधमुहीं जिसे बहलाने के
जंतर-मंतर सीमित हों चार खिलौनों में।
भावार्थ: कवि कहते हैं कि शासक वर्ग जनता को एक बेजान फूल की तरह समझता है, जिसमें कोई भावना नहीं होती। वे सोचते हैं कि जब मन किया, इसे तोड़कर अपने कक्षों में सजा लिया। या फिर वे जनता को एक दूध पीती बच्ची समझते हैं, जिसे कुछ खिलौने देकर आसानी से बहलाया-फुसलाया जा सकता है।
अगली चार पंक्तियाँ:
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटी चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
भावार्थ: लेकिन कवि चेतावनी देते हैं कि जब यही जनता क्रोधित होकर अपनी भौंहें चढ़ा लेती है, तो भूकंप आ जाते हैं और बवंडर उठने लगते हैं। अर्थात, जब जनता विद्रोह करती है तो बड़े-बड़े साम्राज्य हिल जाते हैं। इसलिए, हे शासकों! रास्ते से हट जाओ, समय के बदलते पहियों की आवाज़ सुनो और अपना सिंहासन खाली कर दो, क्योंकि अब जनता आ रही है।
अगली चार पंक्तियाँ:
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
साँसों के बल से ताज़ हवा में उड़ता है
जनता की रोके राह समय में ताब कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
भावार्थ: कवि जनता की शक्ति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जनता की एक हुंकार से बड़े-बड़े महलों की नींव तक उखड़ जाती है। उसकी साँसों के ज़ोर से शासकों का ताज हवा में उड़ जाता है। समय में भी इतनी शक्ति नहीं है कि वह जनता का रास्ता रोक सके। बल्कि, जनता जिस दिशा में चलना चाहती है, समय भी उसी दिशा में मुड़ जाता है।
अगली चार पंक्तियाँ:
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार बीता,
गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं,
यह और नहीं कोई जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।
भावार्थ: कवि कहते हैं कि वर्षों, सदियों और हजारों वर्षों की गुलामी का अंधेरा अब समाप्त हो गया है। आकाश की खिड़कियाँ (गवाक्ष) एक नई सुबह की रोशनी से दहक रही हैं। यह कोई और नहीं, बल्कि जनता के वे अजेय सपने हैं जो अंधकार का सीना चीरकर बाहर निकल रहे हैं और एक नए युग का सूत्रपात कर रहे हैं।
अगली चार पंक्तियाँ:
सबसे विराट् जनतंत्र जगत् का आ पहुँचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो
अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
भावार्थ: कवि भारत के स्वतंत्र होने और लोकतंत्र की स्थापना की घोषणा करते हुए कहते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आ गया है। उस समय भारत की जनसंख्या तैंतीस करोड़ थी, इसलिए कवि कहते हैं कि इन तैंतीस करोड़ लोगों के लिए सिंहासन तैयार करो। आज किसी एक राजा का राज्याभिषेक नहीं होगा, बल्कि पूरी प्रजा का होगा। आज ताज किसी एक व्यक्ति के सिर पर नहीं, बल्कि तैंतीस करोड़ जनता के सिर पर रखा जाएगा।
अगली चार पंक्तियाँ:
आरती लिए तू किसे ढूँढता है मूरख,
मंदिरों, राज प्रासादों में तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगे, खेतों में, खलिहानों में।
भावार्थ: कवि उन लोगों पर कटाक्ष करते हैं जो भगवान को मंदिरों, महलों और तहखानों में खोजते हैं। वे कहते हैं कि हे मूर्ख! तू आरती का थाल लेकर किसे ढूंढ रहा है? असली देवता तो सड़कों पर पत्थर तोड़ते हुए मजदूर हैं, वे खेतों और खलिहानों में काम करते हुए किसान हैं। सच्चा ईश्वर आम जनता और मेहनत करने वालों में बसता है।
अंतिम चार पंक्तियाँ:
फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं,
धूसरता सोने से शृंगार सजाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
भावार्थ: कवि कहते हैं कि अब राजदंड (शासन का प्रतीक) फावड़े और हल बनेंगे, यानी अब किसानों और मजदूरों का राज होगा। धूल-मिट्टी से सनी हुई जनता (धूसरता) ही अब सोने से अपना शृंगार करेगी, अर्थात अब उसी का सम्मान होगा। अंत में कवि फिर दोहराते हैं कि हे शासकों! रास्ते से हट जाओ, समय के बदलते हुए रथ की आवाज सुनो और सिंहासन खाली कर दो, क्योंकि अब जनता का शासन आ रहा है।
शब्दार्थ
नाद = आवाज
अबोध = अज्ञान मूर्ख
कसक = पीड़ा
गूढ़ = गुप्त, छिपा हुआ
जंतर-मंतर = यंत्र मंत्र (जादू टोना)
कोपाकुल = क्रोध से व्याकुल
भृकुटी = भौहें
काल = मृत्य, समय
अब्दों = वर्षों,
शताब्दियों = सैकड़ों वर्षों,
सहस्त्राबद = हजार वर्ष,
अंधकार = अँधेरा,
गवाक्ष = खिड़की,
दहके = आग से जलने की क्रिया,
तिमिर = अँधेरा,
विराट् = बहुत बड़ा
प्रासादों = महलों
अतिरिक्त शब्द – अर्थ
शब्द | हिंदी अर्थ | English Meaning |
सुगबुगा | सुलगना या धीरे-धीरे जल उठना | or flicker up |
इठलाती | इतराकर या अकड़कर चलना | Swaggering or strutting proudly |
घर्घर | गरगराहट या खड़खड़ाने वाली ध्वनि | Rumbling or rattling sound |
नाद | गूंज या ध्वनि | Echo or resonant sound |
अबोध | अज्ञानी या मासूम | Ignorant or innocent |
कसक | टीस या हल्का दर्द | Ache or pang |
जनमत | जनता की राय या लोकमत | Public opinion |
गूढ़ | गहन या गंभीर | Profound or deep |
दुधमुहीं | दूध पीने वाली बच्ची या शिशु | Milk-mouthed or infant |
जंतर-मंतर | जादू-टोना या मंत्र | Magic spells or incantations |
भूडोल | भूकंप या धरती का हिलना (संभवतः भूचाल का रूपांतर) | Earthquake or earth tremor |
बवंडर | तूफान या आंधी | Tornado or whirlwind |
कोपाकुल | क्रोध से भरा हुआ | Enraged or furious |
भृकुटी | भौंह या भौंह चढ़ाना | Eyebrow or frowning |
हुंकार | दहाड़ या गरज | Roar or bellow |
ताब | शक्ति या सामर्थ्य | Strength or power |
अब्द | वर्ष या साल | Year (from Arabic origin) |
शताब्दियों | सदियों या सौ वर्षों की अवधि | Centuries |
सहस्त्राब्द | हजार वर्षों की अवधि या सहस्राब्दी | Millennia |
गवाक्ष | खिड़की या झरोखा | Window or aperture |
दहके | जलते या चमकते | Burning or glowing |
अजय | अजेय या अपराजित | Invincible or unconquerable |
तिमिर | अंधेरा या अंधकार | Darkness or gloom |
वक्ष | छाती या वक्षस्थल | Chest or bosom |
विराट् | विशाल या बहुत बड़ा | Vast or enormous |
अभिषेक | राज्याभिषेक या पवित्र स्नान | Anointment or coronation |
मुकुट | ताज या शिरोभूषण | Crown or diadem |
आरती | पूजा की थाली या दीपक | Ritual lamp or prayer offering |
मूरख | मूर्ख या बेवकूफ | Fool or idiot |
तहखानों | गुप्त कक्ष या अंदरूनी कक्ष | Cellars or basements |
गिट्टी | बजरी या पत्थर के टुकड़े | Gravel or ballast |
खलिहानों | खलिहान या अनाज रखने की जगह | Threshing floors or barns |
फावड़े | फावड़ा या बेलचा | Shovels |
राजदंड | राजकीय छड़ी या सत्ता का प्रतीक | royal staff |
धूसरता | धूल भरी या फीकी रंगत | Greyness or dustiness |
शृंगार | सजावट या अलंकार | Adornment or decoration |
पाठ से
- ‘अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का है यह किस अवसर के लिए कहा गया है?
उत्तर – यह कथन भारत में लोकतंत्र की स्थापना के अवसर के लिए कहा गया है। इसका अर्थ है कि अब सत्ता किसी एक राजा के हाथ में नहीं होगी, बल्कि शासन का अधिकार सीधे प्रजा यानी आम जनता को मिलेगा।
- जब जनता की भौंहे क्रोध में तन जाती हैं तो क्या-क्या होता है?
उत्तर – कविता के अनुसार, जब जनता की भौंहें क्रोध में तन जाती हैं, तो धरती में भूकंप आ जाता है और बवंडर उठने लगते हैं। उसकी हुंकार मात्र से महलों की नींव तक उखड़ जाती है। कुल मिलाकर क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू हो जाती हैं।
- बदली हुई परिस्थितियों में अब राजदण्ड किसे बनाया जाएगा और क्यों?
उत्तर – बदली हुई परिस्थितियों में अब किसानों और मजदूरों के प्रतीक ‘फावड़े और हल’ को राजदण्ड बनाया जाएगा, क्योंकि जनतंत्र में असली शक्ति देश का निर्माण करने वाले किसानों और मजदूरों के हाथ में होती है।
- जनता की सहनशीलता के कवि ने क्या-क्या उदाहरण दिए हैं?
उत्तर – कवि ने जनता की सहनशीलता के लिए कई उदाहरण दिए हैं, जैसे – वह मिट्टी की अबोध मूरत के समान है, वह जाड़े-पाले की पीड़ा को चुपचाप सहती है और जब शोषक वर्ग उसका खून चूसता है, तब भी वह अपना मुँह खोलकर दर्द बयाँ नहीं करती।
- कवि ने गिट्टी तोड़नेवालों और खेतों में काम करने वालों को देवता क्यों कहा है?
उत्तर – कवि ने गिट्टी तोड़ने वालों और खेतों में काम करने वालों को देवता कहा है क्योंकि यही वे लोग हैं जो अपने परिश्रम से देश का निर्माण और पोषण करते हैं। असली ईश्वर इन्हीं मेहनतकश लोगों में बसता है, न कि मंदिरों या महलों में।
- कवि ने जनता के लिए सिंहासन खाली कर देने के लिए क्यों कहा है?
उत्तर – कवि ने जनता के लिए सिंहासन खाली करने के लिए इसलिए कहा है क्योंकि अब समय बदल चुका है, सदियों से सोई हुई जनता जाग गई है और लोकतंत्र में शासन करने का अधिकार उसी जनता का है।
- जगत का सबसे विराट जनतंत्र किसे कहा गया है?
उत्तर – जगत का सबसे विराट जनतंत्र भारत के लोकतंत्र को कहा गया है।
पाठ से आगे
- ‘अंग-अंग में लगे साँप हों चूस रहे पंक्ति में जनता के किस प्रकार के शोषण की ओर संकेत किया गया है? आपके मत में यह शोषण किन-किन के द्वारा होता रहा होगा?
उत्तर – इस पंक्ति में जनता के ऊपर होने वाले आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक शोषण की ओर संकेत किया गया है। हमारे मत में यह शोषण अंग्रेज़ी शासकों, ज़मींदारों, साहूकारों और राजाओं के द्वारा होता रहा होगा, जो आम जनता की मेहनत की कमाई और अधिकारों को छीनकर उन्हें हर तरह से प्रताड़ित करते थे।
- (क) किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिकों का जागरुक होना क्यों आवश्यक है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर – किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिकों का जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है ताकि वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझ सकें, सही सरकार का चुनाव कर सकें, सरकार के गलत कामों का विरोध कर सकें और देश के विकास में सक्रिय रूप से भाग ले सकें। एक जागरूक नागरिक ही एक मजबूत लोकतंत्र की नींव होता है।
(ख) आपके गाँव / मोहल्ले के लोगों में किस-किस तरह की चेतना जगाने की ज़रूरत है? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर – हमारे गाँव/मोहल्ले के लोगों में मुख्य रूप से स्वच्छता, शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति चेतना जगाने की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, लोगों को यह समझाना होगा कि कूड़ा सड़क पर न फेंकें। साथ ही, हर बच्चे को, विशेषकर गरीब और लड़कियों को, स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है।
(ग) इन्हें जागरूक करने के लिए क्या-क्या प्रयास करने होंगे?
उत्तर – इन्हें जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक, जागरूकता अभियान, पोस्टर और समूह चर्चा जैसे प्रयास करने होंगे। स्कूल के बच्चे प्रभात फेरी निकालकर भी जागरूकता फैला सकते हैं।
भाषा के बारे में
- निम्नांकित शब्दों के क्या अर्थ हैं? इन्हें ध्यान से पढ़कर उनके अर्थ लिखिए। आप इसमें शब्दकोश की भी मदद ले सकते हैं?
नाद – ऊँची ध्वनि, आवाज़
गूढ़ – गहरा, रहस्यमयी
भृकुटी – भौंहें
बवंडर – चक्रवाती तूफान, आँधी
अब्द – वर्ष, साल
गवाक्ष – खिड़की, झरोखा
तिमिर – अंधकार, अँधेरा
अम्बर – आकाश
प्रासाद – राजमहल
धूसरता – धूल से भरा हुआ, मटमैलापन
- नीचे दिए गए मुहावरों के अर्थ लिखिए और वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(क) ठंडी बुझी राख का सुगबुगाना
अर्थ – दबी हुई शक्ति का फिर से जागना।
वाक्य प्रयोग – वर्षों के अत्याचार के बाद गाँव वालों के मन में ठंडी बुझी राख सुगबुगाने लगी।
(ख) भृकुटी चढ़ाना
अर्थ – क्रोधित होना।
वाक्य प्रयोग – अपना अपमान देखकर मोहन ने भृकुटी चढ़ा ली।
(ग) हवा में ताज उड़ना
अर्थ – सत्ता समाप्त हो जाना।
वाक्य प्रयोग – जनता के विद्रोह के कारण अहंकारी शासक का ताज हवा में उड़ गया।
(घ) सिर पर मुकुट धरना
अर्थ – ज़िम्मेदारी सौंपना या राजा बनाना।
वाक्य प्रयोग – सरपंच बनाकर गाँव वालों ने मेरे सिर पर एक बड़ा मुकुट धर दिया है।
(ङ) आरती लिए ढूँढ़ना
अर्थ – बहुत आदर और बेसब्री से खोजना।
वाक्य प्रयोग – तुम जिसे आरती लिए ढूँढ़ रहे हो, वह सच्चा इंसान तो गरीबों की सेवा में लगा है।
(च) सिंहासन खाली करना
अर्थ – पद या अधिकार छोड़ना।
वाक्य प्रयोग – समय की माँग को देखते हुए पुराने नेता को नए व्यक्ति के लिए सिंहासन खाली करना पड़ा।
- निम्न शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
(क) वेदना – आनंद
(ख) सीमित – असीमित
(ग) तिमिर – प्रकाश / आलोक
(घ) प्रासाद – कुटी / झोंपड़ी
समास
दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से जब एक नया शब्द बनता है तो उसे सामासिक शब्द और इस प्रक्रिया को समास कहते हैं।
समास के प्रकार
(1) तत्पुरुष समास – जब किसी शब्द में पूर्व पद गौण तथा उत्तरपद प्रधान होता है तो वहाँ तत्पुरुष समास होता है। ये संज्ञा और संज्ञा के मिलने से तथा संज्ञा और क्रिया मूलक शब्दों के मिलने से बनते हैं। जैसे- स्नानगृह (स्नान के लिए गृह) हस्तलिखित (हस्त द्वारा लिखित)। इनके समस्तपद बनते समय विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है तथा इसके विपरीत समास विग्रह करते समय विभक्ति चिह्नों से, पर, को, द्वारा, का, के लिए आदि का प्रयोग किया जाता है।
तत्पुरुष समास के उपभेद (प्रकार) – तत्पुरुष समास के दो उपभेद हैं-
(क) कर्मधारय तथा
(ख) द्विगु कर्मधारय तत्पुरुष) समास
(क) इसमें पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है। पूर्वपद तथा उत्तरपद में उपमेय उपमान संबंध भी हो सकता है।
विशेषण विशेष्य
जैसे- पीतांबर, महाविद्यालय, नीलगाय।
उपमेय और उपमान
घनश्याम, कमलनयन, चंद्रमुख।
(ख) द्विगु समास द्विगु समास में भी उत्तरपद प्रधान होता है और विशेष्य होता है जबकि पूर्वपद संख्यावाची विशेषण होता है।
जैसे- पंचवटी, तिराहा, शताब्दी, चौमासा आदि।
(2) बहुब्रीहि समास – जिस सामासिक शब्द में आए दोनों ही पद गौण होते हैं और दोनों मिलकर किसी तीसरे पद के विषय में कुछ कहते हैं और यह तीसरा पद ही ‘प्रधान’ होता है।
जैसे- नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शंकर
– दशमुख दश मुख वाला अर्थात् रावण
– चतुर्भुज चार भुजाएँ है जिसकी अर्थात् विष्णु
(3) द्वंद्व समास – जिस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं उसे द्वंद्व समास कहते हैं। इसमें दोनों पद को जोड़नेवाले अव्यय ‘और’, ‘या’ का लोप हो जाता है। जैसे- राजा – रानी = राजा और रानी
पति – पत्नी = पति और पत्नी
हार – जीत = हार या जीत / हार और जीत
दूध – दही = दूध और दही।
(4) अव्ययी भाव समास – जिस समास में पूर्वपद अव्यय हो उसे अव्ययी भाव समास कहते हैं। जैसे- प्रतिदिन, यथाशक्ति, आमरण बेखटके
द्विगु और बहुब्रीहि समास में अंतर- द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद उसका विशेष्य परंतु बहुब्रीहि समास में पूरा पद ही विशेषण का काम करता है।
कई ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें दोनों समासों के अंतर्गत रखा जा सकता है। जैसे-
चतुर्भुज – चार भुजाओं का समूह (द्विगु)
चार भुजाएँ हैं जिसकी (बहुब्रीहि )
इसी तरह त्रिनेत्र, चतुर्भुख। तीन आँखों का समूह तथा चार मुखों का समूह (द्विगु समास) जबकि त्रिनेत्र – तीन नेत्र हैं अर्थात् शिव तथा चार मुख है जिनके अर्थात् ब्रह्मा (बहुब्रीहि समास) में लेंगे, यानी इनके विग्रह पर निर्भर करता है कि इन्हें किस समास के अंतर्गत रखा जाएगा।
पाठ में आए इन शब्दों का समास विग्रह कर समासों के नाम लिखिए-
कोपाकुल, राजप्रासाद, जनतंत्र, कोटिहित, जनमत
ठंडी-बुझी, जंतर-मंतर, जाड़े-पाले
सहस्राब्द, शताब्दी
दुधमुँही, गूढ़प्रश्न
निश्चित रूप से, पाठ में आए इन शब्दों का समास विग्रह और समासों के नाम इस प्रकार हैं:
शब्द | समास विग्रह | समास का नाम |
कोपाकुल | कोप से आकुल | तत्पुरुष समास |
राजप्रासाद | राजा का प्रासाद | तत्पुरुष समास |
जनतंत्र | जन का तंत्र | तत्पुरुष समास |
कोटिहित | कोटि (करोड़ों) के लिए हित | तत्पुरुष समास |
जनमत | जन का मत | तत्पुरुष समास |
ठंडी-बुझी | ठंडी और बुझी | द्वंद्व समास |
जंतर-मंतर | जंतर और मंतर | द्वंद्व समास |
जाड़े-पाले | जाड़ा और पाला | द्वंद्व समास |
सहस्राब्द | सहस्र (हजार) अब्दों (वर्षों) का समूह | द्विगु समास |
शताब्दी | शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समूह | द्विगु समास |
दुधमुँही | दूध है मुँह में जिसके (अर्थात् बहुत छोटी बच्ची) | बहुव्रीहि समास |
गूढ़प्रश्न | गूढ़ है जो प्रश्न | कर्मधारय समास |
योग्यता विस्तार
- रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ की कुछ अन्य रचनाएँ खोजकर पढ़िए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
- जनतंत्र का जन्म ‘ओज‘ गुण की कविता है। ‘ओज‘ वीर रस का ही गुण है। वीर रस की कोई अन्य कविता ढूँढ़कर कक्षा में उसका वाचन कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
- इन कवियों के बारे में बताइए कि ये मुख्यतः किस रस की कविता के लिए जाने जाते हैं। इस हेतु पुस्तकालय एवं अपने शिक्षक की सहायता लीजिए।
(क) सूरदास
(ख) कबीरदास
(ग) विद्यापति
(घ) काका हाथरसी
(ङ) भूषण
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
बहुविकल्पीय प्रश्न
कविता में “सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी” से क्या तात्पर्य है?
A) प्राकृतिक आपदा का वर्णन
B) दबी हुई क्रांति की ज्वाला का सुलगना
C) मौसम के बदलाव का संकेत
D) पुरानी यादों का जागना
उत्तर -B) दबी हुई क्रांति की ज्वाला का सुलगना
“मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है” में ‘मिट्टी‘ किसका प्रतीक है?
A) राजा
B) जनता
C) भूमि
D) धन
उत्तर -B) जनता
कविता में बार-बार दोहराई जाने वाली पंक्ति “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” क्या दर्शाती है?
A) राजा का आगमन
B) जनक्रांति का संकेत
C) युद्ध की तैयारी
D) उत्सव का वर्णन
उत्तर -B) जनक्रांति का संकेत
“जनता? हाँ मिट्टी की अबोध मूरतें वही” में ‘अबोध‘ का अर्थ क्या है?
A) क्रोधित
B) अज्ञानी या मासूम
C) शक्तिशाली
D) विद्रोही
उत्तर -B) अज्ञानी या मासूम
कविता में जनता को “जाड़े पाले की कसक, सदा सहने वाली” क्यों कहा गया है?
A) उसकी खुशी का वर्णन
B) उसकी सहनशीलता और पीड़ा का चित्रण
C) मौसम का प्रभाव
D) उसकी कमजोरी
उत्तर -B) उसकी सहनशीलता और पीड़ा का चित्रण
“जनता सचमुच ही बड़ी वेदना सहती है” किसके मुख से कही गई बात है?
A) जनता के
B) नेताओं की लंबी-चौड़ी कसमों का
C) कवि के
D) राजा के
उत्तर -B) नेताओं की लंबी-चौड़ी कसमों का
“जनमत क्या है?” प्रश्न से कवि क्या पूछ रहे हैं?
A) जनता की राय
B) मौसम की स्थिति
C) राजा की इच्छा
D) समय का प्रभाव
उत्तर -A) जनता की राय
जनता को “फूल जिसे एहसास नहीं” की तरह क्यों माना जाता है?
A) उसकी सुंदरता के कारण
B) उसे भावहीन और आसानी से हेरफेर करने योग्य मानने के कारण
C) उसकी खुशी के लिए
D) फूलों से तुलना के लिए
उत्तर -B) उसे भावहीन और आसानी से हेरफेर करने योग्य मानने के कारण
“दुधमुहीं” से तात्पर्य किससे है?
A) वृद्ध महिला
B) शिशु या बच्ची
C) योद्धा
D) रानी
उत्तर -B) शिशु या बच्ची
“जंतर-मंतर सीमित हो चार खिलौनों में” क्या संकेत करता है?
A) जादू की शक्ति
B) जनता को वादों से बहलाने का
C) खेल का वर्णन
D) शिक्षा का महत्व
उत्तर -B) जनता को वादों से बहलाने का
जब जनता “कोपाकुल हो भृकुटी चढ़ाती है” तो क्या होता है?
A) शांति आती है
B) भूडोल और बवंडर उठते हैं
C) उत्सव मनाया जाता है
D) वर्षा होती है
उत्तर -B) भूडोल और बवंडर उठते हैं
“हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती” से क्या समझ आता है?
A) महलों का निर्माण
B) जनता की हुंकार से सत्ता की नींव हिलना
C) संगीत का वर्णन
D) प्रकृति की शक्ति
उत्तर -B) जनता की हुंकार से सत्ता की नींव हिलना
“जनता की रोके राह समय में ताब कहाँ?” का अर्थ क्या है?
A) समय जनता को रोक सकता है
B) समय को जनता की राह रोकने की शक्ति नहीं
C) समय तेज चलता है
D) जनता समय से डरती है
उत्तर -B) समय को जनता की राह रोकने की शक्ति नहीं
“अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार बीता” से क्या तात्पर्य है?
A) अंधकार का आगमन
B) लंबे समय के अंधकार का समाप्त होना
C) रात का वर्णन
D) युद्ध का अंत
उत्तर -B) लंबे समय के अंधकार का समाप्त होना
“सबसे विराट् जनतंत्र जगत् का आ पहुँचा” किसका संकेत है?
A) छोटे देश का
B) दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (भारत) का
C) राजतंत्र का
D) युद्ध का
उत्तर -B) दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (भारत) का
“तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो” में ‘तैंतीस कोटि‘ किसका प्रतीक है?
A) 33 करोड़ लोगों (भारत की जनसंख्या) का
B) 33 देवताओं का
C) 33 वर्षों का
D) 33 राज्यों का
उत्तर -A) 33 करोड़ लोगों (भारत की जनसंख्या) का
“अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का है” से क्या समझ आता है?
A) राजा का राज्याभिषेक
B) प्रजा को सत्ता सौंपना
C) पूजा का वर्णन
D) वर्षा का संकेत
उत्तर -B) प्रजा को सत्ता सौंपना
“देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे” में देवता किसे कहा गया है?
A) देवताओं को
B) आम श्रमिक जनता को
C) राजाओं को
D) नेताओं को
उत्तर -B) आम श्रमिक जनता को
“फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं” का अर्थ क्या है?
A) हथियारों का निर्माण
B) श्रमिक उपकरणों को सत्ता के प्रतीक बनना
C) खेती का वर्णन
D) युद्ध की तैयारी
उत्तर -B) श्रमिक उपकरणों को सत्ता के प्रतीक बनना
कविता का मुख्य विषय क्या है?
A) प्रकृति का सौंदर्य
B) जनतंत्र का जन्म और जनशक्ति की विजय
C) राजतंत्र की प्रशंसा
D) युद्ध का वर्णन
उत्तर -B) जनतंत्र का जन्म और जनशक्ति की विजय
एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: कविता के आरंभ में कवि ने ‘सदियों की ठंडी-बुझी राख‘ किसे कहा है और उसमें क्या हलचल हुई है?
उत्तर – कविता के आरंभ में कवि ने भारत की सदियों से दबी-कुचली और शोषित जनता को ‘ठंडी-बुझी राख’ कहा है, जिसमें अब स्वतंत्रता और चेतना की चिंगारी सुगबुगाने लगी है।
प्रश्न 2: ‘मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है‘ पंक्ति का क्या आशय है?
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि अब देश की आम जनता, जिसे अब तक मिट्टी के समान तुच्छ समझा जाता था, वही अब राज करेगी और सोने का ताज पहनकर गर्व महसूस करेगी।
प्रश्न 3: कवि किसे और क्यों ‘सिंहासन खाली करने‘ के लिए कह रहे हैं?
उत्तर – कवि तत्कालीन शासकों और अंग्रेजी हुकूमत को सिंहासन खाली करने के लिए कह रहे हैं, क्योंकि अब जनता जागृत हो चुकी है और अपना शासन स्वयं स्थापित करने आ रही है।
प्रश्न 4: कवि ने जनता की सहनशीलता का वर्णन किन शब्दों में किया है?
उत्तर – कवि ने जनता की सहनशीलता का वर्णन करते हुए कहा है कि वह मिट्टी की अबोध मूरतों के समान है जो जाड़े-पाले की पीड़ा और शोषकों द्वारा किए जा रहे अत्याचार को भी बिना मुँह खोले चुपचाप सहती रहती है।
प्रश्न 5: ‘जनता जब कोपाकुल हो भृकुटी चढ़ाती है‘, तब क्या होता है?
उत्तर – जब जनता क्रोधित होकर अपनी भौंहें चढ़ाती है, तो धरती में भूकंप आ जाता है और चारों ओर बवंडर उठने लगते हैं, अर्थात् उसके क्रोध से बड़े-बड़े साम्राज्य हिल जाते हैं।
प्रश्न 6: कवि के अनुसार, जनता की शक्ति के सामने समय की क्या स्थिति है?
उत्तर – कवि के अनुसार, जनता की शक्ति के सामने समय भी विवश है और समय में इतनी शक्ति नहीं कि वह जनता का मार्ग रोक सके, बल्कि जनता जिधर चाहती है, समय भी उधर ही मुड़ जाता है।
प्रश्न 7: ‘तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो‘ पंक्ति में ‘तैंतीस कोटि‘ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – इस पंक्ति में ‘तैंतीस कोटि’ से कवि का तात्पर्य उस समय के भारत की तैंतीस करोड़ की आबादी से है, जिनके लिए अब लोकतांत्रिक सिंहासन तैयार करने की बात कही जा रही है।
प्रश्न 8: कविता में किसका अभिषेक होने की बात कही गई है?
उत्तर – इस कविता में किसी राजा का नहीं, बल्कि संपूर्ण प्रजा का अभिषेक होने की बात कही गई है, जहाँ सत्ता का मुकुट तैंतीस करोड़ जनता के सिर पर रखा जाएगा।
प्रश्न 9: कवि के अनुसार असली देवता कहाँ निवास करते हैं?
उत्तर – कवि के अनुसार, असली देवता मंदिरों, राजमहलों या तहखानों में नहीं, बल्कि सड़कों पर पत्थर तोड़ते हुए मजदूरों और खेतों-खलिहानों में काम करते हुए किसानों के रूप में निवास करते हैं।
प्रश्न 10: ‘फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं‘ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर – इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि आने वाले जनतंत्र में शासन की शक्ति किसानों और मजदूरों के हाथ में होगी और उनके परिश्रम के प्रतीक फावड़े और हल ही नए राजदंड बनेंगे।
प्रश्न 11: इस कविता का मूल भाव या केंद्रीय विचार क्या है?
उत्तर – इस कविता का मूल भाव जनता की शक्ति का उद्घोष करना और भारत में लोकतंत्र की स्थापना का स्वागत करना है, जहाँ सत्ता आम जनता के हाथों में होगी।
प्रश्न 12: कवि ने शोषक वर्ग की तुलना किससे की है?
उत्तर – कवि ने शोषक वर्ग की तुलना उन साँपों से की है जो जनता के अंग-अंग को चूस रहे थे और उसका शोषण कर रहे थे।
प्रश्न 13: ‘यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय‘ पंक्ति में कवि किन सपनों की बात कर रहे हैं?
उत्तर – इस पंक्ति में कवि जनता के उन अजेय सपनों की बात कर रहे हैं जो सदियों के अंधकार को चीरकर स्वतंत्रता और स्व-शासन के रूप में साकार हो रहे हैं।
प्रश्न 14: शासक वर्ग जनता को किस प्रकार का समझता था?
उत्तर – शासक वर्ग जनता को एहसास-रहित फूल या कुछ खिलौनों से बहल जाने वाली एक दूधमुंही बच्ची के समान नासमझ समझता था।
प्रश्न 15: इस कविता का शीर्षक ‘जनतंत्र का जन्म‘ क्यों सार्थक है?
उत्तर – इस कविता का शीर्षक ‘जनतंत्र का जन्म’ इसलिए सार्थक है क्योंकि यह कविता भारत की स्वतंत्रता के साथ ही एक नए युग, यानी जनता के शासन (लोकतंत्र) के उदय की घोषणा करती है और उसकी महिमा का गान करती है।
40-50 शब्दों वाले प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – कविता में “सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी” का क्या अर्थ है?
उत्तर -यह पंक्ति सदियों से दबी हुई क्रांति की ज्वाला को दर्शाती है जो अब सुलग रही है। यह जनता की जागृति और परिवर्तन की शुरुआत का प्रतीक है, जहाँ पुरानी राख से नई आग भड़क उठती है, सत्ता के बदलाव का संकेत देते हुए।
- प्रश्न – “मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है” से क्या तात्पर्य है?
उत्तर -मिट्टी सामान्य जनता का प्रतीक है जो अब राजसी वैभव धारण कर गर्व से इठला रही है। यह दर्शाता है कि जनता अब सत्ता की मालिक बन रही है, गरीबी से अमीरी और शक्ति की ओर बढ़ते हुए।
- प्रश्न – कविता में “दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो” क्यों दोहराया गया है?
उत्तर -यह समय के रथ की ध्वनि सुनकर चेतावनी देता है कि परिवर्तन आ रहा है। दो राह अर्थात विकल्प दो हैं: सिंहासन खाली करो या जनता आएगी। यह क्रांति की अनिवार्यता और समय के प्रवाह को रेखांकित करता है।
- प्रश्न – जनता को “अबोध मूरतें” क्यों कहा गया है?
उत्तर -जनता को मिट्टी की अबोध मूर्तियों के रूप में चित्रित किया गया है जो मासूम और अज्ञानी हैं। वे सदा पीड़ा सहती रहती हैं, शोषण के बावजूद चुप रहती हैं, जो उनकी निष्क्रियता और धैर्य को दर्शाता है।
- प्रश्न – “जनमत क्या है?” प्रश्न का महत्त्व क्या है?
उत्तर -यह प्रश्न जनता की वास्तविक राय पर जोर देता है, जो अक्सर नेताओं की लंबी बातों में दब जाती है। कवि व्यंग्य करते हैं कि जनता की आवाज अनसुनी रहती है, लोकतंत्र में जनमत की उपेक्षा पर कटाक्ष है।
- प्रश्न – जनता को “दुधमुहीं” की तरह क्यों माना जाता है?
उत्तर -जनता को दूधमुंही बच्ची की तरह देखा जाता है जिसे जादू-टोनों या चार खिलौनों (वादों) से बहलाया जा सकता है। यह शासकों द्वारा जनता को हल्के में लेने और आसानी से धोखा देने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य है।
- प्रश्न – जब जनता “कोपाकुल” होती है तो क्या होता है?
उत्तर -जनता क्रोधित होकर भौंहें चढ़ाती है तो भूकंप और तूफान जैसे परिवर्तन आते हैं। हुंकार से महलों की नींव उखड़ जाती है, जो जनशक्ति की विनाशकारी ताकत और क्रांति का चित्रण करता है।
- प्रश्न – “तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो” का संदर्भ क्या है?
उत्तर -तैंतीस करोड़ भारत की जनसंख्या का प्रतीक है। कवि कहते हैं कि सिंहासन जनता के हित में तैयार करो, क्योंकि अब अभिषेक प्रजा का है, जो लोकतंत्र में जनता को सच्चा शासक मानता है।
- प्रश्न – देवता कहाँ मिलेंगे, कविता के अनुसार?
उत्तर -देवता मंदिरों या महलों में नहीं, बल्कि सड़कों पर गिट्टी तोड़ते, खेतों और खलिहानों में मिलेंगे। यह आम श्रमिक जनता को देवता मानने और उनकी पूजा करने का संदेश देता है।
- प्रश्न – कविता का अंतिम संदेश क्या है?
उत्तर -फावड़े और हल राजदंड बनेंगे, धूल सोने का शृंगार सजेगी। समय के रथ की ध्वनि सुनकर सिंहासन खाली करो, क्योंकि जनता आ रही है, जो जनतंत्र की विजय और श्रमिक शक्ति को रेखांकित करता है।
दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – कविता “जनतंत्र का जन्म” में जनता की सहनशीलता और क्रोध का चित्रण कैसे किया गया है?
उत्तर -जनता को मिट्टी की अबोध मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है जो जाड़े-पाले की कसक और शरीर में साँपों जैसे शोषण को चुपचाप सहती है। लेकिन जब वह कोपाकुल होती है, तो भूडोल और बवंडर उठते हैं, हुंकार से महलों की नींव उखड़ जाती है, जो उसकी धैर्य की सीमा और विनाशकारी शक्ति को दर्शाता है, लोकतंत्र में जनक्रांति की अनिवार्यता पर जोर देते हुए।
- प्रश्न – कविता में समय और काल की भूमिका क्या है, और यह जनता से कैसे जुड़ी है?
उत्तर -समय के रथ का घर्घर नाद बार-बार दोहराया गया है जो परिवर्तन की चेतावनी देता है। जनता की राह को समय रोक नहीं सकता; वह जिधर चाहती है, काल उधर मुड़ता है। सदियों का अंधकार बीतने के बाद जनता के स्वप्न उमड़ते हैं, जो दर्शाता है कि इतिहास जनशक्ति से निर्देशित होता है, जनतंत्र के जन्म में समय को जनता का सहयोगी बनाते हुए।
- प्रश्न – “सबसे विराट् जनतंत्र जगत् का आ पहुँचा” पंक्ति भारत के संदर्भ में क्या महत्त्व रखती है?
उत्तर -यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का संकेत है, जहाँ तैंतीस करोड़ लोगों के हित में सिंहासन तैयार किया जाए। अभिषेक अब राजा का नहीं, प्रजा का है, जनता के सिर पर मुकुट धरो। यह स्वतंत्र भारत में जनता को सत्ता का केंद्र बनाने का उत्सव है, राजतंत्र से जनतंत्र की ओर संक्रमण को चित्रित करते हुए, जनशक्ति की सर्वोच्चता पर बल देता है।
- प्रश्न – कविता में देवताओं की खोज और श्रमिकों का महिमामंडन कैसे जुड़ा है?
उत्तर -कवि मूर्ख को चेताते हैं कि आरती लेकर देवता मंदिरों या महलों में न ढूंढो; वे सड़कों पर गिट्टी तोड़ते, खेतों और खलिहानों में मिलेंगे। फावड़े और हल राजदंड बनेंगे, धूसरता सोने का शृंगार सजेगी। यह आम श्रमिकों को देवता मानकर उनकी पूजा का संदेश देता है, जनतंत्र में श्रम वर्ग की विजय और सत्ता को रेखांकित करते हुए।
- प्रश्न – कविता का मुख्य विषय जनतंत्र का जन्म कैसे विकसित होता है?
उत्तर -कविता सदियों के अंधकार से जनता की जागृति दिखाती है, जहाँ वह सहनशील से क्रांतिकारी बनती है। नेताओं के धोखे से मुक्त होकर जनता सिंहासन पर काबिज होती है, स्वप्न चीरते अंधकार उमड़ते हैं। सबसे बड़ा जनतंत्र आता है, प्रजा का अभिषेक होता है, श्रमिक देवता बनते हैं, जो जनशक्ति की विजय और लोकतंत्र की स्थापना को चित्रित करता है।

