हरिशंकर परसाई – जीवन परिचय
हिंदी साहित्य जगत के मुर्धन्य व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1924 को जमानी गाँव, जिला होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में हुआ। उन्होंने कई कॉलेजों एवं स्कूलों में अध्यापन के साथ-साथ जबलपुर से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका ‘वसुधा’ का प्रकाशन-संपादन किया। सामाजिक व राजनैतिक विषयों पर तीखा व्यंग्य रचने वाले परसाई जी की प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ- हँसते हैं रोते हैं, भूत के पाँव पीछे, सदाचार का ताबीज, रानी नागफनी की कहानी, ठिठुरता हुआ गणतंत्र बोलती रेखाएँ, तट की खोज, माटी कहे कुम्हार से, विकलांग श्रद्धा का दौर आदि है।
पाठ परिचय
अपनी-अपनी बीमारी हरिशंकर परसाई जी की व्यंग्य रचना है। इस रचना में समाज में लोगों के अलग-अलग प्रकार के व्यवहार को उजागर करने का प्रयास हुआ है। समाज में ऐसे लोग भी हैं जो वास्तविक दुखों से दुखी हैं, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो संपन्नता से उपजे दुखों या यह कहें कि और अधिक की लालसा से दुखी हैं और चाहते हैं कि दूसरे अपने वास्तविक दुखों को भूलकर उनके छद्म दुखों में दुखी हों।
अपनी-अपनी बीमारी
हम उनके पास चंदा माँगने गए थे। चंदे के पुराने अभ्यासी का चेहरा बोलता है। वे हमें भाँप गए। हम भी उन्हें भाँप गए। चंदा माँगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी पहचानते हैं। लेनेवाला गंध से जान लेता है कि यह देगा या नहीं देनेवाला भी माँगनेवाले के शरीर की गंध से समझ लेता है कि यह बिना लिए टल जाएगा या नहीं। हमें बैठते ही समझ में आ गया कि ये नहीं देंगे। वे भी शायद समझ गए कि ये टल जाएँगे। फिर भी हम दोनों पक्षों को अपना कर्तव्य तो निभाना ही था। हमने प्रार्थना की तो वे बोले- आपको चंदे की पड़ी है, हम तो टैक्स के मारे मर रहे हैं। सोचा, यह टैक्स की बीमारी कैसी होती है। बीमारियाँ बहुत देखी हैं- निमोनिया, कालरा, कैंसर, जिनसे लोग मरते हैं। मगर यह टैक्स की कैसी बीमारी है जिससे वे मर रहे थे! वे पूरी तरह से स्वस्थ और प्रसन्न थे। तो क्या इस बीमारी में मजा आता है? यह अच्छी लगती है जिससे बीमार तगड़ा हो जाता है। इस बीमारी से मरने में कैसा लगता होगा?
अजीब रोग है यह। चिकित्सा-विज्ञान में इसका कोई इलाज नहीं है। बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाइए और कहिए – यह आदमी टैक्स से मर रहा है। इसके प्राण बचा लीजिए। वह कहेगा इसका हमारे पास कोई इलाज नहीं है। लेकिन इसके भी इलाज करनेवाले होते हैं मगर वे एलोपैथी या होमियोपैथी पढ़े नहीं होते। इसकी चिकित्सा पद्धति अलग है। इस देश में कुछ लोग टैक्स की बीमारी से मरते हैं और काफी लोग भुखमरी से।
टैक्स की बीमारी की विशेषता यह है कि जिसे लग जाए वह कहता है- हाय, हम टैक्स से मर रहे हैं। और जिसे न लगे वह कहता है- हाय, हमें टैक्स की बीमारी ही नहीं लगती। कितने लोग हैं जिनकी महत्त्वाकांक्षा होती है कि टैक्स की बीमारी से मरें पर मर जाते हैं निमोनिया से हमें उन पर दया आई। सोचा, कहें कि प्रापर्टी समेत यह बीमारी हमें दे दीजिए। पर वे नहीं देते। यह कमबख्त बीमारी ही ऐसी है कि जिसे लग जाए उसे प्यारी हो जाती है।
मुझे उनसे ईर्ष्या हुई। मैं उन जैसा ही बीमार होना चाहता हूँ। उनकी तरह ही मरना चाहता हूँ। कितना अच्छा होता अगर शोक-समाचार यों छपता- ‘बड़ी प्रसन्नता की बात है कि हिंदी के व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई टैक्स की बीमारी से मर गए। वे हिंदी के प्रथम लेखक हैं जो इस बीमारी से मरे। इस घटना से समस्त हिंदी संसार गौरवान्वित है। आशा है आगे भी लेखक इसी बीमारी से मरेंगे। मगर अपने भाग्य में यह कहाँ? अपने भाग्य में तो टुच्ची बीमारियों से मरना लिखा है।
उनका दुख देखकर मैं सोचता हूँ, दुख भी कैसे-कैसे होते हैं। अपना-अपना दुख अलग होता है। उनका दुख था कि टैक्स मारे डाल रहा है। अपना दुख है कि प्रापर्टी नहीं है जिससे अपने को भी टैक्स से मरने का सौभाग्य प्राप्त हो। हम कुल 50 रूपए चंदा न मिलने के दुख में मरे जा रहे थे।
मेरे पास एक आदमी आता था जो दूसरों की बेईमानी की बीमारी से मरा जाता था। अपनी बेईमानी प्राणघातक नहीं होती बल्कि संयम से साधी जाए तो स्वास्थ्यवर्द्धक होती है। वह आदर्श प्रेमी आदमी था। गांधीजी के नाम से चलनेवाले किसी प्रतिष्ठान में काम करता था। मेरे पास घंटों बैठता और बताता कि वहाँ कैसी बेईमानी चल रही है। कहता, युवावस्था में मैंने अपने को समर्पित कर दिया था। किस आशा से इस संस्था में गया और क्या देख रहा हूँ। मैंने कहा- भैया, युवावस्था में जिनने समर्पित कर दिया वे सब रो रहे हैं। फिर तुम आदर्श लेकर गए ही क्यों? गांधीजी दुकान खोलने का आदेश तो मरते-मरते दे नहीं गए थे। मैं समझ गया उसके कष्ट को। गांधीजी का नाम प्रतिष्ठान में जुड़ा होने के कारण वह बेईमानी नहीं कर पाता था और दूसरों की बेईमानी से बीमार था। अगर प्रतिष्ठान का नाम कुछ और हो जाता तो वह भी औरों जैसा करता और स्वस्थ रहता। मगर गांधीजी ने उसकी जिंदगी बरबाद की थी। गांधीजी विनोबा जैसों की जिंदगी बरबाद कर गए। बड़े-बड़े दुख हैं। मैं बैठा हूँ। मेरे साथ 2-3 बंधु बैठे हैं। मैं दुखी हूँ! मेरा दुख यह है कि मुझे बिजली का 40 रूपए का बिल जमा करना है और मेरे पास इतने रूपए नहीं हैं।
तभी एक बंधु अपना दुख बताने लगता है। उसने 8 कमरों का मकान बनाने की योजना बनाई थी। 6 कमरे बन चुके हैं। 2 के लिए पैसे की तंगी आ गई है। वह बहुत – बहुत दुखी है। वह अपने दुख का वर्णन करता है। मैं प्रभावित नहीं होता। मगर उसका दुख कितना विकट है कि मकान को 8 कमरों का नहीं रख सकता। मुझे उसके दुख से दुखी होना चाहिए पर नहीं हो पाता। मेरे मन में बिजली के बिल के 40 रूपए का खटका लगा है।
दूसरे बंधु पुस्तक – विक्रेता हैं। पिछले साल 50 हजार की किताबें पुस्तकालयों को बेची थीं। इस साल 40 हजार की बिकीं। कहते हैं- बड़ी मुश्किल है। सिर्फ 40 हजार की किताबें इस साल बिकीं। ऐसे में कैसे चलेगा? वे चाहते हैं, मैं दुखी हो जाऊँ पर मैं नहीं होता। इनके पास मैंने अपनी 100 किताबें रख दी थीं। वे बिक गईं। मगर जब मैं पैसे माँगता हूँ तो वे ऐसे हँसने लगते हैं जैसे मैं हास्यरस पैदा कर रहा हूँ। बड़ी मुसीबत है व्यंग्यकार की। वह अपने पैसे माँगे तो उसे भी व्यंग्य-विनोद में शामिल कर लिया जाता है। मैं उनके दुख से दुखी नहीं होता।
मेरे मन में बिजली कटने का खटका लगा हुआ है। तीसरे बंधु की रोटरी मशीन आ गई। अब मोनो मशीन आने में कठिनाई आ गई है। वे दुखी हैं। मैं फिर दुखी नहीं होता। अंततः मुझे लगता है कि अपने बिजली के बिल को भूलकर मुझे इन सबके दुख में दुखी हो जाना चाहिए। मैं दुखी हो जाता हूँ। कहता हूँ- क्या ट्रेजडी हैं मनुष्य-जीवन की कि मकान कुल 6 कमरों का रह जाता है और कैसी निर्दय यह दुनिया है कि सिर्फ 40 हजार की किताबें खरीदती है। कैसा बुरा वक्त आ गया है कि मोनो मशीन ही नहीं आ रही है।
वे तीनों प्रसन्न हैं कि मैं उनके दुःखों से आखिर दुखी हो ही गया। तरह-तरह के संघर्ष में तरह-तरह के दुख हैं। एक जीवित रहने का संघर्ष है और एक संपन्नता का संघर्ष है। एक न्यूनतम जीवन स्तर न कर पाने का दुख है, एक पर्याप्त संपन्नता न होने का दुख है। ऐसे में कोई अपने टुच्चे दुखों को लेकर कैसे बैठे?
मेरे मन में फिर वही लालसा उठती है कि वे सज्जन प्रापर्टी समेत अपनी टैक्सों की बीमारी मुझे दे दें और मैं उससे मर जाऊँ। मगर वे मुझे यह चांस नहीं देंगे। न वे प्रापर्टी छोड़ेंगे, न बीमारी, और मुझे अंततः किसी ओछी बीमारी से ही मरना होगा।
अपनी-अपनी बीमारी का सारांश
यह व्यंग्यात्मक निबंध समाज में विभिन्न वर्गों के दुखों और ‘बीमारियों’ पर कटाक्ष करता है। लेखक चंदा माँगने जाते हैं, जहाँ अमीर व्यक्ति टैक्स की ‘बीमारी’ से मरने की शिकायत करता है, जबकि वह स्वस्थ और खुश है। लेखक व्यंग्य करते हैं कि टैक्स की यह ‘बीमारी’ संपत्ति वाले लोगों को लगती है और उन्हें प्यारी लगती है, जबकि गरीब भुखमरी या साधारण रोगों से मरते हैं। लेखक को ईर्ष्या होती है कि वह ऐसी ‘बीमारी’ से नहीं मर सकता। आगे, वे विभिन्न दुखों का वर्णन करते हैं: एक व्यक्ति दूसरों की बेईमानी से बीमार है, क्योंकि गांधीजी के नाम वाली संस्था में वह ईमानदार रहता है। अन्य मित्र बड़े घर न बना पाने, किताबें कम बिकने या मशीन न आने के दुख से ग्रस्त हैं। लेखक अपने छोटे दुख (बिजली बिल) को भूलकर उनके दुखों में शामिल होते हैं। निबंध दर्शाता है कि दुख सापेक्ष हैं—एक जीवित रहने का संघर्ष, दूसरा संपन्नता बढ़ाने का। अंत में, लेखक लालसा जताते हैं कि काश अमीर अपनी ‘टैक्स बीमारी’ उन्हें दे दें, लेकिन जानते हैं कि वे ओछी बीमारियों से ही मरेंगे। यह समाज की वर्ग-विभेद और मानवीय महत्त्वाकांक्षाओं पर तीखा व्यंग्य है।
शब्दार्थ
शब्द | हिंदी अर्थ | English Meaning |
चंदा | दान या सहायता राशि | Donation or contribution |
अभ्यासी | अभ्यास करने वाला या विशेषज्ञ | Practitioner or expert |
भाँप | अनुमान लगाना या समझना | To gauge or sense |
गंध | सुगंध या बदबू | Smell or odor |
कर्तव्य | दायित्व या फर्ज | Duty or obligation |
प्रार्थना | निवेदन या माँग | Request or plea |
निमोनिया | फेफड़ों का संक्रमण रोग | Pneumonia |
कालरा | हैजा रोग | Cholera |
कैंसर | घातक ट्यूमर रोग | Cancer |
चिकित्सा-विज्ञान | चिकित्सा का विज्ञान | Medical science |
एलोपैथी | आधुनिक चिकित्सा पद्धति | Allopathy |
होमियोपैथी | समानता पर आधारित चिकित्सा | Homeopathy |
भुखमरी | भूख से मरना | Starvation |
महत्त्वाकांक्षा | बड़ी इच्छा या आकांक्षा | Ambition |
प्रापर्टी | संपत्ति या जायदाद | Property |
ईर्ष्या | जलन या द्वेष | Jealousy or envy |
शोक-समाचार | मृत्यु सूचना | Obituary |
गौरवान्वित | गर्व से भरा | Proud or honored |
व्यंग्य | कटाक्ष या उपहास | Satire or sarcasm |
बेईमानी | धोखाधड़ी या असत्य | Dishonesty |
प्रतिष्ठान | संस्था या प्रतिष्ठित जगह | Institution or establishment |
समर्पित | समर्पण किया हुआ | Dedicated or devoted |
ट्रेजडी | दुखद घटना | Tragedy |
संघर्ष | लड़ाई या प्रयास | Struggle |
संपन्नता | धन-समृद्धि | Prosperity |
न्यूनतम | सबसे कम या न्यून | Minimum |
लालसा | तीव्र इच्छा | Desire or craving |
सज्जन | सभ्य व्यक्ति | Gentleman or noble person |
ओछी | नीच या घटिया | Lowly or base |
स्वास्थ्यवर्द्धक | स्वास्थ्य बढ़ाने वाला | Health-promoting |
प्राणघातक | जानलेवा | Fatal or deadly |
तंगी | कमी या अभाव | Shortage or tightness |
विकट | कठिन या भयानक | Severe or intense |
खटका | चिंता या आशंका | Worry or apprehension |
मुसीबत | परेशानी | Trouble or difficulty |
अंततः | आखिरकार | Ultimately |
निर्दय | क्रूर या बेरहम | Merciless |
पाठ से
- ‘बीमारी‘ शब्द को लेखक ने किन-किन संदर्भों में प्रयोग किया है?
उत्तर – लेखक ने ‘बीमारी’ शब्द का प्रयोग व्यंग्यात्मक रूप से विभिन्न संदर्भों में किया है। पहला, ‘टैक्स की बीमारी’ अमीरों के लिए, जो टैक्स देने की शिकायत करते हैं, पर यह उन्हें प्यारी लगती है। दूसरा, ‘बेईमानी की बीमारी’ गांधीवादी संस्था में काम करने वाले व्यक्ति के लिए, जो दूसरों की बेईमानी से दुखी है। तीसरा, सामान्य बीमारियाँ जैसे निमोनिया, कैंसर, जो गरीबों को मारती हैं। यह सामाजिक और आर्थिक असमानता पर कटाक्ष है।
- पाठ में दिया गया शोक समाचार – “बड़ी प्रसन्नता की बात है… से क्यों शुरू हुआ है?” अपना तर्क दीजिए।
उत्तर – शोक समाचार का “बड़ी प्रसन्नता की बात है” से शुरू होना व्यंग्य है। लेखक यह दर्शाते हैं कि टैक्स की बीमारी से मरना अमीरों के लिए गर्व की बात है, क्योंकि यह संपत्ति का प्रतीक है। यह सामाजिक विडंबना को उजागर करता है कि गरीब साधारण रोगों से मरते हैं, जबकि अमीरों की ‘बीमारी’ विलासिता का प्रतीक है। यह वर्ग-विभेद पर तीखा कटाक्ष है।
- “गांधीजी विनोबा जैसों की जिंदगी बरबाद कर गए” इस पंक्ति का आशय क्या है? लिखिए।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय व्यंग्यात्मक है। लेखक कहते हैं कि गांधीजी के आदर्शों से प्रेरित लोग, जैसे विनोबा, जो ईमानदारी से बंधे हैं, दूसरों की बेईमानी देखकर दुखी होते हैं। गांधीजी का नाम संस्था से जुड़ा होने के कारण व्यक्ति बेईमानी नहीं कर पाता, जिससे उसका जीवन कष्टमय हो जाता है। यह आदर्शवाद और वास्तविकता के टकराव को दर्शाता है।
- टैक्स को ‘बीमारी‘ के रूप में देखने का क्या आशय है?
उत्तर – टैक्स को ‘बीमारी’ के रूप में देखना व्यंग्य है, जो अमीरों की शिकायत को उजागर करता है। वे टैक्स को बोझ बताते हैं, पर यह उनकी संपत्ति का प्रतीक है। लेखक इसकी तुलना गरीबों की भुखमरी और जानलेवा रोगों से करते हैं, जो वास्तविक पीड़ा हैं। यह सामाजिक असमानता और अमीरों की बनावटी शिकायत पर कटाक्ष है।
- लेखक टैक्स की बीमारी को क्यों अपनाना चाहता है?
उत्तर – लेखक टैक्स की बीमारी को अपनाना चाहते हैं, क्योंकि यह संपत्ति और समृद्धि का प्रतीक है। वे व्यंग्य करते हैं कि गरीब साधारण रोगों से मरते हैं, जबकि टैक्स की ‘बीमारी’ अमीरों को गौरवान्वित करती है। लेखक इस ‘बीमारी’ को अपनाकर सामाजिक और आर्थिक ऊँचाई की लालसा व्यक्त करते हैं, जो उनके लिए असंभव है।
पाठ से आगे
- ‘सबका दुख अलग-अलग होता है, किस-किस तरह के दुख के अनुभव आपने किए हैं? उन्हें लिखिए।
उत्तर – मेरे अनुभव में दुख कई प्रकार के हैं। आर्थिक दुख, जैसे बिल चुकाने के लिए पैसे की कमी; भावनात्मक दुख, जैसे अपनों से दूरी; और सामाजिक दुख, जैसे अपमान का अनुभव। कभी पढ़ाई में असफलता का दुख हुआ, तो कभी दोस्तों के साथ गलतफहमी का। ये दुख जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़े हैं और व्यक्तिगत परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं।
- अपने परिवार के सभी लोगों से उनके दुःख पूछिए और लिखिए। यह भी बताइए कि आप उनके लिए क्या कर सकते हैं कि उनके दुख दूर हों।
उत्तर – माँ का दुख घर के खर्चों की चिंता है; मैं उनकी मदद के लिए छोटी-मोटी नौकरी कर सकता हूँ। पिताजी को स्वास्थ्य की चिंता है; मैं उनकी नियमित जाँच सुनिश्चित कर सकता हूँ। भाई को पढ़ाई का तनाव है; मैं उसे प्रोत्साहित और मार्गदर्शन कर सकता हूँ। बहन को दोस्तों से झगड़ा दुखी करता है; मैं उसकी बात सुनकर सलाह दे सकता हूँ।
- अक्सर लोग अपनी बुनियादी जरूरतों के रहते हुए भी और ज्यादा की चाह करते रहते हैं। पाठ में भी एक-दो ऐसे दुखी लोगों के उदाहरण दिए हुए हैं। आपके अपने अनुभव में भी कुछ उदाहरण होंगे। उनके बारे में लिखिए।
उत्तर – पाठ में एक व्यक्ति आठ कमरों का मकान न बना पाने से दुखी है, दूसरा 40 हजार की किताबें बिकने से। मेरे अनुभव में, एक दोस्त नई कार न खरीद पाने से दुखी था, जबकि उसके पास पुरानी कार थी। दूसरा, मेरा रिश्तेदार विदेश यात्रा न कर पाने से परेशान था, जबकि उसका जीवन सुखी था। ये महत्वाकांक्षाएँ अतृप्ति पैदा करती हैं।
भाषा के बारे में
- कई बार किसी बात को सीधे न कहकर कुछ इस अंदाज में प्रस्तुत किया जाता है कि अर्थ सीधे उस वाक्य में न होकर कहीं और होता है जैसे इस पाठ में ही ‘टैक्स के मारे मर रहे हैं;’ ‘बेइमानी की बीमारी से मर रहे हैं; वाक्य आए हैं। इनका अर्थ अगर सीधे शब्दों से लें तो अनर्थ हो सकता है। यहाँ ‘मर रहे हैं’ का अर्थ मृत्यु न होकर दुखी व विचलित होना है।
इस पाठ से ऐसे अंश ढूँढिए जिनके सामान्य अर्थ और समझे जाने वाले वाक्य अर्थ में अंतर है।
वाक्य वाक्य अर्थ
वाक्य | वाक्य अर्थ |
टैक्स के मारे मर रहे हैं | सामान्य अर्थ: टैक्स से मृत्यु हो रही है। वास्तविक अर्थ: टैक्स के बोझ से परेशान होना। |
बेईमानी की बीमारी से मर रहे हैं | सामान्य अर्थ: बेईमानी से मृत्यु। वास्तविक अर्थ: दूसरों की बेईमानी से मानसिक कष्ट। |
यह बीमारी हमें दे दीजिए | सामान्य अर्थ: बीमारी माँगना। वास्तविक अर्थ: संपत्ति और टैक्स देने की स्थिति की चाह। |
गांधीजी ने जिंदगी बरबाद कर दी | सामान्य अर्थ: गांधीजी ने नुकसान किया। वास्तविक अर्थ: आदर्शों के कारण बेईमानी न कर पाने का कष्ट। |
टुच्ची बीमारियों से मरना | सामान्य अर्थ: छोटी बीमारियों से मृत्यु। वास्तविक अर्थ: गरीबी और साधारण समस्याओं से जूझना। |
- किसी अखबार से समाचार, विज्ञापन, शोक संदेश, लेख व संपादकीय की एक-एक कतरन निकालिए। और उसे भाषा, वाक्य संरचना, शब्द चयन और अर्थ की दृष्टि से पढ़िए। शिक्षक की मदद से उनके फर्क पहचानिए एवं अपने विश्लेषण को सारणी के रूप में प्रस्तुत कीजिए।
प्रकार | भाषा | वाक्य संरचना | शब्द चयन | अर्थ |
समाचार | सरल, तथ्यात्मक | छोटे, स्पष्ट वाक्य | तटस्थ, सामान्य | जानकारी देना, तथ्य प्रस्तुत करना |
विज्ञापन | आकर्षक, प्रेरक | छोटे, प्रभावशाली वाक्य | भावनात्मक, प्रलोभनकारी | उत्पाद/सेवा को बेचने की कोशिश |
शोक संदेश | औपचारिक, संवेदनशील | संक्षिप्त, गंभीर | शोकपूर्ण, सम्मानजनक | मृत्यु पर दुख व्यक्त करना |
लेख | विश्लेषणात्मक, विचारपूर्ण | मिश्रित, तर्कपूर्ण | वैचारिक, विशेषज्ञ | विचारों का आदान-प्रदान |
संपादकीय | तर्कसंगत, आलोचनात्मक | जटिल, तर्कपूर्ण | गंभीर, प्रभावशाली | राय देना, नीति पर प्रभाव डालना |
परियोजना- कार्य
- टैक्स क्या होता है? यह क्यों लगाया जाता है? इसके निर्धारण के क्या आधार हैं एवं एक सामान्य व्यक्ति को किस-किस प्रकार के टैक्स अदा करने पड़ते हैं? सामाजिक विज्ञान (अर्थशास्त्र) के शिक्षक के सहयोग से इसके बारे में जानने-समझने का प्रयास करें।
उत्तर – टैक्स सरकार द्वारा नागरिकों से लिया जाने वाला कर है, जो सार्वजनिक सेवाओं, जैसे सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए धन जुटाने हेतु लगाया जाता है। निर्धारण के आधार: आय, संपत्ति, खपत, और व्यापार के आधार पर। प्रकार: आयकर (इनकम टैक्स), वस्तु एवं सेवा कर (GST), संपत्ति कर, और कॉर्पोरेट टैक्स। सामान्य व्यक्ति को आयकर (वेतन पर), GST (वस्तुओं/सेवाओं पर), और संपत्ति कर (घर/जमीन पर) देना पड़ता है। शिक्षक से चर्चा कर विस्तृत जानकारी प्राप्त करें।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
- लेखक किस उद्देश्य से उन सज्जन के पास गए थे?
(a) उधार लेने
(b) चंदा माँगने
(c) कर (टैक्स) जमा करने
(d) इलाज कराने
उत्तर – (b) चंदा माँगने
- चंदा माँगने वाले और देने वाले एक-दूसरे को किससे पहचानते हैं?
(a) कपड़ों से
(b) बातों से
(c) शरीर की गंध से
(d) व्यवहार से
उत्तर – (c) शरीर की गंध से
- लेखक को बैठते ही क्या समझ में आ गया?
(a) वे पैसा देंगे
(b) वे पैसा नहीं देंगे
(c) वे बीमारी बताएँगे
(d) वे मदद करेंगे
उत्तर – (b) वे पैसा नहीं देंगे
- वे सज्जन टैक्स की बीमारी से किस प्रकार मर रहे थे?
(a) वास्तव में बीमार थे
(b) दिखावे में बीमार थे
(c) मानसिक रूप से परेशान थे
(d) लेखक को भ्रमित कर रहे थे
उत्तर – (c) मानसिक रूप से परेशान थे
- लेखक ने टैक्स की बीमारी को किस प्रकार की बीमारी बताया है?
(a) सामान्य बीमारी
(b) चिकित्सकीय बीमारी
(c) अजीब रोग
(d) साधारण रोग
उत्तर – (c) अजीब रोग
- टैक्स की बीमारी का इलाज किस चिकित्सा पद्धति में नहीं है?
(a) एलोपैथी
(b) होमियोपैथी
(c) यूनानी
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर – (d) उपरोक्त सभी
- लेखक को टैक्स की बीमारी वाले व्यक्ति से क्या ईर्ष्या हुई?
(a) वह स्वस्थ है
(b) वह प्रसन्न है
(c) उसके पास प्रॉपर्टी है
(d) वह चंदा देता है
उत्तर – (c) उसके पास प्रॉपर्टी है
- लेखक अपनी मृत्यु कैसे चाहते हैं?
(a) निमोनिया से
(b) टैक्स की बीमारी से
(c) भुखमरी से
(d) कालरा से
उत्तर – (b) टैक्स की बीमारी से
- लेखक को चंदा न मिलने का कितना दुख था?
(a) 10 रुपये
(b) 20 रुपये
(c) 50 रुपये
(d) 100 रुपये
उत्तर – (c) 50 रुपये
- लेखक के पास कौन-सी तात्कालिक समस्या थी?
(a) मकान बनवाना
(b) किताबें बेचना
(c) बिजली का बिल जमा करना
(d) टैक्स चुकाना
उत्तर – (c) बिजली का बिल जमा करना
- लेखक के पास कितना बिजली बिल जमा करने के पैसे नहीं थे?
(a) 20 रुपये
(b) 30 रुपये
(c) 40 रुपये
(d) 50 रुपये
उत्तर – (c) 40 रुपये
- दूसरे बंधु का दुख क्या था?
(a) 8 कमरों का मकान नहीं बना पा रहा
(b) टैक्स देना पड़ रहा है
(c) बिजली का बिल नहीं चुका पा रहा
(d) किताबें नहीं बिक रहीं
उत्तर – (a) 8 कमरों का मकान नहीं बना पा रहा
- पुस्तक विक्रेता का दुख क्या था?
(a) किताबें नहीं बिक रहीं
(b) मकान नहीं बन रहा
(c) बिजली नहीं आ रही
(d) टैक्स लग गया
उत्तर – (a) किताबें नहीं बिक रहीं
- पुस्तक विक्रेता ने पिछले साल कितने की किताबें बेची थीं?
(a) 20 हजार
(b) 30 हजार
(c) 40 हजार
(d) 50 हजार
उत्तर – (d) 50 हजार
- इस साल पुस्तक विक्रेता ने कितनी किताबें बेचीं?
(a) 30 हजार
(b) 40 हजार
(c) 50 हजार
(d) 60 हजार
उत्तर – (b) 40 हजार
- तीसरे बंधु का दुख क्या था?
(a) रोटरी मशीन नहीं आई
(b) मोनो मशीन नहीं आई
(c) किताबें नहीं बिक रहीं
(d) मकान नहीं बन रहा
उत्तर – (b) मोनो मशीन नहीं आई
- लेखक के अनुसार दुख कितने प्रकार के होते हैं?
(a) एक प्रकार के
(b) समान प्रकार के
(c) अलग-अलग प्रकार के
(d) कोई प्रकार नहीं
उत्तर – (c) अलग-अलग प्रकार के
- लेखक ने किस संघर्ष का उल्लेख किया है?
(a) जीवित रहने का संघर्ष और संपन्नता का संघर्ष
(b) पढ़ाई का संघर्ष
(c) किताबें बेचने का संघर्ष
(d) टैक्स जमा करने का संघर्ष
उत्तर – (a) जीवित रहने का संघर्ष और संपन्नता का संघर्ष
- लेखक ने अपनी किस लालसा का वर्णन किया है?
(a) दूसरों की प्रॉपर्टी लेना
(b) टैक्स की बीमारी पाना
(c) किताबें बेचना
(d) मकान बनाना
उत्तर – (b) टैक्स की बीमारी पाना
- अंत में लेखक ने अपनी मृत्यु के बारे में क्या कहा?
(a) ओछी बीमारी से मरना होगा
(b) टैक्स की बीमारी से मरेंगे
(c) भुखमरी से मरेंगे
(d) मकान न बन पाने से मरेंगे
उत्तर – (a) ओछी बीमारी से मरना होगा
एक वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर
प्रश्न – लेखक ने “अपनी-अपनी बीमारी” में चंदा माँगने के अनुभव का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर – लेखक ने व्यंग्यात्मक रूप से बताया है कि चंदा माँगने और देने वाले एक-दूसरे को गंध से भाँप लेते हैं, और दोनों अपने कर्तव्य निभाते हैं, पर लेखक को लगता है कि सामने वाला चंदा नहीं देगा।
प्रश्न – टैक्स की बीमारी से मरने की शिकायत करने वाला व्यक्ति कैसा था?
उत्तर – टैक्स की बीमारी से मरने की शिकायत करने वाला व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ और प्रसन्न था, जो उसकी संपत्ति और समृद्धि का प्रतीक था।
प्रश्न – लेखक ने टैक्स की बीमारी को चिकित्सा-विज्ञान में अजीब रोग क्यों कहा?
उत्तर – लेखक ने टैक्स की बीमारी को अजीब रोग कहा, क्योंकि इसका चिकित्सा-विज्ञान में कोई इलाज नहीं है, और यह जानलेवा रोगों जैसे निमोनिया या कैंसर से भिन्न है।
प्रश्न – टैक्स की बीमारी की विशेषता क्या है, जैसा कि लेखक ने बताया?
उत्तर – लेखक के अनुसार, टैक्स की बीमारी की विशेषता यह है कि जिसे यह लगती है, वह इसे बोझ बताता है, पर उसे यह प्यारी लगती है।
प्रश्न – लेखक को टैक्स की बीमारी से मरने की इच्छा क्यों हुई?
उत्तर – लेखक को टैक्स की बीमारी से मरने की इच्छा हुई, क्योंकि यह संपत्ति का प्रतीक है, और वे इसे गरीबी की तुलना में सम्मानजनक मृत्यु मानते हैं।
प्रश्न – लेखक ने अपने शोक-समाचार के बारे में क्या कल्पना की?
उत्तर – लेखक ने कल्पना की कि उनका शोक-समाचार कहेगा कि वे टैक्स की बीमारी से मरे, जिससे हिंदी संसार गौरवान्वित होगा।
प्रश्न – बेईमानी की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का वर्णन लेखक ने कैसे किया?
उत्तर – लेखक ने बताया कि बेईमानी की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति गांधीजी के नाम की संस्था में काम करता था और दूसरों की बेईमानी से दुखी था।
प्रश्न – लेखक ने गांधीजी पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर – लेखक ने व्यंग्य किया कि गांधीजी के आदर्शों ने विनोबा जैसे लोगों की जिंदगी बरबाद की, क्योंकि वे ईमानदारी के कारण कष्ट में रहते हैं।
प्रश्न – लेखक का अपना दुख क्या था, जब वे चंदा माँगने गए?
उत्तर – लेखक का दुख यह था कि उन्हें 50 रुपये का चंदा नहीं मिला, और वे बिजली बिल चुकाने में असमर्थ थे।
प्रश्न – लेखक ने बिजली बिल के दुख को बार-बार क्यों उल्लेख किया?
उत्तर – लेखक ने बिजली बिल के दुख को उल्लेख किया, क्योंकि यह उनकी आर्थिक तंगी और गरीबी का प्रतीक था।
प्रश्न – आठ कमरों का मकान न बना पाने का दुख किसे था?
उत्तर – आठ कमरों का मकान न बना पाने का दुख लेखक के एक मित्र को था, जिसे पैसे की कमी थी।
प्रश्न – पुस्तक-विक्रेता का दुख क्या था?
उत्तर – पुस्तक-विक्रेता का दुख यह था कि उसने इस साल केवल 40 हजार की किताबें बेचीं, जो पिछले साल से कम थी।
प्रश्न – लेखक ने पुस्तक-विक्रेता के दुख पर क्यों सहानुभूति नहीं दिखाई?
उत्तर – लेखक ने सहानुभूति नहीं दिखाई, क्योंकि पुस्तक-विक्रेता ने उनकी किताबों के पैसे नहीं दिए और उनकी माँग को हास्य में लिया।
प्रश्न – तीसरे मित्र का दुख क्या था?
उत्तर – तीसरे मित्र का दुख यह था कि उनकी रोटरी मशीन तो आ गई, पर मोनो मशीन आने में कठिनाई थी।
प्रश्न – लेखक ने अपने दुख को क्यों ‘टुच्चा’ कहा?
उत्तर – लेखक ने अपने दुख को ‘टुच्चा’ कहा, क्योंकि यह बिजली बिल जैसे छोटे मुद्दों से जुड़ा था, जो अमीरों के दुखों की तुलना में तुच्छ था।
प्रश्न – लेखक ने दुख की सापेक्षता को कैसे समझाया?
उत्तर – लेखक ने समझाया कि दुख सापेक्ष हैं—अमीर टैक्स से, मध्यम वर्ग अधूरी योजनाओं से, और गरीब बुनियादी जरूरतों से दुखी हैं।
प्रश्न – लेखक ने दूसरों के दुखों में शामिल होने का नाटक क्यों किया?
उत्तर – लेखक ने दूसरों के दुखों में शामिल होने का नाटक किया, ताकि सामाजिक तौर पर उनके साथ सहानुभूति दिखाई जाए, पर वे अपने दुख से विचलित थे।
प्रश्न – लेखक ने जीवन के संघर्ष को कैसे वर्गीकृत किया?
उत्तर – लेखक ने जीवन के संघर्ष को दो प्रकार में वर्गीकृत किया—एक जीवित रहने का और दूसरा संपन्नता बढ़ाने का।
प्रश्न – लेखक ने टैक्स की बीमारी को क्यों प्यारी बताया?
उत्तर – लेखक ने टैक्स की बीमारी को प्यारी बताया, क्योंकि यह संपत्ति का प्रतीक है
30-40 शब्दों वाले प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखक और उनके साथी चंदा माँगने क्यों गए थे और उन्हें क्या अनुभव हुआ?
उत्तर – लेखक और उनके साथी सामाजिक कार्य हेतु चंदा माँगने गए थे। परंतु वहाँ पहुँचते ही उन्हें समझ आ गया कि सामने वाला व्यक्ति चंदा नहीं देगा। इसी प्रकार सामने वाले ने भी भाँप लिया कि लेखक बिना चंदा लिए ही लौट जाएँगे।
प्रश्न 2. टैक्स की बीमारी को लेखक ने किस प्रकार की बीमारी बताया और क्यों?
उत्तर – लेखक ने टैक्स की बीमारी को अजीब रोग बताया है। यह बीमारी वास्तविक न होकर मानसिक है। इसमें व्यक्ति स्वस्थ और प्रसन्न रहते हुए भी बार-बार कहता है कि वह टैक्स से मर रहा है। चिकित्सा-विज्ञान में इसका कोई इलाज नहीं मिलता।
प्रश्न 3. टैक्स की बीमारी को लोग क्यों पसंद करते हैं?
उत्तर – टैक्स की बीमारी लगने पर लोग अपनी संपन्नता और संपत्ति का बखान कर सकते हैं। जिसे यह बीमारी हो जाए, वह उससे छुटकारा नहीं चाहता। यह बीमारी व्यक्ति को प्रिय हो जाती है क्योंकि यह संपन्नता और प्रतिष्ठा का प्रतीक मानी जाती है।
प्रश्न 4. लेखक को टैक्स की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति से क्यों ईर्ष्या हुई?
उत्तर – लेखक को ईर्ष्या इसलिए हुई क्योंकि टैक्स की बीमारी केवल संपन्न व्यक्तियों को होती है। वह चाहते थे कि उनके पास भी इतनी प्रॉपर्टी हो कि लोग कहें—“वे टैक्स से मर रहे हैं।” लेखक को यह दुर्लभ अवसर अपने जीवन में नहीं मिलने वाला था।
प्रश्न 5. लेखक की वास्तविक समस्या क्या थी?
उत्तर – लेखक की वास्तविक समस्या यह थी कि उनके पास बिजली का 40 रुपये का बिल भरने के पैसे नहीं थे। वे इसे लेकर बहुत चिंतित और दुखी थे। दूसरों की बड़ी-बड़ी समस्याओं की तुलना में यह उन्हें छोटी परंतु कष्टदायक लग रही थी।
प्रश्न 6. दूसरे बंधु का दुख क्या था और लेखक पर उसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – दूसरे बंधु ने आठ कमरों का मकान बनाने की योजना बनाई थी, परंतु पैसों की तंगी से केवल छह कमरे ही बन पाए। वह इसी कारण बहुत दुखी थे। लेकिन लेखक उस दुख से प्रभावित नहीं हुए, क्योंकि उनके मन में बिजली के बिल की चिंता थी।
प्रश्न 7. पुस्तक विक्रेता का दुख क्या था और उसने लेखक को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर – पुस्तक विक्रेता का दुख यह था कि पिछले साल 50 हजार की किताबें बिकीं, जबकि इस वर्ष केवल 40 हजार की ही बिक पाईं। वह इसे बड़ी मुश्किल मानता था। पर लेखक को यह दुख गंभीर नहीं लगा, क्योंकि उनकी अपनी चिंता बिजली के बिल को लेकर थी।
प्रश्न 8. तीसरे बंधु का दुख क्या था और लेखक ने इसे किस रूप में देखा?
उत्तर – तीसरे बंधु की रोटरी मशीन आ गई थी, पर मोनो मशीन आने में कठिनाई हो रही थी। इसे लेकर वे दुखी थे। लेखक ने इसे भी संपन्न लोगों का दुख माना और स्वयं प्रभावित नहीं हुए, क्योंकि उनकी समस्या 40 रुपये का बिजली बिल चुकाने की थी।
प्रश्न 9. लेखक ने किस प्रकार के दुखों और संघर्षों का अंतर बताया है?
उत्तर – लेखक ने बताया कि जीवन में दुख और संघर्ष दो प्रकार के होते हैं—एक जीवित रहने के लिए न्यूनतम साधन जुटाने का संघर्ष और दूसरा पर्याप्त संपन्नता के बाद और अधिक पाने का संघर्ष। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्थिति के अनुसार दुखी रहता है।
प्रश्न 10. अंत में लेखक ने अपनी मृत्यु को लेकर क्या निष्कर्ष निकाला?
उत्तर – लेखक ने निष्कर्ष निकाला कि उन्हें कभी भी टैक्स की बीमारी से मरने का सौभाग्य नहीं मिलेगा, क्योंकि उनके पास प्रॉपर्टी ही नहीं है। वे अंततः किसी ओछी या सामान्य बीमारी से ही मरेंगे। इस प्रकार वे व्यंग्य में अपनी असहायता और व्यथा प्रकट करते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – “अपनी-अपनी बीमारी” निबंध में लेखक ने टैक्स को ‘बीमारी’ के रूप में प्रस्तुत कर सामाजिक असमानता पर क्या प्रकाश डाला है?
उत्तर – लेखक हरिशंकर परसाई टैक्स को ‘बीमारी’ कहकर व्यंग्य करते हैं, क्योंकि अमीर इसे बोझ बताते हैं, पर यह उनकी संपत्ति का प्रतीक है। गरीब भुखमरी और साधारण रोगों से मरते हैं, जबकि टैक्स की ‘बीमारी’ अमीरों को गर्व देती है। यह सामाजिक असमानता को उजागर करता है, जहाँ अमीरों का दुख विलासिता से जुड़ा है, और गरीबों का दुख जीवन रक्षा से।
- प्रश्न – लेखक ने गांधीजी के नाम से चलने वाले प्रतिष्ठान में काम करने वाले व्यक्ति के दुख के माध्यम से आदर्शवाद और वास्तविकता के टकराव को कैसे दर्शाया है?
उत्तर – लेखक बताते हैं कि गांधीजी के नाम से चलने वाली संस्था में काम करने वाला व्यक्ति दूसरों की बेईमानी से दुखी है, क्योंकि वह आदर्शवाद के कारण ईमानदार रहता है। यह आदर्शवाद और वास्तविकता के टकराव को दर्शाता है, जहाँ गांधीजी के सिद्धांत उसे बेईमानी से रोकते हैं, पर दूसरों की बेईमानी उसकी जिंदगी को कष्टमय बनाती है। यह नैतिकता की विडंबना को उजागर करता है।
- प्रश्न – निबंध में लेखक ने विभिन्न दुखों का वर्णन कर सामाजिक वर्गों के बीच की खाई को कैसे उभारा है?
उत्तर – लेखक विभिन्न दुखों—टैक्स की ‘बीमारी’, बेईमानी का कष्ट, बिजली बिल, कम बिक्री, और अधूरी योजनाओं—के माध्यम से सामाजिक वर्गों की खाई को उभारते हैं। अमीर टैक्स से दुखी हैं, जो उनकी समृद्धि दिखाता है, जबकि गरीब बुनियादी जरूरतों के लिए जूझते हैं। यह दर्शाता है कि दुख सापेक्ष हैं—एक का दुख जीवित रहना, तो दूसरे का संपन्नता बढ़ाना है।
- प्रश्न – लेखक ने “टुच्ची बीमारियों से मरना” का उल्लेख कर अपनी आर्थिक स्थिति और सामाजिक विडंबना को कैसे व्यक्त किया है?
उत्तर – लेखक “टुच्ची बीमारियों से मरना” कहकर अपनी गरीबी और साधारण समस्याओं को दर्शाते हैं, जैसे बिजली बिल न चुका पाना। यह सामाजिक विडंबना पर कटाक्ष है, क्योंकि अमीर टैक्स की ‘प्रतिष्ठित’ बीमारी से मरने का गर्व करते हैं, जबकि गरीबों को साधारण रोगों और आर्थिक तंगी से जूझना पड़ता है, जो उनकी सामाजिक स्थिति को उजागर करता है। प्रश्न – निबंध में लेखक ने व्यंग्य के माध्यम से दुख की सापेक्षता को कैसे प्रस्तुत किया है, और इसका सामाजिक संदेश क्या है?
उत्तर – लेखक व्यंग्य के जरिए दिखाते हैं कि दुख सापेक्ष हैं—अमीर टैक्स से, मध्यम वर्ग अधूरी योजनाओं से, और गरीब बुनियादी जरूरतों से दुखी हैं। सामाजिक संदेश यह है कि वर्ग-विभेद के कारण दुखों की प्रकृति भिन्न होती है। अमीरों का दुख उनकी समृद्धि का प्रतीक है, जबकि गरीबों का दुख जीवन रक्षा से जुड़ा है, जो समाज की असमानता को उजागर करता है।

