विद्यासागर नौटियाल – जीवन परिचय
जाने माने साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल का जन्म 20 सितम्बर 1933 में टिहरी के मालीदेवल गाँव में हुआ। 13 साल की उम्र में शहीद नागेन्द्र सकलानी से प्रभावित होकर सामंतवाद विरोधी प्रजामंडल से जुड़ गए। रियासत ने उन्हें टिहरी के आज़ाद होने तक जेल में रखा। वे वन आंदोलन, चिपको आंदोलन के साथ पहली कविता ‘भैस का कट्या’ 1954 में इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका कल्पना में प्रकाशित हुई। उन्होंने उपन्यासों, कहानियों के साथ “मोहन गाता” जाएगा जैसा आत्मकथ्य भी लिखा। अब तक उनके छह उपन्यास और तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं। “यमुना के बागी बेटे” शीर्षक से आया उनका उपन्यास एक नए विषय के साथ गम्भीर प्रयोग है।
पाठ माटीवाली परिचय
इस कहानी में विस्थापन की समस्या से उपजी पीड़ा व प्रताड़ना को प्रभावशाली तरीके से रखा गया है। जीवकोपार्जन के लिए घर-घर माटी पहुँचाने को विवश वृद्ध स्त्री गरीबी से संघर्ष करते हुए अपनी संवेदनशीलता का परिचय पूरी कहानी में देती ही है, गृहस्थी के बोध और बोझ को भी समझती है। पति की मृत्यु उस संघर्षशील वृद्ध स्त्री को उतना नहीं तोड़ती, जितना यह जवाब कि “बुढ़िया मुझे जमीन का कागज चाहिए रोजी का नहीं” और “बाँध बनने के बाद मैं खाऊँगी क्या साब। पूरी कहानी में यह मार्मिकता अपने चरम रूप में दिखती है जो संवेदनशील मन को कचोटने वाली है, जब वह कर्मशील वृद्ध स्त्री यह कहती है गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।
माटीवाली
शहर के सेमल का तप्पड़ मोहल्ले की ओर बने आखिरी घर की खोली में पहुँचकर उसने दोनों हाथों की मदद से अपने सिर पर धरा बोझा नीचे उतारा। मिट्टी से भरा एक कंटर माटी वाली टिहरी शहर में शायद ऐसा कोई घर नहीं होगा जिसे वह न जानती हो या जहाँ उसे न जानते हों, घर के कुल निवासी, बरसों से वहाँ रहते आ रहे किराएदार, उनके बच्चे तलक। घर-घर में लाल मिट्टी देते रहने के उस काम को करने वाली वह अकेली है। उसका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं। उसके बगैर तो लगता है, टिहरी शहर के कई एक घरों में चूल्हों का जलना तक मुश्किल हो जाएगा। वह न रहे तो लोगों के सामने रसोई और भोजन कर लेने के बाद अपने चूल्हे चौके की लिपाई करने की समस्या पैदा हो जाएगी। भोजन जुटाने और खाने की तरह रोज की एक समस्या। घर में साफ, लाल मिट्टी तो हर हालत में मौजूद रहनी चाहिए। चूल्हे-चौकों को लीपने के अलावा साल-दो साल में मकान के कमरे, दीवारों की गोबरी – लिपाई करने के लिए लाल माटी की जरूरत पड़ती रहती है। शहर से अंदर कहीं माटाखान है नहीं। भागीरथी और भीलांगना, दो नदियों के तटों पर बसे हुए शहर की मिट्टी इस कदर रेतीली है कि उससे चूल्हों की लिपाई का काम नहीं किया जा सकता। आने वाले नए-नए किराएदार भी एक बार अपने घर के आँगन में उसे देख लेते हैं तो अपने आप माटी वाली के ग्राहक बन जाते हैं। घर-घर जाकर माटी बेचने वाली नाटे कद की एक बुढ़िया – माटीवाली।
शहरवासी सिर्फ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं। रद्दी कपड़े को मोड़कर बनाए गए एक गोल डिल्ले के ऊपर लाल, चिकनी मिट्टी से छुलबुल भरा कनस्तर टिका रहता है। उसके ऊपर किसी ने कभी कोई ढक्कन लगा हुआ नहीं देखा। अपने कंटर को इस्तेमाल में लाने से पहले वह उसके ऊपरी ढक्कन को काटकर निकाल फेंकती है। ढक्कन के न रहने पर कंटर के अंदर मिट्टी भरने और फिर उसे खाली करने में आसानी रहती है। उसके कंटर को जमीन पर रखते-रखते सामने के घर से नौ-दस साल की एक छोटी लड़की कामिनी दौड़ती हुई वहाँ पहुँची और उसके सामने खड़ी हो गई।
“मेरी माँ ने कहा है, जरा हमारे यहाँ भी आ जाना।”
“अभी आती हूँ।”
घर की मालकिन ने माटी वाली को अपने कंटर की माटी कच्चे आँगन के एक कोने पर उड़ेल देने को कह दिया।
“तू बहुत भाग्यवान है। चाय के टैम पर आई है हमारे घर। भाग्यवान आए खाते वक्त।”
वह अपनी रसोई में गई और दो रोटियाँ लेती आई। रोटियाँ उसे सौंपकर वह फिर अपनी रसोई में घुस गई।
माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का वक्त नहीं था। घर की मालकिन के अंदर जाते ही माटी वाली ने इधर-उधर तेज निगाहें दौड़ाई। हाँ, इस वक्त वह अकेली थी। उसे कोई देख नहीं रहा था। उसने फौरन अपने सिर पर धरे डिल्ले के कपड़े के मोड़ों को हड़बड़ी में एक झटके में खोला और उसे सीधा कर दिया। फिर इकहरा खुल जाने के बाद वह एक पुरानी चादर के एक फटे हुए कपड़े के रूप में प्रकट हुआ।
मालकिन के बाहर आँगन में निकलने से पहले उसने चुपके से अपने हाथ में थामी दो रोटियों में से एक रोटी को मोड़ा और उसे कपड़े पर लपेटकर गाँठ बाँध दी। साथ ही अपना मुँह यों ही चलाकर खाने का दिखावा करने लगी। घर की मालकिन पीतल के एक गिलास में चाय लेकर लौटी। उसने वह गिलास बुढ़िया के पास जमीन पर रख दिया।
“ले, सद्दा- बासी, साग कुछ है नहीं अभी इसी चाय के साथ निगल जा।”
माटी वाली ने खुले कपड़े के एक छोर से पूरी गोलाई में पकड़कर पीतल का वह गरम गिलास हाथ में उठा लिया। अपने होंठों से गिलास के किनारे को छुआने से पहले, शुरू-शुरू में उसने उसके अंदर रखी गरम चाय को ठंडा करने के लिए सू सू करके, उस पर लंबी-लंबी फूँकें मारीं। तब रोटी के टुकड़ों को चबाते हुए धीरे-धीरे चाय सुड़कने लगी।
“चाय तो बहुत अच्छा साग हो जाती है ठकुराइनजी।”
“भूख तो अपने में एक साग होती है बुढ़िया। भूख मीठी कि भोजन मीठा?”
“तुमने अभी तक पीतल के गिलास सँभालकर रखे हैं। पूरे बाजार में और किसी घर में अब नहीं मिल सकते ये गिलास।”
“इनके खरीदार कई बार हमारे घर के चक्कर काटकर लौट गए। पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता। हमें क्या मालूम कैसी तंगी के दिनों में अपनी जीभ पर कोई स्वादिष्ट, चटपटी चीज़ रखने के बजाय मन मसोसकर दो-दो पैसे जमा करते रहने के बाद खरीदी होंगी उन्होंने ये तमाम चीजें, जिनकी हमारे लोगों की नज़रों में अब कोई कीमत नहीं रह गई है। बाज़ार में जाकर पीतल का भाव पूछो ज़रा, दाम सुनकर दिमाग चकराने लगता है। और ये व्यापारी हमारे घरों से हराम के भाव इकट्ठा कर ले जाते हैं, तमाम बर्तन भाँड़े। काँसे के बरतन भी गायब हो गए हैं, सब घरों से।”
“इतनी लंबी बात नहीं सोचते बाकी लोग अब जिस घर में जाओं वहाँ या तो स्टील के भाँडे दिखाई देते हैं या फिर काँच और चीनी मिट्टी के।”
“अपनी चीज का मोह बहुत बुरा होता है। मैं तो सोचकर पागल हो जाती हूँ कि अब इस उमर में इस शहर को छोड़कर हम जाएँगे कहाँ।”
“ठकुराइन जी, जो जमीन-जायदादों के मालिक हैं, वे तो कहीं न कहीं ठिकाने पर जाएँगे ही। पर सोचती हूँ मेरा क्या होगा! मेरी तरफ देखने वाला तो कोई भी नहीं।”
चाय खत्म कर माटी वाली ने एक हाथ में अपना कपड़ा उठाया, दूसरे में खाली कंटर और खोली से बाहर निकलकर सामने के घर में चली गई।
उस घर में भी ‘कल हर हालत में मिट्टी ले आने के आदेश के साथ उसे दो रोटियाँ मिल गईं। उन्हें भी उसने अपने कपड़े के एक- दूसरे छोर में बाँध लिया। लोग जानें तो जानें कि वह ये रोटियाँ अपने बुड्ढे के लिए ले जा रही है। उसके घर पहुँचते ही अशक्त बुड्ढा कातर नज़रों से उसकी ओर देखने लगता है। वह घर में रसोई बनने का इंतजार करने लगता है। आज वह घर पहुँचते ही तीन रोटियाँ अपने बुड्ढे के हवाले कर देगी। रोटियों को देखते ही चेहरा खिल उठेगा बुड्ढे का।
साथ ही ऐसा ही बोल देगी, “साग तो कुछ है नहीं अभी।”
और तब उसे जवाब सुनाई देगा, “भूख मीठी कि भोजन मीठा?”
उनका गाँव शहर के इतना पास भी नहीं हैं। कितना ही तेज चलो फिर भी घर पहुँचने में एक घंटा तो लग ही जाता है। रोज़ सुबह निकल जाती है वह अपने घर से पूरा दिन माटाखान में मिट्टी खोदने, फिर विभिन्न स्थानों में फैले घरों तक उसे ढोने में बीत जाता है। घर पहुँचने से पहले रात घिरने लगती है। उसके पास अपना कोई खेत नहीं। जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं। झोपड़ी, जिसमें वह गुजारा करती है, गाँव के एक ठाकुर की जमीन पर खड़ी है। उसकी जमीन पर रहने की एवज में उस भले आदमी के घर पर भी माटी वाली को कई तरह के कामों की बेगार करनी होती है।
नहीं, आज वह एक गठरी में बदल गए अपने बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी। माटी बेचने से हुई आमदनी से उसने एक पाव प्याज़ खरीद लिया। प्याज़ को कूटकर वह उन्हें जल्दी-जल्दी तल लेगी। बुड्ढे को पहले रोटियाँ दिखाएगी ही नहीं। सब्जी तैयार होते ही परोस देगी उसके सामने दो रोटियाँ। अब वह दो रोटियाँ भी नहीं खा सकता। एक ही रोटी खा पाएगा या हद से हद डेढ़। अब उसे ज़्यादा नहीं पचता। बाकी बची डेढ़ रोटियों से माटी वाली अपना काम चला लेगी। एक रोटी तो उसके पेट में पहले ही जमा हो चुकी है। मन में यह सब सोचती, हिसाब लगाती हुई वह अपने घर पहुँच गई।
उसके बुड्ढे को अब रोटी की कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी। माटीवाली के पाँवों की आहट सुन कर हमेशा की तरह आज वह चौंका नहीं। उसने अपनी नजरें उसकी ओर नहीं घुमाई। घबराई हुई माटी वाली ने उसे छूकर देखा। वह अपनी माटी को छोड़कर जा चुका था।
टिहरी बाँध पुनर्वास के साहब ने उससे पूछा कि वह रहती कहाँ है?
“तुम तहसील से अपने घर का प्रमाणपत्र ले आना।”
“मेरी जिनगी तो इस शहर के तमाम घरों में माटी देते हुए गुज़र गई साब।”
“माटी कहाँ से लाती हो?”
“माटाखान से लाती हूँ माटी।”
“वह माटाखान चढ़ी है तेरे नाम? अगर है तो हम तेरा नाम लिख देते हैं।”
“माटाखान तो मेरी रोज़ी है साहब।”
“बुढ़िया हमें जमीन का कागज़ चाहिए, रोजी का नहीं।”
“बाँध बनने के बाद मैं क्या खाऊँगी साब?”
“इस बात का फैसला तो हम नहीं कर सकते। वह बात तो तुझे खुद ही तय करनी पड़ेगी।”
टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया है। शहर में पानी भरने लगा है। शहर में आपाधापी मची है। शहरवासी अपने घरों को छोड़कर वहाँ से भागने लगे हैं। पानी भर जाने से सबसे पहले कुल श्मशान घाट डूब गए हैं।
माटी वाली अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठी है। गाँव के हर आने-जाने वाले से एक ही बात कहती जा रही है –
“गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।”
कहानी का सारांश
यह कहानी टिहरी शहर की एक गरीब बुढ़िया माटीवाली की है, जो माटाखान से लाल मिट्टी खोदकर घर-घर बेचती है। लोग उसे चूल्हे-चौके लीपने के लिए जानते हैं। वह अपने अशक्त बुड्ढे पति के लिए रोटियाँ इकट्ठा करती है, लेकिन एक दिन घर लौटकर पाती है कि वह मर चुका है। टिहरी बाँध बनने से शहर डूब रहा है, पुनर्वास अधिकारी उससे जमीन के कागज माँगते हैं, लेकिन उसके पास कुछ नहीं। अंत में वह झोंपड़ी के बाहर बैठकर कहती है कि गरीबों का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए, जो विकास की कीमत पर गरीबों की पीड़ा को दर्शाता है।
शब्दार्थ
कंटर – कनस्तर;
डिल्ले – सिर पर बोझा ढोने के लिए कपड़े से बनाई गई गद्दी (गुँडरी)
माटाखान – लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी निकालने वाली जगह
तंगी – अभाव, गरीबी
एवज – बदले
अशक्त – असहाय / कमजोर
आपाधापी – भागदौड़ / हलचल:
बेगार – बिना पैसों के काम करना।
पुनर्वास – पुनः बसाना
शब्द | हिंदी अर्थ | अंग्रेजी अर्थ |
सेमल | एक प्रकार का पेड़ | Silk cotton tree |
तप्पड़ | ऊँचा स्थान या टीला | Mound or hillock |
खोली | छोटा कमरा या कोठरी | Small room or chamber |
बोझा | भार या वजन | Burden or load |
कंटर | पुराना डिब्बा या कनस्तर | Old container or canister |
माटी | मिट्टी | Clay or soil |
प्रतिद्वंद्वी | प्रतियोगी या विरोधी | Competitor or rival |
चूल्हों | चूल्हे (बहुवचन) | Stoves (plural) |
लिपाई | लेप लगाना या पोतना | Plastering or coating |
गोबरी | गोबर से लेप | Cow-dung plaster |
माटाखान | मिट्टी की खान | Clay mine |
रेतीली | रेत वाली | Sandy |
डिल्ले | गोलाकार गद्दी या पैड | Circular pad |
छुलबुल | चिकनी और मुलायम | Smooth and slippery |
ढक्कन | ढकने वाला भाग | Lid |
उड़ेल | डालना या बहाना | Pour out |
ठकुराइनजी | ठाकुर की पत्नी (सम्मानसूचक) | Thakur’s wife (respectful) |
सद्दा-बासी | बासी या पुराना | Stale or leftover |
सू सू | फूँक मारने की ध्वनि | Blowing sound |
सुड़कने | छोटे घूँट पीना | Sipping |
साग | सब्जी | Vegetable or curry |
पुरखों | पूर्वज | Ancestors |
गाढ़ी कमाई | कड़ी मेहनत से कमाई | Hard-earned money |
हराम के भाव | बहुत कम दाम | At a throwaway price |
मन मसोसकर | दुःख सहकर | Suppressing sorrow |
तमाम | सभी या पूरे | All or entire |
भाँड़े | बर्तन (बहुवचन) | Utensils (plural) |
काँसे | पीतल जैसी धातु | Bronze |
मोह | लगाव या आसक्ति | Attachment or affection |
ठिकाने | जगह या निवास | Place or abode |
आमदनी | आय या कमाई | Income |
पाव | चौथाई किलो | Quarter kilogram |
कूटकर | पीसकर या कुचलकर | By pounding |
आहट | पैरों की आवाज | Footsteps sound |
चौंका | चौंकना या ध्यान देना | Startled or alerted |
घबराई | डरी हुई | Panicked |
प्रमाणपत्र | प्रमाण पत्र या प्रमाणपत्र | Certificate |
तहसील | प्रशासनिक इकाई | Tehsil (administrative unit) |
रोज़ी | जीविका या रोजगार | Livelihood |
आपाधापी | अफरा-तफरी या हड़बड़ी | Chaos or panic |
श्मशान घाट | दाह संस्कार का स्थान | Cremation ground |
झोंपड़ी | छोटी कुटिया | Hut |
पाठ से
- माटीवाली के बिना टिहरी शहर के कई घरों में चूल्हों तक का जलना क्यों मुश्किल हो जाता था?
उत्तर – माटीवाली के बिना टिहरी शहर के कई घरों में चूल्हों का जलना इसलिए मुश्किल हो जाता था क्योंकि वह पूरे शहर में घर-घर लाल मिट्टी पहुँचाने वाली अकेली महिला थी। टिहरी की रेतीली मिट्टी से चूल्हों की लिपाई नहीं हो सकती थी। हर घर में चूल्हे-चौके को लीपने के लिए और साल-दो साल में कमरों और दीवारों की लिपाई के लिए इसी लाल मिट्टी की जरूरत पड़ती थी। उसका कोई और विकल्प न होने के कारण, यदि वह न होती तो लोगों के सामने चूल्हा जलाने से पहले उसकी लिपाई करने की समस्या खड़ी हो जाती थी।
- माटीवाली का कंटर किस प्रकार का था?
उत्तर – माटीवाली का कंटर (कनस्तर) एक सामान्य टिन का बना हुआ था जिसका ऊपरी ढक्कन काटकर निकाल दिया गया था। ढक्कन न होने से उसके अंदर मिट्टी भरने और उसे खाली करने में आसानी होती थी। वह इस कंटर को रद्दी कपड़े से बने एक गोल डिल्ले के ऊपर रखकर अपने सिर पर ढोती थी।
- माटीवाली का एक रोटी छिपा देना उसकी किस मनःस्थिति की ओर संकेत करता है?
उत्तर – माटीवाली का एक रोटी छिपा देना उसकी गरीबी, विवशता और अपने पति के प्रति गहरे प्रेम और चिंता को दर्शाता है। वह स्वयं भूखी रहकर भी अपने बूढ़े और अशक्त पति के लिए भोजन बचाना चाहती थी। यह घटना दिखाती है कि वह अपने पति की भूख और जरूरतों को अपनी भूख से ज़्यादा महत्व देती थी और हर हाल में उसका पेट भरना चाहती थी।
- घर की मालकिन ने पीतल के गिलासों को अभी तक संभालकर क्यों रखा था?
उत्तर – घर की मालकिन ने पीतल के गिलासों को अभी तक इसलिए संभालकर रखा था क्योंकि वे उसके पुरखों की गाढ़ी कमाई से खरीदी हुई चीजें थीं। वह उन्हें विरासत का प्रतीक मानती थी और उनसे उसका भावनात्मक लगाव था। उसका मानना था कि पुरखों ने न जाने कितनी तंगी सहकर और अपनी इच्छाओं को मारकर ये चीजें जोड़ी थीं, जिन्हें कौड़ियों के भाव बेचने की उसका दिल गवाही नहीं देता था।
- माटीवाली और मालकिन के संवाद में व्यापारियों की कौन सी प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया था?
उत्तर – माटीवाली और मालकिन के संवाद में व्यापारियों की उस शोषक प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया है जिसके तहत वे घरों से पुरानी, मूल्यवान और ऐतिहासिक वस्तुओं जैसे काँसे और पीतल के बर्तन को कौड़ियों के दाम पर खरीद लेते हैं और बाज़ार में भारी मुनाफा कमाकर बेचते हैं। वे लोगों की मजबूरी या उनकी नज़र में उन वस्तुओं की घटती कीमत का फायदा उठाते हैं।
- कहानी के अंत में लोग अपने घरों को छोड़कर क्यों जाने लगे थे?
उत्तर – कहानी के अंत में लोग अपने घरों को छोड़कर इसलिए जाने लगे थे क्योंकि टिहरी बाँध की सुरंगों को बंद कर दिया गया था, जिससे पूरे शहर में पानी भरने लगा था। शहर के डूब जाने के खतरे के कारण अपनी जान बचाने के लिए लोगों में अफरा-तफरी मच गई और वे अपने घर-बार छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर भागने लगे।
पाठ से आगे
- क. बाँध, सड़क व अन्य सरकारी निर्माण कार्य होने पर स्थानीय लोगों को किस-किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है? चर्चा करके लिखिए।
उत्तर – बाँध, सड़क व अन्य सरकारी निर्माण कार्यों के कारण स्थानीय लोगों को कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे –
विस्थापन की समस्या – उन्हें अपने पुश्तैनी घर, जमीन और गाँव छोड़कर किसी नई जगह पर बसने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
आजीविका का संकट – उनकी खेती की जमीन, जंगल या माटीवाली की तरह रोजी-रोटी के साधन छिन जाते हैं, जिससे बेरोजगारी और गरीबी बढ़ती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक विघटन – एक साथ रहने वाला पूरा समुदाय बिखर जाता है, जिससे उनकी संस्कृति, परंपराएं और सामाजिक ताना-बाना नष्ट हो जाता है।
अपर्याप्त मुआवजा – सरकार द्वारा दिया जाने वाला मुआवजा अक्सर बाज़ार मूल्य से कम होता है और उसे पाने के लिए भी उन्हें दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं, खासकर जिनके पास ज़मीन के कागज़ात नहीं होते (जैसे माटीवाली), उन्हें कुछ भी नहीं मिलता।
पुनर्वास की समस्या – नई जगह पर अक्सर मूलभूत सुविधाओं जैसे स्कूल, अस्पताल और रोजगार के अवसरों का अभाव होता है, जिससे उनका जीवन और भी कठिन हो जाता है।
ख. इस प्रकार के विकास कार्यों के क्या-क्या फायदे होते हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर – इस प्रकार के विकास कार्यों के कई फायदे भी होते हैं, जो देश और समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं:
बिजली उत्पादन – बाँधों से बड़ी मात्रा में पनबिजली का उत्पादन होता है, जो उद्योगों और घरों के लिए आवश्यक है।
सिंचाई की सुविधा – नहरों के माध्यम से खेतों तक पानी पहुँचता है, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ता है और सूखे की समस्या कम होती है।
बाढ़ नियंत्रण – बाँध नदियों के अतिरिक्त पानी को रोककर मैदानी इलाकों को बाढ़ से बचाते हैं।
पेयजल की आपूर्ति – शहरों और कस्बों तक पीने का साफ पानी पहुँचाया जाता है।
यातायात में सुगमता – सड़कों और पुलों के निर्माण से यातायात सुगम होता है, जिससे व्यापार और आवागमन में तेजी आती है।
आर्थिक विकास – इन परियोजनाओं से रोजगार के अवसर पैदा होते हैं और क्षेत्र का आर्थिक विकास होता है।
- पहले के जमाने में मिट्टी का उपयोग किन-किन कामों में होता था तथा वर्तमान समय में इसका उपयोग आप कहाँ-कहाँ देखते हैं? अंतर बताते हुए लिखिए।
उत्तर – पहले के जमाने में – मिट्टी का उपयोग दैनिक जीवन में बहुत व्यापक था। इससे घर की दीवारें (कच्चे घर) और फर्श लीपे जाते थे, चूल्हे-चौके बनाए और लीपे जाते थे, बर्तन (घड़े, दीये, कुल्हड़, आदि) बनाए जाते थे और अनाज भंडारण के लिए कोठियाँ भी बनती थीं।
वर्तमान समय में – आज शहरों में दैनिक लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी का उपयोग लगभग समाप्त हो गया है। अब इसका उपयोग मुख्य रूप से ईंट बनाने, गमले, दीये, मूर्तियाँ और सजावटी सामान बनाने में होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कुछ हद तक इसका प्रयोग घरों की लिपाई में होता है।
अंतर – मुख्य अंतर यह है कि पहले मिट्टी जीवन की एक अनिवार्य घरेलू ज़रूरत थी, जबकि आज यह मुख्यतः निर्माण, शिल्प और बागवानी तक सीमित हो गई है। गैस-चूल्हे और पक्के मकानों ने दैनिक जीवन में इसकी भूमिका को कम कर दिया है।
- बाँध बन जाने के बाद माटीवाली का शेष जीवन कैसे बीता होगा? कल्पना करके लिखिए।
उत्तर – बाँध बन जाने के बाद माटीवाली का शेष जीवन अत्यंत कष्ट और अकेलेपन में बीता होगा। उसका पति मर चुका था, घर और माटाखान दोनों डूब चुके थे। ज़मीन के कागज़ न होने के कारण उसे कोई मुआवजा भी नहीं मिला होगा। वह बेघर और असहाय हो गई होगी। वह शायद किसी पुनर्वास शिविर में या सड़क के किनारे रहकर लोगों से माँगकर अपना पेट भरती होगी। वह हर पल अपने डूबे हुए घर, शहर और अपने पति की यादों में खोई रहती होगी। उसका अंतिम वाक्य “गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए” यह दर्शाता है कि उसने न केवल अपना घर, बल्कि अपनी पहचान और अंतिम समय में शांति से मरने का हक़ भी खो दिया था। उसका बाकी जीवन इसी दुख और निराशा में बीता होगा।
- माटीवाली की तरह और भी कई लोग हैं जिनके पास रहने के लिए अपनी जगह नहीं होती और न ही पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन। ऐसे लोगों के लिए सरकार को क्या-क्या उपाय करने चाहिए, शिक्षक से चर्चा करके लिखिए।
उत्तर – ऐसे लोगों के लिए सरकार को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:
आवास की गारंटी – प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाओं के तहत सभी बेघर लोगों को रहने के लिए पक्का मकान उपलब्ध कराना चाहिए।
खाद्य सुरक्षा – उन्हें राशन कार्ड उपलब्ध कराना चाहिए ताकि वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से सस्ता अनाज प्राप्त कर सकें।
सामाजिक सुरक्षा – वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन जैसी योजनाएँ लागू करनी चाहिए ताकि उन्हें नियमित आर्थिक सहायता मिल सके।
पहचान पत्र – उनके आधार कार्ड, वोटर आईडी जैसे पहचान पत्र आसानी से बनाए जाने चाहिए ताकि वे सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें।
विस्थापन नीति – विकास परियोजनाओं से विस्थापित होने वाले हर व्यक्ति, चाहे वह भूमिहीन ही क्यों न हो, के लिए उचित मुआवजे और सम्मानजनक पुनर्वास की ठोस नीति बनानी चाहिए।
- ऐसा क्यों होता जा रहा है कि आजकल पीतल, काँसे, एल्यूमिनियम के बर्तनों की बजाय घरों में ज्यादातर काँच, चीनी मिट्टी, मेलामाईन और प्लास्टिक से बने बर्तनों का इस्तेमाल होने लगा है? स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं रोजगार आदि की दृष्टि से इसके नुकसान व फायदों पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर – बर्तनों के इस्तेमाल में यह बदलाव मुख्य रूप से सुविधा, कीमत और बदलती जीवनशैली के कारण आया है।
कारण – स्टील, काँच, प्लास्टिक और मेलामाईन के बर्तन हल्के, सस्ते, साफ करने में आसान और दिखने में आकर्षक होते हैं। वहीं पीतल और काँसे के बर्तन भारी, महँगे और उनकी साफ-सफाई में अधिक मेहनत लगती है।
नुकसान –
स्वास्थ्य – गर्म भोजन रखने पर प्लास्टिक और मेलामाईन से हानिकारक रसायन निकल सकते हैं जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं।
पर्यावरण – प्लास्टिक आसानी से नष्ट नहीं होता और गंभीर पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनता है।
रोजगार – इन बर्तनों के प्रचलन से पीतल और काँसे के बर्तन बनाने वाले पारंपरिक कारीगरों का रोजगार छिन गया है।
फायदे –
सुविधा – ये बर्तन हल्के और इस्तेमाल करने में सुविधाजनक होते हैं।
कीमत – ये पारंपरिक धातु के बर्तनों की तुलना में काफी सस्ते होते हैं।
रखरखाव – इनका रखरखाव आसान होता है।
- ‘मृणशिल्प कला‘ अर्थात मिट्टी से कलाकृतियाँ बनाना
(क) आप अपने आसपास इस तरह की कलाकृतियाँ कहाँ-कहाँ देखते हैं? तथा ये भी पता कीजिए कि इस कला की क्या-क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर – कहाँ देखते हैं – हम अपने आसपास मृणशिल्प कलाकृतियाँ कुम्हारों की दुकानों पर, त्योहारों के समय बाज़ारों में, जैसे – दीवाली के दीये, गणेश चतुर्थी और दुर्गा पूजा की मूर्तियाँ, हस्तशिल्प मेलों में और घरों में सजावटी सामान गमले, सुराही, फूलदान के रूप में देखते हैं।
विशेषताएँ –
यह एक प्राचीन और पारंपरिक कला है।
यह पर्यावरण के अनुकूल (eco-friendly) होती है क्योंकि मिट्टी एक प्राकृतिक तत्व है।
इससे बनी वस्तुएँ उपयोग के बाद आसानी से मिट्टी में मिल जाती हैं।
यह स्थानीय संस्कृति और कला को दर्शाती है।
प्रत्येक कलाकृति हस्तनिर्मित होने के कारण अद्वितीय होती है।
(ख) आपके शहर, राज्य के कुछ ऐसे कलाकारों के नाम बताइए जिन्होंने मृणशिल्प कला के क्षेत्र में प्रदेश को पहचान दिलाई हो।
उत्तर – ओड़िशा राज्य मृणशिल्प और टेराकोटा कला के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र के कुछ प्रसिद्ध कलाकारों में डॉ. हरेकृष्ण पात्र और रघुनाथ महापात्र) जैसे नाम शामिल हैं। स्थानीय स्तर पर हर जिले में कई कलाकार इस कला को जीवित रखे हुए हैं।
भाषा के बारे में
- ‘ई‘, ‘इन‘ और ‘आइन‘ प्रत्ययों का इस्तेमाल प्रायः स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए किया जाता है। निम्न उदाहरणों को समझते हुए तालिका में निम्न प्रत्ययों से बने अन्य शब्द लिखिए-
‘ई’ प्रत्यय
उदाहरण लड़की
‘इन’ प्रत्यय
मालकिन
‘आइन’ प्रत्यय
पंडिताइन
- ‘ई‘, ‘इन‘ और ‘आइन‘ प्रत्ययों का इस्तेमाल प्रायः स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए किया जाता है। निम्न उदाहरणों को समझते हुए तालिका में निम्न प्रत्ययों से बने अन्य शब्द लिखिए-
‘ई’ प्रत्यय | ‘इन’ प्रत्यय | ‘आइन’ प्रत्यय |
देवी | नागिन | ठकुराइन |
बेटी | बाघिन | चौधराइन |
मामी | धोबिन | लालाइन |
चाची | मालिन | मुंशियाइन |
- पाठ में आए निम्न मुहावरों के अर्थ लिखते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(क) दिल गवाही नहीं देता।
(ख) मन मसोसकर रह जाना।
(ग) कातर नजरों से देखना।
(घ) चेहरा खिल उठना।
(ङ) दिमाग चकराने लगना।
(क) दिल गवाही नहीं देता:
अर्थ: मन न मानना, अंतरात्मा स्वीकार न करना।
वाक्य प्रयोग: अपने पुरखों की निशानी को बेचने के लिए मेरा दिल गवाही नहीं देता।
(ख) मन मसोसकर रह जाना:
अर्थ: इच्छा को दबाकर या विवश होकर चुप रह जाना।
वाक्य प्रयोग: मेले में सुंदर खिलौना देखकर भी पैसों की कमी के कारण बच्चा मन मसोसकर रह गया।
(ग) कातर नजरों से देखना:
अर्थ: दयनीय या लाचारी भरी आँखों से देखना।
वाक्य प्रयोग: माटीवाली का बूढ़ा पति रोज शाम को उसकी राह कातर नज़रों से देखता था।
(घ) चेहरा खिल उठना:
अर्थ: बहुत प्रसन्न हो जाना।
वाक्य प्रयोग: कई दिनों बाद अपने बेटे को घर आया देख माँ का चेहरा खिल उठा।
(ङ) दिमाग चकराने लगना:
अर्थ: हैरान रह जाना, कुछ समझ न आना।
वाक्य प्रयोग: बाज़ार में पीतल के बर्तनों का दाम सुनकर मेरा तो दिमाग चकराने लगा।
- (क) निम्नांकित तीनों वाक्यों को ध्यान से पढ़िए-
(अ) मिट्टी से भरा एक कंटर।
(ब) उस काम को करनेवाली वह अकेली है।
(स) उसका प्रतिद्वन्द्वी कोई नहीं।
आप पाएँगे कि इनके पढ़ने मात्र से ही इनका (प्रचलित) अर्थ आसानी से समझ में आता है।
इसे शब्द की अभिधा शक्ति के नाम से जाना जाता है।
(ख) नीचे दिए गए इन वाक्यों को भी पढ़िए-
(अ) भूख तो अपने में एक ‘साग’ होती है।
(ब) वह अपनी ‘माटी को छोड़कर जा चुका था।
(स) गरीब आदमी का श्मशान’ नहीं उजड़ना चाहिए।
उपरोक्त तीनों वाक्यों में साग, माटी और श्मशान से तात्पर्य क्रमशः खाद्य सामग्री, पंचतत्त्व से बने शरीर और ‘घर’ से है।
इस प्रकार इन वाक्यों को पढ़कर उनके अर्थ पर यदि हम विचार करें तो पाते हैं कि वाक्य के वाच्यार्थ या मुख्यार्थ से भिन्न अन्य अर्थ (लक्ष्यार्थ) प्रकट होते हैं। इसे ‘लक्षणा शक्ति के नाम से जाना जाता है।
सहपाठियों के साथ बैठकर अभिधा और लक्षणा शक्ति के पाँच-पाँच वाक्यों को पाठ्यपुस्तक से ढूँढ़कर लिखिए एवं स्वयं भी रचना कीजिए।
अभिधा शक्ति (सीधा और सरल अर्थ)
मिट्टी से भरा एक कंटर।
घर की मालकिन ने उसे दो रोटियाँ दे दीं।
टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया है।
शहर में पानी भरने लगा है।
उसने एक पाव प्याज़ खरीद लिया।
लक्षणा शक्ति (लाक्षणिक या सांकेतिक अर्थ)
भूख तो अपने में एक ‘साग’ होती है। (यहाँ साग का अर्थ सब्जी नहीं, बल्कि भोजन को स्वादिष्ट बनाने वाली वस्तु है।)
वह अपनी ‘माटी’ को छोड़कर जा चुका था। (यहाँ माटी का अर्थ मिट्टी नहीं, बल्कि पंचतत्व से बना शरीर है।)
गरीब आदमी का ‘श्मशान’ नहीं उजड़ना चाहिए। (यहाँ श्मशान का अर्थ अंतिम आश्रय या घर है।)
वह एक ‘गठरी’ में बदल गए अपने बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी। (यहाँ गठरी का अर्थ शरीर का कमजोर और सिकुड़ जाना है।)
पुरखों की ‘गाढ़ी कमाई’ से हासिल की गई चीजें। (यहाँ गाढ़ी कमाई का अर्थ बहुत मेहनत से कमाया गया धन है।)
योग्यता विस्तार
- अपने आस-पास रहने वाले किसी ऐसे व्यक्ति अथवा कलाकार से मिलिए जो मिट्टी के बर्तन या मूर्तियाँ आदि बनाने का कार्य करता है। उससे साक्षात्कार करके निम्न बिन्दुओं के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए-
उत्तर – मैंने अपने इलाके में रहने वाले एक कुम्हार से बातचीत की और उनसे कुछ इस तरह के सवाल पूछे-
कच्ची सामग्री कहाँ से जुटाते हैं?
“हम लोग चिकनी मिट्टी पास के तालाब या नदी के किनारे से लाते हैं। कभी-कभी इसे बाहर से खरीदकर भी लाना पड़ता है।”
कलाकृति / बर्तन बनाने से पूर्व मिट्टी तैयार करने की क्या प्रक्रिया अपनाते हैं?
“पहले मिट्टी में से कंकड़-पत्थर साफ करते हैं। फिर उसे पानी में भिगोकर अच्छी तरह पैरों से गूँथते हैं ताकि वह मुलायम और एकसार हो जाए। फिर उसे चाक पर चढ़ाने के लिए तैयार करते हैं।”
एक कलाकृति तैयार करने की पूरी प्रक्रिया (बनाना, पकाना, रँगना इत्यादि) क्या-क्या होती है?
“पहले चाक पर बर्तन या मूर्ति को आकार देते हैं। फिर उसे कुछ दिन छाँव में सुखाते हैं। जब वह थोड़ा कठोर हो जाता है तब ठोक-पीटकर उसका वास्तविक स्वरूप निर्धारित करते हैं। पूरी तरह सूख जाने के बाद उसे भट्टी (आवा) में कई घंटों तक तेज़ आँच पर पकाते हैं। पकने के बाद ही वह मज़बूत होता है। फिर ज़रूरत के हिसाब से उस पर रंग-रोगन करते हैं।”
निर्मित सामग्री को वे कहाँ-कहाँ बेचते हैं?
“हम अपना सामान यहीं अपनी दुकान पर, गाँव के साप्ताहिक बाज़ार में और त्योहारों के समय शहर के मेलों में बेचते हैं।”
इस व्यवसाय से प्राप्त आय क्या उनके जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त है या नहीं?
“नहीं, अब पहले जैसी बात नहीं रही। प्लास्टिक और स्टील के सस्ते सामान के कारण हमारी कमाई बहुत कम हो गई है। बस मुश्किल से गुज़ारा हो पाता है।”
आपको किस-किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
“आजकल अच्छी मिट्टी आसानी से नहीं मिलती। बारिश के मौसम में काम बंद हो जाता है। मेहनत बहुत है पर दाम अच्छा नहीं मिलता और नई पीढ़ी यह काम सीखना नहीं चाहती।”
- गंगा नदी को “भागीरथी” कहे जाने के पीछे जो प्रचलित पौराणिक कथा है, उसे अपने शिक्षक या बड़ों से जानने का प्रयास कीजिए और लिखिए।
उत्तर – पौराणिक कथा के अनुसार, अयोध्या के राजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। यज्ञ के घोड़े की रक्षा के लिए उनके सभी पुत्र उसके पीछे चल दिए। देवराज इंद्र ने यज्ञ में बाधा डालने के लिए उस घोड़े को चुराकर पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। जब सगर के पुत्र घोड़े को खोजते हुए वहाँ पहुँचे तो उन्होंने कपिल मुनि को चोर समझकर उनका अपमान कर दिया। इससे क्रोधित होकर तपस्या में लीन मुनि ने अपनी आँखें खोलीं और उनके तेज से राजा सगर के सभी साठ हजार पुत्र जलकर भस्म हो गए।
कई पीढ़ियों तक उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण नहीं हो सका। अंत में, राजा सगर के वंशज राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने पहले ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी के कहने पर उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की ताकि जब देवी गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरें तो उनके प्रचंड वेग को भगवान शिव अपनी जटाओं में धारण कर लें, अन्यथा पृथ्वी नष्ट हो जाएगी।
भगवान शिव मान गए और उन्होंने गंगा के वेग को अपनी जटाओं में थाम लिया। फिर उन्होंने एक जटा से गंगा की एक धारा पृथ्वी पर छोड़ी। राजा भगीरथ उस धारा के आगे-आगे चले और उसे पाताल लोक तक ले गए, जहाँ उनके पूर्वजों की राख थी। गंगा के पवित्र जल के स्पर्श से सगर के सभी पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ। राजा भगीरथ के इस असाधारण प्रयास के कारण ही गंगा नदी का एक नाम “भागीरथी” पड़ा।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
कहानी में माटीवाली का मुख्य काम क्या है?
a) सब्जी बेचना
b) लाल मिट्टी घर-घर बेचना
c) कपड़े सिलना
d) पानी भरना
उत्तर – b) लाल मिट्टी घर-घर बेचना
माटीवाली मिट्टी कहाँ से लाती है?
a) नदी से
b) बाजार से
c) माटाखान से
d) जंगल से
उत्तर – c) माटाखान से
शहर की मिट्टी कैसी है जो चूल्हे लीपने के काम नहीं आती?
a) चिकनी
b) रेतीली
c) काली
d) सूखी
उत्तर – b) रेतीली
माटीवाली अपने कंटर पर क्या नहीं रखती?
a) ढक्कन
b) डिल्ला
c) मिट्टी
d) कपड़ा
उत्तर – a) ढक्कन
कामिनी कौन है?
a) माटीवाली की बेटी
b) घर की मालकिन
c) नौ-दस साल की लड़की
d) ठकुराइन
उत्तर – c) नौ-दस साल की लड़की
घर की मालकिन माटीवाली को क्या देती है?
a) पैसे
b) दो रोटियाँ और चाय
c) सब्जी
d) कपड़े
उत्तर – b) दो रोटियाँ और चाय
माटीवाली रोटियाँ किसके लिए इकट्ठा करती है?
a) खुद के लिए
b) अपने बुड्ढे पति के लिए
c) बच्चों के लिए
d) पड़ोसियों के लिए
उत्तर – b) अपने बुड्ढे पति के लिए
ठकुराइन जी पुरानी चीजें क्यों नहीं बेचती?
a) पुरखों की गाढ़ी कमाई से बनी हैं
b) महँगी हैं
c) नई हैं
d) टूटी हैं
उत्तर – a) पुरखों की गाढ़ी कमाई से बनी हैं
माटीवाली ने क्या खरीदा अपनी आमदनी से?
a) रोटियाँ
b) एक पाव प्याज
c) चाय
d) मिट्टी
उत्तर – b) एक पाव प्याज
घर लौटकर माटीवाली क्या पाती है?
a) बुड्ढा सो रहा है
b) बुड्ढा मर चुका है
c) बुड्ढा भोजन बना रहा है
d) बुड्ढा बाहर गया है
उत्तर – b) बुड्ढा मर चुका है
टिहरी बाँध पुनर्वास साहब माटीवाली से क्या मांगते हैं?
a) मिट्टी
b) घर का प्रमाणपत्र
c) रोटियाँ
d) प्याज
उत्तर – b) घर का प्रमाणपत्र
माटीवाली के पास क्या नहीं है?
a) अपना खेत या जमीन
b) कंटर
c) रोटियाँ
d) चाय
उत्तर – a) अपना खेत या जमीन
शहर में सबसे पहले क्या डूब जाता है?
a) घर
b) बाजार
c) श्मशान घाट
d) स्कूल
उत्तर – c) श्मशान घाट
माटीवाली की झोपड़ी कहाँ है?
a) शहर में
b) गाँव के ठाकुर की जमीन पर
c) नदी किनारे
d) पहाड़ पर
उत्तर – b) गाँव के ठाकुर की जमीन पर
कहानी का अंतिम संवाद क्या है?
a) भूख मीठी कि भोजन मीठा?
b) गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।
c) चाय अच्छा साग है।
d) माटी कहाँ से लाती हो?
उत्तर – b) गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।
माटीवाली का कोई प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं है?
a) वह अकेली मिट्टी बेचती है
b) लोग उसे पसंद नहीं करते
c) शहर में मिट्टी नहीं है
d) वह महँगी बेचती है
उत्तर – a) वह अकेली मिट्टी बेचती है
ठकुराइन जी को किस बात का मोह है?
a) अपनी चीजों का
b) मिट्टी का
c) रोटियों का
d) प्याज का
उत्तर – a) अपनी चीजों का
बाँध की सुरंगें बंद होने से क्या होता है?
a) शहर में पानी भरना शुरू
b) मिट्टी सूख जाती है
c) लोग खुश होते हैं
d) बुड्ढा जीवित हो जाता है
उत्तर – a) शहर में पानी भरना शुरू
माटीवाली की रोजी क्या है?
a) माटाखान
b) रोटियाँ बेचना
c) चाय बनाना
d) घर बनाना
उत्तर – a) माटाखान
कहानी किस समस्या को उजागर करती है?
a) गरीबी और विस्थापन
b) अमीरी
c) शिक्षा
d) स्वास्थ्य
उत्तर – a) गरीबी और विस्थापन
एक वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 – माटीवाली किस शहर में और क्या काम करती थी?
उत्तर – माटीवाली टिहरी शहर में घर-घर जाकर लाल मिट्टी बेचने का काम करती थी।
प्रश्न 2 – टिहरी शहर के घरों में लाल मिट्टी की आवश्यकता क्यों थी?
उत्तर – टिहरी शहर की मिट्टी रेतीली होने के कारण वहाँ के घरों में चूल्हे-चौके और दीवारों की लिपाई के लिए लाल मिट्टी की आवश्यकता थी।
प्रश्न 3 – माटीवाली अपने मिट्टी के कनस्तर का ढक्कन क्यों निकाल देती थी?
उत्तर – माटीवाली अपने कनस्तर का ढक्कन इसलिए निकाल देती थी ताकि उसे मिट्टी भरने और खाली करने में आसानी हो।
प्रश्न 4 – घर की मालकिन ने माटीवाली को खाने के लिए क्या दिया?
उत्तर – घर की मालकिन ने माटीवाली को खाने के लिए दो रोटियाँ और पीने के लिए पीतल के गिलास में चाय दी।
प्रश्न 5 – माटीवाली ने एक रोटी चुपके से क्यों छिपा ली थी?
उत्तर – माटीवाली ने एक रोटी चुपके से अपने बूढ़े और बीमार पति के लिए छिपा ली थी।
प्रश्न 6 – “भूख मीठी कि भोजन मीठा?” यह वाक्य कहानी में किसने कहा है?
उत्तर – “भूख मीठी कि भोजन मीठा?” यह वाक्य कहानी में घर की मालकिन ने कहा है।
प्रश्न 7 – घर की मालकिन ने अपने पुरखों के पीतल के गिलासों को क्यों सँभालकर रखा था?
उत्तर – घर की मालकिन ने पीतल के गिलासों को इसलिए सँभालकर रखा था क्योंकि वे उसके पुरखों की गाढ़ी कमाई की निशानी थे और वह उन्हें कौड़ियों के भाव बेचना नहीं चाहती थी।
प्रश्न 8 – मालकिन और माटीवाली की बातचीत से व्यापारियों के किस स्वभाव का पता चलता है?
उत्तर – उनकी बातचीत से व्यापारियों की उस शोषक प्रवृत्ति का पता चलता है जिसके तहत वे पुरानी और कीमती चीजों को लोगों के घरों से बहुत सस्ते दामों में खरीद लेते हैं।
प्रश्न 9 – माटीवाली को अपने गाँव से शहर और फिर वापस घर पहुँचने में कुल कितना समय लगता था?
उत्तर – माटीवाली को अपने घर से शहर पहुँचने में एक घंटा लगता था और दिनभर काम करके रात घिरने पर ही वह वापस घर पहुँच पाती थी।
प्रश्न 10 – माटीवाली की झोंपड़ी कहाँ और किसकी जमीन पर बनी थी?
उत्तर – माटीवाली की झोंपड़ी गाँव के एक ठाकुर की जमीन पर बनी हुई थी।
प्रश्न 11 – उस दिन माटीवाली ने अपनी आमदनी से क्या खरीदा और क्यों?
उत्तर – उस दिन माटीवाली ने अपनी आमदनी से एक पाव प्याज खरीदा ताकि वह उसे तलकर अपने पति को रोटियों के साथ खिला सके।
प्रश्न 12 – जब माटीवाली शाम को अपने घर पहुँची तो उसने क्या देखा?
उत्तर – जब माटीवाली शाम को अपने घर पहुँची तो उसने देखा कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है।
प्रश्न 13 – “वह अपनी माटी को छोड़कर जा चुका था।” – इस पंक्ति में ‘माटी‘ का क्या अर्थ है?
उत्तर – इस पंक्ति में ‘माटी’ का लाक्षणिक अर्थ पंचतत्त्वों से बना मनुष्य का शरीर है।
प्रश्न 14 – टिहरी बाँध पुनर्वास के साहब ने माटीवाली से क्या लाने को कहा?
उत्तर – टिहरी बाँध पुनर्वास के साहब ने माटीवाली से तहसील से अपने घर का प्रमाण-पत्र लाने को कहा।
प्रश्न 15 – माटीवाली अपने घर का प्रमाण-पत्र क्यों नहीं ला सकती थी?
उत्तर – माटीवाली अपने घर का प्रमाण-पत्र इसलिए नहीं ला सकती थी क्योंकि वह जिस झोंपड़ी में रहती थी वह ठाकुर की जमीन पर थी, उसके नाम पर कोई जमीन नहीं थी।
प्रश्न 16 – साहब ने माटाखान को माटीवाली के नाम पर क्यों नहीं लिखा?
उत्तर – साहब ने माटाखान को माटीवाली के नाम पर इसलिए नहीं लिखा क्योंकि वह उसकी रोजी-रोटी का साधन था, उस जमीन का कागज उसके नाम पर नहीं था।
प्रश्न 17 – कहानी के अंत में टिहरी शहर में अफरा-तफरी का माहौल क्यों था?
उत्तर – कहानी के अंत में टिहरी बाँध की सुरंगों को बंद कर देने के कारण शहर में पानी भरने लगा था, इसलिए अपनी जान बचाने के लिए लोग घर छोड़कर भाग रहे थे।
प्रश्न 18 – शहर में पानी भरने से सबसे पहले कौन-से स्थान डूब गए?
उत्तर – शहर में पानी भरने से सबसे पहले सारे श्मशान घाट डूब गए।
प्रश्न 19 – विस्थापन की समस्या से ग्रस्त माटीवाली के पास अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए अंत में क्या शब्द बचे थे?
उत्तर – विस्थापन की समस्या से ग्रस्त माटीवाली के पास अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए अंत में यह शब्द बचे थे – “गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।”
प्रश्न 20 – इस कहानी के माध्यम से लेखक ने किस मुख्य समस्या को उठाया है?
उत्तर – इस कहानी के माध्यम से लेखक ने विकास के नाम पर होने वाले विस्थापन और उससे उत्पन्न होने वाली
गरीबों तथा भूमिहीनों की पीड़ा की समस्या को उठाया है।
30-40 शब्दों वाले प्रश्न और उत्तर
- माटीवाली का दैनिक जीवन कैसा है?
माटीवाली रोज सुबह घर से निकलती है, माटाखान से लाल मिट्टी खोदती है और टिहरी शहर के घर-घर जाकर बेचती है। पूरा दिन ढोने में बीतता है, शाम को घर लौटती है। उसके पास कोई जमीन नहीं, ठाकुर की जमीन पर झोपड़ी है और बेगार करती है।
- माटीवाली को शहरवासी क्यों जानते हैं?
शहरवासी माटीवाली को इसलिए जानते हैं क्योंकि वह अकेली लाल मिट्टी घर-घर बेचती है, जो चूल्हे-चौके लीपने और दीवारों की गोबरी लिपाई के लिए जरूरी है। नए किराएदार भी उसे देखकर ग्राहक बन जाते हैं, उसके बिना कई घरों में काम मुश्किल हो जाता।
- घर की मालकिन माटीवाली से क्या बात करती है?
घर की मालकिन माटीवाली से पुरानी चीजों के मोह, पुरखों की गाढ़ी कमाई, बाजार में पीतल-काँसे के बर्तनों के कम दाम और शहर छोड़ने की चिंता पर बात करती है। वह कहती है कि चीजें हराम के भाव नहीं बेच सकती।
- माटीवाली रोटियाँ क्यों छिपाती है?
माटीवाली रोटियाँ अपने डिल्ले के कपड़े में छिपाती है ताकि लोग न जानें कि वह इन्हें अपने अशक्त बुड्ढे पति के लिए ले जा रही है। वह उन्हें घर पहुँचाकर देती है, क्योंकि बुड्ढा रसोई बनने का इंतजार करता है।
- माटीवाली ने प्याज क्यों खरीदा?
माटीवाली ने मिट्टी बेचने की आमदनी से एक पाव प्याज खरीदा ताकि आज बुड्ढे को कोरी रोटियाँ न देनी पड़े। वह प्याज कूटकर तलकर सब्जी बनाएगी और बुड्ढे को दो रोटियाँ परोसेगी, खुद बची रोटी से काम चलाएगी।
- बुड्ढे की मौत पर माटीवाली की प्रतिक्रिया क्या है?
बुड्ढे की मौत पर माटीवाली घबरा जाती है, उसे छूकर देखती है और पाती है कि वह मर चुका है। वह चौंकता नहीं, नजरें नहीं घुमाता। यह उसके लिए सदमा है, क्योंकि वह उसके लिए रोटियाँ और सब्जी लेकर आई थी।
- पुनर्वास अधिकारी माटीवाली से क्या कहते हैं?
पुनर्वास अधिकारी माटीवाली से घर का प्रमाणपत्र मांगते हैं और कहते हैं कि अगर माटाखान उसके नाम है तो नाम लिख देंगे। लेकिन रोजी का फैसला वह खुद करे। वे जमीन के कागज मांगते हैं, न कि रोजी के।
- टिहरी बाँध के प्रभाव से शहर में क्या होता है?
टिहरी बाँध की सुरंगें बंद होने से शहर में पानी भरना शुरू हो जाता है, आपाधापी मचती है। लोग घर छोड़कर भागते हैं। सबसे पहले श्मशान घाट डूब जाते हैं, जिससे गरीबों की समस्या बढ़ती है।
- माटीवाली की अंतिम चिंता क्या है?
माटीवाली की अंतिम चिंता गरीब आदमी के श्मशान घाट की है, जो डूब रहे हैं। वह झोपड़ी के बाहर बैठकर हर आने-जाने वाले से कहती है कि गरीब का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए, जो विकास की कीमत पर गरीबों की पीड़ा दिखाता है।
- कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
कहानी विकास परियोजनाओं जैसे बाँध से गरीबों के विस्थापन, रोजी-रोटी की हानि और सांस्कृतिक स्थलों के नुकसान को दर्शाती है। माटीवाली जैसी निर्धन महिला की पीड़ा दिखाती है कि प्रगति में गरीबों की अनदेखी होती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न और उत्तर
- माटीवाली के कंटर और उसके उपयोग का वर्णन कीजिए।
माटीवाली का कंटर एक पुराना कनस्तर है, जिस पर ढक्कन नहीं होता क्योंकि वह ऊपरी भाग काट फेंकती है ताकि मिट्टी भरना और उड़ेलना आसान हो। रद्दी कपड़े से बने गोल डिल्ले पर टिका रहता है, जो सिर पर रखने में मदद करता है। शहरवासी इसे अच्छी तरह पहचानते हैं। यह उसकी रोजी का मुख्य साधन है, जिसमें चिकनी लाल मिट्टी भरी रहती है और घर-घर जाकर बेचती है।
- ठकुराइन जी और माटीवाली के संवाद से क्या पता चलता है?
ठकुराइन जी और माटीवाली के संवाद से पुरानी परंपराओं, संपत्ति के मोह और आर्थिक असमानता का पता चलता है। ठकुराइन पुरखों की चीजें जैसे पीतल के गिलास नहीं बेचना चाहती, जबकि बाजार में कम दाम मिलते हैं। माटीवाली शहर छोड़ने की चिंता व्यक्त करती है, क्योंकि उसके पास कोई ठिकाना नहीं। यह गरीब-अमीर की सोच के अंतर को दिखाता है, जहाँ भूख और भोजन की मिठास पर चर्चा होती है।
- माटीवाली अपने बुड्ढे पति के लिए क्या योजना बनाती है?
माटीवाली बुड्ढे के लिए तीन रोटियाँ इकट्ठा करती है और आमदनी से पाव प्याज खरीदती है। वह प्याज कूटकर तलकर सब्जी बनाएगी, रोटियाँ पहले नहीं दिखाएगी ताकि बुड्ढा खुश हो। वह जानती है कि बुड्ढा अब दो रोटियाँ भी नहीं खा सकता, हद से हद डेढ़, बाकी खुद खाएगी। यह उसकी देखभाल और गरीबी में संसाधनों का प्रबंधन दिखाता है, लेकिन घर पहुँचकर पाती है कि वह मर चुका है।
- टिहरी बाँध पुनर्वास में माटीवाली की समस्या क्या है?
टिहरी बाँध पुनर्वास में माटीवाली की समस्या यह है कि उसके पास घर या माटाखान के नाम कोई कागज नहीं है। अधिकारी प्रमाणपत्र मांगते हैं, लेकिन उसकी जिनगी शहर के घरों में मिट्टी देते गुजरी है। माटाखान उसकी रोजी है, लेकिन वे जमीन के कागज चाहते हैं। बाँध बनने से वह क्या खाएगी, इसका फैसला खुद करे, कहते हैं। यह गरीबों के लिए पुनर्वास की कमी को उजागर करता है।
- कहानी के अंत में माटीवाली की स्थिति और संदेश क्या है?
कहानी के अंत में माटीवाली झोपड़ी के बाहर बैठी है, जबकि शहर डूब रहा है और लोग भाग रहे हैं। वह हर व्यक्ति से कहती है कि गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए, क्योंकि श्मशान घाट पहले डूब गए हैं। यह विकास की कीमत पर गरीबों की सांस्कृतिक और अस्तित्व की हानि दिखाता है, जहाँ विस्थापितों की अनदेखी होती है और गरीबी में जीने वालों की पीड़ा बढ़ती है।

