ऋतुराज – जीवन परिचय
ऋतुराज का जन्म सन् 1940 में भरतपुर में हुआ। राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से उन्होंने अंग्रेजी में एम.ए. किया। उनकी अब तक आठ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी, ‘सुरत निरत’ और ‘लीला मुखारविंद प्रमुख है। उन्हें सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार मिल चुके हैं। मुख्य धाराओं से अलग समाज के हाशिए के लोगों की चिंताओं को ऋतुराज ने अपने लेखन का मुख्य विषय बनाया है। उनकी कविताओं में दैनिक जीवन के अनुभवों का यथार्थ है और वे अपने आस-पास रोजमर्रा में घटित होने वाले सामाजिक शोषण और विडम्बनाओं पर निगाह डालते हैं। यही कारण है कि उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक जीवन से जुड़ी हुई है।
कन्यादान – कविता परिचय
ऋतुराज की कविता ‘कन्यादान” समाज में स्त्रियों के लिए नियत किए गए परम्परागत मान्यताओं के प्रति विरोध का स्वर उठाती है। इसमें एक माँ अपनी बेटी को यह बताती है कि स्त्रियों को सुन्दरता के आवरण और भुलावे में बाँध कर समाज उसकी कमजोरी का उपहास करता है और उपयोग भी माँ अपने दीर्घ जीवन-अनुभवों से संचित पीड़ा, उपेक्षा और उपयोग के आधार पर अपनी बेटी को आगाह करती है कि वह नए जीवन में प्रवेश करते हुए कोमलता से भ्रमित और कमजोर होने के बजाय जीवन के यथार्थ को समझे और मजबूती से उनका सामना कर पाए।
कन्यादान
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो।
लड़की अभी सयानी नहीं थी,
अभी इतनी भोली, सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था।
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की,
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना।
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है,
जलने के लिए नहीं।
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के।
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
कन्यादान – व्याख्या
परिचय –
‘कन्यादान’ कविता में कवि ऋतुराज ने उस दृश्य का वर्णन किया है जब एक माँ अपनी बेटी का कन्यादान कर उसे विदा कर रही है। यह कविता परंपरागत सोच से अलग है। इसमें माँ का दुख केवल बेटी के बिछड़ने का दुख नहीं है, बल्कि उसमें भविष्य की चिंता और बेटी को ससुराल के यथार्थ से परिचित कराने का भाव भी छिपा है। माँ अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत आदर्श रूप से हटकर, एक मजबूत और जागरूक इंसान बनने की सीख देती है।
कविता का भावार्थ और व्याख्या
पंक्तियाँ –
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो।
व्याख्या –
इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि अपनी लड़की का कन्यादान करते समय माँ का दुख बहुत ही स्वाभाविक और वास्तविक (प्रामाणिक) था। उसके दुख में कोई दिखावा नहीं था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह अपने जीवन की आखिरी जमा पूँजी किसी और को सौंप रही हो। बेटी माँ के सबसे करीब होती है, उसके सुख-दुख की साथी होती है। माँ ने उसे बड़े लाड़-प्यार और जतन से पाला है, इसलिए विदाई के समय उसे अपनी ‘अंतिम पूँजी’ के दान हो जाने का गहरा दुख हो रहा है।
पंक्तियाँ –
लड़की अभी सयानी नहीं थी,
अभी इतनी भोली, सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था।
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की,
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।
व्याख्या –
यहाँ माँ अपनी बेटी की स्थिति का वर्णन करती है। वह कहती है कि उसकी बेटी अभी पूरी तरह से सयानी अर्थात् समझदार या दुनियादार नहीं हुई है। वह बहुत भोली और सीधी-सादी है। उसने अभी तक अपने मायके में सिर्फ सुख और प्यार ही देखा है, इसलिए उसे सुख का अनुभव तो है, लेकिन जीवन में आने वाले दुखों और छल-कपट को समझना उसे नहीं आता।
वह तो धुँधले प्रकाश में कुछ तुकबंदियों और सरल कविताओं को पढ़ने वाली एक पाठिका की तरह थी। इसका अर्थ है कि उसे जीवन की बहुत अस्पष्ट और सीमित समझ थी। उसने जीवन के केवल मधुर और सरल पक्ष को ही देखा था, उसकी जटिलताओं और कठोर सच्चाइयों से वह पूरी तरह अनजान थी।
पंक्तियाँ –
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना।
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है,
जलने के लिए नहीं।
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के।
व्याख्या –
अब माँ अपनी बेटी को विदा करते समय जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण सीख देती है। ये सीखें परंपरागत सीखों से बिल्कुल अलग हैं:
- “पानी में झाँककर अपने चेहरे पर मत रीझना”: माँ कहती है कि अपनी सुंदरता पर कभी घमंड मत करना या उसी में खो मत जाना। सुंदरता क्षणिक होती है। इसके पीछे का गहरा अर्थ यह है कि बाहरी सुंदरता से अधिक अपने आंतरिक गुणों को महत्त्व देना चाहिए और केवल रूप-रंग के आधार पर मिलने वाली प्रशंसा से भ्रमित नहीं होना चाहिए।
- “आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं”: यह पंक्ति बहुत मार्मिक और गहरी है। माँ अपनी बेटी को सचेत करती है कि आग का उपयोग घर की ज़िम्मेदारियाँ निभाने जैसे रोटियाँ सेंकने के लिए करना, लेकिन कभी भी उसे अपने ऊपर होने वाले अत्याचार का माध्यम मत बनने देना। यह उस समय समाज में व्याप्त दहेज़-हत्या और घरेलू हिंसा की ओर एक सीधा संकेत है, जहाँ बहुओं को जला दिया जाता था। माँ उसे आत्मनिर्भर और अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहने को कह रही है।
- “वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं स्त्री जीवन के”: माँ समझाती है कि सुंदर कपड़े और गहने मीठे शब्दों के जाल की तरह होते हैं, जो असल में स्त्री के लिए बंधन का काम करते हैं। समाज अक्सर इन्हीं चीजों का लालच देकर या प्रशंसा करके स्त्री को सीमित और नियंत्रित करने की कोशिश करता है। माँ चाहती है कि उसकी बेटी इन बाहरी चीजों के मोह में न फँसे और अपनी स्वतंत्रता को सबसे ऊपर रखे।
पंक्तियाँ –
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
व्याख्या –
यह कविता की सबसे शक्तिशाली और अंतिम सीख है। माँ अपनी बेटी से कहती है कि तुम लड़की के सभी स्वाभाविक गुण—जैसे कि प्रेम, दया, ममता, विनम्रता—को अपने अंदर बनाए रखना, लेकिन कभी भी “लड़की जैसी” यानि कमजोर, असहाय और दब्बू बनकर मत रहना, जिसे समाज आसानी से दबा सके।
इसका अर्थ है कि वह अपनी कोमलता को अपनी कमजोरी न बनने दे। उसे साहसी, दृढ़ और जागरूक बनना होगा ताकि वह अपने ऊपर होने वाले हर अन्याय का सामना कर सके और अपनी एक स्वतंत्र पहचान बना सके।
कविता का सार
‘कन्यादान’ कविता स्त्री जीवन के प्रति कवि की गहरी संवेदनशीलता को प्रकट करती है। यह कविता एक माँ के माध्यम से स्त्री को उसकी परंपरागत, कमजोर और शोषित की जाने वाली छवि से बाहर निकालकर एक सशक्त और जागरूक व्यक्तित्व बनाने का संदेश देती है। माँ का दुख केवल विदाई का नहीं, बल्कि बेटी के भविष्य की अनिश्चितताओं और समाज के यथार्थ को लेकर है, जिसके लिए वह अपनी बेटी को मानसिक रूप से तैयार कर रही है।
शब्दार्थ
कन्यादान – कन्या का दान
प्रामाणिक – प्रमाण पर आधारित
आभास – लगना, महसूस होना;
लयबद्ध – लय में बँधी हुई
शाब्दिक – शब्द से संबंधित
रीझना – मोहित होना।
शब्द | हिंदी अर्थ | अंग्रेजी अर्थ |
प्रामाणिक | सच्चा या विश्वसनीय | Authentic or genuine |
सयानी | परिपक्व या समझदार | Mature or wise |
भोली | मासूम या निश्छल | Innocent or naive |
सरल | सादा या आसान | Simple or straightforward |
आभास | अनुभूति या हल्का ज्ञान | Inkling or perception |
बाँचना | बाँटना या साझा करना | To share or distribute |
पाठिका | पढ़ने वाली स्त्री | Female reader |
धुँधले | अस्पष्ट या मंद | Dim or hazy |
तुकों | छंद या अंत्यानुप्रास | Rhymes |
लयबद्ध | लय युक्त या तालबद्ध | Rhythmic or metrical |
रीझना | प्रसन्न होना या आकर्षित होना | To be pleased or to admire |
सेंकने | भूनना या गर्म करना | To bake or to warm |
शाब्दिक | शब्द संबंधी या लफ्जी | Verbal or literal |
भ्रमों | भ्रम या भ्रमण (बहुवचन) | Illusions (plural) |
बंधन | बंधन या प्रतिबंध | Bonds or restrictions |
अभ्यास
- इस कविता में किसके किसके मध्य संवाद हो रहा है?
उत्तर – इस कविता में मुख्यतः माँ और बेटी के मध्य संवाद हो रहा है। माँ विवाह के समय अपनी बेटी को जीवन की नई परिस्थितियों और चुनौतियों का सामना करने के लिए सीख दे रही है।
- लड़की को दान देते वक्त माँ को अंतिम पूँजी देने जैसा दुख क्यों हो रहा है?
उत्तर – माँ को लड़की को दान देते वक्त अंतिम पूँजी देने जैसा दुख इसलिए हो रहा है क्योंकि:
वह लड़की ही माँ के सबसे करीब थी और उसके सुख-दुख की साथी थी।
बेटी के चले जाने के बाद माँ का अकेलापन बढ़ जाएगा, जैसे कोई अपनी अंतिम और सबसे मूल्यवान संपत्ति खो रहा हो।
वह अपनी बेटी को ससुराल भेज रही है, जहाँ वह शायद अपने आँसुओं और दुखों को साझा करने के लिए उपलब्ध न हो।
- ” पानी में झाँककर कभी अपने चेहरे पर मत रीझना” इस पंक्ति के माध्यम से माँ, बेटी को क्या सीख देना चाहती है?
उत्तर – इस पंक्ति के माध्यम से माँ बेटी को यह सीख देना चाहती है कि वह अपनी सुंदरता या बाहरी आकर्षण पर अत्यधिक मुग्ध या अभिमानित न हो जाए। वह उसे सावधान कर रही है कि सुंदरता एक क्षणिक चीज़ है और यह जीवन में महत्वपूर्ण नहीं है। यह सीख इसलिए भी दी गई है ताकि वह अपनी सुंदरता के कारण किसी के शोषण या धोखे का शिकार न हो।
- कविता में माँ के अनुभवों की पीड़ा किन-किन पंक्तियों में उभरकर आई है?
उत्तर – माँ के अनुभवों की पीड़ा निम्नलिखित पंक्तियों में उभरकर आई है:
“आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं।” यह पंक्ति स्त्री जीवन में होने वाली हिंसा और उत्पीड़न के दर्दनाक अनुभव को दर्शाती है।
“वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं स्त्री जीवन के।” यह पंक्ति स्त्री के लिए भौतिक सुख-सुविधाओं की वास्तविकता और उसके पीछे छिपे बंधनों को दर्शाती है।
“माँ ने कहा लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।” यह पंक्ति माँ के कठिन जीवन अनुभवों से निकली है, जहाँ उसने महसूस किया है कि भोलापन और सरलता ही स्त्री की कमजोरी बन जाती है।
- “लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना” में किस प्रकार के आदर्शों को छोड़ने और किन-किन आदर्शों को अपनाने की बात कही गई है?
उत्तर – इस पंक्ति में माँ ने अपनी बेटी को ‘स्त्री-सुलभ’ माने जाने वाले पारंपरिक कमजोर आदर्शों को छोड़ने और आत्मनिर्भरता, जागरूकता तथा साहस जैसे सशक्त आदर्शों को अपनाने की सलाह दी है।
छोड़ने के आदर्श जो ‘लड़की जैसी दिखाई देना‘ से जुड़े हैं –
अत्यधिक भोलापन और सरलता (जिसका शोषण हो सकता है)।
कमजोरी, अधीनता, और निष्क्रियता (जो स्त्री को दूसरों पर निर्भर बनाती है)।
बाहरी आकर्षण पर अत्यधिक ध्यान देना और सामाजिक बंधनों में फँसना।
अपनाने के आदर्श ‘लड़की होना‘ के सकारात्मक पहलू –
कोमलता, संवेदनशीलता, और भावनात्मकता (मानवीय गुण)।
साहस, संघर्ष क्षमता और आत्मविश्वास।
विवेक और जागरूकता के साथ अपने अधिकारों की रक्षा करना।
- “पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की” से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर – इस पंक्ति से कवि का अभिप्राय यह है कि लड़की अभी पूरी तरह से दुनियादारी को नहीं समझती थी।
धुँधले प्रकाश की पाठिका होने का मतलब है कि उसने अभी जीवन के सुख-दुख को अस्पष्ट रूप से ही जाना था, जैसे किसी किताब को धुँधली रोशनी में पढ़ना।
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों का मतलब है कि उसने अभी तक केवल जीवन के सरल, बाहरी और सुखद पहलुओं को ही समझा था, जैसे कविता की सुंदर पंक्तियाँ।
वह जीवन के कठोर यथार्थ, संघर्ष, छल और दुख को अभी तक पूरी तरह से पहचानना और समझना नहीं सीखी थी। वह केवल सुख का आभास कर पाती थी, दुख बाँचना (पढ़ना/समझना) नहीं जानती थी।
पाठ से आगे
- कविता में एक माँ द्वारा अपनी बेटी को जिस तरह की सीख दी गई है, वह वर्तमान में कितनी प्रासंगिक और औचित्यपूर्ण है? समूह में विचार-विमर्श कर लिखिए।
उत्तर – कविता में दी गई माँ की सीख वर्तमान में भी अत्यंत प्रासंगिक और औचित्यपूर्ण है।
प्रासंगिकता और औचित्यपूर्णता –
शोषण के विरुद्ध जागरूकता – माँ की सीख कि “आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं” आज भी जरूरी है। आज भी दहेज, घरेलू हिंसा और मानसिक उत्पीड़न जैसी बुराइयाँ समाज में व्याप्त हैं। माँ की यह चेतावनी बेटी को यह सिखाती है कि वह अत्याचार को सहन न करे, बल्कि उसका प्रतिकार करे।
भौतिकवाद से दूरी – “वस्त्र और आभूषण… बंधन हैं स्त्री जीवन के” वाली सीख आज के उपभोक्तावादी युग में और भी महत्वपूर्ण है। यह सीख बाहरी दिखावे और भौतिक सुखों के भ्रम से दूर रहकर, आत्मनिर्भरता और आंतरिक शक्ति को प्राथमिकता देने का आह्वान करती है।
चेहरे पर न रीझना – “पानी में झाँककर… चेहरे पर मत रीझना” की सीख महिलाओं को यह बताती है कि वे अपनी सुंदरता या बाहरी पहचान को ही अपनी एकमात्र पूंजी न मानें, बल्कि अपने ज्ञान, चरित्र और क्षमताओं पर ध्यान दें।
सशक्तीकरण का संदेश – “लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना” का संदेश आज के नारी सशक्तिकरण के आंदोलन का मूल है। इसका अर्थ है कि स्त्री को अपनी कोमलता और मानवीय गुणों को बनाए रखना चाहिए, पर कमजोरी, अधीनता और निष्क्रियता जैसे रूढ़िवादी गुणों को छोड़कर साहसी और जुझारू बनना चाहिए।
निष्कर्ष – वर्तमान समय में जहाँ स्त्रियाँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, वहाँ भी माँ की यह सीख उन्हें सजग, स्वाभिमानी और शोषण-मुक्त जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है।
- विवाह में कन्या के दान की परंपरा चली आ रही है। क्या वास्तव में ‘कन्या‘ दान की वस्तु होती है? कक्षा में चर्चा कर प्राप्त विचार को लिखिए।
उत्तर – ‘कन्या’ दान की वस्तु नहीं है। विवाह में ‘कन्यादान’ की परंपरा भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा रही है, जो भावनात्मक और प्रतीकात्मक रूप से प्रचलित है, लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अनुपयुक्त है।
कक्षा चर्चा से प्राप्त विचार –
‘दान’ शब्द का विरोध – ‘दान’ का अर्थ होता है किसी वस्तु को हमेशा के लिए दे देना, जिस पर देने वाले का कोई अधिकार नहीं रह जाता। कन्या या बेटी कोई निर्जीव वस्तु नहीं है जिसे दान दिया जाए। बेटी का स्वयं का व्यक्तित्व, पहचान और अधिकार है।
मानवाधिकार और समानता – आधुनिक समाज मानवाधिकार और लैंगिक समानता पर आधारित है। बेटी को ‘दान की वस्तु’ मानना इन सिद्धांतों के विरुद्ध है। वह एक स्वतंत्र व्यक्ति है, जो अपनी इच्छा से नए रिश्ते में बंधती है।
भावनात्मक प्रतीकात्मकता – ‘कन्यादान’ की रस्म का प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि माता-पिता स्नेह और जिम्मेदारी से अपनी बेटी को उसके नए परिवार को सौंपते हैं, यह विश्वास करते हुए कि अब उनके पति और ससुराल वाले उसका ख्याल रखेंगे। इसे “हस्तांतरण” (Handover) या “समर्पण” के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि दान के रूप में।
नए शब्दों का सुझाव – कई लोग अब इस रस्म को कन्या का ‘समर्पण’, ‘दायित्व का हस्तांतरण’ या ‘प्रेम का आदान-प्रदान’ जैसे अधिक सम्मानजनक शब्दों से संबोधित करने का सुझाव देते हैं, जो एक स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व का सम्मान करते हैं।
निष्कर्ष – आज के जागरूक समाज में ‘कन्यादान’ की परंपरा को बेटी के सम्मान और स्वायत्तता के प्रतीक के रूप में समझा जाना चाहिए, न कि उसे वस्तु मानने की विचारधारा के रूप में।
भाषा के बारे में
- समाज में विवाह से जुड़ी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, उम्र, रंग-रूप आदि आधारों पर तमाम रुढ़िवादी भ्रांतियाँ एवं व्यवहार आज भी प्रचलन में हैं। इन्हीं मुद्दों को रेखांकित करते हुए एक आलेख तैयार कीजिए।
उत्तर – विषय – विवाह से जुड़ी रुढ़िवादी भ्रांतियाँ : एक सामाजिक समस्या
हमारे समाज में विवाह एक पवित्र संस्था मानी जाती है। परंतु आज भी इससे जुड़ी कई रुढ़िवादी धारणाएँ समाज में गहराई से जमी हुई हैं। विवाह में जाति, धर्म, आर्थिक स्थिति, उम्र, रंग-रूप, दहेज आदि को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। योग्य और शिक्षित युवाओं को केवल इसलिए अस्वीकार कर दिया जाता है क्योंकि उनका रंग गोरा नहीं या वे किसी अन्य जाति से संबंध रखते हैं।
इन कुप्रथाओं के कारण अनेक सामाजिक बुराइयाँ जन्म लेती हैं—दहेज प्रथा, बाल विवाह, अंतर्जातीय विवाहों का विरोध, और स्त्रियों के प्रति असमानता की भावना। समय की मांग है कि हम इन रूढ़ियों को तोड़ें और विवाह को समानता, प्रेम, और आपसी सम्मान पर आधारित करें।
शिक्षा, जागरूकता और सामाजिक सुधार अभियानों के माध्यम से ही इन भ्रांतियों को समाप्त किया जा सकता है। तभी हमारा समाज सच्चे अर्थों में प्रगतिशील कहलाएगा।
- एक ऐसी कविता की रचना कीजिए जिसमें आपकी चाहत, महत्वाकांक्षा परिलक्षित (मुखरित) होती हो।
उत्तर – कविता : मेरी उड़ान
मैं बादलों के पार चलूँ,
अपने सपनों के द्वार चलूँ।
ना थकूँ, ना रुकूँ कभी,
हर मुश्किल से मैं लड़ चलूँ।
ज्ञान की रोशनी बाँटूँ मैं,
अंधेरों में उजियार भरूँ।
देश के नाम कर दूँ जीवन,
हर मन में विश्वास भरूँ।
मेरी चाहत बस इतनी-सी,
ऊँचाइयों को छू लूँ मैं,
सच्चाई के इस पथ पर ही,
अपनी पहचान खोज लूँ मैं।
- अपनी बड़ी बहन के विवाह की तैयारियों संबंधी जानकारी देते हुए अपनी सहेली / दोस्त को पत्र लिखिए।
उत्तर – प्रेषक :
सोनिया शर्मा
सी-12, नेहरू नगर, भोपाल
दिनांक – 05 अक्टूबर 2025
प्रिय सखी आर्या,
सप्रेम नमस्कार,
आशा है तुम कुशल पूर्वक होगी। बहुत दिनों बाद तुम्हें पत्र लिख रही हूँ। तुम्हें यह बताते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है कि मेरी बड़ी बहन का विवाह अगले माह 20 नवम्बर को होने जा रहा है। घर में चारों ओर उत्साह और खुशी का माहौल है।
माँ-पापा तैयारियों में व्यस्त हैं। खरीदारी, कार्ड वितरण और सजावट का काम जोरों पर है। मैं भी अपनी सहेलियों के साथ गीत-संगीत की तैयारियाँ कर रही हूँ। तुम्हें मेरे साथ नाचना ही होगा, यह मैं पहले से कह देती हूँ!
तुम्हें अवश्य आना है, क्योंकि तुम्हारे बिना यह समारोह अधूरा रहेगा। जल्दी आकर मदद भी करनी है।
सप्रेम,
तुम्हारी सखी
सोनिया
- मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का लाभ उठाने हेतु मुख्यमंत्री कार्यालय को आवेदन पत्र लिखिए।
उत्तर – प्रति,
माननीय मुख्यमंत्री महोदय,
मध्य प्रदेश शासन,
भोपाल।
विषय – मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के अंतर्गत सहायता हेतु आवेदन।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं ग्राम–रत्नपुर, जिला–सागर की निवासी हूँ। मैं आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से संबंध रखती हूँ। मेरी पुत्री का विवाह आगामी माह 15 नवम्बर 2025 को निर्धारित है। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण मैं मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का लाभ प्राप्त करना चाहती हूँ।
अतः आपसे निवेदन है कि कृपया योजना के अंतर्गत अनुदान स्वीकृत करने की कृपा करें ताकि मेरी पुत्री के विवाह का कार्य सुचारु रूप से संपन्न हो सके।
संबंधित प्रमाण पत्र संलग्न हैं।
आपकी आभारी,
(हस्ताक्षर)
नाम : सावित्री देवी
ग्राम – रत्नपुर, तहसील – बंडा,
जिला – सागर (म.प्र.)
दिनांक – 05 अक्टूबर 2025
योग्यता विस्तार
- बेटी-बचाओ, बेटी बढ़ाओ, ‘नारी शिक्षा‘, कन्या-भ्रूण हत्या आदि विषयों पर चर्चा कर चार्ट पेपर पर लेखन कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
- ‘स्त्री सम्माननीया है‘ इस आशय के श्लोक, दोहे आदि को पुस्तकालय से ढूँढ़कर पढ़िए और किन्हीं पाँच का लेखन कीजिए।
उत्तर – यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता।
यत्रैतास्तु न पूज्यंते सर्वास्तत्राफला क्रियाः॥ (मनुस्मृति) –
जहाँ नारियों का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं; जहाँ नहीं, वहाँ कर्म फलहीन होते हैं।
पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः।
स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्ताः तस्माद्रक्ष्या विशेषतः॥ –
स्त्री घर की लक्ष्मी है, भाग्यशालिनी और पुण्यमयी; इसलिए विशेष रक्षा करनी चाहिए।
- स्त्री को सबला बनाने हेतु विचार संबंधी दस स्लोगन बनाइए एवं उनका लेखन कीजिए।
उत्तर – नारी पर है बड़ी ज़िम्मेदारी
परिवार में उसकी भी है हिस्सेदारी
इसलिए तो कहता हूँ कि
बनने दो उसको भी अधिकारी
अन्य स्लोगान छात्र स्वयं करें
- (क) विवाह में ‘कन्यादान की रस्म क्यों होती है? घर के बड़ों से पता करके लिखिए।
उत्तर – भारतीय संस्कृति में कन्यादान हिंदू विवाह की सबसे पवित्र रस्म मानी जाती है, जिसमें पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपता है इससे कन्या की जिम्मेदारी वर और उसके परिवार पर आ जाती है। मनुस्मृति ग्रंथ के अनुसार, यह महादान है, जो पिता को पुण्य प्रदान करता है। यह भावनात्मक रूप से बेटी को ससुराल विदा करने का प्रतीक है। घर के बड़ों से पता करने पर उन्होंने बताया कि यह उत्तरदायित्व हस्तांतरण का संस्कार है, जो विवाह को संपूर्ण बनाता है।
(ख) क्या सभी समुदायों में विवाह की रस्में समान होती हैं? अपने उत्तर के पक्ष में दो अलग-अलग समुदाय से जुड़े लोगों से जानकारी प्राप्त कीजिए और उन रस्मों के बारे में लिखिए।
उत्तर – नहीं, सभी समुदायों में विवाह रस्में समान नहीं होतीं। हिंदू और मुस्लिम समुदायों से जानकारी प्राप्त करने पर अंतर स्पष्ट हुआ।
हिंदू विवाह – संस्कारों में कन्यादान, सात फेरे, अग्नि साक्षी प्रमुख हैं। विवाह पवित्र बंधन है, सोलह संस्कारों का भाग।
मुस्लिम विवाह (निकाह) – काजी द्वारा प्रस्ताव और स्वीकृति, गवाहों की उपस्थिति अनिवार्य। यह करार है, इद्दत अवधि आदि नियम हैं। धर्म भेद से विवाह अमान्य हो सकता है।
हिंदू में धार्मिक संस्कार, मुस्लिम में कानूनी स्वीकृति पर जोर। ईसाई विवाह चर्च में होता है, जबकि हिंदू में मंडप में।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
कविता में पिता का दुख किस संदर्भ में वर्णित है?
a) लड़की की शादी में
b) कन्यादान के समय
c) लड़की की विदाई में
d) लड़की की पढ़ाई में
उत्तर – b) कन्यादान के समय
लड़की को दान में देते समय पिता का दुख कैसा बताया गया है?
a) नकली
b) प्रामाणिक
c) हल्का
d) अस्थायी
उत्तर – b) प्रामाणिक
लड़की अभी कैसी नहीं है?
a) सयानी
b) भोली
c) सरल
d) मासूम
उत्तर – a) सयानी
लड़की को सुख का क्या होता था?
a) ज्ञान
b) आभास
c) अनुभव
d) डर
उत्तर – b) आभास
लड़की को क्या नहीं आता था?
a) सुख महसूस करना
b) दुख बाँचना
c) पढ़ना
d) खेलना
उत्तर – b) दुख बाँचना
लड़की किसकी पाठिका थी?
a) किताबों की
b) धुँधले प्रकाश की
c) कहानियों की
d) समाचारों की
उत्तर – b) धुँधले प्रकाश की
माँ ने लड़की को पानी में झाँककर क्या न करने की सलाह दी?
a) नहाने
b) रीझना
c) पीने
d) डुबकी लगाने
उत्तर – b) रीझना
आग किस लिए है, माँ के अनुसार?
a) जलने के लिए
b) रोटियाँ सेंकने के लिए
c) रोशनी के लिए
d) गर्मी के लिए
उत्तर – b) रोटियाँ सेंकने के लिए
वस्त्र और आभूषण क्या हैं, माँ के अनुसार?
a) सुख के साधन
b) शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन
c) आवश्यक वस्तुएँ
d) उपहार
उत्तर – b) शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन
माँ की अंतिम सलाह क्या है?
a) लड़की होना लेकिन लड़की जैसी मत दिखना
b) लड़की जैसी दिखना
c) लड़का बनना
d) स्वतंत्र रहना
उत्तर – a) लड़की होना लेकिन लड़की जैसी मत दिखना
एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: कन्यादान के समय माँ का दुःख कैसा था?
उत्तर: कन्यादान के समय माँ का दुःख बहुत ही सच्चा और स्वाभाविक था, मानो वह अपने जीवन की सबसे कीमती और अंतिम पूँजी को दान कर रही हो।
प्रश्न 2: माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी‘ क्यों लग रही थी?
उत्तर: माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ इसलिए लग रही थी क्योंकि बेटी ही उसके जीवन के सुख-दुःख की एकमात्र सच्ची साथी थी, जिसे उसने बड़े लाड़-प्यार से बड़ा किया था।
प्रश्न 3: कविता में लड़की को ‘सयानी‘ क्यों नहीं माना गया है?
उत्तर: कविता में लड़की को ‘सयानी’ इसलिए नहीं माना गया है क्योंकि वह अभी बहुत भोली और सरल स्वभाव की थी, जिसे केवल सुख का अनुभव था लेकिन दुनियादारी और जीवन के दुखों की समझ नहीं थी।
प्रश्न 4: ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की‘ पंक्ति का क्या आशय है?
उत्तर: इस पंक्ति का आशय यह है कि लड़की को जीवन का बहुत ही सीमित और अस्पष्ट ज्ञान था, उसने जीवन की कठोर सच्चाइयों और जटिलताओं को अभी तक नहीं समझा था।
प्रश्न 5: माँ ने बेटी को पानी में अपना चेहरा देखकर रीझने से मना क्यों किया?
उत्तर: माँ ने बेटी को अपनी बाहरी सुंदरता पर मोहित होने या घमंड करने से मना किया क्योंकि वह चाहती थी कि उसकी बेटी शारीरिक सुंदरता से अधिक अपने गुणों को महत्व दे।
प्रश्न 6: ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं‘ – इस पंक्ति में माँ ने क्या सीख दी है?
उत्तर: इस पंक्ति में माँ ने यह सीख दी है कि आग का उपयोग घर की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए करना, परंतु उसे कभी भी अपने ऊपर होने वाले अत्याचार का माध्यम या खुद को कष्ट पहुँचाने का साधन नहीं बनने देना।
प्रश्न 7: माँ ने वस्त्र और आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम‘ क्यों कहा है?
उत्तर: माँ ने वस्त्र और आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ इसलिए कहा है क्योंकि ये स्त्री को प्रशंसा के जाल में फँसाकर उसकी स्वतंत्रता को सीमित कर देते हैं और उसके लिए बंधन का कारण बनते हैं।
प्रश्न 8: कविता के अनुसार लड़की को क्या ‘बाँचना‘ नहीं आता था?
उत्तर: कविता के अनुसार लड़की को जीवन में आने वाले दुखों और कष्टों को समझना और उनका सामना करना, अर्थात ‘दुख बाँचना’ नहीं आता था।
प्रश्न 9: माँ ने बेटी को लड़की होने के साथ-साथ कैसा न दिखने की सलाह दी?
उत्तर: माँ ने बेटी को लड़की होने के साथ-साथ एक लड़की की तरह कमजोर, असहाय या दब्बू न दिखने की सलाह दी।
प्रश्न 10: ‘लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना‘ पंक्ति का गहरा अर्थ क्या है?
उत्तर: इस पंक्ति का गहरा अर्थ यह है कि अपने अंदर स्त्री के स्वाभाविक गुण जैसे कोमलता, स्नेह और ममता को बनाए रखना, लेकिन अन्याय और शोषण का सामना करने के लिए कभी भी अपनी कमजोरी प्रदर्शित मत करना।
30-40 शब्दों में प्रश्नोत्तर
- कविता का शीर्षक “कन्यादान” क्या दर्शाता है?
कविता का शीर्षक “कन्यादान” पारंपरिक हिंदू रिवाज को दर्शाता है जहाँ पिता लड़की को दान में देता है। यह पिता के दुख, लड़की की मासूमियत और समाज की अपेक्षाओं को उजागर करता है, जो स्त्री जीवन की बंधनों को दिखाता है।
- पिता का दुख कितना प्रामाणिक था?
पिता का दुख प्रामाणिक था क्योंकि लड़की को दान में देते समय वह उसे अपनी अंतिम पूँजी मानता है। यह भावनात्मक गहराई दिखाता है, जहाँ लड़की परिवार की सबसे कीमती संपत्ति है, लेकिन समाजिक रिवाज उसे अलग कर देता है।
- लड़की की उम्र और स्वभाव कैसा वर्णित है?
लड़की अभी सयानी नहीं है, भोली और सरल है। उसे सुख का आभास होता है लेकिन दुख बाँचना नहीं आता। यह उसकी मासूमियत को दर्शाता है, जो जीवन की जटिलताओं से अनजान है।
- लड़की किसकी पाठिका है?
लड़की धुँधले प्रकाश, कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की पाठिका है। यह उसकी कल्पनाशील दुनिया को दिखाता है, जहाँ वह कविता या कहानियों में खोई रहती है, वास्तविक जीवन से अलग।
- माँ ने पानी में झाँकने पर क्या सलाह दी?
माँ ने कहा कि पानी में झाँककर अपने चेहरे पर मत रीझना। यह सलाह आत्ममुग्धता से बचने की है, जो स्त्री को विनम्र और व्यावहारिक रहने की सीख देती है समाज में।
- आग के उपयोग पर माँ की क्या राय है?
माँ कहती है कि आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं। यह जीवन की व्यावहारिकता सिखाता है, जहाँ आग घरेलू कामों के लिए है, न कि स्वयं को नुकसान पहुँचाने के लिए।
- वस्त्र और आभूषण को माँ ने क्या बताया?
माँ ने वस्त्र और आभूषण को शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन बताया। यह स्त्री जीवन में सौंदर्य की वस्तुओं को प्रतिबंध के रूप में दर्शाता है, जो स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।
- माँ की अंतिम सलाह क्या है और क्यों?
माँ कहती है कि लड़की होना लेकिन लड़की जैसी दिखाई मत देना। यह समाज की अपेक्षाओं से बचने की सलाह है, जहाँ स्त्री को मजबूत और कमजोर न दिखने की सीख मिलती
- कविता स्त्री जीवन के किन पहलुओं को उजागर करती है?
कविता स्त्री जीवन के बंधनों, मासूमियत की हानि और समाजिक रिवाजों को उजागर करती है। कन्यादान से लेकर माँ की सलाह तक, यह पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री की स्थिति दिखाती है।
- कविता का मुख्य संदेश क्या है?
कविता का मुख्य संदेश स्त्री की मासूमियत, समाजिक बंधनों और जीवन की व्यावहारिक सलाहों पर है। यह कन्यादान के माध्यम से भावनात्मक और सामाजिक चुनौतियों को दर्शाता है, स्त्री सशक्तिकरण की ओर इशारा करता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- कविता में पिता के दुख का वर्णन कैसे किया गया है और यह क्या प्रतीकित करता है?
कविता में पिता का दुख प्रामाणिक बताया गया है, जैसे लड़की उसकी अंतिम पूँजी हो। कन्यादान के समय यह दुख भावनात्मक अलगाव को दर्शाता है, जहाँ पिता अपनी बेटी को खोने का शोक मनाता है। यह पितृसत्तात्मक समाज में बेटी को संपत्ति मानने की परंपरा को प्रतीकित करता है, जो भावनाओं और रिवाजों के बीच संघर्ष दिखाता है।
- लड़की की मासूमियत और जीवन अनुभव को कविता कैसे चित्रित करती है?
लड़की को भोली, सरल और सयानी न होने वाली बताया गया है। उसे सुख का आभास होता है लेकिन दुख बाँचना नहीं आता। वह धुँधले प्रकाश, तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की पाठिका है, जो उसकी कल्पनाशील लेकिन वास्तविकता से दूर दुनिया दिखाती है। यह बचपन की मासूमियत को प्रतीकित करता है, जो विवाह जैसे रिवाजों से टूटती है।
- माँ की सलाहों का महत्व क्या है और वे स्त्री जीवन से कैसे जुड़ी हैं?
माँ की सलाहें जैसे पानी में चेहरे पर न रीझना, आग को सेंकने के लिए इस्तेमाल करना और वस्त्र-आभूषण को बंधन मानना, स्त्री को व्यावहारिक और सतर्क रहने की सीख देती हैं। अंतिम सलाह “लड़की होना लेकिन लड़की जैसी मत दिखना” समाज की अपेक्षाओं से बचने की है। ये सलाहें पितृसत्ता में स्त्री की सीमाओं और सशक्तीकरण को दर्शाती हैं।
- कविता में प्रतीकों जैसे आग, पानी और आभूषण का उपयोग कैसे किया गया है?
आग को रोटियाँ सेंकने के लिए बताया गया है, जो जीवन की उपयोगिता दर्शाता है, जलने से बचाव खतरे का प्रतीक है। पानी में झाँकना आत्ममुग्धता का, जबकि वस्त्र-आभूषण शाब्दिक भ्रमों जैसे बंधन हैं। ये प्रतीक स्त्री जीवन की व्यावहारिकता, खतरे और प्रतिबंधों को उजागर करते हैं, माँ की सलाह के माध्यम से समाजिक सच्चाई दिखाते हैं।
- कविता ‘कन्यादान’ समग्र रूप से किस सामाजिक मुद्दे पर प्रकाश डालती है?
कविता कन्यादान के माध्यम से पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री की स्थिति, भावनात्मक दुख और बंधनों पर प्रकाश डालती है। पिता का प्रामाणिक दुख, लड़की की मासूमियत और माँ की व्यावहारिक सलाहें स्त्री सशक्तिकरण की कमी को दिखाती हैं। यह परंपराओं की आलोचना करती है, जहाँ स्त्री को दान की वस्तु माना जाता है, और स्वतंत्रता की आवश्यकता पर जोर देती है।

