डॉ. सुनीत मिश्र – जीवन परिचय
डॉ. श्रीमती सुनीत मिश्र का जन्म 16 अक्टूबर, 1949 को मंडला, मध्यप्रदेश में हुआ। इन्होंने एम. ए., पी.एच. डी. (इतिहास) एवं पर्यटन में स्नातकोत्तर पत्रोपाधि प्राप्त की है। सोनाखान के वीर जमींदार शहीद वीरनारायण सिंह पर इनका प्रथम शोधकार्य है। इनके शोधपत्र, लेख विचारादि समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। इन्हें शिक्षा एवं महिला उत्थान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेतु हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल एवं महिला आयोग, छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा राज्यपाल के हाथों सम्मानित किया गया है।
अमर शहीद वीरनारायण सिंह
अतीत से ही छत्तीसगढ़ देश का एक गौरवशाली भू-भाग रहा है। यहाँ पर सर्वधर्म समभाव की भावना है, ऋषि-मुनियों एवं वीर योद्धाओं ने इस अचंल का नाम देश में रोशन किया है। यह क्षेत्र राष्ट्रीय सांस्कृतिक एकता की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इस अंचल में अनेक महान विभूतियों ने जन्म लिया तथा यहाँ की माटी को गौरवान्वित किया।
महानदी की घाटी एवं छत्तीसगढ़ की माटी के महान् सपूत सोनाखान के जमींदार वीर नारायण सिंह बिंझवार का जन्म 1795 में हुआ था। इनके पिता रामराय सोनाखान के जमींदार थे, रामराय ने ब्रिटिश संरक्षण काल के आरंभ होते ही 1818-19 में अंग्रेजों एवं भोंसला राजा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था जिसे नागपुर से आकर कैप्टन मैक्सन ने दबा दिया था। विद्रोह का दमन होने के बाद सोनाखान जमींदारी के गाँवों की संख्या 300 से घटकर 50 तक सीमित हो गई। इसके बाद भी रामराय का दबदबा समाप्त नहीं हुआ और बिंझवारों की तलवार का जादू सिर चढ़कर बोलता रहा। 1830 ई. में रामराय की मृत्यु के पश्चात् नारायण सिंह 35 वर्ष की अवस्था में जमींदार बने।
नारायण सिंह धर्म परायण थे, रामायण महाभारत में उनकी रुचि थी। गुरुओं से धर्म संबंधी, नीति संबंधी शिक्षा लेते थे। बाल्यकाल से ही तीर धनुष और बंदूक चलाना सीख चुके थे। मृदुभाषी, मिलनसार एवं परोपकारी प्रवृत्ति के कारण वे जनसंपर्क में विश्वास रखते थे और लोकोत्सव आदि में सम्मिलित होते थे। वे अपने कबरे घोड़े पर सवार होकर गाँव-गाँव भ्रमण कर जन समस्याएँ सुनते थे। उन्होंने तालाब खुदवाना, वृक्ष लगवाना एवं पंचायतों के माध्यम से जन समस्याओं का समाधान करना, जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य किए। सोनाखान में राजा सागर, रानी सागर और नंद सागर तीन तालाब हैं जो वीर नारायण सिंह की सच्ची लोक कल्याणकारी नीतियों के साक्षी हैं। उन्होंने स्वयं नंद सागर के आस-पास वृक्षारोपण कर नंदनवन का रूप दिया था। उनके पिता ने जीते जी जो परंपराएँ शुरू की थीं उन्होंने तथा उनके पुत्र गोविंद सिंह ने उनका पालन किया।
अन्याय और शोषण के विरोधी वीर नारायण सिंह अल्पायु से ही अपने पिता के संघर्षों में भी साथ रहते थे। उनमें अपने पूर्वज बिसई ठाकुर जैसी दृढ़ता, फत्ते नारायण सिंह जैसा धैर्य एवं साहस तथा पिता रामराय जैसा जन- नेतृत्व करने की अपूर्व क्षमता थी जो अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में देखने को मिली। जमींदार बनते ही उनके सभी जनप्रिय गुणों का साक्षात्कार होने लगा। अपनी जमीदारी सँभालने के बाद उन्होंने प्रजा के दुख-दर्द को समझा और उसे दूर करने के लिए अनेक उपाय किए।
जमींदार होने के बाद भी नारायण सिंह बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे। उनका मकान बड़ी हवेली या किला नहीं था बल्कि बाँस और मिट्टी से बना साधारण मकान था। वे आम जनता के बीच समरस होकर ही अपने क्षेत्र का दौरा करते थे और रैयत की समस्याओं एवं कठिनाइयों का हल खोजते थे।
1854 के प्रारंभ में नागपुर राज्य के साथ छत्तीसगढ़ क्षेत्र भी अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। कैप्टन इलियट ने इस अंचल का दौरा करके सरकार को रिपोर्ट भेजी। नए ढंग से टकोली (लगान) नियत किया जिसकी व्यापक प्रतिक्रिया हुई। नारायण सिंह ने भी अंग्रेजों की इस नई नीति का विरोध किया।
1835 से 1855 के मध्य सोनाखान जमींदारी में अनेक समस्याएँ आती रहीं किंतु नारायण सिंह ने उनका दृढ़ता पूर्वक सामना किया। वे अपने ग्रामों को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहे। इस अवधि में अँग्रेज अपनी देशव्यापी समस्याओं में व्यस्त थे। अफगान, सिंध, मिस्र, बर्मा आदि ज्वलंत प्रश्न थे। नागपुर में रघुजी तृतीय का शासन चल रहा था। राजा अस्वस्थता के कारण छत्तीसगढ़ आकर प्रशासन देखने की स्थिति में नहीं था, यद्यपि सोनाखान जमींदारी की जागरुकता से वह सतर्क था। नारायण सिंह ने इन परिस्थितियों से लाभ उठाते हुए अपने अधीनस्थ जमींदारी क्षेत्र में सुशासन स्थापित करने का प्रयास किया।
सोनाखान जमींदारी से टकोली की अदायगी न होने के कारण रायपुर में डिप्टी कमिश्नर सी. इलियट, नारायण सिंह के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त था। वह उन्हें दंडित करने की प्रतीक्षा में था। इसके लिए वह सूक्ष्म कारणों को भी खोजने में सक्रिय था। उसने नागपुर के कमिश्नर को शिकायत की कि मेरी दृष्टि में जमींदार का व्यवहार असहनीय एवं अत्याचार पूर्ण है। ऐसे समय में ही उसे खालसा के व्यापारी माखन के गोदाम से जमींदार द्वारा अनाज निकाले जाने की सूचना प्राप्त हुई। अतः डिप्टी कमिश्नर ने नारायण सिंह को बुलवाया परंतु आदेश की अवहेलना होने पर उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। हुआ यह था कि सन् 1856 में छत्तीसगढ़ में सूखा पड़ा जिसमें नारायण सिंह की जमींदारी के लोग दाने-दाने के लिए तरसने लगे। खालसा गाँव के माखन नामक व्यापारी के पास अन्न के विशाल भंडार थे। नारायण सिंह को यह असह्य था कि जनता भूखों मरती रहे और व्यापारी भंडारों में अनाज जमा करते रहें। अतः नारायण सिंह ने भंडारों के ताले तोड़ दिए और उसमें से उतना अनाज निकाल लिया जो भूख के शिकार किसानों के लिए आवश्यक था और उन्होंने जो कुछ भंडार से निकाला था उसके विषय में तुरंत ही डिप्टी कमिश्नर को लिख दिया परंतु अंग्रेजों ने षडयंत्र कर सोनाखान के जमींदार को गिरफ्तार करने के लिए मुल्की घुड़सवारी की एक टुकड़ी भेज दी थी और थोड़ी बहुत परेशानी के बाद संबलपुर में उन्हें 24 अक्टूबर, 1856 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया। वस्तुतः नारायण सिंह की राजनैतिक चेतना एवं जागरुकता ब्रितानी अधिकारियों को चुनौती थी।
सोनाखान के किसान अपने नेता को जेल में देख बेचैन थे, दुखी थे किंतु उनके पास कोई चारा नहीं था। उसी समय देश में अँग्रेजी सत्ता के विरोध में विप्लव की अग्नि फूट पड़ी। इसका लाभ उठाकर सोनाखान के किसानों ने संभवतः संबलपुर के विद्रोही नेता एवं क्रांतिकारी सुरेन्द्र साय से संपर्क किया और उनकी मदद से नारायण सिंह ने रायपुर जेल से निकलने की योजना बनाई। दस माह चार दिन बंदी रहने के बाद नारायण सिंह तीन अन्य साथियों के साथ जेल से निकले। वे जेल से निकलकर सीधे सोनाखान चले गए और तीन माह तक स्वतंत्र घूमते रहे। रायपुर के डिप्टी कमिश्नर ने उन्हें पुन: पकड़वाने हेतु 1000 रूपए का इनाम घोषित करवाया साथ ही उसने तुरंत एक दस्ते को सोनाखान की ओर भेज दिया परंतु ब्रिटिश सरकार उन्हें खोजने या बंदी बनाने में असमर्थ रही।
जब नारायण सिंह गाँव पहुंच गए तो गाँव-गाँव के आदिवासी अपने नेता को देखकर खुशी-खुशी दृढ़ निश्चय कर संगठित हुए विद्रोह का नगाड़ा गाँव-गाँव बजने लगा।
नारायण सिंह भली-भाँति जानते थे कि अँग्रेज सरकार उन्हें बख्शेगी नहीं और जल्दी से जल्दी गिरफ्तार करने के लिए पूरी ताकत लगा देगी और ऐसा हुआ भी। नारायण सिंह ने परिणामों की तनिक भी परवाह किए बिना अँग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का शंखनाद जारी रखा। जमींदार नारायण सिंह के साहसिक कार्यों ने जनहित कार्यों में संलग्न होकर अंग्रेजों का विरोध अकेले ही हिम्मत के साथ किया। सोनाखान पहुँचकर नारायण सिंह ने 500 बंदूकधारियों की एक सेना एकत्र करने में सफलता पाई। उन्होनें हथियार एवं गोला बारूद बड़ी मात्रा में एकत्र किए और सोनाखान पहुँचने वाले प्रत्येक रास्ते पर जबर्दस्त मोर्चाबंदी कर दी।
रायपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट को नारायण सिंह के जेल से निकलने और सोनाखान पहुँचने का समाचार जब से मिला था उसकी नींद हराम हो गई थी। रायपुर में अँग्रेजों की फौज थी परंतु इलियट को उस पर पूर्ण विश्वास नहीं था। यह रायपुर स्थित फौज के प्रति अविश्वास का ही परिणाम था कि नारायण सिंह के विरुद्ध कार्यवाही करने में इसलिए इलियट को पूरे 20 दिन लग गए। जनहित में वीर नारायण सिंह का संघर्ष अँग्रेजों से प्रारंभ हुआ। छत्तीसगढ़ में 1857 की क्रांति का नेतृत्व उन्होंने किया। अँग्रेजों ने इसे विद्रोह माना था। जिले के अव्यवस्थित प्रशासन के कारण विद्रोह के लिए उपयुक्त अवसर था। सोनाखान गाँव को खाली करा दिया गया। पास की पहाड़ी में मोर्चा बंदी की गई। सोनाखान की ओर आने वाले हर रास्ते पर नाकेबंदी करवाकर मजबूत दीवारें खड़ी करवा दी गई। निकट के गाँवों से रसद, शस्त्र, गोला-बारूद आदि इकट्ठे किए और साहस के साथ मोर्चा संभाला।
उन्होंने अँग्रेजों के विरुद्ध खुली बगावत का ऐलान कर दिया था। उनकी गिरफ्तारी अँग्रेज डिप्टी कमिश्नर के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी थी तो नारायण सिंह के लिए आत्म-सम्मान और देश की सुरक्षा व आजादी की बात बन गई थी। लैफ्टीनेंट ग्रांट के नेतृत्व में पैदल एवं घुड़सवार सेना की एक टुकड़ी बिलासपुर से रवाना हुई जो रायपुर जिले के उत्तरी क्षेत्र तथा नर्मदा क्षेत्र के रामगढ़ एवं सोहागपुर क्षेत्र में क्रांतिकारियों की गतिविधियों को रोकने हेतु भेजी गई।
वीर नारायण सिंह के नेतृत्व में सोनाखान गाँव के आसपास के सभी किसान संगठित हो गए तथा उन्होंने शपथ ली कि वे उनके नेतृत्व में अपने प्राणों की बलि देने के लिए तैयार हैं। वस्तुतः यह छत्तीसगढ़ का पहला किसान संगठन था और वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के प्रथम किसान नेता थे। किसानों में चेतना फैलाकर उनकी शक्ति को संगठित कर अत्याचारी शासन से लोहा लेने का कार्य प्रथमतः वीर नारायण सिंह ने ही किया। उनकी सेना में किसान भी भर्ती हुए किंतु उनके पास न तो पर्याप्त हथियार थे और न ही कोई सैनिक प्रशिक्षण, किंतु उनके पास अटूट मनोबल था और था स्वाधीनता के लिए संघर्ष का संकल्प अत्याचार, अन्याय से लड़ने की प्रेरणा थी। अटूट मनोबल से बड़ा कोई हथियार नहीं होता। देखते-ही-देखते सोनाखान गाँव एक फौजी छावनी में बदल गया। जंगल के बीच बसे इस आदिवासी गाँव में तीरकमानों एवं बंदूकों की झनकार सुनाई पड़ने लगी। स्वाधीनता के संघर्ष की पहली शंखनाद सोनाखान के जंगलों से ही उठी थी।
इसी बीच अंग्रेजों के नेतृत्वकर्ता स्मिथ को मंगल नामक व्यक्ति से सूचना मिली कि समयाभाव के कारण नारायण सिंह नाकेबंदी का कार्य पूर्ण नहीं कर सका है तथा अवरोध हेतु खड़ी दीवार अपूर्ण है। स्मिथ ने अपने अधीनस्थ जमींदारों के कतिपय सहायकों को घाटी की पूर्ण नाकेबंदी हेतु आदेशित किया तथा 80 सैनिक और नियुक्त किए।
स्मिथ को अपनी फौजी तैयारी में रायपुर में 20 दिन एवं खरौद में 8 दिन लगे थे। स्मिथ खरौद से रवाना होकर पहले नीमतल्ला, फिर देवरी पहुँचा। यह 30 नवम्बर 1857 की बात है। देवरी जमींदार, स्मिथ के स्वागत के लिए तैयार ही बैठा था। देवरी का जमींदार रिश्ते में नारायण सिंह का काका लगता था। उसकी नारायण सिंह से खानदानी शत्रुता थी। स्मिथ ने देवरी जमींदार को हथियार की तरह उपयोग किया।
देवरी से स्मिथ ने ऐसी व्यवस्था की कि नारायण सिंह को सोनाखान में बाहर कहीं से भी कोई सहायता न मिल सकें। सोनाखान जंगलों एवं पहाड़ों से घिरा एक किले के समान है। सोनाखान की ओर प्रवेश के सारे रास्तों को अवरुद्ध कर स्मिथ एक दिसम्बर 1857 को प्रातःकाल देवरी से सोनाखान पर आक्रमण करने हेतु रवाना हुआ। आक्रमण के समय देवरी जमींदार महाराज साय और शिवरीनारायण का बालापुजारी भी साथ थे। देवरी जमींदार स्मिथ की फौज का पथ प्रदर्शन कर रहा था। स्मिथ की फौज जब सोनाखान से तीन फर्लांग दूर रह गई थी तब एक नाला पड़ा। उस समय 10 बजा होगा। नारायण सिंह के सिपाहियों ने स्मिथ की सेना पर अकस्मात् हमला कर दिया। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध प्रारंभ हो गया। तोप एवं बंदूकों से हमले प्रारंभ हो गए। स्मिथ लिखता है किंतु हम आगे बढ़ते रहे तथा सुरक्षित रूप से दोपहर तक सोनाखान पहुँच गए।” हरिठाकुर का मत है कि प्रारंभ में 10 बजे स्मिथ को प्रथम आक्रमण के समय भारी नुकसान हुआ था परंतु ठीक समय पर सैन्य मदद मिल जाने से वे आगे बढ़ते ही चले गए। नारायण सिंह के सिपाही इस बाढ़ को रोकने में असमर्थ रहे। अतः नारायण सिंह जंगलों की ओर चले गए ताकि अवसर मिलते ही पुनः आक्रमण कर सके। स्मिथ ने लिखा है कि “हम शीघ्रता से पैदल ही नारायण सिंह के घर तक गए, यह भी अन्य गाँवों की तरह रिक्त था। हमने वहाँ गोली चालन किया और उसके घर से पहाड़ियों तक पहरा लगवा दिया किंतु पहाड़ियों पर तब तक हमला न करने का दृढ़ संकल्प किया था जब तक कि कटंगी से लोग सहायता के लिए न आ जाएँ ताकि दोनों ओर से उन पर हमला किया जा सके।” पहाड़ी के ऊपर से भीषण गोलाबारी कर नारायण सिंह ने स्मिथ को एक बारगी लौटने पर विवश कर दिया। तत्पश्चात् खाली ग्राम में स्मिथ ने आग लगा दी। गाँव के लोग पहाड़ी पर से यह दृश्य देख रहे थे। जंगल के दूसरी ओर से नारायण सिंह की सेना ने गोलियों की बौछार शुरू की। इसके फलस्वरूप स्मिथ को अपनी जान बचाने हेतु गोलियों की पहुँच से दूर गाँव से हटने को बाध्य होना पड़ा। रात्रि में स्मिथ ने व्यक्तियों का लगातार आगमन देखा। जलते हुए सोनाखान ग्राम के उस पार पहाड़ियों में हलचल देखते हुए स्मिथ की वह रात्रि बेचैनी में व्यतीत हुई। स्मिथ लिखता है कि वह रात अँधेरी थी किंतु हमें चन्द्रमा के प्रकाश तथा हमारे सामने धधकते हुए ग्राम से लाभ हुआ।
सोनाखान धू-धू कर जल रहा था। नारायण सिंह ने स्मिथ से रणक्षेत्र में मुकाबले की तैयारी तो की थी किंतु इस प्रकार के अग्निकांड की कल्पना उन्होंने नहीं की थी। सुबह तक नारायण सिंह ने देखा कि सोनाखान राख के ढेर में बदल चुका है।
नारायण सिंह के आंदोलन को अँग्रेजों ने कुछ स्थानीय लोगों की ही मदद से कुचल दिया था। स्मिथ ने नारायण सिंह के साथ कोई शर्त नहीं रखी। वह सोनाखान के जमींदार के साथ 3 दिसंबर को रायपुर की ओर वापस चल दिया तथा 5 दिसम्बर को रायपुर पहुँचा। नारायण सिंह को उसने रायपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट को सौंप दिया एवं स्मिथ ने संबलपुर एक पत्र लिखकर निवेदन किया कि गोविंद सिंह को रायपुर भेजें क्योंकि उस समय वह उस जिले में था। उसने व्यक्ति भेजकर यह निर्देश दिया कि व्यवस्था हेतु जमींदारी में नई नियुक्तियाँ की जाएँ। तथा नारायण सिंह द्वारा बनाई गई सेना को रद्द कर दिया जाए।
डिप्टी कमिश्नर इलियट लिखता है- “मेरे कोर्ट के समक्ष जमींदार को पेश किया गया और उस पर 1857 के अधिनियम के सेक्शन 6 एक्ट 14 के अंतर्गत अभियोग लगाया गया। 1857 की धारा 01 और अधिनियम 11 के तहत मैंने उसे फाँसी की सजा सुना दी।” 9 दिसंबर 1857 को इलियट ने रायपुर स्थित तीसरा भारतीय पैदल सेना के कमांडर को सूचित किया “उसे कल उषाकाल में फाँसी पर लटकाया जाएगा अतः निवेदन है आप इस कार्यवाही को देखने और जरूरत पड़ी तो व्यवस्था बनाए रखने के लिए आपकी कमान में जो रेजीमेंट है उसकी जेल के निकट परेड कराएँ।” (अनु. शम्भू दयाल गुरू) 10 दिसम्बर 1857 की सुबह सजा तामील कर दी गई। छत्तीसगढ़ के प्रेरणा प्रतीक शहीदवीर नारायण सिंह अमर हो गए।
वीर नारायण सिंह को फाँसी देने के कुकृत्य से जनता में आतंक के स्थान पर आक्रोश व्याप्त हुआ। रायपुर की जनता एवं सैनिकों के समक्ष दी गई फाँसी की घटना ने अल्पकाल हेतु ब्रिटिश आतंक का भय प्रदर्शित किया किंतु कालांतर में यह प्रेरणा के रूप में 18 जनवरी 1858 के विद्रोह के अवसर पर दृष्टिगत हुई जिसका नेतृत्व वीर हनुमान सिंह राजपूत ने किया था। विद्रोह के बाद 17 लोगों को गिरफ्तार कर अँग्रेजों ने 22 जनवरी 1858 को सार्वजनिक फाँसी दी जिसमें सभी जाति एवं धर्म के लोग थे। शहीद नारायण सिंह का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। आजादी की लड़ाई में वे छत्तीसगढ़ के प्रेरणास्त्रोत रहे। वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ में 19वीं शताब्दी के पुनर्जागरण काल में राजनीतिक सामाजिक संचेतना के संवाहक थे।
इस प्रकार देश की स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेते हुए छत्तीसगढ़ के वीर सेनानी शहीद हो गए। हमारे लिए गौरव की बात है कि छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता के लिए पहला बलिदान देने वाला एक आदिवासी वीर था जिसने यह सिद्ध कर दिया कि स्वाधीनता की अग्नि इस क्षेत्र के आदिवासियों के हृदय में भी बराबर धधक रही थी। जेल के कैदियों एवं जनता ने भी 10 दिसम्बर 1857 को मातम मनाया तथा वीर साथी को श्रद्धांजलि अर्पित की। छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम की यह चिरस्मरणीय घटना है। वीर नारायण सिंह के वंशज व क्षेत्र की जनता आज भी सोनाखान जाकर श्रद्धासुमन अर्पित करती है। नारायण सिंह की वीरगाथा घर-घर में व्याप्त है। गर्व के साथ जनता वीर नारायण सिहं को यह कहकर याद करती है
वीर नारायण तुम्हारी वीरता बलिदान से।
आग के शोले निकलते अब भी सोनाखान से॥
शहीदों व सेनानियों के बलिदानी गौरव का प्रतीक।
देश में तिरंगा ध्वज फहर रहा है, बड़ी शान से॥
सारांश
“अमर शहीद वीर नारायण सिंह” पाठ छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह की वीरगाथा है। 1795 में जन्मे, सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह ने 1856 में सूखे के दौरान भूखे किसानों के लिए व्यापारी के गोदाम से अनाज वितरित किया। अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति का नेतृत्व किया, जेल से भागे, और सोनाखान में विद्रोह संगठित किया। 10 दिसंबर 1857 को उन्हें फाँसी दी गई। उनका बलिदान छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता की प्रेरणा बना।
शब्दार्थ
साक्षी – गवाह
विप्लव – क्रांति, विद्रोह
परवाह – चिंता
रसद – सैनिकों की खाद्य सामग्री
किला – दुर्ग
कालांतर – समय पश्चात्
क्षोभ – क्रोध जनित दुःख
रणक्षेत्र – युद्धभूमि
फौज – सेना
कुकृत्य – बुरा कार्य
रणक्षेत्र – युद्ध क्षेत्र
अकस्मात् – अचानक
नाकेबंदी – घेराबंदी।
शब्द (Word) | हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) | अंग्रेजी अर्थ (English Meaning) |
सर्वधर्म समभाव | सभी धर्मों के प्रति समान भाव | Religious harmony |
गौरवान्वित | सम्मानित, गर्व से युक्त | Honored, glorified |
जमींदारी | जमींदार का क्षेत्र | Landlordship, estate |
दबदबा | प्रभाव, प्रभुत्व | Dominance, influence |
परायण | समर्पित, रत | Devoted, engrossed |
मृदुभाषी | मधुर बोलने वाला | Soft-spoken |
परोपकारी | दूसरों की भलाई करने वाला | Philanthropic, benevolent |
लोकोत्सव | जनता का उत्सव | Folk festival |
कबरे | तेज, फुर्तीला | Swift, spirited |
टकोली | लगान, कर | Land revenue, tax |
पूर्वाग्रह | पक्षपात, दुराग्रह | Prejudice, bias |
षडयंत्र | साजिश, कुटिल योजना | Conspiracy |
विप्लव | क्रांति, विद्रोह | Revolution, rebellion |
शंखनाद | युद्ध या क्रांति का उद्घोष | Clarion call |
मोर्चाबंदी | रक्षा हेतु अवरोध बनाना | Fortification, barricading |
अव्यवस्थित | अस्त-व्यस्त, अराजक | Disorganized, chaotic |
नाकेबंदी | रास्तों का अवरोध | Blockade |
अटूट | अखंड, मजबूत | Unbreakable, resolute |
झनकार | हथियारों की आवाज | Clang, sound of weapons |
कुकृत्य | दुष्कर्म, अनुचित कार्य | Misdeed, heinous act |
पाठ से
- वीर नारायण सिंह में कौन से मानवीय मूल्य दिखते हैं, जो उन्हें अद्वितीय सिद्ध करते हैं।
उत्तर – वीर नारायण सिंह में परोपकार, देशभक्ति, न्यायप्रियता, और दृढ़ता जैसे मानवीय मूल्य थे। वे जनता की भूख मिटाने के लिए व्यापारी के गोदाम से अनाज निकालकर वितरित करते थे। अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह और स्वाधीनता के लिए बलिदान ने उनकी निस्वार्थता और साहस को दर्शाया, जो उन्हें अद्वितीय बनाता है।
- वीर नारायण सिंह को अपने पूर्वजों से कौन से गुण प्राप्त हुए थे?
उत्तर – वीर नारायण सिंह को अपने पूर्वज बिसई ठाकुर से दृढ़ता, फत्ते नारायण सिंह से धैर्य और साहस, तथा पिता रामराय से जन-नेतृत्व की क्षमता प्राप्त हुई। ये गुण उनके अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष, जनता की समस्याओं के समाधान और स्वाधीनता के लिए बलिदान में स्पष्ट दिखाई देते हैं।
- जमींदार होने के बाद भी शहीद वीर नारायण सिंह की लोकप्रियता के क्या कारण थे?
उत्तर – वीर नारायण सिंह की लोकप्रियता का कारण उनकी सादगी, परोपकारी प्रवृत्ति, और जनसंपर्क था। वे साधारण मकान में रहते, गाँव-गाँव घूमकर जन समस्याएँ सुनते, तालाब खुदवाते और वृक्षारोपण करते थे। उनकी मृदुभाषिता और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष ने उन्हें जनता का प्रिय नेता बनाया।
- माखन व्यापारी के गोदाम से अनाज निकालने के पीछे जमींदार का क्या उद्देश्य था?
उत्तर – 1856 के सूखे में माखन व्यापारी के गोदाम में अनाज जमा था, जबकि जनता भूखी थी। वीर नारायण सिंह ने गोदाम से अनाज निकालकर भूखे किसानों को वितरित किया, ताकि उनकी भूख मिटाई जा सके। उनका उद्देश्य जनकल्याण और शोषण के खिलाफ न्याय स्थापित करना था।
- शहीद वीर नारायण सिंह निर्भीक, दृढ चरित्र और ईमानदार थे। यह किस घटना से पता चलता है?
उत्तर – वीर नारायण सिंह की निर्भीकता और दृढ़ता तब दिखी जब उन्होंने 1856 में माखन के गोदाम से अनाज निकालकर भूखे किसानों को बाँटा और डिप्टी कमिश्नर को सूचित किया। जेल से भागकर सोनाखान में विद्रोह संगठित करना उनकी ईमानदारी और स्वाधीनता के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
- वीर नारायण सिंह की विद्रोह की रणनीति क्यों असफल हुई?
उत्तर – वीर नारायण सिंह की विद्रोह रणनीति समयाभाव के कारण नाकेबंदी पूरी न होने, देवरी जमींदार की शत्रुता, और स्मिथ की सैन्य सहायता से असफल हुई। स्मिथ ने गाँव में आग लगाई और नारायण सिंह की सेना के पास प्रशिक्षण व हथियारों की कमी थी, जिससे वे परास्त हुए।
- छत्तीसगढ़ की जनता के बीच वीर नारायण सिंह की लोकप्रियता के कारण क्या हैं?
उत्तर – वीर नारायण सिंह की लोकप्रियता उनकी सादगी, जनकल्याणकारी कार्यों, और अंग्रेजों के खिलाफ साहसिक विद्रोह के कारण थी। वे जन समस्याएँ सुनते, तालाब खुदवाते, और वृक्षारोपण करते थे। 1857 की क्रांति में नेतृत्व और बलिदान ने उन्हें छत्तीसगढ़ की जनता का प्रेरणास्रोत बनाया।
पाठ से आगे
- अपने आस-पास के ऐसे लोगों की जानकारी एकत्र करें जो जनसेवा के कार्य में निस्वार्थ भाव से लगे रहते हैं?
उत्तर – मेरे गाँव में रामलाल जी, एक सामाजिक कार्यकर्ता, निस्वार्थ जनसेवा करते हैं। वे गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देते, गाँव में स्वच्छता अभियान चलाते, और बाढ़ प्रभावितों को भोजन व कपड़े बाँटते हैं। उनकी प्रेरणा से गाँव में स्वास्थ्य शिविर और वृक्षारोपण जैसे कार्य हुए। उनकी निस्वार्थता सभी को प्रेरित करती है।
- 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में वीर नारायण सिंह के अलावा छत्तीसगढ़ की माटी के और कौन-कौन से वीर सपूत शामिल थे जिन्होंने अपने प्राण न्योछावर किए? उनके बारे में जानकारी एकत्र कर उनकी जीवन-यात्रा पर साथियों के साथ समूह चर्चा करें?
उत्तर – 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ से हनुमान सिंह राजपूत और सुरेंद्र साय प्रमुख थे। हनुमान सिंह ने 1858 में रायपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया, फाँसी पाई। सुरेंद्र साय ने संबलपुर में अंग्रेजों के खिलाफ लंबा संघर्ष किया। समूह चर्चा में उनके बलिदान, नेतृत्व, और आदिवासी संगठन पर जोर दिया गया।
- आदिवासी जीवन सरल, निर्भीक और प्रकृति के सबसे करीब है? इस संदर्भ में उनके गुणों के पाँच उदाहरण ढूँढ़कर लिखिए?
उत्तर – आदिवासी जीवन के गुण –
सादगी – साधारण घरों में रहते, प्रकृति से जुड़े।
निर्भीकता – वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया।
प्रकृति प्रेम – वृक्षारोपण और तालाब निर्माण में योगदान।
सामुदायिकता – गाँव-गाँव संगठित होकर विद्रोह में शामिल हुए।
ईमानदारी – नारायण सिंह ने अनाज वितरण की सूचना ईमानदारी से दी।
- “अटूट मनोबल से बड़ा कोई हथियार नहीं होता” इसे आपने अपने जीवन में कई बार महसूस किया होगा। अपने जीवन के उन प्रसंगों को लिखकर कक्षा में सुनाइए?
उत्तर – मैंने दसवीं कक्षा में गणित में कम अंक लाने पर निराशा झेली। पर मैंने अटूट मनोबल से मेहनत की और अगले वर्ष 90% अंक प्राप्त किए। एक बार गाँव में बाढ़ के दौरान मैंने राहत सामग्री बाँटने में मदद की, जहाँ मनोबल ने डर को हराया। यह अनुभव कक्षा में प्रेरणादायक रहा।
भाषा के बारे में
- (क) उन पर मुकदमा चलाया गया।
उत्तर – यह सकर्मक वाक्य है। क्रिया “चलाया गया” पर “क्या” प्रश्न का उत्तर “मुकदमा” (निर्जीव संज्ञा) है। अर्थ: वीर नारायण सिंह पर अंग्रेजों ने कानूनी कार्रवाई शुरू की।
(ख) स्मिथ ने देवरी के जमींदार को हथियार की तरह उपयोग किया।
उत्तर – यह द्विकर्मक वाक्य है। क्रिया “उपयोग किया” के दो कर्म हैं: “जमींदार” (सजीव संज्ञा, किसे) और “हथियार” (निर्जीव संज्ञा, क्या)। अर्थ: स्मिथ ने देवरी जमींदार को अपनी रणनीति के लिए उपकरण की तरह इस्तेमाल किया।
- पाठ से लिए गए इन दोनों वाक्यों में फर्क यह है कि ‘क‘ एक कर्मक वाक्य है अर्थात् इस प्रकार के वाक्य में क्रिया पर ‘क्या‘ प्रश्न का जवाब ‘निर्जीव संज्ञा‘ (मुकदमा) के रूप में प्राप्त होता है। जैसे- क्या चलाया गया? उत्तर- मुकदमा चलाया गया।
जबकि ‘ख‘ वाक्य द्विकर्मक वाक्य है। देवरी के ‘जमींदार‘ और ‘हथियार‘ इस वाक्य में दो कर्मों का प्रयोग हुआ है। एक कर्म अर्थात् निर्जीव संज्ञा (हथियार) और दूसरा कर्म अर्थात किसको / किसे के उत्तर में सजीव संज्ञा (जमींदार) का प्रयोग हुआ है।
आप इसी प्रकार के पाँच-पाँच वाक्यों की रचना कीजिए।
उत्तर – मैंने किताब पढ़ी। (क्या पढ़ा? किताब)
उसने पत्र लिखा। (क्या लिखा? पत्र)
बच्चों ने खेल खेला। (क्या खेला? खेल)
शिक्षक ने पाठ पढ़ाया। (क्या पढ़ाया? पाठ)
उसने गाना गाया। (क्या गाया? गाना)
द्विकर्मक वाक्य
माँ ने मुझे कहानी सुनाई। (किसे सुनाई? मुझे; क्या सुनाई? कहानी)
उसने राम को पत्र दिया। (किसे दिया? राम; क्या दिया? पत्र)
शिक्षक ने छात्रों को ज्ञान प्रदान किया। (किसे प्रदान किया? छात्रों; क्या प्रदान किया? ज्ञान)
मैंने बहन को उपहार भेंट किया। (किसे भेंट किया? बहन; क्या भेंट किया? उपहार)
उसने गरीब को भोजन दिया। (किसे दिया? गरीब; क्या दिया? भोजन)
- मनः + बल = मनोबल
मनः + भाव मनोभाव
अधः + भाग = अधोभाग
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
तमः गुण = तमोगुण
तपः वन = तपोवन
रजः गुण = रजोगुण
मनः अनुकूल = मनोनुकूल
उदाहरण से स्पष्ट है कि विसर्ग (:) से पूर्व ‘अ‘ हो और विसर्ग (:) के पश्चात ‘अ‘, या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, या पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘ओ‘ हो जाता है। इसी प्रकार के अन्य उदाहरण खोजकर उनका संधि विच्छेद कीजिए।
उत्तर –
संधि शब्द | संधि विच्छेद | नियम |
तपोभूमि | तपः + भूमि | विसर्ग + भ = ओ |
नमोस्तु | नमः + अस्तु | विसर्ग + अ = ओ |
सरोवर | सरः + वर | विसर्ग + व = ओ |
तपोरति | तपः + रति | विसर्ग + र = ओ |
मनोहर | मनः + हर | विसर्ग + ह = ओ |
प्रणोद | प्रणः + उद | विसर्ग + उ = ओ |
तमोलोक | तमः + लोक | विसर्ग + ल = ओ |
चरोदर | चरः + उदर | विसर्ग + उ = ओ |
योग्यता विस्तार
- छतीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम के कौन-कौन से स्थान विद्रोह के मुख्य केंद्र थे? उन स्थानों का नाम लिखकर नेतृत्वकर्ता का नाम लिखिए।
उत्तर – छत्तीसगढ़ में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य केंद्र और नेतृत्वकर्ता:
सोनाखान – वीर नारायण सिंह (जमींदार, किसानों को संगठित किया, अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह)।
संबलपुर – सुरेंद्र साय (आदिवासी नेता, लंबे समय तक विद्रोह का नेतृत्व)।
रायपुर – हनुमान सिंह राजपूत (1858 में विद्रोह, फाँसी)।
इन स्थानों पर अंग्रेजों के खिलाफ संगठित विद्रोह हुआ, जो स्वाधीनता की प्रेरणा बना।
- छत्तीसगढ़ के नक्शे में उन स्थानों को चिन्हित करें जो 1857 में आन्दोलन के केंद्र रहे। इस दौरान उन स्थानों पर हुई गतिविधिओं की संक्षिप्त जानकारी भी दीजिए।
उत्तर – स्थान और गतिविधियाँ –
सोनाखान: वीर नारायण सिंह ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, 500 बंदूकधारियों की सेना बनाई, नाकेबंदी की। स्मिथ ने गाँव जला दिया, नारायण सिंह को गिरफ्तार कर फाँसी दी।
संबलपुर – सुरेंद्र साय ने आदिवासियों को संगठित कर विद्रोह किया।
रायपुर – हनुमान सिंह ने 1858 में विद्रोह का नेतृत्व किया, 17 लोगों को फाँसी।
नक्शे में चिन्हित – सोनाखान (रायपुर के पास), संबलपुर (पश्चिमी छत्तीसगढ़), रायपुर (केंद्र)।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
वीर नारायण सिंह का जन्म कब हुआ था?
a) 1785
b) 1795
c) 1800
d) 1810
उत्तर: b) 1795
वीर नारायण सिंह के पिता का नाम क्या था?
a) गोविंद सिंह
b) रामराय
c) फत्ते नारायण
d) बिसई ठाकुर
उत्तर: b) रामराय
रामराय ने कब अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया?
a) 1815-16
b) 1818-19
c) 1820-21
d) 1825-26
उत्तर: b) 1818-19
नारायण सिंह कितनी आयु में जमींदार बने?
a) 25 वर्ष
b) 30 वर्ष
c) 35 वर्ष
d) 40 वर्ष
उत्तर: c) 35 वर्ष
नारायण सिंह ने कौन-सा तालाब बनवाया?
a) राजा सागर
b) रानी सागर
c) नंद सागर
d) सभी
उत्तर: c) नंद सागर
नारायण सिंह को किससे धैर्य और साहस प्राप्त हुआ?
a) बिसई ठाकुर
b) फत्ते नारायण
c) रामराय
d) गोविंद सिंह
उत्तर: b) फत्ते नारायण
1856 में छत्तीसगढ़ में क्या हुआ?
a) बाढ़
b) सूखा
c) महामारी
d) युद्ध
उत्तर: b) सूखा
नारायण सिंह ने किस व्यापारी के गोदाम से अनाज निकाला?
a) मंगल
b) माखन
c) स्मिथ
d) इलियट
उत्तर: b) माखन
नारायण सिंह को पहली बार कब गिरफ्तार किया गया?
a) 24 अक्टूबर 1856
b) 10 दिसंबर 1857
c) 30 नवंबर 1857
d) 18 जनवरी 1858
उत्तर: a) 24 अक्टूबर 1856
नारायण सिंह ने जेल से भागने में किसकी मदद ली?
a) हनुमान सिंह
b) सुरेंद्र साय
c) मंगल
d) स्मिथ
उत्तर: b) सुरेंद्र साय
नारायण सिंह ने कितने बंदूकधारियों की सेना बनाई?
a) 200
b) 300
c) 400
d) 500
उत्तर: d) 500
सोनाखान पर स्मिथ का आक्रमण कब हुआ?
a) 1 दिसंबर 1857
b) 30 नवंबर 1857
c) 3 दिसंबर 1857
d) 5 दिसंबर 1857
उत्तर: a) 1 दिसंबर 1857
स्मिथ को किसने नारायण सिंह की नाकेबंदी की जानकारी दी?
a) मंगल
b) माखन
c) देवरी जमींदार
d) सुरेंद्र साय
उत्तर: a) मंगल
नारायण सिंह को फाँसी कब दी गई?
a) 1 दिसंबर 1857
b) 5 दिसंबर 1857
c) 10 दिसंबर 1857
d) 18 जनवरी 1858
उत्तर: c) 10 दिसंबर 1857
नारायण सिंह की फाँसी के बाद किसने विद्रोह किया?
a) गोविंद सिंह
b) हनुमान सिंह
c) सुरेंद्र साय
d) मंगल
उत्तर: b) हनुमान सिंह
नारायण सिंह का मकान कैसा था?
a) बड़ी हवेली
b) किला
c) बाँस और मिट्टी का
d) पत्थर का
उत्तर: c) बाँस और मिट्टी का
नारायण सिंह ने टकोली का विरोध कब किया?
a) 1835
b) 1845
c) 1854
d) 1856
उत्तर: c) 1854
सोनाखान की नाकेबंदी क्यों असफल हुई?
a) हथियारों की कमी
b) समयाभाव
c) सैनिक प्रशिक्षण
d) जनता का समर्थन
उत्तर: b) समयाभाव
नारायण सिंह ने किसके साथ मिलकर जेल से भागने की योजना बनाई?
a) तीन साथी
b) गोविंद सिंह
c) माखन
d) इलियट
उत्तर: a) तीन साथी
नारायण सिंह को किस अधिनियम के तहत फाँसी दी गई?
a) 1857 का अधिनियम 6, एक्ट 14
b) 1857 का अधिनियम 10
c) 1857 का अधिनियम 12
d) 1857 का अधिनियम 15
उत्तर: a) 1857 का अधिनियम 6, एक्ट 14
एक वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर
- शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर – शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म 1795 में सोनाखान के जमींदार परिवार में हुआ था।
- वीर नारायण सिंह के पिता का क्या नाम था और उन्होंने किसके विरुद्ध विद्रोह किया था?
उत्तर – वीर नारायण सिंह के पिता का नाम रामराय था और उन्होंने 1818-19 में अंग्रेजों एवं भोंसला राजा के विरुद्ध विद्रोह किया था।
- पिता की मृत्यु के बाद नारायण सिंह किस उम्र में सोनाखान के जमींदार बने?
उत्तर – पिता रामराय की मृत्यु के पश्चात् नारायण सिंह 35 वर्ष की अवस्था में सोनाखान के जमींदार बने।
- वीर नारायण सिंह ने लोक कल्याण के लिए कौन-कौन से प्रमुख कार्य किए?
उत्तर – वीर नारायण सिंह ने तालाब खुदवाना, वृक्षारोपण करना और पंचायतों के माध्यम से जन समस्याओं का समाधान करने जैसे महत्त्वपूर्ण लोक कल्याणकारी कार्य किए।
- सन् 1856 में छत्तीसगढ़ में सूखा पड़ने पर वीर नारायण सिंह ने क्या कदम उठाया?
उत्तर – सन् 1856 में सूखा पड़ने पर वीर नारायण सिंह ने व्यापारी माखन के अनाज भंडारों के ताले तोड़कर भूखे किसानों के लिए अनाज निकाल लिया था।
- अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह को पहली बार कब और कहाँ गिरफ्तार किया था?
उत्तर – अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह को पहली बार 24 अक्टूबर, 1856 को संबलपुर में गिरफ्तार किया था।
- वीर नारायण सिंह रायपुर जेल से किसकी मदद से और कैसे बाहर निकले?
उत्तर – वीर नारायण सिंह क्रांतिकारी सुरेन्द्र साय की मदद से एक योजना बनाकर तीन अन्य साथियों के साथ रायपुर जेल से बाहर निकले।
- जेल से भागने के बाद नारायण सिंह ने अंग्रेजों का सामना करने के लिए क्या तैयारी की?
उत्तर – जेल से भागने के बाद नारायण सिंह ने 500 बंदूकधारियों की सेना एकत्र की और सोनाखान पहुँचने वाले सभी रास्तों पर मोर्चाबंदी कर दी।
- छत्तीसगढ़ में 1857 की क्रांति का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर – छत्तीसगढ़ में 1857 की क्रांति का नेतृत्व वीर नारायण सिंह ने किया था।
- सोनाखान के युद्ध में किस देशद्रोही जमींदार ने अंग्रेजों का साथ दिया था?
उत्तर – सोनाखान के युद्ध में देवरी के जमींदार ने, जो रिश्ते में नारायण सिंह का काका लगता था, अपनी खानदानी शत्रुता के कारण अंग्रेजों का साथ दिया था।
- वीर नारायण सिंह को किस अंग्रेज अधिकारी ने अपनी सेना के साथ सोनाखान में घेरा था?
उत्तर – अंग्रेज अधिकारी स्मिथ ने अपनी सेना के साथ सोनाखान में वीर नारायण सिंह को घेरा था।
- स्मिथ ने नारायण सिंह को कमजोर करने के लिए क्या क्रूर कदम उठाया?
उत्तर – स्मिथ ने नारायण सिंह को कमजोर करने के लिए पूरे सोनाखान गाँव में आग लगा दी थी, जिसे देखकर नारायण सिंह को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
- अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह पर क्या आरोप लगाकर मुकदमा चलाया?
उत्तर – अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह पर 1857 के अधिनियम के तहत विद्रोह और बगावत करने का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया।
- डिप्टी कमिश्नर इलियट ने वीर नारायण सिंह को क्या सजा सुनाई?
उत्तर – डिप्टी कमिश्नर इलियट ने वीर नारायण सिंह को फाँसी की सजा सुनाई थी।
- शहीद वीर नारायण सिंह को फाँसी कब दी गई?
उत्तर – शहीद वीर नारायण सिंह को 10 दिसम्बर 1857 की सुबह फाँसी दी गई।
- वीर नारायण सिंह की शहादत का रायपुर के सैनिकों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – वीर नारायण सिंह की शहादत से प्रेरित होकर रायपुर के सैनिकों ने 18 जनवरी 1858 को वीर हनुमान सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।
- छत्तीसगढ़ का पहला किसान नेता किसे माना जाता है और क्यों?
उत्तर – वीर नारायण सिंह को छत्तीसगढ़ का पहला किसान नेता माना जाता है क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले किसानों में चेतना फैलाकर उन्हें अत्याचारी शासन के विरुद्ध संगठित किया।
- वीर नारायण सिंह की सेना में मुख्य रूप से कौन लोग शामिल थे और उनकी सबसे बड़ी ताकत क्या थी?
उत्तर – वीर नारायण सिंह की सेना में मुख्य रूप से किसान और आदिवासी शामिल थे और उनकी सबसे बड़ी ताकत उनका अटूट मनोबल और स्वाधीनता के लिए संघर्ष का संकल्प था।
- वीर नारायण सिंह किस घोड़े पर सवार होकर गाँव-गाँव भ्रमण करते थे?
उत्तर – वीर नारायण सिंह अपने कबरे घोड़े पर सवार होकर गाँव-गाँव भ्रमण कर जन समस्याएँ सुनते थे।
- नारायण सिंह के बलिदान को छत्तीसगढ़ की जनता आज किस रूप में याद करती है?
उत्तर – छत्तीसगढ़ की जनता आज भी वीर नारायण सिंह को आजादी की लड़ाई के प्रेरणास्रोत और एक महान वीर के रूप में गर्व के साथ याद करती है।
40-50 शब्दों वाले प्रश्नोत्तर
- वीर नारायण सिंह का जन्म और उनकी प्रारंभिक शिक्षा कैसी थी?
उत्तर – वीर नारायण सिंह का जन्म 1795 में सोनाखान में हुआ। वे धर्मपरायण थे, रामायण और महाभारत में रुचि रखते थे। गुरुओं से धर्म और नीति की शिक्षा ली। बाल्यकाल से तीर-धनुष और बंदूक चलाने में निपुण थे।
- रामराय के विद्रोह का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर – रामराय ने 1818-19 में अंग्रेजों और भोंसला राजा के खिलाफ विद्रोह किया। कैप्टन मैक्सन ने इसे दबा दिया, जिससे सोनाखान जमींदारी के गाँव 300 से घटकर 50 रह गए। फिर भी रामराय का प्रभाव और बिंझवारों की तलवार का दबदबा कायम रहा।
- नारायण सिंह की जनकल्याणकारी नीतियाँ क्या थीं?
उत्तर – नारायण सिंह ने तालाब खुदवाए, जैसे नंद सागर, और वृक्षारोपण कर नंदनवन बनाया। वे गाँव-गाँव घूमकर जन समस्याएँ सुनते और पंचायतों के माध्यम से समाधान करते थे। उनकी परोपकारी और मिलनसार प्रकृति ने जनता का दिल जीता।
- नारायण सिंह ने माखन के गोदाम से अनाज क्यों निकाला?
उत्तर – 1856 में सूखे के कारण जनता भूखी थी। माखन व्यापारी ने अनाज जमा किया था। नारायण सिंह ने भूखे किसानों की मदद के लिए गोदाम के ताले तोड़े और अनाज वितरित किया, जिससे उनकी जनकल्याण की भावना स्पष्ट होती है।
- नारायण सिंह की जेल से भागने की योजना क्या थी?
उत्तर – नारायण सिंह ने संबलपुर के क्रांतिकारी सुरेंद्र साय और तीन साथियों की मदद से रायपुर जेल से भागने की योजना बनाई। दस माह चार दिन बंदी रहने के बाद वे जेल से निकले और सोनाखान पहुँचकर विद्रोह संगठित किया।
- नारायण सिंह की विद्रोह रणनीति का वर्णन करें।
उत्तर – नारायण सिंह ने सोनाखान में 500 बंदूकधारियों की सेना बनाई, हथियार और गोला-बारूद एकत्र किए, और सभी रास्तों पर नाकेबंदी की। गाँव को खाली कर पहाड़ी पर मोर्चा बनाया, लेकिन समयाभाव और विश्वासघात के कारण यह रणनीति असफल रही।
- स्मिथ ने सोनाखान पर आक्रमण कैसे किया?
उत्तर – स्मिथ ने 1 दिसंबर 1857 को देवरी से सोनाखान पर आक्रमण किया। देवरी जमींदार ने रास्ता दिखाया। नारायण सिंह के सिपाहियों ने हमला किया, पर स्मिथ ने गाँव में आग लगाई और नाकेबंदी तोड़कर नारायण सिंह को पकड़ा।
- नारायण सिंह की फाँसी का जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – नारायण सिंह की 10 दिसंबर 1857 को फाँसी से जनता में आक्रोश फैला। यह अल्पकाल के लिए अंग्रेजों का भय दिखा, पर बाद में 18 जनवरी 1858 के विद्रोह में प्रेरणा बनी, जिसका नेतृत्व हनुमान सिंह ने किया।
- नारायण सिंह के नेतृत्व में किसानों की भूमिका क्या थी?
उत्तर – नारायण सिंह ने छत्तीसगढ़ का पहला किसान संगठन बनाया। किसानों ने उनके नेतृत्व में शपथ ली और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में भाग लिया। हथियारों और प्रशिक्षण की कमी के बावजूद, उनके अटूट मनोबल ने संघर्ष को मजबूत किया।
- नारायण सिंह का बलिदान छत्तीसगढ़ के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर – नारायण सिंह का 1857 में बलिदान छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता की प्रेरणा बना। आदिवासी नेता के रूप में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ पहला किसान विद्रोह संगठित किया। उनकी वीरगाथा आज भी जनता को प्रेरित करती है और स्वतंत्रता संग्राम में गौरव का प्रतीक है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- वीर नारायण सिंह में कौन से मानवीय मूल्य थे जो उन्हें अद्वितीय बनाते हैं?
उत्तर – वीर नारायण सिंह में परोपकार, देशभक्ति, और न्यायप्रियता जैसे मूल्य थे। उन्होंने 1856 के सूखे में भूखे किसानों के लिए माखन के गोदाम से अनाज वितरित किया। अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह और फाँसी का सामना कर उन्होंने स्वाधीनता के लिए बलिदान दिया। उनकी सादगी, मृदुभाषिता, और जनकल्याणकारी कार्यों ने उन्हें जनता का प्रिय और अद्वितीय नेता बनाया।
- नारायण सिंह को अपने पूर्वजों से कौन-से गुण प्राप्त हुए और वे कैसे प्रकट हुए?
उत्तर – नारायण सिंह को बिसई ठाकुर से दृढ़ता, फत्ते नारायण से धैर्य और साहस, और रामराय से जन-नेतृत्व की क्षमता मिली। ये गुण उनके अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह, जेल से भागने, और 500 सैनिकों की सेना संगठित करने में दिखे। उनकी नाकेबंदी और जनकल्याणकारी कार्य, जैसे तालाब निर्माण, इन गुणों का प्रमाण हैं।
- जमींदार होने के बाद भी नारायण सिंह की लोकप्रियता के कारण क्या थे?
उत्तर – नारायण सिंह की लोकप्रियता उनकी सादगी, परोपकारी प्रवृत्ति, और जनसंपर्क से थी। वे बाँस-मिट्टी के मकान में रहते, गाँव-गाँव घूमकर समस्याएँ सुनते, तालाब खुदवाते, और वृक्षारोपण करते थे। 1857 की क्रांति में नेतृत्व और बलिदान ने उन्हें जनता का प्रेरणास्रोत बनाया। उनकी मृदुभाषिता और अंग्रेजों के खिलाफ साहस ने लोकप्रियता बढ़ाई।
- नारायण सिंह की विद्रोह रणनीति क्यों असफल हुई और इसके परिणाम क्या थे?
उत्तर – नारायण सिंह की रणनीति समयाभाव, अपूर्ण नाकेबंदी, और देवरी जमींदार के विश्वासघात से असफल हुई। स्मिथ ने गाँव में आग लगाई और सैन्य सहायता से उन्हें पकड़ा। परिणामस्वरूप, 10 दिसंबर 1857 को उन्हें फाँसी दी गई। उनका बलिदान 1858 के विद्रोह की प्रेरणा बना, जिसने छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता की भावना को मजबूत किया।
- नारायण सिंह की फाँसी का छत्तीसगढ़ की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – 10 दिसंबर 1857 को नारायण सिंह की फाँसी से जनता में आक्रोश फैला। अल्पकाल के लिए अंग्रेजों का भय दिखा, पर यह 18 जनवरी 1858 के विद्रोह की प्रेरणा बना, जिसका नेतृत्व हनुमान सिंह ने किया। उनका बलिदान छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता संग्राम का प्रतीक बन गया, जो आज भी प्रेरित करता है।

