दानेश्वर शर्मा – जीवन परिचय
भिलाई इस्पात संयंत्र के पूर्व प्रबंधक, अखिल भारतीय स्तर के साहित्यकार, लोक साहित्य के अधिकारी विद्वान, हिंदी एवं छत्तीसगढ़ी के यशस्वी कवि, ललित निबंध एवं स्तंभ लेखक, फिल्मी गीतकार, कवि सम्मेलनों के कुशल संचालक तथा श्रीमद् भागवत पुराण के प्रवचनकार श्री दानेश्वर शर्मा जी का जन्म ग्राम मेडेसरा, जिला दुर्ग (छ.ग.) में 10 मई, 1931 में हुआ। आपकी प्रकाशित पुस्तकें- छत्तीसगढ़ के लोक गीत (विवेचनात्मक), हर मौसम में छन्द लिखूंगा (गीत संग्रह), लव-कुश (खंडकाव्य), लोक दर्शन (धार्मिक-आध्यात्मिक ललित निबंध संग्रह), तपत कुरू भई तपत कुरू (छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह) तथा गीत-अगीत (हिंदी काव्य संग्रह) हैं।
छत्तीसगढ़ की लोककलाएँ
‘शब्दानुशासनम्’ में कहा गया है-“लोके वेदे च’ अर्थात् लोक में और वेद में भी ‘लोक’ की यह प्रथम प्रतिष्ठा अकारण नहीं है। वह वेद से भी अधिक प्राचीन है। लोक-मानस ने धरती को माता और अपने को उसका बेटा माना है। माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथ्वीव्याः। नाते रिश्तों के इस प्रेम ने उसे प्रकृति और उसकी संतान के साथ जोड दिया और यहीं से फूटी लोक – रचना की अजस्र धारा लोक गीत, लोक गाथा, लोक नाट्य और लोक नृत्य के रूप में आज तक प्रवाहित होती चली आ रही है। मनुष्य का सम्पूर्ण चिंतन, दर्शन और राग-विराग लोक कला में इसी कारण सन्निहित है।
1 नवंबर 2000 से छत्तीसगढ़ स्वतंत्र राज्य है। गढ़ अर्थात किला। यहाँ कभी छत्तीस किले थे। रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, बिलासपुर, रायगढ़, सुकुमा, दंतेवाड़ा, सूरजपुर, बीजापुर आदि 27 जिलों में यह भू-भाग साहित्य, संगीत और कला के क्षेत्र में अपनी अनेक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। रायपुर (वर्तमान बलौदाबाजार) जिले के तुरतुरिया नामक स्थान में वाल्मीकि का आश्रम माना गया है। इस नाते, कविता की पहली ऋचा यहाँ फूटी आदि शंकराचार्य के भी गुरु श्री गोविंद पाद स्वामी इसी धरती के संत थे। संगीत और कला के क्षेत्र में भी इसी प्रकार की अनेक बातें कही जाती हैं।
छत्तीसगढ़ लोक-कला का भी गढ़ है। यहाँ खेत-खार, पर्वत नदियाँ, वन-उपवन सब गाते हैं-
गेहूँ गाए गीत खेत में
और बाजरा झूमे नाचे
चना बजाता घुँघरू छन-छन
और मूँग ज्यों कविता बाँचे,
लोक गीत की कड़ी कड़ी में
जीवन का सरगम सजता है
लोक कला का जादू ऐसा
कदम-कदम बंधन लगता है
लोक कला के इन जादूगरों का लंबा इतिहास है किन्तु आज भी छत्तीसगढ़ में ऐसे सैकड़ों कलाकार हैं जिन्होंने देश के कोने-कोने में ओर विदेशों में भी अपनी छाप रख छोड़ी है। लोक कला के अंतर्गत कुछ प्रतिनिधि लोक गीतों, लोक कथाओं, लोक नाट्यों एवं लोक नृत्यों की चर्चा संभव है।
झूमते-झुमाते लोक गीत गाए जाते हैं। किसी भी अंचल के लोक गीतों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आधिपत्य रहता है। छत्तीसगढ़ में भी यही स्थिति है किन्तु जो बात छत्तीसगढ़ी लोक गीतों को अन्य भारतीय लोक गीतों से अधिक विशिष्ट बनाती है, वह है ‘धुनों की विविधता’। ददरिया, सुवा गौरा, भोजली, जँवारा, बिहाव, और भजन प्रमुख लोक गीत हैं।
‘ददरिया शृंगार गीत है।
संझा के बेरा तरोई फूले रे
तोर चिमटी भर कनिहा तोहीं ल खुले रे
अर्थात् शाम के समय तरोई का फूल खिलता है। एक चिमटी में समा जाने वाली तुम्हारी पतली कमर तुम्हारे व्यक्तिव को ओर अधिक निखार देती है।
इस गीत में सवाल-जवाब भी चलता है खेत में या तालाब नदी के पास में बैठे हुए किसी नायक ने ददरिया का एक पद गा दिया और दूसरी और से भी किसी ने उसका जवाब दे दिया तो स्पर्धा शुरू हो गई। यह सिलसिला काफी लंबा चलता है और आसपास छिटके हुए श्रोता इस प्रतिस्पर्धा का आनंद लेते हैं। लोक कला में आशु – कवित्व भी है और ददरिया उसका उदाहरण है।
‘सुआ गीत’ में महिलाएँ बाँस की टोकनी में भरे धान के ऊपर ‘सुआ’ अर्थात तोते की प्रतिमा रख देती हैं और उसके चारों ओर वृत्ताकार स्थिति में नाचती गाती हैं। ‘सुवा’ को छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में कबीर के ‘हंसा’ की तरह आत्मा का प्रतीक माना गया है।
सेमी के मड़ पर कुंदरवा के झूल वो
जेही तरी गोरी कूटे धान ए
एदे धान एसिया रे मोर
जेही तरी गोरी कूटे धान ए
कहाँ रहिथस तुलसी अउ
कहाँ रहिथस राम वो
जेही तरी गोरी कूटे धान ए
चँवरा रहिथस तुलसी
मंदिर रहिथस राम वो
जेही तरी गोरी कूटे धान ए
श्रीमती अमृता और श्रीमती कुलवंतिन का नाम सुवा गीत की अच्छी गायिकाओं में आता है।
दीपावली के समय कार्तिक अमावस्या की रात को गौरी (पार्वती) की पूजा होती है। गोंड़ जाति की महिलाएँ इस अवसर पर जो गीत गाती हैं, वे ‘गौरा गीत’ कहलाते हैं। छोटे पदों में किन्तु बड़ी ऊर्जा से भरे इन गीतों में श्रोताओं को भी झुमा देने की ताकत है। रात भर की पूजा अर्चना के बाद प्रातः विसर्जन के समय इन गीतों के भाव में करुणा आ जाती है और देवी को अगले वर्ष फिर आने का निमंत्रण देती हुई महिलाओं की आँखें आँसू से नम हो जाती हैं। ममता चंद्राकर, साधना यादव, अनुराग ठाकुर, कविता वासनिक आदि के स्वर में गौरा गीत बहुत अच्छे लगते हैं।
‘जँवारा’ भी शक्ति की आराधना हैं। नवरात्रि के पर्व में गेहूँ के उगे हुए अंकुर के माध्यम से शक्ति स्वरूपा प्रकृति पूरे गाँव को बल देती है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गीत गायक लाला फूलचन्द श्रीवास्तव, भैयालाल हैड़ाउ, बैतल राम साहू, पंचराम मिरझा, केदार यादव, नर्मदा प्रसाद वैष्णव, कोदूराम वर्मा, शिव कुमार तिवारी, शेख हुसैन और प्रकाश देवांगन हैं।
सुग्घर – सुग्घर कथा सुग्घर सुग्घर कहिनी
सुन लेहू भइया, सुन लेहू बहिनी
‘लोक-गाथा’ बड़ी कहानियाँ हैं। छत्तीसगढ़ में प्रचलित लोक-कथाओं में ढोला-मारू, सोन सागर, दसमत कइना, भरथरी, आल्हा, पंडवानी, देवारगीत, बाँसगीत, चँदैनी, लोरिक चंदा आदि प्रमुख है।
लोक गाथा गायिकाओं में इस समय श्रीमती तीजन बाई और श्रीमती सुरूज बाई खांडे के नाम उभर कर आए हैं। सुरूज बाई बिलासपुर की रहने वाली है और ढोला भरथरी तथा चंदैनी गाती हैं। एकल स्वर में भी समाँ बाँध देने वाली यह गायिका अपनी विधा के लिए अगल से पहचानी जाती है। रूस में हुए भारत महोत्सव में भी उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया था।
लोक – गाथा का विशाल भंडार ‘देवार गीत’ में मिलता है। देवार एक घुमन्तू जाति है। इसका पूरा परिवार कलाकार होता है। केवल ‘रूजू’ (एकतारा) बजाकर ही सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने वाला देवार अपनी शैली और धुन के कारण पहचाना जाता है।
मार दिस पानी, बिछलगे बाट
ठमकत केंवटिन चलिस बाजार
केंवटिन गिरगे माड़ी के भार
केंवट उठाए नगडेना के भार
देवार जाति की महिलाएँ प्रायः गाती और नाचती हैं। नाचने की कला में वे इतनी प्रवीण होती है कि लोक नृत्य में ‘देवरनिन नाच’ एक विधा हो गई है। देवार जाति के कलाकारों में मनहरण, कौशल, गणेश, बरतनिन बाई, किस्मत बाई, फिदा बाई, पद्मा आदि प्रमुख है।
‘पंडवानी’ पांडवों की कथा है। झाडूराम देवांगन पंडवानी के शीर्षस्थ कलाकार थे। उन्हें मध्यप्रदेश शासन का शिखर सम्मान प्राप्त था। विदेशों में भी अनेक कार्यक्रम हुए हैं। उनके शिष्यों की बहुत बड़ी संख्या है, जिनमें से पूनाराम निषाद को संगीत अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ है। श्रीमती तीजनबाई कापालिक शैली की पंडवानी गायिका हैं और उन्हें पद्मभूषण का अलंकरण प्राप्त है। रेवाराम, लक्ष्मी बाई, सामेशास्त्री देवी आदि सिद्ध हस्त पंडवानी गायक, गायिकाओं की श्रेणी में रितु वर्मा भी उभर कर आई है। पंडवानी का एक उदाहरण है
रथ ला हाँकत हे भगवान
कूकुर लुँहगी साँप सलगनी
हाथी हदबद, गदहा गदबद
सैना करिस पयान
रथ ला हाँकत हे भगवान
लोक नाट्य का कलेवर, व्यंग्य का तेवर
छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य में प्रमुख है – नाचा, चन्दैनी और रहस। ‘नाचा’ अत्यन्त सशक्त विधा है और लोक प्रिय भी। इसमें पुरुष ही महिला के वेश में ‘परी’ बनकर गाते और नाचते हैं। दो चार नाच के बाद गम्मत या प्रहसन होता है जिसमें ‘जोक्कड़’ (जोकर या विदूषक) के अतिरिक्त कुछ अन्य पात्र प्रहसन पेश करते हैं। गम्मत या प्रहसन में अत्यन्त तीखा व्यंग्य होता है किन्तु उसका समापन किसी अच्छे आदर्श को इंगित करता है। नाचा और गम्मत दोनों को मिलाकर ‘नाचा’ कहा जाता है। नाचा रात भर चलता है और सबेरे ‘करमा’ के साथ समाप्त होता है। स्व. मँदराजी दाऊ नाचा के बहुत बड़े कलाकार थे। आज से 60 वर्ष पहले बोड़रा, रिंगनी और रवेली की नाचा पार्टी प्रसिद्ध मानी जाती थी। बाद में रिंगनी, रवेली पार्टी एक हो गई। लालूराम और मदन लाल इस पार्टी के सशक्त कलाकार थे जिनके नाम से लोग टूट पड़ते थे। लालू राम ने हबीब तनवीर के निर्देशन में तैयार ‘चरणदास चोर’ में चरणदास की अविस्मरणीय भूमिका निभाई और विदेशों में भी ख्याति अर्जित की। फिल्म ‘मेसी साहब’ में उसकी छोटी सी भूमिका भी प्रभावकारी है। नया थिएटर दिल्ली के एक नाट्य में मद्रासी पंडित का जीवंत रोल करने का ‘करेंट’ ने उसका चित्र छापते हुए टिप्पणी की थी कि Hindi Stage has yet to find lalu Ram अर्थात् हिंदी रंग मंच पर अभी लालूराम पैदा नहीं हुआ है। भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा आयोजित भारत प्रसिद्ध ‘छत्तीसगढ़ लोक कला महोत्सव में इस लोक कलाकार का अभिनंदन किया गया था।
मध्यप्रदेश शासन ने लोक नाट्य के पाँच छत्तीसगढ़ी कलाकारों मदन लाल, भुलवाराम, गोबिन्द राम, देवीराम और फिदा बाई को ‘तुलसी सम्मान’ प्रदान किया था।
‘चँदैनी’ लोक नाट्य में लोरिक और चंदा की प्रणय गाथा प्रस्तुत की जाती है। वस्तुतः, चंदैनी अब लोक नाट्य की एक ऐसी शैली हो गई है जिसमें कलाकारों की संख्या कम होती है और एक कलाकार अनेक पात्रों का अभिनय कर लेता है। रामाधार, सुखचंद और लतेलराम इस फन में माहिर कलाकार हैं। रामाधार साहू असाधारण प्रतिभा के धनी है और मंच पर इतनी अभिव्यक्तियाँ एक साथ दे देता है कि कभी-कभी बौद्धिक दर्शक भी उसके साथ चलने में अपने को असमर्थ पाते हैं।
बस्तर का ‘भतरानाट’ और बिलासपुर का ‘रहस’ भी लोक नाट्य हैं। ‘रहस’ वस्तुतः रास है तथा कृष्ण की रासलीला का ही प्रदर्शन है।
लोक नृत्य माँदर की थाप पर थिरकते पाँव
वैसे तो अधिकांश लोक गीत, लोक गाथा और लोक नाट्य में लोक नृत्य का भी थोड़ा बहुत पुट रहता है किन्तु नृत्य प्रधान होने के कारण जिन लोक कथाओं को नोक नृत्य की श्रेणी में रखा जा सकता है, उनमें प्रमुख है- पंथी, रावत, नाच, गेंड़ी, डंडा नाच, देवारिन नाच और आदिवासी नृत्य।
‘पंथी सतनामी संप्रदाय के भक्तों द्वारा अपने गुरु घासीदास तथा उनके बताए सत्य की महिमा को रेखांकित करके गाया जाने वाला भाव प्रवण नृत्य है-
इतना के बिरिया में कोन देव ला वो
मैं तो बंदत हवँव दीदी, जय सतनाम
मैं तो बंदत हवँव भइया, जय सतनाम
पंथी इतनी तेजी से नाचा जाता है कि पंजाब के भाँगड़ा के समान गिने-चुने लोक नृत्य ही इसकी तुलना में रखे जा सकते हैं। माँदर और झाँझ केवल दो वाद्य इस नृत्य में पूरे वातावरण को झकझोर देते हैं। देवदास की पंथी पार्टी का नाम किसी समय शिखर पर था। बुधारू इस पार्टी का माँदर-वादक है और अपनी कोई सानी नहीं रखता। देवदास की पार्टी ने विदेशों में भी खूब ख्याति अर्जित की। नृत्य की तेज गति से आश्चर्य चकित होकर विदेशियों ने ध्यान चंद और ज्ञान चंद की हॉकी स्टिक की तरह देवदास के पैरों का भी परीक्षण किया। राधेश्याम, लतमार दास, पुरानिक लाल चेलक और अमृता बाई भी इस विधा के सशक्त कलाकार हैं। देवदास के निधन से पंथी लोक कला की बहुत बड़ी क्षति हुई है।
मुख्यतः मवेशी चराने का पेशा करने वाली राउत जाति का राउत नाचा दीपावली के समय होता है। कुल देवता की आराधना करने के बाद हर रावत अपने घर से ‘काछन’ निकालता है। उस समय उसके पास अपार शक्ति होती है। मस्ती में अपने घर के ही छप्पर छानी को तोड़ते हुए निकलने वाला रावत अपनी लाठी से समस्त रावतों पर अकेले ही प्रहार करता है। उसके प्रहार को रोकने के लिए लगभग 30-40 राउत वहाँ एकत्र रहते हैं। जब उन्मादी राउत लाठी चलाते चलाते थक जाता है, तब जमीन में लेट जाता है। देवता को धूप और नारियल भेंट करने के बाद वह स्वस्थ होता है और अपने दल में शामिल होकर घर से बाहर नाचने के लिए निकल जाता है। एक राउत दोहा है-
गोहड़ी चराएँव, बड दुःख पाएँव, मन अब्बड़ झुंझवाय
बरदी चराएवं बढ़ सुख पाएँव, गंजर के दुहेंव गाय
छत्तीसगढ़ में त्यौहारों का सत्र वर्षा ऋतु में हरेली (हरियाली) से प्रारंभ होता है। हल, कुदाली, फावड़ा आदि कृषि औजारों की पूजा की जाती है। इस अवसर पर ‘गेंड़ी’ भी बनाई जाती है। लगभग 8 फीट लम्बे बाँस में जमीन से लगभग 3 फीट की ऊँचाई पर बाँस का ही पायदान बनाया जाता है। इस तरह गेंडी तैयार होती है जिस पर चढ़कर नाचा जाता है। गेंड़ी के पायदान को नारियल की रस्सी से बाँधने तथा उसमें मिट्टी तेल डालकर धूप में सुखाने से होने वाली चर्र मर्र की आवाज अन्य वाद्यों के साथ मिलकर अद्भुत संगीत पैदा करती है। समूह में नाचने पर गेंड़ी नृत्य की छटा देखने लायक होती है।
‘आदिवासी नृत्य’ छत्तीसगढ़ की लोक कला का महासागर है। जन जातियों की बहुलता वाले क्षेत्र में सैकड़ों तरह के आदिवासी नृत्य प्रचलित हैं। माँदर की धुन पर नाचने वाले ये आदिवासी अपने खुलेपन के लिए मशहूर हैं। युवक और युवतियाँ समान रूप से अधिकांश नृत्यों में एक साथ नाचते हैं। उनके पैरों का प्रक्षेपण इतना सधा हुआ और संतुलित रहता है कि लगता है किसी ने रस्सी या स्केल से बाँध दिया हो। आदिवासी अंचलों के कुछ नृत्य बहुत प्रसिद्ध हैं जैसे –
बस्तर में गौर, ककसार, चेहरे, दीवाड़, माओ, डोली और डिटोंग। सरगुजा में सैला, जशपुर में सकल, मानपुर में हुल्की, चोली और माँदरी। देवभोग में लरिया। प्रायः सभी आदिवासी नृत्य किसी सामाजिक या धार्मिक परंपरा का निर्वाह करते हैं। ‘करमा गोंड़ और देवार जाति का प्रमुख नृत्य है किन्तु यह हर आदिवासी अंचल में अलग-अलग शैली में नाचा और गाया जाता है। मूलतः करम राजा और करमा रानी को प्रसन्न करने के लिए जन जाति के लोग करमा नाचते है किन्तु कालांतर में ददरिया के साथ जुड़कर वह शृंगारमय भी हो गया। गोलार्ध पर नाचते हुए युवक-युवतियों का दल माँदर की मस्ती में झूम-झूम कर नाचता है और जब अपने साथी के पाँव के अँगूठे को छूने की स्थिति में आ जाता है, तब ‘करमा’ सिद्ध होता है। एक करमा गीत के बोल हैं-
होइरे होइरे तोला जाना पड़े रे
कटंगी बजार के पीपर तरी रे
दार राँधे, भात राँधे, लिक्कड़ म खोए
चार पइसा के जुगजुगी दुनिया ल मोहे
तोला जाना पड़े रे
हमारी संस्कृति मूलतः लोक संस्कृति है। लोक कला उसका एक अंग है। शरीर की पुष्टि के लिए अंगों का पुष्ट होना अनिवार्य है अतः लोककला की अजरता – अमरता लोकसंस्कृति की अजरता – अमरता है।
पाठ का सार
कविता “छत्तीसगढ़ की लोककलाएँ” में छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति का वर्णन है, जो प्रकृति और मानव के गहरे रिश्ते से प्रेरित है। लोक गीत (ददरिया, सुवा, गौरा, जँवारा), लोक गाथाएँ (पंडवानी, ढोला-मारू), लोक नाट्य (नाचा, चँदैनी, रहस) और लोक नृत्य (पंथी, राउत, गेंड़ी, आदिवासी नृत्य) छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान हैं। यहाँ की धुनों की विविधता और महिलाओं का आधिपत्य गीतों को विशिष्ट बनाता है। तीजन बाई, सुरूज बाई जैसे कलाकारों ने इसे वैश्विक मंच पर पहुँचाया। यह लोक कला जीवन के चिंतन, दर्शन और भावनाओं को समेटे हुए है।
शब्दार्थ
मड़वा – मंडप
माड़ी – घुटना
सुग्घर – सुंदर
बरदी – गौ वंशों का झुंड
गदबद – तेज गति से दौड़ना
बिछलगे – फिसल गए
पयान – प्रस्थान
गौहड़ी – गौ वंशों का बड़ा समूह जो प्रायः जंगल में रहते हैं
बगडेना – बाँह
झुझवाना – अप्रसन्न होना
गिंजरफिर – घूमकर
लिक्कड़ – लकड़ी
जुगजुगी दुनिया – जगमगाती दुनिया;
शब्द | हिंदी अर्थ | English Meaning |
लोक-मानस | सामान्य लोगों का मन | Folk psyche |
अजस्र | अनवरत, निरंतर | Unceasing, continuous |
राग-विराग | प्रेम और वैराग्य | Love and detachment |
सन्निहित | समाहित, निहित | Contained, inherent |
गढ़ | किला | Fort |
आशु-कवित्व | तात्कालिक काव्य रचना | Spontaneous poetry |
शृंगार | सजावट, प्रेम रस | Adornment, romantic sentiment |
वृत्ताकार | गोलाकार | Circular |
करुणा | दया, सहानुभूति | Compassion |
प्रहसन | हास्य नाटक | Farce |
जोक्कड़ | विदूषक, हास्य कलाकार | Jester, clown |
माँदर | पारंपरिक वाद्य यंत्र | Traditional drum |
काछन | कुलदेवता की शक्ति | Divine power of clan deity |
गेंड़ी | बाँस पर नृत्य संरचना | Bamboo stilt dance |
प्रक्षेपण | गति, संतुलन | Precision, balance |
उन्मादी | उत्साहपूर्ण, दीवाना | Frenzied, ecstatic |
झकझोर | हिलाना, प्रभावित करना | Shake, captivate |
रास | कृष्ण की रासलीला | Krishna’s dance-drama |
भाव प्रवण | भावनाओं से भरा | Emotionally intense |
अजरता-अमरता | शाश्वतता | Eternity, immortality |
पाठ से
- मनुष्य का संपूर्ण चिंतन, दर्शन और राग विराग लोककला में सन्निहित क्यों है?
उत्तर – मनुष्य का संपूर्ण चिंतन, दर्शन और राग-विराग लोककला में सन्निहित है क्योंकि लोक-मानस ने धरती को माता और स्वयं को उसका बेटा माना है। नाते-रिश्तों के इस प्रेम ने उसे प्रकृति और उसकी संतान के साथ जोड़ दिया, और यहीं से फूटी लोक-रचना की अजस्र धारा (लोक गीत, लोक गाथा, लोक नाट्य और लोक नृत्य के रूप में), जो मनुष्य के समग्र जीवन को प्रतिबिंबित करती है।
- ‘तुरतुरिया’ नामक स्थान क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर – ‘तुरतुरिया’ नामक स्थान इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यह रायपुर वर्तमान बलौदाबाजार जिले में स्थित है और इसे महर्षि वाल्मीकि का आश्रम माना गया है। इस नाते, यह माना जाता है कि कविता की पहली ऋचा यहीं फूटी थी।
- छत्तीसगढ़ी लोक गीत को अन्य भारतीय लोक गीतों से अधिक विशिष्ट क्यों माना जाता है?
उत्तर – छत्तीसगढ़ी लोक गीत को अन्य भारतीय लोक गीतों से अधिक विशिष्ट इसलिए माना जाता है, क्योंकि इनमें ‘धुनों की विविधता’ है।
- छत्तीसगढ़ी के प्रमुख लोक गीत गायकों के नाम लिखिए।
उत्तर – छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गीत गायक हैं: लाला फूलचन्द श्रीवास्तव, भैयालाल हैड़ाउ, बैतल राम साहू, पंचराम मिरझा, केदार यादव, नर्मदा प्रसाद वैष्णव, कोदूराम वर्मा, शिव कुमार तिवारी, शेख हुसैन और प्रकाश देवांगन।
- “नाचा विधा” को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर – नाचा छत्तीसगढ़ का एक अत्यंत सशक्त और लोकप्रिय लोक नाट्य है। इसमें पुरुष ही महिला के वेश में ‘परी’ बनकर गाते और नाचते हैं। नाच के बाद गम्मत या प्रहसन होता है, जिसमें ‘जोक्कड़’ (विदूषक) के अतिरिक्त अन्य पात्र होते हैं। गम्मत में तीखा व्यंग्य होता है, जिसका समापन किसी अच्छे आदर्श को इंगित करता है। नाचा रात भर चलता है और सबेरे ‘करमा’ के साथ समाप्त होता है।
- किन-किन लोक कलाओं को लोक नृत्य की श्रेणी में रखा जा सकता है?
उत्तर – जिन लोक कलाओं को नृत्य प्रधान होने के कारण लोक नृत्य की श्रेणी में रखा जा सकता है, उनमें प्रमुख हैं: पंथी, रावत नाच, गेंड़ी, डंडा नाच, देवारिन नाच और आदिवासी नृत्य जैसे गौर, ककसार, सैला आदि।
- आदिवासी अंचलों में प्रसिद्ध नृत्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर – आदिवासी अंचलों में प्रसिद्ध नृत्य निम्नलिखित हैं –
बस्तर में – गौर, ककसार, चेहरे, दीवाड़, माओ, डोली और डिटोंग।
सरगुजा में – सैला।
जशपुर में – सकल।
मानपुर में – हुल्की, चोली और माँदरी।
देवभोग में – लरिया।
सभी आदिवासी अंचलों में करमा।
पाठ से आगे
- महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ग्रंथ का नाम लिखकर आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार आश्रमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ग्रंथ – महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ ‘रामायण’ है।
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धाम/मठ (आश्रमों -:
ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ, उत्तराखंड, उत्तर दिशा)
गोवर्धन मठ (पुरी, ओडिशा, पूर्व दिशा)
शारदा मठ (द्वारका, गुजरात, पश्चिम दिशा)
शृंगेरी मठ (शृंगेरी, कर्नाटक, दक्षिण दिशा)
- शक्ति की आराधना ‘जँवारा’ का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर – ‘जँवारा’ शक्ति की आराधना का प्रतीक है, जो नवरात्रि में गेहूँ के उगे अंकुरों के माध्यम से प्रकृति की शक्ति स्वरूपा को पूजा जाता है। ये अंकुर गाँव को बल प्रदान करते हैं, जीवन की उर्वरता और शक्ति का प्रतीक हैं। महिलाएँ इन्हें सजाती हैं और विसर्जन पर भावुक होकर अगले वर्ष के आगमन का निमंत्रण देती हैं, जो ममता और करुणा को दर्शाता है।
- आशु कवित्व से आप क्या समझते हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – आशु कवित्व से तात्पर्य तत्काल रचना करने की कला से है, जहाँ कलाकार बिना पूर्व तैयारी के साहित्यिक रचना करते हैं। ददरिया गीत में जैसे खेत या तालाब किनारे सवाल-जवाब की स्पर्धा से लंबी कविता-शृंखला बनती है, जो श्रोताओं को आनंद देती है। यह लोक कला की सहजता और रचनात्मकता को उजागर करता है।
- “सुआ (गीत)” नृत्य के समय टोकनी में भरे धान के ऊपर सुआ रखने का क्या अर्थ है?
उत्तर – “सुआ गीत” नृत्य के समय बाँस की टोकनी में भरे धान के ऊपर ‘सुआ’ (तोते) की प्रतिमा रखने का गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है।
प्रतीक – छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में ‘सुआ’ को कबीर के ‘हंसा’ की तरह ‘आत्मा’ का प्रतीक माना गया है।
आशय – यह नृत्य आत्मा (सुआ) को धान (अन्न या भौतिक संसार) के ऊपर स्थापित करके, स्त्रियों द्वारा वृत्ताकार स्थिति में नाचते-गाते हुए, आत्मा की शुद्धता, मुक्ति और देवी शक्ति की आराधना को व्यक्त करता है।
- पद्मभूषण तीजनबाई को पंडवानी की “कापालिक शैली” की गायिका कहा जाता है। इस शैली का आशय स्पष्ट करते हुए पंडवानी की अन्य शैलियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – कापालिक शैली का आशय – पंडवानी की ‘कापालिक शैली’ वह शैली है जिसमें पंडवानी गायिका बिना किसी वाद्ययंत्र के (एकतारा/तंबोरा के अलावा), अभिनय और भाव-भंगिमाओं के माध्यम से पांडवों की कथा को अधिक नाटकीय और ओजस्वी ढंग से प्रस्तुत करती है। इस शैली में कलाकार शारीरिक मुद्राओं और तीव्र भावों के द्वारा कथा के वीर और रौद्र रसों को जीवंत करते हैं। तीजन बाई इसी शक्तिशाली शैली के लिए प्रसिद्ध हैं।
पंडवानी की अन्य शैली – पंडवानी की दूसरी प्रमुख शैली ‘वेदवती शैली’ है। इस शैली में गायन पर अधिक जोर होता है और अभिनय अपेक्षाकृत कम होता है। इसमें कलाकार अक्सर बैठकर गाते हैं और कथा में गीत का महत्व अधिक होता है।
- हरियाली पर्व के समय कृषि उपकरणों की पूजा अर्चना करने एवं बैगा द्वारा दरवाजे पर नीम की डँगाल खोंचने का आशय क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – हरियाली (हरेली) पर्व में कृषि उपकरणों (हल, कुदाली आदि) की पूजा फसल की समृद्धि और किसान जीवन के आभार के लिए की जाती है। बैगा द्वारा दरवाजे पर नीम की डँगाल खोंचना बुरी नजर, बीमारियों और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा के लिए है, क्योंकि नीम स्वास्थ्यवर्धक और रोगनाशक माना जाता है। यह पर्यावरणीय चेतना और आस्था का प्रतीक है।
भाषा के बारे में
- निम्नलिखित श्रुति सम भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखिए-
शब्द | अर्थ |
कला | हुनर, कौशल, आर्ट |
काला | रंग (श्याम वर्ण) |
किला | दुर्ग, गढ़ (Fort) |
कीला | खूँटा, कील (Nail/Peg) |
पवन | हवा, वायु |
पावन | पवित्र, शुद्ध |
आशु | शीघ्र, तुरंत |
आँसू | अश्रु, नेत्रजल |
विधा | शैली, प्रकार, साहित्यिक रूप |
विद्या | ज्ञान, शिक्षा |
देवार | एक घुमंतू जाति/समुदाय (लोक कलाकार) |
देव | देवता, ईश्वर |
प्रतिभा | असाधारण बौद्धिक क्षमता, टैलेंट |
प्रतिमा | मूर्ति, बिंब, स्टेच्यू |
पंथी | गुरु घासीदास के अनुयायी, एक लोकनृत्य का नाम |
पंछी | पक्षी, चिड़िया |
हंसा | हंस (पक्षी), आत्मा का प्रतीक |
हँसा | हँसने की क्रिया (क्रिया का रूप) |
गौरी | देवी पार्वती, गोरा रंग |
गोरी | सुंदर स्त्री (गोरे रंग वाली) |
- निम्नांकित शब्द समूहों का प्रयोग पाठ में किन परिस्थितियों में किया गया है-
आँखें नम होना, केश खोलकर झूमना, परी बन के नाचना, वृत्ताकार स्थिति में नाचना
उत्तर –
शब्द समूह | परिस्थिति/संदर्भ |
आँखें नम होना | गौरा गीत की समाप्ति पर देवी गौरी को अगले वर्ष फिर आने का निमंत्रण देते समय महिलाओं की आँखों में करुणा आने के कारण। |
केश खोलकर झूमना | इस शब्द समूह का प्रयोग पाठ में सीधे नहीं हुआ है, लेकिन यह गोंड़ जाति की महिलाओं द्वारा गौरा गीत गाते समय या देवार जाति की महिलाओं द्वारा नाचते समय ऊर्जा और मस्ती में थिरकने की स्थिति को इंगित कर सकता है। |
परी बन के नाचना | ‘नाचा’ लोक नाट्य में पुरुष कलाकारों द्वारा महिला के वेश में नृत्य करने के संदर्भ में, जहाँ वे ‘परी’ का रूप धारण करके गाते और नाचते हैं। |
वृत्ताकार स्थिति में नाचना | ‘सुआ गीत’ के समय महिलाओं द्वारा बाँस की टोकनी में रखे सुआ की प्रतिमा के चारों ओर गोल घेरा बनाकर नाचने और गाने के संदर्भ में। |
योग्यता विस्तार
- छत्तीसगढ़ के छत्तीस किलों (दुर्ग) के नाम ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर – छत्तीसगढ़ में ‘छत्तीसगढ़’ नाम के पीछे छत्तीस किलों अर्थात् गढ़ों की अवधारणा है। हालाँकि, ऐतिहासिक रूप से सभी 36 किलों के निश्चित नाम और स्थान को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। ये गढ़ मुख्य रूप से शिवनाथ नदी के उत्तर (उत्तरी छत्तीसगढ़) और दक्षिण (दक्षिणी छत्तीसगढ़) में 18-18 की संख्या में माने जाते थे जिसमें –
शिवनाथ नदी के उत्तर के 18 गढ़ – रतनपुर, मारो, नवागढ़, खमतराई, ओखर, सेमरिया, चमेली, अकलतरा, लाफा, छुरी, कोसगई, केंदा, मातिन, उपजौरा, करकटी, कोटगढ़, पंडरा, और पेंड्रा।
शिवनाथ नदी के दक्षिण के 18 गढ़ – रायपुर, पाटन, दुर्ग, सिमगा, सिंगारपुर, लवन, सरधा, अमोरा, खल्लारी, सिरपुर, फिंगेश्वर, राजिम, लोटलोट, सिंघनगढ़, टेँगनागढ़, मोहदी, और अड़भार।
- अपने अंचल के लोकगीत या लोकनृत्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – मेरे अंचल अर्थात् मध्यप्रदेश सीमावर्ती इलाके में ‘फाग’ लोकगीत प्रचलित है, जो बसंत में होली पर गाया जाता है। इसमें राधा-कृष्ण की प्रेम कथाएँ झूमते स्वरों में गाई जाती हैं। लोकनृत्य के रूप में ‘मालखंब’ प्रसिद्ध है, जो व्यायाम और नृत्य का मिश्रण है, जिसमें लटकन से झूला झूलते हुए कलाबाजियाँ दिखाई जाती हैं।
- गम्मत में हास्य व्यंग्य के माध्यम से संदेश दिया जाता है। आप अपने आस-पास के लोगों से पूछकर ऐसे किसी प्रसंग का वर्णन कीजिए।
उत्तर – प्रसंग (उदाहरण) – ‘सरकारी दफ्तर में बाबूजी’ (एक काल्पनिक गम्मत प्रहसन का अंश)।
वर्णन – एक गम्मत (प्रहसन) में जोक्कड़ (जोकर) एक आम नागरिक के वेश में आता है जिसे अपनी ज़मीन का दस्तावेज़ (कागज़) बनवाना है। एक दूसरा कलाकार मोटे पेट वाले, आलसी ‘बाबूजी’ के रूप में मेज पर बैठा है।
व्यंग्य – नागरिक (जोक्कड़) दिन भर बाबूजी के चक्कर लगाता है। बाबूजी हर बार उसे ‘कल आना’ या ‘फाइल में कमी है’ कहकर टाल देते हैं। बाबूजी मोबाइल पर गेम खेलते रहते हैं या झपकी लेते रहते हैं। जब जोक्कड़ बाबूजी को ‘खुशी का लिफ़ाफ़ा’ (रिश्वत) देता है, तो बाबूजी तुरंत फुर्ती से उठकर चाय और नाश्ते का ऑर्डर देते हैं, और दस मिनट में काम कर देते हैं।
हास्य – जोक्कड़ अंत में कहता है, “बाबूजी, सरकारी तेल तो तब निकलता है जब थोड़ी-सी ‘चिकनाई’ डाली जाए।” यह सुनकर दर्शक हँस पड़ते हैं।
संदेश – प्रहसन का अंत यह संदेश देकर होता है कि सरकारी दफ्तरों में काम में देरी और भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है, जिसे ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से ही दूर किया जा सकता है।
- छत्तीसगढ़ी लोक कला को वैश्विक मंच पर स्थापित करने में ‘हबीब तनवीर के समूह का बड़ा योगदान रहा है। उनकी प्रस्तुति के संबंध में अपने शिक्षक से पूछकर लिखिए।
उत्तर – शिक्षक से पूछने पर बताया कि हबीब तनवीर के ‘नया थिएटर’ ने ‘चरणदास चोर’ (1975) में छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों को शामिल कर वैश्विक मंच पर पहुँचाया। एडिनबर्ग फेस्टिवल (1982) में पुरस्कृत यह नाटक व्यंग्यपूर्ण था, जिसमें लालूराम की भूमिका अविस्मरणीय रही। तनवीर ने लोक धुनों से रंगमंच को समृद्ध किया, जो भारतीय संस्कृति को विश्व पटल पर चमकाया।
- आपके क्षेत्र में दीपावली पर्व किस तरह मनाया जाता है? इस पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर – मेरे क्षेत्र में दीपावली पर्व – प्रकाश का उत्सव
परिचय –
दीपावली, जिसे ‘रोशनी का त्योहार’ भी कहते हैं, भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश की, असत्य पर सत्य की, और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है।
तैयारियाँ और उत्सव –
दीपावली से कई दिन पहले ही तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। लोग अपने घरों की सफ़ाई और पुताई करते हैं, जिसे ‘त्योहारी सफ़ाई’ कहा जाता है। बाज़ारों में खूब चहल-पहल होती है, जहाँ मिट्टी के दीये, रंगोली के रंग, मोमबत्तियाँ और मिठाइयाँ बेची जाती हैं। घरों को बिजली की झालरों और रंगोली से सजाया जाता है।
मुख्य दिन का अनुष्ठान –
दीपावली की शाम को परिवार के सभी सदस्य नए कपड़े पहनते हैं। घर-घर में विशेष रूप से माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है, ताकि घर में धन, समृद्धि और शुभता का वास हो। पूजा के बाद घर के हर कोने में दीये और मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं, जिससे पूरा वातावरण जगमगा उठता है। बच्चे और वयस्क मिलकर पटाखे जलाते हैं और एक-दूसरे को मिठाई एवं उपहार देकर शुभकामनाएं देते हैं।
समापन –
दीपावली केवल एक दिन का त्योहार नहीं, बल्कि पाँच दिनों का उत्सव होता है, जिसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, गोवर्धन पूजा और भाई दूज शामिल हैं। यह पर्व भाईचारे, प्रेम और उत्साह को बढ़ाने वाला एक सांस्कृतिक संगम है।
- राउत नाचा में प्रयुक्त होने वाले कुछ दोहों का संकलन कीजिए।
उत्तर – राउत नाचा अर्थात् छत्तीसगढ़ के यादव/राउत समुदाय का दीपावली के समय के नृत्य में प्रयुक्त होने वाले कुछ दोहे निम्नलिखित हैं –
गोहड़ी चराएँव, बड़ दुःख पाएँव, मन अब्बड़ झुंझवाय।
बरदी चराएवं बढ़ सुख पाएँव, गंजर के दुहेंव गाय।
अर्थ – जब मवेशी चराए, तब बहुत दुःख पाया, मन बहुत परेशान हुआ। जब गाय को प्यार से चराया, तब बहुत सुख पाया और बैठकर दूध दुहा।
चंदा सुरुज के रथे उजाला, मोर मालिक के घर रथे उजाला।
आज के राते म काछन निकरिही, अंधियारी रात म जोत जलिही।
अर्थ – चाँद और सूरज में तो उजाला होता है, मेरे मालिक के घर में भी उजाला होता है। आज की रात में ‘काछन’ (शक्ति) निकलेगी, अँधेरी रात में ज्योति जलेगी।
राम राज चलत हे भाई, राजा के घर रानी अउ रनिहा के घर राजा।
एही ले तो झूम-झूम नाचत आवँ, सबके घर जा-जा।
अर्थ – राम राज चल रहा है भाई, राजा के घर रानी और रानी के घर राजा। इसीलिए तो झूम-झूम कर नाचते आ रहा हूँ, सबके घर जा-जा कर।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
- ‘लोके वेदे च’ का अर्थ क्या है?
a) वेद में प्रकृति
b) लोक में और वेद में
c) केवल लोक में
d) केवल वेद में
उत्तर – b) लोक में और वेद में - लोक-मानस ने धरती को क्या माना है?
a) बहन
b) माता
c) मित्र
d) पुत्री
उत्तर – b) माता - छत्तीसगढ़ कब स्वतंत्र राज्य बना?
a) 1 नवंबर 2000
b) 1 जनवरी 2000
c) 15 अगस्त 1999
d) 26 जनवरी 2001
उत्तर – a) 1 नवंबर 2000 - छत्तीसगढ़ में कितने किले होने का उल्लेख है?
a) 27
b) 36
c) 18
d) 45
उत्तर – b) 36 - तुरतुरिया क्यों प्रसिद्ध है?
a) आदि शंकराचार्य का जन्मस्थान
b) वाल्मीकि का आश्रम
c) लोक नृत्य का केंद्र
d) नाचा का उद्गम
उत्तर – b) वाल्मीकि का आश्रम - छत्तीसगढ़ी लोक गीतों की विशिष्टता क्या है?
a) पुरुषों का आधिपत्य
b) धुनों की विविधता
c) केवल भक्ति गीत
d) छोटी अवधि
उत्तर – b) धुनों की विविधता - ददरिया गीत का प्रकार क्या है?
a) भक्ति गीत
b) शृंगार गीत
c) करुणा गीत
d) युद्ध गीत
उत्तर – b) शृंगार गीत - सुआ गीत में ‘सुआ’ किसका प्रतीक है?
a) प्रेम
b) आत्मा
c) प्रकृति
d) शक्ति
उत्तर – b) आत्मा - गौरा गीत कब गाए जाते हैं?
a) होली पर
b) दीपावली पर
c) नवरात्रि पर
d) हरेली पर
उत्तर – b) दीपावली पर - जँवारा का संबंध किससे है?
a) शक्ति की आराधना
b) प्रेम गाथा
c) युद्ध कथा
d) सामाजिक व्यंग्य
उत्तर – a) शक्ति की आराधना - पंडवानी किसकी कथा है?
a) रामायण
b) महाभारत
c) ढोला-मारू
d) चँदैनी
उत्तर – b) महाभारत - देवार गीत में कौन सा वाद्य प्रमुख है?
a) माँदर
b) रूजू (एकतारा)
c) झाँझ
d) बाँसुरी
उत्तर – b) रूजू (एकतारा) - नाचा विधा में ‘जोक्कड़’ का क्या अर्थ है?
a) नायक
b) विदूषक
c) गायक
d) नर्तक
उत्तर – b) विदूषक - चँदैनी लोक नाट्य किसकी प्रणय गाथा है?
a) राम-सीता
b) लोरिक-चंदा
c) कृष्ण-राधा
d) ढोला-मारू
उत्तर – b) लोरिक-चंदा - पंथी नृत्य किस संप्रदाय से संबंधित है?
a) गोंड़
b) सतनामी
c) राउत
d) देवार
उत्तर – b) सतनामी - राउत नाचा कब आयोजित होता है?
a) नवरात्रि
b) दीपावली
c) हरेली
d) होली
उत्तर – b) दीपावली - गेंड़ी नृत्य में क्या उपयोग होता है?
a) लाठी
b) बाँस का पायदान
c) माँदर
d) रूजू
उत्तर – b) बाँस का पायदान - बस्तर का प्रसिद्ध आदिवासी नृत्य कौन सा है?
a) सैला
b) गौर
c) हुल्की
d) लरिया
उत्तर – b) गौर - करमा नृत्य का उद्देश्य क्या है?
a) प्रेम का उत्सव
b) करम राजा-रानी को प्रसन्न करना
c) शक्ति की आराधना
d) सामाजिक व्यंग्य
उत्तर – b) करम राजा-रानी को प्रसन्न करना - लालूराम ने किस नाटक में अविस्मरणीय भूमिका निभाई?
a) मेसी साहब
b) चरणदास चोर
c) रहस
d) चँदैनी
उत्तर – b) चरणदास चोर
एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – ‘शब्दानुशासनम्’ ग्रंथ में ‘लोक’ के संबंध में क्या कहा गया है?
उत्तर – ‘शब्दानुशासनम्’ ग्रंथ में कहा गया है कि ‘लोक’ की प्रतिष्ठा लोक में और वेद में भी है (“लोके वेदे च”)।
- प्रश्न – लोक-मानस ने धरती को क्या माना है और स्वयं को क्या बताया है?
उत्तर – लोक-मानस ने धरती को माता (‘माता भूमिः’) और स्वयं को उसका बेटा (‘पुत्रोऽहं पृथ्वीव्याः’) माना है।
- प्रश्न – छत्तीसगढ़ राज्य का गठन कब हुआ?
उत्तर – छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवंबर 2000 को हुआ।
- प्रश्न – ‘गढ़’ शब्द का अर्थ क्या होता है, जिसके आधार पर छत्तीसगढ़ का नामकरण हुआ?
उत्तर – ‘गढ़’ शब्द का अर्थ किला होता है, क्योंकि माना जाता है कि यहाँ कभी छत्तीस किले थे।
- प्रश्न – छत्तीसगढ़ के किस स्थान को महर्षि वाल्मीकि का आश्रम माना जाता है?
उत्तर – रायपुर (वर्तमान बलौदाबाजार) जिले के तुरतुरिया नामक स्थान को महर्षि वाल्मीकि का आश्रम माना जाता है।
- प्रश्न – छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में किनकी अपेक्षा किनका आधिपत्य रहता है?
उत्तर – छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आधिपत्य रहता है।
- प्रश्न – छत्तीसगढ़ी लोकगीतों को अन्य भारतीय लोकगीतों से अधिक विशिष्ट कौन-सी बात बनाती है?
उत्तर – छत्तीसगढ़ी लोकगीतों को अन्य भारतीय लोकगीतों से अधिक विशिष्ट ‘धुनों की विविधता’ बनाती है।
- प्रश्न – प्रमुख छत्तीसगढ़ी लोकगीतों के नाम लिखिए।
उत्तर – प्रमुख छत्तीसगढ़ी लोकगीत हैं: ददरिया, सुवा, गौरा, भोजली, जँवारा, बिहाव और भजन।
- प्रश्न – ‘ददरिया’ किस प्रकार का गीत है और इसमें क्या चलता है?
उत्तर – ‘ददरिया’ शृंगार गीत है, और इसमें सवाल-जवाब (स्पर्धा) चलता है।
- प्रश्न – ‘सुआ गीत’ गाते समय महिलाएँ किसकी प्रतिमा को किस पर रखती हैं?
उत्तर – ‘सुआ गीत’ गाते समय महिलाएँ बाँस की टोकनी में भरे धान के ऊपर ‘सुआ’ (तोते) की प्रतिमा रख देती हैं।
- प्रश्न – ‘सुआ’ को छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में किसका प्रतीक माना गया है?
उत्तर – ‘सुआ’ को छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में कबीर के ‘हंसा’ की तरह आत्मा का प्रतीक माना गया है।
- प्रश्न – ‘गौरा गीत’ किस जाति की महिलाएँ और कब गाती हैं?
उत्तर – ‘गौरा गीत’ गोंड़ जाति की महिलाएँ दीपावली के समय कार्तिक अमावस्या की रात को गौरी (पार्वती) की पूजा के अवसर पर गाती हैं।
- प्रश्न – ‘जँवारा’ किस पर्व में और किसकी आराधना के लिए किया जाता है?
उत्तर – ‘जँवारा’ नवरात्रि के पर्व में शक्ति की आराधना के लिए किया जाता है।
- प्रश्न – छत्तीसगढ़ में प्रचलित किन्हीं चार लोक-कथाओं या लोक-गाथाओं के नाम लिखिए।
उत्तर – छत्तीसगढ़ में प्रचलित लोक-गाथाओं में ढोला-मारू, सोन सागर, भरथरी और पंडवानी प्रमुख हैं।
- प्रश्न – लोक गाथा गायिकाओं में किनके नाम उभर कर आए हैं, जिन्होंने अपनी छाप छोड़ी है?
उत्तर – लोक गाथा गायिकाओं में श्रीमती तीजन बाई और श्रीमती सुरूज बाई खांडे के नाम उभर कर आए हैं।
- प्रश्न – लोक-गाथा का विशाल भंडार किस गीत में मिलता है?
उत्तर – लोक-गाथा का विशाल भंडार ‘देवार गीत’ में मिलता है।
- प्रश्न – ‘देवार’ कौन-सी जाति है और उसका प्रमुख वाद्य यंत्र क्या है?
उत्तर – ‘देवार’ एक घुमन्तू जाति है, और उसका प्रमुख वाद्य यंत्र ‘रूजू’ (एकतारा) है।
- प्रश्न – ‘पंडवानी’ किसकी कथा है और श्रीमती तीजनबाई पंडवानी की किस शैली की गायिका हैं?
उत्तर – ‘पंडवानी’ पांडवों की कथा है, और श्रीमती तीजनबाई पंडवानी की कापालिक शैली की गायिका हैं।
- प्रश्न – छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नाट्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर – छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नाट्य नाचा, चन्दैनी और रहस हैं।
- प्रश्न – ‘नाचा’ विधा में ‘परी’ बनकर कौन नाचते हैं?
उत्तर – ‘नाचा’ विधा में पुरुष ही महिला के वेश में ‘परी’ बनकर गाते और नाचते हैं।
- प्रश्न – ‘गम्मत’ या प्रहसन में किसका पात्र अत्यंत तीखा व्यंग्य करता है?
उत्तर – ‘गम्मत’ या प्रहसन में ‘जोक्कड़’ (जोकर या विदूषक) का पात्र अत्यंत तीखा व्यंग्य करता है।
- प्रश्न – लालूराम ने हबीब तनवीर के निर्देशन में तैयार किस नाटक में अविस्मरणीय भूमिका निभाई थी?
उत्तर – लालूराम ने हबीब तनवीर के निर्देशन में तैयार नाटक ‘चरणदास चोर’ में चरणदास की अविस्मरणीय भूमिका निभाई थी।
- प्रश्न – ‘चँदैनी’ लोक नाट्य में किसकी प्रणय गाथा प्रस्तुत की जाती है?
उत्तर – ‘चँदैनी’ लोक नाट्य में लोरिक और चंदा की प्रणय गाथा प्रस्तुत की जाती है।
- प्रश्न – बिलासपुर का ‘रहस’ लोक नाट्य वस्तुतः क्या है?
उत्तर – बिलासपुर का ‘रहस’ वस्तुतः रास है और कृष्ण की रासलीला का ही प्रदर्शन है।
- प्रश्न – ‘पंथी’ नृत्य किस संप्रदाय के भक्तों द्वारा किया जाता है?
उत्तर – ‘पंथी’ नृत्य सतनामी संप्रदाय के भक्तों द्वारा अपने गुरु घासीदास की महिमा को रेखांकित करते हुए गाया जाता है।
- प्रश्न – ‘पंथी’ नृत्य में मुख्य रूप से कौन-से दो वाद्य यंत्र प्रयोग किए जाते हैं?
उत्तर – ‘पंथी’ नृत्य में मुख्य रूप से माँदर और झाँझ दो वाद्य यंत्र प्रयोग किए जाते हैं।
- प्रश्न – ‘राउत नाच’ कौन-सी जाति और किस त्यौहार पर करती है?
उत्तर – ‘राउत नाच’ मवेशी चराने का पेशा करने वाली राउत जाति द्वारा दीपावली के समय किया जाता है।
- प्रश्न – छत्तीसगढ़ में त्यौहारों का सत्र वर्षा ऋतु में किस पर्व से प्रारंभ होता है?
उत्तर – छत्तीसगढ़ में त्यौहारों का सत्र वर्षा ऋतु में हरेली (हरियाली) पर्व से प्रारंभ होता है।
- प्रश्न – ‘गेंड़ी’ किस वस्तु से बनाई जाती है और इसकी ऊँचाई लगभग कितनी होती है?
उत्तर – ‘गेंड़ी’ लगभग 8 फीट लंबे बाँस से बनाई जाती है, जिस पर ज़मीन से लगभग 3 फीट की ऊँचाई पर बाँस का पायदान बनाया जाता है।
- प्रश्न – ‘करमा’ नृत्य मूलतः किसे प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, और बाद में यह किस भाव से जुड़ गया?
उत्तर – ‘करमा’ नृत्य मूलतः करम राजा और करमा रानी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता था, किन्तु कालांतर में यह ददरिया के साथ जुड़कर शृंगारमय भी हो गया।
40-50 शब्दों वाले प्रश्नोत्तर
- लोक कला में मानव का चिंतन और दर्शन क्यों सन्निहित है?
उत्तर – लोक कला में मानव का चिंतन और दर्शन इसलिए सन्निहित है क्योंकि लोक-मानस ने धरती को माता माना और प्रकृति के साथ प्रेमपूर्ण रिश्ता जोड़ा। यह गीत, गाथा, नाट्य और नृत्य में व्यक्त होता है, जो जीवन के राग-विराग को समेटता है। - तुरतुरिया की साहित्यिक महत्ता क्या है?
उत्तर – तुरतुरिया वाल्मीकि के आश्रम के रूप में प्रसिद्ध है, जहाँ कविता की पहली ऋचा फूटी। आदि शंकराचार्य के गुरु गोविंद पाद स्वामी भी यहीं के थे, जिससे यह साहित्य और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण है। - छत्तीसगढ़ी लोक गीतों की विशिष्टता क्या है?
उत्तर – छत्तीसगढ़ी लोक गीतों की विशिष्टता उनकी धुनों की विविधता और महिलाओं का आधिपत्य है। ददरिया, सुवा, गौरा जैसे गीत जीवन के सरगम को सजाते हैं और आशु-कवित्व की स्पर्धा श्रोताओं को आकर्षित करती है। - ददरिया गीत की विशेषता क्या है?
उत्तर – ददरिया शृंगार रस से भरा गीत है, जिसमें सवाल-जवाब की स्पर्धा होती है। खेत या तालाब किनारे गाए जाने वाले ये गीत आशु-कवित्व का उदाहरण हैं, जो श्रोताओं को लंबे समय तक आनंदित करते हैं। - सुआ गीत में ‘सुआ’ का क्या महत्व है?
उत्तर – सुवा गीत में ‘सुआ’ (तोते की प्रतिमा) आत्मा का प्रतीक है, जैसे कबीर का ‘हंसा’। महिलाएँ धान की टोकनी पर सुवा रखकर वृत्ताकार नाचती-गाती हैं, जो आत्मिक शुद्धि और जीवन की उर्वरता को दर्शाता है। - गौरा गीत का भावनात्मक प्रभाव क्या है?
उत्तर – गौरा गीत दीपावली पर गोंड़ महिलाओं द्वारा गाए जाते हैं, जो ऊर्जा से भरे होते हैं। विसर्जन के समय करुणा का भाव उभरता है, और देवी को अगले वर्ष के निमंत्रण के साथ महिलाओं की आँखें नम हो जाती हैं। - पंडवानी की कापालिक शैली क्या है?
उत्तर – कापालिक शैली पंडवानी की भावपूर्ण और नाटकीय शैली है, जिसमें तीजन बाई जैसे गायक कथा को जीवंत बनाते हैं। यह महाभारत की कहानियों को भावनात्मक और नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करती है। - नाचा विधा में प्रहसन की क्या भूमिका है?
उत्तर – नाचा में प्रहसन (गम्मत) तीखा व्यंग्य प्रस्तुत करता है, जिसमें जोक्कड़ सामाजिक मुद्दों पर हास्य के साथ कटाक्ष करता है। इसका समापन सकारात्मक आदर्श के साथ होता है, जो दर्शकों को शिक्षित और मनोरंजित करता है। - पंथी नृत्य की विशेषता क्या है?
उत्तर – पंथी नृत्य सतनामी संप्रदाय का भाव प्रवण नृत्य है, जो गुरु घासीदास की महिमा गाता है। माँदर और झाँझ की थाप पर तेज गति से नाचा जाता है, जो भाँगड़ा जैसी ऊर्जा से वातावरण को झकझोर देता है। - राउत नाचा का अनुष्ठानिक महत्व क्या है?
उत्तर – राउत नाचा दीपावली पर होता है, जिसमें राउत कुलदेवता की आराधना कर ‘काछन’ शक्ति प्राप्त करते हैं। उन्मादी राउत लाठी से प्रहार करता है, और थकने पर धूप-नारियल चढ़ाकर सामान्य होकर समूह में नाचता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न और उत्तर
- छत्तीसगढ़ी लोक कला को प्रकृति और मानव के रिश्ते से कैसे जोड़ा गया है?
उत्तर – छत्तीसगढ़ी लोक कला प्रकृति और मानव के गहरे रिश्ते को दर्शाती है, क्योंकि लोक-मानस ने धरती को माता और स्वयं को पुत्र माना। यह प्रेम गीत, गाथा, नाट्य और नृत्य में व्यक्त होता है, जैसे गेहूँ-मूँग के गीत और जँवारा की शक्ति पूजा। ये कलाएँ प्रकृति की उर्वरता, जीवन की लय और मानवीय भावनाओं को समेटती हैं। - ददरिया और सुवा गीत छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति में किस तरह विशिष्ट हैं?
उत्तर – ददरिया शृंगार रस से भरा गीत है, जिसमें सवाल-जवाब की आशु-कवित्व स्पर्धा होती है, जो श्रोताओं को बाँधती है। सुवा गीत में तोते की प्रतिमा आत्मा का प्रतीक है, और वृत्ताकार नृत्य जीवन की उर्वरता दर्शाता है। दोनों गीतों की धुनों की विविधता और महिलाओं का आधिपत्य इन्हें विशिष्ट बनाता है। - नाचा और चँदैनी लोक नाट्य की विशेषताएँ और अंतर क्या हैं?
उत्तर – नाचा में पुरुष ‘परी’ बनकर गाते-नाचते हैं, और प्रहसन में जोक्कड़ तीखा व्यंग्य करता है, जो रात भर चलता है। चँदैनी में लोरिक-चंदा की प्रणय गाथा प्रस्तुत होती है, जिसमें कम कलाकार कई भूमिकाएँ निभाते हैं। नाचा सामाजिक व्यंग्य पर केंद्रित है, जबकि चँदैनी प्रेम कथा पर। - पंथी और राउत नाचा में क्या समानताएँ और अंतर हैं?
उत्तर – पंथी और राउत नाचा दोनों माँदर की थाप पर नाचे जाते हैं और धार्मिक-सामाजिक परंपराओं से जुड़े हैं। पंथी सतनामी संप्रदाय का भाव प्रवण नृत्य है, जो सत्य की महिमा गाता है, जबकि राउत नाचा दीपावली पर कुलदेवता की शक्ति से उन्मादी लाठी नृत्य है। पंथी तेज और समूह-केंद्रित है, राउत व्यक्तिगत उन्माद पर। - आदिवासी नृत्य छत्तीसगढ़ की लोक कला को कैसे समृद्ध करते हैं?
उत्तर – आदिवासी नृत्य, जैसे बस्तर के गौर, ककसार, और सरगुजा के सैला, माँदर की धुन पर युवक-युवतियों द्वारा नाचे जाते हैं। इनका सधा हुआ प्रक्षेपण और सामाजिक-धार्मिक परंपराएँ संस्कृति को जीवंत बनाती हैं। करमा जैसे नृत्य शृंगार और भक्ति को जोड़ते हैं, जो छत्तीसगढ़ की लोक कला को वैश्विक मंच पर समृद्ध करते हैं।

