जीवन परिचय – भगवती लाल सेन
छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय कवि भगवती लाल सेन का जन्म 1930 में धमतरी जिले के देमार गाँव में हुआ था। उनकी कविताएँ किसान, मजदूर और उपेक्षित लोगों के बारे में है। सेन एक प्रगतिशील कवि थे, जिनकी कविताओं में आज के जीवन की विसंगतियों पर व्यंग्य प्रहार किए गए हैं और मानवीय अनुभूतियों के प्रति गहरी संवेदनशीलता भी दिखाई पड़ती है। उनकी छत्तीसगढ़ी रचनाओं में कविताओं के दो संकलन पहला- ‘नदिया मरै पियास’ और दूसरा ‘देख रे आंखी, सुन रे कान प्रसिद्ध हैं। उनकी कविताएँ और उनके गीत एक सच्चे इन्सान की देन हैं जो न जाने कितने लोगों को सच्चाई जानने के लिए प्रेरित करती है। 51 वर्ष की अवस्था में इस जन पक्षधर कवि का 1981 में निधन हो गया।
ये जिनगी फेर चमक जाए
ये जिनगी फेर चमक जाए
कोठी म धान छलक जाए, ये जिनगी फेर चमक जाए।
झन बैर भाव खेती म कर, मन के भुसभुस निकार फेंकौ
हाँसौ-गोठियावा जुरमिल के सुन्ता के रद्दा झन छेकौ।
गोठियइया घलो ललक जाए, सुनवइया सबो गदक जाए॥1॥
जिनगी भर हे रोना-धोना, लिखे कपार लूना बोना।
जाना है दुनिया ले सबला, काबर करथस जादू टोना।
हुरहा मन मिले झझक जाए हँडिया कस भात फदक जाए॥2॥
मुँह घुघवा असन फुलोवौ झन, कोइली अस कुहकौ बगिया म
चंदा अस मन सुरुज कस तन, जिनगी महके फुल बगिया म
भेंटौ तो हाथ लपक जाए, गुँगुवावत मया भभक जाए॥3॥
भुइँया के पीरा ल समझौ धरती के हीरा ल समझौ
काबर अगास ल नापत हौ, मीरा के पीरा ल समझौ
कोरा के लाल ललक जाए, बिसरे मन मया छलक जाए॥4॥
जुग तोर बाट ल जोहत है, पल छिन दिन माला पोहत हे
अमरित बन चुहे पसीना तोर मेहनत दुनिया ल मोहत हे
अँगना म खुसी ठमक जाए, सोनहा संसार दमक जाए,
कोठी म धान छलक जाए ये जिनगी फेर चमक जाए॥5॥
पद परिचय
यह कविता छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखी गई है और इसका केंद्रीय विषय है जीवन को सकारात्मकता, मेहनत, और प्रेम से समृद्ध और चमकदार बनाना। कवि जीवन की नश्वरता, कठिनाइयों, और सकारात्मक दृष्टिकोण के महत्त्व को रेखांकित करते हुए यह संदेश देते हैं कि मेहनत और प्रेमपूर्ण व्यवहार से जीवन फिर से उज्ज्वल हो सकता है। कविता में ग्रामीण जीवन, खेती, और सामाजिक मूल्यों का चित्रण है, जो छत्तीसगढ़ी संस्कृति को दर्शाता है। नीचे प्रत्येक छंद की विस्तृत व्याख्या दी गई है –
पहला छंद –
“कोठी म धान छलक जाए, ये जिनगी फेर चमक जाए।
झन बैर भाव खेती म कर, मन के भुसभुस निकार फेंकौ
हाँसौ-गोठियावा जुरमिल के सुन्ता के रद्दा झन छेकौ।
गोठियइया घलो ललक जाए, सुनवइया सबो गदक जाए॥”
व्याख्या – कवि कहते हैं कि यदि मेहनत से घर में अनाज की प्रचुरता हो जाए, तो जीवन फिर से चमक उठेगा। बैर-भाव (द्वेष) को मन से निकालकर और खेती में सकारात्मकता लाकर जीवन को सुंदर बनाया जा सकता है। मन की नकारात्मकता (भुसभुस) को दूर करना और हँसी-खुशी से दूसरों के साथ बातचीत करना चाहिए। सुमति (अच्छी बुद्धि) का रास्ता अपनाने से न केवल अपनी बातचीत आकर्षक होगी, बल्कि सुनने वाले भी प्रसन्न होंगे। यह छंद सकारात्मक सोच और सामाजिक मेलजोल पर जोर देता है।
दूसरा छंद –
“जिनगी भर हे रोना-धोना, लिखे कपार लूना बोना।
जाना है दुनिया ले सबला, काबर करथस जादू टोना।
हुरहा मन मिले झझक जाए हँडिया कस भात फदक जाए॥”
व्याख्या – कवि जीवन की नश्वरता की बात करते हैं। जीवन में रोना-धोना व्यर्थ है, क्योंकि भाग्य में जो लिखा है, वह होकर रहेगा। सभी को इस दुनिया से जाना है, तो जादू-टोना जैसे व्यर्थ कार्यों में समय क्यों बर्बाद करना? कवि कहते हैं कि हृदयों का मिलन होने पर मन झिझक छोड़ देता है, जैसे हांडी में भात उफनता है। यह प्रेम और एकता की भावना को दर्शाता है, जो जीवन को सार्थक बनाती है।
तीसरा छंद –
“मुँह घुघवा असन फुलोवौ झन, कोइली अस कुहकौ बगिया म
चंदा अस मन सुरुज कस तन, जिनगी महके फुल बगिया म भें
टौ तो हाथ लपक जाए, गुँगुवावत मया भभक जाए॥”
व्याख्या – कवि सलाह देते हैं कि घुघुती (घोंघे) की तरह मुंह बंद न रखें, बल्कि कोयल की तरह मधुर बोलें। मन को चंद्रमा की तरह शीतल और शरीर को सूरज की तरह तेजस्वी रखें, ताकि जीवन फूलों के बगीचे की तरह महक उठे। किसी से मिलने पर उत्साह से हाथ मिलाएं और प्रेम को खुलकर व्यक्त करें। यह छंद जीवन में मधुरता, स्नेह, और उत्साह लाने का आह्वान करता है।
चौथा छंद –
“भुइँया के पीरा ल समझौ धरती के हीरा ल समझौ
काबर अगास ल नापत हौ, मीरा के पीरा ल समझौ
कोरा के लाल ललक जाए, बिसरे मन मया छलक जाए॥”
व्याख्या – कवि कहते हैं कि परिवार और प्रियजनों (भुइँया/बहन) के दुख को समझें, क्योंकि वे धरती के हीरे जैसे मूल्यवान हैं। स्वर्ग की कल्पना (अगास ला नापत) करने के बजाय, मीरा के भक्ति और प्रेम के दुख को समझें। कोरा (शुद्ध मन) के प्रेम को अपनाएं, ताकि भूले हुए मन में भी प्रेम उमड़ पड़े। यह छंद पारिवारिक प्रेम और भक्ति पर जोर देता है।
पाँचवाँ छंद –
“जुग तोर बाट ल जोहत है, पल छिन दिन माला पोहत हे
अमरित बन चुहे पसीना तोर मेहनत दुनिया ल मोहत हे
अँगना म खुसी ठमक जाए, सोनहा संसार दमक जाए,
कोठी म धान छलक जाए ये जिनगी फेर चमक जाए॥”
व्याख्या – कवि कहते हैं कि युग तुम्हारे रास्ते का इंतजार कर रहा है। हर पल समय बीत रहा है, इसलिए मेहनत करो। तुम्हारा पसीना अमृत बनकर दुनिया को मोहित करता है। मेहनत से घर में खुशी और समृद्धि आएगी, संसार सुनहरा चमकेगा, और कोठी में धान की प्रचुरता होगी, जिससे जीवन फिर से उज्ज्वल हो जाएगा। यह छंद मेहनत और आशावाद का संदेश देता है।
शब्दार्थ
कोठी – धान रखने की कोठरी
भुसभुस – शंका
गोठियाना – बात करना
गदक – प्रसन्न
कापार – मस्तिष्क, मस्तक
लूना – फसल काटना
झझक – डरना
हुरहा – अचानक
हंडिया- हंडी
घुघुवा – उल्लू (पक्षी)
गुँगुवाना – सुलगना
भभकना – एकाएक आग भड़कना
पीरा – दर्द
बिसरे – भूले
बाट – रास्ता
जोहत – प्रतीक्षा करना
माला पोहना – माला गूँथना
अमरित – अमृत
पाठ से
- “कोठी म धान छलक जाए, ये जिनगी फेर चमक जाए।” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि यदि जीवन में मेहनत और सकारात्मकता लाई जाए, तो घर में धन-धान्य की प्रचुरता हो जाएगी और जीवन फिर से सुखमय, उज्ज्वल और चमकदार हो जाएगा। कवि कहते हैं कि कठिनाइयों के बाद भी प्रयास से जीवन की चमक लौट सकती है, जैसे घर में अनाज भरा हो तो समृद्धि आती है।
- “मुँह घुघुवा असन फुलोवौ झन” ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर – यह पंक्ति इसलिए कही गई है क्योंकि कवि जीवन को सकारात्मक बनाने के लिए मुस्कुराने और प्रसन्न रहने की सलाह दे रहे हैं। घुघुती की तरह मुंह पर फूल खिलाने से मतलब है कि चेहरे पर हमेशा हँसी बिखेरनी चाहिए, ताकि जीवन की कड़वाहट कम हो और आनंद बढ़े। यह जीवन को सुंदर बनाने का उपाय है।
- सुंता (सुमति) से रहने से क्या लाभ होता है? लिखिए।
उत्तर – सुमति (अच्छी बुद्धि) से रहने से मन की नकारात्मकता (भुसभुस) दूर होती है। इससे व्यक्ति सकारात्मक सोच रखता है, तनाव कम होता है, और जीवन में शांति व सफलता मिलती है। कवि कहते हैं कि सुमति से गोठियाइया (बातचीत) घलो लगेगी और सबको गदगद कर देगी, अर्थात् संबंध मजबूत होंगे।
- बगिया में कोइली जैसा कुहकने के लिए क्यों कहा जा रहा है?
उत्तर – बगिया (बगीचे) में कोयल की तरह कुहकने (मधुर बोलने) के लिए कहा जा रहा है क्योंकि जीवन को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए मीठी वाणी अपनानी चाहिए। कोयल की कूक से बगीचा महकता है, वैसे ही मीठी बोली से जीवन फूलों जैसा महक उठेगा, अर्थात् संबंधों में मधुरता आएगी और जीवन आनंदमय हो जाएगा।
- “गुँगुवावत मया भभक जाए” पंक्ति में खुलकर स्नेह प्रकट करने को कहा गया है।” इस कथन का क्या उद्देश्य है?
उत्तर – इस पंक्ति का उद्देश्य यह है कि जीवन में स्नेह और प्रेम को खुलकर व्यक्त करना चाहिए, ताकि मन की उदासी दूर हो और संबंध मजबूत हों। गुंगुवावत (गुड़गुड़ाहट) से मतलब छिपी बातें हैं, लेकिन भभक (भभकना) से खुलकर स्नेह दिखाने का आग्रह है, जिससे जीवन में खुशी और चमक आए।
- पसीने की अमृत से तुलना क्यों की गई है? समझाइए।
उत्तर – पसीने की अमृत से तुलना इसलिए की गई है क्योंकि मेहनत का पसीना जीवन को अमृत की तरह मूल्यवान बनाता है। कवि कहते हैं कि मेहनत से चुना अमृत बन जाता है, जो दुनिया को मोहित करता है। यह तुलना मेहनत के महत्त्व को दर्शाती है कि कड़ी मेहनत से जीवन समृद्ध और सफल होता है।
पाठ से आगे
- “जाना है दुनिया ले सबला पंक्ति का भाव – विस्तार कीजिए।
उत्तर – इस पंक्ति का भाव यह है कि जीवन में सब कुछ नश्वर है, अंत में सबको इस दुनिया को छोड़कर जाना पड़ता है। कवि कहते हैं कि रोना-धोना व्यर्थ है, क्योंकि कब्र में जादू-टोना नहीं चलेगा। विस्तार से, यह जीवन की क्षणभंगुरता सिखाता है कि सुख-दुख को संतुलित रखकर जीना चाहिए, ताकि मृत्यु के समय पछतावा न हो।
- “भुइँया के पीरा” से कवि का क्या आशय है? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – “भुइँया के पीरा” से कवि का आशय भाई-बहन या पारिवारिक संबंधों से है। भुइँया (बहन) का पीरा (पैर) अर्थात् बहन के चरणों का सम्मान। कवि कहते हैं कि जीवन में पारिवारिक बंधनों को महत्त्व देना चाहिए, क्योंकि ये धरती के हीरे जैसे मूल्यवान हैं। यह पारिवारिक प्रेम और एकता पर जोर देता है।
- “धरती के हीरा” से आप क्या समझते हैं? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – “धरती के हीरा” से मैं समझता हूँ कि वे चीजें जो धरती पर सबसे मूल्यवान हैं, जैसे परिवार, मेहनत और स्नेह। हीरा दुर्लभ और चमकदार होता है, वैसे ही जीवन के ये तत्व जीवन को उज्ज्वल बनाते हैं। मेरा विचार है कि यह सिखाता है कि भौतिक धन से ज्यादा आध्यात्मिक और पारिवारिक मूल्य महत्त्वपूर्ण हैं।
- मेहनतकश को दुनिया क्यों पसंद करती है?
उत्तर – दुनिया मेहनतकश को इसलिए पसंद करती है क्योंकि उसकी मेहनत से फसलें उगती हैं, समाज चलता है। कवि कहते हैं कि पसीने का अमृत दुनिया को मोहित करता है। मेहनतकश की लगन और त्याग से समाज समृद्ध होता है, इसलिए उसका सम्मान होता है। वह जीवन की चमक का आधार है।
- ” काबर अगास ला नापत हौ” पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर – इस पंक्ति से कवि कहना चाहते हैं कि कब्र (मृत्यु) के बाद आकाश (स्वर्ग) की माप नहीं हो सकती। अर्थात् जीवन में आध्यात्मिक ऊँचाई को महत्त्व देना चाहिए, न कि भौतिक सुखों को। यह जीवन की नश्वरता और आत्मिक विकास पर जोर देता है, कि मृत्यु के बाद कर्मों का फल मिलता है।
- “जिनगी भर हे रोना धोना” आप इस कथन से सहमत या असहमत होने का तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर – मैं असहमत हूँ। जीवन में रोना-धोना स्वाभाविक है, लेकिन कवि का आशय निरंतर उदासी से है, जो व्यर्थ है। तर्क यह है कि जीवन क्षणभंगुर है, इसलिए सकारात्मक रहकर मेहनत करनी चाहिए। रोना-धोना दुख बढ़ाता है, जबकि हंसी और प्रयास से जीवन चमक सकता है, जैसा कविता में कहा गया है।
भाषा के बारे में
- पाठ में आए हुए छत्तीसगढ़ी की विभक्तियों एवं संबंध सूचक अव्ययों को छाँटकर लिखिए एवं उनका हिंदी में भाषांतर कीजिए
उदाहरण- मं – में कस जैसा
उत्तर – ल – ले (हिंदी – ले) – संबंध सूचक, अर्थात् ‘के साथ’ या ‘की ओर’।
म – में (हिंदी – में) – विभक्ति, स्थान सूचक।
के – के (हिंदी – के) – विभक्ति, संबंध सूचक।
अस – जैसे (हिंदी – जैसे) – संबंध सूचक, तुलना के लिए।
कस – जैसा (हिंदी – जैसा) – संबंध सूचक, समानता दर्शाने के लिए।
ला – को (हिंदी – को) – विभक्ति, कर्मकारक के लिए।
हे – है (हिंदी – है) – संबंध सूचक, सहायक क्रिया।
तोर – तेरा (हिंदी – तेरा) – विभक्ति, स्वामित्व दर्शाने के लिए।
- “चंदा अस मन सुरुज कस तन” में कौन सा अलंकार है? पहचान कर उसकी परिभाषा लिखिए।
उत्तर – इसमें रूपक अलंकार है। रूपक अलंकार की परिभाषा – जब वस्तु या व्यक्ति का किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से सीधा संबंध स्थापित कर कहा जाए, बिना ‘जैसे’ या ‘सम’ के, तो वह रूपक अलंकार होता है। यहाँ चंदा को मन और सूरज को तन से सीधे तुलना की गई है, अर्थात् मन चंद्रमा जैसा शीतल और तन सूरज जैसा तेजस्वी हो।
- मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तिहारे आऊँ।
हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊँ॥
उपरोक्त भजन की पंक्तियों में मनुष्य इस संसार में आकर छल, प्रपंच, काम-क्रोध, लोभ, मोह में फँसकर अपनी काया के कलुषित होने से जनित आत्म अपराध बोध के भाव से है। वह इस मैली काया के साथ ईश्वर के मंदिर में प्रवेश करने से स्वयं ही शर्मिंदा हो रहा है। इस तरह के भाव प्रायः शांत रस के अन्तर्गत देखे जा सकते हैं। कविता ‘ये जिनगी फेर चमक जाए में भी जीवन के प्रति असारता / निःसारता के भाव विद्यमान है।
क. कविता पढ़कर उन पंक्तियों को चुनकर लिखिए जिसमें ये भाव देखे जा सकते हैं।
उत्तर – “जिनगी भर हे रोना-धोना, लिखे कपार लूना बोना।” (जीवन की निःसारता और व्यर्थ दुख।)
“जाना है दुनिया ले सबला, काबर करथस जादू टोना।” (संसार की क्षणभंगुरता और मृत्यु की निश्चितता।)
ये पंक्तियाँ जीवन की असारता और शांत रस के भाव जगाती हैं।
ख. इस कविता के अतिरिक्त शांत रस की अन्य कविताओं को भी ढूँढ़ कर लिखिए।
उत्तर – तुलसीदास की “रामचरितमानस” से – “संसार मायासरित नाव नहिं जानि।” (जीवन की माया से विरक्ति।)
कबीर का दोहा – “माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर। अशा चोरि नहिं कोई चोरि, जस होइ न सोइ न निर।” (संसार की निःसारता।)
ये शांत रस की कविताएँ हैं, जो वैराग्य और शांति के भाव जगाती हैं।
- पूर्व में आपने अभिधा और लक्षणा शक्ति को पढ़ा एवं जाना है। अब निम्न वाक्य को ध्यान से पढ़िये – “सुबह के 8 बज गए हैं।”
इस वाक्य का प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ होगा –
जैसे- एक आदमी जो रात में पहरेदारी करता है उसकी छुट्टी के समय से है, कार्यालय जाने वाले व्यक्ति के लिए कार्यालय जाने की तैयारी से है, गृहिणी इसका अर्थ गृह कार्य से जोड़कर देखेगी, बच्चों के लिए इसका अर्थ विद्यालय जाने की तैयारी से है एवं पुजारी इसे पूजा-पाठ से जोड़कर देखेगा।
इस प्रकार जहाँ वाक्य तो साधारण होता है लेकिन उसका अर्थ प्रत्येक पाठक या श्रोता के लिए अलग-अलग या भिन्न-भिन्न होता है, इसे ही व्यंजना शक्ति कहते है एवं इससे उत्पन्न भाव को व्यंग्यार्थ कहा जाता है।
योग्यता विस्तार
- फसल कटाई के दौरान कृषक की दिनचर्या का वर्णन कीजिए।
उत्तर – फसल कटाई के दौरान कृषक सुबह जल्दी उठता है, खेत में जाकर फसल काटने लगता है। वह हँसिया या मशीन से कटाई करता, अनाज इकट्ठा करता। दोपहर में भोजन के बाद छँटाई और बोरियों में भरता। शाम तक भंडारण या बाजार ले जाता। रात में थकान मिटाने के लिए आराम करता। यह कड़ी मेहनत वाला समय होता है, जिसमें परिवार की मदद ली जाती है।
- कृषि एवं कृषक जीवन से संबंधित कोई अन्य कविता का संकलन कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
- हिंदी साहित्य में नौ रस माने गए हैं। यथा-शृंगार, हास्य, करूण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भूत, शांत। यद्यपि प्राचीन रस सिद्धांत में ‘वात्सल्य‘ की गणना रसों के अन्तर्गत नहीं की गई हैं, किन्तु सूरदास के पश्चात् इसे भी रस माना गया। इस प्रकार अब रसों की संख्या बढ़कर दस हो गई है। शिक्षक की सहायता से सभी रसों के उदाहरणों को ढूँढ़कर पढ़िए एवं समझने का प्रयास कीजिए।
उत्तर – शृंगार रस – उदाहरण – “पिया बिना नहिं आवत चैन” (राधा-कृष्ण का प्रेम, आनंद का भाव।) समझ – प्रेम की माधुर्य।
हास्य रस – उदाहरण – “भक्त की बारात” (हरिशंकर परसाई, व्यंग्यपूर्ण हंसी।) समझ – विनोद और हंसी।
करुण रस – उदाहरण – “मैला आंचल” (फणीश्वरनाथ रेणु, गरीबी का दुख।) समझ – करुणा और दया।
रौद्र रस – उदाहरण – “राम का क्रोध” (रामचरितमानस, रावण पर क्रोध।) समझ – उग्रता।
वीर रस – उदाहरण – “सिंहासन बत्तीसी” (वीरता की कथाएँ।) समझ – शौर्य और उत्साह।
भयानक रस – उदाहरण – “चंद्रकांता” (भयावह दृश्य।) समझ – भय का भाव।
बीभत्स रस – उदाहरण – “रक्तबीज” (रक्त-पात का वर्णन।) समझ – घृणा।
अद्भुत रस – उदाहरण – “अलिबाबा और चालीस चोर” (चमत्कार।) समझ – आश्चर्य।
शांत रस – उदाहरण – “विरहागीत” (कबीर, वैराग्य।) समझ – शांति और निवृत्ति।
वात्सल्य रस – उदाहरण – “मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो” (सूरदास, मातृप्रेम।) समझ – स्नेहपूर्ण ममता।
(शिक्षक की सहायता से इन्हें विस्तार से पढ़ा जा सकता है।)
पाठ – 5.2

