डॉ. परदेशी राम वर्मा – जीवन परिचय
डॉ. परदेशी राम वर्मा जी का जन्म 18 जुलाई, 1947 को भिलाई इस्पात संयंत्र के करीबी गाँव लिमतरा में हुआ। इन्होंने छत्तीसगढ़ी एवं हिंदी में उपन्यास, कथा संग्रह, संस्मरण, नाटक एवं जीवनी आदि का लेखन किया है। छत्तीसगढ़ी एवं हिंदी में नव साक्षरों के लिए भी पुस्तकें लिखी हैं। इनके द्वारा पंथी नर्तक स्व देवदास बंजारे पर लिखित पुस्तक ‘आरूग फूल’ को मध्यप्रदेश शासन द्वारा माधवराव सप्रे सम्मान प्राप्त है। इनका छत्तीसगढ़ी उपन्यास ‘आवा’ पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर में एम. ए. के पाठ्यक्रम में शामिल है। 2003 में इसी विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें मानद डी.लिट की उपाधि प्रदान की गई। इनके लेखन में छत्तीसगढ़ी जनजीवन, लोक संस्कृति की दुर्लभ, मनोहारी और रोचक प्रस्तुति हुई है। वैविध्यपूर्ण लेखन के लिए प्रदेश और देश में इनकी विशिष्ट पहचान है। सम्प्रति स्वतंत्र लेखनरत।
मरिया
संझौती जल्दी नाँगर ल ढील देकर बेटा रामचरण अपन एकलौता पोसवा बेटा ला समझइस।
रामचरण के बाई मुच ले हाँस दिस हाँसत देखि त ओकर बेटा सिकुमार पूछिस- काबर हाँसे दाई? ददा ह बने त किहिस। सँझौती जल्दी ढील दे नाँगर ल काहब म हाँसी काबर आईस भई?
दाई किहिस – देख बेटा, तोरो अब लोग- लइका होगे। तोर उम्मर बाढ़ गे फेर तोर ददा के मया ल मैं देखथैव ग। ददा बर लइका ह जनमभर लइके रिथे रे। तेमा एक ठन बेटा एक बेटा अउ एक आँखी के गजब मया ग डोकरा के मया ल देखेंव त हाँस परेंव।
अभी ये गोठ- बात चलते रिहिस। डोकरा उठिस खटिया ले अउ दम्म ले गिर गे एक ठन गोड़ लझम पर गे। डोकरा ल देख के दाई चिचअइस सिकुमार दउड़ त बेटा, लथरे अस करथ हे गा। सिकुमार दउड़ के अइस ददा के एक पाँव, एक हाथ झूल गे। ददा मचिया म एकंगी परे रहिगे। देखो-देखो होगे।
चरणदास बइद ल बलइन। रमेसर मंडल आगे मनराखन चोंगी पियत खखारत अइस जे मुँह ते बात लोकवा तो होगे रे सिकुमार, बइद ह बतइस।
मनराखन किहिस- ओकरे सेती मंय किथँव
चार सावन सम्मारी जरूरी हे सवनाही नई मनावन। किसानी करबो काहस रे सिकुमार देख डोकरा ल का होगे। धरम-करम ल बंठाधार करे मे रे बाबू बिपत आथे जी।
रमेसर मंडल किहिस- ये ला चरौदा अस्पताल लेगव जी जल्दी करव, रामू रोसियागे, किहिस- का चरौदा अस्पताल जाही। मर गेव तुम अंगरेजी दवा के मारे। जाही डोकर हा बघेरा। गोली खाही अउ तेल लगाही तहाँ देख कुदल्ला मारही।
अंकलहा खिसियागे, किहिस- देखो जी, जतर-कतर बात झन करव। कथे – चढौ तिवारी चढ़ौ पाण्डे, घोड़वा गइस पराय। तउन हाल झन होय। अरे ददा जहाँ लेगना हे लेगव। फेर थोरूक सिकुमार ल पूछ लव। सिकुमार ल पूछे के नवबदे नइ अइस। डोकरा के छोटे भाई बल्दू हा किहिस- देखव जी, सब बात के एकै ठन हम तो सुक्खा सनाथन। घर म भुँजी भाँग नहीं अउ
ओकर बात ल काट के अंकलहा किहिस देख बल्दू घर में राहय ते झन राहयख सेवा करे बर परही। लेगव येला जल्दी।
मचोली में एकंगू सुते-सुते डोकरा काँखिस। किहिस- देखव जी, अब मय जादा दिन के सगा नोहँव। इही गाँव में जनमेव। इहाँ खेलेंव-कूदेंव। इहें जवान होयेंव। इहें बूढ़ा गेंव अउ इहें बीमार हो गेंव त भइया हो, इहें मरन दव मोला मोर दसो अंगरी के विनय हे।
अइसे कहत डोकरा ह दुनों हाथ ल जोरे चाहिस, फेर हाथ ह उठय त लझम परगे रहय एक हाथ हा। डोकरा के आँसू निकलगे।
सिकुमार ल बइद हा दवा बता दिस, अउ किहिस तेलमालिस ज्यादा होय चाही बाबू, अउ सुन सँझौती लान लेबे कारी परेवा करिया परेवा खवा अउ लहू म मालिस कर देख फेर तोर ददा कइसे बने होही।
सब झन जइसने आय रिहिन तइसने चल दिन सिकुमार भिड़गे सेवा करब म एक पंदरही नई बीतिस डोकरा भगवान घर रेंग दिस।
दुब्बर बर दू असाढ़ होगे। एती खेती खार फदके राहय। ओ डाहर डोकरा के कारज माड़ गे। गाँव म बइठना बलइन। सिकुमार अरजी करिस- हमर समाज म मरिया भात ल बंद करव किथें सब। महूँ ह विनती करत हँव भई। मरिया भात ल समाज बंगा छोड़ देतिस।
रमेसर मंडल सदा दिन के समाजिक मनखे। रखमखा के उठगे, किहिस देख रे सिकुमार समाज के कान्हून ल हमला झन बता रे बाबू। कान्हून ल हम जानथन। कान्हून हिरसिंग दिरखिन बारे ल सब हम पढ़े बइठे हन जी। करनी दिखय मरनी के बेर। मँय गाँव के पटेल मँय गाँव समाज के कुरहा। बाबू रे तोर बाप ह जियतभर कान्हून बर ठठ्ठा मड़इस, अब मरे म झन ठठ्ठा कर दे बर परही भात। सब घर फुदर-फुदर के खाय हव, अब खवाय बर परत हे त कान्हून ल गोहराहू रे।
सब झन रमेसर के संग दे दिन। सिकुमार हो गे अकेल्ला भात देवर माने ल परगे।
घर डाहर आवत खानी रमेसर ल सुकालू किहिस- अच्छा जम्हेड़े भाँटो, बिछलत रिहिस बुजा ह।
बिछलत रिहिस बुजा ह। अब उड़ाबो-लडुवा- पपची डट के।
रमेसर ओकर पीठ म एक मुटका मारिस अउ हाँस के कहिस-उहाँ तो मुँह म लडुवा गोंजे रेहे रे। अउ अब पपची बर नियत गड़िया देस। तोर बर केहे हे रे बाबू, “छिये बर, न कोड़े बर, धरे बर खोखला।”
हाना सुन-सुना के हाँसत मुचमुचावत सारा – भाँटो घर आ गे सिकुमार के होगे जग अँधियार।
घर आके सिकुमार अपन दाई ल सब बतइस दाई किहिस- पंच मन कुछु नइ किहिन रे। सिकुमार किहिस- दाई, सब किहिन तोर अँगना म खाबो, तिहि बहुत बड़ बात ये। पबरित करबो काहत हैं।
दाई किहिस- बुड़ा के काहत हें नहकौनी दे। वाह रे जमाना दुनिया कहाँ ले कहाँ आगे रे। हमरो उम्मर पहागे सब देखत देखत पढ़ाई-लिखई बहुत होगे बाबू फेर दुनिया उहें के उहें हे। अरे! जब समाज के बड़े मन रइपुर के अधिवेशन में तय कर दीन के मरिया के भात खववनी बंद करे चाही त बंद कर देबर चाही। फेर वाह रे मनुख जात। करे के आन, केहे के आन नियम बनाये हें के नेवता खाय बर साते झन जाहीं, फेर जाथें सत्तर झन। मट-मटमट-मट मोटर गाड़ी से भरा के नेवता खाय बन जायें। अब तो बाबू रे, माई लोगन घलो जात हें नेवता खाय बर। एसो बड़े मंगह पारा बिहाव होइस त टूरी मन नेवता खाय बन आगें। अउ बरात म जो टूरा मन नाचिन।
सब मंद मउहा पीये रथें, नाचबे करहीं। सिकुमार समझइस।
दाई किहिस’ – मंदे मउहा त पीही रे बाबू। तोर बाबू त चल दिस गजब बड़ नाचा के कलाकार ग। खुदे गीत बनावय। हमरे गाँव के समारू अउ रिखी जोक्कड़ राहँय कुछु नई जमिस त तोर बाबू गीत बनइस ग…. रिखि राम सोच के काहत हे समारू ल।
दूध-दही पीबोन भइया, नई पीयन दारू ल।
फेर होत हे उल्टा, दूध-दही नँदा गे सब धर लिन दारू। दारू पी के पंचइती करथें। अउ मरिया के भात ल खाय बिन नइ राहन किथें। काहत – काहत दाई रो डारिस।
मरता क्या न करता। आखिर दो एक्कड़ खेत बेंचागे। खात-खवई म सिरागे रुपिया। खेत गय त बइला ला घलो बेच दिस सिकुमार, खेतिहर किसान लें मजदूर होंगे। बनिहार होगे। रेडिया म गीत बाजय…..
अब बनिहार मन किसान होगे रे.
हमर देस म बिहान होगे रे।
त सिकुमार से डर। ओ सोचय कोन जनी कहाँ के मजदूर किसान होगे। मँय तो किसान ले मजदूर होगेंव बनिहार होगेंव।
ठलहा का करतिस, बनिहारी करे लागिस। एक दिन गाँव के चटरू भूखन ह ओला किहिस- सिकुमार, पुलुस बनबे?
सिकुमार अकबकागे। पूछिस- कोन मोला पुलुस बनाही भाई? भूखन किहिस करे करम के नागर ल भुतवा जोतय तोर बर मौका हे। मँय रोज जाथंव भेलई। उहाँ हे रामनगीना सिंह। हमर दोस। ओकर पुलुस कंपनी हे। पाँच सौ रुपिया लागही ओला देबे त ओ हा तोला पुलुस बना दिही तय तौ चौथी पास हस। धीरे-धीरे बने काम करबे त हवलदार हो जबे।
सिकुमार किहिस- कस जी, कइसे पाँच सौ म पुलुस बन जाहूँ। ठठ्ठा झन मड़ा रे भाई।
भूखन किहिस- तोला पेड़ गिनना हे ते आमा खाना हे जी। पुलुस के काम। ड्रेस पुलुस के ठाठ के काम रिही। आजकल प्रावेट पुलुस हें। उही मन सब सुरच्छा के काम देखथें। आगू आ, आगू पा किथें नहीं, आगम भँइसा पानी पीये, पीछू के पावय चिखला। अभी भरती चलत है। काल तँय बता दे बाबू।
सिकुमार संसों म परगे। अपन बाई ल बतइस बाई किहिस मोर सों साँटी बाँचे हे ले जाव। बेच लव। तुम रइहू ते कतको साँटी आ जही।
सिकुमार किहिस- इही ले कहे गे रहे तन बन नइये लत्ता, जाय बर कलकत्ता। खाय बर घर म चाउर नईये मैं पुलुस बने बन तोरे गोड़ के गहना उतारत हँव।
बाई किहिस- दुख सब उपर आथे। राजा नल पर बिपत परे तब भूँजे मछरी दाहरा म कुदगे। समे ताय सिकुमार बाई के बात ल मान गे। साँटी बेचागे। दूसर दिन भूखन संग गीस। रामनगीना संग ओला देख के किहिस- वाह जवान खाने को बासी, मगर देखो शरीर जबर जवान हे भाई। भरती कर लेते हैं भाई बाकी काम तगड़ा है, हिम्मत का है खेत नहीं जोतना है। दादागिरी का मुकाबला करना है कर सकोगे न।
सिकुमार अपन काम के जगा म गीस। तोड़फोड करइया साहेब मन गाड़ी म बइठ गे रहय। सिकुमार पाछू के डाला म बइठगे। गाड़ी चल परिस जाके नरवा तीर के एक गजब बड़ घर में गाड़ी रुक गे साहेब मन अपन दल के तोड़ फोड़ वाला मन ल किहिस- धरव रे भइँस मन ल चढ़ावव गाड़ी म तोड़ दव सब खटाल ल।
अतका सुनना रिहिस के खटाल मालिक लउठी बेड़गा घर के आगे लगिन गारी देय। अब सब साहेब गाड़ी म चढ़ गें। गाड़ी भर्र के भगा गे बाँच गे सिकुमार खटालवाला मन ओही ल पा परिन। गजब बजेड़िन अउ छोड़ दिन, मूडी कान फूट गे सिकुमार के रोवत ललावत कइसनों करके अपने दफ्तर अइस अपन साहेब रामनगीना ल किहिस- साहेब मार खवाय बर कहाँ भेज दे रहेव। गजब ठठाय हे ददा। देख लव।
रामनगीना किहिस- अरे घोंचू, तुम्हारी आज से छुट्टी मार खाके आनेवाले का यहाँ क्या काम। जाओ अपने गाँव। भूल जाओ नौकरी।
सिकुमार किहिस- सरजी, आनके कारन मार खायेंव। दवा दारू बर कुछु देहू के नहीं।
अब रामनगीना गुसियागे। किहिस- भागता है कि नहीं, कि दूँ एकाद हाथ मैं भी बड़े आये हैं दवा का पैसा मांगने अरे जिनसे मार खाकर आया है उनसे माँग। हम क्यों देंगे?
ये तरा ले सिकुमार के छूट गे नौकरी। घर म ओकर महतारी अऊ घरवाली नइ बोलिन।
गाँव के हितु पिरितु सकलइन अउ किहिन- देखों जी बाहरी मनखे मन तोला कइसे मरवा दिन। तोला रोजी माँगे बर बाहरी मनखे करा नई जाना रिहिस।
सिकुमार किहिस- देखो जी, कहावत हैं- भूख न चीन्हें जात कुजात, नींद न चीन्हें अवघट घाट बाहरी हा तो हाड़ा गोड़ा टोरवा दिस अउ तूमन सदा दिन के संग के रहैया मन का कमती करेव। बाप के मरिया के भात नई छोड़ेव। मोर खेती बेचागे में किसान ले मजदूर होगेंव।
गरीब बर सब के चलथे, घरवाला और बाहरी सब गरिबहा ल ठठाथे। अपन अउ बिरान सब भरम ताय। अब भइया हो अंते-तंते बात छोड़व। जउन होगे तउन होगे। जिनगी भर सीखे बर परथे। मोर बर गाँव के पटेल अउ भेलई के रामनगीना सिंह दूनों बरोबर हे।
मोरो दिन बहुरही। किसान ले मैं बनिहार हो गेंव। तुहर बात मानके मरिया – हरिया के भात खवा के लइका मन के मुँह म पेच गोंज पारेंव। अब कहाँ हे मरियाभात खवइया समाज? तेकर सेती भइया में सोच डारेंव, बाँह भरोसा तीन परोसा न जात, न कुटुम, न अपन न बिरान। धन ले धरम हे अब ककरो उभरौती म नइ आवँव। देख सुनके रेगिहँव। अब तो चारों मुड़ा अंधियार हे आती के धोती, जाती के लिंगोटी। ओकर दुख ल देख के बिसाहू किहिस- सिकुमार ! भले अकेल्ला रहि जते फेर खेत बेंच के मरिया के भात झन खवाते। जीयत हैं तेकर बर सोचना चाहीं देखा-देखी नइ करे चाही सिकुमार।
सिकुमार किहिस- चेथी के आँखी अब आगू डाहर अइस बिसाहू। अब तो एक ठन परन है, मर भले जहूँ फेर मरिया के भात नइ खवावँव।
पाठ का सार
“मरिया” कहानी छत्तीसगढ़ी ग्रामीण जीवन और सामाजिक रिवाजों की कठिनाइयों को दर्शाती है। रामचरण को लकवा मारता है, और गाँव वाले अंग्रेजी दवाओं के बजाय वैद्य के उपचार (काले कबूतर के खून से मालिश) पर जोर देते हैं। रामचरण की मृत्यु के बाद, उसका बेटा सिकुमार समाज के दबाव में मरिया भात (मृत्यु के बाद भोज) आयोजित करने के लिए खेत और बैल बेच देता है, जिससे वह किसान से मजदूर बन जाता है। आर्थिक तंगी में वह भिलाई में निजी सुरक्षा गार्ड की नौकरी की कोशिश करता है, लेकिन वहाँ भी ठगा जाता है और मार खाकर लौटता है। सिकुमार समाज की मरिया प्रथा को बंद करने की विनती करता है, लेकिन गाँव के पंच और रमेसर मंडल जैसे लोग रिवाज को बनाए रखते हैं। उसकी माँ समाज की रूढ़ियों और बदलते समय की विडंबना पर रोती है। अंत में, सिकुमार को अपनी गलती का एहसास होता है और वह ठान लेता है कि भविष्य में मरिया भात नहीं कराएगा। कहानी सामाजिक रिवाजों, गरीबी, और ठगी की मार से जूझते एक किसान परिवार की त्रासदी को दर्शाती है।
शब्दार्थ
सँझउती – शाम
पोसवा – पालित
डोकरा – वृद्ध
लझम – काम नहीं करना (सुस्त)
मचिया – छोटा खाट
रोसियाना – गुस्सा होना
गोटी – गोली
अरजी – विनय (प्रार्थना)
गोहराहूँ – निवेदन करूँगा
जम्हेड़े – डाँटा
तनखा – वेतन
पाठ से
- रामचरण के लकवे का इलाज अस्पताल की जगह वैद्य के द्वारा क्यों कराना पड़ा?
उत्तर – रामचरण के लकवे का इलाज अस्पताल की जगह वैद्य द्वारा इसलिए कराना पड़ा क्योंकि गाँव वालों, खासकर रमेसर मंडल और अंकलहा, ने अंग्रेजी दवाओं पर अविश्वास जताया। रमेसर ने कहा कि अंग्रेजी दवाएँ हानिकारक हैं और वैद्य के पारंपरिक उपचार जैसे तेल मालिश और काले कबूतर के खून से इलाज बेहतर है।
- सिकुमार ने बैठक में क्या विनती की?
उत्तर – सिकुमार ने गाँव की बैठक में विनती की कि मरिया भात की प्रथा को बंद किया जाए। उसने कहा कि समाज को इस रिवाज को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि यह आर्थिक बोझ डालता है और परिवारों को बर्बाद करता है, जैसा कि उसके साथ हुआ।
- ‘दुब्बर बर दू असाढ़ होगे का क्या मतलब है?
उत्तर – इस लोकोक्ति का मतलब है कि पहले से ही विपत्ति में फँसे व्यक्ति पर और अधिक विपत्तियाँ आना। सिकुमार के संदर्भ में, यह दर्शाता है कि पिता की मृत्यु के बाद मरिया भात के कारण उसकी आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई, जिससे वह किसान से मजदूर बन गया।
- सिकुमार किसान से मजदूर कैसे बन गया?
उत्तर – सिकुमार को मरिया भात की प्रथा के लिए समाज के दबाव में दो एकड़ खेत बेचना पड़ा। इसके बाद खेती के लिए बैल भी बेच दिए। इस आर्थिक तंगी के कारण वह खेती छोड़कर मजदूरी करने लगा और बाद में बनिहार (मजदूर) बन गया।
- सिकुमार की माँ क्या कहते-कहते रो पड़ी?
उत्तर – सिकुमार की माँ कहते-कहते रो पड़ी कि समाज ने मरिया भात की प्रथा को बनाए रखा, जिसके कारण उनके खेत बिक गए। उसने कहा कि दुनिया बदल रही है, लेकिन समाज पुरानी रूढ़ियों में अटका है। उसे दुख था कि सिकुमार को इस प्रथा के कारण इतना नुकसान उठाना पड़ा।
- “गरीब बर सबके चलथे, घर वाला और बाहिरी सब गरीबहा ल ठठायें।” सिकुमार ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर – सिकुमार ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर – सिकुमार ने यह इसलिए कहा क्योंकि गरीब को हर कोई ठगता है, चाहे वह घरवाले हों या बाहरी लोग। समाज ने मरिया भात के लिए दबाव डाला, जिससे उसका खेत बिक गया। भिलाई में रामनगीना ने उसे नौकरी का लालच देकर ठगा। इससे उसे लगा कि गरीब का कोई भरोसेमंद नहीं।
- ‘मरिया‘ प्रथा ने सिकुमार की जिंदगी को किस तरह बदल दिया?
उत्तर – मरिया प्रथा ने सिकुमार की जिंदगी को बर्बाद कर दिया। समाज के दबाव में उसने मरिया भात के लिए खेत और बैल बेचे, जिससे वह किसान से मजदूर बन गया। इसके बाद भिलाई में नौकरी की कोशिश भी असफल रही, और वह आर्थिक व सामाजिक रूप से टूट गया।
पाठ से आगे
- कहानी में मरिया प्रथा के बारे में बताया गया है। इस प्रथा के अन्तर्गत मृतक के परिवारजन को समाज वालों को भोजन कराने की बाध्यता है। अपने आस-पास में व्याप्त ऐसी ही किसी एक समस्या पर साथियों से चर्चा कर प्राप्त विचारों को लिखिए।
उत्तर – चर्चा के बाद पता चला कि मेरे क्षेत्र में दहेज प्रथा एक बड़ी समस्या है। कई परिवार शादी में दहेज देने के लिए कर्ज लेते हैं, जिससे आर्थिक बोझ पड़ता है। साथियों का कहना था कि इससे लड़कियों पर दबाव बढ़ता है और सामाजिक असमानता बढ़ती है। इस प्रथा को रोकने के लिए शिक्षा और जागरूकता जरूरी है।
- वैद्य ने रामचरण के लकवे के उपचार के लिए काले कबूतर के खून से मालिश करने का उपाय बताया। आपके आस-पास भी कई बीमारियों के ऐसे ही अंधविश्वास भरे इलाज किए जाते होंगे। इस प्रकार के इलाजों की सूची बनाइए तथा इनसे होने वाले नुकसान पर शिक्षक तथा साथियों से चर्चा कीजिए।
उत्तर – बुखार के लिए तावीज पहनना।
पीलिया में नीम के पत्तों का रस पीना।
साँप काटने पर झाड़-फूँक।
नुकसान – चर्चा में पाया गया कि ये उपचार वैज्ञानिक नहीं हैं। ये समय और धन की बर्बादी करते हैं। गंभीर बीमारियों में देरी से मृत्यु का खतरा बढ़ता है। शिक्षक ने सुझाव दिया कि चिकित्सा विशेषज्ञों पर भरोसा करना चाहिए।
- कहानी में सिकुमार को भूखन ने पुलिस की नौकरी करने की सलाह दी ताकि वो ठाठ से रह सके। अपने साथियों से चर्चा कीजिए कि वो क्या बनना चाहते है और क्यों?
उत्तर – रवि – डॉक्टर, क्योंकि वह लोगों की जान बचाना चाहता है।
प्रिया – शिक्षक, क्योंकि वह बच्चों को शिक्षित कर समाज बदलना चाहती है।
अजय – इंजीनियर, क्योंकि उसे तकनीक और निर्माण में रुचि है।
सभी ने कहा कि वे समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं और आर्थिक स्थिरता पाना चाहते हैं।
- कहानी में सिकुमार गाँव छोड़कर पुलिस बनने भिलाई जाता है। आपके गाँव तथा समाज के लोग भी विभिन्न कारणों से शहर जाते होंगे। अपने साथियों से चर्चा कीजिए और उन कारणों को लिखिए।
उत्तर – नौकरी की तलाश, क्योंकि गाँव में रोजगार कम हैं।
बेहतर शिक्षा के लिए, क्योंकि शहरों में अच्छे स्कूल और कॉलेज हैं।
चिकित्सा सुविधाओं के लिए, क्योंकि गाँव में अस्पताल सीमित हैं।
आर्थिक उन्नति और बेहतर जीवनशैली की चाह।
साथियों ने कहा कि शहरों में अवसर अधिक हैं, लेकिन सामाजिक और पारिवारिक दूरी बढ़ती है।
भाषा के बारे में
- मरिया कहानी में कई लोकोक्तियों का प्रयोग हुआ है। जैसे ‘ दुब्बर बर दो असाढ़ होगे” अर्थात् विपदाग्रस्त व्यक्ति पर और विपदा आना तथा “चढ़ौ तिवारी चढौ पाण्डेय, घोड़वा गईस पराय” अर्थात् प्राप्त अवसरों को गँवाने वालों को पछताना पड़ता है। लोकोक्तियाँ लोक अनुभव से बनती हैं जिसे किसी समाज कुछ अपने लंबे अनुभव से सीखा होता है, उसे ही एक वाक्य में बाँध दिया जाता है। लोकोक्तियों को कहावत या जनश्रुति भी कहते हैं। लोकोक्ति, संपूर्ण वाक्य होता है तथा इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से अथवा किसी अन्य वाक्य के साथ भी किया जा सकता है। लोकोक्ति को छत्तीसगढ़ी में हाना कहते हैं।
(क) मरिया कहानी में आई लोकोक्तियों को खोजिए और उनके अर्थ लिखिए।
उत्तर – लोकोक्ति – “दुब्बर बर दू असाढ़ होगे”
अर्थ – पहले से विपत्ति में फँसे व्यक्ति पर और अधिक विपत्तियाँ आना।
लोकोक्ति – “चढ़ौ तिवारी चढौ पाण्डे, घोड़वा गईस पराय”
अर्थ – अवसरों को गँवाने वालों को बाद में पछताना पड़ता है।
लोकोक्ति – “छिये बर, न कोड़े बर, धरे बर खोखला”
अर्थ – जो व्यक्ति बिना मेहनत के केवल दिखावे के लिए काम करता है, वह खोखला रह जाता है।
(ख) अपने आसपास, समाज मे प्रचलित लोकोक्तियों का संकलन कीजिए तथा उनके अर्थ साथियों और शिक्षकों के सहयोग से लिखिए।
उत्तर – लोकोक्ति – “आ बैल मुझे मार”
अर्थ – स्वयं मुसीबत को निमंत्रण देना।
लोकोक्ति – “अंधेर नगरी चौपट राजा”
अर्थ – अव्यवस्थित और अन्यायपूर्ण शासन या स्थिति।
लोकोक्ति – “जितने मुँह उतनी बातें”
अर्थ – हर व्यक्ति की अपनी अलग राय होना।
- इन वाक्यों को ध्यान से देखिए-
(क) रामचरण के बाई मुच ले हाँस दिस।
डोकरा उठिस खटिया ले अउ दम्म ले गिर गे।
इन वाक्यों में ‘मुच ले‘ तथा ‘दम्म ले‘ जैसे शब्दों का प्रयोग, क्रिया के ध्वन्यात्मकता को प्रकट करने के लिए किया गया है। इन शब्दों के प्रयोग से भाषा सौंदर्य में वृद्धि होती है। हम भी ऐसे ही बहुत सारे शब्दों का प्रयोग अपनी बोल-चाल की भाषा में करते हैं।
(क) अपने साथियों से चर्चा करें और ऐसे अन्य शब्दों की सूची बनाकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर – सूची –
धम्म से (जोर से)
चटाक से (तुरंत)
फट से (शीघ्रता से)
वाक्यों में प्रयोग –
वह धम्म से दरवाजा बंद करके चला गया।
बच्चा चटाक से खिलौना छीनकर भागा।
उसने फट से सवाल का जवाब दे दिया।
(ख) साथियों के साथ समूह में चर्चा करें और ऐसे ही शब्दों वाले वाक्यों से एक अनुच्छेद की रचना करें।
उत्तर – सुबह-सुबह गाँव में हलचल थी। रामू धम्म से दरवाजा खोलकर बाहर निकला। उसने चटाक से अपनी साइकिल उठाई और फट से बाजार की ओर भागा। रास्ते में उसका दोस्त श्याम झट से सामने आया और बोला, “कहाँ भागे जा रहे हो?” रामू ने हँसकर कहा, “बाजार से सामान लाने!” दोनों ठहाका मारकर हँस पड़े और साथ-साथ चल दिए।
योग्यता विस्तार
सिकुमार को समाज के लोगों द्वारा दबाव डालकर मरिया खिलाने के लिए मजबूर किया गया। इसी कारण उसे अपने खेत बेचने पड़े और वह किसान से मजदूर बन गया। किसानों को और कौन-कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इन समस्याओं का उनके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है, अपने आसपास के लोगों से चर्चा कीजिए और उनका लेखन भी कीजिए।
उत्तर – चर्चा से प्राप्त समस्याएँ –
कम वर्षा और सूखा – अनियमित मानसून या सूखे से फसलें नष्ट होती हैं, जिससे आय घटती है।
कर्ज का बोझ – खेती के लिए बीज, खाद, और उपकरणों के लिए कर्ज लेना पड़ता है, जो चुकाना मुश्किल होता है।
बाजार में कम दाम – फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलता, जिससे मेहनत बर्बाद होती है।
सामाजिक रिवाज – मरिया भात जैसे रिवाजों के लिए खेत बेचने पड़ते हैं।
आधुनिक तकनीक की कमी – छोटे किसानों के पास मशीनों और तकनीक का अभाव होता है।
प्रभाव –
आर्थिक तंगी – कर्ज और कम आय से परिवार की जरूरतें पूरी नहीं होतीं।
मानसिक तनाव – आर्थिक दबाव से अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है।
मजदूरी की ओर पलायन – खेती छोड़कर शहरों में मजदूरी करनी पड़ती है।
सामाजिक असमानता – समाज में सम्मान और स्थिति कम होती है।
चर्चा में सुझाव दिया गया कि सरकारी योजनाएँ, सहकारी समितियाँ, और जागरूकता से इन समस्याओं को कम किया जा सकता है।

