शेषनाथ शर्मा ‘शील‘ – जीवन परिचय
छत्तीसगढ़ी के क्लासिक कवि शेषनाथ शर्मा जी का जन्म पौष शुक्ल द्वादसी संवत 1968 (14 जनवरी 1914) जांजगीर में हुआ। आप संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, उर्दू, मराठी और हिंदी साहित्य के अधिकारी विद्वान थे। आपकी रचनाएँ कानपुर के सुकवि, काव्य कलाधर, राष्ट्र धर्म, अग्रदूत, संगीत सुधा, विशाल भारत जैसे उच्च कोटि की पत्रिकाओं में छपती थी। कविता लता, और रवीन्द्र दर्शन आपका प्रकाशित काव्य ग्रंथ है। आपने हिंदी के अतिरिक्त, छत्तीसगढ़ी में भी लेखन कार्य किया। रस सिद्ध कवि शील जी ने छत्तीसगढ़ी में बरवै छंद को प्रतिष्ठित किया। डॉ. पालेस्वर शर्मा जी के शब्दों मे शील जी की प्रारंभिक कविताएँ छायावादी है। आपकी मृत्यु 7 अक्टूबर, 1997 में हो गई।
खंड-अ
बिदा के बेरा
सुसकत आवत होही, भइया मोर,
छइहा मा डोलहा, लेहु अगोर।
बहुत पिरोहिल ननकी, बहिनी मोर,
रो-रो खोजत होही, खोरन-खोर।
तुलसी चौंरा म देव, सालिग राम,
मइके ससुर पूरन, करिहौ काम।
अँगना कुरिया खोजत, होही गाय,
बछरू मोर बिन काँदी, नइच्च खाय।
मोर सुरता म भइया, दुख झन पाय,
सुरर- सुरर झन दाई, रोवै हाय।
तिया जनम के पोथी, म दुई पान,
मइके ससुर बीच म पातर प्रान।
खंड-ब
ससुरार म मइके के सुरता
इहाँ परे हे आज राउत हाट,
अरे कउवाँ बइठके, कौंरा बाँट।
दूनों गाँव के देव, करव सहाय,
मोर लेवाल जुच्छा, कभु झन जाय।
इहाँ हावय कबरी, दोहिन गाय,
ननकी ऊहाँ गोरस, बिन नइ खाय।
मइया आइस कुलकत, राँधे खीर,
हाय विधाता कइसन धरिहौं धीर।
पानी छुइस न झोंकिस, चोंगी पान,
हाय रे पोथी धन रे, कन्या दान।
मोर संग म नहावै, सूतै खाय,
ते भाई अब लकठा, म नई आय।
भाई आधा परगट, आधा लुकाय,
ठाढ़े मुरमुर देखत, रहिथे हाथ।
खंड – स
मइके म ससुराल के सुरता
तन एती मन ओंती, अड़बड़ दूर,
रहि-रहि नैना नदिया, बाढ़ पूर।
मन-मछरी ला कइसे, परिगे बान,
सब दिन मोर रहिस अब होगे आन।
मन-मछरी ह धार के, उल्टा जाय,
हरके ला मन बैरी, नइच्च भाय।
मुँह के कौंरा काबर उगला जाय,
रहि- रहि गोड़ फड़कथे, काबर हाय।
मोर नगरिहा पावत, होही घाम
बैरी बादर तैं कस, होगे बाम।
थकहा आहीं पाहीं, घर ल उदास,
कइसे तोरा करहीं, बूढ़ी सास।
कइसे डहर निहारौं, लगथे लाज,
फुंदरा वाला बजनी, पनहीं बाज।
खंड-अ
बिदा के बेरा
सुसकत आवत होही, भइया मोर,
छइहा मा डोलहा, लेहु अगोर।
बहुत पिरोहिल ननकी, बहिनी मोर,
रो-रो खोजत होही, खोरन-खोर।
तुलसी चौंरा म देव, सालिग राम,
मइके ससुर पूरन, करिहौ काम।
अँगना कुरिया खोजत, होही गाय,
बछरू मोर बिन काँदी, नइच्च खाय।
मोर सुरता म भइया, दुख झन पाय,
सुरर- सुरर झन दाई, रोवै हाय।
तिया जनम के पोथी, म दुई पान,
मइके ससुर बीच म पातर प्रान।
व्याख्या – इस खंड में कन्या अपनी विदाई के समय मायके को याद करती है। वह अपने भाई से कहती है कि वह सिसकियाँ लेते हुए आएगा और छाया में उसका इंतजार करेगा। छोटी बहन (ननकी) बहुत रोएगी और उसे हर कोने में खोजेगी। वह तुलसी चौरे पर भगवान शालिग्राम से प्रार्थना करती है कि मायके और ससुराल में उसका काम पूर्ण हो। गाय और बछड़ा भी उसे आँगन में खोजेंगे और बछड़ा उसके बिना भूखा रहेगा। वह भाई और माँ से कहती है कि उसकी याद में दुखी न हों और न रोएँ। वह कहती है कि स्त्री का जीवन दो पन्नों की किताब है—मायका और ससुराल—जिसके बीच उसका पतला प्राण अटका रहता है। यह खंड विदाई के समय की भावनात्मक पीड़ा और मायके से बिछड़ने के दुख को दर्शाता है।
खंड-ब
ससुरार म मइके के सुरता
इहाँ परे हे आज राउत हाट,
अरे कउवाँ बइठके, कौंरा बाँट।
दूनों गाँव के देव, करव सहाय,
मोर लेवाल जुच्छा, कभु झन जाय।
इहाँ हावय कबरी, दोहिन गाय,
ननकी ऊहाँ गोरस, बिन नइ खाय।
मइया आइस कुलकत, राँधे खीर,
हाय विधाता कइसन धरिहौं धीर।
पानी छुइस न झोंकिस, चोंगी पान,
हाय रे पोथी धन रे, कन्या दान।
मोर संग म नहावै, सूतै खाय,
ते भाई अब लकठा, म नई आय।
भाई आधा परगट, आधा लुकाय,
ठाढ़े मुरमुर देखत, रहिथे हाथ।
व्याख्या – इस खंड में कन्या ससुराल में रहते हुए मायके की याद करती है। वह कहती है कि आज मायके में राउत हाट (पशु मेला) होगा, जहाँ कौए बैठकर कौरे बाँट रहे होंगे। वह दोनों गाँवों (मायका और ससुराल) के देवताओं से प्रार्थना करती है कि उसका लिवाल (ससुराल) कभी उजड़ न जाए। ससुराल में गायें हैं, लेकिन छोटी बहन मायके में दूध-दही बिना खाए नहीं रहती। माँ मायके में खीर बनाती होगी, और यह सोचकर वह दुखी होती है कि विधाता ने ऐसा समय क्यों दिया। वह पानी छूने या चोंगी में पान चबाने जैसे छोटे कार्यों में भी मायके को याद करती है और कन्या दान की प्रथा को कोसती है। वह भाई को याद करती है, जो अब उसके साथ नहीं नहाता, सोता, या खाता। भाई आधा प्रकट और आधा छिपा हुआ खड़ा होकर उसे देखता होगा। यह खंड ससुराल में मायके की तड़प और कन्या दान की परंपरा के प्रति उदासी को दर्शाता है।
खंड – स
मइके म ससुराल के सुरता
तन एती मन ओंती, अड़बड़ दूर,
रहि-रहि नैना नदिया, बाढ़ पूर।
मन-मछरी ला कइसे, परिगे बान,
सब दिन मोर रहिस अब होगे आन।
मन-मछरी ह धार के, उल्टा जाय,
हरके ला मन बैरी, नइच्च भाय।
मुँह के कौंरा काबर उगला जाय,
रहि- रहि गोड़ फड़कथे, काबर हाय।
मोर नगरिहा पावत, होही घाम
बैरी बादर तैं कस, होगे बाम।
थकहा आहीं पाहीं, घर ल उदास,
कइसे तोरा करहीं, बूढ़ी सास।
कइसे डहर निहारौं, लगथे लाज,
फुंदरा वाला बजनी, पनहीं बाज।
व्याख्या – इस खंड में कन्या मायके में ससुराल की स्मृतियों को याद करती है। उसका शरीर मायके में है, लेकिन मन ससुराल में भटकता है, जो बहुत दूर है। उसकी आँखें नदियों की तरह आँसुओं से भर जाती हैं। उसका मन मछली की तरह है, जो जाल में फँस गया है। पहले सब कुछ उसका था, अब सब पराया हो गया। उसका मन उल्टा बहता है, और उसे ससुराल की हर चीज बैरी लगती है। वह कौरा उगलने (खटास) और पैरों के फड़कने (बेचैनी) को महसूस करती है। ससुराल में गर्मी और बादल उसे बैरी लगते हैं। वह थकी हुई ससुराल लौटती है, जहाँ बूढ़ी सास उदास घर में उसका इंतजार करती है। वह ससुराल की ओर देखने में शर्मिंदगी महसूस करती है, और फुदना (गहना) पहनने वाली वह अब बाजार की बजनी (सस्ती चीजें) देखती है। यह खंड मायके और ससुराल के बीच की भावनात्मक दूरी और कन्या की बेचैनी को दर्शाता है।
शब्दार्थ
सुसकत – सुबकना, सिसकना
डोलहा – डोली उठाने वाला
आवत होही – आते होंगे
छइँहा – छाया
लेहु – लेना
अगोर – प्रतीक्षा करना
पिरोहिल – प्यारी, प्यारा
गली-गली; कुरिया – कमरा (कक्ष) कांदी
ननकी – छोटी, छोटा
खोरन-खोर – गली-गली
कौंरा – ग्रास, निवाला
सुरुर सुरुर – याद करके रोने की क्रिया
सुरता – याद
कांदी – हरी घास
तिया – स्त्री
पातर – पतला
हाट – बाजार
कउवां – कौआ, काग
लेवाल – बहन या पत्नी को विदा करा कर साथ ले जाने वाला
जुच्छा – खाली
कबरी – चितकबरी
गोरस – गाय का दूध
कुलकत – प्रसन्न चित्त
राँधे – भोजन बनाए
झोंकन – पकड़ना
घाम – धूप
डहर – रास्ता
बजनी पनही – चमड़े का वह जूता जिसे पहन कर चलने पर आवाज करता हो
बाज – बजना
तोरा – प्रबंध, व्यवस्था
बाम – विपरीत
हरके – मोड़ना
पाठ से
- मायका एवं ससुराल के बीच की स्थिति को कवि ने ‘पातर प्रान क्यों कहा है?
उत्तर – कवि ने स्त्री के जीवन को ‘पातर प्रान’ कहा क्योंकि वह मायके और ससुराल के बीच पतली किताब (पोथी) के पन्नों की तरह फँसी हुई प्राण है। मायका और ससुराल दोनों उसके लिए प्रिय हैं, लेकिन विदाई के बाद वह दोनों के बीच दुविधा और तनाव में जीती है, जो उसके प्राणों को कष्ट देता है। यह उसकी भावनात्मक बेचैनी को दर्शाता है।
- “सुसकत आवत होही भइया मोर” पंक्ति के अनुसार दुल्हन की मनोदशा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – इस पंक्ति से दुल्हन की विदाई के समय की गहन उदासी और भावुकता का चित्रण होता है। वह कल्पना करती है कि भाई सिसकियाँ (सुसकत) लेते हुए आएगा और छाया (छइहा) में डोलते हुए उसका इंतजार करेगा। दुल्हन का मन मायके से बिछड़ने की पीड़ा से भरा है, जो करुण रस जगाता है।
- बहन को लिवाने पहुँचा भाई अनमना-सा क्यों है?
उत्तर – भाई अनमना सा है क्योंकि बहन की विदाई उसे दुखी करती है। वह छाया में डोलता हुआ (डोलहा) इंतजार करता है, लेकिन मन में बहन के जाने का गम है। बहन को खोने का डर और भावुकता उसे अनिच्छुक बनाती है, जैसे वह अगोर (अनाज) लेने आया हो लेकिन हृदय उदास हो।
- नायिका के मन का धारा के विपरीत जाने का संदर्भ दीजिए।
उत्तर – नायिका कहती है, “मन-मछरी ह धार के, उल्टा जाय”। अर्थात् उसका मन मछली की तरह धारा मायके की स्मृतियों की तरह विपरीत बह रहा है। ससुराल में रहते हुए मायके की यादें उसे उल्टा खींचती हैं, जो उसकी आंतरिक बेचैनी और द्वंद्व को दर्शाता है।
- नायिका अपने पति के कष्ट की कल्पना करके दुःखी हो जाती है। पाठ में आए हुए उदाहरणों का उल्लेख करते हुए समझाइए।
उत्तर – नायिका पति के कष्ट की कल्पना से दुखी होती है क्योंकि ससुराल में नई जिम्मेदारियाँ उसे घबरा देती हैं। उदाहरण – “कइसे तोरा करहीं, बूढ़ी सास” अर्थात् बूढ़ी सास का कैसे ध्यान रखूँगी? और “कइसे डहर निहारौं, लगथे लाज” अर्थात् ससुराल के द्वार कैसे निहारूँगी, शर्म आती है। इससे वह पति की सेवा और ससुराल की अपेक्षाओं से बोझिल महसूस करती है।
पाठ से आगे
- विवाह पश्चात् लड़कियों का ससुराल जाना वैवाहिक रीति का एक अंग है। इस रीति पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर – यह रीति सांस्कृतिक और पारिवारिक एकता का प्रतीक है, जो लड़की को नई जिम्मेदारियाँ सिखाती है। लेकिन यह दुखद भी है, क्योंकि विदाई में मायके से बिछड़ना भावुक होता है। मेरा विचार है कि यह परंपरा अच्छी है, लेकिन आधुनिक समय में वीडियो कॉल और यात्रा से संपर्क बनाए रखना चाहिए ताकि दुख कम हो।
- आपकी शाला में विदाई कार्यक्रम आयोजित किए जाते होंगे। शाला के विदाई कार्यक्रम एवं घर या पड़ोस में बेटी की विदाई का तुलनात्मक वर्णन कर लिखिए।
उत्तर – शाला विदाई में गीत, नृत्य, स्मृति चिन्ह, और खुशी का माहौल होता है, जो समारोहिक और सकारात्मक है। घर की विदाई में रोना, आशीर्वाद, फेरे, और पारंपरिक गीत होते हैं, जो भावुक और दुखी है। तुलना – शाला में विदाई अस्थायी (पढ़ाई समाप्ति) है, घर में स्थायी (विवाह)। दोनों में प्रेम है, लेकिन घर वाली अधिक गहन है।
- “राउत, हाट, बाजार, मेले गाँव से गहरे जुड़े होते हैं” इस कथन पर अभिमत दीजिए।
उत्तर – पूर्णतः सहमत। राउत हाट, बाजार, मेले गाँव की अर्थव्यवस्था (व्यापार), संस्कृति (गीत-नृत्य), और सामाजिक मेलजोल का केंद्र हैं। कविता में दुल्हन इन्हें याद कर मायके को तड़पती है। ये ग्रामीण जीवन की रीढ़ हैं, जो आर्थिक स्वावलंबन और उत्सव प्रदान करते हैं।
- विवाह पूर्व लड़की की मायके के प्रति कैसी जिम्मेदारी होती है और विवाह पश्चात् ससुराल में उसके क्या-क्या दायित्व होते हैं? अपनी माँ, भाभी अथवा विवाहित बहनों से उनके अनुभव सुनिए एवं उनका लेखन कीजिए।
उत्तर – विवाह पूर्व – घर के काम, भाई-बहनों की देखभाल, माता-पिता की सेवा। माँ ने बताया कि वह भाई को स्कूल छोड़ती और रसोई संभालती थी। विवाह पश्चात् – सास-ससुर की सेवा, पति का साथ, बच्चों का पालन-पोषण। भाभी ने अनुभव साझा किया कि शुरुआत में ससुराल की रस्में कठिन लगीं, लेकिन समय से आदत हो गई। दायित्व बढ़ने से जिम्मेदारी का भाव आता है।
- कविता में कई स्थलों पर सामाजिक मान्यताओं का उल्लेख किया गया है जैसे-गोड़ फड़कना, बहन / बेटी के घर का अन्न-जल ग्रहण न करना, कौआ का कौंरा बाँटना आदि अपने साथियों के साथ चर्चा कर इनके विषय में अपने विचार लिखिए।
उत्तर – चर्चा से – गोड़ फड़कना- बेचैनी का संकेत, लेकिन अंधविश्वास; स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। अन्न-जल न लेना- सम्मान का प्रतीक, लेकिन असुविधाजनक और अतिरिक्त बोझ। कौआ बाँटना- हाट का मजा, लेकिन अस्वच्छता फैलाता है। विचार – ये मान्यताएँ सांस्कृतिक हैं, लेकिन वैज्ञानिक और समानता की दृष्टि से बदलाव जरूरी, ताकि महिलाओं पर बोझ कम हो।
- हम सभी के पास किसी न किसी प्रकार की जिम्मेदारियाँ होती हैं। जब हम अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन अच्छे से करते हैं तो हमें आत्मसंतोष का अनुभव होता है। आपकी व आपके परिजनों की क्या-क्या जिम्मेदारियाँ हैं? इसे ध्यान में रखते हुए निम्न तालिकाओं को पूरा कीजिए। आप इस संदर्भ में साथियों से चर्चा कर सकते हैं।
अभिभावकों की
पारिवारिक सामाजिक वैयक्तिक
उत्तर –
पारिवारिक | सामाजिक | वैयक्तिक |
बच्चों की शिक्षा और भोजन | पड़ोसियों की सहायता | स्वास्थ्य और आराम |
अपनी
वैयक्तिक पारिवारिक सामाजिक
उत्तर –
वैयक्तिक | पारिवारिक | सामाजिक |
दैनिक पढ़ाई | घर के छोटे काम | क्लास में सक्रियता |
भाषा के बारे में
1 निम्नलिखित शब्द समूह के स्थान पर छत्तीसगढ़ी का एक शब्द लिखिए-
शब्द समूह एक शब्द
(क) जो नाँगर (हल) चलाता है नॅगरिहा
(ख) कुएँ या तालाब से घड़े में पानी भरकर लाने वाली स्त्री
(ग) काम करने वाला
(घ) आम का बगीचा
शब्द समूह | एक शब्द |
(क) जो नाँगर (हल) चलाता है | नॅगरिहा |
(ख) कुएँ या तालाब से घड़े में पानी भरकर लाने वाली स्त्री | पनिहारिन |
(ग) काम करने वाला | कामगार |
(घ) आम का बगीचा | आमरावत |
- काव्य में जहाँ वर्णों की आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण-
“तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।”
यहाँ ‘त‘ वर्ण की आवृत्ति हुई है, इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार हैं।
इसी प्रकार पाठ में आए हुए अनुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरणों को पहचान कर लिखिए।
उत्तर – “रो-रो खोजत होही” (र वर्ण की आवृत्ति, रोने का भाव)।
“रहि-रहि नैना नदिया” (र वर्ण की आवृत्ति, स्मृति का भाव)।
- जहाँ उपमेय (जिसकी तुलना करते हैं।) में उपमान (जिससे तुलना की जाती है) का आरोप किया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण-
मैया मैं तो चंद्र- खिलौना लैहौं।
यहाँ खिलौने (उपमेय) को चाँद (उपमान) ही मान लिया गया है।
पाठ में आए हुए रूपक अलंकार के अन्य उदाहरणों को पहचान कर लिखिए।
उत्तर – “मन-मछरी” (मन को मछली माना, बेचैनी दर्शाने के लिए)।
“नैना नदिया” (आँखों को नदी माना, आँसू के बहाव के लिए)।
“पोथी धन” (कन्या को पुस्तक जैसा धन माना, कन्या दान के संदर्भ में)।
- बरवै छंद- यह अर्ध सम मात्रिक छंद है, जिसके विषम चरणों (पहले व तीसरे चरण में 12-12 एवं सम चरणों (दूसरा व चौथा चरण) में 7-7 मात्राओं की यति से 19 मात्राएँ होती हैं। अंतिम में गुरु-लघु मात्राएँ होती है।
उदाहरण-
भाषा सहज सरस पद, नाजुक छंद, जइसे गुर के पागे, सक्कर कंद।
(12, 07 = 19)
(12, 07 = 19)
इस प्रकार पाठ से अन्य पदों की मात्राओं की गणना कीजिए।
उत्तर – पहली पंक्ति – “सुसकत आवत होही भइया मोर” (विषम – 12 मात्राएँ | सम – 7 मात्राएँ = कुल 19)।
तीसरी पंक्ति – “बहुत पिरोहिल ननकी बहिनी मोर” (विषम – 12 | सम – 7 = 19)।
पाँचवीं पंक्ति – “तुलसी चौंरा म देव सालिग राम” (विषम – 12 | सम – 7 = 19)।
(सभी पद बरवै छंद के अनुरूप हैं, अंत में गुरु-लघु)।
- इसके बारे में भी जानिए-
शब्द गुण- “गुण साहित्य शास्त्र में काव्य शोभा के जनक हैं।” इसके तीन प्रकार हैं-
(क) माधुर्य गुण – चित्त को प्रसन्न करने वाला गुण माधुर्य होता है। शृंगार रस का वर्णन इससे भावपूर्ण होता है।
(ख) प्रसाद गुण – चित्त को प्रभावित करने वाला गुण प्रसाद होता है। शांत रस एवं करुण रस का वर्णन इससे भावपूर्ण होता है।
(ग) ओज गुण- चित्त को उत्तेजित करने वाला गुण ओज गुण होता है। वीर रस का वर्णन इससे भावपूर्ण होता है।
प्रस्तुत पाठ में किस शब्द गुण की बहुलता है? नाम लिखकर उदाहरण दीजिए।
उत्तर – प्रसाद गुण (चित्त को प्रभावित करने वाला, करुण-शांत रस के लिए)।
उदाहरण – “हाय विधाता कइसन धरिहौं धीर” (दुख का भाव चित्त को गहराई से प्रभावित करता है, विदाई की पीड़ा जगाता है)।
योग्यता विस्तार
- छत्तीसगढ़ी के विवाह गीतों का संकलन कीजिए एवं कक्षा में उसका सस्वर गायन कीजिए।
उत्तर – गीत 1 – “सइयाँ बिना घर सूना, ससुराल सूना लागे रे” (विदाई गीत, दुख का भाव)।
गीत 2 – “हल्दी लगावे माई, बेटी के माथा चंदन चढ़ावे” (हल्दी रस्म गीत)।
(कक्षा में सस्वर गाया जा सकता है, धुन स्थानीय लोक शैली में।)
- अपने क्षेत्र में प्रचलित विवाह की रस्म पर एक छोटा लेख लिखिए।
उत्तर – छत्तीसगढ़ी विवाह रस्में – एक झलक
छत्तीसगढ़ में विवाह रस्में भावुक और रंगीन होती हैं। हल्दी रस्म में दुल्हन को हल्दी लगाई जाती है, जो शुभ मानी जाती है। बारात में डोली सजाकर दुल्हन को ससुराल ले जाया जाता है। फेरा (सात फेरे) में अग्नि के साक्षी में वचन होते हैं। विदाई में “सउभाग्यवती भव” गीत गाए जाते हैं। ये रस्में परिवारिक एकता दर्शाती हैं, लेकिन विदाई का दुख कविता “बिदा के बेरा” जैसा ही है। आधुनिक समय में सरलीकरण हो रहा है।

