आरसी प्रसाद सिंह – जीवन परिचय
प्रसिद्ध कवि, कथाकार और एकांकीकार आरसी प्रसाद सिंह को जीवन और यौवन का कवि कहा जाता है। इन्होंने हिंदी साहित्य को बालकाव्य, कथाकाव्य, महाकाव्य, गीतकाव्य, रेडियो रूपक एवं कहानियों समेत कई रचनाएँ दी हैं। इनके प्रमुख कविता संग्रहों में आजकल, कलापी, संचयिता, आरसी, जीवन और यौवन, मैं किस देश में हूँ : प्रेम गीत, खोटा सिक्का, आदि हैं। सहज प्रवाह और भाव के अनुरूप भाषा के कारण इनकी रचनाओं को पढ़ना हमेशा ही दिलचस्प रहता है।
पाठ परिचय –
आरसी प्रसाद सिंह की रचना “जीवन का झरना” जीवन में सुख-दुख का सामना करते हुए भी अनवरत आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है। जीने के वास्तविक मर्म को समझते हुए सकारात्मकता के साथ जीवन पथ में आने वाली हर बाधाओं का सामना करने की सीख देती है। गतिशीलता को अपने जीवन पथ के ध्येय के रूप में रखती यह कविता जीवन को जड़ता से जीवन्तता की ओर उन्मुख करने के लिए प्रेरित करती है।
जीवन का झरना
यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।
सुख दुःख के दोनों तीरों से, चल रहा राह मनमानी है।
कब फूटा गिरि के अंतर में, किस अंचल से उतरा नीचे?
किस घाटी से बहकर आया, समतल में अपने को खींचे।
निर्झर में गति है, यौवन है, वह आगे बढ़ता जाता है।
धुन सिर्फ एक है चलने की अपनी मस्ती में गाता है।
बाधा के रोड़ों से लड़ता वन के पेड़ों से टकराता।
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता।
लहरें उठती हैं, गिरती हैं, नाविक तट पर पछताता है।
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है।
निर्झर में गति है, जीवन है, रुक जाएगी यह गति जिस दिन।
उस दिन मर जाएगा मानव, जग दुर्दिन की घड़ियाँ गिन गिन।
निर्झर कहता है – बढ़े चलो, तुम पीछे मत देखो मुड़कर।
यौवन कहता है- बढ़े चलो, सोचो मत क्या होगा चलकर।
चलना है केवल चलना है, जीवन चलता ही रहता है।
मर जाना है रुक जाना ही, निर्झर यह झरकर कहता है।
कविता का सार
कविता ‘जीवन का झरना’ जीवन को एक निर्झर (झरना) के रूप में चित्रित करती है, जो मस्ती और गति से भरा है। यह सुख-दुख के दोनों तटों के बीच अपनी मनमानी राह पर चलता है। निर्झर का यौवन और जीवन की गति बाधाओं, चट्टानों और पेड़ों से टकराते हुए भी आगे बढ़ती है। कविता कहती है कि जीवन का अर्थ है निरंतर चलते रहना, क्योंकि रुकना मृत्यु है। यह प्रेरणा देती है कि बिना पीछे मुड़े, बिना भविष्य की चिंता किए, जीवन को उत्साह से जीना चाहिए।
शब्दार्थ :-
निर्झर – झरना
यौवन – जवानी
तट – तीर किनारा
मस्ती – आनंद
गिरि – पर्वत
दुर्दिन – बुरे दिन
घड़ी – 24 मिनट का कालखंड।
मदमाता – मद में चूर
शब्द | हिंदी अर्थ | English Meaning |
निर्झर | झरना, जलप्रपात | Waterfall, cascade |
मस्ती | उत्साह, उमंग | Exuberance, joy |
तीर | किनारा, तट | Shore, bank |
मनमानी | अपनी इच्छा से | Willfully, freely |
अंचल | क्षेत्र, भाग | Region, area |
यौवन | युवावस्था, जोश | Youth, vigour |
धुन | लगन, राग | Tune, determination |
रोड़ | पत्थर, बाधा | Stone, obstacle |
मदमाता | उन्मत्त, उत्साहपूर्ण | Intoxicated, exuberant |
नाविक | मल्लाह, नौका चलाने वाला | Boatman, sailor |
दुर्दिन | बुरा समय | Adverse times |
झरकर | बहकर, प्रवाहित होकर | By flowing, cascading |
पाठ से
- कवि ने जीवन की समानता, झरने से किन-किन रूपों में की है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – कवि ने जीवन की समानता झरने से निम्नलिखित रूपों में की है –
गति और निरंतरता – जिस प्रकार झरना निरंतर चलता रहता है, रुकता नहीं है, उसी प्रकार जीवन भी हमेशा गतिशील रहता है।
मस्ती और यौवन – झरने का पानी उसकी मस्ती है, ठीक उसी तरह जीवन का मूल भाव भी उत्साह और यौवन है।
बाधाओं से संघर्ष – झरना बाधाओं के रोड़ों और चट्टानों से लड़ता हुआ आगे बढ़ता है, वैसे ही जीवन भी सुख-दुख की चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ता है।
लक्ष्य पर ध्यान – झरने की धुन केवल आगे बढ़ते रहने की है, जो मानव जीवन को भी लक्ष्य की ओर अग्रसर होने का संदेश देती है।
- कविता में आई पंक्ति ‘सुख-दुख‘ के दोनों तीरों से कवि का क्या आशय है? मानव जीवन में इनका महत्त्व क्या है?
उत्तर – आशय – कविता में ‘सुख-दुख के दोनों तीरों’ से कवि का आशय है कि मानव जीवन रूपी झरना सुख और दुःख नामक दो सीमाओं या विपरीत परिस्थितियों के बीच से होकर बहता है। ये दोनों किनारे जीवन के अनिवार्य अंग हैं, जिनके दायरे में रहकर जीवन अपनी गति से आगे बढ़ता है।
मानव जीवन में महत्त्व – मानव जीवन में इनका महत्त्व यह है कि सुख और दुख दोनों ही जीवन को पूर्णता देते हैं। दुख हमें संघर्ष करना और मूल्यवान सबक सिखाता है, जबकि सुख हमें शांति और आनंद प्रदान करता है। दोनों भाव मिलकर व्यक्ति के व्यक्तित्व को विकसित करते हैं और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
- संपूर्ण कविता में ‘झरना मानव जीवन के विभिन्न भावबोधों से जुड़ता है, कैसे? अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर – संपूर्ण कविता में झरना मानव जीवन के विभिन्न भावबोधों से जुड़ता है –
मस्ती और यौवन – झरना की मस्ती मानव जीवन के उत्साह, जोश और जवानी (यौवन) के भाव को दर्शाती है।
अस्तित्व का प्रश्न – कविता में झरने की उत्पत्ति (कब फूटा, किस अंचल से उतरा) का प्रश्न मानव के जीवन के रहस्य और अस्तित्व के दर्शन को दर्शाता है।
संघर्ष और साहस – झरने का रोड़ों और चट्टानों से लड़ना मानव के जीवन में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों का प्रतीक है, जो साहस का भाव जगाता है।
गतिशीलता का दर्शन – झरने का न रुकना और केवल आगे बढ़ते जाना मानव जीवन के निरंतर प्रयास, प्रगति और आशावादी दृष्टिकोण के भावबोध से जुड़ता है।
- ‘बाधा के रोड़ों से लड़ता उक्त पंक्ति का आशय, जीवन को कैसे और कब-कब प्रभावित तथा प्रेरित करता है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – ‘बाधा के रोड़ों से लड़ता’ पंक्ति का आशय है कि जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ, रुकावटें और विपरीत परिस्थितियाँ।
यह पंक्ति जीवन को तब प्रभावित करती है जब व्यक्ति विश्राम करने या हार मानने की सोचता है; बाधाएँ उसे निराश कर देती हैं।
यह पंक्ति जीवन को तब प्रेरित करती है जब व्यक्ति झरने के समान गतिशीलता का भाव अपनाता है। यह संदेश देती है कि समस्याओं से लड़कर, उनसे टकराकर और उन्हें पार करके ही आगे बढ़ा जा सकता है। यह हमें चुनौतियों को स्वीकारने और निरंतर संघर्ष करने के लिए प्रेरित करती है।
- ‘जीवन का झरना‘ कविता में मानव का मृत हो जाना क्यों और कब बताया गया है?
उत्तर – ‘जीवन का झरना’ कविता में मानव का मृत हो जाना तब बताया गया है जब जीवन की गति रुक जाएगी। कवि कहता है:
“रुक जाएगी यह गति जिस दिन। उस दिन मर जाएगा मानव, जग दुर्दिन की घड़ियाँ गिन गिन।”
अर्थात्, संघर्ष और आगे बढ़ने की प्रेरणा और क्रियाशीलता ही जीवन है। जिस दिन व्यक्ति चलना, प्रयास करना, और संघर्ष करना बंद कर देगा, यानी मानसिक या शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो जाएगा, उस दिन उसका जीवन रुक जाएगा और वह मृत (निष्क्रिय) हो जाएगा।
- कविता की उन पंक्तियों को लिखिए जो मानव मन को संघर्ष के लिए प्रेरित करती हैं?
उत्तर – मानव मन को संघर्ष के लिए प्रेरित करने वाली पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं:
“बाधा के रोड़ों से लड़ता वन के पेड़ों से टकराता।
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता।”
“निर्झर कहता है – बढ़े चलो, तुम पीछे मत देखो मुड़कर।
यौवन कहता है- बढ़े चलो, सोचो मत क्या होगा चलकर।”
“चलना है केवल चलना है, जीवन चलता ही रहता है।
मर जाना है रुक जाना ही, निर्झर यह झरकर कहता है।”
पाठ से आगे
- उपर्युक्त कविता मन में आशा का संचार करती है और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। हमारे परिवेश की बहुत सी घटनाएँ हमारे मन में इसी प्रकार के भावों को जगाती हैं, उनका संकलन कर उन पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – हमारे परिवेश की कुछ घटनाएँ जो मन में आशा का संचार और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं –
घटना | प्रेरणा / आशा का भाव | चर्चा |
नन्हा पौधा | संघर्ष और जीवन की जिद। | कंक्रीट या चट्टान के छोटे से दरार से भी नन्हे पौधे का फूटकर सूर्य की ओर बढ़ना बताता है कि चुनौतियों के बावजूद जीवन हमेशा रास्ता खोज लेता है। |
सूर्य का उदय | नए अवसर, निराशा का अंत। | हर रात के बाद सूरज का नियमित उदय यह विश्वास दिलाता है कि कितनी भी घोर निराशा क्यों न हो, एक नई शुरुआत और बेहतर कल हमेशा संभव है। |
चींटी का प्रयास | दृढ़ता, हार न मानना। | चींटी का बार-बार गिरकर भी दाना लेकर दीवार पर चढ़ने का अथक प्रयास हमें सिखाता है कि असफलता से निराश न होकर निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। |
माँ का प्रेम | निस्वार्थ समर्पण, त्याग की शक्ति। | एक माँ का अपने बच्चे के लिए हर कठिनाई सहना हमें सिखाता है कि प्रेम और समर्पण में कितनी बड़ी शक्ति होती है, जो असंभव को भी संभव बना देती है। |
- उपर्युक्त कविता में निर्झर, यौवन आदि प्रतीकों के द्वारा सदैव गतिशील रहने का संदेश दिया गया है 1 कविता से उन प्रतीकों का चुनाव कीजिए जो इसके विपरीत भाव को प्रकट करते हैं।
उत्तर – कविता में गतिशील रहने के भाव के विपरीत भाव को प्रकट करने वाले प्रतीक और शब्द समूह निम्नलिखित हैं –
तीर – (सुख-दुःख के दोनों तीर) तीर (किनारे) स्थिरता और सीमा को दर्शाते हैं, जबकि निर्झर गतिशीलता को।
नाविक तट पर पछताता है – यह निष्क्रियता, असफलता और निराशा का प्रतीक है। नाविक गति से डरकर तट पर रुक जाता है और पछताता है, जो झरने की गतिशीलता के विपरीत है।
रुक जाना ही – यह शब्द समूह गतिहीनता और जीवन की समाप्ति (मृत्यु) का स्पष्ट प्रतीक है, जो ‘बढ़े चलो’ के संदेश के एकदम विपरीत है।
पीछे मत देखो मुड़कर – ‘पीछे मुड़कर देखना’ अतीत में उलझे रहने या गति को रोकने का भाव प्रकट करता है।
- सुख और दुःख के मनोभावों से बँधा हुआ जीवन आगे बढ़ता है, हमारे परिवेश में इन भावों की अनुभूति हमें होती है। ये भाव हमारे व्यक्तित्व के विकास को कैसे प्रभावित करते हैं? अपने विचारों को तर्क सहित रखिए।
उत्तर – सुख और दुःख के मनोभाव मानव व्यक्तित्व के विकास को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करते हैं:
मनोभाव | व्यक्तित्व पर प्रभाव (तर्क सहित) |
दुःख और संघर्ष | दुःख हमें मज़बूत, सहनशील और आत्म-विश्लेषी बनाता है। तर्क: कठिनाइयों से लड़ते समय हम अपनी क्षमताओं को पहचानते हैं, गलतियों से सीखते हैं, और भविष्य के लिए बेहतर रणनीति बनाते हैं, जिससे व्यक्तित्व में गहराई और परिपक्वता आती है। |
सुख और सफलता | सुख हमें आशावादी, प्रेरित और आत्मविश्वास से भरा बनाता है। तर्क: सफलताएँ हमारे प्रयासों को सही ठहराती हैं, हमें सकारात्मक ऊर्जा देती हैं और भविष्य में बड़े लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक आत्मविश्वास का निर्माण करती हैं। |
संतुलन (तीर) | दोनों भाव मिलकर व्यक्ति को संतुलित और संवेदनशील बनाते हैं। तर्क: यदि केवल सुख हो, तो व्यक्ति अहंकारी और असंवेदनशील हो सकता है। यदि केवल दुःख हो, तो वह निराश और हताश हो सकता है। दोनों का अनुभव व्यक्ति को मानवीय संवेदनाओं से जोड़ता है और जीवन के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण विकसित करता है। |
- कविता में यह साफ झलकता है कि झरना पहाड़ के अंतर (भीतर / अंदर) से फूट कर विभिन्न बाधाओं से लड़ते हुए आगे बढ़ता है। मानव जीवन भी ऐसा ही होता है या इससे अलग? अपने विचार तर्क सहित रखिए।
उत्तर – मानव जीवन भी झरने के समान ही होता है।
समानता (आंतरिक उत्पत्ति और संघर्ष) –
झरना – यह पहाड़ के अंतर (भीतर) से फूटता है, यानी इसकी शुरुआत आंतरिक दबाव और ऊर्जा से होती है।
मानव जीवन – मानव की प्रगति और सफलता भी उसकी आंतरिक इच्छाशक्ति, दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास से ही शुरू होती है। ये हमारी आंतरिक ‘ऊर्जा’ हैं।
बाधाएँ – झरना जैसे चट्टानों, रोड़ों और घाटियों की बाधाओं से लड़ता है, वैसे ही मानव जीवन भी आर्थिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक चुनौतियों (बाधाओं) से लगातार संघर्ष करता है।
तर्क – यदि कोई व्यक्ति आंतरिक प्रेरणा के बिना केवल बाहरी संसाधनों पर निर्भर रहे या पहली बाधा से ही हार मानकर रुक जाए, तो उसका जीवन ‘झरने’ जैसा गतिशील नहीं रह पाएगा। इसलिए, संघर्ष और आंतरिक प्रेरणा दोनों ही जीवन की गतिशीलता के लिए आवश्यक हैं, जो झरने के स्वभाव से हूबहू मिलते हैं।
भाषा के बारे में
- निर्झर, गिरि, तीर, अंचल आदि शब्द कविता में प्रयुक्त हुए हैं जो मूलतः संस्कृत भाषा से सीधे-सीधे प्रयोग में आ गए हैं, पाठ में आए इस प्रकार के कुछ और शब्दों को ढूँढ़ कर उनसे वाक्य बनाइए।
उत्तर – कविता में प्रयुक्त संस्कृत भाषा से सीधे आए (तत्सम) शब्द और उनसे बने वाक्य –
शब्द (तत्सम) | अर्थ | वाक्य प्रयोग |
अंतर | हृदय, भीतर, अंदर | गुरु का ज्ञान शिष्य के अंतर तक प्रवेश कर गया। |
यौवन | जवानी | देश के यौवन पर ही भविष्य निर्भर करता है। |
मानव | मनुष्य | मानव को हमेशा प्रकृति से सीखना चाहिए। |
गति | चाल, वेग | जीवन में गति का रुकना मृत्यु के समान है। |
दुर्दिन | बुरा समय | हमें दुर्दिन में भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए। |
नीर | जल (कविता में ‘निर्झर’ का ‘नीर’) | गर्मी में पक्षी नीर की तलाश में भटकते हैं। |
- निर्झर में गति है, यौवन है, वह आगे बढ़ता जाता है।
धुन सिर्फ एक है चलने की अपनी मस्ती में गाता है।
कविता की इन पंक्तियों में निर्झर का मानवीकरण किया गया है। प्रकृति के उपकरणों में मानवीय चेतना का आरोपण मानवीकरण की पहचान है, जैसे- निर्झर में गति, यौवन, उसका आगे बढ़ना, मस्ती में गाना। हिंदी साहित्य में इसे एक अलंकार माना गया है। मानवीकरण अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण अन्य कविताओं से ढूँढ कर लिखिए।
उत्तर – मानवीकरण अलंकार के अन्य उदाहरण (अन्य कविताओं से संकलित):
“मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।” (बादल को दामाद के रूप में सजना-सँवरना एक मानवीय क्रिया है।)
“हँसमुख हरियाली हिम-आतप, सुख से सहलाती।” (हरियाली का हँसमुख होना और सहलाना मानवीय भाव है।)
“बीती विभावरी जाग री! अम्बर पनघट में डुबो रही, तारा घट ऊषा नागरी।” (ऊषा (सुबह) का नागरी (स्त्री) की तरह तारे रूपी घड़े को आकाश रूपी पनघट में डुबोना।)
- कविता में आए इन शब्दों का प्रयोग करते हुए आप भी एक कविता लिखिए यौवन, मदमाता, कूल – किनारा, जीवन, गिरि, पर्वत, भूतल, गति, करुणा, मस्ती, मानव, झरना, पछताना, अंचल, बहना आदि।
उत्तर – जीवनधारा
गिरि अंतर से फूटा झरना,
लेकर यौवन की मस्ती।
पर्वत शिखर से उतरा नीचे,
असीम अंचल में इसकी हस्ती।
मदमाता और गति निराली,
बहना है बस धुन इसकी।
मानव तू क्यों पछताना सीखे,
राह जीवन की है नहीं रुकी।
भूतल पर जब दौड़ लगाए,
त्यागे ऊँचाई और किनारा।
कूल-किनारा छूकर हँसता,
छोड़ गया करुणा की धारा।
झरना कहता है हर पल,
रुकना तो है मर जाना।
चलना है बस तेरा काम,
मस्ती में धुन अपनी गाना।
योग्यता विस्तार
- प्रकृति के द्वारा मानव जीवन के विविध भावों को अभिव्यक्त करने वाली कविताओं को खोज कर पढ़िए और साथियों से चर्चा कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
- जीवन में आशावादी भावों का संचार करने वाली अन्य कविताएँ खोजिए और अपने शिक्षक तथा मित्रों से चर्चा कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
- कविता में जीवन को किसके रूप में चित्रित किया गया है?
a) नदी
b) निर्झर
c) सागर
d) पहाड़
उत्तर – b) निर्झर - निर्झर का पानी क्या है?
a) शांति
b) मस्ती
c) दुख
d) सुख
उत्तर – b) मस्ती - जीवन के दोनों तट किन्हें कहा गया है?
a) सुख और दुख
b) यौवन और वृद्धावस्था
c) जीवन और मृत्यु
d) गति और रुकावट
उत्तर – a) सुख और दुख - निर्झर किस तरह चलता है?
a) धीरे-धीरे
b) मनमानी राह पर
c) रुक-रुक कर
d) पीछे मुड़कर
उत्तर – b) मनमानी राह पर - कविता में निर्झर का उद्गम कहाँ बताया गया है?
a) समुद्र में
b) गिरि के अंतर में
c) मैदान में
d) नदी में
उत्तर – b) गिरि के अंतर में - निर्झर में क्या है?
a) शांति और स्थिरता
b) गति और यौवन
c) रुकावट और बाधा
d) उदासी और दुख
उत्तर – b) गति और यौवन - निर्झर की एकमात्र धुन क्या है?
a) गाना
b) रुकना
c) चलना
d) सोचना
उत्तर – c) चलना - निर्झर किनसे टकराता है?
a) नदियों से
b) रोड़ों और पेड़ों से
c) पहाड़ों से
d) समुद्र से
उत्तर – b) रोड़ों और पेड़ों से - कविता में यौवन का क्या गुण बताया गया है?
a) रुकना
b) मदमाता होना
c) पीछे मुड़ना
d) सोचना
उत्तर – b) मदमाता होना - नाविक तट पर क्यों पछताता है?
a) लहरों के गिरने से
b) निर्झर के रुकने से
c) बाधाओं के कारण
d) गति के अभाव से
उत्तर – a) लहरों के गिरने से - निर्झर का रुकना किसके समान है?
a) जीवन का अंत
b) यौवन का बढ़ना
c) सुख का आना
d) दुख का छाना
उत्तर – a) जीवन का अंत - कविता में मानव की मृत्यु कब होती है?
a) जब वह सोचता है
b) जब गति रुक जाती है
c) जब वह चलता है
d) जब लहरें उठती हैं
उत्तर – b) जब गति रुक जाती है - निर्झर का संदेश क्या है?
a) पीछे मुड़कर देखो
b) रुक जाओ
c) बढ़े चलो
d) सोचते रहो
उत्तर – c) बढ़े चलो - यौवन का आह्वान क्या है?
a) भविष्य की चिंता करना
b) पीछे मुड़ना
c) बिना सोचे बढ़ना
d) रुककर विश्राम करना
उत्तर – c) बिना सोचे बढ़ना - कविता में जीवन का अर्थ क्या बताया गया है?
a) रुकना
b) चलना
c) सोचना
d) पछताना
उत्तर – b) चलना - मर जाना किसके बराबर है?
a) चलते रहना
b) रुक जाना
c) सोचते रहना
d) गाते रहना
उत्तर – b) रुक जाना - निर्झर किससे चढ़ता है?
a) मैदानों पर
b) चट्टानों पर
c) नदियों पर
d) पेड़ों पर
उत्तर – b) चट्टानों पर - कविता में दुर्दिन का अर्थ क्या है?
a) सुखद समय
b) बुरा समय
c) शांत समय
d) उत्साहपूर्ण समय
उत्तर – b) बुरा समय - निर्झर अपनी मस्ती में क्या करता है?
a) रुकता है
b) गाता है
c) सोचता है
d) पछताता है
उत्तर – b) गाता है - कविता का मुख्य संदेश क्या है?
a) जीवन में रुकना चाहिए
b) जीवन में निरंतर चलते रहना चाहिए
c) भविष्य की चिंता करनी चाहिए
d) पीछे मुड़कर देखना चाहिए
उत्तर – b) जीवन में निरंतर चलते रहना चाहिए
एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – कवि के अनुसार जीवन क्या है?
उत्तर – कवि के अनुसार जीवन एक निर्झर (झरना) है, जिसकी मस्ती ही उसका पानी है।
- प्रश्न – जीवन रूपी निर्झर किन दो किनारों के बीच अपनी मनमानी राह पर चल रहा है?
उत्तर – जीवन रूपी निर्झर सुख-दुःख के दोनों तीरों (किनारों) के बीच अपनी मनमानी राह पर चल रहा है।
- प्रश्न – निर्झर के संबंध में कवि क्या प्रश्न करते हैं?
उत्तर – कवि प्रश्न करते हैं कि निर्झर गिरि (पहाड़) के अंतर में कब फूटा और किस अंचल से नीचे उतरा।
- प्रश्न – निर्झर किस चीज को खींचकर समतल भूमि में आया है?
उत्तर – निर्झर किसी घाटी से बहकर आया है और अपने आप को खींचकर समतल भूमि में आया है।
- प्रश्न – निर्झर में क्या-क्या है और वह क्या करता जाता है?
उत्तर – निर्झर में गति और यौवन है, और वह आगे बढ़ता जाता है।
- प्रश्न – निर्झर की एकमात्र धुन क्या है?
उत्तर – निर्झर की एकमात्र धुन चलने की है, और वह अपनी मस्ती में गाता है।
- प्रश्न – निर्झर मार्ग में किन चीज़ों से लड़ता और टकराता है?
उत्तर – निर्झर मार्ग में बाधा के रोड़ों से लड़ता और वन के पेड़ों से टकराता है।
- प्रश्न – झरना किस प्रकार आगे बढ़ता है?
उत्तर – झरना चट्टानों पर चढ़ता हुआ और यौवन से मदमाता हुआ आगे बढ़ता है।
- प्रश्न – लहरों के उठने-गिरने पर कौन तट पर पछताता है?
उत्तर – लहरों के उठने-गिरने पर नाविक तट पर पछताता है।
- प्रश्न – जब नाविक तट पर पछताता है, तब कौन आगे बढ़ता जाता है?
उत्तर – जब नाविक तट पर पछताता है, तब यौवन और निर्झर आगे बढ़ते ही जाते हैं।
- प्रश्न – कवि के अनुसार निर्झर में क्या है?
उत्तर – कवि के अनुसार निर्झर में गति और जीवन है।
- प्रश्न – कवि के अनुसार मानव किस दिन मर जाएगा?
उत्तर – कवि के अनुसार मानव जिस दिन यह गति (चलना) रुक जाएगी, उस दिन मर जाएगा।
- प्रश्न – गति के रुक जाने पर संसार (जग) किस प्रकार की घड़ियाँ गिनेगा?
उत्तर – गति के रुक जाने पर संसार दुर्दिन की घड़ियाँ गिन-गिन कर दुख मनाएगा।
- प्रश्न – निर्झर मानव से क्या कहता है?
उत्तर – निर्झर मानव से कहता है कि “बढ़े चलो, तुम पीछे मत देखो मुड़कर।”
- प्रश्न – ‘यौवन‘ मनुष्य से क्या करने के लिए कहता है?
उत्तर – ‘यौवन’ मनुष्य से कहता है कि “बढ़े चलो, सोचो मत क्या होगा चलकर।”
- प्रश्न – जीवन की वास्तविकता क्या है?
उत्तर – जीवन की वास्तविकता यह है कि चलना है केवल चलना है, और जीवन चलता ही रहता है।
- प्रश्न – कविता के अनुसार मर जाना क्या है?
उत्तर – कविता के अनुसार मर जाना ही रुक जाना है।
- प्रश्न – झरना अपने बहने की प्रक्रिया द्वारा क्या संदेश देता है?
उत्तर – झरना अपने बहने की प्रक्रिया द्वारा यह संदेश देता है कि मर जाना ही रुक जाना है।
- प्रश्न – निर्झर किस प्रकार की राह पर चल रहा है?
उत्तर – निर्झर अपनी मनमानी राह पर चल रहा है।
- प्रश्न – निर्झर क्या करते हुए चट्टानों पर चढ़ता है?
उत्तर – निर्झर बाधा के रोड़ों से लड़ते हुए और यौवन से मदमाता होते हुए चट्टानों पर चढ़ता है।
40-50 शब्दों वाले प्रश्नोत्तर
- कविता में जीवन को किसके रूप में चित्रित किया गया है?
उत्तर – कविता में जीवन को निर्झर (झरना) के रूप में चित्रित किया गया है, जो मस्ती और गति से भरा है। यह सुख-दुख के तटों के बीच अपनी मनमानी राह पर चलता है, जो जीवन की निरंतरता को दर्शाता है। - निर्झर की मस्ती का क्या अर्थ है?
उत्तर – निर्झर की मस्ती जीवन के उत्साह और जोश को दर्शाती है। यह यौवन और गति का प्रतीक है, जो बाधाओं के बावजूद निरंतर आगे बढ़ता है और अपनी स्वतंत्रता और खुशी में गाता रहता है। - सुख-दुख के तट जीवन में क्या दर्शाते हैं?
उत्तर – सुख-दुख के तट जीवन की दोहरी प्रकृति को दर्शाते हैं, जहाँ खुशी और दुख दोनों साथ-साथ चलते हैं। निर्झर इनके बीच अपनी राह बनाता है, जो जीवन की उतार-चढ़ाव भरी यात्रा को प्रतीकित करता है। - निर्झर का उद्गम कहाँ बताया गया है?
उत्तर – निर्झर का उद्गम गिरि (पहाड़) के अंतर में बताया गया है, जहाँ से यह घाटी और समतल की ओर बहता है। यह जीवन की उत्पत्ति और उसकी यात्रा की अनिश्चितता और स्वतंत्रता को दर्शाता है। - निर्झर की गति का क्या महत्व है?
उत्तर – निर्झर की गति जीवन की निरंतरता और यौवन का प्रतीक है। यह बाधाओं, चट्टानों और पेड़ों से टकराते हुए भी आगे बढ़ता है, जो जीवन में चुनौतियों के बावजूद प्रगति की प्रेरणा देता है। - कविता में नाविक क्यों पछताता है?
उत्तर – नाविक तट पर लहरों के उठने और गिरने के कारण पछताता है, क्योंकि वह निर्झर की गति और यौवन के साथ नहीं चल पाता। यह जीवन की तेज गति में पीछे रहने की मानवीय कमजोरी को दर्शाता है। - निर्झर का रुकना किसके बराबर है?
उत्तर – निर्झर का रुकना मानव की मृत्यु के बराबर है। कविता कहती है कि जिस दिन गति रुक जाएगी, वह मानव का अंत होगा, जो जीवन की निरंतरता और गतिशीलता के महत्व को दर्शाता है। - कविता में यौवन का क्या संदेश है?
उत्तर – यौवन का संदेश है कि बिना भविष्य की चिंता किए और पीछे मुड़े बिना निरंतर आगे बढ़ना चाहिए। यह जीवन को उत्साह और जोश के साथ जीने की प्रेरणा देता है, जो निर्झर की तरह मस्ती में चलता है। - कविता में जीवन का मूल मंत्र क्या है?
उत्तर – कविता में जीवन का मूल मंत्र है निरंतर चलते रहना। निर्झर कहता है कि चलना ही जीवन है, और रुकना मृत्यु के समान है। यह बाधाओं के बावजूद प्रगति की प्रेरणा देता है। - कविता का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर – कविता का मुख्य संदेश है कि जीवन एक निर्झर की तरह निरंतर गतिशील रहना चाहिए। बाधाओं, सुख-दुख के बीच बिना रुके, बिना पीछे मुड़े आगे बढ़ना ही जीवन का सार है, क्योंकि रुकना मृत्यु है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- कविता में जीवन को निर्झर से तुलना क्यों की गई है?
उत्तर – जीवन को निर्झर से तुलना की गई क्योंकि यह गतिशील, मस्ती से भरा और सुख-दुख के बीच अपनी राह बनाता है। निर्झर की तरह जीवन बाधाओं (रोड़े, चट्टानें) से टकराकर भी आगे बढ़ता है। यह निरंतरता, यौवन और स्वतंत्रता का प्रतीक है, जो जीवन की प्रगति और उत्साह को दर्शाता है। - सुख-दुख के तटों का जीवन में क्या महत्व है?
उत्तर – सुख-दुख के तट जीवन की दोहरी प्रकृति को दर्शाते हैं, जो हर व्यक्ति के जीवन का हिस्सा हैं। निर्झर इनके बीच मनमानी राह पर चलता है, जो यह सिखाता है कि जीवन में सुख-दुख को स्वीकार कर, बिना रुके आगे बढ़ना चाहिए। यह संतुलन और प्रगति का प्रतीक है। - निर्झर की गति और यौवन का कविता में क्या प्रतीकात्मक अर्थ है?
उत्तर – निर्झर की गति जीवन की निरंतरता और यौवन जोश, उत्साह व ऊर्जा का प्रतीक है। यह बाधाओं, चट्टानों और पेड़ों से टकराकर भी रुकता नहीं, जो जीवन में चुनौतियों के बावजूद प्रगति की प्रेरणा देता है। यौवन का मदमाता स्वभाव जीवन को बिना चिंता के जीने का संदेश देता है। - कविता में नाविक के पछतावे का क्या भावनात्मक महत्व है?
उत्तर – नाविक का तट पर पछतावा जीवन की तेज गति और यौवन के साथ न चल पाने की मानवीय कमजोरी को दर्शाता है। लहरों का उठना-गिरना जीवन की अस्थिरता को दिखाता है, और नाविक का पछतावा यह सिखाता है कि अवसरों को न गँवाकर जीवन की धारा में शामिल होना चाहिए। - कविता का मुख्य संदेश जीवन के संदर्भ में कैसे प्रेरणादायक है?
उत्तर – कविता का मुख्य संदेश है कि जीवन निरंतर चलने वाला निर्झर है, जहाँ रुकना मृत्यु है। यह प्रेरणा देती है कि सुख-दुख, बाधाओं के बावजूद बिना पीछे मुड़े, बिना भविष्य की चिंता किए आगे बढ़ना चाहिए। यह उत्साह, गति और जीवन की स्वतंत्रता को अपनाने का आह्वान करता है।

