Path 6.2: Ek Tha Ped Aur Ek Tha Thooth (Nibandh) — Kanhaiya Lal Mishra Prabhakar, Class X, Hindi Book, Chhattisgarh Board Solutions.

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर – जीवन परिचय

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर हिंदी के जाने-माने निबंधकार हैं। इन्होंने राजनैतिक और सामाजिक जीवन से संबंध रखने वाले कई निबंध लिखे हैं। इन्होंने भारत के स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिसके कारण कई बार इन्हें जेल भी जाना पड़ा। वस्तुतः साहित्य के माध्यम से प्रभाकर जी गुणों की खेती करना चाहते थे और अपनी पुस्तकों को शिक्षा के खेत मानते थे जिनमें जीवन का पाठ्यक्रम था। वे अपने निबंधों को विचार यात्रा मानते थे और कहा करते थे- ‘इनमें प्रचार की हुंकार नहीं, सच्चे मित्र की पुकार है, जो पाठक का कंधा थपथपाकर उसे चिंतन की राह पर ले जाती है।

उनका मुख्य कार्यक्षेत्र पत्रकारिता था। ये ‘ज्ञानोदय’ के संपादक भी रहे। इनकी प्रमुख रचनाएँ – जिंदगी मुसकाई’, ‘माटी हो गई सोना’, ‘दीप जले शंख बजे’ आदि।

पाठ परिचय – एक था पेड़ और एक था ठूंठ

कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर का निबंध “एक था पेड़ एक था ठूंठ में मनुष्य के स्वभाव की तुलना बाँझ के हरे-भरे पेड़ ओर ठूंठ से की है। ठूंठ को निर्जीव जड़ता और विनाश का प्रतीक बताते हुए लेखक कहते है कि जीवन में जो व्यक्ति बिना सोचे समझे परम्परागत आदर्शों और सिद्धान्तों पर अड़े रहते हैं वास्तव में उनका जीवन निरर्थक होता है। बाँझ का हरा-भरा पेड़ जो हवा के झोकों के साथ हिलता डुलता रहता है पर उसकी जड़ उसे मजबूती से थामे रहती है। मनुष्य के विचार भी बाँझ के पेड़ की तरह होने चाहिए लचीलें और परिस्थितियों के साथ समन्वय साधने वाले। परंतु हमारे निर्णयों में दृढ़ता हो, जीवन्तता हो, विषम परिस्थितियों में भी जड़ों के समान डटे रहने की शक्ति होनी चाहिए। इस तरह इस पाठ के माध्यम से लेखक व्यक्ति के विचारों की दृढ़ता और लचीलेपन के बारे में बातचीत करते हैं और जीवन व्यवहार के सत्य को बखूबी स्पष्ट करते हैं।

एक था पेड़ और एक था ठूंठ

जिस मकान में मैं ठहरा, उसकी खिड़की के सामने ही खड़ा था एक पूरा, पनपा बाँझ का पहाड़ी पेड़ पलंग पर लेटे-लेटे वह यों दिखता कि जैसे कुशल- समाचार पूछने को आया कोई मेरा ही मित्र हो।

एक दिन उसे देखते-देखते इस बात पर मेरा ध्यान गया कि यह इतना बड़ा पेड़ हवा का तेज़ झोंका आते ही पूरा का पूरा इस तरह हिल जाता है, जैसे बीन की तान पर कोई साँप झूम रहा हो और उसका ऊपर का हिस्सा, हवा जब और तेज़ हो जाती है तो काफी झुक जाता है, पर हवा के धीमे पड़ते ही वह फिर सीधा हो जाता है।

हवा मौज में थी, अपने झोंकों में झूम रही थी, इसलिए बराबर यह क्रिया होती रही और मैं उसे देखता रहा। देखता क्या रहा, उसकी झुक-झूम में रस लेता रहा। पड़े-पड़े वह पेड़ पूरा न दिखता था, इसलिए मैं पलंग से खिड़की पर आ बैठा। अब मुझे वह पेड़ जड़ से फुंगल तक दिखाई देने लगा और मेरा ध्यान इस बात की ओर था कि हवा कितनी भी तेज़ हो, पेड़ की जड़ स्थिर रहती है हिलती नहीं है।

यहीं बैठे, मेरा ध्यान एक दूसरे पेड़ पर गया, जो इस पेड़ से काफी निचाई में था। पेड़ का ठूंठ सूखा वृक्ष और सूखा वृक्ष माने निर्जीव मुरदा वृक्ष। सोचा, यह वृक्ष का कंकाल है, जैसा एक दिन सभी को होना है। अब मैं कभी इस हरे-भरे पेड़ की ओर देखता, कभी उस सूखे ठूंठ की तरफ यों ही देखते -भालते मेरा ध्यान इस बात की ओर गया कि वह धीमे चले या वेग से यह ठूंठ न हिलता है, न झुकता है।

न हिलना, न झुकना; मन में यह दो शब्द आए और मैंने आप ही आप इन्हें अपने में दोहराया- न हिलना, न झुकना।

दूर अंतर में कुछ स्पर्श हुआ, पर वह स्पर्श सूक्ष्म था, यों ही संकेत सा शब्द चक्कर काटते रहे, न हिलना, न झुकना और तब आया वह वाक्य-न हिलना, न झुकना जीवन की स्थिरता का दृढ़ता का चिह्न है और वह वीर पुरुष है, जो न हिलता है, न झुकता है।

तभी मैंने फिर देखा उस ठूंठ की ओर। वह न हिल रहा था, न झुक रहा था। मन में अचानक प्रश्न आया- न हिलना, न झुकना जीवन की स्थिरता का चिह्न है, पर उस ठूंठ में जीवन कहाँ है? यह तो मुरदा पेड़ है।

अब मेरे सामने एक विचित्र दृश्य था कि जो जीवित था, वह हिल रहा था, और जो मृतक था वह न हिल रहा था, न झुक रहा था तो न हिलना, न झुकना जीवन की स्थिरता का चिह्न हुआ या मृत्यु की जड़ता का?

अजीब उलझन थी, पर समाधान क्या था? मैं दोनों को देख रहा था, देखता रहा और तब मेरे मन में आया कि जो परिस्थितियों के अनुसार हिलता, झुकता नहीं, वह वीर नहीं, जड़ है; क्योंकि हिलना और झुकना ही जीवन का चिह्न है।

हिलना और झुकना; अर्थात् परिस्थितियों से समझौता। जिस जीवन में समझौता नहीं, समन्वय नहीं, सामंजस्य नहीं, वह जीवन कहाँ है? वह तो जीवन की जड़ता है; जैसे यह ठूंठ और जैसे यह पहाड़ का शिखर।

मुझे ध्यान आया कि जीते-जागते जीवन में भी एक ऐसी मनोदशा आती है, जब मनुष्य हिलने और झुकने से इनकार कर देता है। अतीत में रावण और हिरण्यकश्यप इस दशा के प्रतीक थे तो इस युग में हिटलर और स्टॉलिन, जो केवल एक ही मत को सही मानते रहे और वह स्वयं उनका मत था। आज की भाषा में इसी का नाम है डिक्टेटरी, अधिनायकता।

विश्व की भाषा- दे, ले।

विश्व की जीवन-प्रणाली है – कह, सुन।

विश्व की यात्रा का पथ है – मान, मना।

इन तीनों का समन्वय है- हिलना-झुकना और समझौता – समन्वय।

जिसमें यह नहीं है, वह जड़ है, भले ही वह ठूंठ की तरह निर्जीव हो या रावण की तरह जिद्दी।

मेरी खिड़की के सामने खड़ा हिल रहा था बाँझ का विशाल पेड़ और दूर दिख रहा था वह ठूंठ। समय की बात; तभी पास के घर से निकला एक मनुष्य और वह अपनी छोटी कुल्हाड़ी से उस ठूंठ की एक छोटी टहनी काटने लगा। सामने ही दिख रही थी सड़क, जिस पर अपनी कुदाल से काम कर रहे थे कुछ मजदूर।

कुल्हाड़ी और कुदाल: कुदाल और कुल्हाड़ी- मैने बार-बार इन शब्दों को दोहराया और तब आया मेरे मन में यह वाक्य – विश्व की भाषा है, दे, ले; विश्व की जीवन प्रणाली है कह, सुन; विश्व की यात्रा का पथ है- मान, मना; अर्थात् हिल भी और झुक भी, पर जो इन्हें भूलकर जड़ हो जाता है, वह ठूंठ हो, पर्वत का शिखर हो, अहंकारी मानव हो, विश्व उससे जिस भाषा में बात करता है उसी के प्रतिनिधि हैं ये कुल्हाड़ी-कुदाल।

साफ-साफ यों कि जीवन में दो भी, लो भी, कहो भी, सुनो भी, मानो भी, मनाओ भी; और यह सब नहीं, तो तैयार रहो कि तुम काट डाले जाओ, खोद डाले जाओ, पीस डाले जाओ।

मैं खिड़की से उठकर अपने पलंग पर आ पड़ा। बाँझ का पेड़ अब भी हिल रहा था, झुक रहा था, झूम रहा था, पर तभी मेरे मन में उठा एक प्रश्न- तो क्या जीवन की चरितार्थता बस यही है कि जीवन में हवा का झोंका आया और हम हिल गए? जीवन में संघर्ष का झटका आया और हम झुक गए? साफ-साफ यों कि यहाँ वहाँ हिलते-झुकते रहना ही महत्त्वपूर्ण है और जीवन की स्थिरता दृढ़ता, जीवन के नकली सत्य ही हैं?

प्रश्न क्या है, कम्बख्त बिजली की तेज़ शॉक है यह, जो यों धकियाता है कि एक बार तो जड़ से ऊपर तक सब पाया संजोया अस्त व्यस्त हो उठे। सोचा नहीं जी, यह हिलना और झुकना जीवन की कृतार्थता नहीं, अधिक से अधिक यह कह सकते हैं कि विवशता है। जीवन की वास्तविक कृतार्थता तो न हिलना, न झुकना ही है यानी दृढ़ रहना ही है।

मैं अपने पलंग पर पड़ा देखता रहा कि बाँझ का पेड़ झुक रहा है, झूम रहा है, हिल रहा है, और दूर पर खड़ा ठूंठ न हिलता है, न झुकता है। जीवन है वृक्ष में, जो जीवन की कृतार्थता – दृढ़ता से हीन है और वह दृढ़ता है ठूंठ में, जो जीवन से हीन है; अजीब उलझन है यह।

तभी हवा का एक तेज झोंका आया और बाँस हिल उठा। मेरी दृष्टि उसकी झूमती देह यष्टि के साथ रपटी -रपटती उसकी जड़ तक चली गई और तब मैंने फिर देखा कि हवा का झोंका आता है तो टहनियाँ हिलती है, तना भी झूमता है पर अपनी जगह जमी रहती है उसकी जड़। हवा का झोंका हल्का हो या तेज, वह न झुकती है न झूमती है।

अब स्थिति यह कि कभी मैं देख रहा हूँ स्थिर जड़ को और कभी हिलते-झूमते ऊपरी भाग को। लग रहा है कि कोई बात मन में उठ रही है और वह उलझन को सुलझाने वाली है, पर वह बात क्या है? बात मन की तह से ऊपर आ रही है ऊपर आ गई है।

बात यह है कि हमारा जीवन भी इस वृक्ष की तरह होना चाहिए कि उसका कुछ भाग हिलने झुकने वाला हो और कुछ भाग स्थिर रहने वाला, यह जीवन की पूर्ण कृतार्थता है।

बात अपने में पूर्ण है, पर जरा स्पष्टता चाहती है और वह स्पष्टता यह है कि हम जीवन के विस्तृत व्यवहार में हिलते-झुकते रहें, समन्वयवादी रहें, पर सत्य के सिद्धांत के प्रश्न पर हम स्थिर रहें, दृढ़ रहें और टूट भले ही जाएँ, पर हिलें नहीं, समझौता करें नहीं।

जीवन में देह है, जीवन में आत्मा है। देह है नाशशील और आत्मा है शाश्वत, तो आत्मा को हिलना-झुकना नहीं है और देह को निरंतर हिलना झुकना ही है, नहीं तो हम हो जाएँगे रामलीला के रावण की तरह, जो बाँस की खपच्चियों पर खड़ा रहता है- न हिलता है न झुकता है। हमारे विचार लचीले हों, परिस्थितियों के साथ वे समन्वय साधते चलें, पर हमारे आदर्श स्थिर हों। हमारे पैरों में जीवन के मोर्चे पर डटे रहने की भी शक्ति हो और स्वयं मुड़कर हमें उठने-बैठने-लेटने में मदद देने की भी।

संक्षेप में जीवन की कृतार्थता यह है कि वह दृढ़ हो, पर अड़ियल न हो।

दृढ़, जो औचित्य के लिए, सत्य के लिए टूट जाता है, वह हिलता और झुकता नहीं।

अड़ियल जो औचित्य और अनौचित्य, समय-असमय का विचार किए बिना ही अड़ जाता है और टूट तो जाता है, पर हिलता झुकता नहीं।

दो टूक बात यों कि जीवन वह है जो समय पर अड़ भी सकता है और समय पर झुक भी सकता है पर ठूंठ वह है, जो अड़ ही सकता है, झुक नहीं सकता।

एक है जीवंत दृढ़ता और दूसरा निर्जीव जड़ता।

हम दृढ़ हों, जड़ नहीं।

मैंने देखा, बाँझ का पेड़ अब भी हिल रहा था, झुक रहा था और ठूंठ अनझुका अनहिला, ज्यों का त्यों खड़ा था।

 

पाठ का सारांश

यह निबंध लेखक के एक हरे-भरे बाँझ के पेड़ और एक सूखे ठूंठ के अवलोकन पर आधारित है। पेड़ हवा में हिलता-झुकता है, जो जीवन में लचीलापन और समन्वय का प्रतीक है, लेकिन उसकी जड़ दृढ़ रहती है, जो सिद्धांतों की स्थिरता दर्शाती है। ठूंठ न हिलता है न झुकता, जो जड़ता या मृत्यु का प्रतीक है। लेखक जीवन में दृढ़ता और जड़ता के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जीवन में परिस्थितियों से समझौता आवश्यक है, लेकिन सत्य पर अटल रहना चाहिए। उदाहरणों में रावण, हिटलर जैसी जिद्दी प्रवृत्तियाँ जड़ता की हैं, जबकि संतुलित जीवन जीवंत दृढ़ता का है। अंत में, जीवन दृढ़ हो लेकिन अड़ियल न हो।

 

शब्दार्थ :-

चरितार्थ – घटित होना

कृतार्थ – किसी पर उपकार करना

 देहयष्टि – शारीरिक सौष्ठव

रपटी-रपटती – फिसली – फिसलती हुई

औचित्य – जो उचित हो ठीक हो

जीवंत – जीवन युक्त

पनपा – कोंपल फूटना, फुनगी नए पत्ते निकलना

ठूंठ – सूखा पेड़

जड़ता – स्थिरता, जिसमें कोई हरकत न हो

समाधान – हल

समन्वय – विरोधी चीजों को मिलाना दोनों में तालमेल बिठाना।

शब्द

हिंदी अर्थ

English Meaning

ठूंठ

सूखा हुआ पेड़ का अवशेष

Stump (dead tree remnant)

फुंगल

पेड़ का सबसे ऊपरी भाग

Treetop

निर्जीव

जीवनरहित, मृत

Lifeless

मुरदा

मृत, निर्जीव

Dead

कंकाल

हड्डियों का ढांचा

Skeleton

स्पर्श

छूना या अनुभव

Touch or sensation

सूक्ष्म

बहुत महीन या बारीक

Subtle or minute

दृढ़ता

मजबूती, स्थिरता

Firmness

जड़ता

अचलता, निष्क्रियता

Inertia or rigidity

समन्वय

सामंजस्य स्थापित करना

Coordination

सामंजस्य

तालमेल

Harmony

अधिनायकता

तानाशाही

Dictatorship

कुल्हाड़ी

फरसा (काटने का औजार)

Axe

कुदाल

खोदने का औजार

Spade or hoe

चरितार्थता

पूर्णता या सार्थकता

Fulfillment

विवशता

मजबूरी

Helplessness

यष्टि

डंडा या तना

Staff or trunk

अड़ियल

जिद्दी, हठी

Stubborn

औचित्य

उचितता

Appropriateness

अनौचित्य

अनुचितता

Inappropriateness

पाठ से

  1. बाँझ के हरे-भरे पेड़ और ठूंठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तर – लेखक बाँझ के हरे-भरे पेड़ और ठूंठ के माध्यम से जीवन में दृढ़ता और जड़ता के अंतर को स्पष्ट करना चाहता है। हरा-भरा पेड़ जीवन का प्रतीक है, जो हवा के झोंकों में हिलता-झुकता है, अर्थात् परिस्थितियों के अनुसार समन्वय करता है, लेकिन उसकी जड़ दृढ़ रहती है, जो सिद्धांतों की स्थिरता दर्शाती है। वहीं ठूंठ मृत्यु या जड़ता का प्रतीक है, जो न हिलता है न झुकता है, लेकिन उसमें जीवन नहीं है। लेखक कहना चाहता है कि जीवन में लचीलापन और दृढ़ता का संतुलन आवश्यक है; मात्र जड़ता या अड़ियलपन मृत्यु के समान है।

  1. हमारे विचार लचीले और समन्वयवादी क्यों होने चाहिए? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – हमारे विचार लचीले और समन्वयवादी होने चाहिए क्योंकि जीवन परिस्थितियों से भरा है, जहाँ समझौता, समन्वय और सामंजस्य आवश्यक हैं। पाठ में लेखक कहते हैं कि विचार लचीले हों तो वे परिस्थितियों के साथ समन्वय साधते चलें, जैसे पेड़ का ऊपरी भाग हवा में झूमता है। यदि विचार जड़ या अड़ियल होंगे तो जीवन में प्रगति नहीं होगी, जैसे ठूंठ जो न हिलता है न झुकता है। लचीलापन हमें देना-लेना, कहना-सुनना और मानना-मनाना सिखाता है, जो विश्व की जीवन-प्रणाली है। इससे हम जीवंत रहते हैं और संघर्षों में टूटने से बचते हैं।

  1. बाँझ के हरे भरे पेड़ और ठूंठ किस मानवीय भाव को प्रकट करते हैं? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – बाँझ का हरा-भरा पेड़ जीवंत दृढ़ता के मानवीय भाव को प्रकट करता है, जहाँ व्यक्ति परिस्थितियों में लचीलापन दिखाता है लेकिन अपने सिद्धांतों पर अटल रहता है, जैसे कोई समझदार इंसान जो जीवन के उतार-चढ़ाव में समन्वय करता है। वहीं ठूंठ जड़ता या अड़ियलपन के भाव को दर्शाता है, जहाँ व्यक्ति अहंकार या जिद के कारण न झुकता है न बदलता है, जो अंततः मृत्यु या असफलता की ओर ले जाता है, जैसे कोई हठी व्यक्ति जो समझौते से इनकार करता है।

  1. दृढ़ता और जड़ता में फर्क को पाठ में किस प्रकार से बताया गया है? उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – पाठ में दृढ़ता को जीवन की पूर्ण कृतार्थता बताया गया है, जहाँ व्यक्ति सत्य और औचित्य के लिए दृढ़ रहता है लेकिन आवश्यकता पर लचीलापन दिखाता है, जबकि जड़ता को मृत्यु की जड़ता कहा गया है, जहाँ व्यक्ति बिना सोचे-समझे अड़ जाता है और न हिलता है न झुकता है। उदाहरण के रूप में, दृढ़ता पेड़ की जड़ की तरह है जो स्थिर रहती है लेकिन ऊपरी भाग हिलता-झुकता है, अर्थात् सिद्धांत दृढ़ हों लेकिन व्यवहार लचीला। जड़ता ठूंठ की तरह है, जो न हिलता है न झुकता लेकिन जीवित नहीं है। अन्य उदाहरण: रावण और हिटलर जड़ता के प्रतीक हैं, जो अपनी जिद में टूट गए, जबकि दृढ़ व्यक्ति सत्य के लिए टूटता है लेकिन अड़ियल नहीं होता।

  1. एक था पेड़ और एक था ठूंठ पाठ के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – शीर्षक ‘एक था पेड़ और एक था ठूंठ’ पूरी तरह सार्थक है क्योंकि यह जीवन और मृत्यु, दृढ़ता और जड़ता के विपरीत स्वभाव को सीधे उजागर करता है। पेड़ जीवन का प्रतीक है जो हिलता-झुकता है, जबकि ठूंठ जड़ता का, जो स्थिर लेकिन निर्जीव है। यह शीर्षक पाठ के मूल उद्देश्य को संक्षिप्त रूप में व्यक्त करता है कि जीवन में संतुलन आवश्यक है; मात्र दृढ़ता या मात्र जड़ता दोनों ही अपूर्ण हैं। यह पाठक को तुरंत विपरीतता की ओर आकर्षित करता है और निबंध के संदेश को मजबूत बनाता है।

 

पाठ से आगे

  1. पाठ में जिस प्रकार के मानव स्वभाव का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार के लोग समाज में भी दिखाई पड़ते हैं। उनका प्रभाव लोगों पर कैसे पड़ता है? इस पर आपस में चर्चा कीजिए।

उत्तर – समाज में जड़ता वाले लोग (जैसे अड़ियल या तानाशाह प्रवृत्ति के) दूसरों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं; वे संघर्ष पैदा करते हैं, समझौते नहीं करते, जिससे परिवार या समाज में तनाव बढ़ता है। उदाहरण: एक जिद्दी नेता समाज को विभाजित कर सकता है। वहीं दृढ़ लेकिन लचीले लोग (समन्वयवादी) सकारात्मक प्रभाव डालते हैं; वे शांति बनाए रखते हैं, दूसरों को प्रेरित करते हैं। चर्चा में: जड़ता वाले लोग अलग-थलग पड़ जाते हैं, जबकि समन्वयवादी सफल होते हैं।

  1. आज की परिस्थितियों में एक आदर्श व्यक्ति के जीवन की विशेषताएँ क्या-क्या हो सकती हैं? इस पर समाज के विभिन्न आयु वर्ग के लोगों से वार्ता कर इस विषय पर एक आलेख तैयार कीजिए।

उत्तर – आदर्श व्यक्ति की विशेषताएँ आज की परिस्थितियों में

आज के तेज़ बदलते दौर में आदर्श व्यक्ति वह है जो दृढ़ता और लचीलेपन का संतुलन रखे। युवा वर्ग (18-30 वर्ष) से वार्ता में पता चला कि वे तकनीकी अनुकूलन, मानसिक स्वास्थ्य और करियर लचीलापन को महत्व देते हैं। मध्यम आयु वर्ग (30-50 वर्ष) ने परिवारिक समन्वय, नैतिक दृढ़ता और आर्थिक स्थिरता पर जोर दिया। वृद्ध वर्ग (50+ वर्ष) ने सिद्धांतों पर अटल रहना लेकिन सामाजिक समझौते को आवश्यक बताया। कुल मिलाकर, आदर्श व्यक्ति ईमानदार, अनुकूलनीय, सहानुभूतिशील और सतत सीखने वाला होता है, जो चुनौतियों में झुकता है लेकिन सत्य से नहीं डिगता।

  1. अपने शिक्षक की सहायता से हिटलर, स्टालिन, रावण, हिरण्यकश्यप, डिक्टेटर आदि पर चर्चा के लिए प्रश्नों की सूची बनाइए।

उत्तर – हिटलर की तानाशाही नीतियों ने विश्व युद्ध को कैसे जन्म दिया?

स्टालिन की अधिनायकवादी शैली ने सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव डाला?

रावण की जिद्द और अहंकार ने रामायण में उसके पतन का कारण कैसे बना?

हिरण्यकश्यप की दैवीय विरोधी दृढ़ता क्या वास्तव में जड़ता थी?

डिक्टेटर आमतौर पर समझौते से क्यों इनकार करते हैं और इसका समाज पर क्या असर पड़ता है?

इन ऐतिहासिक चरित्रों से क्या सीख मिलती है? अपने विचार तर्कसहित पुष्ट कीजिए।

  1. तानाशाही क्या है? तानाशाह की जीवन शैली कैसी होती है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – तानाशाही एक ऐसी शासन प्रणाली है जहाँ सत्ता एक व्यक्ति या समूह के हाथ में केंद्रित होती है, जो विरोध को दबाता है और समझौते से इनकार करता है। इसमें लोकतंत्र की जगह अधिनायकवाद होता है। तानाशाह की जीवन शैली जिद्दी और अड़ियल होती है; वह केवल अपनी बात मानता है, दूसरों की नहीं सुनता। जैसे हिटलर या स्टालिन, जो अपनी विचारधारा को सर्वोच्च मानते थे, विरोधियों को कुचलते थे, और लगातार सत्ता बनाए रखने के लिए युद्ध या दमन का सहारा लेते थे। यह शैली अंततः पतन की ओर ले जाती है क्योंकि इसमें समन्वय की कमी होती है।

 

भाषा के बारे में

  1. सामने ही सड़क दिख रही थी।

सामने सड़क ही दिख रही थी।

सामने सड़क दिख ही रही थी।

हीयहाँ एक ऐसा शब्द है जो इन तीनों वाक्यों में प्रयुक्त होकर अर्थ को विशेष बल देता है, जिसे निपातकहते हैं। पाठ में न, नहीं तो, तक, सिर्फ, केवल आदि निपातों का प्रयोग हुआ है। उन्हें पाठ में खोज कर अर्थ परिवर्तन की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए उनके स्वतंत्र प्रयोग का अभ्यास कीजिए।

उत्तर – पाठ से निपात – न (न हिलना, न झुकना), नहीं तो (नहीं तो हम हो जाएँगे रामलीला के रावण की तरह), तक (जड़ से फुंगल तक), सिर्फ (सिर्फ एक ही मत को सही मानते रहे), केवल (केवल एक ही मत को सही मानते रहे)। स्वतंत्र प्रयोग –

 न – मैं न पढ़ूँगा, न खेलूँगा। (निषेध पर बल)

नहीं तो – काम करो, नहीं तो असफल हो जाओगे। (चेतावनी पर बल)

तक – सुबह से शाम तक काम किया। (सीमा पर बल)

सिर्फ – सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो। (सीमित पर बल)

केवल – केवल सत्य बोलो। (एकमात्र पर बल)

  1. पाठ में किन्तु, नित्य, हे, अरे, पर धीरे-धीरे, काफी, ऊपर, सामने आदि शब्द आए हैं। जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं। ऐसे शब्दों को चुनकर वाक्य में उनका प्रयोग कीजिए।

उत्तर – पाठ से अविकारी शब्द – किन्तु (समुच्चयबोधक), नित्य (क्रिया-विशेषण), हे (विस्मयादिबोधक), अरे (विस्मयादिबोधक), पर (समुच्चयबोधक), धीरे-धीरे (क्रिया-विशेषण), काफी (क्रिया-विशेषण), ऊपर (संबंधबोधक), सामने (संबंधबोधक)।

प्रयोग –

किन्तु – वह मेहनती है किन्तु भाग्यशाली नहीं।

नित्य – नित्य व्यायाम करो।

हे – हे राम, क्या हो गया!

अरे – अरे, यह क्या कर दिया!

पर – वह पढ़ता है पर खेलता नहीं।

धीरे-धीरे – धीरे-धीरे चलो।

काफी – काफी देर हो गई।

ऊपर – ऊपर देखो।

सामने – सामने आओ।

  1. दे, ले, कह, सुन, मान, मना, हिलना, डुलना आदि क्रिया पद पाठ में आए हैं, इन पदों का वाक्यों में स्वतंत्र प्रयोग कीजिए।

उत्तर – दे – मुझे किताब दे दो।

ले – पानी ले लो।

कह – सत्य कह दो।

सुन – मेरी बात सुन लो।

मान – मेरी सलाह मान लो।

मना – पार्टी में आने से मना कर दिया।

हिलना – पेड़ हिलना शुरू हो गया।

योग्यता विस्तार

  1. एक पेड़ की जड़ के समान अपने आदर्शों और सिद्धांतों पर दृढ़ रहने वाले और हवा में झूमते पेड़ की तरह समन्वयवादी रहने वाले बहुत से लोग आपके समाज में रहते हैं। उनसे उनके जीवन अनुभव पर बातचीत कर कहानी की तरह लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर – मेरे पड़ोस में रहने वाले श्री रामलाल जी एक ऐसे व्यक्ति हैं जो पेड़ की जड़ की तरह दृढ़ हैं। उन्होंने बताया कि नौकरी में भ्रष्टाचार देखकर इस्तीफा दे दिया, लेकिन परिवार के लिए छोटा व्यवसाय शुरू किया और समन्वय से सफल हुए। उनकी कहानी: “मैंने सिद्धांत नहीं छोड़े, लेकिन परिस्थितियों में झुककर नया रास्ता चुना। आज खुश हूँ।” इसी तरह, मेरी शिक्षिका सुनीता मैम समन्वयवादी हैं; वे छात्रों की समस्याओं में लचीली रहती हैं लेकिन शिक्षा के मूल्यों पर अटल। उनकी कहानी: “एक बार छात्र की गलती पर सजा की बजाय समझाया, और वह सुधर गया।”

  1. इस निबंध के लेखक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं, स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान ये जेल गए और विभिन्न प्रकार की यातनाएँ भी सहीं। आपके परिवेश में भी ऐसे लोग रहते होंगे। अपने आस-पास के वृद्ध जन और शिक्षकों से संपर्क कर इनके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए और राष्ट्र के प्रति उनके कार्य-व्यवहार पर कक्षा में विचार गोष्ठी का आयोजन कीजिए।

उत्तर – मेरे दादाजी स्वतंत्रता संग्रामी थे; उन्होंने बताया कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए और यातनाएँ सहीं। राष्ट्र के प्रति उनका कार्य: गांव में सत्याग्रह आयोजित किया, लोगों को एकजुट किया। शिक्षक से पता चला कि स्थानीय सेनानी श्री कृष्ण चंद्र ने ब्रिटिश पुलिस का सामना किया। गोष्ठी के लिए बिंदु: उनके त्याग ने आजादी दिलाई, युवाओं को प्रेरणा देते हैं; चर्चा में: कैसे उनकी दृढ़ता आज के युवाओं के लिए सबक है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

पाठ में बाँझ का पेड़ किसका प्रतीक है?

a) जड़ता

b) जीवन और लचीलापन

c) मृत्यु

d) अड़ियलपन

ठूंठ क्यों न हिलता है न झुकता है?

a) क्योंकि वह जीवित है

b) क्योंकि वह निर्जीव और मुरदा है

c) क्योंकि वह दृढ़ है

d) क्योंकि हवा नहीं चल रही

लेखक के अनुसार, न हिलना न झुकना किसका चिह्न है?

a) जीवन की स्थिरता

b) मृत्यु की जड़ता

c) वीरता

d) समन्वय

पाठ में रावण और हिटलर किस प्रवृत्ति के उदाहरण हैं?

a) लचीलापन

b) जिद्द और अधिनायकता

c) दृढ़ता

d) समझौता

विश्व की जीवन-प्रणाली क्या है?

a) केवल देना

b) कहना और सुनना

c) केवल मानना

d) अड़ जाना

कुल्हाड़ी और कुदाल किसके प्रतिनिधि हैं?

a) जीवन के

b) जड़ता को नष्ट करने के

c) दृढ़ता के

d) लचीलेपन के

जीवन की वास्तविक कृतार्थता क्या है?

a) हमेशा झुकना

b) दृढ़ रहना लेकिन अड़ियल न होना

c) न हिलना न झुकना

d) केवल जड़ता

पेड़ की जड़ किसकी तरह है?

a) हिलने वाली

b) स्थिर और दृढ़

c) झुकने वाली

d) निर्जीव

लेखक के अनुसार, देह और आत्मा में क्या अंतर है?

a) देह शाश्वत है

b) देह हिलती-झुकती है, आत्मा दृढ़ रहती है

c) दोनों हिलती हैं

d) दोनों जड़ हैं

हमारे विचार कैसे होने चाहिए?

a) जड़

b) लचीले और समन्वयवादी

c) अड़ियल

d) निर्जीव

ठूंठ को देखकर लेखक क्या सोचते हैं?

a) वह जीवित है

b) यह वृक्ष का कंकाल है

c) वह हिल रहा है

d) वह दोस्त है

हिलना और झुकना किसका चिह्न है?

a) मृत्यु का

b) जीवन का

c) जड़ता का

d) अड़ियलपन का

डिक्टेटरी का अर्थ क्या है?

a) समझौता

b) अधिनायकता

c) लचीलापन

d) दृढ़ता

जीवन में समझौता न करने वाला क्या है?

a) जीवंत

b) जड़

c) वीर

d) मजबूत

पेड़ का ऊपरी हिस्सा हवा में कैसा व्यवहार करता है?

a) स्थिर रहता है

b) झुकता और झूमता है

c) टूट जाता है

d) सूख जाता है

लेखक प्रश्न को क्या कहते हैं?

a) हवा का झोंका

b) बिजली की तेज शॉक

c) पेड़ की जड़

d) ठूंठ

जीवंत दृढ़ता और निर्जीव जड़ता में क्या फर्क है?

a) दोनों समान हैं

b) दृढ़ता समय पर झुक सकती है, जड़ता नहीं

c) जड़ता जीवंत है

d) दृढ़ता टूटती नहीं

रामलीला का रावण किसका उदाहरण है?

a) लचीलेपन का

b) न हिलने न झुकने का

c) दृढ़ता का

d) जीवन का

विश्व की यात्रा का पथ क्या है?

a) केवल देना

b) मानना और मनाना

c) केवल सुनना

d) अड़ जाना

पाठ का मुख्य संदेश क्या है?

a) हमेशा अड़ियल रहो

b) दृढ़ रहो लेकिन जड़ मत बनो

c) जीवन में कभी न झुको

d) ठूंठ बनो

‘एक था पेड़ और एक था ठूंठ’ पर आधारित 20 प्रश्नोत्तर

  1. लेखक जिस मकान में ठहरा था, उसकी खिड़की के सामने कौन-सा पेड़ खड़ा था?

उत्तर – लेखक जिस मकान में ठहरा था, उसकी खिड़की के सामने एक पूरा, पनपा बाँझ का पहाड़ी पेड़ खड़ा था।

  1. पलंग पर लेटे-लेटे लेखक को बाँझ का पेड़ कैसा दिखता था?

उत्तर – पलंग पर लेटे-लेटे लेखक को बाँझ का पेड़ ऐसा दिखता था, जैसे कुशल-समाचार पूछने को आया कोई उसका ही मित्र हो।

  1. हवा का तेज़ झोंका आने पर पेड़ की क्या क्रिया होती थी?

उत्तर – हवा का तेज़ झोंका आने पर पेड़ पूरा का पूरा इस तरह हिल जाता था, जैसे बीन की तान पर कोई साँप झूम रहा हो।

  1. लेखक ने पलंग से उठकर खिड़की पर बैठने का फैसला क्यों किया?

उत्तर – लेखक ने पलंग से उठकर खिड़की पर बैठने का फैसला इसलिए किया, क्योंकि लेटे-लेटे वह पेड़ पूरा न दिखता था।

  1. खिड़की पर बैठकर लेखक ने पेड़ की जड़ के बारे में क्या बात ध्यान दी?

उत्तर – खिड़की पर बैठकर लेखक ने ध्यान दिया कि हवा कितनी भी तेज़ हो, पेड़ की जड़ स्थिर रहती है और हिलती नहीं है।

  1. ठूंठ को देखकर लेखक के मन में क्या विचार आया?

उत्तर – ठूंठ को देखकर लेखक के मन में विचार आया कि यह वृक्ष का कंकाल है, जैसा एक दिन सभी को होना है।

  1. ठूंठ की कौन-सी विशेषता ने लेखक का ध्यान खींचा?

उत्तर – ठूंठ की यह विशेषता कि वह धीमे चले या वेग से न हिलता है, न झुकता है, ने लेखक का ध्यान खींचा।

  1. लेखक को शुरू में ‘न हिलना, न झुकना’ किसका चिह्न लगा?

उत्तर – लेखक को शुरू में ‘न हिलना, न झुकना’ जीवन की स्थिरता का और दृढ़ता का चिह्न तथा वीर पुरुष की पहचान लगा।

  1. ठूंठ को देखकर लेखक की उलझन क्या थी?

उत्तर – ठूंठ को देखकर लेखक की उलझन यह थी कि न हिलना, न झुकना जीवन की स्थिरता का चिह्न हुआ या मृत्यु की जड़ता का।

  1. लेखक के अनुसार ‘हिलना और झुकना’ किसका चिह्न है?

उत्तर – लेखक के अनुसार ‘हिलना और झुकना’ जीवन का चिह्न है और इसका अर्थ परिस्थितियों से समझौता करना है।

  1. लेखक के अनुसार, जिस जीवन में समझौता, समन्वय, और सामंजस्य नहीं, वह क्या है?

उत्तर – लेखक के अनुसार, जिस जीवन में समझौता, समन्वय, और सामंजस्य नहीं, वह जीवन की जड़ता है।

  1. लेखक ने अतीत और इस युग में अधिनायकता (डिक्टेटरी) के प्रतीक किन व्यक्तियों को बताया है?

उत्तर – लेखक ने अतीत में रावण और हिरण्यकश्यप तथा इस युग में हिटलर और स्टॉलिन को अधिनायकता का प्रतीक बताया है।

  1. लेखक ने ‘विश्व की भाषा’, ‘विश्व की जीवन-प्रणाली’ और ‘विश्व की यात्रा का पथ’ क्या बताया है?

उत्तर – लेखक ने विश्व की भाषा को ‘दे, ले’, जीवन-प्रणाली को ‘कह, सुन’ और यात्रा का पथ को ‘मान, मना’ बताया है।

  1. जो जड़ हो जाता है, विश्व उससे किस भाषा में बात करता है?

उत्तर – जो जड़ हो जाता है, विश्व उससे कुल्हाड़ी-कुदाल की भाषा में बात करता है।

  1. लेखक ने जीवन की कृतार्थता हिलने-झुकने को क्यों नहीं माना?

उत्तर – लेखक ने हिलने-झुकने को जीवन की कृतार्थता नहीं, बल्कि अधिक से अधिक विवशता माना।

  1. हवा का तेज़ झोंका आने पर बाँझ के पेड़ का कौन-सा भाग स्थिर रहा?

उत्तर – हवा का तेज़ झोंका आने पर भी बाँझ के पेड़ की जड़ अपनी जगह जमी रही और स्थिर रही।

  1. लेखक के अनुसार जीवन की पूर्ण कृतार्थता क्या है?

उत्तर – लेखक के अनुसार जीवन की पूर्ण कृतार्थता यह है कि उसका कुछ भाग हिलने-झुकने वाला हो और कुछ भाग स्थिर रहने वाला हो।

  1. लेखक ने रामलीला के रावण का उदाहरण किस संदर्भ में दिया है?

उत्तर – लेखक ने रामलीला के रावण का उदाहरण यह बताने के लिए दिया है कि शरीर को हिलना-झुकना चाहिए, नहीं तो हम उस रावण की तरह जड़ हो जाएँगे जो बाँस की खपच्चियों पर खड़ा रहता है।

  1. लेखक के अनुसार हमारे विचार कैसे होने चाहिए और हमारे आदर्श कैसे होने चाहिए?

उत्तर – लेखक के अनुसार हमारे विचार लचीले और समन्वयवादी हों, पर हमारे आदर्श स्थिर हों।

  1. लेखक ने संक्षेप में जीवन की कृतार्थता को किस रूप में परिभाषित किया है?

उत्तर – लेखक ने संक्षेप में जीवन की कृतार्थता को यह कहकर परिभाषित किया है कि वह दृढ़ हो, पर अड़ियल न हो।

 

40-50 शब्दों वाले प्रश्न और उत्तर

  1. प्रश्न – पाठ में बाँझ के पेड़ का वर्णन कैसे किया गया है?

उत्तर – बाँझ का पेड़ लेखक की खिड़की के सामने खड़ा है, जो हवा के झोंकों में हिलता-झुकता है। ऊपरी हिस्सा साँप की तरह झूमता है, लेकिन जड़ स्थिर रहती है। यह जीवन का प्रतीक है, जो लचीलापन दिखाता है लेकिन दृढ़ रहता है।

  1. प्रश्न – ठूंठ को लेखक किस रूप में देखते हैं?

उत्तर – ठूंठ को लेखक सूखा, निर्जीव वृक्ष का कंकाल मानते हैं, जो न हिलता है न झुकता। यह मृत्यु की जड़ता का प्रतीक है, जहाँ जीवन नहीं है। लेखक इसे देखकर सोचते हैं कि सभी को एक दिन ऐसा ही होना है।

  1. प्रश्न – जीवन में हिलना-झुकना क्यों आवश्यक है?

उत्तर – हिलना-झुकना परिस्थितियों से समझौता है, जो समन्वय और सामंजस्य लाता है। बिना इसके जीवन जड़ता बन जाता है, जैसे ठूंठ। यह विश्व की प्रणाली दे-ले, कह-सुन, मान-मना का हिस्सा है, जो जीवंतता बनाए रखता है।

  1. प्रश्न – दृढ़ता और जड़ता में क्या अंतर है?

उत्तर – दृढ़ता सत्य और औचित्य के लिए स्थिर रहना है, जो समय पर टूट सकती है लेकिन अड़ियल नहीं। जड़ता बिना सोचे अड़ जाना है, जो निर्जीव है। दृढ़ता जीवंत है, जबकि जड़ता ठूंठ की तरह मृत है।

  1. प्रश्न – लेखक कुल्हाड़ी और कुदाल को किस संदर्भ में देखते हैं?

उत्तर – कुल्हाड़ी और कुदाल जड़ता को नष्ट करने के प्रतिनिधि हैं। यदि कोई समझौता नहीं करता, तो विश्व उसे काट या खोद डालता है। यह दर्शाता है कि जड़ व्यक्ति को दंड मिलता है, जैसे ठूंठ को काटा जाता है।

  1. प्रश्न – जीवन की कृतार्थता क्या है?

उत्तर – जीवन की कृतार्थता दृढ़ लेकिन अड़ियल न होना है। विचार लचीले हों, आदर्श स्थिर। देह हिले-झुके, आत्मा दृढ़ रहे। समय पर अड़ना और झुकना दोनों आवश्यक, अन्यथा जीवन ठूंठ की तरह जड़ हो जाता है।

  1. प्रश्न – रावण और हिटलर किस मनोदशा के प्रतीक हैं?

उत्तर – रावण और हिटलर हिलने-झुकने से इनकार करने वाली मनोदशा के प्रतीक हैं। वे केवल अपना मत सही मानते थे, जो अधिनायकता है। यह जिद्द जीवन को जड़ बनाती है, समझौते की कमी से पतन होता है।

  1. प्रश्न – पेड़ की जड़ की क्या विशेषता है?

उत्तर – पेड़ की जड़ हवा कितनी भी तेज हो, स्थिर रहती है, न हिलती न झुकती। यह सिद्धांतों की दृढ़ता का प्रतीक है, जबकि ऊपरी भाग लचीला है। लेखक इससे जीवन में संतुलन सीखते हैं।

  1. प्रश्न – विश्व की भाषा क्या है?

उत्तर – विश्व की भाषा दे-ले है, जीवन-प्रणाली कह-सुन, यात्रा का पथ मान-मना। इनका समन्वय हिलना-झुकना है। बिना इसके व्यक्ति जड़ हो जाता है, और कुल्हाड़ी-कुदाल जैसे दंड भुगतता है।

  1. प्रश्न – लेखक की उलझन क्या थी?

उत्तर – लेखक की उलझन यह थी कि जीवित पेड़ हिलता है, जो दृढ़ता से हीन लगता है, जबकि ठूंठ दृढ़ लेकिन जीवन से हीन है। समाधान: जीवन में कुछ भाग लचीला, कुछ दृढ़ हो, जैसे पेड़।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न – पाठ के माध्यम से लेखक जीवन में दृढ़ता और लचीलेपन के संतुलन पर क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर – लेखक कहते हैं कि जीवन पेड़ की तरह होना चाहिए, जहाँ ऊपरी भाग हवा में हिलता-झुकता है, अर्थात् व्यवहार में समन्वयवादी रहें, लेकिन जड़ स्थिर रहे, अर्थात् सत्य और आदर्शों पर दृढ़ रहें। बिना लचीलेपन के जीवन जड़ता बन जाता है, जैसे ठूंठ, जो निर्जीव है। दृढ़ता औचित्य के लिए टूट सकती है, लेकिन अड़ियलपन पतन लाता है, जैसा रावण या हिटलर में। यह संतुलन जीवन की पूर्ण कृतार्थता है।

  1. प्रश्न – ठूंठ और पेड़ के अवलोकन से लेखक किस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं?

उत्तर – लेखक ठूंठ को देखकर सोचते हैं कि न हिलना न झुकना जड़ता है, जो मृत्यु का चिह्न है, जबकि पेड़ जीवन का प्रतीक है जो लचीला लेकिन जड़ से दृढ़ है। निष्कर्ष: जीवन में समझौता आवश्यक है, लेकिन सिद्धांतों पर अटल रहें। जिद्दी व्यक्ति कुल्हाड़ी-कुदाल जैसे दंड भुगतता है। यह जीवंत दृढ़ता और निर्जीव जड़ता का अंतर स्पष्ट करता है, जहाँ समय पर झुकना विवशता नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता है।

  1. प्रश्न – अधिनायकता को पाठ में कैसे चित्रित किया गया है और इसके उदाहरण क्या हैं?

उत्तर – अधिनायकता को हिलने-झुकने से इनकार करने वाली मनोदशा कहा गया है, जहाँ व्यक्ति केवल अपना मत सही मानता है, समझौते से दूर रहता है। उदाहरण: अतीत में रावण और हिरण्यकश्यप, वर्तमान में हिटलर और स्टालिन। यह जड़ता जीवन को नष्ट करती है, क्योंकि विश्व की प्रणाली दे-ले, कह-सुन है। बिना समन्वय के व्यक्ति ठूंठ की तरह काटा जाता है, जो पतन का कारण बनता है। (65 शब्द)

  1. प्रश्न – जीवन की चरितार्थता को लेखक किस प्रकार स्पष्ट करते हैं?

उत्तर – जीवन की चरितार्थता दृढ़ लेकिन अड़ियल न होना है। विचार लचीले हों, परिस्थितियों से समन्वय साधें, लेकिन आदर्श स्थिर रहें। देह नाशशील है, इसलिए हिले-झुके, आत्मा शाश्वत है, इसलिए दृढ़ रहे। समय पर अड़ना और झुकना दोनों सीखें, अन्यथा रामलीला के रावण जैसा बनें, जो न हिलता न झुकता। यह जीवंत दृढ़ता है, जो औचित्य के लिए टूट सकती है लेकिन जड़ नहीं बनती।

  1. प्रश्न – पाठ में विश्व की जीवन-प्रणाली और उसके प्रभाव को कैसे समझाया गया है?

उत्तर – विश्व की जीवन-प्रणाली दे-ले, कह-सुन, मान-मना है, जिसका समन्वय हिलना-झुकना है। बिना इसके व्यक्ति जड़ हो जाता है, चाहे ठूंठ हो या अहंकारी मानव। प्रभाव: समझौता न करने वाला काटा, खोदा या पीसा जाता है, जैसे कुल्हाड़ी-कुदाल से ठूंठ। लेखक कहते हैं, दो भी लो भी, अन्यथा दंड भुगतो। यह जीवन को जीवंत रखता है, जड़ता से बचाता है और संतुलन सिखाता है।

 

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