Path 7.1: Madhyayugeen Kavya पाठ 7.1 : मध्ययुगीन काव्य7.1.1: Meera Bai (Pad Sankalit) , Class X, Hindi Book, Chhattisgarh Board Solutions.

जीवन परिचय – मीराबाई

मीराबाई का जन्म संवत् 1573 में जोधपुर में चोकड़ी नामक गाँव में हुआ था। कम आयु में ही इनका विवाह मेवाड़ के महाराणा कुमार भोजराज के साथ हो गया था। मीरा बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। विवाह के थोड़े ही दिन के बाद मीरा बाई के पति का स्वर्गवास हो गया। पति की मृत्यु के बाद इनकी भक्ति-भावना दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। मीराबाई द्वारा कृष्णभक्ति में पद रचना और नाचना-गाना सामंती राज परिवार की परंपराओं के अनुकूल नहीं था। राज परिवार ने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सका। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका चली गई और जीवन पर्यंत वहीं रहीं।

मीरा की कविता में कृष्ण भक्ति और प्रेम का चरम उत्कर्ष मिलता है। उनकी कविता में ब्रज और मेवाड़ी दोनों का पुट मिलता है। यहाँ दिए गए पदों में उन्होंने अपने कृष्ण प्रेम का वर्णन किया है। मीरा के कृष्ण प्रेम की उत्कटता इन पदों में देखी जा सकती है। व्यक्तिगत प्रेम की इतनी उदात्त छवियाँ मध्यकालीन काव्य में दुर्लभ हैं।

पद – 01

पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे।

मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।

लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥

विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।

‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥

व्याख्या

यह पद मीरा बाई की भक्ति और उनके प्रभु कृष्ण (नारायण या गिरिधर नागर) के प्रति समर्पण को दर्शाता है। इसमें मीरा अपने नृत्य, समाज की निंदा और विष पीने की घटना का वर्णन करती हैं, जो उनकी अटूट भक्ति का प्रतीक है।

पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे।

व्याख्या – मीरा ने अपने पैरों में घुंघरू बाँध लिए और नाचने लगी। यहाँ मीरा अपनी भक्ति में मग्न होकर नृत्य करने का वर्णन कर रही हैं, जो उनके प्रभु के प्रति उत्साह और समर्पण को दिखाता है।

मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।

व्याख्या – मैं तो अपने नारायण (कृष्ण) की स्वयं की दासी हो गई हूँ। मीरा कह रही हैं कि वे पूरी तरह से भगवान की सेविका बन चुकी हैं, और उनका जीवन केवल उनकी भक्ति के लिए है।

लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥

व्याख्या – लोग कहते हैं कि मीरा पागल हो गई है, और कुछ कहते हैं कि वह कुल की नाक कटाई (परिवार की मर्यादा को नुकसान पहुँचाने वाली) है। यहाँ समाज की आलोचना का जिक्र है, जहाँ मीरा की भक्ति को पागलपन या कुल-कलंक माना जाता है, लेकिन मीरा इससे अविचलित हैं।

विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।

व्याख्या – राणाजी (मीरा के ससुराल वाले राजा) ने विष का प्याला भेजा, लेकिन पीते हुए मीरा हँसी। यह ऐतिहासिक घटना का संदर्भ है जहाँ मीरा को विष दिया गया, लेकिन उनकी भक्ति के कारण वह अमृत बन गया, और वे हँसते हुए पी गईं।

‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥

व्याख्या – मीरा के प्रभु गिरिधर (कृष्ण) नागर (नगरी के स्वामी) सहज ही मिल गए, जो अविनाशी (अमर) हैं। मीरा कह रही हैं कि उनकी भक्ति के फलस्वरूप प्रभु उन्हें स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो गए, जो शाश्वत हैं।

02

मैं तो साँवरे के रंग राची।

साजि सिंगार बाँधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची॥

गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै साँची।

गाइ गाइ हरिके गुण निस दिन, कालब्याल सूँ बाँची॥

उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब काँची।

मीरा श्रीगिरधरन लाल सूँ, भगति रसीली जाँची॥

यह पद मीरा की भक्ति रस में रंगने, सज-धजकर नाचने और साधु-संगति से प्राप्त शुद्धता का वर्णन करता है। इसमें भगवान के गुण गान और संसार की नश्वरता पर जोर है।

मैं तो साँवरे के रंग राची।

व्याख्या – मैं तो साँवरे (कृष्ण) के रंग में रंग गई हूँ। मीरा कह रही हैं कि वे पूरी तरह से कृष्ण की भक्ति में डूब चुकी हैं, जैसे कोई रंग में भीग जाता है।

साजि सिंगार बाँधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची॥

व्याख्या – सज-धजकर, पैरों में घुंघरू बाँधकर, लोक-लाज (समाज की मर्यादा) को त्यागकर नाची। मीरा ने भक्ति के लिए सांसारिक शर्म और लज्जा को छोड़ दिया और नृत्य किया।

गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै साँची।

व्याख्या – बुरी बुद्धि (कुमति) चली गई, साधुओं की संगति लेकर, भक्त रूप होकर सच्ची हो गई। साधु-संगति से मीरा की बुराइयाँ दूर हो गईं और वे सच्ची भक्त बन गईं।

गाइ गाइ हरिके गुण निस दिन, कालब्याल सूँ बाँची॥

व्याख्या – रात-दिन हरि (कृष्ण) के गुण गाते हुए, काल के फंदे (मृत्यु के भय) से बच गई। निरंतर भजन से मीरा मृत्यु के भय से मुक्त हो गईं।

उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब काँची।

व्याख्या – उनके (कृष्ण) बिना सारा जग कड़वा लगता है, और बाकी सब बातें काँच (नकली या तुच्छ) सी लगती हैं। मीरा कह रही हैं कि प्रभु के बिना दुनिया बेमानी और कड़वी है।

मीरा श्रीगिरधरन लाल सूँ, भगति रसीली जाँची॥

व्याख्या – मीरा श्री गिरिधर लाल (कृष्ण) से रसीली (रसपूर्ण) भक्ति की जाँच हुई। मीरा की भक्ति परीक्षित होकर सच्ची और रसपूर्ण सिद्ध हुई।

 

03

बसो मोरे नैनन में नंदलाल।

मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल।

अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती माल॥

छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।

मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल॥

 

यह पद कृष्ण की सुंदरता का वर्णन करता है, जो मीरा के नेत्रों में बस गए हैं। यह भक्ति रस से भरा है, जिसमें कृष्ण के शारीरिक सौंदर्य और गुणों का चित्रण है।

बसो मोरे नैनन में नंदलाल।

व्याख्या – नंदलाल (कृष्ण) मेरी आँखों में बस जाओ। मीरा प्रार्थना कर रही हैं कि कृष्ण उनके नेत्रों में सदा विराजमान रहें।

मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल।

व्याख्या – मोहने वाली मूर्ति साँवली सुंदर, नेत्र विशाल हो गए। कृष्ण की साँवली, मोहक मूर्ति देखकर मीरा के नेत्र प्रसन्न और विशाल हो जाते हैं।

अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती माल॥

व्याख्या – अधरों पर सुधारस वाली मुरली चमक रही है, उर पर वैजंती की माला। कृष्ण के होंठों पर अमृत जैसा रस वाली बांसुरी शोभित है, और छाती पर वैजंती की माला लटक रही है।

छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।

व्याख्या – छोटी घंटियाँ कमर के पास सुशोभित हैं, नूपुरों की ध्वनि रसपूर्ण है। कृष्ण की कमर पर छोटी घंटियाँ और पैरों पर नूपुर उनकी चाल को और आकर्षक बनाते हैं।

मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल॥

व्याख्या – मीरा के प्रभु संतों को सुख देने वाले, भक्तों पर कृपा करने वाले गोपाल। कृष्ण संतों के सुखदाता और भक्तवत्सल हैं, जैसा मीरा अनुभव करती हैं।

 

04

पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो॥

वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु किरपा कर अपनायो॥

जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो॥

खायो न खरच चोर न लेवे, दिन-दिन बढ़त सवायो॥

सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो॥

‘मीरा’ के प्रभु गिरधर नागर, हरस हरस जस गायो॥

 

यह पद भगवान राम (या कृष्ण के संदर्भ में) को प्राप्त करने की खुशी और सतगुरु की कृपा का वर्णन करता है। इसमें भक्ति को अमूल्य धन के रूप में देखा गया है, जो संसार की नश्वरता से ऊपर है।

पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो॥

व्याख्या – मुझे राम का रत्न धन मिल गया। मीरा कह रही हैं कि उन्हें भगवान राम (या कृष्ण) का अमूल्य रत्न प्राप्त हो गया, जो सबसे बड़ा धन है।

वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु किरपा कर अपनायो॥

व्याख्या – अमूल्य वस्तु दी, मेरे सतगुरु ने कृपा करके अपनाया। सतगुरु की कृपा से मीरा को यह अनमोल वस्तु (भगवान) प्राप्त हुई।

जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो॥

व्याख्या – जन्म-जन्म की पूँजी पा ली, जगत में सब कुछ खो दिया। कई जन्मों की कमाई (भक्ति) मिल गई, और सांसारिक सब कुछ त्याग दिया।

खायो न खरच चोर न लेवे, दिन-दिन बढ़त सवायो॥

व्याख्या – न खाया, न खर्चा, चोर भी नहीं ले जाता, दिन-दिन बढ़ता जाता। यह धन न खर्च होता है, न चोरी जाता है, बल्कि बढ़ता ही जाता है।

सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो॥

व्याख्या – सत्य की नाव के खेवनहार सतगुरु, भवसागर (संसार सागर) से पार उतर आया। सतगुरु की मार्गदर्शन से मीरा संसार के सागर से पार हो गईं।

‘मीरा’ के प्रभु गिरधर नागर, हरस हरस जस गायो॥

व्याख्या – मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हर्ष-हर्ष से जय गाया। मीरा आनंद से भरे हुए प्रभु गिरिधर की जय गाती हैं।

शब्दार्थ :-

बावरी – पगली

न्यात – नाते रिश्ते वाले

कुलनासी – कुल का नाश करने वाला

नागर – नगर में रहने वाला

अविनासी – जिसका विनाश न हो

कुमति – बुरी मति

कालब्याल – काल रूपी साँप

काँची – कच्चा

उर – हृदय

बछल – वत्सल

म्हे – मैं

अमोलक – अमूल्य

खेवटिया – नाव खेने वाला

भवसागर – संसार रूपी समुद्र

हरस – खुश, प्रसन्न



यह भी पढ़िए

मीरा ने एक पद होली के बारे में भी लिखा है उसे देखिए-

होरी खेलत हैं गिरधारी

मुरली चंग बजत डफ न्यारो

संग युवती ब्रज नारी

होरी खेलत हैं गिरधारी

चन्दन केसर छिरकत मोहन

अपने हाथ बिहारी

भरि भरि मूठ लाल चहुँ ओर

देत सबन पे डारि

होरी खेलत हैं गिरधारी

व्याख्या

यह पद भगवान कृष्ण (गिरधारी, बिहारी, मोहन) के होली खेलने के उत्सव का रसपूर्ण वर्णन करता है, जिसमें ब्रज की गोपियों (युवतियों) के साथ रंग, गुलाल और संगीत के साथ मस्ती का चित्रण है। नीचे प्रत्येक पंक्ति की व्याख्या हिंदी में दी गई है:

होरी खेलत हैं गिरधारी

व्याख्या – गिरधारी (कृष्ण, जो गोवर्धन पर्वत उठाने वाले हैं) होली खेल रहे हैं। यह पंक्ति उत्सव की शुरुआत करती है, जिसमें कृष्ण के होली खेलने की मस्ती का वर्णन है।

मुरली चंग बजत डफ न्यारो

व्याख्या – मुरली, चंग (एक प्रकार का ढोल) और अनोखा डफ बज रहा है। यहाँ होली के उत्सव में संगीत की धूम का चित्रण है, जहाँ विभिन्न वाद्य यंत्रों की ध्वनि माहौल को और आनंदमय बना रही है।

संग युवती ब्रज नारी

व्याख्या – ब्रज की युवतियाँ (गोपियाँ) कृष्ण के साथ हैं। यह पंक्ति बताती है कि कृष्ण ब्रज की गोपियों के साथ मिलकर होली खेल रहे हैं, जो उनकी भक्ति और प्रेम का प्रतीक है।

होरी खेलत हैं गिरधारी

व्याख्या – फिर से दोहराया गया कि गिरधारी (कृष्ण) होली खेल रहे हैं। यह पंक्ति उत्सव की निरंतरता और कृष्ण की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करती है।

चन्दन केसर छिरकत मोहन

व्याख्या – मोहन (कृष्ण, जो मोहक हैं) चंदन और केसर छिड़क रहे हैं। यहाँ कृष्ण के द्वारा चंदन (सुगंधित पाउडर) और केसर (सुगंधित रंग) के छिड़काव का वर्णन है, जो होली की शोभा बढ़ाता है।

अपने हाथ बिहारी

व्याख्या – बिहारी (कृष्ण, जो बिहार में विचरण करने वाले हैं) अपने हाथों से (रंग और गुलाल) छिड़क रहे हैं। यह पंक्ति कृष्ण की सक्रिय भागीदारी को दर्शाती है, जो स्वयं होली में मस्ती कर रहे हैं।

भरि भरि मूठ लाल चहुँ ओर

व्याख्या – लाल रंग (गुलाल) की मुट्ठियाँ भर-भरकर चारों ओर बिखेरी जा रही हैं। यहाँ होली में गुलाल के छिड़काव का जीवंत दृश्य है, जिसमें हर तरफ रंग बिखर रहा है।

देत सबन पे डारि

व्याख्या – सभी पर (रंग और गुलाल) डाल रहे हैं। यह पंक्ति होली के सामूहिक आनंद को दर्शाती है, जहाँ कृष्ण सभी पर रंग और गुलाल डालकर उत्सव में सभी को शामिल कर रहे हैं।

होरी खेलत हैं गिरधारी

व्याख्या – अंत में फिर से दोहराया गया कि गिरधारी (कृष्ण) होली खेल रहे हैं। यह पंक्ति पूरे उत्सव के केंद्रीय भाव को पुनः स्थापित करती है, जिसमें कृष्ण की मस्ती और भक्ति का रस है।

सारांश:

यह पद कृष्ण के ब्रज में गोपियों के साथ होली खेलने के आनंदमय दृश्य का वर्णन करता है। संगीत, चंदन-केसर, गुलाल और रंगों के साथ उत्सव की जीवंतता और भक्ति का रस इस पद में उभरकर सामने आता है। यह कृष्ण और गोपियों के प्रेम और मस्ती को दर्शाता है, जो होली के उत्सव में परिलक्षित होता है।

नीचे दी गई नज़ीर अकबराबादी की कविता मीरा के लगभग 300 साल बाद लिखी गई थी। उन्होंने होली पर अनेक कविताएँ लिखीं हैं। नज़ीर उर्दू के कवि थे और उनकी कविताओं में हिन्दू मुस्लिम सौमनस्य काफी देखने को मिलता है…..

होली

जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।

नर नारी को आनंद हुए खुशवक्ती छोरी छैयन में॥

कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में।

खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौपय्यन में॥

डफ बाजे राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकैयन में।

गुलशोर गुलाल और रंग पड़े, हुई धूम कदम की छैयन में॥

व्याख्या –

यह पद होली के उत्सव का जीवंत और आनंदमय वर्णन करता है, जिसमें नंदगाँव में भगवान कृष्ण (नंद ललन) और उनके सखा-सखियों के साथ होली खेलने का चित्रण है। यह भक्ति और उत्सव के रस से भरा हुआ है। नीचे प्रत्येक पंक्ति की व्याख्या हिंदी में दी गई है:

जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।

व्याख्या – जब नंद ललन (कृष्ण, नंद के पुत्र) ने हँसते-हँसते नंदगाँव में होली खेली। यहाँ नंदगाँव, जहाँ कृष्ण का बचपन बीता, वहाँ की होली के आनंदमय दृश्य का वर्णन है। कृष्ण के हँसते हुए होली खेलने से उत्सव का माहौल और जीवंत हो जाता है।

नर नारी को आनंद हुए खुशवक्ती छोरी छैयन में॥

व्याख्या – पुरुष और स्त्रियाँ आनंद में डूब गए, और खुशी का माहौल गलियों और छायादार स्थानों में फैल गया। यहाँ “छोरी छैयन” का अर्थ है गलियाँ और छायादार स्थान, जहाँ लोग होली के उत्सव में मस्ती कर रहे हैं। सभी लोग इस उत्सव में आनंदित हैं।

कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में।

व्याख्या – कुछ लोग गलियों में भीड़ लगाकर इकट्ठा हुए, और कुछ लोग अट्टालिकाओं (ऊँची इमारतों) पर ठट्ट (समूह) बनाकर खड़े थे। यहाँ नंदगाँव की गलियों और ऊँचे स्थानों पर लोगों के समूहों का वर्णन है, जो होली के उत्सव को देखने और उसमें भाग लेने के लिए एकत्रित हुए हैं।

खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौपय्यन में॥

व्याख्या – चारों ओर खुशहाली छा गई, कुछ लोग घर-घर में और कुछ चौपालों (गाँव के सार्वजनिक स्थानों) में उत्सव मना रहे थे। यहाँ होली की खुशी का हर जगह फैलाव दिखाया गया है, जो घरों और गाँव की चौपालों तक पहुँच गया है।

डफ बाजे राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकैयन में।

व्याख्या – ढोल और डफ बज रहे थे, रागों (संगीत) और रंगों (गुलाल-अबीर) के साथ होली खेलने का उत्साह चरम पर था। यहाँ संगीत और रंगों के मिश्रण से होली के उत्सव की जीवंतता का वर्णन है, जो “झमकैयन” (झमाझम माहौल) से व्यक्त होता है।

गुलशोर गुलाल और रंग पड़े, हुई धूम कदम की छैयन में॥

व्याख्या – गुलाल और रंगों का शोर मचा, और कदम के पेड़ों की छाँव में धूम मच गई। यहाँ होली में गुलाल और रंगों के छिड़काव से उत्पन्न उत्साह और कदम वृक्षों की छायादार जगहों में मस्ती का दृश्य चित्रित है।

सारांश –

यह पद होली के उत्सव की जीवंतता और भक्ति रस को दर्शाता है, जहाँ नंदगाँव में कृष्ण और उनके साथी होली खेल रहे हैं। गलियों, घरों, चौपालों और छायादार स्थानों में रंग, गुलाल, संगीत और नृत्य के साथ उत्सव का माहौल है। यह भक्ति और सामूहिक आनंद का सुंदर चित्रण है।

 

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