Path 7.2: Main Lekhak Kaise Bana (Aatmakatha) — Amritlal Nagar, Class X, Hindi Book, Chhattisgarh Board Solutions.

अमृतलाल नागर – जीवन परिचय

अमृत लाल नागर का जन्म आगरा में 1917 में हुआ था। पारिवारिक पृष्ठभूमि से संपन्न अमृतलाल नागर का आधुनिक हिंदी गद्य साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है, उनके कई उपन्यास जैसे नाच्यो बहुत गोपाल, सुहाग के नूपुर, अमृत और विष, बूँद और समुद्र, मानस का हंस को अनेक संस्थानों से पृरस्कृत किया गया। उन्होंने कहानी, नाटक, यात्रावृत्त, संस्मरण और अनेकानेक विधाओं में रचना की है। उन्होंने लखनऊ आकाशवाणी में लंबे समय तक काम किया और अनेक संस्थानों में प्रमुख पदों पर रहे। उनकी मृत्यु फरवरी 1990 में लखनऊ में हुई।

मैं लेखक कैसे बना

अपने बचपन और नौजवानी के दिनों का मानसिक वातावरण देखकर यह तो कह सकता हूँ कि अमुक-अमुक परिस्थितियों ने मुझे लेखक बना दिया, परंतु यह अब भी नहीं कह सकता कि मैं लेखक ही क्यों बना। मेरे बाबा जब कभी लाड़ में मुझे आशीर्वाद देते तो कहा करते थे कि “मेरा अमृत जज बनेगा।” कालांतर में उनकी यह इच्छा मेरी इच्छा भी बन गई। अपने बाबा के सपने के अनुसार ही मैं भी कहता कि विलायत जाऊँगा और जज बनूँगा।

हमारे घर में सरस्वती और गृहलक्ष्मी नामक दो मासिक पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। बाद में कलकत्ते से प्रकाशित होने वाला पाक्षिक या साप्ताहिक हिंदू-पंच भी आने लगा था। उत्तर भारतेंदु काल के सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य लेखक तथा संपादक पंडित शिवनाथजी शर्मा मेरे घर के पास ही रहते थे। उनके ज्येष्ठ पुत्र से मेरे पिता की घनिष्ठ मैत्री थी। उनके यहाँ से भी मेरे पिता जी पढ़ने के लिए अनेक पत्र-पत्रिकाएँ लाया करते थे। वे भी मैं पढ़ा करता था। हिंदी रंगमंच के उन्नानयक राष्ट्रीय कवि पंडित माधव शुक्ल लखनऊ आने पर मेरे ही घर पर ठहरते थे। मुझे उनका बड़ा स्नेह प्राप्त हुआ। आचार्य श्याम सुंदर दास उन दिनों स्थानीय कालीचरण हाई स्कूल के हेडमास्टर थे। उनका एक चित्र मेरे मन में आज तक स्पष्ट है- सुबह-सुबह नीम की दातुन चबाते हुए मेरे घर पर आना। इलाहाबाद बैंक की कोठी (जिसमें हम रहते थे) के सामने ही कंपनी बाग था। उसमें टहलकर दातून करते हुए वे हमारे यहाँ आते, वहीं हाथ-मुँह धोते फिर चाँदी के वर्क में लिपटे हुए आँवले आते, दुग्धपान होता, तब तक आचार्य प्रवर का चपरासी ‘अधीन उनकी कोठी से हुक्का, लेकर हमारे यहाँ आ पहुँचता। आध-पौन घंटे तक हुक्का गुड़गुड़ाकर वे चले जाते थे। उर्दू के सुप्रसिद्ध कवि पंडित बृजनारायण चकबस्त, के दर्शन भी मैंने अपने यहाँ ही तीन-चार बार पाए। पंडित माधव शुक्ल की दबंग आवाज और उनका हाथ बढ़ा-बढ़ाकर कविता सुनाने का ढंग आज भी मेरे मन में उनकी एक दिव्य झाँकी प्रस्तुत कर देता है। जलियाँवाला बाग कांड के बाद शुक्लजी वहाँ की खून से रँगी हुई मिट्टी एक पुड़िया में ले आए थे। उसे दिखाकर उन्होंने जाने क्या-क्या बातें मुझसे कही थीं। वे बातें तो अब तनिक भी याद नहीं पर उनका प्रभाव अब तक मेरे मन में स्पष्ट रूप से अंकित है। उन्होंने जलियाँवाला बाग कांड की एक तिरंगी तस्वीर भी मुझे दी थी। बहुत दिनों तक वो चित्र मेरे पास रहा। एक बार कुछ अंग्रेज अफसर हमारे यहाँ दावत में आने वाले थे, तभी मेरे बाबा ने वह चित्र घर से हटवा दिया। मुझे बड़ा दुख हुआ था। मेरे पिता जी आदि पूज्य माधव जी के निर्देशन में अभिनय कला सीखते थे, वह चित्र भी मेरे मन में स्पष्ट है। हो सकता है कि बचपन में इन महापुरुषों के दर्शनों के पुण्य प्रताप से ही आगे चलकर मैं लेखक बन गया होऊँ। वैसे कलम के क्षेत्र में आने का एक स्पष्ट कारण भी दे सकता हूँ।

सन् 28 में इतिहास प्रसिद्ध साइमन कमीशन दौरा करता हुआ लखनऊ नगर में भी आया था। उसके विरोध में यहाँ एक बहुत बड़ा जुलूस निकला था। पंडित जवाहर लाल नेहरू और पंडित गोविंद बल्लभ पंत आदि उस जुलूस के अगुवा थे। लड़काई उमर के जोश में मैं भी उस जुलूस में शामिल हुआ था। जुलूस मील डेढ़ मील लंबा था। उसकी अगली पंक्ति पर जब पुलिस की लाठियाँ बरसीं तो भीड़ का रेला पीछे की ओर सरकने लगा। उधर पीछे से भीड़ का रेला आगे की ओर बढ़ रहा था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि दो चक्की के पाटों में पिसकर मेरा दम घुटने लगा था। मेरे पैर जमीन से उखड़ गए थे। दाएँ-बाएँ, आगे पीछे, चारों ओर की उन्मत्त भीड़ टक्करों पर टक्करें देती थी। उस दिन घर लौटने पर मानसिक उत्तेजना वश पहली तुकबंदी फूटी। अब उसकी एक ही पंक्ति याद है: ‘कब लौं कहौं लाठी खाया करें, कब लौं कहौं जेल सहा करिए।’

वह कविता तीसरे दिन दैनिक आनंद में छप भी गई। छापे के अक्षरों में अपना नाम देखा तो नशा आ गया। बस मैं लेखक बन गया। मेरा खयाल है दो-तीन प्रारंभिक तुकबंदियों के बाद ही मेरा रुझान गद्य की ओर हो गया। कहानियाँ लिखने लगा। पंडित रूपनारायण जी पांडेय ‘कविरत्न’ मेरे घर से थोड़ी दूर पर ही रहते थे। उनके यहाँ अपनी कहानियाँ लेकर पहुँचने लगा। वे मेरी कहानियों पर कलम चलाने के बजाय सुझाव दिया करते थे। उनके प्रारंभिक उपदेशों की एक बात अब तक गाँठ में बँधी है। छोटी कहानियों के संबंध में उन्होंने बतलाया था कि कहानी में एक ही भाव का समावेश करना चाहिए। उसमें अधिक रंग भरने की गुंजाइश नहीं होती।

सन 1929 में निराला जी से परिचय हुआ और तब से लेकर 1939 तक वह परिचय दिनों-दिन घनिष्ठ होता ही चला गया। निराला जी के व्यक्तित्व ने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया। आरंभ में यदा-कदा दुलारेलालजी भार्गव के सुधा कार्यालय में भी जाया आया करता था। मिश्रबंधु बड़े आदमी थे। तीनों भाई एक साथ लखनऊ में रहते थे। तीन-चार बार उनकी कोठी पर भी दर्शनार्थ गया था। अंदरवाले बैठक में एक तखत पर तीन मसनदें और लकड़ी के तीन कैशबाक्स रक्खे थे। मसनदों के सहारे बैठे उन तीन साहित्यिक महापुरुषों की छवि आज तक मेरे मानस पटल पर ज्यों की त्यों अंकित है। रावराजा पंडित श्यामबिहारी मिश्र का एक उपदेश भी उन दिनों मेरे मन में घर कर गया था। उन्होंने कहा था, साहित्य को टके कमाने का साधन कभी नहीं बनाना चाहिए। चूँकि मैं खाते-पीते खुशहाल घर का लड़का था, इसलिए इस सिद्धांत ने मेरे मन पर बड़ी छाप छोड़ी। इस तरह सन 29-30 तक मेरे मन में यह बात एकदम स्पष्ट हो चुकी थी कि मैं लेखक ही बनूँगा।

काशी में उन दिनों अनेक महान साहित्यिक रहा करते थे। वहाँ भी जाना-आना शुरू हुआ। साल में दो चक्कर लगा आता था। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के दर्शन पाकर मैं स्फूर्ति से भर जाता था। शरत बाबू हिंदी मजे की बोल लेते थे। मुझसे कहने लगे, ‘स्कूल कॉलेज में पढ़ते समय बहुत से लड़के कविताएँ – कहानियाँ लिखने लगते हैं, लेकिन बाद में उनका यह अभ्यास छूट जाता है। इससे कोई लाभ नहीं। पहले यह निश्चय करो कि तुम आजन्म लेखक ही बने रहोगे। मैंने सोत्साह हामी भरी। शरत बाबू ने अपना एक पुराना किस्सा सुनाया। 18-19 वर्ष की आयु में उन्होंने लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त कर ली थी। क्रमशः उनकी दो-तीन किताबें छपीं और वो चमत्कारिक रूप से प्रसिद्ध हो गए… तब एक दिन रास्ते में शरत बाबू को अपने कॉलेज जीवन के एक अध्यापक मिल गए। उनका नाम बाबू पाँच कौड़ी (दत्त, डे या बनर्जी) था। वे बांग्ला साहित्य के प्रतिष्ठित आलोचक भी थे। अपने पुराने शिष्य को देखकर उन्होंने कहा: ‘शरत, मैंने सुना है कि तुम बहुत अच्छे लेखक हो गए हो लेकिन तुमने अपनी किताबें पढ़ने को नहीं दी। शरत बाबू संकुचित हो गए, विनयपूर्वक बोलेः ‘वे पुस्तकें इस योग्य नहीं कि आप जैसे पंडित उन्हें पढ़ें।’ पाँच कौड़ी बाबू बोले: ‘खैर, पुस्तकें तो मैं कहीं से लेकर पढ़ लूँगा, पर चूँकि अब तुम लेखक हो गए हो इसलिए मेरी तीन बातें ध्यान में रखना। एक तो जो लिखना सो अपने अनुभव से लिखना। दूसरे अपनी रचना को लिखने के बाद तुरंत ही किसी को दिखाने सुनाने या सलाह लेने की आदत मत डालना। कहानी लिखकर तीन महीने तक अपनी दराज में डाल दो और फिर ठंडे मन से स्वयं ही उसमें सुधार करते रहो। इससे जब यथेष्ट संतोष मिल जाए, तभी अपनी रचना को दूसरों के सामने लाओ। पाँच कौड़ी बाबू का तीसरा आदेश यह था कि अपनी कलम से किसी की निंदा मत करो।

अपने गुरु की ये तीन बातें मुझे देते हुए शरत बाबू ने चौथा उपदेश यह दिया कि यदि तुम्हारे पास चार पैसे हों तो तीन पैसे जमा करो और एक खर्च। यदि अधिक खर्चीले हो तो दो जमा करो और दो खर्च। यदि बेहद खर्चीले हो तो एक जमा करो और तीन खर्च इसके बाद भी यदि तुम्हारा मन न माने तो चारों खर्च कर डालो, मगर फिर पाँचवाँ पैसा किसी से उधार मत माँगो उधार की वृत्ति लेखक की आत्मा को हीन और मलीन कर देती है।

मैं यह तो नहीं कह सकता कि इन चारों उपदेशों को मैं शतप्रतिशत अमल में ला सकता हूँ, फिर भी यह अवश्य कह सकता हूँ कि प्रायः नब्बे फीसदी मेरे आचरण पर इन उपदेशों का प्रभाव पड़ा है।

सन 30 से लेकर 33 तक का काल लेखक के रूप में मेरे लिए बड़े ही संघर्ष का था। कहानियाँ लिखता, गुरुजनों से पास भी करा लेता परंतु जहाँ कहीं उन्हें छपने भेजता, वे गुम हो जाती थीं। रचना भेजने के बाद मैं दौड़-दौड़कर, पत्र-पत्रिकाओं के स्टाल पर बड़ी आतुरता के साथ यह देखने को जाता था कि मेरी रचना छपी है या नहीं। हर बार निराशा ही हाथ लगती। मुझे बड़ा दुख होता था, उसकी प्रतिक्रिया में कुछ महीनों तक मेरे जी में ऐसी सनक समाई कि लिखता, सुधारता सुनाता और फिर फाड़ डालता था। सन 1933 में पहली कहानी छपी। सन 1934 में माधुरी पत्रिका ने मुझे प्रोत्साहन दिया। फिर तो बराबर चीजें छपने लगीं। मैंने यह अनुभव किया है कि किसी नए लेखक की रचना का प्रकाशित न हो पाना बहुधा लेखक के ही दोष के कारण न होकर संपादकों की गैर-जिम्मेदारी के कारण भी होता है, इसलिए लेखक को हताश नहीं होना चाहिए।

सन 1935 से 37 तक मैंने अंग्रेजी के माध्यम से अनेक विदेशी कहानियों तथा गुस्ताव लाबेर के एक उपन्यास मादाम बोवेरी का हिंदी में अनुवाद भी किया। यह अनुवाद कार्य मैं छपाने की नियत से उतना नहीं करता था, जितना कि अपना हाथ साधने की नीयत से अनुवाद करते हुए मुझे उपयुक्त हिंदी शब्दों की खोज करनी पड़ती थी। इससे मेरा शब्द भंडार बढ़ा। वाक्य गठन भी पहले से अधिक निखरा।

दूसरों की रचनाएँ, विशेष रूप से कर्मठ लोकमान्य लेखकों की रचनाएँ पढ़ने से लेखक को अपनी शक्ति और कमजोरी का पता लगता है। यह हर हालत में बहुत ही अच्छी आदत है। इसने एक विचित्र तड़प भी मेरे मन में जगाई। बार-बार यह अनुभव होता था कि विदेशी साहित्य तो अंग्रेजी के माध्यम से बराबर हमारी दृष्टि में पड़ता रहता है, किंतु देशी साहित्य के संबंध में हम कुछ नहीं जान पाते। उन दिनों हिंदी वालों में बांग्ला पढ़ने का चलन तो किसी हद तक था, लेकिन अन्य भारतीय भाषाओं का साहित्य हमारी जानकारी में प्रायः नहीं के बराबर ही था। इसी तड़प में मैंने अपने देश की चार भाषाएँ सीखीं। आज तो दावे से कह सकता हूँ कि लेखक के रूप में आत्म विश्वास बढ़ाने के लिए मेरी इस आदत ने मेरा बड़ा ही उपकार किया है। विभिन्न वातावरणों को देखना, घूमना, भटकना, बहुश्रुत और बहुपठित होना भी मेरे बड़े काम आता है। यह मेरा अनुभवजन्य मत है कि मैदान में लड़नेवाले सिपाही को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए जिस प्रकार नित्य की कवायद बहुत आवश्यक होती है, उसी प्रकार लेखक के लिए उपरोक्त अभ्यास भी नितांत आवश्यक है। केवल साहित्यिक वातावरण ही में रहनेवाला कथा लेखक मेरे विचार में घाटे में रहता है। उसे निस्संकोच विविध वातावरणों से अपना सीधा संपर्क स्थापित करना ही चाहिए।

(1962, टुकड़े-टुकड़े दास्तान में संकलित)

सारांश

यह आत्मकथात्मक लेख अमृतलाल नागर द्वारा लिखा गया है, जिसमें वे बताते हैं कि कैसे विभिन्न परिस्थितियों, परिवारिक पृष्ठभूमि और साहित्यिक व्यक्तियों के प्रभाव से वे लेखक बने। बचपन में घर में आने वाली पत्रिकाएँ, पंडित शिवनाथ शर्मा, माधव शुक्ल, श्याम सुंदर दास, बृजनारायण चकबस्त जैसे महानुभावों से मिलना, जलियाँवाला बाग कांड का प्रभाव, साइमन कमीशन विरोध में भागीदारी से प्रेरित होकर पहली कविता लिखी। निराला, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, रूपनारायण पांडेय आदि से मार्गदर्शन मिला। अनुवाद कार्य, अन्य भाषाएँ सीखना और निरंतर अभ्यास ने उन्हें सशक्त लेखक बनाया। वे नए लेखकों को हताश न होने और साहित्य को धन कमाने का साधन न बनाने की सलाह देते हैं।

 

शब्दार्थ

घनिष्ठ – गहरी

उन्नायक – ऊपर उठाने वाले

साइमन कमीशन- अंग्रेजों के एक प्रतिनिधि मण्डल का नाम

गुम – खो जाना

वृत्ति – आदत

अमल में लाना – व्यवहार में लाना

सोत्साह – उत्साह के साथ

यथेष्ट – जैसा जरूरी हो

शब्द

हिंदी अर्थ

English Meaning

परिस्थितियों

हालात या वातावरण

Circumstances

आशीर्वाद

благословение या शुभकामनाएँ

Blessing

विलायत

विदेश, विशेषकर ब्रिटेन

Foreign land (esp. Britain)

सरस्वती

एक हिंदी मासिक पत्रिका का नाम

Name of a Hindi monthly magazine

गृहलक्ष्मी

एक हिंदी मासिक पत्रिका का नाम

Name of a Hindi monthly magazine

पाक्षिक

हर पंद्रह दिन में प्रकाशित

Fortnightly

साप्ताहिक

साप्ताहिक रूप से प्रकाशित

Weekly

हिंदू-पंच

एक पुरानी हिंदी पत्रिका का नाम

Name of an old Hindi periodical

उन्नायक

उत्थान करने वाला

Promoter or uplifter

दातुन

दाँत साफ करने की टहनी

Twig for cleaning teeth

दुग्धपान

दूध पीना

Drinking milk

हुक्का

तंबाकू पीने का यंत्र

Hookah

दबंग

प्रभावशाली या साहसी

Bold or dominant

पुड़िया

छोटी थैली

Small pouch

तिरंगी

तीन रंगों वाली

Tricolored

तुकबंदी

छंदबद्ध रचना

Rhymed verse

रुझान

झुकाव या रुचि

Inclination

उपदेश

सलाह या शिक्षण

Advice or precept

घनिष्ठ

बहुत निकट

Intimate

मसनद

गद्दी या तकिया

Cushion or bolster

कैशबाक्स

नकदी रखने का बक्सा

Cash box

स्फूर्ति

ऊर्जा या उत्साह

Energy or enthusiasm

संकुचित

शर्मिंदा या लज्जित

Embarrassed

निंदा

आलोचना या बदनामी

Criticism or defamation

उधार

कर्ज

Loan or debt

वृत्ति

आदत या प्रवृत्ति

Habit or tendency

आतुरता

उत्सुकता या व्यग्रता

Eagerness

प्रतिक्रिया

प्रतिक्रिया या प्रभाव

Reaction

सनक

पागलपन या जुनून

Whim or obsession

अनुवाद

भाषांतर

Translation

बहुश्रुत

बहुत सुना हुआ

Well-heard or knowledgeable

बहुपठित

बहुत पढ़ा हुआ

Well-read

निस्संकोच

बिना संकोच के

Without hesitation

कवायद

अभ्यास या ड्रिल

Exercise or drill

पाठ से

  1. लेखक बनने के लिए शरत बाबू के क्या-क्या सुझाव थे?

उत्तर – शरत बाबू ने लेखक बनने के लिए चार प्रमुख सुझाव दिए, जिनमें से पहले तीन उनके अपने गुरु पाँच कौड़ी बाबू के थे –

अनुभव से लिखें – जो कुछ भी लिखें, वह अपने अनुभव के आधार पर लिखें। कल्पना से अधिक यथार्थ को महत्त्व दें।

तुरंत न दिखाएँ – अपनी रचना लिखने के तुरंत बाद उसे किसी को दिखाने, सुनाने या सलाह लेने की आदत न डालें। उसे कुछ महीनों के लिए अलग रख दें और फिर ठंडे दिमाग से खुद उसमें सुधार करें।

निंदा न करें – अपनी कलम से कभी किसी की बुराई या निंदा न करें।

उधार न लें – अपनी आर्थिक स्थिति को संभालकर चलें और कभी किसी से उधार न माँगें, क्योंकि उधार लेने की आदत लेखक की आत्मा को कमजोर और मैला कर देती है।

  1. अमृत लाल नागर ने अपने आत्मकथ्य में अपने युग के आंदोलनों का वर्णन किया है। उन आंदोलनों का लेखक पर क्या असर हुआ?

उत्तर – लेखक ने अपने युग के दो प्रमुख आंदोलनों का वर्णन किया है, जिनका उन पर गहरा असर हुआ –

जलियाँवाला बाग कांड – इस घटना के बाद कवि पंडित माधव शुक्ल वहाँ की खून से सनी मिट्टी लेकर आए थे। उन्होंने लेखक को इस घटना के बारे में जो बातें बताईं और जो तिरंगी तस्वीर दी, उसका लेखक के बाल मन पर एक अमिट प्रभाव पड़ा। इसने उनके मन में राष्ट्रीय चेतना और देशभक्ति के बीज बोए।

साइमन कमीशन का विरोध – 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ लखनऊ में हुए जुलूस में लेखक ने भी हिस्सा लिया। पुलिस के लाठीचार्ज और भीड़ की धक्का-मुक्की में उनका दम घुटने लगा था। इस तीव्र मानसिक उत्तेजना के कारण उन्होंने अपनी पहली तुकबंदी लिखी – ‘कब लौं कहौं लाठी खाया करें, कब लौं कहौं जेल सहा करिए।’ जब यह कविता अखबार में छपी, तो उन्हें नशा सा आ गया और उन्होंने लेखक बनने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार, इस आंदोलन ने उन्हें लेखन के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रेरित किया।

  1. इस पाठ में लेखक ने अपने लेखक बनने के पीछे बहुत सारे कारणों को स्वीकार किया है। उन कारणों को लिखिए।

उत्तर – लेखक ने अपने लेखक बनने के पीछे निम्नलिखित कारणों को स्वीकार किया है –

पारिवारिक माहौल – घर में ‘सरस्वती’ और ‘गृहलक्ष्मी’ जैसी पत्रिकाओं का आना और पिता द्वारा अन्य साहित्यिक पत्रिकाएँ लाना, जिससे बचपन से ही पढ़ने का माहौल मिला।

महापुरुषों का सान्निध्य – पंडित माधव शुक्ल, आचार्य श्याम सुंदर दास, पंडित बृजनारायण चकबस्त, निराला जी और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जैसे महान साहित्यकारों और कवियों का स्नेह और दर्शन प्राप्त हुआ, जिससे उन्हें प्रेरणा मिली।

साइमन कमीशन का अनुभव – साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन के अनुभव ने उन्हें पहली कविता लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसके छपने के बाद लेखक बनने का संकल्प दृढ़ हो गया।

गुरुजनों का मार्गदर्शन – पंडित रूपनारायण पांडेय, मिश्रबंधु और शरत बाबू जैसे गुरुजनों से मिली सलाह और उपदेशों ने उनके लेखन को दिशा दी।

अनुवाद कार्य – विदेशी कहानियों और उपन्यासों का अनुवाद करने से उनका शब्द भंडार बढ़ा और वाक्य संरचना में सुधार हुआ।

अन्य भाषाओं का ज्ञान – अन्य भारतीय भाषाओं को सीखने से उनका दृष्टिकोण व्यापक हुआ और आत्मविश्वास बढ़ा।

विविध अनुभव – घूमना-फिरना और अलग-अलग तरह के माहौल और लोगों से संपर्क स्थापित करना भी उनके लेखन के लिए बहुत काम आया।

  1. साहित्य को टके कमाने का साधन कभी नहीं बनाना चाहिए।” ये कहने के पीछे क्या विचार हैं? लिखिए।

उत्तर – इस कथन के पीछे यह गहरा विचार है कि साहित्य एक कला और साधना है, व्यापार नहीं। इसके मुख्य विचार निम्नलिखित हैं –

कला की पवित्रता – साहित्य का उद्देश्य समाज को दिशा देना, मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करना और सत्य को उजागर करना है। यदि इसे पैसा कमाने का जरिया बना लिया जाए, तो लेखक की कलम बिकाऊ हो सकती है और वह कला की पवित्रता से भटक सकता है।

रचनात्मक स्वतंत्रता – जब लेखक पैसे के लिए लिखता है, तो उसे बाजार और प्रकाशकों की माँग के अनुसार लिखना पड़ता है। इससे उसकी रचनात्मक स्वतंत्रता छिन जाती है और वह वही लिखता है जो बिकता है, न कि वह जो वह लिखना चाहता है।

ईमानदारी का अभाव – पैसे का लालच लेखक को सत्य लिखने से रोक सकता है। वह किसी की प्रशंसा या निंदा भी पैसे के लिए कर सकता है, जिससे उसकी लेखनी की ईमानदारी समाप्त हो जाती है। संक्षेप में, यह उपदेश साहित्य को एक उच्च आदर्श के रूप में स्थापित करता है, जिसे धन के लालच से दूर रखना चाहिए।

  1. अंग्रेजों के दावत पर आने के पहले बाबा ने कौन सी तसवीर हटवा दी? उन्होंने उस तसवीर को क्यों हटवाया होगा? अपने विचार लिखिए।

उत्तर – अंग्रेजों की दावत से पहले बाबा ने जलियाँवाला बाग कांड की तिरंगी तस्वीर घर से हटवा दी थी।

मेरे विचार में, उन्होंने ऐसा इसलिए किया होगा क्योंकि उस दावत में अंग्रेज अफसर आने वाले थे। जलियाँवाला बाग हत्याकांड ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता का प्रतीक था। ऐसी तस्वीर को सामने रखने से अंग्रेज मेहमानों को असहजता हो सकती थी, वे इसे अपना अपमान समझ सकते थे और माहौल खराब हो सकता था। उस समय ब्रिटिश शासन था, इसलिए बाबा ने किसी भी तरह के राजनीतिक विवाद से बचने और मेहमाननवाजी के नाते सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखने के लिए उस तस्वीर को हटवा दिया होगा। यह उस समय की राजनीतिक विवशता और सामाजिक शिष्टाचार का मिला-जुला परिणाम रहा होगा।

पाठ से आगे

  1. आप के मन में भी कुछ बनने के विचार आते होंगे। आप अलग-अलग समय पर क्या-क्या बनना चाहते रहे हैं? लिखिए। यह भी बताइए कि अभी आप क्या बनना चाहते हैं और क्यों?

उत्तर – हाँ, मेरे मन में भी समय-समय पर अलग-अलग चीजें बनने के विचार आते रहे हैं। बचपन में जब मैं अंतरिक्ष की कहानियाँ सुनता था, तो अंतरिक्ष यात्री बनना चाहता था ताकि मैं सितारों और ग्रहों को करीब से देख सकूँ। कुछ समय बाद, मैं एक डॉक्टर बनना चाहता था ताकि मैं लोगों की बीमारियों को ठीक कर सकूँ।

अभी मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहता हूँ। इसका कारण यह है कि आज का युग तकनीक का है। मैं नई तकनीकें सीखना चाहता हूँ और ऐसे एप्लिकेशन और सॉफ्टवेयर बनाना चाहता हूँ जो लोगों के जीवन को आसान बना सकें और समाज की समस्याओं को सुलझाने में मदद कर सकें।

  1. लेखक ने बताया है कि उनके आस पास कई ऐसे लोग थे जिनसे वे प्रभावित हुए। आप के जीवन में भी कई लोग होंगे जिनसे आप प्रभावित होंगे। उनमें से किसी एक के बारे में संक्षेप में लिखिए।

उत्तर – मेरे जीवन में मैं सबसे अधिक अपने विज्ञान के शिक्षक श्री रमेश शर्मा जी से प्रभावित हूँ। वे सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं देते, बल्कि हर विषय को उदाहरणों और प्रयोगों से समझाते हैं। वे बहुत धैर्यवान हैं और तब तक समझाते हैं जब तक कि हर छात्र को समझ न आ जाए। उनकी सबसे अच्छी बात यह है कि वे हमें सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और कहते हैं कि ‘कोई भी सवाल छोटा नहीं होता।’ उन्हीं की वजह से विज्ञान में मेरी रुचि जगी और मुझमें आत्मविश्वास आया कि मैं भी मुश्किल चीजों को समझ सकता हूँ।

  1. किसी घटना का वर्णन कीजिए जिसका आप पर बहुत प्रभाव पड़ा हो।

उत्तर – एक बार गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने गाँव गया था। वहाँ मैंने देखा कि एक कुत्ता कीचड़ में फँस गया था और निकल नहीं पा रहा था। सभी लोग उसे देखकर हँस रहे थे या अनदेखा कर रहे थे। तभी एक गरीब मजदूर, जो दिन भर काम करके थका-हारा लौट रहा था, रुका। उसने बिना किसी हिचकिचाहट के कीचड़ में उतरकर उस कुत्ते को बाहर निकाला और पास के नल से उसे नहलाया। उस व्यक्ति के कपड़ों पर कीचड़ लग गया था, लेकिन उसके चेहरे पर संतोष का भाव था। इस घटना ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला। मैंने सीखा कि सच्ची मानवता और दयालुता किसी की हैसियत की मोहताज नहीं होती।

  1. पाठ के दूसरे अनुच्छेद में लेखक ने श्री श्यामसुंदर दास का एक चित्र अपने शब्दों से खींचा है। आप भी वैसे ही किसी व्यक्ति के बारे में लिखिए।

उत्तर – हमारे मोहल्ले के कोने में एक मोची बैठते हैं, जिनका नाम रामभरोसे है। सुबह ठीक आठ बजे वे अपनी छोटी -सी लकड़ी की पेटी लेकर नीम के पेड़ के नीचे आ जाते हैं। उनकी उम्र साठ के पार होगी, चेहरे पर झुर्रियाँ और आँखों पर मोटा चश्मा है। वे हमेशा एक मैला-सा कुर्ता और धोती पहने रहते हैं। काम शुरू करने से पहले वे अपनी पेटी खोलकर अपने औजारों—सुई, धागा, रांपी, कीलें—को करीने से सजाते हैं, जैसे कोई पुजारी पूजा की तैयारी कर रहा हो। फिर वे पूरे दिन चुपचाप सिर झुकाए लोगों के जूते-चप्पल ठीक करते रहते हैं। उनके हाथ बड़ी कुशलता से चलते हैं। शाम को जब वे अपना सामान समेटते हैं, तो उनके चेहरे पर दिन भर की मेहनत की थकान के साथ एक अजीब सी शांति होती है।

भाषा के बारे में

  1. पाठ में कई स्थानों पर अलग-अलग तरह के वाक्य प्रयुक्त हुए हैं। कुछ स्थानों पर क्रिया करने वाला यानी कर्ता महत्त्वपूर्ण है तो कहीं पर कर्म को ज्यादा महत्त्व दिया गया है।

जिस वाक्य में वाच्य बिन्दु कर्ताहै उसे कर्तृ वाच्य कहते हैं। जैसे राम रोटी खाता हैतथा जिस वाक्य में वाच्य बिन्दु कर्त्ता न होकर कर्म हो वह कर्म वाच्य कहलाता है। जैसे- रोटी, राम के द्वारा खाई गई।

आप पाठ में से खोजकर ऐसे वाक्यों को नीचे दी हुई तालिका के रूप में लिखिए-

क्र.सं. कर्म वाच्य (काम को महत्त्व)        कर्ता वाच्य (कर्ता को महत्त्व)

  1. इससे मेरा शब्द भंडार बढ़ा। 1. मैं लेखक बन गया।

उत्तर –

क्र.सं.

कर्म वाच्य (काम को महत्त्व)

क्र.सं.

कर्तृ वाच्य (कर्ता को महत्त्व)

1.

वह कविता तीसरे दिन दैनिक आनंद में छप भी गई।

1.

मैं लेखक बन गया।

2.

सन 1933 में पहली कहानी छपी।

2.

मैंने अपने देश की चार भाषाएँ सीखीं।

3.

जहाँ कहीं उन्हें छपने भेजता, वे गुम हो जाती थीं।

3.

शरत बाबू हिंदी मजे की बोल लेते थे।

4.

दुग्धपान होता।

4.

वे मेरी कहानियों पर कलम चलाने के बजाय सुझाव दिया करते थे।

 

  1. अपने शिक्षक की सहायता से भाव वाच्य की परिभाषा लिखिए तथा उदाहरणों का संकलन कीजिए।

उत्तर – परिभाषा: जिस वाक्य में कर्ता या कर्म की प्रधानता न होकर क्रिया के भाव (action/emotion) की प्रधानता होती है, उसे भाव वाच्य (Impersonal Voice) कहते हैं। इसमें क्रिया हमेशा अकर्मक, अन्य पुरुष, पुल्लिंग और एकवचन में रहती है। यह अक्सर असमर्थता या अवस्था बताने के लिए प्रयोग होता है।

उदाहरण:

  1. मुझसे अब चला नहीं जाता।
  2. चलो, अब सोया जाए।
  3. मरीज से उठा नहीं जाता।
  4. पक्षियों से उड़ा जाता है।
  5. बच्चों से चुप नहीं रहा जाता।

योग्यता विस्तार

  1. साइमन कमीशन के बारे में पता कीजिए। वह क्या था, और लोग उसका विरोध क्यों कर रहे थे? लिखिए।

उत्तर – साइमन कमीशन ब्रिटिश सरकार द्वारा 1928 में भारत भेजा गया एक सात सदस्यीय आयोग था, जिसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे।

यह क्या था – इस आयोग का मुख्य उद्देश्य भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करना और भविष्य के लिए सुझाव देना था। इसे यह देखना था कि 1919 का भारत सरकार अधिनियम कहाँ तक सफल रहा और आगे क्या बदलाव किए जाने चाहिए।

विरोध का कारण – भारतीय लोग इसका विरोध इसलिए कर रहे थे क्योंकि इस आयोग के सभी सात सदस्य अंग्रेज थे; इसमें एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया था। भारतीयों का मानना था कि उनके देश के भविष्य का फैसला करने वाले आयोग में उनकी कोई भागीदारी न होना एक बहुत बड़ा अपमान है। इसीलिए पूरे देश में “साइमन वापस जाओ” (Simon Go Back) के नारों के साथ इसका जोरदार विरोध हुआ।

  1. अपने स्कूल के सामाजिक विज्ञान के शिक्षक से मिल कर राष्ट्रीय आंदोलन के बारे में बात कीजिए और उसमें भाग लेने वाले नेताओं के बारे में लिखिए।

उत्तर – भारत का राष्ट्रीय आंदोलन एक लंबा और बहुआयामी संघर्ष था जिसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था। इस आंदोलन में कई महान नेताओं ने अपना योगदान दिया, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं –

महात्मा गांधी – उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता है। उन्होंने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर चलकर असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे बड़े जनांदोलनों का नेतृत्व किया।

जवाहरलाल नेहरू – वे भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। वे एक दूरदर्शी नेता थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और आधुनिक भारत की नींव रखी।

सरदार वल्लभभाई पटेल – उन्हें ‘भारत का लौह पुरुष’ कहा जाता है। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने 500 से अधिक रियासतों का भारत में विलय कराकर देश को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सुभाष चंद्र बोस – उन्होंने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ का नारा दिया। उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन कर सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाया।

भगत सिंह – वे एक महान क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए हँसते-हँसते फाँसी को गले लगा लिया। उनके बलिदान ने लाखों युवाओं को प्रेरित किया।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर – वे भारतीय संविधान के निर्माता थे। उन्होंने सामाजिक सुधार, विशेषकर दलितों के अधिकारों के लिए अथक संघर्ष किया।

  1. पाठ में कई बड़े लेखकों के नाम आए हैं। उनकी एक सूची बनाइए और पुस्तकालय से उनकी रचनाओं के नाम खोज कर लिखिए।

उत्तर – पाठ में आए प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

लेखक का नाम

प्रमुख रचनाएँ

भारतेंदु हरिश्चंद्र

अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा

आचार्य श्याम सुंदर दास

साहित्यालोचन, हिंदी कोविद रत्नमाला, मेरी आत्मकहानी

पंडित बृजनारायण चकबस्त

सुबह-ए-वतन (कविता संग्रह)

पंडित जवाहरलाल नेहरू

भारत की खोज (The Discovery of India), विश्व इतिहास की झलक

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

परिमल, अनामिका, राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति, कुकुरमुत्ता

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

देवदास, परिणीता, श्रीकान्त, चरित्रहीन, पथेर दाबी

गुस्ताव फ़्लोबेर

मादाम बोवेरी (Madame Bovary)

 

 

बहुविकल्पीय प्रश्न

लेखक के बाबा उन्हें क्या बनने का आशीर्वाद देते थे?

a) डॉक्टर

b) जज

c) इंजीनियर

d) शिक्षक

उत्तर – b) जज 

लेखक के घर में कौन-सी दो मासिक पत्रिकाएँ नियमित आती थीं?

a) सरस्वती और गृहलक्ष्मी

b) हिंदू-पंच और माधुरी

c) सुधा और सरस्वती

d) माधुरी और हिंदू-पंच

उत्तर – a) सरस्वती और गृहलक्ष्मी 

पंडित माधव शुक्ल लखनऊ आने पर कहाँ ठहरते थे?

a) लेखक के घर पर

b) होटल में

c) मित्र के घर पर

d) स्कूल में

उत्तर – a) लेखक के घर पर 

आचार्य श्याम सुंदर दास किस स्कूल के हेडमास्टर थे?

a) कालीचरण हाई स्कूल

b) कंपनी बाग स्कूल

c) इलाहाबाद बैंक स्कूल

d) लखनऊ यूनिवर्सिटी

उत्तर – a) कालीचरण हाई स्कूल 

जलियाँवाला बाग कांड के बाद माधव शुक्ल ने लेखक को क्या दिखाया?

a) खून से रँगी मिट्टी

b) एक किताब

c) एक पत्रिका

d) एक फोटो

उत्तर – a) खून से रँगी मिट्टी 

साइमन कमीशन के विरोध में लेखक ने क्या किया?

a) जुलूस में शामिल हुए

b) पत्र लिखा

c) भाषण दिया

d) किताब पढ़ी

उत्तर – a) जुलूस में शामिल हुए 

लेखक की पहली तुकबंदी किस घटना से फूटी?

a) साइमन कमीशन विरोध

b) जलियाँवाला बाग कांड

c) निराला से मिलना

d) शरतचंद्र से मिलना

उत्तर – a) साइमन कमीशन विरोध 

पंडित रूपनारायण पांडेय ने छोटी कहानियों के बारे में क्या सुझाव दिया?

a) एक ही भाव का समावेश

b) कई रंग भरना

c) लंबी बनाना

d) कविता जोड़ना

उत्तर – a) एक ही भाव का समावेश 

निराला जी से लेखक का परिचय कब हुआ?

a) सन 1929 में

b) सन 1928 में

c) सन 1930 में

d) सन 1933 में

उत्तर – a) सन 1929 में 

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने लेखक को क्या निश्चय करने की सलाह दी?

a) आजन्म लेखक बने रहना

b) जज बनना

c) व्यापार करना

d) शिक्षक बनना

उत्तर – a) आजन्म लेखक बने रहना 

पाँच कौड़ी बाबू ने शरत बाबू को कितनी बातें ध्यान रखने को कही?

a) तीन

b) चार

c) दो

d) पाँच

उत्तर – a) तीन 

शरत बाबू ने लेखक को कितने पैसे जमा करने की सलाह दी?

a) तीन पैसे जमा, एक खर्च

b) दो जमा, दो खर्च

c) एक जमा, तीन खर्च

d) सभी विकल्प सही

उत्तर – d) सभी विकल्प सही 

सन 1933 में लेखक की क्या छपी?

a) पहली कहानी

b) पहली कविता

c) पहला उपन्यास

d) पहला अनुवाद

उत्तर – a) पहली कहानी 

लेखक ने किस उपन्यास का हिंदी अनुवाद किया?

a) मादाम बोवेरी

b) वॉर एंड पीस

c) प्राइड एंड प्रेजुडिस

d) द ग्रेट गैट्सबी

उत्तर – a) मादाम बोवेरी 

लेखक ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए क्या सीखा?

a) चार देशी भाषाएँ

b) अंग्रेजी

c) फ्रेंच

d) जर्मन

उत्तर – a) चार देशी भाषाएँ 

लेखक के अनुसार साहित्य को क्या नहीं बनाना चाहिए?

a) टके कमाने का साधन

b) मनोरंजन का साधन

c) शिक्षा का साधन

d) कला का साधन

उत्तर – a) टके कमाने का साधन 

मिश्रबंधु की कोठी पर क्या रखा था?

a) तीन मसनदें और कैशबाक्स

b) किताबें

c) पत्रिकाएँ

d) चित्र

उत्तर – a) तीन मसनदें और कैशबाक्स 

लेखक को निराशा क्यों हाथ लगती थी?

a) रचनाएँ गुम हो जातीं

b) संपादक अस्वीकार करते

c) पाठक न पढ़ते

d) पैसा न मिलता

उत्तर – a) रचनाएँ गुम हो जातीं 

लेखक के अनुसार लेखक को क्या आवश्यक है?

a) विविध वातावरणों से संपर्क

b) केवल साहित्यिक वातावरण

c) घर में रहना

d) यात्रा न करना

उत्तर – a) विविध वातावरणों से संपर्क 

यह लेख किस पुस्तक में संकलित है?

a) टुकड़े-टुकड़े दास्तान

b) मैं लेखक कैसे बना

c) माधुरी

d) सुधा

उत्तर – a) टुकड़े-टुकड़े दास्तान 

पूर्ण-वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर

प्रश्न – लेखक के बाबा उन्हें लाड़ में क्या आशीर्वाद देते थे?

उत्तर – लेखक के बाबा उन्हें लाड़ में आशीर्वाद देते हुए कहते थे कि “मेरा अमृत जज बनेगा।”

प्रश्न – लेखक के घर में कौन सी मासिक पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं?

उत्तर – लेखक के घर में सरस्वती और गृहलक्ष्मी नामक दो मासिक पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं।

प्रश्न – कौन से राष्ट्रीय कवि लखनऊ आने पर लेखक के घर पर ही ठहरते थे?

उत्तर – हिंदी रंगमंच के उन्नायक राष्ट्रीय कवि पंडित माधव शुक्ल लखनऊ आने पर लेखक के घर पर ही ठहरते थे।

प्रश्न – पंडित माधव शुक्ल जलियाँवाला बाग से निशानी के तौर पर क्या लाए थे?

उत्तर – पंडित माधव शुक्ल जलियाँवाला बाग से वहाँ की खून से रँगी हुई मिट्टी एक पुड़िया में ले आए थे।

प्रश्न – लेखक के बाबा ने घर से कौन सी तस्वीर हटवा दी थी?

उत्तर – लेखक के बाबा ने जलियाँवाला बाग कांड की एक तिरंगी तस्वीर घर से हटवा दी थी क्योंकि कुछ अंग्रेज अफसर दावत पर आने वाले थे।

प्रश्न – किस ऐतिहासिक घटना ने लेखक को पहली तुकबंदी लिखने के लिए प्रेरित किया?

उत्तर – सन् 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में हुए जुलूस की घटना ने लेखक को पहली तुकबंदी लिखने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न – लेखक की पहली तुकबंदी की कौन सी पंक्ति उन्हें अब तक याद है?

उत्तर – लेखक को अपनी पहली तुकबंदी की यह पंक्ति याद है: ‘कब लौं कहौं लाठी खाया करें, कब लौं कहौं जेल सहा करिए।’

प्रश्न – लेखक की पहली कविता किस समाचार पत्र में छपी थी?

उत्तर – लेखक की पहली कविता दैनिक आनंद में छपी थी।

प्रश्न – पंडित रूपनारायण जी पांडेय ने छोटी कहानियों के बारे में क्या सुझाव दिया था?

उत्तर – पंडित रूपनारायण जी पांडेय ने सुझाव दिया था कि कहानी में एक ही भाव का समावेश करना चाहिए।

प्रश्न – किस साहित्यकार के व्यक्तित्व ने लेखक को बहुत अधिक प्रभावित किया?

उत्तर – निराला जी के व्यक्तित्व ने लेखक को बहुत अधिक प्रभावित किया।

प्रश्न – रावराजा पंडित श्यामबिहारी मिश्र ने साहित्य को लेकर क्या महत्वपूर्ण उपदेश दिया था?

उत्तर – रावराजा पंडित श्यामबिहारी मिश्र ने यह उपदेश दिया था कि साहित्य को टके कमाने का साधन कभी नहीं बनाना चाहिए।

प्रश्न – शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने लेखक बनने के लिए सबसे पहली शर्त क्या बताई?

उत्तर – शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने सबसे पहली शर्त यह बताई कि पहले यह निश्चय करो कि तुम आजन्म लेखक ही बने रहोगे।

प्रश्न – शरत बाबू के गुरु पाँच कौड़ी बाबू का पहला उपदेश क्या था?

उत्तर – शरत बाबू के गुरु पाँच कौड़ी बाबू का पहला उपदेश यह था कि जो कुछ भी लिखो, अपने अनुभव से लिखो।

प्रश्न – रचना लिखने के बाद उसे कितने समय तक अपनी दराज में रखने की सलाह दी गई थी?

उत्तर – रचना लिखने के बाद उसे तीन महीने तक अपनी दराज में रखने की सलाह दी गई थी।

प्रश्न – शरत बाबू ने पैसे के मामले में लेखक को क्या चौथा उपदेश दिया?

उत्तर – शरत बाबू ने चौथा उपदेश यह दिया कि कभी किसी से उधार मत माँगो क्योंकि उधार की वृत्ति लेखक की आत्मा को हीन और मलीन कर देती है।

प्रश्न – लेखक की पहली कहानी किस वर्ष में छपी?

उत्तर – लेखक की पहली कहानी सन् 1933 में छपी।

प्रश्न – सन् 1934 में किस पत्रिका ने लेखक को प्रोत्साहन दिया था?

उत्तर – सन् 1934 में माधुरी पत्रिका ने लेखक को प्रोत्साहन दिया था।

प्रश्न – लेखक ने अनुवाद कार्य किस मुख्य उद्देश्य से किया?

उत्तर – लेखक ने अनुवाद कार्य मुख्य रूप से अपना हाथ साधने (अभ्यास करने) की नीयत से किया।

प्रश्न – अनुवाद कार्य करने से लेखक को क्या-क्या लाभ हुए?

उत्तर – अनुवाद कार्य करने से लेखक का शब्द भंडार बढ़ा और उनका वाक्य गठन भी पहले से अधिक निखर गया।

प्रश्न – लेखक के अनुसार एक कथा लेखक को केवल साहित्यिक वातावरण में ही क्यों नहीं रहना चाहिए?

उत्तर – लेखक के अनुसार, एक कथा लेखक को केवल साहित्यिक वातावरण में ही नहीं रहना चाहिए क्योंकि उसे विविध वातावरणों से सीधा संपर्क स्थापित करके अनुभव प्राप्त करना आवश्यक होता है।

 

40-50 शब्दों वाले प्रश्न और उत्तर

  1. प्रश्न – लेखक के बचपन में घर का साहित्यिक वातावरण कैसा था?

उत्तर – लेखक के घर में सरस्वती और गृहलक्ष्मी जैसी मासिक पत्रिकाएँ आती थीं। बाद में हिंदू-पंच भी आने लगा। पड़ोस में पंडित शिवनाथ शर्मा रहते थे, जिनसे पिता पत्रिकाएँ लाते। माधव शुक्ल, श्याम सुंदर दास, चकबस्त जैसे महानुभाव घर आते, जो लेखक को प्रभावित करते थे।

  1. प्रश्न – जलियाँवाला बाग कांड का लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर – माधव शुक्ल ने जलियाँवाला बाग की खून से रँगी मिट्टी और तिरंगी तस्वीर दिखाई। बातें भूल गईं, लेकिन प्रभाव मन में अंकित रहा। एक बार अंग्रेज अफसरों के आने पर बाबा ने चित्र हटवा दिया, जिससे लेखक को दुख हुआ। यह राष्ट्रवाद की प्रेरणा बना।

  1. प्रश्न – साइमन कमीशन विरोध ने लेखक को कैसे प्रभावित किया?

उत्तर – 1928 में साइमन कमीशन के विरोध जुलूस में लेखक शामिल हुए। पुलिस की लाठियाँ बरसीं, भीड़ में दम घुटा। घर लौटकर उत्तेजना में पहली तुकबंदी लिखी: ‘कब लौं कहौं लाठी खाया करें…’। यह दैनिक आनंद में छपी, जिससे लेखक को नशा आया और वे लेखक बन गए।

  1. प्रश्न – पंडित रूपनारायण पांडेय ने लेखक को क्या सुझाव दिए?

उत्तर – रूपनारायण पांडेय ‘कविरत्न’ लेखक की कहानियाँ सुधारने के बजाय सुझाव देते। छोटी कहानियों में एक ही भाव का समावेश करने की सलाह दी, क्योंकि अधिक रंग भरने की गुंजाइश नहीं। यह उपदेश लेखक के मन में गाँठ बाँध गया और उनकी लेखन शैली को प्रभावित किया।

  1. प्रश्न – निराला जी और अन्य साहित्यकारों से लेखक का परिचय कैसे हुआ?

उत्तर – 1929 में निराला जी से परिचय हुआ, जो 1939 तक घनिष्ठ बना। दुलारेलाल भार्गव के सुधा कार्यालय और मिश्रबंधु की कोठी पर जाते। श्यामबिहारी मिश्र ने साहित्य को धन कमाने का साधन न बनाने की सलाह दी। काशी में शरतचंद्र से मिले, जो उन्हें स्फूर्ति देते।

  1. प्रश्न – शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने लेखक को क्या उपदेश दिए?

उत्तर – शरत बाबू ने आजन्म लेखक बने रहने का निश्चय करने को कहा। पाँच कौड़ी बाबू के तीन उपदेश दिए: अनुभव से लिखना, रचना तीन महीने दराज में रखकर सुधारना, निंदा न करना। चौथा उपदेश: पैसे जमा करो, उधार मत माँगो, क्योंकि यह आत्मा को हीन करता है।

  1. प्रश्न – लेखक के लेखन संघर्ष का वर्णन कीजिए।

उत्तर – 1930-33 तक कहानियाँ लिखकर गुरुओं से पास कराते, लेकिन छपने भेजने पर गुम हो जातीं। स्टाल पर जाकर देखते, निराशा मिलती। प्रतिक्रिया में लिखकर फाड़ देते। 1933 में पहली कहानी छपी, 1934 में माधुरी ने प्रोत्साहन दिया, तब चीजें बराबर छपने लगीं।

  1. प्रश्न – अनुवाद कार्य से लेखक को क्या लाभ हुआ?

उत्तर – 1935-37 तक अंग्रेजी से विदेशी कहानियाँ और मादाम बोवेरी का अनुवाद किया। छपाने से ज्यादा हाथ साधने के लिए। उपयुक्त हिंदी शब्द खोजने से शब्द भंडार बढ़ा, वाक्य गठन निखरा। दूसरों की रचनाएँ पढ़ने से अपनी शक्ति-कमजोरी का पता लगा।

  1. प्रश्न – लेखक ने देशी भाषाएँ क्यों सीखीं?

उत्तर – विदेशी साहित्य अंग्रेजी से आता था, लेकिन देशी साहित्य की जानकारी कम थी। तड़प में चार भारतीय भाषाएँ सीखीं। इससे आत्मविश्वास बढ़ा। विविध वातावरण देखना, घूमना, बहुश्रुत-बहुपठित होना लेखक के लिए आवश्यक माना, जैसे सिपाही की कवायद।

  1. प्रश्न – लेखक नए लेखकों को क्या सलाह देते हैं?

उत्तर – रचना प्रकाशित न होने पर हताश न हों, क्योंकि संपादकों की गैर-जिम्मेदारी भी कारण होती है। साहित्य को धन कमाने का साधन न बनाएँ। विविध वातावरणों से संपर्क रखें, केवल साहित्यिक वातावरण में न रहें। निरंतर अभ्यास से लेखन मजबूत होता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न और उत्तर

  1. प्रश्न – लेखक के बचपन और नौजवानी के साहित्यिक प्रभावों का वर्णन कीजिए।

उत्तर – लेखक के बचपन में घर में सरस्वती, गृहलक्ष्मी, हिंदू-पंच जैसी पत्रिकाएँ आतीं। पड़ोसी शिवनाथ शर्मा से पत्रिकाएँ मिलतीं। माधव शुक्ल घर ठहरते, श्याम सुंदर दास दातुन चबाते आते, हुक्का पीते। चकबस्त के दर्शन हुए। जलियाँवाला बाग की मिट्टी और तस्वीर से राष्ट्रवाद जगा। इन महापुरुषों के प्रभाव से लेखक बनने की प्रेरणा मिली, हालाँकि स्पष्ट कारण साइमन कमीशन विरोध था।

  1. प्रश्न – साइमन कमीशन विरोध और पहली रचना के बारे में बताइए।

उत्तर – 1928 में साइमन कमीशन लखनऊ आया। विरोध जुलूस में नेहरू, पंत अगुवा थे। लेखक जोश में शामिल हुए। लाठियाँ बरसीं, भीड़ में दम घुटा, पैर जमीन से उखड़े। घर लौटकर उत्तेजना में पहली तुकबंदी लिखी, जो दैनिक आनंद में छपी। नाम देखकर नशा आया, लेखक बन गए। बाद में गद्य की ओर रुझान, कहानियाँ लिखीं। रूपनारायण पांडेय से सुझाव मिले।

  1. प्रश्न – शरतचंद्र चट्टोपाध्याय और पाँच कौड़ी बाबू के उपदेशों का वर्णन कीजिए।

उत्तर – काशी में शरत बाबू से मिलकर स्फूर्ति मिली। उन्होंने आजन्म लेखक बने रहने का निश्चय करने को कहा। अपना किस्सा सुनाया: प्रसिद्धि के बाद गुरु पाँच कौड़ी बाबू मिले, तीन उपदेश दिए- अनुभव से लिखना, रचना तीन महीने रखकर सुधारना, निंदा न करना। शरत बाबू ने चौथा जोड़ा: पैसे जमा करो, उधार मत माँगो, क्योंकि यह आत्मा को मलीन करता है। लेखक ने इन्हें 90% अमल में लाया।

  1. प्रश्न – लेखक के संघर्ष काल और सफलता का वर्णन कीजिए।

उत्तर – 1930-33 तक कहानियाँ लिखकर गुरुओं से पास कराते, लेकिन छपने भेजने पर गुम हो जातीं। स्टाल पर जाकर निराश होते, फिर लिखकर फाड़ देते। 1933 में पहली कहानी छपी, 1934 में माधुरी ने प्रोत्साहन दिया। अनुवाद से शब्द भंडार बढ़ा। नए लेखकों को हताश न होने की सलाह, क्योंकि संपादकों की गैर-जिम्मेदारी भी कारण। साहित्य को धन साधन न बनाएँ।

  1. प्रश्न – लेखक के अनुसार लेखक बनने के लिए आवश्यक अभ्यास क्या हैं?

उत्तर – लेखक ने चार देशी भाषाएँ सीखीं, क्योंकि विदेशी साहित्य तो आता था, लेकिन देशी कम। इससे आत्मविश्वास बढ़ा। विविध वातावरण देखना, घूमना, बहुश्रुत-बहुपठित होना आवश्यक। केवल साहित्यिक वातावरण में रहना घाटे का। जैसे सिपाही की कवायद, लेखक को निरंतर अभ्यास चाहिए। दूसरों की रचनाएँ पढ़ने से शक्ति-कमजोरी पता लगती, विचित्र तड़प जगती।

 

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