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यशपाल – लेखक परिचय

हिंदी के यशस्वी कथाकार और उपन्यासकार यशपाल का जन्म 03 दिसम्बर सन् 1903 को फिरोजपुर छावनी (पंजाब) में हुआ था। वे स्वतंत्रता आन्दोलन के सिपाही भी थे। शहीद भगतसिंह और सुखदेव के संपर्क में आने के बाद क्रांतिकारी आन्दोलन की ओर आकृष्ट हुए थे। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान वे कई बार जेल भी गए। उन्होंने विप्लव नाम की एक पत्रिका निकाली। उनकी अनेक रचनाओं का दुनिया की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। यशपाल की प्रमुख कृतियाँ दादा कामरेड, दिव्या, झूठासच (उपन्यास) ज्ञानदान, धर्मयुद्ध, तर्क का तूफान (कहानी संग्रह) तथा न्याय का संघर्ष, बात-बात में बात, देखा सोचा समझा (निबंध संग्रह) हैं। उनका निधन 26 दिसम्बर सन् 1976 को हुआ।

पाठ परिचय – अखबार में नाम

प्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार यशपाल की कहानी अख़बार में नाम को भी इस इकाई में शामिल किया गया है। इसमें कथ्य की नवीनता और रोचकता है। प्रचार-प्रसार में अखबार की भूमिका तथा उसमें स्थान पाने की लालसा को यह कहानी विशेष रूप से उभारती है।

अखबार में नाम

जून का महीना था, दोपहर का समय और धूप कड़ी थी। ड्रिल-मास्टर साहब ड्रिल करा रहे थे।

मास्टर साहब ने लड़कों को एक लाइन में खड़े होकर डबल मार्च करने का आर्डर दिया। लड़कों की लाइन ने मैदान का एक चक्कर पूरा कर दूसरा आरंभ किया था कि अनंतराम गिर पड़ा।

मास्टर साहब ने पुकारा, ‘हाल्ट!’

लड़के लाइन से बिखर गए।

मास्टर साहब और दो लड़कों ने मिलकर अनंत को उठाया और बरामदे में ले गए। मास्टर साहब ने एक लड़के को दौड़कर पानी लाने का हुक्म दिया। दो-तीन लड़के स्कूल की कापियाँ लेकर अनंत को हवा करने लगे। अनंत के मुँह पर पानी के छींटे मारे गए। उसे होश आते-आते हेडमास्टर साहब भी आ गए और अनंतराम के सिर पर हाथ फेरकर, पुचकारकर उन्होंने उसे तसल्ली दी।

स्कूल का चपरासी एक ताँगा ले आया। दो लड़कों के साथ ड्रिल मास्टर अनंतराम को उसके घर पहुँचाने गए। स्कूल-भर में अनंतराम के बेहोश हो जाने की खबर फैल गई। स्कूल में सब उसे जान गए।

लड़कों के धूप में दौड़ते समय गुरदास लाइन में अनंतराम से दो लड़कों के बाद था। यह घटना और कांड हो जाने के बाद वह सोचता रहा, ‘अगर अनंतराम की जगह वही बेहोश होकर गिर पड़ता, वैसे ही उसे चोट आ जाती तो कितना अच्छा होता?’ आह भरकर उसने सोचा, ‘सब लोग उसे जान जाते और उसकी खातिर होती।’

श्रेणी में भी गुरदास की कुछ ऐसी ही हालत थी। गणित के मास्टर साहब सवाल लिखाकर बेंचों के बीच में घूमते हुए नजर डालते रहते थे कि कोई लड़का नकल या कोई दूसरी बेजा हरकत तो नहीं कर रहा। लड़कों के मन में यह होड़ चल रही होती कि सबसे पहले सवाल पूरा करके कौन खड़ा हो जाता है।

गुरदास बड़े यत्न से अपना मस्तिष्क कॉपी में गड़ा देता। उँगलियों पर गुणा और योग करके उत्तर तक पहुँच ही रहा होता कि बनवारी सवाल पूरा करके खड़ा हो जाता। गुरदास का उत्साह भंग हो जाता और दो-तीन पल की देर यों भी हो जाती। कभी-कभी सबसे पहले सवाल कर सकने की उलझन के कारण कहीं भूल भी हो जाती। मास्टर साहब शाबाशी देते तो बनवारी और खन्ना को और डाँटते तो खलीक और महेश का ही नाम लेकर। महेश और खलीक न केवल कभी सवाल पूरा करने की चिंता करते, बल्कि उसके लिए लज्जित भी न होते।

नाम जब कभी लिया जाता तो बनवारी, खन्ना, खलीक और महेश का ही, गुरदास बेचारे का कभी नहीं। ऐसी ही हालत व्याकरण और अंग्रेजी की क्लास में भी होती। कुछ लड़के पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज होने की प्रशंसा पाते और कोई डाँट-डपट के प्रति निद्वंद्व होने के कारण बेंच पर खड़े कर दिए जाने से लोगों की नजर में चढ़कर नाम कमा लेते। गुरदास बेचारा दोनों तरफ से बीच में रह जाता।

इतिहास में गुरदास की विशेष रुचि थी। शेरशाह सूरी और खिलजी की चढ़ाइयों और अकबर के शासन के वर्णन उसके मस्तिष्क में सचित्र होकर चक्कर काटते रहते, वैसे ही शिवाजी के अनेक किले जीतने के वर्णन भी। वह अपनी कल्पना में अपने-आपको शिवाजी की तरह ऊँची, नोंकदार पगड़ी पहने, छोटी दाढ़ी रखे और वैसा ही चोगा पहने, तलवार लिए सेना के आगे घोड़े पर सरपट दौड़ता चला जाता देखता।

इतिहास को यों मनस्थ कर लेने या इतिहास में स्वयं समा जाने पर भी गुरदास को इन महत्त्वपूर्ण घटनाओं की तारीखें और सन् याद न रहते थे क्योंकि गुरदास के काल्पनिक ऐतिहासिक चित्रों में तारीखों और सनों का कोई स्थान न था। परिणाम यह होता कि इतिहास की क्लास में भी गुरदास को शाबाशी मिलने या उसके नाम पुकारे जाने का समय न आता।

सबके सामने अपना नाम पुकारा जाता सुनने की गुरदास की महत्वाकांक्षा उसके छोटे-से हृदय में इतिहास के अतीत के बोझ के नीचे दबकर सिसकती रह जाती। तिस पर इतिहास के मास्टर साहब का प्रायः कहते रहना कि दुनिया में लाखों लोग मरते जाते हैं परंतु जीवन वास्तव में उन्हीं लोगों का होता है, जो मरकर भी अपना नाम जिंदा छोड़ जाते हैं, गुरदास के सिसकते हृदय को एक और चोट पहुँचा देता।

गुरदास अपने माता-पिता की संतानों में तीन बहनों का अकेला भाई था। उसकी माँ उसे राजा बेटा कहकर पुकारती थी। स्वयं पिता रेलवे के दफ्तर में साधारण क्लर्की करते थे। कभी कह देते कि उनका पुत्र ही उनका और अपना नाम कर जाएगा। ख्याति और नाम की कमाई के लिए इस प्रकार निरंतर दी जाती रहने वाली उत्तेजनाओं के बावजूद गुरदास श्रेणी और समाज में अपने-आप को किसी अनाज की बोरी के करोड़ों एक ही से दानों में से एक साधारण दाने से अधिक अनुभव न कर पाता था।

ऐसा दाना कि बोरी को उठाते समय वह गिर जाए, तो कोई ध्यान नहीं देता। ऐसे समय उसकी नित्य कुचली जाती महत्त्वाकांक्षा चीख उठती कि बोरी के छेद से सड़क पर उसके गिर जाने की घटना ही ऐसी क्यों न हो जाए कि दुनिया जान ले कि वह वास्तव में कितना बड़ा आदमी है और उसका नाम मोटे अक्षरों में अखबारों में छप जाए। गुरदास कल्पना करने लगता कि वह मर गया है परंतु अखबारों में मोटे अक्षरों में छपे अपने नाम को देखकर, मृत्यु के प्रति विद्रूप से मुस्करा रहा है, मृत्यु उसे समाप्त न कर सकी।

आयु बढ़ने के साथ-साथ गुरदास की नाम कमाने की महत्वाकाँक्षा उग्र होती जा रही थी, परंतु उस स्वप्न की पूर्ति की आशा उतनी ही दूर भागती जान पड़ रही थी। बहुत बड़ी-बड़ी कल्पनाओं के बावजूद वह अपने पिता पर कृपा-दृष्टि रखनेवाले एक बड़े साहब की कृपा से दफ्तर में केवल क्लर्क ही बन पाया।

जिन दिनों गुरदास अपने मन को समझाकर यह संतोष दे रहा था कि उसके मुहल्ले के हजार से अधिक लोगों में से किसी का भी तो नाम कभी अखबार में नहीं छपा, तभी उसके मुहल्ले के एक निःसन्तान लाला ने अपनी आयु भर का संचित गुप्तधन प्रकट करके अपने नाम से एक स्कूल स्थापित करने की घोषणा कर दी।

लालाजी का अखबार में केवल नाम ही प्रशंसा सहित नहीं छपा, उनका चित्र भी छपा। गुरदास आह भरकर रह गया। साथ ही अखबार में नाम छपवाकर नाम कमाने की आशा बुझती हुई चिनगारियों पर राख की एक और तह पड़ गई। गुरदास ने मन को समझाया कि इतना धन और यश तो केवल पूर्वजन्म के कर्मों के फल से ही पाया जा सकता है। इस जन्म में तो ऐसे अवसर और साधन की कोई आशा उस जैसों के लिए हो ही नहीं सकती थी।

उस साल वसंत के आरंभ में शहर में प्लेग फूट निकला था। दुर्भाग्य से गुरदास के गरीब मुहल्ले में गलियाँ कच्ची और तंग होने के कारण, बीमारी का पहला शिकार, उसी मुहल्ले में दुलारे नाम का व्यक्ति हुआ।

मुहल्ले की गली के मुहाने पर रहमान साहब का मकान था। रहमान साहब ने आत्मरक्षा और मुहल्ले की रक्षा के विचार से छूत की बीमारी के हस्पताल को फोन करके एम्बुलेंस गाड़ी मँगवा दी। बहुत लोग इकट्ठे हो गए। दुलारे को स्ट्रेचर पर उठाकर मोटर पर रखा गया और हस्पताल पहुँचा दिया गया। म्युनिसिपैलिटी ने उसके घर की बहुत जोर से सफाई की। मुहल्ले के हर घर में दुलारे की चर्चा होती रही।

गुरदास संध्या समय थका-माँदा और झुंझलाया हुआ दफ्तर से लौट रहा था। भीड़ में से अखबारवाले ने पुकारा, ‘आज शाम का ताजा अखबार। नाहर मुहल्ले में प्लेग फूट निकला। आज की खबरें पढ़िए।’

अखबार में अपने मुहल्ले का नाम छपने की बात से गुरदास सिहर उठा। उसका मस्तिष्क चमक गया। ओह, दुलारे की खबर छपी होगी। अखबार प्रायः वह नहीं खरीदता था, परंतु अपने मुहल्ले की खबर छपी होने के कारण उसने चार पैसे खर्च कर अखबार ले लिया। सचमुच दुलारे की खबर पहले पृष्ठ पर ही थी। लिखा था, ‘बीमारी की रोकथाम के लिए सावधान। और फिर दुलारे का नाम और उसकी खबर ही नहीं, स्ट्रेचर पर लेटे हुए, घबराहट में मुँह खोले हुए दुलारे की तस्वीर भी थी।

गुरदास ने पढ़ा कि बीमारी का इलाज देर से आरम्भ होने के कारण दुलारे की अवस्था चिंताजनक है। पढ़कर दुख हुआ। फिर ख्याल आया इस आदमी का नाम अखबार में छप जाने की क्या आशा थी? पर छप ही गया।

 

अपना-अपना भाग्य है, एक गहरी साँस लेकर गुरदास ने सोचा। दुलारे की अवस्था चिंताजनक होने की बात से दुख भी हुआ। फिर ख्याल आया देखो, मरते-मरते नाम कर ही गया। मरते तो सभी हैं पर यह बीमारी की मौत फिर भी अच्छी ! ख्याल आया, कहीं बीमारी मुझे भी न हो जाए। भय तो लगा पर यह भी ख्याल आया कि नाम तो जिसका छपना था, छप गया। अब सबका नाम थोड़े ही छप सकता है।

खैर, दुलारे अगर बच न पाया तो अखबार में नाम छप जाने का फायदा उसे क्या हुआ? मजा तो तब है कि बेचारा बच जाए और अपनी तस्वीर वाले अखबार को अपनी कोठरी में लटका ले!

गुरदास को होश आया तो उसने सुना, ‘इधर से संभालो ! ऊपर से उठाओ!’ कूल्हे में बहुत जोर से दरद हो रहा था। वह स्वयं उठ न पा रहा था। लोग उसे उठा रहे थे।

‘हाय! हाय माँ!’ उसकी चीखें निकली जा रही थी। लोगों ने उठा कर उसे एक मोटर में डाल दिया।

हस्पताल पहुँचकर उसे समझ में आया कि वह बाजार में एक मोटर के धक्के से गिर पड़ा था। मोटर के मालिक एक शरीफ वकील साहब थे। उस घटना के लिए बहुत दुख प्रकट कर रहे थे। एक बच्चे को बचाने के प्रयत्न में मोटर को दाईं तरफ जल्दी से मोड़ना पड़ा। उन्होंने बहुत जोर से हॉर्न भी बजाया और ब्रेक भी लगाया पर ये आदमी चलता चलता अखबार पढ़ने में इतना मगन था कि उसने सुना ही नहीं।

गुरदास कूल्हे और घुटने के दरद के मारे कराह रहा था। कुछ सोचना समझना उसके बस की बात ही न थी।

डॉक्टर ने गुरदास को नींद आने की दवाई दे दी। वह भयंकर दरद से बचकर सो गया। रात में जब नींद टूटी तो दरद फिर होने लगा और साथ ही ख़्याल भी आया कि अब शायद अखबार में उसका नाम छप ही जाए। दरद में भी एक उत्साह-सा अनुभव हुआ और दरद भी कम लगने लगा। कल्पना में गुरदास को अखबार के पन्ने पर अपना नाम छपा दिखाई देने लगा।

सुबह जब हस्पताल की नर्स गुरदास के हाथ-मुँह धुलाकर उसका बिस्तर ठीक कर रही थी, मोटर के मालिक वकील साहब उसका हाल-चाल पूछने आ गए।

वकील साहब एक स्टूल खींचकर गुरदास के लोहे के पलंग के पास बैठ गए और समझाने लगे, ‘देखो भाई, ड्राइवर बेचारे की कोई गलती नहीं थी। उसने तो इतने जोर से ब्रेक लगाया कि मोटर को भी नुकसान पहुँच गया। उस बेचारे को सजा भी हो जाएगी, तो तुम्हारा भला हो जाएगा? तुम्हारी चोट के लिए बहुत अफसोस है। हम तुम्हारे लिए दो-चार सौ रुपये का भी प्रबंध कर देंगे। कचहरी में तो मामला पेश होगा ही, जैसे हम कहें, तुम बयान दे देना। समझे!”

गुरदास वकील साहब की बात सुन रहा था, पर ध्यान उसका वकील साहब के हाथ में गोल-मोल लिपटे अखबार की ओर था। रह न सका तो पूछ बैठा, ‘वकील साहब, अखबार में हमारा नाम छपा है? हमारा नाम गुरदास है। मकान नाहर मुहल्ले में है।’

वकील साहब की सहानुभूति में झुकी आँखें सहसा पूरी खुल गई, ‘अखबार में नाम?’ उन्होंने पूछा, ‘चाहते हो? छपवा दें?’

‘हाँ साहब, अखबार में तो जरूर छपना चाहिए। आग्रह और विनय से गुरदास बोला।

‘अच्छा, एक कागज पर नाम-पता लिख दो। वकील साहब ने कलम और एक कागज गुरदास की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘अभी नहीं छपा तो कचहरी में मामला पेश होने के दिन छप जाएगा, ऐसी बात है।

गुरदास को लँगड़ाते हुए ही कचहरी जाना पड़ा। वकील साहब की टेढ़ी जिरह का उत्तर देना सहज न था, आरंभ में ही उन्होंने पूछा- ‘तुम अखबार में नाम छपवाना चाहते थे?’

‘जी हाँ।’ गुरदास को स्वीकार करना पड़ा।

‘तुम्हें उम्मीद थी कि मोटर के नीचे दब जानेवाले आदमी का नाम अखबार में छप जाएगा?’ वकील साहब ने फिर प्रश्न किया।

‘जी हाँ!’ गुरदास कुछ झिझका पर उसने स्वीकार कर लिया।

अगले दिन अखबार में छपा, ‘मोटर दुर्घटना में आहत गुरदास को अदालत ने हर्जाना दिलाने से इनकार कर दिया। आहत के बयान से साबित हुआ कि अखबार में नाम छपाने के लिए ही वह जान-बूझकर मोटर के सामने आ गया था।

गुरदास ने अखबार से अपना मुँह ढाँप लिया, किसी को अपना मुँह कैसे दिखाता?

 

पाठ का सारांश

कहानी ‘अखबार में नाम’ गुरदास नामक एक साधारण लड़के की महत्वाकांक्षा को दर्शाती है, जो अपने नाम को प्रसिद्ध करने का सपना देखता है। स्कूल में वह न तो पढ़ाई में अव्वल है और न ही शरारतों में, इसलिए उसका नाम कभी चर्चा में नहीं आता। इतिहास में रुचि होने के बावजूद तारीखें याद न रहने से वह शाबाशी से वंचित रहता है। अनंतराम के बेहोश होने की घटना से उसे ईर्ष्या होती है, क्योंकि उसका नाम स्कूल में फैल जाता है। गुरदास की यह चाह बढ़ती जाती है कि उसका नाम अखबार में छपे। एक दिन वह बाजार में अखबार पढ़ते हुए मोटर दुर्घटना का शिकार हो जाता है। अस्पताल में उसे लगता है कि अब उसका नाम अखबार में छपेगा। वकील साहब के कहने पर वह केस में बयान देता है, लेकिन अदालत में यह साबित हो जाता है कि उसने जानबूझकर नाम छपवाने के लिए दुर्घटना की। अंत में उसका नाम अखबार में छपता है, लेकिन अपमानजनक तरीके से, जिससे वह शर्मिंदगी महसूस करता है। यह कहानी महत्वाकांक्षा और गलत तरीकों से प्रसिद्धि पाने की चाह के परिणामों को दर्शाती है।

शब्दार्थ

यत्न – कोशिश

निर्द्वंद्व – दुविधाहीन, निश्चिंत मनस्थ मन में उपस्थित

विद्रूप – विकृत, बिगड़ा हुआ

हर्जाना – क्षतिपूर्ति

बयान – कथन

आहत – घायल।

हिंदी शब्द

हिंदी अर्थ

अंग्रेजी अर्थ (English Meaning)

ड्रिल-मास्टर

सैन्य प्रशिक्षण देने वाला शिक्षक

Drill instructor

डबल मार्च

तेज गति से कदमताल करना

Double march

हाल्ट

रुकने का आदेश

Halt

पुचकारना

प्यार से सांत्वना देना

To console or soothe

तसल्ली

सांत्वना या सुकून

Comfort or reassurance

ताँगा

घोड़ा गाड़ी

Horse-drawn cart

यत्न

प्रयास या कोशिश

Effort or attempt

बेजा

अनुचित या गलत

Improper or wrong

होड़

प्रतिस्पर्धा

Competition or rivalry

उलझन

भ्रम या परेशानी

Confusion or perplexity

शाबाशी

प्रशंसा या प्रोत्साहन

Praise or encouragement

निद्वंद्व

बेपरवाह या लापरवाह

Indifferent or carefree

सचित्र

चित्रों के साथ

Illustrated or vivid

महत्वाकांक्षा

प्रसिद्धि या सफलता की चाह

Ambition

सिसकना

दबे हुए दुख से रोना

To sob or whimper

ख्याति

प्रसिद्धि

Fame

गुप्तधन

छिपा हुआ धन

Hidden wealth

प्लेग

महामारी (विशेष रूप से चूहों से फैलने वाली)

Plague

छूत

संक्रामक बीमारी

Contagious disease

झुंझलाया

चिढ़ा हुआ या गुस्से में

Irritated or annoyed

सिहर उठना

रोमांचित या उत्साहित होना

To shiver with excitement

हर्जाना

मुआवजा

Compensation

जिरह

अदालती पूछताछ

Cross-examination

विद्रूप

व्यंग्यात्मक या कटु

Sarcastic or ironic

 

पाठ से

  1. अनंतराम के बेहोश हो जाने के बाद गुरदास ने क्या सोचा और क्यों?

उत्तर – अनंतराम के बेहोश हो जाने के बाद गुरदास ने सोचा, “अगर अनंतराम की जगह वही बेहोश होकर गिर पड़ता, वैसे ही उसे चोट आ जाती तो कितना अच्छा होता?” ऐसा उसने सोचा क्योंकि ऐसा होने पर सब लोग उसे जान जाते और उसकी खातिर होती। गुरदास की यह तीव्र इच्छा थी कि उसका नाम सबकी नज़रों में आए और उसे महत्त्व मिले, जो उसे सामान्य परिस्थितियों में नहीं मिलता था।

  1. गुरदास की क्या महत्वाकांक्षा थी?

उत्तर – गुरदास की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा यह थी कि उसका नाम सबके सामने पुकारा जाए और वह प्रसिद्धि (ख्याति) पाए। वह चाहता था कि वह ऐसा कुछ करे जिससे उसका नाम मोटे अक्षरों में अखबारों में छप जाए और लोग उसे पहचानें।

  1. गुरदास के पिता की उससे क्या अपेक्षा थी?

उत्तर – गुरदास के पिता की उससे यह अपेक्षा थी कि उनका पुत्र ही उनका और अपना नाम कर जाएगा। वे चाहते थे कि गुरदास ख्याति और नाम कमाए।

  1. गुरदास अपनी तुलना बोरी के एक दाने से क्यों करता था?

उत्तर – गुरदास अपनी तुलना बोरी के एक दाने से इसलिए करता था क्योंकि वह अपने-आपको श्रेणी और समाज में किसी महत्त्वहीन व्यक्ति से अधिक अनुभव न कर पाता था। उसे लगता था कि वह करोड़ों एक ही से दानों में से एक साधारण दाना है, जिस पर कोई ध्यान नहीं देता। वह महसूस करता था कि यदि वह बोरी को उठाते समय गिर भी जाए, तो कोई ध्यान नहीं देगा, अर्थात उसके होने या न होने से किसी को फर्क नहीं पड़ता।

  1. गुरदास अखबार में नाम छपवाने के लिए क्यों उतावला था?

उत्तर – गुरदास अखबार में नाम छपवाने के लिए उतावला था क्योंकि यह उसकी नाम कमाने की महत्वाकांक्षा की चरम सीमा थी। वह अपने साधारण और गुमनाम जीवन से त्रस्त था। उसे लगता था कि अखबार में नाम छपने का अर्थ है मरकर भी जिंदा रह जाना, मृत्यु पर विजय पाना, और दुनिया को यह जताना कि वह “कितना बड़ा आदमी है”।

  1. अखबार में देखकर अपने मुहल्ले के लोगों का नाम उस पर क्या प्रतिक्रिया होती थी?

उत्तर – अखबार में अपने मुहल्ले के लोगों का नाम देखकर गुरदास पर मिली-जुली प्रतिक्रिया होती थी –

लालाजी का नाम और चित्र छपने पर – गुरदास आह भरकर रह गया और उसकी नाम कमाने की आशा की चिनगारियों पर राख की एक और तह पड़ गई। उसने यह सोचकर संतोष किया कि इतना धन और यश केवल पूर्वजन्म के कर्मों का फल है।

दुलारे का नाम और चित्र छपने पर (प्लेग की खबर) – पहले उसे दुख हुआ, फिर यह ख्याल आया कि देखो, मरते-मरते भी नाम कर ही गया। उसे दुलारे का भाग्य अच्छा लगा और उसे लगा कि मरते-मरते नाम कमा लेना भी अच्छा है।

  1. अदालत ने गुरदास को हर्जाना दिलाने से क्यों इंकार किया?

उत्तर – अदालत ने गुरदास को हर्जाना दिलाने से इसलिए इंकार किया क्योंकि आहत (घायल) के बयान से यह साबित हुआ कि वह अखबार में नाम छपाने के लिए ही जान-बूझकर मोटर के सामने आ गया था। वकील साहब की जिरह के दौरान गुरदास ने खुद स्वीकार कर लिया था कि वह अखबार में नाम छपवाना चाहता था और उसे उम्मीद थी कि दुर्घटनाग्रस्त होने पर उसका नाम छप जाएगा।

 

पाठ से आगे

  1. किसी दिन का एक हिंदी अखबार लीजिए और एक पृष्ठ देखकर बताइए कि उसमें किस-किस के नाम छपे हैं? और किस बारे में उनके नामों की चर्चा हुई है?

उत्तर – आज के हिंदी अखबार के एक पृष्ठ (मान लीजिए राष्ट्रीय समाचार पृष्ठ) को देखने पर निम्न नाम और उनकी चर्चा मिली –

नाम

चर्चा का विषय

प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री

किसी नई सरकारी योजना का उद्घाटन या राजनीतिक टिप्पणी।

किसी ओलंपियन खिलाड़ी का नाम

अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में पदक जीतने की खबर।

किसी बड़े उद्योगपति का नाम

किसी नए कारखाने के शिलान्यास या कंपनी के व्यापारिक निर्णय के संबंध में।

किसी स्थानीय डॉक्टर का नाम

किसी जटिल ऑपरेशन को सफलतापूर्वक करने या स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाने के लिए।

 

  1. अपने आस-पास के व्यक्तियों के अच्छे कार्यों को जानिए और उनके कार्यों के बारे में लिखिए।

उत्तर – मेरे पड़ोस में एक श्रीमती विमला कुजुर जी रहती हैं। उनका अच्छा कार्य है कि वह अपने मोहल्ले के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को हर शाम निःशुल्क पढ़ाती हैं। वह सिर्फ पाठ्यक्रम ही नहीं पढ़ातीं, बल्कि उन्हें कहानियाँ सुनाकर और सामान्य ज्ञान देकर उनका नैतिक और मानसिक विकास भी करती हैं। उनका यह कार्य समाज के लिए बहुत प्रेरणादायक है, क्योंकि वे निस्वार्थ भाव से शिक्षा का दीप जला रही हैं।

  1. ये आदमी चलता चलता अखबार पढ़ने में इतना मगन था कि उसने सुना ही नहीं। इस वाक्य में गुरदास के अखबार पढ़ने में मगन होने की बात कही गई है! आप किस-किस काम में मगन होते हैं? लिखिए।

उत्तर – मैं जिन कार्यों में मगन (पूरी तरह खो जाता हूँ) होता हूँ, वे इस प्रकार हैं –

किताबें पढ़ना – जब मैं कोई अच्छी कहानी या उपन्यास पढ़ता हूँ, तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं उस कहानी के पात्रों के साथ ही जी रहा हूँ। उस समय बाहरी दुनिया का भान नहीं रहता।

चित्रकला (ड्राइंग) – जब मैं कोई चित्र बनाता हूँ, तो मेरा पूरा ध्यान रंगों, रेखाओं और आकार पर केंद्रित हो जाता है। घंटों कब बीत जाते हैं, पता ही नहीं चलता।

संगीत सुनना – जब मैं अपने पसंदीदा संगीतकार के गाने सुनता हूँ, तो मैं धुन और शब्दों में इतना खो जाता हूँ कि आसपास की आवाज़ें मेरे लिए महत्त्वहीन हो जाती हैं।

  1. अखबार में अपने नाम छपने की लालसा लिए विचार मग्न गुरुदास सड़क पर चलते हुए मोटर की ठोकर से दुर्घटनाग्रस्त हो गया।” गुरुदास द्वारा सड़क पर चलते हुए विचार में खो जाना कहाँ तक उचित था? सतर्क उत्तर दीजिए।

उत्तर – गुरदास द्वारा सड़क पर चलते हुए विचार में खो जाना बिल्कुल भी उचित नहीं था, बल्कि यह अत्यंत गैर-जिम्मेदाराना और खतरनाक व्यवहार था।

सतर्क उत्तर –

सुरक्षा का उल्लंघन – सड़क एक सार्वजनिक और गतिशील स्थान है जहाँ हर पल दुर्घटना का खतरा बना रहता है। सड़क पर चलते हुए, पैदल यात्री को पूरी तरह सचेत और चौकस रहना चाहिए ताकि वह हॉर्न, ब्रेक की आवाज़ और यातायात के संकेतों पर तुरंत प्रतिक्रिया दे सके।

कानूनी और नैतिक गलती – किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा से ऊपर नहीं रखा जा सकता। गुरदास का अखबार पढ़ने में मगन होना (जैसा कि वकील ने बताया) और साथ ही अपनी नाम कमाने की लालसा में विचार मग्न होना, खुद अपनी और दूसरों की जान को खतरे में डालना था। अदालत ने भी अंत में उसे हर्जाना देने से इंकार कर दिया क्योंकि उसकी असावधानी और जानबूझकर दुर्घटना की इच्छा स्पष्ट हो गई थी।

सार्वजनिक जिम्मेदारी – सड़क पर चलते समय हर नागरिक की यह जिम्मेदारी होती है कि वह सुरक्षित चले और दूसरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखे। गुरदास ने इस जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया।

संक्षेप में, सड़क पर चलते समय पूर्ण ध्यान रखना ही उचित है। किसी भी तरह के गहन विचार या मग्नता के लिए सुरक्षित जगह चुननी चाहिए।

 

भाषा के बारे में

  1. अनन्त को अनंत, सम्बन्ध को संबंध, चञ्चल को चंचल की तरह भी लिखा जा सकता है। शब्द को संक्षिप्त कर लगाया गया बिंदु अनुस्वार कहलाता है। दिए गए उदाहरण के आधार पर आप भी पाठ में आए कुछ शब्दों को विस्तारित व संक्षिप्त कर लिखिए। यह भी बताइए कि अनुस्वार लगे शब्दों को विस्तारित करने के नियम क्या हैं?

उत्तर –

संक्षिप्त रूप (अनुस्वार)

विस्तारित रूप

पहुँच

पँहुच (चंद्रबिंदु-अनुनासिक)

आरंभ

आरम्भ

संबंध

सम्बन्ध

संतान

सन्तान

अंत

अन्त

अनुस्वार लगे शब्दों को विस्तारित करने के नियम –

अनुस्वार – हिंदी व्याकरण में एक लिपि-चिह्न है। इसे विस्तारित करने का मुख्य नियम यह है कि अनुस्वार के बाद आने वाले व्यंजन के वर्ग के पंचम अक्षर (नासिक्य व्यंजन) का आधा रूप अनुस्वार की जगह लेता है।

  1. क वर्ग (क, ख, ग, घ) से पहले आने वाला अनुस्वार ङ् (जैसे – कंठ  कण्ठ)
  2. च वर्ग (च, छ, ज, झ) से पहले आने वाला अनुस्वार ञ् (जैसे – चंचल  चञ्चल)
  3. ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ) से पहले आने वाला अनुस्वार ण् (जैसे – डंडा  डण्डा)
  4. त वर्ग (त, थ, द, ध) से पहले आने वाला अनुस्वार न् (जैसे – संतोष  सन्तोष)
  5. प वर्ग (प, फ, ब, भ) से पहले आने वाला अनुस्वार म् (जैसे – संबंध  सम्बन्ध)

 

  1. पूर्ति, प्रारूप, पर्व, प्रखर, क्लर्क, राष्ट्र शब्दों में के भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं।

पूर्ति – प + ऊ + र् + त + इ

प्रारूप – प् + र + आ + र + ऊ + प्

राष्ट्र – र + आ + ष् + ट् + र

पर्व – प् + अ + र् + व

क्लर्क – क् + ल् + अ + र् + क

प्रखर – प् + र + ख् + अ + र

(जहाँ र्के साथ स्वर है वहाँ र पूरा है जहाँ स्वर नहीं है वहाँ र आधा है।)

इसी तरह भिन्न रूप में प्रयुक्त र वाले शब्दों की सूची बनाइए और इनकी प्रकृति को समझिए।

उत्तर –

शब्द

का रूप

प्रकृति (वर्ण-विच्छेद)

कर्म

रेफ, शिरोरेखा के ऊपर

क् + अ + र् + म् + अ (यहाँ ‘र्’ स्वर रहित/आधा है)

धर्म

रे (र्), शिरोरेखा के ऊपर

ध् + अ + र् + म् + अ (यहाँ ‘र्’ स्वर रहित/आधा है)

प्रकाश

पदेन, खड़ी पाई वाले व्यंजन के नीचे

प् + र् + अ + क् + आ + श् + अ (यहाँ ‘र्’ पूरा है, ‘प’ आधा है)

प्रेम

पदेन, खड़ी पाई वाले व्यंजन के नीचे

प् + र् + ए + म् + अ (यहाँ ‘र्’ पूरा है, ‘प’ आधा है)

ट्रक

पदेन , गोल या बिना खड़ी पाई वाले व्यंजन के नीचे

ट् + र् + अ + क् + अ (यहाँ ‘र्’ पूरा है, ‘ट’ आधा है)

ड्रम

पदेन, गोल या बिना खड़ी पाई वाले व्यंजन के नीचे ^

ड् + र् + अ + म् + अ (यहाँ ‘र्’ पूरा है, ‘ड’ आधा है)

 

  1. इन वाक्यों को पढ़िए-

(क) राम सेब ही खाता है।

(ख) राम सेब भी खाता है।

दोनों वाक्यों में दो शब्द भीऔर हीआगे आने वाले शब्दों में अर्थ को बदल रहे हैं। पहले वाक्य के संदर्भ में कहा जा सकता है कि राम केवल सेब खाता है, कोई अन्य फल नहीं। यहाँ हीका प्रयोग एकमात्रका अर्थ देता है और वाक्य में विशेष बल देता है।

दूसरे वाक्य में भीमें समावेशन का प्रभाव है कि राम सेब के साथ-साथ अन्य फल भी खा सकता है।

इसी तरह से आप हीभीका प्रयोग करते हुए पाँच-पाँच वाक्य बनाइए।

उत्तर – ही‘ (बल या निश्चितता/एकमात्र) का प्रयोग –

  1. मुझे ही यह काम पूरा करना है। (किसी और को नहीं)
  2. उसने एक ही बार में परीक्षा पास कर ली। (सिर्फ एक बार, निश्चितता)
  3. तुम कल सुबह दस बजे ही आना। (समय पर बल)
  4. वह घर पर ही मिला, बाहर नहीं गया था। (स्थान पर बल)
  5. सफलता कड़ी मेहनत से ही मिलती है। (अनिवार्यता)

भी‘ (समावेशन या अतिरिक्तता) का प्रयोग –

  1. मैं दिल्ली गया था और वहाँ ताजमहल भी देखा। (अतिरिक्त कार्य)
  2. तुम जा रहे हो, तो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। (समावेशन)
  3. राहुल को चॉकलेट पसंद है, और आइसक्रीम भी। (एक और वस्तु)
  4. आज उसे बुखार है, और थकान भी महसूस हो रही है। (दो स्थितियाँ)
  5. गरीब होना बुरा है, पर बेईमान होना भी उससे कम बुरा नहीं। (तुलना में अतिरिक्तता)

 

 

योग्यता विस्तार

  1. अपने गाँव, मुहल्ले या कस्बे में घटी किसी घटना को एक खबर के तौर पर लिखिए।

उत्तर – छात्र इसे आपे स्तर पर करें।

  1. कहानीकार यशपाल की जीवनी अन्य स्रोतों से पढ़कर लिखिए।

उत्तर – छात्र इसे आपे स्तर पर करें।

  1. समूह में चर्चा कीजिए कि सड़क पर चलते हुए हमें किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

उत्तर – छात्र इसे आपे स्तर पर करें।

 

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

कहानी का मुख्य पात्र कौन है?

A) अनंतराम

B) गुरदास

C) बनवारी

D) खलीक

उत्तर – B) गुरदास

 

गुरदास किस विषय में विशेष रुचि रखता था?

A) गणित

B) इतिहास

C) व्याकरण

D) अंग्रेजी

उत्तर – B) इतिहास

 

अनंतराम क्यों बेहोश हो गया था?

A) पढ़ाई के दबाव से

B) धूप में ड्रिल करने से

C) भूख के कारण

D) बीमारी के कारण

उत्तर – B) धूप में ड्रिल करने से

 

मास्टर साहब ने अनंतराम को होश में लाने के लिए क्या किया?

A) उसे दवा दी

B) उसे पानी के छींटे मारे

C) उसे हवा दी

D) उसे तुरंत अस्पताल ले गए

उत्तर – B) उसे पानी के छींटे मारे

 

गुरदास को अनंतराम की घटना से क्या भावना हुई?

A) खुशी

B) ईर्ष्या

C) दुख

D) गुस्सा

उत्तर – B) ईर्ष्या

 

गणित की कक्षा में गुरदास का प्रदर्शन कैसा था?

A) वह हमेशा पहला होता था

B) वह बीच में रहता था

C) वह सबसे पीछे रहता था

D) वह कभी सवाल हल नहीं करता था

उत्तर – B) वह बीच में रहता था

 

कहानी में बनवारी और खन्ना को क्या मिलता था?

A) डाँट

B) शाबाशी

C) सजा

D) कोई ध्यान नहीं

उत्तर – B) शाबाशी

 

गुरदास अपनी कल्पना में स्वयं को किसके रूप में देखता था?

A) अकबर

B) शेरशाह सूरी

C) शिवाजी

D) खिलजी

उत्तर – C) शिवाजी

 

गुरदास को इतिहास की कक्षा में शाबाशी क्यों नहीं मिलती थी?

A) उसे इतिहास में रुचि नहीं थी

B) वह तारीखें और सन् याद नहीं रखता था

C) वह कक्षा में अनुपस्थित रहता था

D) वह सवाल गलत करता था

उत्तर – B) वह तारीखें और सन् याद नहीं रखता था

 

गुरदास की माँ उसे क्या कहकर पुकारती थी?

A) बेटा

B) राजा बेटा

C) छोटू

D) लाडला

 उत्तर – B) राजा बेटा

 

गुरदास के पिता क्या काम करते थे?

A) शिक्षक

B) रेलवे क्लर्क

C) वकील

D) डॉक्टर

 उत्तर – B) रेलवे क्लर्क

 

मुहल्ले में प्लेग का पहला शिकार कौन हुआ?

A) गुरदास

B) दुलारे

C) रहमान साहब

D) लालाजी

 उत्तर – B) दुलारे

 

रहमान साहब ने प्लेग के समय क्या किया?

A) घर छोड़कर भाग गए

B) अस्पताल को फोन किया

C) दवा बाँटी

D) अखबार में खबर दी

 उत्तर – B) अस्पताल को फोन किया

 

गुरदास ने अखबार क्यों खरीदा?

A) उसे अखबार पढ़ने की आदत थी

B) उसमें अपने मुहल्ले की खबर थी

C) उसे मुफ्त में मिला

D) वह दुलारे को जानता था

 उत्तर – B) उसमें अपने मुहल्ले की खबर थी

 

गुरदास को बाजार में क्या हुआ?

A) वह चोरी करते पकड़ा गया

B) उसे मोटर ने टक्कर मार दी

C) वह बीमार हो गया

D) उसने अखबार खरीदा

 उत्तर – B) उसे मोटर ने टक्कर मार दी

 

वकील साहब ने गुरदास से क्या करने को कहा?

A) अखबार में खबर छपवाने को

B) उनके पक्ष में बयान देने को

C) मुआवजा न माँगने को

D) पुलिस में शिकायत करने को

 उत्तर – B) उनके पक्ष में बयान देने को

 

अदालत में गुरदास के बयान से क्या साबित हुआ?

A) वह मोटर चालक की गलती थी

B) गुरदास ने जानबूझकर दुर्घटना की

C) गुरदास बीमार था

D) गुरदास निर्दोष था

 उत्तर – B) गुरदास ने जानबूझकर दुर्घटना की

 

गुरदास का नाम अखबार में क्यों छपा?

A) उसकी बहादुरी के लिए

B) मोटर दुर्घटना और अदालती फैसले के लिए

C) उसने स्कूल में पुरस्कार जीता

D) उसने दुलारे को बचाया

 उत्तर – B) मोटर दुर्घटना और अदालती फैसले के लिए

 

कहानी का मुख्य संदेश क्या है?

A) पढ़ाई में मेहनत जरूरी है

B) गलत तरीकों से प्रसिद्धि हानिकारक हो सकती है

C) बीमारी से बचना चाहिए

D) स्कूल में ड्रिल जरूरी है

 उत्तर – B) गलत तरीकों से प्रसिद्धि हानिकारक हो सकती है

 

गुरदास को अंत में कैसा महसूस हुआ?

A) खुशी

B) शर्मिंदगी

C) गर्व

D) राहत

 उत्तर – B) शर्मिंदगी

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कहानी “अख़बार में नाम” का मुख्य पात्र कौन है?

उत्तर – कहानी का मुख्य पात्र गुरदास नाम का एक लड़का है, जिसकी सबसे बड़ी इच्छा थी कि उसका नाम किसी दिन अख़बार में छपे।

प्रश्न 2. कहानी की शुरुआत में कौन-सी घटना घटती है?

उत्तर – कहानी की शुरुआत में ड्रिल के समय अनंतराम नाम का लड़का धूप में गिर पड़ता है और बेहोश हो जाता है।

प्रश्न 3. अनंतराम के गिर जाने पर मास्टर साहब ने क्या किया?

उत्तर – मास्टर साहब ने ‘हाल्ट’ का आदेश दिया, अनंतराम को उठाकर बरामदे में ले जाया गया और उसके मुँह पर पानी के छींटे मारे गए ताकि वह होश में आ जाए।

प्रश्न 4. अनंतराम के बेहोश हो जाने से गुरदास को कैसा लगा?

उत्तर – गुरदास को यह सोचकर ईर्ष्या हुई कि अगर वह अनंतराम की जगह गिरा होता, तो सब उसे जानते और उसका भी नाम प्रसिद्ध हो जाता।

प्रश्न 5. गुरदास को सबसे अधिक किस विषय में रुचि थी?

उत्तर – गुरदास को इतिहास विषय में सबसे अधिक रुचि थी।

प्रश्न 6. इतिहास में रुचि होने के बावजूद गुरदास को शाबाशी क्यों नहीं मिलती थी?

उत्तर – गुरदास इतिहास की घटनाओं की तारीखें और सन याद नहीं रख पाता था, इसलिए उसे कभी शाबाशी नहीं मिलती थी।

प्रश्न 7. मास्टर साहब इतिहास की कक्षा में क्या कहा करते थे?

उत्तर – मास्टर साहब कहा करते थे कि जीवन वास्तव में उन्हीं लोगों का होता है, जो मरकर भी अपना नाम जिंदा छोड़ जाते हैं।

प्रश्न 8. गुरदास के माता-पिता क्या आशा रखते थे?

उत्तर – गुरदास की माँ उसे “राजा बेटा” कहती थी और उसके पिता आशा रखते थे कि उनका पुत्र एक दिन उनका नाम रोशन करेगा।

प्रश्न 9. गुरदास स्वयं को किससे तुलना करता था?

उत्तर – गुरदास स्वयं को बोरी के उन दानों में से एक समझता था जो साधारण होते हैं और जिनके गिर जाने पर किसी को फर्क नहीं पड़ता।

प्रश्न 10. अख़बार में नाम छपने की इच्छा गुरदास के मन में कैसे उत्पन्न हुई?

उत्तर – दूसरों की प्रशंसा और प्रसिद्धि देखकर गुरदास के मन में यह तीव्र इच्छा उत्पन्न हुई कि किसी भी प्रकार उसका नाम भी अख़बार में छपे।

प्रश्न 11. लाला जी ने क्या किया जिससे उनका नाम अख़बार में छपा?

उत्तर – लाला जी ने अपना संचित धन दान में देकर अपने नाम से एक स्कूल की स्थापना की, जिससे उनका नाम और चित्र अख़बार में छप गया।

प्रश्न 12. गुरदास को लाला जी की खबर देखकर कैसा लगा?

उत्तर – गुरदास को ईर्ष्या और निराशा हुई क्योंकि उसने सोचा कि इतने बड़े कार्य करने की क्षमता उसमें नहीं है।

प्रश्न 13. दुलारे कौन था और उसके साथ क्या हुआ?

उत्तर – दुलारे गुरदास के मुहल्ले का एक व्यक्ति था, जो प्लेग की बीमारी का पहला शिकार बना और जिसकी खबर अख़बार में छप गई।

प्रश्न 14. दुलारे की खबर देखकर गुरदास ने क्या सोचा?

उत्तर – गुरदास ने सोचा कि मरते-मरते भी दुलारे का नाम अख़बार में छप गया, यह भी भाग्य की बात है।

प्रश्न 15. गुरदास दुर्घटना का शिकार कैसे हुआ?

उत्तर – अख़बार पढ़ते समय गुरदास ध्यान न दे सका और मोटर की चपेट में आ गया जिससे वह घायल हो गया।

प्रश्न 16. मोटर का मालिक कौन था और उसने क्या किया?

उत्तर – मोटर का मालिक एक शरीफ वकील साहब थे, जिन्होंने गुरदास से माफी मांगी और उसे कुछ पैसे देने का वादा किया।

प्रश्न 17. अस्पताल में गुरदास को कौन-सा विचार आया?

उत्तर – अस्पताल में गुरदास को यह विचार आया कि अब तो उसका नाम अवश्य अख़बार में छप जाएगा और वह प्रसिद्ध हो जाएगा।

प्रश्न 18. अदालत में वकील साहब ने गुरदास से क्या प्रश्न किया?

उत्तर – वकील साहब ने गुरदास से पूछा कि क्या वह जान-बूझकर अख़बार में नाम छपवाना चाहता था और मोटर के सामने इसलिए आया था।

प्रश्न 19. अदालत का निर्णय क्या हुआ?

उत्तर – अदालत ने यह मान लिया कि गुरदास जान-बूझकर मोटर के सामने आया था, इसलिए उसे कोई हर्जाना नहीं दिया गया।

प्रश्न 20. कहानी का अंत किस भावना के साथ होता है?

उत्तर – कहानी का अंत गहरी व्यंग्यात्मक भावना के साथ होता है जब गुरदास अख़बार में अपना नाम छपने के बाद लज्जा से मुँह ढाँप लेता है क्योंकि प्रसिद्धि पाने की उसकी इच्छा उसका उपहास बन जाती है।

 

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न – अनंतराम के बेहोश होने की घटना का गुरदास पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर – अनंतराम के बेहोश होने से स्कूल में उसका नाम फैल गया, जिससे गुरदास को ईर्ष्या हुई। वह सोचने लगा कि यदि वह स्वयं बेहोश होता, तो उसका नाम भी प्रसिद्ध हो जाता और लोग उसकी खातिर करते। यह उसकी महत्वाकांक्षा को और बढ़ाता है।

  1. प्रश्न – गुरदास की इतिहास में रुचि होने के बावजूद उसे शाबाशी क्यों नहीं मिलती थी?

उत्तर – गुरदास को इतिहास की कहानियाँ और चित्रण बहुत पसंद थे, लेकिन वह तारीखें और सन् याद नहीं रख पाता था। इस कारण इतिहास की कक्षा में उसे शाबाशी नहीं मिलती थी, क्योंकि शिक्षक तथ्यों पर अधिक ध्यान देते थे, न कि कल्पनाओं पर।

  1. प्रश्न – गुरदास की महत्वाकांक्षा क्या थी और वह इसे कैसे पूरा करना चाहता था?

उत्तर – गुरदास की महत्वाकांक्षा थी कि उसका नाम प्रसिद्ध हो और अखबार में छपे। वह चाहता था कि कोई बड़ी घटना हो, जैसे अनंतराम की तरह बेहोश होना या कोई दुर्घटना, जिससे लोग उसे जानें और उसका नाम चर्चा में आए।

  1. प्रश्न – गणित की कक्षा में गुरदास का प्रदर्शन कैसा था?

उत्तर – गणित की कक्षा में गुरदास मेहनत करता था और सवाल हल करने की कोशिश करता था, लेकिन वह हमेशा बनवारी और खन्ना से पीछे रह जाता। उसकी उलझन और जल्दबाजी के कारण कभी-कभी भूल भी हो जाती थी, जिससे वह शाबाशी से वंचित रहता था।

  1. प्रश्न – गुरदास की कल्पनाओं में वह स्वयं को किस रूप में देखता था?

उत्तर – गुरदास अपनी कल्पनाओं में स्वयं को शिवाजी के रूप में देखता था, जो नोंकदार पगड़ी, छोटी दाढ़ी, और चोगा पहने, तलवार लिए घोड़े पर सरपट दौड़ता था। वह इतिहास के नायकों की तरह वीर और प्रसिद्ध होने का सपना देखता था।

  1. प्रश्न – मुहल्ले में प्लेग फैलने की खबर ने गुरदास को कैसे प्रभावित किया?

उत्तर – मुहल्ले में प्लेग फैलने और दुलारे की खबर अखबार में छपने से गुरदास उत्साहित और सिहर उठा। उसने अखबार खरीदा, क्योंकि उसे अपने मुहल्ले का नाम देखकर लगा कि उसका नाम भी ऐसी किसी घटना से छप सकता है।

  1. प्रश्न – वकील साहब ने गुरदास से अदालत में क्या करने को कहा?

उत्तर – वकील साहब ने गुरदास से कहा कि वह उनके पक्ष में बयान दे, क्योंकि ड्राइवर की गलती नहीं थी। उन्होंने मुआवजे का प्रबंध करने और केस को उनके अनुसार सुलझाने का वादा किया, ताकि गुरदास को लाभ हो।

  1. प्रश्न – गुरदास का नाम अखबार में छपने पर उसे कैसा महसूस हुआ?

उत्तर – गुरदास का नाम अखबार में छपा, लेकिन यह अपमानजनक था, क्योंकि अदालत ने माना कि उसने जानबूझकर दुर्घटना की। इससे उसे शर्मिंदगी महसूस हुई, और वह अपना मुँह छिपाने लगा, क्योंकि उसकी महत्वाकांक्षा गलत तरीके से पूरी हुई।

  1. प्रश्न – कहानी में दुलारे की घटना का क्या महत्त्व है?

उत्तर – दुलारे की प्लेग से बीमारी और अखबार में उसकी तस्वीर छपने की घटना ने गुरदास की महत्वाकांक्षा को और भड़काया। यह दर्शाता है कि वह किसी भी तरह, चाहे बीमारी या दुर्घटना से, अपने नाम को प्रसिद्ध करने की चाह रखता था।

  1. प्रश्न – कहानी का अंत गुरदास के लिए क्या संदेश देता है?

 उत्तर – कहानी का अंत दर्शाता है कि गलत तरीकों से प्रसिद्धि पाने की कोशिश हानिकारक हो सकती है। गुरदास का नाम अखबार में छपा, लेकिन अपमान के साथ, जिससे उसे शर्मिंदगी हुई। यह सिखाता है कि सच्ची ख्याति मेहनत और नैतिकता से मिलती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

  1. प्रश्न – अनंतराम की घटना ने गुरदास की महत्वाकांक्षा को कैसे प्रभावित किया और इसका कहानी में क्या महत्त्व है?

उत्तर – अनंतराम के बेहोश होने और स्कूल में उसके नाम की चर्चा ने गुरदास को ईर्ष्या से भर दिया, क्योंकि वह भी ऐसा ही नाम चाहता था। उसने सोचा कि ऐसी घटना से उसका नाम भी प्रसिद्ध हो सकता है। यह घटना कहानी में गुरदास की बढ़ती महत्वाकांक्षा को दर्शाती है, जो बाद में उसकी मोटर दुर्घटना और गलत बयान देने की वजह बनती है, जिससे उसकी शर्मिंदगी होती है।

  1. प्रश्न – गुरदास की इतिहास में रुचि और उसकी कल्पनाएँ कहानी में कैसे योगदान देती हैं?

उत्तर – गुरदास को इतिहास में गहरी रुचि थी, और वह स्वयं को शिवाजी जैसे वीर नायक के रूप में कल्पना करता था, जो तलवार लिए घोड़े पर दौड़ता था। यह उसकी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, लेकिन तारीखें याद न रखने के कारण वह शाबाशी से वंचित रहता था। उसकी ये कल्पनाएँ कहानी में उसके सपनों और वास्तविकता के बीच के अंतर को उजागर करती हैं, जो उसकी अंतिम शर्मिंदगी की ओर ले जाती हैं।

  1. प्रश्न – कहानी में गुरदास की मोटर दुर्घटना की परिस्थितियाँ क्या थीं और इसका परिणाम क्या हुआ?

उत्तर – गुरदास बाजार में अखबार पढ़ते हुए मोटर की टक्कर से गिर पड़ा, क्योंकि वह दुलारे की खबर पढ़ने में मगन था। वकील साहब ने उसे अपने पक्ष में बयान देने को कहा, लेकिन अदालत में गुरदास के बयान से साबित हुआ कि उसने जानबूझकर नाम छपवाने के लिए दुर्घटना की। परिणामस्वरूप, उसका नाम अखबार में अपमानजनक रूप से छपा, जिससे उसे शर्मिंदगी हुई।

  1. प्रश्न – कहानी में गुरदास की महत्वाकांक्षा का विकास कैसे हुआ और इसका अंत कैसे हुआ?

उत्तर – गुरदास की महत्वाकांक्षा स्कूल में अनंतराम की घटना से शुरू हुई, जब उसने देखा कि बेहोशी से नाम फैलता है। दुलारे की अखबार में खबर ने इसे और बढ़ाया। वह स्वयं को शिवाजी जैसे नायक के रूप में देखता था, लेकिन मोटर दुर्घटना और गलत बयान के कारण उसका नाम अपमानजनक रूप से छपा। यह उसकी गलत तरीकों से प्रसिद्धि पाने की चाह का दुखद अंत था।

  1. प्रश्न – कहानी का केंद्रीय संदेश क्या है और यह गुरदास के अनुभवों से कैसे व्यक्त होता है?

उत्तर – कहानी का केंद्रीय संदेश है कि गलत तरीकों से प्रसिद्धि पाने की कोशिश हानिकारक हो सकती है। गुरदास स्कूल में शाबाशी और अखबार में नाम छपवाने के लिए तरसता था। उसकी मोटर दुर्घटना और अदालत में गलत बयान ने उसका नाम छपवाया, लेकिन अपमान के साथ। यह दर्शाता है कि सच्ची ख्याति मेहनत और नैतिकता से ही मिलती है, न कि छल से।

 

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