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सर चंद्रशेखर वेंकट रमन

सर चंद्रशेखर वेंकट रमन

भारत : ‘रमन प्रभाव’ के खोजकर्ता

जन्म : 1888 मृत्यु : 1970

बीसवीं सदी के प्रमुख वैज्ञानिकों में चंद्रशेखर वेंकटरमन का नाम अग्रगण्य है, भौतिक शास्त्र में अपने विशिष्ट योगदान ‘रमन प्रभाव’ (Raman Effects) के कारण वैज्ञानिक प्रगति के इतिहास में अमर हो गए हैं। वे प्रथम भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्हें अपनी खोज के लिए 1930 में ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। इस महान वैज्ञानिक का सारा जीवन ही विज्ञान की उन्नति के प्रति समर्पित रहा और 18 वर्ष की आयु में ही वे ध्वनि के विवर्तन (The unsymmetrical diffraction bands due to a rectangular aperture) पर, 1906 में ही लंदन की फ़िलॉसफ़िकल मैगज़ीन में प्रकाशित अपने पहले शोध-पत्र के कारण विज्ञान जगत में चर्चित और विख्यात हो गए थे। आगे चल कर उन्होंने ध्वनि, प्रकाश और चुम्बकत्व (magnetism) के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण खोजें कीं ।

श्री वेंकटरमन का जन्म 7 नवम्बर को त्रिचनापल्ली (तमिलनाडु) में हुआ था। बचपन से ही रमन अत्यन्त कुशाग्रबुद्धि थे। 12 वर्ष की अल्पायु में मैट्रिक परीक्षा पास करने के पश्चात् उन्होंने 1904 में केवल सोलह वर्ष की आयु में बी.एस-सी और 1907 में मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से भौतिकी में एम. एससी. पास किया। एम.एस-सी. में उन्हें विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम स्थान मिला था। श्री आशुतोष मुखर्जी की प्रेरणा से वे ‘भारतीय विज्ञान परिषद’ (Indian Council of Science) के सदस्य बन कर अनुसंधान कार्य में संलग्न हो गए। 1914 में कलकत्ता में एक ‘साइंस कॉलेज’ की स्थापना की गई थी और उन्हें प्रिंसिपल नियुक्त किया गया। 1921 में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय ने ‘डॉक्टर आफ साइंस’ की उपाधि प्रदान की। 1924 में वे लंदन की ‘रॉयल सोसायटी’ के फेलो चुने गए जो एक बहुत बड़ा सम्मान था। 1928 में वे ‘भारतीय विज्ञान कांग्रेस’ के सभापति निर्वाचित हुए और अगले वर्ष, 1929 में उन्हें भारत सरकार से ‘सर’ की उपाधि प्राप्त हुई। वैज्ञानिक अनुसंधानों पर व्याख्यान हेतु उन्हें अनेक देशों में आमंत्रित किया गया।

इस मध्य वे पानी में से तथा पारदर्शी बर्फ के टुकड़ों या अन्य माध्यमों से गुज़रती सूर्य की किरणों के विकीर्णन पर भाँति-भाँति के प्रयोग तथा अनुसंधान करते रहे। इसके लिए उन्होंने मर्करी आर्क और स्पेक्टोग्राफ का उपयोग किया। कई पदार्थों से प्रकाश किरणों को गुजार कर उन्होंने स्पैक्ट्रम में कुछ नई रेखाएँ प्राप्त कीं, जो बाद में ‘रमन रेखाएँ’ कहलाई तथा इस नए प्रभाव का नाम ‘रमन प्रभाव’ (Raman Effect) रखा गया। इस अध्ययन की खोज के लिए उन्हें वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। इसी वर्ष उन्हें ‘रॉयल सोसायटी’, लंदन का ‘ह्यूम’ पदक भी प्रदान किया गया। सर सी. वी. रमन की इस खोज से विश्व की उद्योग व्यवस्था के विकास में अपूर्व सहायता मिली है। स्वतन्त्र भारत की सरकार ने भी उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। 21 नवम्बर, 1970 को बंगलोर में उनका स्वर्गवास हो गया।

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