Personalities

बाल गंगाधर तिलक

भारत : स्वराज्य के प्रथम उद्घोषक

जन्म : 1856

मृत्यु : 1920

लोकमान्य तिलक का नाम भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में सदा अविस्मरणीय रहेगा। उस समय देश पर अंग्रेजो का शासन था। तिलक एक राष्ट्रवादी नेता थे और उन्होंने सर्वप्रथम ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा’ का नारा लगाया था। अपनी साम्राज्यविरोधी गतिविधियों के कारण वे कई बार जेल गए। 1908 में जब उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने 6 वर्ष का कठोर कारावास देकर मांडले भेजा तो उन्होंने जेल में ही ‘गीता रहस्य’ नामक पुस्तक लिख डाली। भारतीय संस्कृति और इतिहास के ज्ञाता तिलक ने अंग्रेजी में वेदों पर एक ग्रंथ ‘आर्कटिक होम इन द वेदाज़’ की रचना की थी। लॉर्ड कर्जन के समय हुए ‘बंगाल विभाजन’ का भी उन्होंने भारी विरोध किया था। वे राष्ट्रीय जागरण को दिशा देने में सदैव प्रयत्नशील रहे।

लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई को चिखल (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनका पूरा नाम बलवंत गंगाधर तिलक था। बचपन से ही तिलक में नैतिक तथा राजनयिक गुणों का अंकुरण हो चुका था इसीलिए वे तत्कालीन राजनीतिक परतंत्रता से काफ़ी क्षुब्ध थे । तिलक देश की दशा सुधारने के लिए तथा स्वराज्य प्राप्ति के लिए आजीवन प्रयत्न करते रहे। 1879 में उन्होंने एल-एल. बी. की परीक्षा पास की। 1881 में उन्होंने ‘केसरी’ (मराठी) एवं ‘मराठा’ (अंग्रेजी) साप्ताहिक का प्रकाशन किया और उनके माध्यम से जनता में राष्ट्रीय चेतना जगाई। अमेरिका और यूरोप में उनकी कीर्ति ‘ओरायन’ एवं ‘आर्कटिक होम इन द वेदाज़’ नामक पुस्तकों के कारण फैली। मैक्समूलर जैसे विद्वान उनसे अत्यधिक प्रभावित थे। पूना के ‘प्लेग’ के समय उन्होंने दीन-दुखियों की तन-मन से सेवा की थी। उन्हें ‘राजनैतिक उग्रवाद’ का जनक भी कहा जाता है पर तिलक उग्रवाद के लिए अंग्रेजों की अनुदार नीतियों को ही जिम्मेदार मानते थे। 1908 को उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। इसमें तिलक ने अपने बचाव में जो भाषण दिया था वह चार दिन और 21 घंटे चला था। 1916 में होमरूल लीग स्वराज्य संघ की स्थापना के समय उन्होंने ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।’ का नारा दिया था जिसने देश के कोने-कोने में राष्ट्रीय चेतना जगा दी।

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