इंग्लैंड : ‘लेडी विद द लैम्प’
जन्म – 1820
मृत्यु – 1910
सन् 1854-56 के क्रीमिया युद्ध के समय घायलों की सेवा करके उन्हें नई जिंदगी देने वाली मानव सेविका फ्लोरेंस नाइटिंगेल 40 सदस्यीय नर्स मंडली की संयोजिका के रूप में इटली से क्रीमिया आई थीं और उन्होंने अपना निजी धन व्यय करके वहाँ एक अस्पताल की दशा में सुधार करवाया था। उन्हें अपने से ज्यादा चिंता घायलों की सेवा की रहती थी । परोपकार में संलग्न रहने के कारण उन्हें काफी कष्ट भी झेलने पड़े। वे रात-दिन एक करके अपने अस्पताल में रोगियों की सेवा करके उनमें एक नई आशा जगाती थीं। वे रात को हाथ में जलता हुआ लैम्प लेकर घायलों की देखभाल के लिए चक्कर लगाती थीं। इसी से उन्हें ‘लेडी विद द लैम्प’ (Lady with the Lamp) कहा जाने लगा था । क्रीमिया के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी उन्हें सम्मानित किया गया था। इंग्लैंड की संकीर्ण मानसिकता को दूर करने के लिए उन्होंने काफी प्रयास किया तथा अपने प्राप्त धन से ‘नर्स व्यवस्था’ को दृढ़ किया। नाइटिंगेल ने ब्रिटेन में स्त्रियों को चिकित्सा के क्षेत्र में लाने के लिये प्रेरित तथा प्रशिक्षित किया। आधुनिक चिकित्सा में भी नाइटिंगेल का विशेष योगदान है।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 1820 में फ्लोरेंस (इटली) में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके परिवार वाले उन्हें सुख-सुविधापूर्ण जीवन देना चाहते थे किन्तु नाइटिंगेल बचपन से ही पीड़ितों की सेवा करने की आकांक्षा रखती थीं। उन्होंने जर्मनी एवं फ्रांस में नर्सिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्हें ब्रिटिश अस्पतालों का सुधारक एवं नर्सिंग व्यवस्था का संगठक भी माना जाता है। 1910 में उनकी लंदन में मृत्यु हो गई।
नर्सिंग व्यवस्था को नवीन वैज्ञानिकता देने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल एक असाधारण महिला थीं जिसने अपने लिये भोग विलास त्याग कर कष्ट में पड़े व्यक्तियों की निःस्वार्थ सेवा का मार्ग चुना। मानव कल्याण में उनके योगदान का महत्त्व आज भी स्वीकार किया जाता है और वे त्याग एवं करुणा की देवी के रूप में सदैव याद की जाती रहेंगी।