भारत : बौद्ध धर्म के संस्थापक
जन्म : 563 ई. पू. मृत्यु: 486 ई. पू.
विश्व के महान धर्मों में से एक, बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा गौतम बुद्ध ने
प्रभाव छोड़ा है। उन्होंने निर्वाण का जो मार्ग मानव मात्र को सुझाया था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व था। मानवता की मुक्ति का मार्ग ढूंढ़ने के लिए उन्होंने स्वयं राजसी भोगविलास त्याग दिया और अनेक प्रकार की शारीरिक यंत्रणाएं झेलीं। गहरे चिंतन-मनन और कठोर साधना के पश्चात् ही उन्हें गया (बिहार) में बोधिवृक्ष के नीचे तत्त्वज्ञान प्राप्त हुआ था और उन्होंने सर्वप्रथम पांच शिष्यों को दीक्षा दी थी। तत्पश्चात् अनेक प्रतापी राजा भी उनके अनुयायी बन गए। उनका धर्म भारत के बाहर भी तेजी से फैला और आज भी बौद्ध धर्म चीन, जापान आदि कई देशों का प्रधान धर्म है।
गौतम बुद्ध का जन्मकाल विवादग्रस्त है, परन्तु बहुमत से वह 563 ई. पू. माना जाता है। उनका जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी (उत्तर प्रदेश) नामके स्थान पर हुआ था। उनके पिता शुद्धोदन शाक्यवंश के राजा थे। उनका जन्म का नाम सिद्धार्थ था।
एक बार उन्हें एक वृद्ध रोगी और एक शव को देखने का अवसर मिला। मानवीय पीड़ा से उद्वेलित हो वे सोचने लगे कि क्या इससे मुक्ति का कोई उपाय नहीं है। अब उन्होंने मानव कल्याण को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। वे अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को सोते में ही त्याग कर वनों में चले गए, जहां ध्यानाभ्यास द्वारा उन्होंने तत्त्वज्ञान प्राप्त किया तथा ‘बुद्ध’ कहलाये ।
गौतम बुद्ध ने तत्कालीन रूढ़ियों और अन्धविश्वासों का खंडन कर एक सहज मानवधर्म की स्थापना की। उन्होंने कहा कि जीवन में संयम, सत्य और अहिंसा का पालन करते हुए पवित्र और सरल जीवन व्यतीत करना चाहिए। उन्होंने कर्म, भाव और ज्ञान के साथ ‘सम्यक्’ की साधना को जोड़ने पर बल दिया, क्योंकि कोई भी ‘अति’ शांति नहीं दे सकती। इसी तरह पीड़ाओं तथा मृत्यु भय से मुक्ति मिल सकती है और इस भयमुक्ति एवं शांति को ही उन्होंने निर्वाण कहा है।