भारत : सिख धर्म के संस्थापक
जन्म : 1469
मृत्यु : 1539
धार्मिक कट्टरता के वातावरण में उदित गुरू नानक ने धर्म को उदारता की एक नई परिभाषा दी। उन्होंने अपने सिद्धान्तों के प्रसार हेतु एक संन्यासी की तरह घर का त्याग कर दिया और लोगों को सत्य और प्रेम का पाठ पढ़ाना आरंभ कर दिया। उन्होंने जगह-जगह घूमकर तत्कालीन अंधविश्वासों, पाखण्डों आदि का जमकर विरोध किया। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के भारी समर्थक थे। धार्मिक सद्भाव की स्थापना के लिए उन्होंने सभी तीर्थों की यात्राएँ कीं और सभी धर्मों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। उन्होंने हिन्दू धर्म और इस्लाम, दोनों की मूल एवं सर्वोत्तम शिक्षाओं को सम्मिश्रित करके एक नए धर्म की स्थापना की जिसके मूलाधार थे प्रेम और समानता। यही बाद में सिख धर्म कहलाया। भारत में अपने ज्ञान की ज्योति जलाने के बाद उन्होंने मक्का-मदीना की यात्रा की और वहाँ के निवासी भी उनसे अत्यंत प्रभावित हुए। 25 वर्ष के भ्रमण के पश्चात् नानक कर्तारपुर में बस गए और वहीं रहकर उपदेश देने लगे। उनकी वाणी आज भी ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संगृहीत है।
ननकाना साहिब (तलवंडी) में नानक का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को हुआ था। 15 वर्ष की आयु में उन्हें पंजाबी, हिन्दी, फारसी तथा संस्कृत की शिक्षा गई। वे अत्यंत मेधावी तथा शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। 18 वर्ष की आयु ‘सुलक्षणा’ देवी के साथ उनका विवाह हुआ। जिन-जिन स्थानों से गुरु नानक गुज़रे थे वे आज तीर्थ स्थल का रूप ले चुके हैं। अंत में 1539 में ‘जपूजी’ का पाठ करते हुए उनका स्वर्ग प्रयाण हुआ।
गुरु नानक ने अपने उपदेशों से सांप्रदायिक एकता एवं सद्भाव की ज्योति जलाई थी जो आज भी प्रज्वलित है। उनका धर्म सेवा, करुणा, प्रेम और आस्था का प्रतीक है तथा विश्वबन्धुत्व की प्रेरणा देता है।