अरब : इस्लाम धर्म के प्रवर्तक
जन्म : 569 ईस्वी
मृत्यु : 631 ईस्वी
हजरत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का जन्म मक्का के एक प्रसिद्ध करेश घराने में हुआ। माता का नाम अमिना और पिता का नाम अब्दुल्लाह था। अल्पायु में यतीम हो जाने के कारण आप शिक्षा से वंचित रहे और निरक्षर ही रह गए। केवल 12 वर्ष की आयु में मुहम्मद साहब अपने चचा के साथ व्यापार में लग गए और देशाटन पर जाने लगे। उनकी सच्चाई और ईमानदारी से प्रभावित होकर एक विधवा धनाढ्य महिला खदीजा ने उन्हें अपना भागीदार बनाया। कुछ समय बाद उसी महिला से उनका विवाह हो गया। विवाह के कुछ समय बाद मुहम्मद साहब हीरा नामक गुफा में जाकर आत्मचिन्तन करने लगे। वहाँ उनको आत्मज्ञान प्राप्त होने लगा और कुरान का अवतरण प्रारम्भ हो गया।
मुहम्मद साहब के समय अरबों का नैतिक पतन चरमसीमा पर पहुँच चुका था। मुहम्मद साहब ने एकेश्वरवाद का संदेश दिया और केवल अल्लाह को ही पूज्य बतलाया। प्राणी मात्र से प्रेम करने और दीन-दुखियों की सेवा को सर्वोपरि बतलाया तथा एक अल्लाह की उपासना का संदेश देने के साथ-साथ अपने-आपको ईशदूत (पैगम्बर) होना भी बतलाया। मूर्ति पूजा छोड़कर एक ईश्वर की उपासना करने की बात पर उनके सगे-सम्बन्धी तथा मित्र उनसे घृणा करने लगे। वे सब मुहम्मद साहब की जान के दुश्मन बन गए। मुहम्मद साहब ने मक्का से हिजरत (स्वदेश त्यागने) का विचार बनाया और अपने साथियों सहित मदीने चले गए। हिजरत की तिथि से ही हिजरी सन् आरम्भ हुआ।
मुहम्मद साहब के उपदेश जिन ग्रन्थों में संग्रहित हैं, उनको हदीस कहते हैं और कुरान के आदेश शरिअत कहलाते हैं। बुखारी, मुस्लिम, तिरमजी और मिशकात मुख्य हदीसें हैं। मुहम्मद साहब की वफात के बाद उनका मत भले ही शिया और सुन्नी दो भागों में बँट गया हो, किन्तु इस्लाम के मूल सिद्धांतों, तौहीद, नमाज, रोजा, ज़कात और हज तथा एक अल्लाह और एक कुरान पर दोनों ही अटल हैं। आज संसार में उनके लगभग 140 करोड़ अनुयायी हैं।