भारत : पौधों में भी जीवन के द्रष्टा
जन्म : 1858
मृत्यु : 1937
पेड़-पौधों में भी जीवन होता है – इस क्रान्तिकारी अनुसंधान से विश्व को चकित कर देने वाले एक प्रतिभासम्पन्न वैज्ञानिक थे। उन्होंने स्वयं कई उपकरणों का निर्माण किया और उनके द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि पौधे भी खाते, पीते, सोते और साँस लेते हैं।
यद्यपि श्री बसु अपने इस अनुसंधान के कारण विशेष विख्यात हैं, परंतु उन्होंने एक और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आविष्कार किया था। उन्होंने बेतार के तार (wireless) की खोज की, यद्यपि उन दिनों श्री मारकोनी भी विद्युत तरंगों द्वारा ‘संदेश संप्रेषण’ पर खोज कर रहे थे, पर मारकोनी ने रेडियो संदेश संप्रेषण में लंबी विद्युत तरंगों (long electric waves) का प्रयोग किया था। श्री बसु ने ‘लघु तरंगों’ (short waves) का आविष्कार तथा प्रयोग किया और बाद में रंडार, टेलीविज़न आदि में बसु द्वारा आविष्कृत ‘लघु तरंगों’ का ही उपयोग किया जाने लगा। 1900 में विज्ञान कांग्रेस के पेरिस सम्मेलन में भारत सरकार ने अपने प्रतिनिधि के रूप में श्री बसु को भेजा था। वहाँ अपनी अद्भुत प्रतिभा से उन्होंने विश्व के वैज्ञानिकों को चमत्कृत कर दिया। 1896 में लंदन विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ़ साइन्स’ की उपाधि दी। 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय ने भी उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ़ साइन्स’ की उपाधि दी तथा अंग्रेज सरकार ने उन्हें ‘सर’ की पदवी देकर सम्मानित किया। 1920 में वे लंदन की रॉयल सोसायटी के फ़ेलो चुने गए।
श्री जगदीश चंद्र बसु का जन्म 30 नवम्बर, 1858 को पूर्व बंगाल के एक गांव मैमन सिंह में हुआ था। गांव में ही प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे कलकत्ता भेज दिए गए तथा सेंट ज़ेवियर कॉलेज से उन्होंने लंदन जाकर बी.एस.सी. की डिग्री तथा कैम्ब्रिज की ‘नेचुरल साइंस ट्राइपॉस’, डिग्री प्राप्त की। भारत लौट कर वे कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में भौतिक शास्त्र के प्राध्यापक हो गए। श्री बसु ने 1913 में कलकत्ता में ‘बसु अनुसंधान संस्थान’ (Bose Research Institute) की स्थापना की। 1937 में 23 नवम्बर को हृदयाघात से श्री बसु का देहान्त हो गया पर उनके अनसंधान सदैव उनकी याद दिलाते रहेंगे।