Personalities

ज़रथुष्ट

jarthusht koun the in hindi

फ़ारस : पारसी धर्म के प्रवर्तक

जन्म काल : 6000 – 1000 ई. पू.

असंख्य व्यक्तियों को ज्ञान का प्रकाश दिखाने वाले ज़रथुष्ट पारसी धर्म के प्रवर्तक थे। उन्होंने राजपाट छोड़ कर सत्य की खोज में प्रयाण किया। आपको तपस्या द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त हुआ, जिसे उन्होंने उपदेशों के माध्यम से दूसरों तक पहुँचाया। जरथुष्ट करुणा, प्रेम और सहिष्णुता के संदेशवाहक थे और कठिनाइयाँ सह कर भी अपने पथ से विचलित नहीं हुए। उन्होंने लोगों को नास्तिकता और अंधविश्वास से उबार कर सच्चे ज्ञान का आलोक दिया। उनके उपदेश गीतों के रूप में आज भी ‘गाथा’ नाम से सुरक्षित हैं। पारसी मत का निष्कर्ष है ‘अश’ अर्थात् सदाचार और उसके उदात्त नियमों का पालन ही सच्चे पारसी का धर्म है। ‘अश’ सभी प्रकार की पवित्रता, सत्यशीलता, परोपकार, अनुशासन तथा व्यवस्था का प्रतीक है। ‘बोहू महह’ अर्थात् सुविचार ही जरथुष्ट के मत का सार तत्त्व है। पारसी धर्मग्रन्थ का नाम ‘अवस्ता’ है, जिसमें भजनों के रूप में ज़रथुष्ट की वाणी संगृहीत है।

ज़रथुष्ट का जन्म काल विभिन्न प्रमाणों के अनुसार 6000 से 1000 वर्ष ई.पू. तक अलग-अलग माना जाता है। इतना निश्चित है कि उनका जन्म राजपरिवार से संबद्ध स्पित्मा नामक कबीले में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि वे अपने जन्म के दिन ही हंसे थे। बचपन में ही वे असाधारण प्रतिभा सम्पन्न थे। उस समय मज्दयासनी धर्म विकृतावस्था में था और अन्धविश्वासों ने सच्चे ज्ञान का स्थान ले लिया था। इस स्थिति से दुखी ज़रथुष्ट ने पन्द्रह वर्ष की अवस्था में ही वैराग्य ले लिया। सात वर्ष ज़रथुष्ट ने गंभीर मनन करते हुए दिव्य दृष्टि की लालसा से एकांतवास में बिताए। तब दिव्य दृष्टियों में से ‘बोहू महह’ (सुविचार) उनकी ध्यानावस्था में प्रकट हुए और उनकी आत्मा का आहूर मज्द (ईश्वर) से साक्षात्कार कराया।

ज्ञान प्राप्ति के बाद ज़रथुष्ट ने अपने नए मत का प्रचार-प्रसार आरंभ किया। प्रारंभिक कठिनाइयों के बाद राजा विश्वतस्थ तथा अन्य अनेक राजाओं ने भी उनके मत को स्वीकार किया। ऐसा विश्वास किया जाता है कि 77 वर्ष की आयु में एक अधार्मिक शाह ने उनकी हत्या करवा दी थी।

Leave a Comment

You cannot copy content of this page