Personalities

जिद्दू कृष्णमूर्ति

jiddu krishnmurti koun the

भारत : आधुनिक युग के महामानव

जन्म : 1895

मृत्यु : 1986

जे. कृष्णमूर्ति ने अध्यात्म और मुक्ति को एक नई परिभाषा दी और उसे जनमानस के व्यावहारिक धरातल पर ले आए। ऑर्डर ऑफ द स्टार इन दि ईस्ट (Order of the Star in the East) संस्था को उन्होंने विश्वव्यापी बनाकर 1929 में अपने को उससे पूरी तरह अलग कर लिया। इसके बाद वे यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में सत्य का दर्शन प्रचारित करते रहे। कुछ वर्ष पूर्व तो उनकी गणना विश्व के शीर्षस्थ विचारकों में होने लगी थी। वे समस्त जीवन को साधना का ही एक भाग मानते थे। वे मनुष्य का ध्येय सत्य की खोज करना मानते थे। उनका कहना था- ‘नए आदमी को जन्माना है।’ उसे नयी तरह की शिक्षा की ज़रूरत है जिससे वह बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वयं सत्य की खोज और पहचान कर सके। किसी दूसरे के द्वारा सत्य को नहीं प्राप्त किया जा सकता। जो मन रूढ़ियों, विश्वासों, कथनों, उदाहरणों आदि से भरा हुआ है वह एक सर्जनात्मकताविहीन तथा मात्र अनुकरण करने वाला मन है। एक ख़ाली प्याले-सा रिक्त मन ही सत्य को ग्रहण कर सकता है। वास्तव में जे. कृष्णमूर्ति इस युग के महामानव थे। ब्रह्मवेत्ता थे और उनका चिन्तन मातृभूमि, राष्ट्र, भाषा, आनुवांशिकता आदि पहचानों से बहुत ऊपर था तथा परंपरा, प्रार्थना, गुरु आदि उनके लिए अर्थहीन थे। कई वर्ष अमेरिका में रहकर भी उन्होंने अपने दर्शन का प्रचार किया।

11 वर्ष की आयु में कृष्णमूर्ति को डॉ. ऐनीबेसेंट ने उनके पिता से माँग लिया था और उनकी उच्च सात्विक वातावरण में शिक्षा-दीक्षा हुई थी। 1929 में उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी (Theosophical Society) से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। इस समय तक उनका नाम सारे विश्व में फैल चुका था। उनके ऊपर 25 से अधिक किताबें लिखी गईं जो लाखों की संख्या में बिकीं। डॉ. ऐनीबेसेंट ने उनकी तुलना कृष्ण और ईसा से की थी। वे बहुत ही सुदर्शन भी थे। दुनिया के विद्वान उनसे मिलने को हमेशा लालायित रहते थे। 17 फरवरी, 1986 को अमरीका में उनकी मृत्यु हो गई। वे आजीवन अविवाहित रहे।

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