जर्मनी : साम्यवाद का प्रणेता
जन्म : 1818 मृत्यु 1883
दुनिया के मजदूरों एक हो’ – यह नारा लगाने वाले महान राजनीतिक, दार्शनिक कार्ल मार्क्स (Karl Marx) का सारा जीवन सर्वहारा वर्ग का एकतंत्र लाने के प्रयासों में ही व्यतीत हुआ। साम्यवाद (Communism) उन्हीं की देन है। हीगेल का उन पर पर्याप्त प्रभाव था। फ्रांस में उन्हें एंगेल्स’ जैसे मित्र का सहयोग भी मिला किंतु उन्हें अपने उग्रवादी विचारों के कारण जर्मनी एवं फ्रांस से निष्कासित होना पड़ा। क्रांतिकारी वर्ग के समर्थक मार्क्स ने इंग्लैंड में रहते हुए काफी निर्धनता के बाद भी अपने विचारों का प्रचार किया। 1848 में ‘दि कम्यूनिस्ट मेनिफेस्टो’ (The Communist Manifesto) एवं 1859 में ‘दास केपीटल’ (Das Capital) नामक दो अमर ग्रंथों ने दुनिया में तहलका मचा दिया था। उन्होंने पूँजीवाद का विरोध तथा समाजवाद का प्रतिपादन किया। विश्व की सभी भाषाओं में उनकी लिखी पुस्तकों का अनुवाद हो चुका है। कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों से प्रेरित होकर ही रूस, चीन, वियतनाम, क्यूबा एवं युगोस्लाविया। आदि में साम्यवादी क्रांतियाँ हुईं। मार्क्स साम्यवाद (Communism) को पूँजीवाद (Capitalism) का स्वाभाविक परिणाम मानते थे और उन्हें आशा थी कि उनके द्वारा प्रतिपादित नया समाजवाद सर्वप्रथम ब्रिटेन और जर्मनी जैसे औद्योगिक देशों में लागू होगा, परंतु हुआ यह कि कम्यूनिज्म को औद्योगीकरण के विस्तार के स्थान पर ‘गरीबी के समाधान’ के रूप में देखा गया और सर्वप्रथम कम्यनिस्ट राज्य की स्थापना 1918 में रूस में हुई जो उस समय विकास की दृष्टि से पश्चिम यूरोप से लगभग एक शताब्दी पीछे था। 1990 के बाद चीन, क्यूबा और वियतनाम के अलावा सभी पूर्व कम्यूनिस्ट देशों में मार्क्स और लेनिन के विचारों को नकारने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है।
मार्क्स का जन्म 5 मई, 1881 को ट्रायर (Trier) जर्मनी के एक यहूदी परिवार में हुआ था। किंतु उन्होंने ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। बॉन एवं बर्लिन में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने ‘जेनीवान वेस्टफ्लेन’ से विवाह किया। 14 मार्च, 1883 को इंग्लैंड में उनकी मृत्यु हो गई। हाइगेट कब्रिस्तान में उनकी कब्र बनी हुई है।