भारत : संस्कृत के प्रतिनिधि साहित्यकार
जीवनकाल : प्रथम शताब्दी ई.पू.
कविकुल गुरु महाकवि कालिदास की गणना भारत के ही नहीं वरन् संसार के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों में की जाती है। उन्होंने नाटक, महाकाव्य तथा गीतिकाव्य के क्षेत्र में अपनी अद्भुत रचनाशक्ति का प्रदर्शन कर अपनी एक अलग ही पहचान बनाई।
जिस कृति के कारण कालिदास को सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली, वह है उनका नाटक ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ जिसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनके दूसरे नाटक ‘विक्रमोर्वशीय’ तथा ‘मालविकाग्निमित्र’ भी उत्कृष्ट नाट्य साहित्य के उदाहरण हैं। उनके केवल दो महाकाव्य उपलब्ध हैं- ‘रघुवंश’ तथा ‘कुमारसंभव’ पर वे ही उनकी कीर्ति पताका फहराने के लिए पर्याप्त हैं।
काव्यकला की दृष्टि से कालिदास का ‘मेघदूत’ अतुलनीय है। इसकी सुन्दर सरस भाषा, प्रेम और विरह की अभिव्यक्ति तथा प्रकृति चित्रण से पाठक मुग्ध और भावविभोर हो उठते हैं। ‘मेघदूत’ का भी विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनका ‘ऋतु संहार’ प्रत्येक ऋतु के प्रकृति चित्रण के लिए ही लिखा गया है।
कालिदास के काल के विषय में काफी मतभेद है, पर अब विद्वानों की सहमति से उनका काल प्रथम शताब्दी ई.पू. माना जाता है। इस मान्यता का आधार यह है कि उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य के शासन काल से कालिदास का रचनाकाल संबद्ध है।
किंवदन्ती है कि प्रारंभ में कालिदास मंदबुद्धि तथा अशिक्षित थे। कुछ पंडितों ने, जो अत्यन्त विदुषी राजकुमारी विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ में पराजित हो चुके थे, बदला लेने के लिए छल से कालिदास का विवाह उसके साथ करा दिया। विद्योत्तमा वास्तविकता का ज्ञान होने पर अत्यन्त दुखी तथा क्षुब्ध हुई। उसकी धिक्कार सुन कर कालिदास ने विद्याप्राप्ति का संकल्प किया तथा घर छोड़कर अध्ययन के लिए निकल पड़े और विद्वान बनकर ही लौटे।