Personalities

महावीर स्वामी

भारत : जैन धर्म के उन्नायक

जन्म : 599 ई. पू.

मृत्यु : 527 ई. पू.

महावीर स्वामी विश्व के उन महात्माओं में से एक थे जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिये राजपाट को छोड़कर तप और त्याग का मार्ग अपनाया था। बचपन से ही उनमें महानता के लक्षण दृष्टिगत होने लगे थे। 30 वर्ष की आयु में वन में जाकर ‘केशलोच’ के साथ उन्होंने गृह त्याग कर दिया। 12 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में एक शाल वृक्ष के नीचे उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ और क्रमशः उनके उपदेश चतुर्दिक फैलने लगे। बिम्बिसार जैसे बड़े-बड़े राजा उनके अनुयायी बन गये। तीस वर्ष तक महावीर ने त्याग, प्रेम एवं अहिंसा का संदेश फैलाया। जैन धर्म के वे 24वें तीर्थंकर थे।

वर्धमान (महावीर) का जन्म वैशाली के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशिला था। वर्धमान चैत्र शुक्ला, 13 को सोमवार की प्रातः जन्मे थे। 5 वर्ष की आयु में उन्हें गुरुकुल में पढ़ने भेजा गया। वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे लेकिन बाल्यकाल से ही वे आध्यात्मिक विषयों के बारे में सोचते रहते थे। विश्वबंधुत्व और समानता का आलोक फैलाने वाले महावीर स्वामी, 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्णा 14 (दीपावली की पूर्व संध्या) को निर्वाण को प्राप्त हुए।

महावीर स्वामी के कारण ही 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों ने एक विशाल धर्म का रूप धारण किया। जिन भगवान के अनुयायी जैन कहलाते थे और उनकी मान्यता के अनुसार जैन धर्म अनादिकाल से चला आ रहा है और इसका प्रचार करने के लिए समय-समय पर तीर्थंकरों का आविर्भाव होता रहता है। महावीर 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे और उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म के स्वरूप का ही पालन आज इसके अनुयायियों द्वारा किया जाता है।

जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। उनका तीसरा मुख्य सिद्धान्त ‘अनेकांतवाद’ है, जिसके अनुसार दूसरों के दृष्टिकोण को भी ठीक-ठाक समझ कर ही पूर्ण सत्य के निकट पहुँचा जा सकता है।

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