यूनान : महान राजनीतिक विचारक
जन्म : लगभग 428 ई.पू. मृत्यु : लगभग 347 ई.पू.
यतान का महान विचारक प्लेटो दार्शनिक सुकरात का शिष्य और अरस्तू का गुरु था। इन तीनों दार्शनिकों ने ही पाश्चात्य जगत में दार्शनिक संस्कृति की आधारशिला रखी है। प्लेटो का जन्म एथेंस (यूनान) के एक सम्मानित परिवार में लगभग 428 ई०पू० हुआ। बचपन में ही वह दार्शनिक सुकरात के संपर्क में आया। राजनीति में प्लेटो की रुचि अधिक रही। उनकी यह धारणा थी कि विवेकी व्यक्ति का सक्रिय राजनीति में कोई स्थान नहीं है। उन्होंने अपने गुरु सुकरात के विचारों को जीवित रखा। ये विचार आज भी समकालीन समझे जाते हैं।
प्लेटो ने दार्शनिक न्याय पर अधिक बल दिया है और शिक्षा को एक अनवरत प्रक्रिया माना है। उन्होंने एक आदर्श राज्य की कल्पना की और कानूनों की संहिताओं को प्रतिपादित किया। कानून और नैतिकता में साम्य स्थापित करने के बारे में प्लेटो ने विचार रखे हैं। उन्हें यूटोपिया ग्रंथ का जनक तथा ‘फ्येद्रस’, ‘दी अपॉलाजी’, ‘दी रिपब्लिक’ आदि ग्रंथों का रचनाकार कहा जाता है। दर्शन के अध्ययन के लिए प्लेटो ने ज्यामिति (Geometry) को आवश्यक माना ।
सुकरात को 399 ई.पू. फांसी लगने के बाद प्लेटो ने अन्य मित्र चिंतकों के साथ मेगरा नामक स्थान पर शरण ली। आने वाले कुछ वर्षों में इन्होंने मिश्र और इटली देशों की यात्राएं कीं और अपने विचारों को जनता के सामने रखा। प्लेटो को 367 ई.पू. में राजकुमार डायनेसिस द्वितीय को शिक्षा देने के लिए नियुक्त किया गया। लगभग 387 ई.पू. में प्लेटो ने दर्शन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान अकादमी की स्थापना की। प्लेटो के प्रिय शिष्य अरस्तू ने इस अकादमी में 367 ई. पू. एक विद्यार्थी के रूप में प्रवेश किया और वे यहां प्लेटो की मृत्यु तक रहे। प्लेटो की मृत्यु लगभग 347 ई.पू. में 80 वर्ष की अवस्था में हुई।