भारत : विश्वविख्यात पक्षिशास्त्री
जन्म : 1896 मृत्यु : 1987
1906 में दस वर्ष के बालक सालिम अली की अटूट जिज्ञासा ने ही पक्षिशास्त्री सके रूप में उन्हें आज विश्व में मान्यता दिलाई है। सालिम अली का जन्म 12 नवंबर, 1896 को हुआ। बचपन से ही प्रकृति के स्वछंद वातावरण में घूमना इनकी रुचि रही है। इसी कारण वे अपनी पढ़ाई भी पूरी तरह नहीं कर पाये। बड़ा होने पर सालिम अली को बड़े भाई के साथ उसके काम में मदद करने के लिए बर्मा भेज दिया गया। यहाँ पर भी इनका मन जंगल में तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता।
घर लौटने पर सालिम अली ने पक्षिशास्त्र में प्रशिक्षण लिया और मुंबई के नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के म्यूजियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गए। फिर जर्मनी जाकर इन्होंने उच्च प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। लेकिन एक साल बाद देश लौटने पर इन्हें ज्ञात हुआ कि इनका पद खत्म हो चुका है और ये बेरोजगार हो गए। इन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली। इनकी पत्नी के पास थोड़े-बहुत पैसे थे जिसके कारण मुंबई बंदरगाह के पास किहिम स्थान पर एक छोटा सा मकान लेकर ये रहने लगे। यह मकान चारों तरफ से पेड़ों से घिरा हुआ था। उस साल वर्षा ज्यादा होने के कारण इनके घर के पास एक पेड़ पर बयापक्षी ने घाँसला बनाया। सालिम अली तीन-चार माह तक बयापक्षी के रहने-सहने का अध्ययन रोजाना घंटों करते रहते। सन् 1930 में इन्होंने अपने अध्ययन पर आधारित लेख प्रकाशित कराए। इन लेखों के कारण ही सालिम अली को पक्षिशास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। सन् 1941 में ‘दि बुक ऑफ इण्डियन बर्ड्स’ और सन् 1948 में ‘हैंडबुक ऑफ बर्ड्स ऑफ इंडिया एण्ड पाकिस्तान’ इनके द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकें हैं। इन्होंने ‘फॉल ऑफ ए स्पैरो’ इस नाम से आत्मकथा भी लिखी। 20 जून, 1987 को मुंबई में इनका देहावसान हो गया।