भारत : सम्राट, बौद्ध धर्म का विस्तारक
जन्म : 273 ई.पू.
मृत्यु: 232 ई.पू.
अशोक भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है, जिसकी तुलना विश्व में
किसी और से नहीं की जा सकती। एक विजेता, दार्शनिक एवं प्रजापालक रूप में उनका नाम अमर रहेगा। उसने जो त्याग एवं कार्य किए वैसा अन्य कोई नहीं कर सका। प्रारम्भ में वह एक साम्राज्यविस्तारक तथा क्रूर सम्राट था, पर कलिंग युद्ध के दारुण नरसंहार से दुखी होकर सम्राट अशोक ने अपनी इस ऐतिहासिक विजय के पश्चात् युद्ध की तलवार रखकर मानवता की ज्योति थाम ली और सदियों से वह ज्योति करोड़ों लोगों को दया और प्रेम का संदेश देती आ रही है। अशोक के बिना भारतीय इतिहास के व्यावहारिक आदर्शों की कल्पना ही नहीं की जा सकती। वह विश्व का पहला सम्राट था, जिसने समानता, अन्तर्राष्ट्रीयता और विश्वबंधुत्व को साकार रूप दिया। बौद्ध धर्म को अशोक ने ही विश्व धर्म के रूप में मान्यता दिलाई। विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अशोक ने अपने पुत्र और पुत्री तक को भिक्षु भिक्षुणी के रूप में भारत से बाहर भेजा। सार्वजनिक कल्याण के लिए उसने जो कार्य किये वे तो इतिहास में अमर ही हो गए हैं। नैतिकता, उदारता एवं भाईचारे का संदेश देने वाले अशोक ने कई अनुपम भवनों तथा देश के कोने-कोने में स्तंभों एवं शिलालेखों का निर्माण भी कराया जिन पर बौद्ध धर्म के संदेश अंकित थे। भारत का राष्ट्रीय चिह्न ‘अशोक चक्र’ तथा शेरों की ‘त्रिमूर्ति’ भी अशोक महान की ही देन है। ये कृतियाँ अशोक निर्मित स्तंभों और स्तूपों पर अंकित हैं। ‘त्रिमूर्ति’ सारनाथ (वाराणसी) के बौद्ध स्तूप के स्तंभों पर निर्मित शिलामूर्तियों की प्रतिकृति है।
अशोक ‘बिन्दुसार’ का पुत्र था। उसका ‘देवनाम् प्रिय’ एवं ‘प्रियदर्शी’ आदि नामों से भी उल्लेख किया जाता था। एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के अतिरिक्त उसने बौद्ध धर्म तथा अहिंसा के संदेश का देश-विदेश में प्रचार किया। उसकी मृत्यु केवल 41 वर्ष की आयु में हो गई थी।
विश्व इतिहास में अशोक महान एक अतुलनीय चरित्र है। उस जैसा ऐतिहासिक पात्र अन्यत्र दुर्लभ है। भारतीय इतिहास के प्रकाशवान तारे के रूप में वह सदैव जगमगाता रहेगा।