भारत : अमर शहीद
जन्म : 1907
मृत्यु : 1931
विश्व में 20वीं शताब्दी के अमर शहीदों में भारत के सरदार भगतसिंह का नाम बहुत ऊँचा है। उन्होंने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है। वे अपने देश के लिए ही जिए और उसी के लिए शहीद भी हो गए।
उनका जन्म लायलपुर (पंजाब) के एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था, जिसका अनुकूल प्रभाव उन पर पड़ा। वे 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। डी.ए.वी. स्कूल से उन्होंने नवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1923 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें विवाह बंधन में बाँधने की तैयारी होने लगी तो वे लाहौर से भागकर कानपुर आ गए। यहाँ उन्हें श्री गणेश शंकर विद्यार्थी का हार्दिक सहयोग भी प्राप्त हुआ। देश की स्वतंत्रता के लिए अखिल भारतीय स्तर पर क्रांतिकारी दल का पुनर्गठन करने का श्रेय सरदार भगतसिंह को ही जाता है। उन्होंने कानपुर के ‘प्रताप’ में बलवंत सिंह के नाम से तथा दिल्ली के ‘अर्जुन’ के सम्पादकीय विभाग में अर्जुन सिंह के नाम से कुछ समय काम किया और अपने को ‘नौजवान भारत सभा’ से भी सम्बद्ध रखा। वे चन्द्रशेखर ‘आजाद’ जैसे महान क्रांतिकारी के संपर्क में आए और बाद में उनके प्रगाढ़ मित्र बन गए। 1928 में ‘सांडर्स हत्याकांड’ के वे प्रमुख नायक थे। 8 अप्रैल, 1929 को ऐतिहासिक ‘असेंबली बमकांड’ के भी प्रमुख अभियुक्त माने गए थे। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल भी की थी। वास्तव में इतिहास का एक अध्याय ही भगतसिंह के साहस, शौर्य, दृढ़ संकल्प और बलिदान की कहानियों से भरा पड़ा है। ‘लाहौर षड्यंत्र’ के मुकद्दमे में भगतसिंह को फाँसी की सजा मिली तथा केवल 24 वर्ष की आयु में, 23 मार्च, 1931 की रात में, उन्होंने हँसते-हँसते संसार से विदा ले ली। भगतसिंह के उदय से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली वरन् नवयुवकों के लिए भी प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ। वे देश के समस्त शहीदों के सिरमौर थे।