पख्तूनिस्तान : सीमांत गांधी
जन्म : 1890 मृत्यु : 1988
सरहद के पार अपने लोगों की स्वाधीनता के लिए संघर्षरत ‘सीमांत गांधी’ के नाम से विख्यात खान अब्दुल गफ्फार खाँ प्रारंभ से ही अंग्रेजों के खिलाफ थे। विद्रोह के आरोप में उनकी पहली गिरफ्तारी 3 वर्ष के लिए हुई थी। उसके बाद उन्हें यातनाओं को झेलने की आदत सी पड़ गई। जेल से बाहर आकर उन्होंने पठानों को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने के लिए ‘खुदाई खिदमतगार’ नामक संस्था की स्थापना की और अपने आंदोलनों को और भी तेज कर दिया। मुस्लिम लीग ने जहाँ पख्तूनों को इस आंदोलन के लिए कोई मदद नहीं दी, वहीं कांग्रेस ने उन्हें अपना पूर्ण समर्थन दिया। अतः वे पक्के कांग्रेसी बन गए और यहीं से वे ‘गांधी जी के अनुयायी’ के रूप में प्रतिष्ठित होते चले गए। खान ने पठानों को गांधी जी का ‘अहिंसा’ का पाठ पढ़ाया।
अब्दुल गफ्फार खान का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ। वह बचपन से ही अत्यधिक दृढ़ स्वभाव के व्यक्ति थे इसलिए अफगानों ने उन्हें ‘बाचा खान’ के रूप में पुकारना प्रारंभ कर दिया। आपका सीमाप्रांत के कबीलों पर अत्यधिक प्रभाव है। गांधी के कट्टर अनुयायी होने के कारण ही उनकी ‘सीमांत गांधी’ की छवि बनी। विनम्र गफ्फार ने सदैव स्वयं को एक स्वतंत्रता संघर्ष का सैनिक मात्र कहा परंतु उनके प्रशंसकों ने उन्हें ‘बादशाह खान’ कह कर पुकारा। गांधी जी भी उन्हें ऐसे ही सम्बोधित करते थे। राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेकर उन्होंने कई बार जेलों में घोर यातनायें झेली हैं फिर भी वे अपनी मूल संस्कृति से विमुख नहीं हुए। इसी वजह से वे भारत के प्रति अत्यधिक स्नेह भाव रखते थे। 1985 के ‘कांग्रेस ‘शताब्दी समारोह’ के आप प्रमुख आकर्षण थे।
भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। 98 वर्ष की आयु में बादशाह खान दुनिया छोड़कर चले गए।