भारत : स्वतंत्रता सेनानी
जन्म : 1897
मृत्यु : 1945 अनुमानित
बचपन से ही सुभाष में राष्ट्रीयता के लक्षण प्रकट होने लगे थे और निस्वार्थ सेवा भावना उनके चरित्र की विशेषता थी। इन सभी उदात्त प्रवृत्तियों से हार्थ क्रांतिकारी पर उदार व्यक्तित्व का निर्माण हुआ था। 12 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने नगर के हैजा पीड़ित लोगों की अद्भुत लगन से सेवा की थी। सुभाष एक मेधावी छात्र भी थे। उन्होंने आई.सी.एस. परीक्षा पास करने के बाद भी अंग्रेजों की नौकरी को स्वीकार नहीं किया और अपने को राष्ट्रीय आंदोलन को समर्पित कर दिया। सुभाष के जीवन का एक बड़ा भाग अंग्रेजों की जेल में ही बीता था। ‘नेताजी’ के नाम से विख्यात सुभाष चंद्र ने सशस्त्र क्रांति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को ‘आजाद हिंद सरकार’ की स्थापना की तथा ‘आज़ाद हिंद फौज़’ का गठन किया। इसी सेना ने 1943 से 1945 तक शक्तिशाली अंग्रेजों से युद्ध किया था तथा उन्हें भारत को स्वतंत्रता प्रदान कर देने के विषय में सोचने को मजबूर किया।

सुभाष का जन्म कटक (उड़ीसा) के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। 5 वर्ष की आयु से उन्होंने अंग्रेजी का अध्ययन प्रारंभ कर दिया था। युवावस्था इन्हें राष्ट्रसेवा में खींच लाई। गांधीजी से मतभेद होने के कारण वे कांग्रेस से अलग हो गए और ब्रिटिश जेल से भागकर जापान पहुँच गए। उन्होंने जापान में रहकर प्रवासी भारतीयों का समर्थन बटोरा और अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया। सन् 1943 से 1945 तक ‘आजाद हिंद सेना’ अंग्रेजों से युद्ध करती रही। अन्ततः ब्रिटिश शासन को उन्होंने यह महसूस करा ही दिया था कि भारत को स्वतंत्रता देनी ही पड़ेगी। माना जाता है कि एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी परंतु आज भी यह एक विवाद है।

सुभाष भारतीयता की पहचान ही बन गए थे और भारतीय युवक आज भी उनसे प्रेरणा ग्रहण करते हैं। वे भारत की अमूल्य निधि थे। ‘जय हिंद’ का नारा और अभिवादन उन्हीं की देन है। उनकी प्रसिद्धे पंक्तियाँ हैं – तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।