Prerak Prasang

धर्म-कर्म का अभिमान मत करो

abhiman par ek hindi short story

एक फकीर जंगल में खुदा की बंदगी किया करता था। वह दिन-रात खुदा की इबादत में गुजारता था। उस जंगल में पानी का एक चश्मा (एक साफ़ पात्र) था और एक अनार का पेड़ भी था। उस पर प्रतिदिन एक फल पककर तैयार होता था। जब भी फकीर को भूख लगती थी, उस अनार का फल तोड़कर खा लेता था और चश्मा का पानी पी लेता था। इसी तरह ख़ुदा की बंदगी में उसने अपनी तमाम उम्र गुजार दी।

मौत के बाद जब वह ख़ुदा के दरबार में पेश हुआ तो खुदा ने कहा “जा तूझे हमने अपने रहमो करम से बख्श दिया।” यह सुनकर फकीर को बहुत हैरानी हुई।

खुदा ने कहा “क्यों फकीर! परेशान दिख रहे हो, अगर तुम कहो तो तुम्हारे कर्मों का हिसाब कर दिया जाए?” फकीर ने अपना अभिमान छिपाते हुए कहा “जैसी आपकी मर्ज़ी।”

खुदा ने कहा “तुम जिस जंगल में भक्ति करते थे, मैने तुम्हारे खाने के लिए अनार का फल और पीने के लिए चश्मे के पानी का इंतजाम किया। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि अनार का फल एक दिन में तैयार नहीं होता और ऐसे जंगल में पानी के चश्मे का भी होना नामुमकिन था। लेकिन तुम्हारी भक्ति को देखकर मुझे ये सारी व्यवस्थाएँ करनी पड़ी।

हिसाब से तो तुम्हारी सारी भक्ति का फल इन दोनों वस्तुओं से ही पूरा हो गया है। कुछ और हो तो बताओ, नहीं तो मैं फैसला कर हूँ ! फकीर के पाँवों तले की जमीन खिसक गई। बात बिगड़ती देखकर वह खुदा के कदमों में गिर पड़ा। खुदा ने रहम करके फकीर को माफ कर दिया।

इसलिए इबादत के साथ-साथ मनुष्य को अपने सांसारिक कर्मों को भी पूरा करना चाहिए आदमी को कभी भी अपनी भक्ति और धर्म-कर्म का अभिमान नहीं करना चाहिए। सदा नम्र भाव से खुदा की रजा में राजी रहना चाहिए।

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