जैन आचार्य बान्केई के प्रवचनों को सुनने श्रद्धालुओं और जिज्ञासुओं का उमड़ता देखकर अन्य संप्रदाय के एक पुजारी को बड़ी ईर्ष्या अनुभव होती थी। एक दिन वह बान्केई को शास्त्रार्थ के लिए ललकारने की ठानकर मंदिर में आ पहुँचा और बान्केई से बोला- “हमारे संप्रदाय के प्रवर्तक में ऐसी दिव्य और चमत्कारी शक्ति थी कि नदी के एक तट पर तुलिका लेकर खड़े होते थे और उनका शिष्य दूसरे तट पर कागज लेकर खड़ा होता था। हमारे गुरु हवा में तूलिका से अमिदा (भगवान अमिताभ) का नाम लिखते थे और वह कागज पर अंकित हो जाता था। क्या तुम कोई ऐसा चमत्कार दिखा सकते हो?”
बान्केई मुस्कराए और बोले – “नहीं भाई, आपके गुरुजी जैसा करामाती तो मैं नहीं हूँ। मेरा चमत्कार तो यह है कि मैं भूख लगने पर खाना खा लेता हूँ, प्यास लगने पर पानी पी लेता हूँ।”