Prerak Prasang

खुदी को मिटा दो – मुक्त हो जाओगे

ahankaar par short story

एक सेठ था। वह रुपये कर्ज पर देने का व्यापार करता था। किसी गरजमंद शख्स ने उससे कई बार कई मदों में रुपये बतौर कर्ज लिए थे। जानते ही हो, कर्ज खाज के घाव जैसा होता है। वह बढ़ता गया, बढ़ता गया। काफी दिनों के बाद सेठ ने अपने रुपये की वसूली के लिए विभिन्न आइटमों में लिखित तकाने जारी किए। हालत तो उस कर्जदार की ऐसी पतली थी कि उसकी पूरी जाएदाद की कीमत में कर्ज का सूद भी नहीं चुकता हो पाता, मूल का क्या कहना। बेचारे ने सेठ के कदमों में सिर टेक दिया। गिड़गिड़ाते हुए बोला ‘सेठ जी! मिहर करें। कैसे रुपये चुकाऊँ? सौ-सौ अर्जियाँ उसने करनी शुरू की। बेचारे सेठ को थोड़ी दया आ गई। कहा “लो यह कागज, तेरे नाम इसमें करीब बीस आइटमों में लिए गए रुपये दर्ज हैं। इनमें किसी एक आइटम को काट लो। बेचारा हाथ में कागज संभाले सोचता रहा एक काटने के बाद उन्नीस तो शेष बचेंगे ही। किंतु उन्नीस कौन कहे एक भी देना मेरे लिए नामुमकिन है। फिर क्या करे? सोचा, आखिर इसने एक आइटम काटने की छूट तो दी ही है। तब क्यों नहीं अपना नाम ही काट दें। उसने अपने नाम पर कलम फेर दी। सेठ ने जब कागज देखा तो कहा- ‘यह क्या! तूने तो सभी आइटम रहने ही दिए, फिर काटा क्या?” ऊपर देखा तो नाम ही कटा था। अब बेचारा करता क्या ! वचन तो दे चुका या एक आइटम काट देने को नाम भी तो एक आइटम था उस परचे में।

इस युक्ति से वह लेनदार अपने सारे कर्जों से बरी हो गया।

तुम पर भी यमराज के अनगिनत चार्ज हैं। छोटे-छोटे चार्ज तो संत के दर्शन तथा सत्संग से ही छूट जाएँगे पर बड़े-बड़े कारनामे जो तुमने जान-बूझकर किए है वे तो अभी पीछे पड़े ही हैं। यदि अपनी खुदी को मिटा दो, अस्तित्व ही मिटा दो, अपना मैं का अहंकार छोड़ दो तो यमराज के चार्ज से बरी हो जाओगे।

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