Prerak Prasang

बाबा फरीद का ज्ञान

baba fareed ka gyan

एक बार एक व्यक्ति ने बाबा फरीद से प्रश्न किया “महाराज, हमने सुना है कि जब प्रभु ईसा को शूली दी जा रही थी तो उनके चेहरे से प्रसन्नता की आभा टपक रही थी और उन्हें शूली दिए जाने का जरा भी दुख न था। उसके विपरीत उन्होंने भगवान से यहूदियों को क्षमा करने की प्रार्थना की थी।” उस व्यक्ति ने कहा “महाराज, हमने यह भी सुना है कि जब मंसूर के हाथ-पैर काटे गए, आँखे फोड़ी गईं तो उसने ‘हूँ’ या ‘चूँ’ तक न की और सब कुछ उसने हँसते हुए सहन किया। क्या यह संभव है? मुझे तो इस पर बिल्कुल विश्वास नहीं होता।”

शेख फरीद ने प्रश्न को चुपचाप सुन लिया और उसे एक कच्चा नारियल देते हुए उसे फोड़ने के लिए कहा। उस व्यक्ति ने सोचा, शेख शायद प्रश्न का उत्तर दे नहीं पा रहे हैं, इसलिए उसका ध्यान वे दूसरी तरफ मोड़ रहे हैं।

वह बोला “महाराज, आपने मेरे प्रश्न का जवाब नहीं दिया।“

फरीद ने कहा, “पहले इस नारियल को तो फोड़ो। लेकिन हाँ, ध्यान रखना कि इसकी

गरी अलग निकल आए।”

“यह कैसे हो सकता है, महाराज!” वह व्यक्ति बोला, “यह नारियल तो कच्चा है और इसकी गरी और खोल दोनों जुड़े हुए हैं, इसलिए गरी को अलग कैसे निकाल सकता हूँ?”

संत ने तब एक दूसरा सूखा नारियल देते हुए उससे कहा “अब इसे फोड़कर इसकी गरी देना।” उस व्यक्ति ने नारियल फोड़कर गरी (गोला) निकालकर उनके समक्ष रख दी। तब उन्होंने उससे पूछा “इसकी गरी कैसे निकल आई? उस व्यक्ति ने जवाब दिया

“यह सूखी थी, इसलिए खोल से अलग थी, इसके कारण यह निकल आई।” संत फरीद ने कहा “तुम्हारे प्रश्न का भी यही उत्तर है। आम लोगों का शरीर खोल से जुड़ा होता है, लेकिन ईसा – मन्सूर जैसे पहुँचे हुए महात्मा अपने शरीर को खोल से अलग रखते हैं, इस कारण यातना देने पर भी उन्हें न तो पीड़ा हुई, न ही उसका कुछ न हुआ। लेकिन तू तो कच्चा नारियल मालूम पड़ता है, इसी कारण तेरे मन में ये विचार उठे कि उन दोनों को यातना क्यों महसूस न हुई।”

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