बाबा फरीद एक उच्च कोटि के फकीर हो गए हैं। उनके लिए एक बुढ़िया जलेबी का प्रसाद ले गई। बाबा उस दिन व्रत में थे। उन्होंने उसकी जलेबी लौटा दी बुढ़िया फूट-फूटकर रो पड़ी। अपने बच्चे का हाथ थाम, जलेबी लिए रोती-रोती वह घर लौटने लगी। बाबा ने पूछा- “तुम इतना दुखी क्यों हो गई भला? मैं अपना व्रत कैसे तोड़ूँ?
माता ने कहा- “बाबा, मैं अत्यंत गरीब हूँ। आज मेरे बेटे का जन्मदिन है मेरे पास बहुतों को खिलानेभर के पैसे नही है, अतः सोचा कि आप जैसे सिद्ध फकीर को मिठाई खिलाकर सैकड़ों सामान्य लोगों को मिठाई खिलाने का पुण्य सहज में प्राप्त कर लूँ। किंतु मेरी ऐसी बदनसीबी कि आज ही आपका व्रत हो आया। यही सोचकर मैं अपनी खोटी किस्मत पर रो रही हूँ। बाबा ने झट् उसके हाथ से जलेबी ले ली और उसे खुशी से खाने लगे। माता ने कहा- “आपने मेरे लिए अपना व्रत क्यों तोड़ दिया?”
बाबा फरीद बोले- “वैसा व्रत रखकर ही क्या होगा जिसके कारण किसी का दिल टूट जाए। दिल टूटने से व्रत टूटना अच्छा है।”