एक बार बरसात ज्यादा हुई। सारे कब्रिस्तान की मिट्टी कट कर बह गई, मुर्दों की हड्डी और खोपड़ियाँ नंगी नजर आने लगीं। बहलूल कुछ खोपड़ियाँ सामने रखे उनमें कुछ तलाश कर रहे थे।
संयोग से बादशाह की सवारी भी उधर आ निकली। बहलूल को यह अजीब हरकत करते देखा, तो बोले “बहलूल ! भला इन मुर्दा खोपड़ियों में क्या तलाश कर रहे हो?”
बहलूल बोले – “बादशाह सलामत ! मेरे और आपके दोनों के बाप बुजुर्गवार इस दुनिया से जा चुके हैं। मैं इन खोपड़ियों में ढूँढ़ रहा हूँ, मेरे बाप की खोपड़ी कौन-सी है, और आपके अब्बा हुजूर की कौन-सी!” “बादशाह कहने लगे – “बहलूल! क्या नादानों की-सी बातें करते हो ! कहीं मुर्दा खोपड़ियों में भी कुछ फर्क हुआ करता है जो तुम उन्हें पहचान लोगे!”
बहलूल बोले – “तो फिर हुजूर ! चार दिन की झूठी नमद के लिए बड़े लोग मगरूर होकर गरीबों को क्यों हकीर समझते हैं?” बादशाह शर्मिंदा हुए और उन्होंने उस दिन से अपने बरताव में नरमी अख्तियार कर ली।”